मैं मदीने की जानिब न कैसे खींचूं, मेरा दीन और दुनिया मदीने में है
मेरी उल्फत मदीने से यूँ ही नहीं, मेरे आक़ा का रोज़ा मदीने में है
फ़िर मुझे मौत का कोई ख़तरा न हो, मौत क्या ज़िंदगी की भी परवा न हो
काश ! इक बार सरकार मुझ से कहें, अब तेरा जीना-मरना मदीने में है
मेरी उल्फत मदीने से यूँ ही नहीं, मेरे आक़ा का रोज़ा मदीने में है
अर्श-ए-आज़म से जिस की बड़ी शान है, रोज़ा-ए-मुस्तफा जिस की पहचान है
जिस का हम-पल्ला कोई मोहल्ला नहीं, एक ऐसा मोहल्ला मदीने में है
मेरी उल्फत मदीने से यूँ ही नहीं, मेरे आक़ा का रोज़ा मदीने में है
सरवर-ए-दो-जहाँ ! मुदआ है मेरा, हां ! बदू-चश्म-ए-तर मुदआ है मेरा
उन की फेहरिस्त में मेरा भी नाम हो, जिन का रोज़ आना-जाना मदीने में है
मेरी उल्फत मदीने से यूँ ही नहीं, मेरे आक़ा का रोज़ा मदीने में है
जब नज़र सू-ए-तयबा रवाना हुई, साथ दिल भी गया, साथ जां भी गई
मैं मुनीर अब रहूँगा यहाँ किस लिए ! मेरा सारा असासा मदीने में है
मेरी उल्फत मदीने से यूँ ही नहीं, मेरे आक़ा का रोज़ा मदीने में है