Tere Ghar Ke Phere Lagata Rahoo Main Lyrics
YA RABBANA IRHAMLANA TERE GHAR KE FERE LAGATA RAHU MAIN NAAT LYRICS
Ya Rabbana Irhamlana Tere ghar ke fere lagata rahu main
Sadaa shehre Makkah me aata rahu main
Haram main mai haazir huwa banke mujrim
Yeh labbaik naraa lagata rahu main
Main leta rahu bosa-e-sangey aswad
Ke dil ki siyaahi mitata rahu main
Illahi main phirta rahu girde kaaba yoon
qismat ki gardish mitaata rahu main
Main peeta rahu har ghadi aabe zam zam
Lagi apne dil ki bujhata rahu main
Safaa aur marwah ke maa bain daudu
Sa’ee karke tujh ko manaata rahu main
Rami kar ke jamraat ki main
Mina mein Tere dushmano ko beechata rahu main
Muzdalifa me waqte seher muskura kar
Yeh sunnat Nabi ki bataata rahu main
Jhuki jin ke sajde ko meh’rabe kaaba
Wahi dil adab se jhukata rahu main
Illahi tu aisa muqaddar banaade
Humeshaa hi Makkey main aata rahu mai
Tere ghar ke peyrey lagaah taa rahu main
Sadaa shehre makkah me aata rahu main.
Hai Sayyed ki khwaish Madine mein mar kar
Humesha hi jannat ko paata rahu main
या रब्बना ! इर्ह़म-लना, या रब्बना ! इर्ह़म-लना
तेरे घर के फेरे लगाता रहूँ मैं
सदा शहर-ए-मक्का में आता रहूँ मैं
या रब्बना ! इर्ह़म-लना, या रब्बना ! इर्ह़म-लना
हरम में, मैं हाज़िर हुआ बन के मुजरिम
ये लब्बैक ना’रा लगाता रहूँ मैं
सदा शहर-ए-मक्का में आता रहूँ मैं
या रब्बना ! इर्ह़म-लना, या रब्बना ! इर्ह़म-लना
मैं लेता रहूँ बोसा-ए-संग-ए-अस्वद
यूँ दिल की सियाही मिटाता रहूँ मैं
सदा शहर-ए-मक्का में आता रहूँ मैं
या रब्बना ! इर्ह़म-लना, या रब्बना ! इर्ह़म-लना
इलाही ! मैं फिरता रहूँ गिर्द-ए-का’बा
यूँ क़िस्मत की गर्दिश मिटाता रहूँ मैं
सदा शहर-ए-मक्का में आता रहूँ मैं
या रब्बना ! इर्ह़म-लना, या रब्बना ! इर्ह़म-लना
लिपट कर गले लग के मैं मुल्तज़म से
गुनाहों के धब्बे मिटाता रहूँ मैं
सदा शहर-ए-मक्का में आता रहूँ मैं
या रब्बना ! इर्ह़म-लना, या रब्बना ! इर्ह़म-लना
बराहीम के नक़्श-ए-पा चूम कर मैं
निगाहों से दिल में बसाता रहूँ मैं
सदा शहर-ए-मक्का में आता रहूँ मैं
या रब्बना ! इर्ह़म-लना, या रब्बना ! इर्ह़म-लना
हतीम-ए-हरम में नमाज़ों को पढ़ कर
तेरे दर पे दुखड़े सुनाता रहूँ मैं
सदा शहर-ए-मक्का में आता रहूँ मैं
या रब्बना ! इर्ह़म-लना, या रब्बना ! इर्ह़म-लना
मैं पीता रहूँ हर घड़ी आब-ए-ज़मज़म
लगी अपने दिल की बुझाता रहूँ मैं
सदा शहर-ए-मक्का में आता रहूँ मैं
या रब्बना ! इर्ह़म-लना, या रब्बना ! इर्ह़म-लना
सफ़ा और मरवा के मा-बैन दौड़ूँ
स’ई कर के तुझ को मनाता रहूँ मैं
सदा शहर-ए-मक्का में आता रहूँ मैं
या रब्बना ! इर्ह़म-लना, या रब्बना ! इर्ह़म-लना
झुकी जिन के सज्दे को मेहराब-ए-का’बा
वहीं दिल अदब से झुकाता रहूँ मैं
सदा शहर-ए-मक्का में आता रहूँ मैं
या रब्बना ! इर्ह़म-लना, या रब्बना ! इर्ह़म-लना
बरस्ती है बारान-ए-रहमत हरम में
तो मीज़ाब-ए-ज़र से नहाता रहूँ मैं
सदा शहर-ए-मक्का में आता रहूँ मैं
या रब्बना ! इर्ह़म-लना, या रब्बना ! इर्ह़म-लना
मुज़्दल्फ़ा में वक़्त-ए-सहर मुस्कुरा कर
ये सुन्नत नबी की बताता रहूँ मैं
सदा शहर-ए-मक्का में आता रहूँ मैं
या रब्बना ! इर्ह़म-लना, या रब्बना ! इर्ह़म-लना
रमी कर के जमरात की मैं मिना में
तेरे दुश्मनों को मिटाता रहूँ मैं
सदा शहर-ए-मक्का में आता रहूँ मैं
या रब्बना ! इर्ह़म-लना, या रब्बना ! इर्ह़म-लना
तू शर से पनाह दे, मुक़द्दर हो ऐसा
कि बस ख़ैर ही ख़ैर पाता रहूँ मैं
सदा शहर-ए-मक्का में आता रहूँ मैं
या रब्बना ! इर्ह़म-लना, या रब्बना ! इर्ह़म-लना
सनद हज्ज-ए-मबरूर की लेने हाज़िर
मुहम्मद की चौखट पे जाता रहूँ मैं
सदा शहर-ए-मक्का में आता रहूँ मैं
या रब्बना ! इर्ह़म-लना, या रब्बना ! इर्ह़म-लना
हो मक़बूल हज हाज़िरी दाइमी में
पस-ए-हज मदीने को जाता रहूँ मैं
सदा शहर-ए-मक्का में आता रहूँ मैं
या रब्बना ! इर्ह़म-लना, या रब्बना ! इर्ह़म-लना
इलाही ! तू ऐसा मुक़द्दर ‘अता कर
हमेशा ही तयबा में आता रहूँ मैं
सदा शहर-ए-मक्का में आता रहूँ मैं
या रब्बना ! इर्ह़म-लना, या रब्बना ! इर्ह़म-लना
इलाही तू क़िस्मत दे सौर-ओ-हिरा की
कि इस दिल में आक़ा को पाता रहूँ मैं
सदा शहर-ए-मक्का में आता रहूँ मैं
या रब्बना ! इर्ह़म-लना, या रब्बना ! इर्ह़म-लना
है सय्यद की ख़्वाइश मदीने में मर कर
हमेशा की जन्नत को पाता रहूँ मैं
सदा शहर-ए-मक्का में आता रहूँ मैं
या रब्बना ! इर्ह़म-लना, या रब्बना ! इर्ह़म-लना
ना’त-ख़्वाँ:
अल्लामा हाफिज़ बिलाल क़ादरी,
असद रज़ा अत्तारी
मुहम्मद हस्सान रज़ा क़ादरी