Dua e Masura in Hindi
नमाज में पढ़ी जाने वाली “दुआ-ए-मसूरा” नमाज पूरी होने से ठीक पहले पढ़ी जाती है। अर्थात, जब हम अत्तहियात के बाद दरूद शरीफ पढ़ लेते हैं, तो उसके बाद दुआ-ए-मसूरा पढ़ते हैं और फिर सलाम फेरते हैं।
यह दुआ को सीखना हर मुसलमान के लिए फर्ज़ है। लेकिन अगर किसी वजह से दुआ याद नहीं है, तो उसकी जगह पर कोई दूसरी दुआ भी पढ़ सकते हैं।
नमाज पढ़ने में अगर वक्त की कमी हो या कोई और जल्दी हो या नमाज का समय समाप्त हो रहा हो, तो दुआ-ए-मसूरा को ना पढ़ें तो भी नमाज हो जाएगी।
जब आप दुआ या कुरान की आयत का मतलब समझ कर पढ़ते हैं, तब आपको ज्यादा सवाब मिलता है और साथ ही हमारा दिल भी पढ़ने में ज्यादा लगता है।
अल्लाहुम्मा इन्नी ज़लमतू नफ्सी ज़ुलमन कसीरा, वला यग़फिरुज़-ज़ुनूबा इल्ला अनता, फग़फिरली मग़ फि-र-तम्मिन ‘इनदिका, वर ‘हमनी इन्नका अनतल ग़फ़ूरूर्र रहीम।
तर्जुमा: हे अल्लाह, हमने अपनी जान पर बहुत जुल्म किया है और गुनाहों को तेरे सिवा कोई माफ़ नहीं कर सकता। हमारी मगफिरत फरमा ऐसी मगफिरत जो तेरे पास से हो और हम पर रहम कर। बेशक तू बड़ा मगफिरत करने वाला और रहम करने वाला है।
दुआ-ए-मासूरा के कुछ फायदे (Dua e Masura Benefits):
- गुनाहों की माफ़ी: दुआ-ए-मासूरा को पढ़ने से आप अपनी गलतियों को अल्लाह ताला से माफ़ी मांग सकते हैं और उन्हें माफ़ करवा सकते हैं।
- ताजगी और नयी रवियत: इस दुआ को पढ़ने से आपको नई ताजगी की अनुभूति होती है और आपका मन प्रसन्नता से भर जाता है। इसलिए इस दुआ को रोज़ाना पढ़ने की आदत बनाएं।
- बरकत का आगमन: यह मान्यता है कि इस दुआ को पढ़ने से घर में बरकत आती है और बिगड़े हुए काम शुरू हो जाते हैं। अगर आपके पास कोई ऐसा काम है जो पूरा नहीं हो रहा है, तो आप इस दुआ को रोजाना नमाज़ समाप्त होने से पहले ज़रूर पढ़ें।
- स्वास्थ्य के लिए: कहा जाता है कि दुआ-ए-मासूरा को पढ़ने से आपको अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। इसलिए आप इस दुआ को नमाज़ से पहले पढ़ करें, अगर आप अच्छे स्वास्थ्य का आनंद लेना चाहते हैं।
दुआ-ए-मासूरा के अनुसार यह हदीस शब्दशः अब्दुल्लाह बिन अमर के माध्यम से रिवायत होती है, जिसमें बताया गया है कि हज़रत अबू बकर (रजिअल्लाहो अन्हु) ने अपने प्यारे हुजूर (सल्लल्लाहु अलैहि वस्सल्लम) की सेवा में हाजिर होकर उनसे पूछा कि “या रसूल अल्लाह! मुझे ऐसी दुआ बताएं जो मैं नमाज़ में पढ़ सकूँ” तब नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वस्सल्लम) ने उन्हें दुआ-ए-मासूरा सिखाई। यह हदीस सहीह अल-बुखारी में मिलती है।
नमाज़ में यह दुआ भी पढ़ सकते हैं:
“रब्बना आतिना फिद्दुनिया हसनतउव फील आखिरति हसनतउव वक़ीना अजाबन्नार”
(अर्थ: हे हमारे रब्ब! हमें दुनिया में नेकी और आखिरत में भी नेकी दे और हमें दोज़ख के आजाब से बचा)
दुआ-ए-मासूरा का अरबी में अनुवाद है:
“अल्लाहुम्मा इन्नी ज़ालम्तु नफ्सी ज़ुल्मान कठीरान, वला यग़फिरुज़्-ज़ुनूब इल्ला अंत, फग़्फिरली मग़्फिरताम मिन इन्दिक वारहम्नी इन्नक अंतल ग़फूरुर रहीम”
(अर्थ: अह अल्लाह! मैंने अपनी जान पर बहुत सारे ज़ुल्म किए हैं और कोई ग़ुनाहों को केवल तू ही माफ़ कर सकता है, इसलिए मुझे अपनी ख़ास माफ़ी से माफ़ कर दे और मुझ पर रहम कर क्योंकि तू ही बहुत माफ़ करने वाला, बेहद रहम वाला है)
दुआ-ए-मासूरा का हिंदी में अनुवाद है:
“ऐ हमारे रब्ब! मैंने अपने आप पर बहुत ज़्यादा ज़ुल्म किया है और कोई ग़ुनाहों को तू ही माफ़ नहीं कर सकता, इसलिए मुझे अपनी ख़ास माफ़ी से माफ़ कर दे। और मुझ पर रहम कर, बेशक तू ही माफ़ करने वाला, अति रहम करने वाला है।”
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