Namaz ke Zaroori Masail – Ahkam e Namaz – Part 3
नमाज़ हर मुसलमान मर्द औरत पर फर्ज है
【★नमाज़ के वाजिबात★】
• यानी जिन का करना नमाज़ की सेहत सहीह होने के लिये जरूरी है,
• अगर इन वाजिबो मे से कोई एक वाजिब सहवन भूलकर छूट जाए तो सजद-ए-सहव करना वाजिब होगा और सजद ए सहव करने से नमाज़ दुरुस्त हो जाएगी
• अगर किसी एक वाजिब को क्स्दन जान बुजकर छोड़ दिया तो सजद ए सहव करने से भी नमाज़ सहीह न होगी नमाज़ का ए आदा यानी नमाज़ को दोबारा पढना वाजिब है
• नमाज़ में हस्बे ज़ेल ( निम्तलिखित ) वाजिब है: –
नं 【 वाजिब की तफसील हवाला 】
( 1 ) तकबीरे तहरीमा में लफज अल्लाहो अकबर कहना { दुरे मुख्तार }
( 2 ) सुर – ए – फातेहा पूरी पढना यानी पूरी सूरत से एक लफ्ज़ भी न छुटे { फतावा रजविया }
( 3 ) सुर – ए – फातेहा के साठ सूरत मिलाना या एक बड़ी आयत या तीन छोटी आयते मिलाना, { बहारे शरीअत }
( 4 ) फर्ज नमाज़ की पहली दो रकाअतो में अल हम्दो के साथ सूरत मिलाना { बहारे शरीअत }
( 5 ) नफल सुन्नत और वीत्र नमाज़ कि हर ( प्रत्येक ) रकअत में अल हम्दो के साथ सूरत मिलान { बहारे शरीअत }
( 6 ) सुर – ए – फातेहा ( अल – हम्दो ) का सूरत से पहले होना बहारे { शरीअत }
( 7 ) सूरत से पहले सिर्फ एक मरतबा अल – हम्दो शरीफ पढना { बहारे शरीअत }
( 8 ) अल हम्दो शरीफ और सूरत के दरमियान फस्ल ( वक़फा-gap ) न करे यानी आमीन और बिस्मील्लाह के सिवा कुछ भी न पढे { बहारे शरीअत }
( 9 ) क़िरअ़त के बाद फौरन रुकूअ़ करना { रद्दुल मोहतार }
( 10 ) कौ़मा यानी रुकूअ़ के बाद सीधा खड़ा होना { बहारे शरीअत }
( 11 ) हर एक रकअ़त में सिर्फ एक ही रुकूअ़ करना { बहारे शरीअत }
( 12 ) एक सजदा के बाद फौरन दूसरा सजदा करना कि दोनों सजदों के दरमियान कोई रूक्न फासिल न { बहारे शरीअत }
( 13 ) सजदा में दोनों पांव की तीन तीन उंगलियों के पेट जमीन से लगना { फतावा रजविया }
( 14 ) जल्सा यानी दोनो सजदों के दरमियान सीधा बैठना { बहारे शरीअत }
( 15 ) हर रकअत में दो ( 2 ) मरतबा सजदा करना दो से ज़यादा सजदे न करना { फतावा रजविया }
( 16 ) ता’दिले अरकान यानी रुकूअ सुजूद कौमा और जल्सा में कम से कम एक मरतबा सुब्हानल्लाह कहने के वक़्त की मिक़दार मात्रा ढहेरना {आम कुतुब }
( 17 ) दूसरी रकअत से पहले का’दा न करना यानी एक रकअत के बाद का’दा न करना और खड़ा होना { बहारे शरीअत }
( 18 ) का’द ए उला अगरचे नफल नमाज़ में हो यानी दो रकअत के बाद { कादा करना }
( 19 ) काद ए उला और क़ाद ए आखिरा में पूरा तशहहूद अतहिय्यात पढना इस तरह कि एक लफज भी न छूटे { दुरे मुख्तार }
( 20 ) फर्ज़ वित्र और सुन्नते मुअकेदा के क़ाद ए उला में तशहहूद के बाद कुछ भी न पढ़ना { फतावा रजविया }
( 21 ) चार ( 4 ) रकअ़त वाली नमाज़ में तीसरी रकअत पर का’दा न करना और चौथी रकअ़त के लिये खड़ा हो जाना रद्दुल मोहतार
( 22 ) हर जहरी नमाज़ में इमाम का जहुर ( बुलन्द ) आवाज़ से किरअ़त करना { दुरे मुख्तार }
( 23 ) हर सिरी नमाज़ में इमाम का आहिस्ता किरअ़त करना { फतावा रजविया }
( 24 ) वित्र नमाज़ में दुआ ए कुनूत की तकबीर यानी अल्लाहो अकबर कहना
{ आलमगीरी }
( 25 ) वीत्र में दुआ ए क़ुनूत { पढना फतावा रजविया }
( 26 ) ईद की नमाज़ में छे ( 6 ) जाइद( विशेष Extra ) तक़बीरे कहना { बहारे शरीअत }
( 27 ) ईद की नमाज़ में दूसरी रकअत के रुकूअ में जाने के लिये अल्लाहो अकबर तक़बीरे कहना { बहारे शरीअत }
( 28 ) आयते सजदा पढ़ी होतो सजद ए तिलावत करना { फतावा रजविया }
( 29 ) सहव गलती हुआ तो सजद ए सहव करना { दुरे मुख्तार }
( 30 ) हर फर्ज और वाजिब का उसकी जगह स्थान पर होना { रद्दुल मोहतार }
( 31 ) दो ( 2 ) फर्ज या दो ( 2 ) वाजिब अथवा किसी फर्ज़ या वाजिब के दरमियान तीन ( 3 ) तस्बीह सुब्हानल्लाह कहने के वक़्त की मिक़दार मात्रा जितना वकफा न होना { फतावा रजविया }
( 32 ) जब इमाम किरअत पढे चाहे जहर बुलन्द आवाज से पढ़े चाहे आहिस्ता आवाज से पढ़े तब मुक़्तदी का चुप रहेना और कुछ भी न पढना { फतावा रजविया }
( 33 ) किरअ़त के इलावा तमाम वाजिबात यानी वाजिब कामो में मुक़्तदी का इमाम की मुताबेअ़त अनुकरण करना
( 34 ) दोनो सलाम में लफज अस्सलाम कहना और अलैकुम कहना वाजिब नही फतावा रजविया
दोस्तो ऐसे मसाइल खूब सेर करते जाए किया पता किस की नमाज़ सही हो जाय और उसका सवाब आप को मिले,
इन्शा अल्लाह पोस्ट जारी रहे गा