फ़रिश्ते जिस के ज़ाइर हैं मदीने में वो तुर्बत है
ये वो तुर्बत है जिस को अर्शे-आज़म पर फ़ज़ीलत है
भला ! दश्ते-मदीना से चमन को कोई निस्बत है
मदीने की फ़िज़ा रश्के-बहारे-बाग़े-जन्नत है
फ़रिश्ते जिस के ज़ाइर हैं, मदीने में वो तुर्बत है
ये वो तुर्बत है जिस को अर्शे-आज़म पर फ़ज़ीलत है
मदीना गर सलामत है तो फिर सब कुछ सलामत है
ख़ुदा रखे मदीने को, इसी का दम ग़नीमत है
फ़रिश्ते जिस के ज़ाइर हैं, मदीने में वो तुर्बत है
ये वो तुर्बत है जिस को अर्शे-आज़म पर फ़ज़ीलत है
मदीना ऐसा गुलशन है जो हर गुलशन की ज़ीनत है
बहारे-बाग़े-जन्नत भी मदीने की बदौलत है
फ़रिश्ते जिस के ज़ाइर हैं, मदीने में वो तुर्बत है
ये वो तुर्बत है जिस को अर्शे-आज़म पर फ़ज़ीलत है
हमें क्या ! हक़ तआ़ला को मदीने से मह़ब्बत है
मदीने से मह़ब्बत उन से उल्फत की अलामत है
फ़रिश्ते जिस के ज़ाइर हैं, मदीने में वो तुर्बत है
ये वो तुर्बत है जिस को अर्शे-आज़म पर फ़ज़ीलत है
गदागर है जो इस घर का वही सुल्ताने-क़िस्मत है
गदाई इस दरे-वाला की रश्के-बादशाहत है
फ़रिश्ते जिस के ज़ाइर हैं, मदीने में वो तुर्बत है
ये वो तुर्बत है जिस को अर्शे-आज़म पर फ़ज़ीलत है
यहाँ भी उनकी चलती है, वहाँ भी उनकी चलती है
मदीना राजधानी है, दो आलम पर हुकूमत है
फ़रिश्ते जिस के ज़ाइर हैं, मदीने में वो तुर्बत है
ये वो तुर्बत है जिस को अर्शे-आज़म पर फ़ज़ीलत है
गज़ब ही कर दिया अख़्तर ! मदीने से चले आए
ये वो जन्नत है जिस की अर्श वालों को भी हसरत है
फ़रिश्ते जिस के ज़ाइर हैं, मदीने में वो तुर्बत है
ये वो तुर्बत है जिस को अर्शे-आज़म पर फ़ज़ीलत है
मदीना छोड़ कर अख़्तर भला क्यूं जाए जन्नत को
ये जन्नत क्या हर एक नेअ़मत मदीने की बदौलत है
फ़रिश्ते जिस के ज़ाइर हैं, मदीने में वो तुर्बत है
ये वो तुर्बत है जिस को अर्शे-आज़म पर फ़ज़ीलत है