इस करम का करूँ शुक्र कैसे अदा जो करम मुझ पे मेरे नबी कर दिया

इस करम का करूँ शुक्र कैसे अदा जो करम मुझ पे मेरे नबी कर दिया

 

इस करम का करूँ शुक्र कैसे अदा जो करम मुझ पे मेरे नबी कर दिया

मैं सजाता था सरकार की महफ़िलें मुझ को हर ग़म से रब ने बरी कर दिया

ज़िक्र-ए-सरकार की हैं बड़ी बरकतें मिल गईं राहतें अ’ज़्मतें रिफ़अतें

मैं गुनहगार था बे-अ’मल था मगर मुस्तफ़ा ने मुझे जन्नती कर दिया

लम्हा-लम्हा है मुझ पर नबी की ‘अता दोस्तो और माँगूँ मैं मौला से क्या

क्या ये कम है कि मेरे ख़ुदा ने मुझे अपने महबूब का उम्मती कर दिया

जो दर-ए-मुस्तफ़ा के गदा हो गए देखते देखते क्या से क्या हो गए

ऐसी चश्म-ए-करम की है सरकार ने दोनों ‘आलम में उन को ग़नी कर दिया

जो भी आया है महफ़िल में सरकार की हाज़िरी मिल गई जिस को दरबार की

कोई सिद्दीक़-ओ-फ़ारूक़-ओ-’उस्माँ हुआ और किसी को नबी ने ‘अली कर दिया

कोई मायूस लौटा दरबार से जो भी माँगा मिला मेरी सरकार से

सदक़े जाऊँ ‘नियाज़ी’ मैं लज-पाल के हर गदा को सख़ी ने सख़ी कर दया

 

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