Tere Damane Karam Me Jise Neend Aa Gayi Hai Naat Lyrics
TERE DAMANE KARAM ME JISE NEEND AA GAYI HAI NAAT LYRICS
Tere damane karam me jise neend aa gayi hai
Jo fana na hogi aisi use zindagi mili hai.
Mujhe kya padi kisi se karu arz muddha mai
Meri lau to bas unhi ke darjood se lagi hai.
Wo jahan bhar ke daata mujhe fer denge khaali
Meri tauba ai khuda ye mere nafs ki badi hai.
Mai maru to mere maula ye malaika se keh de
Koi is ko mat jagana abhi aankh lagi hai.
Mai gunahgaar hu aur bade martabon ki khahish
Tu magar Karim hai jo teri banda parwari hai.
Teri yaad thapki dekar mujhe ab shahashala de
Mujhe jaagte hue yoon badi der ho gayi hai.
Tera dile shakta Akhtar isi intezaar me hai
Ki abhi naweede wislat tere dar se aa rahi hai.
तेरे दामन-ए-करम में जिसे नींद आ गई है जो फ़ना न होगी ऐसी उसे ज़िंदगी मिली है
मुझे क्या पड़ी किसी से करूँ ‘अर्ज़ मुद्द’ आ मैं मेरी लौ तो बस उन्हीं के दर-ए-जूद से लगी है
वो जहान भर के दाता मुझे फेर देंगे ख़ाली मेरी तौबा, ऐ ख़ुदा ! ये मेरे नफ़्स की बढ़ी है
जो प-ए-सवाल आए, मुझे देख कर ये बोले इसे चैन से सुलाओ कि ये बंदा-ए-नबी है
मैं मरूँ तो मेरे मौला! ये मलाइका से कह दें कोई इस को मत जगाना, अभी आँख लग गई है।
मैं गुनाहगार हूँ और बड़े मर्तबों की ख़्वाहिश तू मगर करीम है ख़ू तेरी बंदा परवरी है।
तेरी याद थपकी दे कर मुझे अब, शहा! सुला दे मुझे जागते हुए यूँ बड़ी देर हो गई है।
ऐ नसीम-ए-कू-ए-जानाँ ज़रा सू-ए-बद-नसीबाँ चली आ, खुली है तुझ पे जो हमारी बेकसी है
तेरा दिल शिकस्ता अख्तर इसी इंतिज़ार में है
कि अभी नवीद ए वसलत तेरे दर से आ रही है।
तेरे दामन-ए-करम में जिसे नींद आ गई है
जो फ़ना न होगी ऐसी उसे ज़िंदगी मिली है
मुझे क्या पड़ी किसी से करूँ ‘अर्ज़ मुद्द’आ मैं
मेरी लौ तो बस उन्हीं के दर-ए-जूद से लगी है
वो जहान भर के दाता मुझे फेर देंगे ख़ाली
मेरी तौबा, ऐ ख़ुदा ! ये मेरे नफ़्स की बदी है
जो प-ए-सवाल आए, मुझे देख कर ये बोले
इसे चैन से सुलाओ कि ये बंदा-ए-नबी है
मैं मरुँ तो, मेरे मौला ! ये मलाइका से कह दें
कोई इस को मत जगाना, अभी आँख लग गई है
मैं गुनाहगार हूँ और बड़े मर्तबों की ख़्वाहिश
तू मगर करीम है ख़ू तेरी बंदा-परवरी है
तेरी याद थपकी दे कर मुझे अब, शहा ! सुला दे
मुझे जागते हुए यूँ बड़ी देर हो गई है
ऐ नसीम-ए-कू-ए-जानाँ ! ज़रा सू-ए-बद-नसीबाँ
चली आ, खुली है तुझ पे जो हमारी बेकसी है
तेरा दिल-शिकस्ता अख़्तर इसी इंतिज़ार में है
कि अभी नवीद-ए-वसलत तेरे दर से आ रही है
शायर:
अख़्तर रज़ा ख़ान
ना’त-ख़्वाँ:
क़ारी रिज़वान ख़ान
हाफ़िज़ निसार अहमद मार्फ़ानी
असद इक़बाल कलकत्तवी