ज़रा छेड़ तू नग़्मा-ए-क़ादरिय्यत के हर तार बोलेगा तन तन तना तन

ज़रा छेड़ तू नग़्मा-ए-क़ादरिय्यत के हर तार बोलेगा तन तन तना तन

ज़रा छेड़ तू नग़्मा-ए-क़ादरिय्यत, के हर तार बोलेगा तन तन तना तन
तेरी रूह हरगिज़ रहेगी न रक़्सां, जो गर्दिश में रहती है गन गन गना गन
ज़रा छेड़ तू नग़्मा-ए-क़ादरिय्यत, के हर तार बोलेगा तन तन तना तन

अबू-जहल हाथों में कंकरियाँ लाया, तो सरकार ने उन को कलमा पढ़ाया
मगर फिर भी ईमाँ वो नारी न लाया, पलट कर वो भागा था दन दन दना दन
ज़रा छेड़ तू नग़्मा-ए-क़ादरिय्यत, के हर तार बोलेगा तन तन तना तन
चले अर्श की सैर को मेरे आक़ा, तो जन्नत से बुर्राक़ ख़िदमत में आया
हवाओं से गुज़रे, फ़ज़ाओं से गुज़रे, चले जा रहे थे वो सन सन सना सन
ज़रा छेड़ तू नग़्मा-ए-क़ादरिय्यत, के हर तार बोलेगा तन तन तना तन
ग़ुलाम-ए-शहंशाह-ए-बग़दाद मैं हूँ, मेरा दोहरा रिश्ता है ख़्वाजा पिया से
गले में मेरे नूरी पट्टा पड़ा है, मैं हूँ क़ादरी चिश्ती टन टन टना टन
ज़रा छेड़ तू नग़्मा-ए-क़ादरिय्यत, के हर तार बोलेगा तन तन तना तन
ये है नूरी टकसाल नूरी मियाँ की, यहाँ जन्नती सिक्के ढलते रहे हैं
यहाँ खोटे सिक्के की जा ही नहीं है, हर इक सिक्का बजता है खन खन खना खन
ज़रा छेड़ तू नग़्मा-ए-क़ादरिय्यत, के हर तार बोलेगा तन तन तना तन
तुझे नज़्मी ! शैतान का ख़ौफ़ क्यूँ हो ! तुझे पीर सय्यिद मियाँ से मिले हैं
करेंगे करम की नज़र तेरे ऊपर, तो शैतान भागेगा ज़न ज़न ज़ना ज़न
ज़रा छेड़ तू नग़्मा-ए-क़ादरिय्यत, के हर तार बोलेगा तन तन तना तन

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