Allama Iqbal ki Shayari in Hindi

Allama Iqbal ki Shayari in Hindi

 

 

ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले
ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है

माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं
तू मेरा शौक़ देख मिरा इंतज़ार देख

हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा

दुनिया की महफ़िलों से उकता गया हूं या रब
क्या लुत्फ़ अंजुमन का जब दिल ही बुझ गया हो

फ़क़त निगाह से होता है फ़ैसला दिल का
न हो निगाह में शोख़ी तो दिलबरी क्या है

सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा
हम बुलबुलें हैं इस की ये गुलसितां हमारा

ढूंढ़ता फिरता हूं मैं ‘इक़बाल’ अपने आप को
आप ही गोया मुसाफ़िर आप ही मंज़िल हूं मैं

मन की दौलत हाथ आती है तो फिर जाती नहीं
तन की दौलत छाँव है आता है धन जाता है धन

नशा पिला के गिराना तो सब को आता है
मज़ा तो तब है कि गिरतों को थाम ले साक़ी

दिल से जो बात निकलती है असर रखती है
पर नहीं ताक़त-ए-परवाज़ मगर रखती है

 

दिल से जो बात निकलती है असर रखती है
अपने मन में डूब कर पा जा सुराग़-ए-ज़ि़ंदगी
तू अगर मेरा नहीं बनता न बन अपना तो बन

दिल से जो बात निकलती है असर रखती है
पर नहीं ताक़त-ए-परवाज़ मगर रखती है
तू मेरा शौक़ देख मिरा इंतिज़ार देख
माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं
तू मेरा शौक़ देख मिरा इंतिज़ार देख

असर करे न करे सुन तो ले मिरी फ़रियाद
नहीं है दाद का तालिब ये बंदा-ए-आज़ाद

असल मायने महबूब से इश्क के इकरार और तकरार से है…

 

मेरी सादगी देख क्या चाहता हूँ
नशा पिला के गिराना तो सब को आता है
मज़ा तो तब है कि गिरतों को थाम ले साक़ी

तेरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ
मेरी सादगी देख क्या चाहता हूँ
लज़्ज़त सरोद की हो चिड़ियों के चहचहों में
दिल की बस्ती अजीब बस्ती है,
लूटने वाले को तरसती है

दुनिया के ग़म का दिल से काँटा निकल गया हो
लज़्ज़त सरोद की हो चिड़ियों के चहचहों में
तेरी आँख मस्ती में होश्यार क्या थी
भरी बज़्म में अपने आशिक़ को ताड़ा
तेरी आँख मस्ती में होश्यार क्या थी

इस नज्म ने तो इकबाल को बुलंदियों पर पहुंचाया
सितारों से आगे जहां और भी हैं
अभी इश्क़ के इम्तिहां और भी हैं

तही ज़िंदगी से नहीं ये फ़ज़ाएं
यहां सैकड़ों कारवां और भी हैं

क़नाअत न कर आलम-ए-रंग-ओ-बू पर
चमन और भी आशियां और भी हैं

अगर खो गया इक नशेमन तो क्या ग़म
मक़ामात-ए-आह-ओ-फ़ुग़ां और भी हैं

तू शाहीं है परवाज़ है काम तेरा
तिरे सामने आसमां और भी हैं

इसी रोज़ ओ शब में उलझ कर न रह जा
कि तेरे ज़मान ओ मकां और भी हैं

गए दिन कि तन्हा था मैं अंजुमन में
यहां अब मिरे राज़-दां और भी हैं

 

Allama Iqbal Shayari

माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं
तू मेरा शौक़ देख मिरा इंतज़ार देख

 

औकात में रखना था जिसे
गलती से दिल में रखा था उसे

 

मस्जिद तो बना दी शब भर में ईमाँ की हरारत वालों ने
मन अपना पुराना पापी है बरसों में नमाज़ी बन न सका

 

बाग़-ए-बहिश्त से मुझे
हुक्म-ए-सफ़र दिया था क्यूँ
कार-ए-जहाँ दराज़ है अब मिरा इंतिज़ार कर

Allama Iqbal Hindi Shayari

अनोखी वजा हैं, सारे ज़माने से निराले हैं
ये आशिक़ कौन सी बस्ती के या रब रहने वाला हैं।

 

दियार-इ-इश्क़ में अपना मक़ाम पैदा कर ,
नया ज़माना नई सुबह-ओ-शाम पैदा कर।

 

अपने मन में डूब कर पा जा सुराग़-इ-ज़िंदगी,
तू अगर मेरा नहीं बनता न बन, अपना तो बन।

नशा पिला के गीराना तो सब को आता है,
मज़ा तो जब है के गिरतों को थाम ले साकी!!

