सरकार सुनते हैं
जहां भी हो वहीं से दो सदा सरकार सुनते हैं
सरे आईना सुनते हैं, पसे-दीवार सुनते हैं
सरे आईना सुनते हैं, पसे-दीवार सुनते हैं
मेरा हर साँस उन की आहटों के साथ चलता है
मेरे दिल के धड़कने की भी वो रफ़्तार सुनते हैं
मैं सदक़े जाऊं उन की रह़मतुल-लिल-आ़लमीनी के
पुकारो चाहे कितनी बार वो हर बार सुनते हैं
मुज़फ्फर जब किसी मेहफिल में उनकी नात पड़ता हूँ
मेरा ईमान है वो भी मेरे अशआ़र सुनते हैं