दिल दर्द से बिस्मिल की तरह लोट रहा हो
दिल दर्द से बिस्मिल की तरह लोट रहा हो
सीने पे तसल्ली को तेरा हाथ धरा हो
गर वक़्त-ए-अजल सर तेरी चौखट पे झुका हो
जितनी हो क़ज़ा एक ही सज्दे में अदा हो
आता है फ़क़ीरों पे उन्हें प्यार कुछ ऐसा
ख़ुद भीक दें और ख़ुद कहें मँगता का भला हो
मँगता तो है मँगता, कोई शाहों में दिखा दे
जिस को मेरे सरकार से टुकड़ा न मिला हो
क्यूँ अपनी गली में वो रवादार-ए-सदा हो
जो भीक लिए राह-ए-गदा देख रहा हो
ये क्यूँ कहूँ मुझ को ये ‘अता हो, ये ‘अता हो
वो दो कि हमेशा मेरे घर-भर का भला हो
मिट्टी न हो बर्बाद पस-ए-मर्ग, इलाही !
जब ख़ाक उड़े मेरी मदीने की हवा हो
अल्लाह का महबूब बने जो तुम्हें चाहे
उस का तो बयाँ ही नहीं कुछ तुम जिसे चाहो
ढूँढा ही करे सद्र-ए-क़यामत के सिपाही
वो किस को मिले जो तेरे दामन में छुपा हो
देखा उन्हें महशर में तो रहमत ने पुकारा
आज़ाद है जो आप के दामन से बँधा हो
शाबाश, हसन ! और चमकती सी ग़ज़ल पढ़
दिल खोल कर आईना-ए-ईमाँ की जिला हो
सीने पे तसल्ली को तेरा हाथ धरा हो
गर वक़्त-ए-अजल सर तेरी चौखट पे झुका हो
जितनी हो क़ज़ा एक ही सज्दे में अदा हो
आता है फ़क़ीरों पे उन्हें प्यार कुछ ऐसा
ख़ुद भीक दें और ख़ुद कहें मँगता का भला हो
मँगता तो है मँगता, कोई शाहों में दिखा दे
जिस को मेरे सरकार से टुकड़ा न मिला हो
क्यूँ अपनी गली में वो रवादार-ए-सदा हो
जो भीक लिए राह-ए-गदा देख रहा हो
ये क्यूँ कहूँ मुझ को ये ‘अता हो, ये ‘अता हो
वो दो कि हमेशा मेरे घर-भर का भला हो
मिट्टी न हो बर्बाद पस-ए-मर्ग, इलाही !
जब ख़ाक उड़े मेरी मदीने की हवा हो
अल्लाह का महबूब बने जो तुम्हें चाहे
उस का तो बयाँ ही नहीं कुछ तुम जिसे चाहो
ढूँढा ही करे सद्र-ए-क़यामत के सिपाही
वो किस को मिले जो तेरे दामन में छुपा हो
देखा उन्हें महशर में तो रहमत ने पुकारा
आज़ाद है जो आप के दामन से बँधा हो
शाबाश, हसन ! और चमकती सी ग़ज़ल पढ़
दिल खोल कर आईना-ए-ईमाँ की जिला हो