Allama Iqbal Shayari

Ki Muhammed (S.A.W.) Se Wafa
Tu Ne Tau Hum Tere Hain
Yeh Jahan Cheez Hai Kya, Loh-o-
Qalam Tere Hain.

 

नहीं तेरा नशेमनं कसर्-ए-शुलतानी के
गुम्बद पर,
तू शाहीन बसेर कर पहाडों की चट्टानो
में!!

Allama Iqbal Hindi Shayari

Sitaaaron se Aage Jahan Aur Bhi Hain
Abhi Ishq ke Imtihan Aur bhi hai.

 

Masjid to banā di shab bhar
meñ imāñ ki harārat vāloñ ne
man apnā purānā paapi hai
barsoñ meñ namāzī ban na sakā

 

Rahat Indori Shayari : Click Here

 

Hai Iqbal ke vajud pe hindostāñ ko naaz
Ahl-e-nazar samajhte haiñ us ko imām-e-hind.

 

Nahi Tera naseman kasre sulltaanik
Gummbad par tu Saahi hai
basera kar pahadoo ki chattanoo par.

 

Vatan ki fikr kar nādāñ musibat aane vaali hai
Tiri barbādiyoñ ke mashvare haiñ
äsmānoñ meñ.

Allama Iqbal Poet

Jish Khet Se Dahqan ko Mayassar Nahin
Rozi Ush Khet Ke Har Khosha-E-Gandum
Ko Jala Do.

 

Ham Se Kya ho Saka Mohabbat Mein
Khair Tum Ne To Bevafai Ki.

 

Guzar Auqat Kar Leta Hai Ye Koh-
o-Biyaban Mein,
Ke Shaheen Ke Liye Zillat Hai
Kaar-e-Ashiyan kaari.

Ye jannat mubarak rahe zahidon ko
ki main aap ki samna chahti huun.

Shayari of Allama Iqbal

Tere Ishq Ki Intiha Chahta Hooo
Meri Sadgi Dekh Kya Chahta Hoo

 

Achchha Hai Dil Ke Saath
Rahe Pasban E Aqbal
Lekin Kabhi Kabhi Isse
Tanha Bhi Chhod De.

Urdu Shayari of Allama Iqbal

Laut aatna mera Dil ka
Karar ban kar
Reh gai jindzi serf tera
karar ban kar intzar ban kr.

 

Tu Guzar Jaye Karib Se
Wo Bhi Mulaqat Se Kam Nahi.

 

Ajeeb Zulm Huey Hain Duniya Mein Mohabbat par
Jinhe mili Unhe Qadar Nahi Jinhe Qadar Thi Unte mili Nahi.

 

Socha Hi Nahi Tha Maine Aesy Bhi Zamanay Hongy
Roona Bhi Zaruri Honga Aansoo Bhi Chupany Hongy.

Shayari of Allama Iqbal Poet

Na Mera Dil Bura Tha Na Usme Koi Burai Thi
Sab Muqaddar ka Khel Tha
Qismat Mein hi Judai Thi.

 

Masjid Khuda ka Ghar hai
Peene ki Jagah nahi Kafir ke dil mein ja
Wahan khuda nahi.

 

Best Gulzar Shayari : Click Here

Zinda Rehna Hai To Halaat Se
Darna Kesa IQBAL
Jang laazim Ho To Lashkar Nahi
Dekhe Jaate.

Ishq Hona Jaaruri Tha Sahab
Maaot Aaksaar Bahana Dhudti Hai.

Allama Iqbal Shayari in Hindi

Rulaya Na Kar Har Baat Pr Aye
Zindagi Zruri Nhai Sab Ki Qismat Mein
Chup Krwane Wale Hoon.

 

Girtey Rahe Sajdon mein Hum
Apni Hi Hasraton ki khatin
Agar Ishq E khuda mein Giray Hotey
To koi Hasrat Adhori Na hoti.

 

तेरे आज़ाद बंदों की न ये दुनिया न वो दुनिया
यहाँ मरने की पाबंदी वहाँ जीने की पाबंदी

 

Waqt ke ek tamache ki der hai saaheb.
Meri fakiri bhi kya teri baadshahi bhi kya..

