ए शहंशाह-ए-मदीना ! अस्स़लातु वस्सलाम / Ai Shanshah-e-Madina ! Assalaatu Wassalaam
ए शहंशाह-ए-मदीना ! अस्स़लातु वस्सलाम / Ai Shanshah-e-Madina ! Assalaatu Wassalaam
ए शहंशाह-ए-मदीना ! अस्स़लातु वस्सलाम
ज़ीनत-ए-अर्श-ए-मुअ’ल्ला ! अस्स़लातु वस्सलाम
‘रब्बी ह़बली उम्मती’ कहते हुए पैदा हुए
हक़ ने फ़रमाया के बख़्शा, अस्स़लातु वस्सलाम
दस्त-बस्ता सब फ़रिश्ते पढ़ते हैं उन पर दुरूद
क्यूँ न हो फिर विर्द अपना ! अस्स़लातु वस्सलाम
मोमिनो ! पढ़ते रहो तुम अपने आक़ा पर दुरूद
है फ़रिश्तों का वज़ीफ़ा अस्स़लातु वस्सलाम
बुत-शिकन आया ये कह कर, सर के बल बुत गिर गए
झूम कर कहता था का’बा अस्स़लातु वस्सलाम
सर झुका कर बा-अदब इश्क़-ए-रसूलुल्लाह में
कह रहा था हर सितारा अस्स़लातु वस्सलाम
मैं वो सुन्नी हूँ जमील-ए-क़ादरी ! मरने के बा’द
मेरा लाशा भी कहेगा अस्स़लातु वस्सलाम
शायर:
मौलाना जमीलुर्रहमान रज़वी क़ादरी