Khuda Mehshar Mein Puchhega Guzari Zindagi Kaisi Lyrics

Khuda Mehshar Mein Puchhega Guzari Zindagi Kaisi Lyrics

 

 

ख़ुदा महशर में पूछेगा गुज़ारी ज़िंदगी कैसी / Khuda Mehshar Mein Puchhega Guzari Zindagi Kaisi

 

ख़ुदा महशर में पूछेगा, गुज़ारी ज़िंदगी कैसी
लरज़ उठूँगा मैं और ख़ौफ़ होगा मुझ पे तब तारी

मुझे भी मौत आनी है मगर मैं इस से ग़ाफ़िल था
मेरा जीवन भी फ़ानी है मगर मैं इस से ग़ाफ़िल था
कफ़न बाज़ार में आ भी चुका लेकिन मैं ग़ाफ़िल था
मेरी मय्यत का तख़्ता भी बना लेकिन मैं ग़ाफ़िल था

ख़ुदा महशर में पूछेगा, गुज़ारी ज़िंदगी कैसी
लरज़ उठूँगा मैं और ख़ौफ़ होगा मुझ पे तब तारी

मैं ग़फ़लत में गुनाह करता रहा अफ़सोस लेकिन अब
मगर अब कोई भी अफ़सोस का बनता नहीं मतलब
मुझे भी मौत लेने आ गई अब क्या करूँगा मैं
अँधेरी क़ब्र में अब किस तरह तनहा रहूँगा मैं

ख़ुदा महशर में पूछेगा, गुज़ारी ज़िंदगी कैसी
लरज़ उठूँगा मैं और ख़ौफ़ होगा मुझ पे तब तारी

अँधेरी क़ब्र में मुझ को अकेला छोड़ आएँगे
यहाँ ताक़त न दौलत ना ये रिश्ते काम आएँगे
हिसाब-ए-ज़िंदगी देने उठाया जाएगा मुझ को
ख़ुदा के सामने महशर में लाया जाएगा मुझ को

ख़ुदा महशर में पूछेगा, गुज़ारी ज़िंदगी कैसी
लरज़ उठूँगा मैं और ख़ौफ़ होगा मुझ पे तब तारी

ख़ुदा पूछेगा, बतला ‘इल्म पर कितना रहा ‘आमिल
कहाँ पर ख़र्च की तूने ये दौलत कैसे की हासिल
सवाल-ए-जिस्म भी होगा, सवाल-ए-ज़िंदगी होगा
सवाल-ए-‘इल्म भी होगा, सवाल-ए-बंदगी होगा

ख़ुदा महशर में पूछेगा, गुज़ारी ज़िंदगी कैसी
लरज़ उठूँगा मैं और ख़ौफ़ होगा मुझ पे तब तारी

मैं कैसे सामना कर पाऊँगा रब के सवालों का
छुपाऊँगा कहाँ रब से ‘अमल-नामा गुनाहों का
मेरे आ’ज़ा गवाही देंगे ख़ुद मेरे गुनाहों पर
मेरे आ’ज़ा गवाही देंगे ख़ुद मेरी ख़ताओं पर

ख़ुदा महशर में पूछेगा, गुज़ारी ज़िंदगी कैसी
लरज़ उठूँगा मैं और ख़ौफ़ होगा मुझ पे तब तारी

मेरे मौला ! वहाँ बस तू ही मेरा आसरा होगा
मेरा मुश्किल-कुशा तेरे सिवा न दूसरा होगा
वहाँ मुमकिन नहीं, जा’फ़र ! पकड़ से रब की बच पाना
वहाँ मुमकिन नहीं, जा’फ़र ! कहीं जा कर के छुप जाना

ख़ुदा महशर में पूछेगा, गुज़ारी ज़िंदगी कैसी
लरज़ उठूँगा मैं और ख़ौफ़ होगा मुझ पे तब तारी

 

ख़ुदा महशर में पूछेगा, गुज़ारी ज़िंदगी कैसी
लरज़ उठूँगा मैं और ख़ौफ़ होगा मुझ पे तब तारी

मुझे भी मौत आनी है मगर मैं इस से ग़ाफ़िल था
मेरा जीवन भी फ़ानी है मगर मैं इस से ग़ाफ़िल था
कफ़न बाज़ार में आ भी चुका लेकिन मैं ग़ाफ़िल था
मेरी मय्यत का तख़्ता भी बना लेकिन मैं ग़ाफ़िल था

ख़ुदा महशर में पूछेगा, गुज़ारी ज़िंदगी कैसी
लरज़ उठूँगा मैं और ख़ौफ़ होगा मुझ पे तब तारी

मैं ग़फ़लत में गुनाह करता रहा अफ़सोस लेकिन अब
मगर अब कोई भी अफ़सोस का बनता नहीं मतलब
मुझे भी मौत लेने आ गई अब क्या करूँगा मैं
अँधेरी क़ब्र में अब किस तरह तनहा रहूँगा मैं

ख़ुदा महशर में पूछेगा, गुज़ारी ज़िंदगी कैसी
लरज़ उठूँगा मैं और ख़ौफ़ होगा मुझ पे तब तारी