Shayari of Allama Iqbal Poet

दिल से जो बात निकलती है असर रखती है
पर नहीं ताकतें-ऐ-परवाज़ मगर रखतीं हैं

 

गुलामी में ना काम आती है शमशीरें ना तकबीरे
जो हो ज़ौक-ऐ-यक़ीं पैदा तो कट जाती है जंजीरें

 

 

Mirza Ghalib Shayari : Click Here

 

हया नहीं है ज़माने की आंख में बाक़ी
ख़ुदा करे की जवानी तेरी रहे बे-दाग़

 

बातिल से दबने वाले ऐ आसमां नहीं हम
सौ बार कर चुका है तू इम्तिहां हमारा

 

अक्ल अय्यार है सौ भेस बदल लेती है
इश्क बेचारा न ज़ाहिद है न मुल्ला ना हकीम

Allama Iqbal Shayari

हुई ना आम जहां में कभी हुकूमत-ए-इश्क़
सबब ये है कि मोहब्बत ज़माना साज नहीं

 

ये जन्नत मुबारक रहे जाहिदों को
कि मैं आपका सामना चाहता हूं

 

मजनूं ने शहर छोड़ा तो सहरा भी छोड़ दे
नज़्जारो की हवस हो तो लैला भी छोड़ दे

 

अपने मन में डूब कर पा जा सुराग़ ऐ जिन्दगी
तूं अगर मेरा नहीं बनता ना बन अपना तो बन

Allama Iqbal Hindi Shayari

Kuch Baat Hai Ki Hasti Mittii Nahi Hamari
Sadiyon Rahaa Hai Dushman Daur-E-Zamaan Hamaaraa.

 

Ye Jannat Mubarak Rahe Zahidon Ko
Ki Main Aap Ka Samna Chahta Hun.

 

Khudi Ki Khalwaton Mein Gum Raha Main
Khuda Ke Samne Roya Na Tha Main!
Na Dekha Aankh Utha Kar Jalwa-E-Dost
Qayamat Mein Tamasha Nan Gaya Main!

 

Ye Mal-O-Daulat-E-Duniya
Ye Rishta O Paiwand
Butan-E-Wahm-O-Guman
La-Ilaha-Illallaha.

 

Ye Daur Apne Barahim Ki Talash Mein Hai
Sanam-Kada hai Jahan La-Ilaha-Illallah.

Shayari of Allama Iqbal

Tu Bacha Bacha Ke Na Rakh Isse
Tera Aaeena Hai Woh Aaeena
Ke Shikast Ho To Aziz Tar
Hai Nigah-e-Aaeena Saaz Mein.

 

हम तो जीते हैं के तेरा नाम रहे ,
कहीं मुमकीन है के साक़ी न रहे और जाम रहे।

हक़ीक़त खुराफात में खो गई ,
ये उम्मत रिवायत में खो गई।

 

Guzar Gaya Ab Wo Daur-E-Saqi Ki
Chhup Ke Pite The Pine Wale
Banega Sara Jahan Mai-Khana Har
Koi Baada-Khwar Hoga.

 

Shayari of Allama Iqbal Poet

 

Ye Kainat Abhi Na-Tamam Hai Shayad,
Ki Aa Rahi Hai Damadam Sada-E-Kun-Fayakun.

 

हो मेरा काम ग़रीबो की हिमायत करना
दर्दमंदों से ज़मीन से मोहब्बत करना।

 

एक ही साफ में खड़े हो गए
महमूद-ओ अयाज़
ना कोई बंदा रहा और ना कोई
बंदा नवाज़।

 

इस दौर की ज़ुल्मत में हर क़ल्ब इ परेशान को,
वो दाग़ इ मुहब्बत दे जो चाँद को शर्मा दे।

 

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ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले

ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है

 

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सितारों से आगे जहाँ और भी हैं

अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं

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माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं

तू मेरा शौक़ देख मिरा इंतिज़ार देख

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तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ

मिरी सादगी देख क्या चाहता हूँ

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तू शाहीं है परवाज़ है काम तेरा

तिरे सामने आसमाँ और भी हैं

 

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नशा पिला के गिराना तो सब को आता है

मज़ा तो तब है कि गिरतों को थाम ले साक़ी

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फ़क़त निगाह से होता है फ़ैसला दिल का

न हो निगाह में शोख़ी तो दिलबरी क्या है

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दुनिया की महफ़िलों से उकता गया हूँ या रब

क्या लुत्फ़ अंजुमन का जब दिल ही बुझ गया हो

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हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है

बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा

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अपने मन में डूब कर पा जा सुराग़-ए-ज़ि़ंदगी

तू अगर मेरा नहीं बनता न बन अपना तो बन

 

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इल्म में भी सुरूर है लेकिन

ये वो जन्नत है जिस में हूर नहीं

टैग : इल्म
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अच्छा है दिल के साथ रहे पासबान-ए-अक़्ल

लेकिन कभी कभी इसे तन्हा भी छोड़ दे

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दिल से जो बात निकलती है असर रखती है

पर नहीं ताक़त-ए-परवाज़ मगर रखती है

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नहीं तेरा नशेमन क़स्र-ए-सुल्तानी के गुम्बद पर

तू शाहीं है बसेरा कर पहाड़ों की चटानों में

 

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हया नहीं है ज़माने की आँख में बाक़ी

