Jab Apne Husn Ki Mehfil Sajane Ka Khayal Aaya Lyrics in Hindi
कव्वाल: साबरी ब्रदर्स
रचना: मक़बूल साबरी
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आ..
आ…आ…आ
आ…हा…हा…. आ…… हा….
हे..री.. दे.. ना.. ओ..
हो…. हे..री…दे.. ना…
री दे री दे ना.. री दे ना….
आ…. आ..
तू मिला भी है,
तू मिला भी है, जुदा भी है, तेरा क्या कहना!
आ..
(हां साब,)
आ…
तू मिला भी है, जुदा भी, है तेरा क्या कहना!
तू…. तू………..हू..
तू मिला भी है, जुदा भी है, तेरा क्या कहना!
तू सनम भी है, ख़ुदा भी है, तेरा क्या कहना!
मर्ज़ है, तूही दवा भी है, तेरा क्या कहना!
तू शिफ़ा भी है, दुआ़ भी है, तेरा क्या कहना!
तेरे उश्शाक़ को, राज़ी-ब-रज़ा कहते हैं
तेरी मंज़िल में, फ़ना को भी बक़ा कहते हैं
तेरी मंज़िल में, फ़ना को भी बक़ा कहते हैं।
आ..आ……
ए….. आ…..………आ……..आ……….
तू……..….
तू, अगर चाहे, तो क़तरे को समन्दर करदे
तू,…..अगर चाहे, तो क़तरे को समन्दर करदे
चश्मा-ए-चश्म के हर अश्क को गौहर कर दे
तू गदा..ओं को नवाज़े..
तू…. गदाओं को नवाज़े तो शहिंशाह बनें
और चाहे तो यतीमो पयंबर करदे।
आ….आ आ….
तू….. गदाओं को नवाज़े तो शहिंशाह बनें
हां….आ…अ..अ..हा….आ..आ..
तू गदाओं को नवाज़े तो शहिंशाह बनें
और चाहे तो यतीमो पयंबर करदे
आ..
कलीमुल्लाह को..
कलीमुल्लाह को, इन्नी-अना से खेलते देखा
कलीमुल्लाह को, इन्नी-अना से खेलते देखा
और, जबीउल्लाह को, हक़ की रज़ा से खेलते देखा
जबीउल्लाह को, हक़ की रज़ा से खेलते देखा
जनाब अय्यूब को, सब्र-ओ-रज़ा से खेलते देखा
जनाब अय्यूब को, सब्र-ओ-रज़ा से खेलते देखा
और, हलीमा को,
हलीमा को, मुह़म्मद मुस्तफाﷺ से खेलते देखा
और, मोह़म्मदﷺकमली वाले को, ख़ुदा से खेलते देखा
मोह़म्मदﷺकमली वाले को, ख़ुदा से खेलते देखा
आ………..आ….. आ…दम, आदम
आ…दम, आ…..दम, आदम, आ…दम, आदम
आदम, को ये रुतबा.
आदम, को ये रुतबा, ये हदाया ना मिला
ऐसा, किसी इंसान को, पाया न मिला
अल्लाह रे लताफ़त-ए-तन-ए-पाक-ए-रसूल
अल्लाह रे लताफ़त-ए-तन-ए-पाक-ए-रसूल
ढूंढ़ा के ये आफ़ताब साया ना मिला।
जल्वे….ए…..
आ…….अ
जल्वे तेरे उस वक़्त भी थे, और कम भी नहीं थे
ये बातें जब की हैं, के जब हज़रत-ए-आदम, भी नहीं थे।
जब अपने हुस्न की महफ़िल सजाने का ख़याल आया
जब अपने हुस्न की महफ़िल सजाने का ख़याल आया
जब अपने हुस्न की महफ़िल सजाने का ख़याल आया
जब अपने हुस्न की..
आ……………..
जब अपने हुस्न की महफ़िल सजाने का ख़याल आया
जब अपने हुस्न की..जब अपने हुस्न की..
