या रब ! सू-ए-मदीना मस्ताना बन के जाऊँ
उस शम्’-ए-दो-जहाँ का परवाना बन के जाऊँ
या रब! सू-ए-मदीना
उन के सिवा किसी की दिल में न आरज़ू हो
दुनिया की हर तलब से बेगाना बन के जाऊँ
उस शम्’-ए-दो-जहाँ का परवाना बन के जाऊँ
या रब ! सू-ए-मदीना मस्ताना बन के जाऊँ
उस शम्’-ए-दो-जहाँ का परवाना बन के जाऊँ
या रब ! सू-ए-मदीना
हर गाम एक सज्दा, हर गाम या हबीबी
इस शान, इस अदा का मस्ताना बन के जाऊं
उस शम्’-ए-दो-जहाँ का परवाना बन के जाऊँ
या रब ! सू-ए-मदीना मस्ताना बन के जाऊँ
उस शम्’-ए-दो-जहाँ का परवाना बन के जाऊँ
या रब! सू-ए-मदीना
पहुँचूँ मदीने काश ! मैं इस बेख़ुदी के साथ
रोता फिरूँ गली गली दीवानगी के साथ
जूँ ही निग़ाह गुंबद-ए-ख़ज़रा को चूम ले
क़ुर्बान मेरी जान हो वारफ़्तगी के साथ
मुझ को बक़ी’-ए-पाक में दो गज़ ज़मीं मिले
या रब ! दु’आ है तुझ से मेरी ‘आजिज़ी के साथ
उस शम्’-ए-दो-जहाँ का परवाना बन के जाऊँ
या रब ! सू-ए-मदीना मस्ताना बन के जाऊँ
उस शम्’-ए-दो-जहाँ का परवाना बन के जाऊँ
या रब! सू-ए-मदीना
बहज़ाद ! अपना ‘आलम समझेगा क्या ज़माना
है फ़हम का तक़ाज़ा दीवाना बन के जाऊँ
उस शम्’-ए-दो-जहाँ का परवाना बन के जाऊँ
या रब ! सू-ए-मदीना मस्ताना बन के जाऊँ
उस शम्’-ए-दो-जहाँ का परवाना बन के जाऊँ