ख़ुदा करे कि जवानी तिरी रहे बे-दाग़

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हरम-ए-पाक भी अल्लाह भी क़ुरआन भी एक

कुछ बड़ी बात थी होते जो मुसलमान भी एक

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ग़ुलामी में न काम आती हैं शमशीरें न तदबीरें

जो हो ज़ौक़-ए-यक़ीं पैदा तो कट जाती हैं ज़ंजीरें

 

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सौ सौ उमीदें बंधती है इक इक निगाह पर

मुझ को न ऐसे प्यार से देखा करे कोई

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मस्जिद तो बना दी शब भर में ईमाँ की हरारत वालों ने

मन अपना पुराना पापी है बरसों में नमाज़ी बन न सका

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ऐ ताइर-ए-लाहूती उस रिज़्क़ से मौत अच्छी

जिस रिज़्क़ से आती हो परवाज़ में कोताही

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जिस खेत से दहक़ाँ को मयस्सर नहीं रोज़ी

उस खेत के हर ख़ोशा-ए-गंदुम को जला दो

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उक़ाबी रूह जब बेदार होती है जवानों में

नज़र आती है उन को अपनी मंज़िल आसमानों में

 

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न समझोगे तो मिट जाओगे ऐ हिन्दोस्ताँ वालो

तुम्हारी दास्ताँ तक भी न होगी दास्तानों में

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ढूँडता फिरता हूँ मैं ‘इक़बाल’ अपने आप को

आप ही गोया मुसाफ़िर आप ही मंज़िल हूँ मैं

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अमल से ज़िंदगी बनती है जन्नत भी जहन्नम भी

ये ख़ाकी अपनी फ़ितरत में न नूरी है न नारी है

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यूँ तो सय्यद भी हो मिर्ज़ा भी हो अफ़्ग़ान भी हो

तुम सभी कुछ हो बताओ तो मुसलमान भी हो

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तमन्ना दर्द-ए-दिल की हो तो कर ख़िदमत फ़क़ीरों की

नहीं मिलता ये गौहर बादशाहों के ख़ज़ीनों में

 

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इश्क़ भी हो हिजाब में हुस्न भी हो हिजाब में

या तो ख़ुद आश्कार हो या मुझे आश्कार कर

टैग्ज़ : इश्क़ और 3 अन्य
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सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा

हम बुलबुलें हैं इस की ये गुलसिताँ हमारा

टैग्ज़ : गणतंत्र दिवस शायरी और 3 अन्य
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जम्हूरियत इक तर्ज़-ए-हुकूमत है कि जिस में

बंदों को गिना करते हैं तौला नहीं करते

 

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तिरे आज़ाद बंदों की न ये दुनिया न वो दुनिया

यहाँ मरने की पाबंदी वहाँ जीने की पाबंदी

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बातिल से दबने वाले ऐ आसमाँ नहीं हम

सौ बार कर चुका है तू इम्तिहाँ हमारा

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नहीं है ना-उमीद ‘इक़बाल’ अपनी किश्त-ए-वीराँ से

ज़रा नम हो तो ये मिट्टी बहुत ज़रख़ेज़ है साक़ी

टैग्ज़ : प्रेरणादायक और 1 अन्य
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अक़्ल को तन्क़ीद से फ़ुर्सत नहीं

इश्क़ पर आमाल की बुनियाद रख

टैग्ज़ : इल्म और 2 अन्य
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वतन की फ़िक्र कर नादाँ मुसीबत आने वाली है

तिरी बर्बादियों के मशवरे हैं आसमानों में

टैग : मशवरा
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बुतों से तुझ को उमीदें ख़ुदा से नौमीदी

मुझे बता तो सही और काफ़िरी क्या है

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यक़ीं मोहकम अमल पैहम मोहब्बत फ़ातेह-ए-आलम

जिहाद-ए-ज़िंदगानी में हैं ये मर्दों की शमशीरें

 

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अनोखी वज़्अ’ है सारे ज़माने से निराले हैं

ये आशिक़ कौन सी बस्ती के या-रब रहने वाले हैं

टैग : आशिक़
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भरी बज़्म में राज़ की बात कह दी

बड़ा बे-अदब हूँ सज़ा चाहता हूँ

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बाग़-ए-बहिश्त से मुझे हुक्म-ए-सफ़र दिया था क्यूँ

कार-ए-जहाँ दराज़ है अब मिरा इंतिज़ार कर

 

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है राम के वजूद पे हिन्दोस्ताँ को नाज़

अहल-ए-नज़र समझते हैं उस को इमाम-ए-हिंद

 

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तू ने ये क्या ग़ज़ब किया मुझ को भी फ़ाश कर दिया

मैं ही तो एक राज़ था सीना-ए-काएनात में

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मुझे रोकेगा तू ऐ नाख़ुदा क्या ग़र्क़ होने से

