ग़ौस-ए-आज़म का दरबार अल्लाह ! अल्लाह ! क्या कहना

ग़ौस-ए-आ’ज़म का दरबार, अल्लाह ! अल्लाह ! क्या कहना !
बग़दादी नूरी बाज़ार, अल्लाह ! अल्लाह ! क्या कहना !
तुम हो हमारे, हम हैं तुम्हारे, तुम हो नबी के प्यारे
दरबार-ए-नबी में ग़ौस-ए-आ’ज़म टूटे दिलों के सहारे
उजड़ों को कर दे गुलज़ार, अल्लाह ! अल्लाह ! क्या कहना !
ग़ौस-ए-आ’ज़म का दरबार, अल्लाह ! अल्लाह ! क्या कहना !
बग़दादी नूरी बाज़ार, अल्लाह ! अल्लाह ! क्या कहना !
चोर को पल में वली बनाया, नज़र से बिगड़ी बनाई
डूबी कश्ती बारह बरस की पल में पार लगाई
बुढ़िया कहती थी हर बार, अल्लाह ! अल्लाह ! क्या कहना !
ग़ौस-ए-आ’ज़म का दरबार, अल्लाह ! अल्लाह ! क्या कहना !
बग़दादी नूरी बाज़ार, अल्लाह ! अल्लाह ! क्या कहना !
क़ुतुब, औलिया, ग़ौस, क़लंदर, एक से एक हैं बढ़ कर
सारे औलिया लेने सलामी आए ग़ौस के दर पर
वो हैं वलियों के सरदार, अल्लाह ! अल्लाह ! क्या कहना !
ग़ौस-ए-आ’ज़म का दरबार, अल्लाह ! अल्लाह ! क्या कहना !
बग़दादी नूरी बाज़ार, अल्लाह ! अल्लाह ! क्या कहना !
ऐसे ग़ौस का है ये हाफ़िज़, छूटे न हाथ से दामन
बिगड़े काम बनाए आक़ा, क़ुर्बां उन पे तन-मन
वो करते हैं बेड़ा पार, अल्लाह ! अल्लाह ! क्या कहना !
ग़ौस-ए-आ’ज़म का दरबार, अल्लाह ! अल्लाह ! क्या कहना !
बग़दादी नूरी बाज़ार, अल्लाह ! अल्लाह ! क्या कहना !

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

%d bloggers like this: