वज़ाइफे ग़ौसिया
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“या शैख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी शैयन लिल्लाह”:– का वज़ीफ़ा हमेशा से बुजुर्गाने दीन के मामूलात से रहा है किसी मुसीबत या तकलीफ़ में हुज़ूर गौसे पाक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को याद करने से तमाम मुसीबतें और परेशानियां दूर हो जाती हैं,हुज़ूर गौसे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु खुद इरशाद फरमाते हैं कि
मेरा कोई मुरीद मुसीबत परेशानी में जब मुझे याद करता है तो मैं उसकी मदद करता हूँ अगर चेह मेरा मुरीद बहुत फासले पर हो जैसा कि रियायतों में आता है कि
हुज़ूर ग़ौसे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की एक मुरीदनी कहीं किसी काम से एक ग़ार की तरफ़ गई उसके पीछे एक बदकार श़ख्स भी पहुंच गया और उसकी अज़मत रेज़ी का इरादा किया,उसने फौरन अपने पीर हुज़ूर गौसे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को याद किया उस वक़्त हुज़ूर ग़ौसे पाक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु अपने मदरसे में वुज़ू कर रहे थे आपने अपनी लकड़ी की खड़ाऊं को हवा में उछाल दिया जो सीधा ग़ार की तरफ़ चल पड़ी और वहां पहुंचकर उस बदकार के सर पर पड़ने लगी यहां तक कि वो मर गया
शाने ग़ौसे आज़म,सफह 205
माशाअल्लाह – सुब्हान अल्लाह क्या शान है औलिया ए किराम की, इस रिवायत से पता चला कि अगर कोई सिद्क़ दिल से औलिया ए किराम को मदद के लिए पुकाराता है तो अल्लाह के नेक बंदे अल्लाह की दी हुई ताक़त से उसकी मदद करते हैं आइए एक रिवायत और पेश करता हूँ पढ़े और ईमान को ताज़ा करें
एक शख़्स का बयान है कि एक बार सफर में मेरी 14 ऊंटो पर शकर की बोरियां लदी थी मगर रास्ते में 4 ऊंट कहीं गुम (गायब) हो गए मुझे सख़्त परेशानी लाहिक हुई तो मुझे याद आया कि मेरे शैख़ ने फरमाया है कि जब भी मुसीबत में होना तो मुझे याद कर लेना तो ये सोचकर मैंने उनका नाम लेकर इस्तिगासा करना शुरू किया,अभी कुछ ही लम्हा गुज़रा था कि मैंने एक टीले पर एक सफेद पोश बुज़ुर्ग को देखा वो मुझे अपनी तरफ़ बुला रहे थे मैं जब वहां पहुंचा तो वहां कोई ना था मगर मेरे चारों ऊंट वहीं टीले पर बैठे मिल गए
क़लाएदुल जवाहर,सफह 230
इस्तेखारये ग़ौसिया
सहाबये किराम रिज़वानुल्लाहि तआला अलैहिम अजमईन इरशाद फरमाते हैं कि हमें हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम इस्तेखारा की तालीम इस तरह दिया करते थे जिस तरह क़ुर्आन की तालीम देते थे,
शम्ये शबिस्ताने रज़ा
तो जब भी किसी मुबाह काम का इरादा करें मसलन सफर, या मकान या दुकान की तामीर,निकाह,तिजारत या उसका माल,किसी से पार्टनरशिप,सवारी या सवारी का जानवर,पालने का जानवर या नौकरी वग़ैरह तो इस्तेखारा कर लेना बेहतर है,बेहतर है कि इस्तेखारा शबे जुम्अ से शुरू करें अगर पहली रात में कामयाबी मिल जाए तो अच्छा वरना 7 रातों तक लगातार करते रहें फिर अपने दिल पर ग़ौर करें जिस पर ख्याल जम जाये वो बेहतर है,और अगर ख्वाब में सफेदी या सब्ज़ नज़र आये तो भी बेहतर है और अगर सुर्ख और सियाही नज़र आये तो फिर उस काम का क़स्द छोड़ दें,वैसे तो इस्तेखारे के लिए नमाज़ भी है और बहुत सारे वज़ाएफ भी, मगर चुंकि यहां हुज़ूर ग़ौसे पाक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से मंसूब वज़ीफे का तज़किरा हो रहा है इसलिए इस्तेखारये ग़ौसिया ही दर्ज करता हूं
इशा की नमाज़ के बाद रात को सोने से पहले अपनी हाजत को दिल में बसाकर अव्वल आखिर 11,11 बार दुरूदे ग़ौसिया और 1000 बार या शैख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी शैयन लिल्लाह
يا شيخ عبد القادر الجيلانى شىء لله
पढ़कर अपने दाहिने हाथ की हथेली पर दम करें और सर के नीचे रखकर सो जायें,इंशाअल्लाह जो भी जायज़ मक़सद होगा पूरा होगा
शम्ये शबिस्ताने रज़ा,हिस्सा 2,सफह 277
सलातुल ग़ौसिया
ये नमाज़ कज़ाए हाजत के लिए बहुत ही बेहतरीन है,वैसे तो जब भी सख्त ज़रुरत हो इसे पढ़ सकते हैं लेकिन अगर रबीउल आखिर की 11 तारीख को पढ़ा जाये तो क्या कहना, इसका तरीक़ा ये है कि बाद नमाज़े मग़रिब 2 रकात नमाज़ नफ्ल क़ज़ाए हाजत इस तरह पढ़ें कि दोनों रकाअतों में सूरह फातिहा के बाद सूरह इखलास 11,11 बार पढ़ें, बाद सलाम के तीसरा कल्मा पढ़ें और 11 बार दुरूदे ग़ौसिया फिर 11 बार कहें या रसूल अल्लाह या नबी अल्लाह अग़िस्नी वमदुदनी फी क़’दाए हाजती या क़ा’दियल हाजात
يا رسول الله يا نبى الله اغثنى وامددنى فى قضاء حاجتى يا قاضى الحاجات
फिर 11 क़दम इराक़ की जानिब चलें और हर क़दम पर ये पढ़ें या ग़ौसस सक़ालैन वया करीमत तराफ़ैन अग़िस्नी वमदुदनी फी क़’दाए हाजती या क़ा’दियल हाजात
يا غوث الثقلين ويا كريم الطرفين اغثنى وامددنى فى قضاء حاجتى يا قاضى الحاجات
फिर अल्लाह की बारगाह में इन मुक़द्दस हस्तियों के तवस्सुल से दुआ करें, इंशाअल्लाह काम ज़रूर पूरा होगा
बहारे शरीयत,हिस्सा 4,सफह 31