कि जिन को डूबना है डूब जाते हैं सफ़ीनों में

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कभी हम से कभी ग़ैरों से शनासाई है

बात कहने की नहीं तू भी तो हरजाई है

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सौदा-गरी नहीं ये इबादत ख़ुदा की है

ऐ बे-ख़बर जज़ा की तमन्ना भी छोड़ दे

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अंदाज़-ए-बयाँ गरचे बहुत शोख़ नहीं है

शायद कि उतर जाए तिरे दिल में मिरी बात

 

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न पूछो मुझ से लज़्ज़त ख़ानमाँ-बर्बाद रहने की

नशेमन सैकड़ों मैं ने बना कर फूँक डाले हैं

 

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आईन-ए-जवाँ-मर्दां हक़-गोई ओ बे-बाकी

अल्लाह के शेरों को आती नहीं रूबाही

टैग्ज़ : प्रेरणादायक और 1 अन्य
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तेरा इमाम बे-हुज़ूर तेरी नमाज़ बे-सुरूर

ऐसी नमाज़ से गुज़र ऐसे इमाम से गुज़र

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ये जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों को

कि मैं आप का सामना चाहता हूँ

 

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हुए मदफ़ून-ए-दरिया ज़ेर-ए-दरिया तैरने वाले

तमांचे मौज के खाते थे जो बन कर गुहर निकले

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निगह बुलंद सुख़न दिल-नवाज़ जाँ पुर-सोज़

यही है रख़्त-ए-सफ़र मीर-ए-कारवाँ के लिए

टैग्ज़: प्रेरणादायक और 1 अन्य
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जो मैं सर-ब-सज्दा हुआ कभी तो ज़मीं से आने लगी सदा

तिरा दिल तो है सनम-आश्ना तुझे क्या मिलेगा नमाज़ में

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मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना

हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा

 

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उरूज-ए-आदम-ए-ख़ाकी से अंजुम सहमे जाते हैं

कि ये टूटा हुआ तारा मह-ए-कामिल न बन जाए

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मिलेगा मंज़िल-ए-मक़्सूद का उसी को सुराग़

अँधेरी शब में है चीते की आँख जिस का चराग़

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ज़ाहिर की आँख से न तमाशा करे कोई

हो देखना तो दीदा-ए-दिल वा करे कोई

टैग्ज़: तसव्वुफ़ और 2 अन्य
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आँख जो कुछ देखती है लब पे आ सकता नहीं

महव-ए-हैरत हूँ कि दुनिया क्या से क्या हो जाएगी

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हर शय मुसाफ़िर हर चीज़ राही

क्या चाँद तारे क्या मुर्ग़ ओ माही

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वजूद-ए-ज़न से है तस्वीर-ए-काएनात में रंग

इसी के साज़ से है ज़िंदगी का सोज़-ए-दरूँ

 

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तुझे किताब से मुमकिन नहीं फ़राग़ कि तू

किताब-ख़्वाँ है मगर साहिब-ए-किताब नहीं

 

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जब इश्क़ सिखाता है आदाब-ए-ख़ुद-आगाही

खुलते हैं ग़ुलामों पर असरार-ए-शहंशाही

 

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गला तो घोंट दिया अहल-ए-मदरसा ने तिरा

कहाँ से आए सदा ला इलाह इल-लल्लाह

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दिल सोज़ से ख़ाली है निगह पाक नहीं है

फिर इस में अजब क्या कि तू बेबाक नहीं है

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उमीद-ए-हूर ने सब कुछ सिखा रक्खा है वाइज़ को

ये हज़रत देखने में सीधे-सादे भोले-भाले हैं

 

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फ़िर्क़ा-बंदी है कहीं और कहीं ज़ातें हैं

क्या ज़माने में पनपने की यही बातें हैं

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जिन्हें मैं ढूँढता था आसमानों में ज़मीनों में

वो निकले मेरे ज़ुल्मत-ख़ाना-ए-दिल के मकीनों में

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महीने वस्ल के घड़ियों की सूरत उड़ते जाते हैं

मगर घड़ियाँ जुदाई की गुज़रती हैं महीनों में

 

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बे-ख़तर कूद पड़ा आतिश-ए-नमरूद में इश्क़

अक़्ल है महव-ए-तमाशा-ए-लब-ए-बाम अभी

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तू क़ादिर ओ आदिल है मगर तेरे जहाँ में

हैं तल्ख़ बहुत बंदा-ए-मज़दूर के औक़ात

 

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कभी ऐ हक़ीक़त-ए-मुंतज़र नज़र आ लिबास-ए-मजाज़ में

कि हज़ारों सज्दे तड़प रहे हैं मिरी जबीन-ए-नियाज़ में

 

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अक़्ल अय्यार है सौ भेस बदल लेती है

इश्क़ बेचारा न ज़ाहिद है न मुल्ला न हकीम

टैग: इक़बाल डे
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इश्क़ तिरी इंतिहा इश्क़ मिरी इंतिहा

तू भी अभी ना-तमाम मैं भी अभी ना-तमाम

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हुई न आम जहाँ में कभी हुकूमत-ए-इश्क़

सबब ये है कि मोहब्बत ज़माना-साज़ नहीं

 

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ख़ुदावंदा ये तेरे सादा-दिल बंदे किधर जाएँ

कि दरवेशी भी अय्यारी है सुल्तानी भी अय्यारी

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‘अत्तार’ हो ‘रूमी’ हो ‘राज़ी’ हो ‘ग़ज़ाली’ हो

कुछ हाथ नहीं आता बे-आह-ए-सहर-गाही

टैग: प्रेरणादायक
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ये काएनात अभी ना-तमाम है शायद

कि आ रही है दमादम सदा-ए-कुन-फ़यकूँ

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मोती समझ के शान-ए-करीमी ने चुन लिए

क़तरे जो थे मिरे अरक़-ए-इंफ़िआ’ल के

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जलाल-ए-पादशाही हो कि जमहूरी तमाशा हो

जुदा हो दीं सियासत से तो रह जाती है चंगेज़ी

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कभी छोड़ी हुई मंज़िल भी याद आती है राही को

खटक सी है जो सीने में ग़म-ए-मंज़िल न बन जाए

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सबक़ मिला है ये मेराज-ए-मुस्तफ़ा से मुझे

कि आलम-ए-बशरीयत की ज़द में है गर्दूं

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गुज़र जा अक़्ल से आगे कि ये नूर

चराग़-ए-राह है मंज़िल नहीं है!

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हाँ दिखा दे ऐ तसव्वुर फिर वो सुब्ह ओ शाम तू

दौड़ पीछे की तरफ़ ऐ गर्दिश-ए-अय्याम तू

 

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कुशादा दस्त-ए-करम जब वो बे-नियाज़ करे

नियाज़-मंद न क्यूँ आजिज़ी पे नाज़ करे

 

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सितारा क्या मिरी तक़दीर की ख़बर देगा

वो ख़ुद फ़राख़ी-ए-अफ़्लाक में है ख़्वार ओ ज़ुबूँ

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ज़माना अक़्ल को समझा हुआ है मिशअल-ए-राह

किसे ख़बर कि जुनूँ भी है साहिब-ए-इदराक

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ख़ुदी वो बहर है जिस का कोई किनारा नहीं

तू आबजू इसे समझा अगर तो चारा नहीं

 

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मैं तुझ को बताता हूँ तक़दीर-ए-उमम क्या है

शमशीर-ओ-सिनाँ अव्वल ताऊस-ओ-रुबाब आख़िर

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समुंदर से मिले प्यासे को शबनम

बख़ीली है ये रज़्ज़ाक़ी नहीं है

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मन की दौलत हाथ आती है तो फिर जाती नहीं

तन की दौलत छाँव है आता है धन जाता है धन

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मोहब्बत के लिए दिल ढूँढ कोई टूटने वाला

ये वो मय है जिसे रखते हैं नाज़ुक आबगीनों में

 

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रोज़-ए-हिसाब जब मिरा पेश हो दफ़्तर-ए-अमल

आप भी शर्मसार हो मुझ को भी शर्मसार कर

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वो हर्फ़-ए-राज़ कि मुझ को सिखा गया है जुनूँ

ख़ुदा मुझे नफ़स-ए-जिबरईल दे तो कहूँ

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मीर-ए-अरब को आई ठंडी हवा जहाँ से

मेरा वतन वही है मेरा वतन वही है

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हवा हो ऐसी कि हिन्दोस्ताँ से ऐ ‘इक़बाल’

उड़ा के मुझ को ग़ुबार-ए-रह-ए-हिजाज़ करे

 

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नहीं इस खुली फ़ज़ा में कोई गोशा-ए-फ़राग़त

ये जहाँ अजब जहाँ है न क़फ़स न आशियाना

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मिरी निगाह में वो रिंद ही नहीं साक़ी

जो होशियारी ओ मस्ती में इम्तियाज़ करे

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इसी ख़ता से इताब-ए-मुलूक है मुझ पर

कि जानता हूँ मआल-ए-सिकंदरी क्या है

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ज़मीर-ए-लाला मय-ए-लाल से हुआ लबरेज़

इशारा पाते ही सूफ़ी ने तोड़ दी परहेज़

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ज़िंदगानी की हक़ीक़त कोहकन के दिल से पूछ

जू-ए-शीर ओ तेशा ओ संग-ए-गिराँ है ज़िंदगी

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जन्नत की ज़िंदगी है जिस की फ़ज़ा में जीना

मेरा वतन वही है मेरा वतन वही है

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मुरीद-ए-सादा तो रो रो के हो गया ताइब

ख़ुदा करे कि मिले शैख़ को भी ये तौफ़ीक़

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मक़ाम-ए-शौक़ तिरे क़ुदसियों के बस का नहीं

उन्हीं का काम है ये जिन के हौसले हैं ज़ियाद

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गुलज़ार-ए-हस्त-ओ-बूद न बेगाना-वार देख

है देखने की चीज़ इसे बार बार देख

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पुराने हैं ये सितारे फ़लक भी फ़र्सूदा

जहाँ वो चाहिए मुझ को कि हो अभी नौ-ख़ेज़

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उट्ठो मिरी दुनिया के ग़रीबों को जगा दो

काख़-ए-उमारा के दर-ओ-दीवार हिला दो

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तू है मुहीत-ए-बे-कराँ मैं हूँ ज़रा सी आबजू

या मुझे हम-कनार कर या मुझे बे-कनार कर

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अगर हंगामा-हा-ए-शौक़ से है ला-मकाँ ख़ाली

ख़ता किस की है या रब ला-मकाँ तेरा है या मेरा

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चमन-ज़ार-ए-मोहब्ब्बत में ख़मोशी मौत है बुलबुल

यहाँ की ज़िंदगी पाबंदी-ए-रस्म-ए-फ़ुग़ाँ तक है

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किसे ख़बर कि सफ़ीने डुबो चुकी कितने

फ़क़ीह ओ सूफ़ी ओ शाइर की ना-ख़ुश-अंदेशी

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निगाह-ए-इश्क़ दिल-ए-ज़िंदा की तलाश में है

शिकार-ए-मुर्दा सज़ा-वार-ए-शाहबाज़ नहीं

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अज़ाब-ए-दानिश-ए-हाज़िर से बा-ख़बर हूँ मैं

कि मैं इस आग में डाला गया हूँ मिस्ल-ए-ख़लील

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गेसू-ए-ताबदार को और भी ताबदार कर

होश ओ ख़िरद शिकार कर क़ल्ब ओ नज़र शिकार कर

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फ़ितरत को ख़िरद के रू-ब-रू कर

तस्ख़ीर-ए-मक़ाम-ए-रंग-ओ-बू कर

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तुर्कों का जिस ने दामन हीरों से भर दिया था

मेरा वतन वही है मेरा वतन वही है

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एक सरमस्ती ओ हैरत है सरापा तारीक

एक सरमस्ती ओ हैरत है तमाम आगाही

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हकीम ओ आरिफ़ ओ सूफ़ी तमाम मस्त-ए-ज़ुहूर

किसे ख़बर कि तजल्ली है ऐन-ए-मस्तूरी

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कमाल-ए-जोश-ए-जुनूँ में रहा मैं गर्म-ए-तवाफ़

ख़ुदा का शुक्र सलामत रहा हरम का ग़िलाफ़

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पास था नाकामी-ए-सय्याद का ऐ हम-सफ़ीर

वर्ना मैं और उड़ के आता एक दाने के लिए

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ऋषी के फ़ाक़ों से टूटा न बरहमन का तिलिस्म

असा न हो तो कलीमी है कार-ए-बे-बुनियाद

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मैं ना-ख़ुश-ओ-बे-ज़ार हूँ मरमर की सिलों से

मेरे लिए मिट्टी का हरम और बना दो

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उसे सुब्ह-ए-अज़ल इंकार की जुरअत हुई क्यूँकर

मुझे मालूम क्या वो राज़-दाँ तेरा है या मेरा

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यही ज़माना-ए-हाज़िर की काएनात है क्या

दिमाग़ रौशन ओ दिल तीरा ओ निगह बेबाक

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मिरे जुनूँ ने ज़माने को ख़ूब पहचाना

वो पैरहन मुझे बख़्शा कि पारा पारा नहीं

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ख़िर्द-मंदों से क्या पूछूँ कि मेरी इब्तिदा क्या है

कि मैं इस फ़िक्र में रहता हूँ मेरी इंतिहा क्या है

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ज़माम-ए-कार अगर मज़दूर के हाथों में हो फिर क्या

तरीक़-ए-कोहकन में भी वही हीले हैं परवेज़ी

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सुल्तानी-ए-जम्हूर का आता है ज़माना

जो नक़्श-ए-कुहन तुम को नज़र आए मिटा दो

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हैं उक़्दा-कुशा ये ख़ार-ए-सहरा

कम कर गिला-ए-बरहना-पाई

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ये है ख़ुलासा-ए-इल्म-ए-क़लंदरी कि हयात

