नात शरीफ हिंदी में लिखी हुई
मेरे नबी के प्यारे नवासे मेरे प्यारे हुसैन
शेहरे-नबी तेरी गलियों का नक़्शा ही कुछ ऐसा है
अली वाले जहा बैठे वहीं जन्नत बना बैठे
आमदे मुस्तफा से हे फूला फला चमन चमन
अब मैरी निगाहों में जचता नहीं कोई
अल्लाह मेरा दहर में आला मकाम हो
Apna Haram Dikha de Dono Jahan Ke Malik Lyrics In Hindi
dushman e alahazrat se rakh fasla hindi naat lyrics
मौला तेरा करम है मैं हूं ग़ुलाम तेरा
मेरी बात बन गई है तेरी बात करते करते
यादे नबी का गुलशन मेहका मेहका लगता है
तजल्लियों की केहकशां हुसैन है हुसैन है
फ़रिश्ते जिस के ज़ाइर हैं मदीने में वो तुर्बत है
लजपाल नबी मेरे दर्दां दी दवा देणा
मौला की रेहमतों का ख़ज़ीना नज़र में है
मेरे लिये मेरे आक़ा ने बात की हुई है
अल्लाह पढ़ता है दुरूद अपने हबीब पर
तेरे क़दमों में आना मेरा काम था
सय्यिद ने करबला में वा’दे निभा दिये हैं
आप का इरफ़ाँ दो-बाला सय्यिदि अह़मद रज़ा
ज़माने भर में ढूँढा है मुहम्मद सा नहीं कोई
ख़ुदा के प्यारे, नबी हमारे, रऊफ़ भी हैं, रह़ीम भी हैं
दर से न टाल साक़िया सदक़ा दिये बग़ैर
न कोई सानी, न कोई साया हुज़ूर जैसा कोई नहीं है
नूर वाले आक़ा का जश्ने-विलादत आया है
सरकार का नौकर हूँ, कोई आम नहीं हूँ
आँखों में मदीने की तस्वीर निराली है
बिस्मिल्लाह कर बिस्मिल्लाह लख लख बार
ईदे मीलादुन्नबी है दिल बड़ा मसरूर है
मैनूं मजबूरियां ते दूरियां ने मार्या
रुख़ दिन है या मेहरे समा येह भी नहीं वोह भी नहीं
मदद कर मेरी दो जहाँनों के मालिक
मेरी गवाही मेरी शहादत मदीने वाले के हाथ में है
ज़मीं मैली नहीं होती ज़मन मैला नहीं होता
या नबी सब करम है तुम्हारा ये जो वारे-न्यारे हुए हैं
ये वो रोज़ा है जहाँ दिल नहीं तोड़े जाते
सुकून पाया है बे-कसी ने हुदूदे-ग़म से निकल गया हूँ
या मुहम्मद मुहम्मद मैं कहता रहा नूर के मोतियों की लड़ी बन गई
ये दुनिया कैसी दुनिया है ! सब अपना पराया करते हैं
सालारे-सहाबा वो पहला ख़लीफ़ा सरकार का प्यारा सिद्दीक़ हमारा
ज़िंदगी दी है तो जीने का क़रीना दे दे
ज़मीं से अर्श-ए-आज़म तक नबी का बोल-बाला है
जो वि मंगा मैनु सरकार अता करदे ने
इन्शाअल्लाह सारे रोज़े रखूँगा रमज़ान में
ज़माना छूटे हम न छोड़ेंगे दरे ग़रीब नवाज़
कोई नहीं है मुश्किल जब ख़्वाजा बादशाह है
चर्चा है तेरा आँगन आँगन या ख़्वाजा मोईनुद्दीन हसन
दिल-ए-उशाक़ में यूँ अज़मते-सिद्दीक़े-अकबर है
मुस्तफ़ा मुस्तफ़ा (वो है मेरा नबी, वो है मेरा नबी)
नमी-दानम चे मंज़िल बूद शब जाए कि मन बूदम
ज़ाइरो पासे अदब रख्खो हवस जाने दो
उमंगें जोश पर आईं, इरादे गुदगुदाते हैं
जिस शख़्स का सरकार पे ईमान नहीं है
बाग़े-जन्नत में निराली चमन आराई है
करम के बादल बरस रहे हैं दिलों की खेती हरी भरी है
सुन तयबा नगर के महाराजा फ़रियाद मोरे इन असुवन की
मरहबा ए जाने-जानां जाने-ईमां या नबी
पहंजी साईं चौंठ चुमायो सुहिणी दरबार घुमायो
नाते-पाक उनको सुनाऊँ सब्ज़ गुम्बद देख कर
ईमान ख़ुदा ने हमको दिया सरकार की आमद के सदक़े
मैं क़ादरी दीवाना मैं क़ादरी मस्ताना
आँखों में नूर आ गया है जिस ने मदीना देखा है
बेहरे दीदार मुश्ताक़ है हर नज़र दोनों आलम के सरकार आ जाइये
चमकने लगा सुन्नियत का सितारा बरेली में अहमद रज़ा जब से आये
ज़े-हाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल दुराय नैनाँ बनाए बतियाँ
अल्लाह तेरा शुक्र है मौला तेरा शुक्र है
मो’जज़ा मेरे नबी का कह दिया तो हो गया
मेरी क़िस्मत जगाने को नबी का नाम काफी है
मौला मेरा वी घर होवे उते रहमत दी छां होवे
ओवैसियों में बैठ जा बिलालियों में बैठ जा
ये नाज़ ये अंदाज़ हमारे नहीं होते
फ़ासलों को ख़ुदा-रा ! मिटा दो जालियों पर निगाहें जमी हैं
हरा गुम्बद जो देखोगे ज़माना भूल जाओगे
धूम हर जानिब मची है आप के मीलाद की
आक़ा के दीवाने हैं, आक़ा के मस्ताने हैं
मेरा मज़बूत है ईमान मैं आ’ला हज़रत वाला हूँ