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Tadap Raha Hu Madine Ki Haazri Ke Liye Naat Lyrics

Tadap Raha Hu Madine Ki Haazri Ke Liye Naat Lyrics

 

TADAP RAHA HU MADINE KI HAAZRI KE LIYE NAAT LYRICS
Tarap Raha Hoon Madinay Ki Haazri Ke Liye

Sahara Chahiyay Sarkar Zindagi Ke Liye

Huzoor Aisa Koi Intizaam Ho Jaye
Salaam Ke Liye Haazir Ghulam Ho Jaye

Naseeb Walon Mein Mera Bhi Naam Ho Jaye
Jo Zindagi Ki Madinay Mein Shaam Ho Jaye

Mein Shaad Shaad Maronga Agar Dum-e-Aakhir
Zubaan Pe Jaari Muhammad Ka Naam Ho Jaye

Sahara Chahiyay Sarkar Zindagi Ke Liye
Tarap Raha Hoon Madinay Ki Haazri Ke Liye

Woh Bazm-e-Khaas Jo Darbaar-e-Aam Ho Jaye
Umeed Hai Keh Hamara Salaam Ho Jaye

Idher Bhi Ik Nigaah-e-Lutf-e-Aam Ho Jaye
Ke Aashiqon Mein Hamara Bhi Naam Ho Jaye

Tere Ghulam Ki Shaukat Jou Dekh Le Mehmood
Abhi Ayaaz Ki Surat Ghulam ho Jaye

Mein Qayal Aap Ke Rauzay Ka Hoon Woh Qayal Tur
Kaleem Se Na Kissi Din Kalaam Ho Jaye

Madinay Jaon Phir Aaon Dobara Phir Jaon
Tamaam Umar Issi Mein Tamaam Ho Jaye

Bulao Jald Madinay Mein Hai Ameer Ko Khauf
Kaheen Na Umar Do Roza Tamaam Ho Jaye

Tumhari Naat Parhon Mein Sunoo Likhoon Har Dum
Ye Zindagi Meri Yunhi Tamaam Ho Jaye

Meri Namaz-e-Janazah Ki Yun Ibadat Ho
Ke Do Jahan Ke Aaqa Imam Ho Jaye

Sahara Chahiyay Sarkar Zindagi Ke Liye
Tarap Raha Hoon Madinay Ki Haazri Ke Liye

Piya Raza O Ziya Ne Piya jou Murshid Ne
A’ta Mujhay Bhi Shah Aisa Jaam Ho Jaye

 

सहारा चाहिए सरकार ज़िंदगी के लिए | तड़प रहा हूँ मदीने की हाज़िरी के लिए / Sahara Chahiye Sarkar Zindagi Ke Liye | Tadap Raha Hoon Madine Ki Hazri Ke Liye

 

मेरे आक़ा ! मदीने बुला लीजिए
मेरे आक़ा ! मदीने बुला लीजिए

सहारा चाहिए, सरकार ! ज़िंदगी के लिए
तड़प रहा हूँ मदीने की हाज़िरी के लिए

तयबा के जाने वाले ! जा कर बड़े अदब से
मेरा भी क़िस्सा-ए-ग़म कहना शह-ए-‘अरब से

कहना कि, शाह-ए-‘आलम ! इक रंज-ओ-ग़म का मारा
दोनों जहाँ में जिस का हैं आप ही सहारा

हालात-ए-पुर-अलम से इस दम गुज़र रहा है
और काँपते लबों से फ़रियाद कर रहा है

बार-ए-ग़ुनाह अपना है दोश पर उठाए
कोई नहीं है ऐसा जो पूछने को आए

भूला हुआ मुसाफ़िर मंज़िल को ढूँडता है
तारीकियों में माह-ए-कामिल को ढूँडता है

सीने में है अँधेरा, दिल है सियाह-ख़ाना
ये है मेरी कहानी, सरकार को सुनाना

कहना मेरे नबी से, महरूम हूँ ख़ुशी से
सर पर इक अब्र-ए-ग़म है, अश्क़ों से आँख नम है