अँधेरी क़ब्र में मुझ को अकेला छोड़ आएँगे
यहाँ ताक़त न दौलत ना ये रिश्ते काम आएँगे
हिसाब-ए-ज़िंदगी देने उठाया जाएगा मुझ को
ख़ुदा के सामने महशर में लाया जाएगा मुझ को

ख़ुदा महशर में पूछेगा, गुज़ारी ज़िंदगी कैसी
लरज़ उठूँगा मैं और ख़ौफ़ होगा मुझ पे तब तारी

ख़ुदा पूछेगा, बतला ‘इल्म पर कितना रहा ‘आमिल
कहाँ पर ख़र्च की तूने ये दौलत कैसे की हासिल
सवाल-ए-जिस्म भी होगा, सवाल-ए-ज़िंदगी होगा
सवाल-ए-‘इल्म भी होगा, सवाल-ए-बंदगी होगा

ख़ुदा महशर में पूछेगा, गुज़ारी ज़िंदगी कैसी
लरज़ उठूँगा मैं और ख़ौफ़ होगा मुझ पे तब तारी

मैं कैसे सामना कर पाऊँगा रब के सवालों का
छुपाऊँगा कहाँ रब से ‘अमल-नामा गुनाहों का
मेरे आ’ज़ा गवाही देंगे ख़ुद मेरे गुनाहों पर
मेरे आ’ज़ा गवाही देंगे ख़ुद मेरी ख़ताओं पर

ख़ुदा महशर में पूछेगा, गुज़ारी ज़िंदगी कैसी
लरज़ उठूँगा मैं और ख़ौफ़ होगा मुझ पे तब तारी

मेरे मौला ! वहाँ बस तू ही मेरा आसरा होगा
मेरा मुश्किल-कुशा तेरे सिवा न दूसरा होगा
वहाँ मुमकिन नहीं, जा’फ़र ! पकड़ से रब की बच पाना
वहाँ मुमकिन नहीं, जा’फ़र ! कहीं जा कर के छुप जाना

ख़ुदा महशर में पूछेगा, गुज़ारी ज़िंदगी कैसी
लरज़ उठूँगा मैं और ख़ौफ़ होगा मुझ पे तब तारी

शायर:
मौलाना अबू जाफ़र

नशीद-ख़्वाँ:
अब्दुल्लाह महबूब

 

KHuda mahshar me.n poochhega, guzaari zindagi kaisi
laraz uThunga mai.n aur KHauf hoga mujh pe tab taari

mujhe bhi maut aani hai magar mai.n is se Gaafil tha
mera jeevan bhi faani hai magar mai.n is se Gaafil tha
kafan baazaar me.n aa bhi chuka lekin mai.n Gaafil tha
meri mayyat ka taKHta bhi bana lekin mai.n Gaafil tha

KHuda mahshar me.n poochhega, guzaari zindagi kaisi
laraz uThunga mai.n aur KHauf hoga mujh pe tab taari

mai.n Gaflat me.n gunaah karta raha afsos lekin ab
magar ab koi bhi afsos ka banta nahi.n matlab
mujhe bhi maut lene aa gai ab kya karunga mai.n
andheri qabr me.n ab kis tarah tanha rahunga mai.n

KHuda mahshar me.n poochhega, guzaari zindagi kaisi
laraz uThunga mai.n aur KHauf hoga mujh pe tab taari

andheri qabr me.n mujh ko akela chho.D aaenge
yaha.n taaqat na daulat na ye rishte kaam aaenge
hisaab-e-zindagi dene uThaaya jaaega mujh ko
KHuda ke saamne mahshar me.n laaya jaaega mujh ko

KHuda mahshar me.n poochhega, guzaari zindagi kaisi
laraz uThunga mai.n aur KHauf hoga mujh pe tab taari

KHuda poochhega, batla ‘ilm par kitna raha ‘aamil
kaha.n par KHarch ki tu ne ye daulat kaise ki haasil
sawaal-e-jism bhi hoga, sawaal-e-zindagi hoga
sawaal-e-‘ilm bhi hoga, sawaal-e-bandagi hoga

KHuda mahshar me.n poochhega, guzaari zindagi kaisi
laraz uThunga mai.n aur KHauf hoga mujh pe tab taari

mai.n kaise saamna kar paaunga rab ke sawaalo.n ka
chhupaaunga kaha.n rab se ‘amal-naama gunaaho.n ka
mere aa’za gawaahi denge KHud mere gunaaho.n ki
mere aa’za gawaahi denge KHud meri KHataao.n ki

KHuda mahshar me.n poochhega, guzaari zindagi kaisi
laraz uThunga mai.n aur KHauf hoga mujh pe tab taari

mere maula ! waha.n bas tu hi mera aasra hoga
mera mushkil-kusha tere siwa na doosra hoga
waha.n mumkin nahi.n, Jaa’far ! paka.D se rab ki bach paana
waha.n mumkin nahi.n, Jaa’far ! kahi.n jaa kar ke chhup jaana

KHuda mahshar me.n poochhega, guzaari zindagi kaisi
laraz uThunga mai.n aur KHauf hoga mujh pe tab taari

Poet:
Molana Abu Jafar India

Nasheed-Khwaan:
Abdullah Mahboob

 

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