Ishq kya hai Naat Lyrics

Ishq kya hai Naat Lyrics

इश्क फितरत का तकाज़ा है दिलो का उन्वान
इश्क के दम से मोअज्जज़ है जहाँ में इंसान

इश्क बन्दों को फरिश्तो से उला करता है
इश्क अल्लाह के रहमत से मिला करता है

इश्क में बर्क की तेज़ी है गुलों की नरमी
सर्द आहों से मुज़य्यन है बला की गर्मी

इश्क में बर्फ की ठंडक है तपिश आतिश की
फैज़ सूरज का मयस्सर है सखा बारिश की

इश्क आतिश भी है शोला भी है शबनम भी है
ज़ख्मो कुल्फत भी है राहत भी है मरहम भी है

इश्क ग़ैरत का मुजस्सम है हया का पैकर
लुत्फो एखलास का दरिया है गेना का मज़हर

इश्क से खाली ज़माने में कोई दिल ही नहीं
गर वो खाली है तो फिर जान ले वो दिल ही नहीं

इश्क हो जाए तो हर साज़ बदल जाते हैं
रहने सहने के फिर अंदाज़ बदल जाते हैं

इश्क लफ्जों का मजबूर नहीं होता है
ग़ैर की मय से वो मखमूर नहीं होता है

इश्क में राज़े फना और बक़ा पोशीदा
ढूढने वालो के खातिर है खुदा पोशीदा

इश्क सूली पे चढ़े आग में जलते देखा
फिर मोकिफ न कभी अपना बदलते देखा

इश्क पर इज्ज़ का साया है कहीं किब्र नहीं
इसके किस्से में दिखावे का कही ज़िक्र नहीं

इश्क के बाब में नियत से बहस है यारों
ज़ाहिरी लफ्ज़ पे तकरार अबस है यारों

इश्क को इल्म के मिज़ा पे बिठाना कैसा
किसी कतरे को समन्दर से मिलाना कैसा

इश्क एक पल में जहाँ होके चला आता है
इल्म बरसों उसी रस्ते में फसा रहता है

इश्क महबूब की हर बात पे सब करता है
इल्म तहकीक़ो दलाइल की तलब करता है

इश्क के जामे लबालब से जो मखमूर हुआ
कोई रूमी , तो गज़ाली , कोई मंसूर हुआ

इश्क के राह पे चलकर जो हुए है कामिल
उनमे फ़य्याज़ को भी कर दे खुदाया ! शामिल
अज़ मोहम्मद फ़य्याज़ मिस्बाही
वसीम रिज़वी के इस ऐतराज़ का भी जवाब पढ़े :

❤️ عشق کیا ہے؟ ❤️

عشق فطرت کا تقاضہ ہے دلوں کا عنوان
عشق کے دم پہ معزز ہے جہاں میں انسان

عشق بندوں کو فرشتوں سے علا کرتا ہے
عشق اللہ کی رحمت سے ملا کرتا ہے

عشق میں برق کی تیزی ہے گلوں کی نرمی
سرد آہوں سے مزین ہے، بلا کی گرمی

عشق میں برف کی ٹھنڈک ہے تپش آتش کی
فیض سورج سا میسر ہے سخا بارش کی

عشق آتش بھی ہے شعلہ بھی ہے شبنم بھی ہے
زخم و كلفت بھی ہے راحت بھی ہے مرہم بھی ہے

عشق غیرت کا مجسم ہے حیا کا پیکر
لطف و اخلاص کا دریا ہے غنا کا مظہر

عشق سے خالی زمانے میں کوئی دل ہی نہیں
گر وہ خالی ہے تو پھر جان لے وہ دل ہی نہیں

عشق ہو جائے تو ہر ساز بدل جاتے ہیں
رہنے سہنے کے پھر انداز بدل جاتے ہیں

عشق لفظوں کا بھی مجبور نہیں ہوتا ہے
غیر کی مئے سے وہ مخمور نہیں ہوتا ہے

عشق میں رازِ فنا اور بقا پوشیدہ
ڈھونڈنے والوں کی خاطر ہے خدا پوشیدہ

عشق سولی پہ چڑھے آگ میں جلتے دیکھا
پھر بھی موقف نہ کبھی اپنا بدلتے دیکھا

عشق پہ عجز کا سایہ ہے کہیں کبر نہیں
اس کے قصے میں دکھاوے کا کہیں ذکر نہیں

عشق کے باب میں نیّت سے بحث ہے یاروں
ظاہری لفظ پہ تکرار عبث ہے یاروں

عشق کو علم کے میزاں پہ بٹھانا کیسا؟
کسی قطرے کو سمندر سے ملانا کیسا؟

عشق اک پل میں جہاں ہوں کے چلا آتا ہے
علم برسوں اسی رستے میں پھنسا رہتا ہے

عشق محبوب کی اک بات پہ سب کرتا ہے
علم تحقیق و دلائل کی طلب کرتا ہے

عشق بے ” ع” بھی ہوجائے تو “شق” رکھتا ہے
علم سے “ع” جو ہٹ جائے تو” لم” بچتا ہے

عشق کے جام لبالب سے جو مخمور ہوا
کوئی رومی، تو غزالی، کوئی منصور ہوا

عشق کی راہ پہ چل کر جو ہوئے ہیں کامل
ان میں فیاض کو بھی کر دے خدایا! شامل

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