चाँद-सितारों से बढ़ कर है ज़र्रा ग़ौस-ए-आ’ज़म का

चाँद-सितारों से बढ़ कर है ज़र्रा ग़ौस-ए-आ’ज़म का

चाँद-सितारों से बढ़ कर है ज़र्रा ग़ौस-ए-आ’ज़म का
सात समंदर पर है भारी क़तरा ग़ौस-ए-आ’ज़म का
अब्दुल क़ादिर को क़ादिर ने ऐसी क़ुदरत बख़्शी है
क़ब्र से मुर्दा उठ के लगाए ना’रा ग़ौस-ए-आ’ज़म का
क़स्में दे कर ख़ुद ही खिलाए अब्दुल क़ादिर को क़ादिर
मर्ज़ी-ए-मौला का होता है लुक़मा ग़ौस-ए-आ’ज़म का
सत्तर घर में कैसे पहुँचे जब ये समझना मुश्किल था
पेड़ के पत्तों पर तब देखा जल्वा ग़ौस-ए-आ’ज़म का
बोले फ़रिश्ते इस को न छेड़ो, ये है सग-ए-ग़ौस-ए-आ’ज़म
देखो गले में इस के पड़ा है पट्टा ग़ौस-ए-आ’ज़म का
बाग़-ए-हसन के वो हैं गुल-ए-तर, जिस में हुसैनी ख़ुश्बू है
दोनों जानिब से मिलता है शजरा ग़ौस-ए-आ’ज़म का
जिस का खाओ, उस का गाओ, हम ने सबक़ ये सीखा है
इस लिए सुन्नी ही करते हैं चर्चा ग़ौस-ए-आ’ज़म का
क़िस्मत-ए-सुन्नी का क्या कहना, क़िस्मत-ए-सुन्नी ज़िंदाबाद
क़िस्मत वालों को मिलता है टुकड़ा ग़ौस-ए-आ’ज़म का

Sharing Is Caring:

Leave a Comment