जब अपने हुस्न, हुस्न की..
जब अपने हुस्न, हुस्न की..
जब अपने हुस्न, अहे हुस्न की
जब अपने हुस्न, हुस्न की..
जब अपने हुस्न, हुस्न की..
जब अपने..
जब अपने हुस्न की महफ़िल सजाने का ख़याल आया
जब अपने हुस्न की महफ़िल सजाने का ख़याल आया
जब अपने हुसन की महफ़िल सजाने का ख़याल आया
(हां साब, ये जब की हैं बातें,के जब आदम भी नहीं थे।)
(जलवे तो आं हज़रत रसूलुल्लाह-व-करीम सल्लाल्ललाहाे-अ़लैहि-वसल्लम उस वक़्त भी थे। कब? के जब हज़रत आदम अ़लैहिस्सलाम को दुनियां में नहीं भेजा था अल्लाह तआ़ला ने। उस वक़्त भी हुज़ूर का नूर मौजूद था। कहते हैं कि – जल्वे तेरे उस वक़्त भी थे, कम भी नहीं थे, ये बातें जब की हैं, के जब हज़रत-ए-आदम भी नहीं थे।)
जब अपने हुस्न की महफ़िल सजाने का ख़याल आया
जब अपने हस्न की महफ़िल सजाने का ख़याल आया।
और,
चरागे़ बज्म-ए-इमकां के जलाने का ख़याल आया
चरागे़ बज्म-ए-इमकां के जलाने का ख़याल आया
और,
ह़रीम-ए-नाज़ के पर्दे उठाने का ख़याल आया
ह़रीम-ए-नाज़ के पर्दे उठाने का ख़याल आया
तो,
ख़ुदा को नूर जब अपना दिखाने का ख़याल आया
ख़ुदा को नूर जब अपना दिखाने का ख़याल आया
ख़ुदा को नूर जब अपना दिखाने ..
आ………
ख़ुदा को..
ख़ुदा को नूर जब अपना दिखाने का ख़याल आया ..
रुख़-ए-अह़मद को..ओ..
रुख़-ए-अह़मद को आयीना बनाने का ख़याल आया
रुख़-ए-अह़मद को आयीना बनाने का ख़याल आया
रुख़-ए-अह़मद को.. अह़मद को..
रुख़-ए-अह़मद को.. अह़मद को..
रुख़-ए-अह़मद को आयीना बनाने का ख़याल आया।
ख़ुदा को नूर जब अपना दिखाने का ख़याल आया
आया,
रुख़-ए-अह़मद को आयीना बनाने का ख़याल आया ..
रुख़-ए-अह़मद को आयीना बनाने का ख़याल आया।..
इन्हीं के वास्ते पैदा किया, सारे ज़माने को
इन्हीं के वास्ते पैदा किया, सारे ज़माने को
और,
इन्हीं पर ख़त्म फ़रमाया, ज़माने के फंसाने को
इन्हीं पर ख़त्म फ़रमाया, ज़माने के फंसाने को
और सजी..
सजी बज़्म-ए-जहां मह़बूब की इ़ज़्ज़त बढ़ाने को
सजी बज़्म-ए-जहां मह़बूब की इज़्ज़त बढ़ाने को
तो सरे….ए……
सरे- महशर दो-आ़लम को बुला भेजा दिखाने को
आ..