पामाल-ए-ज़िंदगी हूँ, सरकार ! उम्मती हूँ
उम्मत के रहनुमा हो, कुछ ‘अर्ज़-ए-हाल सुन लो

फ़रियाद कर रहा हूँ, मैं दिल-फ़िगार कब से
मेरा भी क़िस्सा-ए-ग़म कहना शह-ए-‘अरब से

हुज़ूर ! ऐसा कोई इंतिज़ाम हो जाए
सलाम के लिए हाज़िर ग़ुलाम हो जाए

सहारा चाहिए, सरकार ! ज़िंदगी के लिए
तड़प रहा हूँ मदीने की हाज़िरी के लिए

मेरा दिल तड़प रहा है, मेरा जल रहा है सीना
कि दवा वहीं मिलेगी, मुझे ले चलो मदीना

नहीं माल-ओ-ज़र तो क्या है, मैं ग़रीब हूँ यही ना !
मेरे ‘इश्क़ ! मुझ को ले चल तू ही जानिब-ए-मदीना

आक़ा ! न टूट जाए ये दिल का आबगीना
अब के बरस भी, मौला ! रह जाऊँ मैं कहीं ना

दिल रो रहा है जिन का, आँसू छलक रहे हैं
उन ‘आशिक़ों का सदक़ा, बुलवाइए मदीना

मेरे आक़ा ! मदीने बुला लीजिए
मेरे आक़ा ! मदीने बुला लीजिए

मदीने जाऊँ, फिर आऊँ, दोबारा फिर जाऊँ
ये ज़िंदगी मेरी यूँही तमाम हो जाए

सहारा चाहिए, सरकार ! ज़िंदगी के लिए
तड़प रहा हूँ मदीने की हाज़िरी के लिए

ऐ ‘आज़ीम-ए-मदीना ! जा कर नबी से कहना
सोज़-ए-ग़म-ए-अलम से अब जल रहा है सीना

कहना के बढ़ रही है अब दिल की इज़्तिराबी
क़दमों से दूर हूँ मैं, क़िस्मत की है ख़राबी

कहना के दिल में मेरे अरमाँ भरे हुए हैं
कहना के हसरतों के नश्तर चुभे हुए हैं

है आरज़ू ये दिल की, मैं भी मदीने जाऊँ
सुल्तान-ए-दो-जहाँ को दाग़-ए-जिगर दिखाऊँ

काटूँ हज़ार चक्कर तयबा की हर गली के
यूँही गुज़ार दूँ मैं अय्याम ज़िंदगी के

फूलों पे जाँ निसारूँ, काँटों पे दिल को वारूँ
ज़र्रों को दूँ सलामी, दर की करूँ ग़ुलामी

दीवार-ओ-दर को चूमूँ, चौखट पे सर को रख दूँ
रौज़े को देख कर मैं रोता रहूँ बराबर

‘आलम के दिल में है ये हसरत न जाने कब से
मेरा भी क़िस्सा-ए-ग़म कहना शह-ए-‘अरब से

सहारा चाहिए, सरकार ! ज़िंदगी के लिए
तड़प रहा हूँ मदीने की हाज़िरी के लिए

इक रोज़ होगा जाना सरकार की गली में
होगा वहीं ठिकाना सरकार की गली में

दिल में नबी की यादें, लब पर नबी की ना’तें
जाना तो ऐसे जाना सरकार की गली में

या मुस्तफ़ा ! ख़ुदा-रा दो इज़्न हाज़िरी का
कर लूँ नज़ारा आ कर मैं आप की गली का

इक बार तो दिखा दो रमज़ान में मदीना
बेशक बना लो, आक़ा ! मेहमान दो घड़ी का

नसीब वालों में मेरा भी नाम हो जाए
जो ज़िंदगी की मदीने में शाम हो जाए

सहारा चाहिए, सरकार ! ज़िंदगी के लिए
तड़प रहा हूँ मदीने की हाज़िरी के लिए

बुला लो ना, बुला लो ना

ना’त-ख़्वाँ:
हाफ़िज़ ताहिर क़ादरी

 

 

 

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