Apni Rehmat Ke Samandar Mein Utar Jaane De Lyrics

Apni Rehmat Ke Samandar Mein Utar Jaane De Lyrics

 

Apni Rehmat Ke Samandar Mein Utar Jaane De

Apni Rehmat Ke Samandar Mein Utar Jaane De
Be Thikana Hun Azal Se Muje Ghar Jaane De

Apni Rehmat Ke Samandar Mein Utar Jaane De

Suye Bat’ha Liye Jaati Hai Hawa E Bat’ha
Bu-E-Duniya Muje Gumrah Na Kar Jaane De
Be Thikana Hun Azal Se Muje Ghar Jaane De

Maut Par Meri Shahidon Ko Bhi Rashk Aayega
Apne Kadmon Se Lipat Kar Muje Mar Jaane De

Apni Rehmat Ke Samandar Mein Utar Jaane De
Be Thikana Hun Azal Se Muje Ghar Jaane De

Khwahishe Zaad Bahot Sath Diya Hai Mera
Ab Jidhar Mera Muhammad Hai Udhar Jaane De
Be Thikana Hun Ajal Se Muje Ghar Jaane De

Be Thikana Hun Azal Se Muje Ghar Jaane De

Rok Rizwan Na Muzaffar Ko Dare Jannat Par
Ye Muhammad Ka Hai Manzur-E-Nazar Jaane De
Be Thikana Hun Ajal Se Muje Ghar Jaane De

Apni Rahmat Ke Samandar Mein Utar Jaane De
Be Thikana Hun Azal Se Muje Ghar Jaane De

 

 

अपनी रहमत के समुंदर में उतर जाने दे / Apni Rahmat Ke Samundar Mein Utar Jaane De

 

अपनी रहमत के समुंदर में उतर जाने दे
बे-ठिकाना हूँ अज़ल से, मुझे घर जाने दे

अपनी रहमत के समुंदर में उतर जाने दे

न मैं तख़्त मंगाँ, न मैं ताज मंगाँ
न मैं मंगदी हाँ मैनूँ ज़र मिल जाए

अपनी रहमत के समुंदर में उतर जाने दे

सू-ए-बतहा लिए जाती है हवा-ए-बतहा
बू-ए-दुनिया ! मुझे गुमराह न कर, जाने दे

बे-ठिकाना हूँ अज़ल से, मुझे घर जाने दे

अपनी रहमत के समुंदर में उतर जाने दे

तेरी सूरत की तरफ़ देख रहा हूँ, आक़ा !
पुतलियों को इसी मर्कज़ पे ठहर जाने दे

बे-ठिकाना हूँ अज़ल से, मुझे घर जाने दे

अपनी रहमत के समुंदर में उतर जाने दे

ख़्वाहिश-ए-ज़ात ! बहुत साथ दिया है तेरा
अब जिधर मेरे मुहम्मद हैं उधर जाने दे

बे-ठिकाना हूँ अज़ल से, मुझे घर जाने दे

अपनी रहमत के समुंदर में उतर जाने दे

ज़िंदगी ! गुम्बद-ए-ख़ज़रा ही तो मंज़िल है मेरी
मुझ को हरियालियों में ख़ाक-बसर जाने दे

बे-ठिकाना हूँ अज़ल से, मुझे घर जाने दे

अपनी रहमत के समुंदर में उतर जाने दे

मौत पर मेरी शहीदों को भी रश्क आएगा
अपने क़दमों से लिपट कर मुझे मर जाने दे

बे-ठिकाना हूँ अज़ल से, मुझे घर जाने दे

अपनी रहमत के समुंदर में उतर जाने दे

रोक, रिज़वाँ ! न मुज़फ़्फ़र को दर-ए-जन्नत पर
ये मुहम्मद का है मंज़ूर-ए-नज़र, जाने दे

बे-ठिकाना हूँ अज़ल से, मुझे घर जाने दे

अपनी रहमत के समुंदर में उतर जाने दे

शायर:
मुज़फ़्फ़र वारसी

ना’त-ख़्वाँ:
ख़ालिद हसनैन ख़ालिद
राओ हस्सान अली असद

 

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