सरे-महशर दो-आ़लम को बुला भेजा दिखाने को
उन्हें जब ह़श्र में दूल्हा बनाने का ख़याल आया ।
उन्हें जब ह़श्र में दूल्हा बनाने का ख़याल आया…
उन्हें जब ह़श्र में दूल्हा बनाने का ख़याल आया…
उन्हें जब ह़श्र में दूल्हा …
उन्हें जब ह़श्र में दूल्हा …
उन्हें जब ह़श्र में दूल्हा बनाने का ख़याल आया…
उन्हें जब ह़श्र में दूल्हा बनाने का ख़याल आया…।
और, बहारों को अ़ता कीं वुसअ़तें, फूलों को है़रानी
बहारों को अ़ता कीं वुसअ़तें, फूलों को है़रानी
ज़िमीं को हुस्न बख़्शा, चर्ख़ को बख़्शी दरख़-शानी
ज़मीं को हुस्न बख़्शा, चर्ख़ को बख़्शी दरख़-शानी
क़मर को नूर, तारों को चमक, ज़र्रों को ताबानी
क़मर को नूर, तारों को चमक, ज़र्रों को ताबानी
क़मर को नूर, तारों को चमक, ज़र्रों को ताबानी
(हां साब, समात फरमाएं: जब नबी-ए-अकरम स़ल्लल्लाहो-अ़लैहे-वसल्लम मक्के में तशरीफ़ ला रहे थे। ये उस वक़्त का मंज़र है। अल्लाह-तआ़ला ने – बहारों को अ़ता कीं वुसअ़तें, फूलों को है़रानी।, ज़मीं को हुस्न बख़्शा, चर्ख़ को बख़्शी दरख़-शानी। क़मर को नूर, तारों को चमक, ज़र्रों को ताबानी।)
(क्यूं)
ऐ बाद-ए-सबा, क्या तूने सुना?
ऐ बाद-ए-सबा, क्या तूने सुना?
मेहमान वो आने वाले हैं।
कल….यां ना बिछा
कलियां ना बिछा
कलि..यां ना बिछा तू राहों में..
कलियां ना बिछा तू राहों में, हम आंखें बिछाने वाले हैं।
बहारों को अ़ता कीं वुसअ़तें, फूलों को है़रानी।
ज़मीं को हुस्न बख़्शा, चर्ख़ को बख़्शी दरख़-शानी।
क़मर को नूर, तारों को चमक, ज़र्रों को ताबानी..
सजावट को चमन के दी गई वोह जल्वा सामानी…
चमन में जब तेरी तशरीफ़ लाने, का ख़याल आया।
चमन में.. या रसूलल्लाह..
चमन में.. या रसूलल्लाह..
चमन में जब तेरी तशरीफ़ लाने, का ख़याल आया ..
चमन में जब तेरी तशरीफ़ लाने, का ख़याल आया ..
चमन में जब तेरी तशरीफ़ लाने, का ख़याल आया ।
तो शब-ए-असरा कहा ख़ालिक ने, हो जो मुस्तफ़ा मांगो
शब-ए-असरा कहा ख़ालिक ने, हो जो मुस्तफ़ा मांगो
और,
तुम्हारे वास्ते हैं दो जहां, ऐ मुस्तफ़ा मांगो
तुम्हारे वास्ते हैं दो जहां, ऐ मुस्तफ़ा मांगो
अता कर दूं, अगर कुछ और भी इसके सिवा, मांगो
अता कर दूं, अगर कुछ और भी इसके सिवा, मांगो
अता कर दूं, अगर कुछ और भी इसके सिवा, मांगो ..
तो
शब-ए-असरा कहा ख़ालिक ने हो, जो मुस्तफ़ा मांगो..
नबी को अपनी उम्मत बख़्शवाने का ख़याल आया।
नबी को अपनी उम्मत बख़्शवाने का ख़याल आया।
नबी को अपनी उम्मत बख़्शवाने का ख़याल आया।
नबी को अपनी उम्मत बख़्शवाने का ख़याल आया।
नबी को..
आ ….
ए.. आ..
सा गा पा, पा पा, गा पा गा सा
सा गा पा, पा पा, गा पा गा सा
आ.……
आ…….……….
आ…………………….………
नबी को अपनी उम्मत बख़्शवाने का ख़याल आया।
नबी को अपनी उम्मत बख़्शवाने का ख़याल आया।
और,
जब अपने हुस्न की महफ़िल सजाने का ख़याल आया
आ….