ख़दंग-ए-जस्ता है लेकिन कमाँ से दूर नहीं

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मय-ख़ाना-ए-यूरोप के दस्तूर निराले हैं

लाते हैं सुरूर अव्वल देते हैं शराब आख़िर

 

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फूल की पत्ती से कट सकता है हीरे का जिगर

मर्द-ए-नादाँ पर कलाम-ए-नर्म-ओ-नाज़ुक बे-असर

 

अल्लामा इकबाल शायरी Allama Iqbal Shayari in Hindi
1. ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले,
ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है।

यह शायरी उनके सबसे बेहतरीन शायरियों में शुमार हैं लेकिन उससे पहले Allama iqbal के बारे में जान लेते हैं। अल्लामा इकबाल का असली नाम मुहम्मद इक़बाल मसऊदी था और उनका जन्म और मृत्यु अविभाजित भारत में हुआ था। अल्लामा इकबाल के दादा का नाम सहज सप्रू था जो एक कश्मीरी हिन्दू पंडित थे लेकिन बाद में वे सियालकोट में जाकर बस गए। इनकी उर्दू और फ़ारसी शायरियाँ अधिक प्रसिद्द हुए जिनसे इन्हें इरान और अफगानिस्तान में इकबाल-ऐ-लाहौर कहा जाता है।

  1. पानी पानी कर गयी मुझको कलंदर की वो बात
    तू झुका जो ग़ैर के आगे न तन तेरा न मन तेरा। -Allama Iqbal Shayari in Hindi
  2. अपने मन में डूब कर पा जा सुराग़-ए-ज़ि़ंदगी
    तू अगर मेरा नहीं बनता न बन अपना तो बन। -अल्लामा इकबाल शायरी
  3. तेरे इश्क़ की इन्तिहा चाहता हूँ।
    मेरी सादगी देख क्या चाहता हूँ।
  4. दिल की बस्ती अजीब बस्ती है, लूटने वाले को तरसती है।
    मुमकिन है कि तू जिसको समझता है बहारां
    औरों की निगाहों में वो मौसम हो खिजां का। -Allama Iqbal Shayari in Hindi
  5. इक़रार -ऐ-मुहब्बत ऐहदे-ऐ.वफ़ा सब झूठी सच्ची बातें हैं “इक़बाल”
    हर शख्स खुदी की मस्ती में बस अपने खातिर जीता है।
  6. दिल से जो बात निकलती है असर रखती है
    पर नहीं ताक़त-ए-परवाज़ मगर रखती है।
  7. माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं
    तू मेरा शौक़ देख मिरा इंतिज़ार देख।
  8. सितारों से आगे जहाँ और भी हैं।
    अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं। -Allama Iqbal Shayari in Hindi

क्या आपको पता है? अल्लामा इकबाल ने ही भारत को विभाजित कर के मुसलमानों के लिए अलग देश पाकिस्तान बनाने की मांग सबसे पहले की थी इसलिए उन्हें पाकिस्तान का जनक भी कहा जाता है उन्होंने पाकिस्तान के लिए “तराना-ए-मिली” (मुस्लिम समुदाय के लिए गीत) लिखा।

  1. तेरी दुआ से कज़ा* तो बदल नहीं सकती मगर है,
    इस से यह मुमकिन की तू बदल जाये तेरी दुआ है,
    की हो तेरी आरज़ू पूरी मेरी दुआ है तेरी आरज़ू बदल जाये। -अल्लामा इकबाल शायरी
  2. जफा* जो इश्क में होती है वह जफा ही नहीं,
    सितम न हो तो मुहब्बत में कुछ मजा ही नही।
  3. इश्क़ क़ातिल से भी मक़तूल से हमदर्दी भी
    यह बता किस से मुहब्बत की जज़ा मांगेगा
    सजदा ख़ालिक़ को भी इबलीस से याराना भी
    हसर में किस से अक़ीदत का सिला मांगेगा। -Allama Iqbal Shayari in Hindi
  4. नशा पिला के गिराना तो सब को आता है
    मज़ा तो तब है कि गिरतों को थाम ले साक़ी
  5. भरी बज़्म में अपने आशिक़ को ताड़ा
    तेरी आँख मस्ती में होश्यार क्या थी
  6. अच्छा है दिल के साथ रहे पासबान-ए-अक़्ल
    लेकिन कभी कभी इसे तन्हा भी छोड़ दे। -अल्लामा इकबाल शायरी
  7. बाग़-ए-बहिश्त से मुझे हुक्म-ए-सफ़र दिया था
    क्यूँ कार-ए-जहाँ दराज़ है अब मिरा इंतिज़ार कर जिस खेत से दहक़ाँ को मयस्सर नहीं
    रोज़ी उस खेत के हर ख़ोशा-ए-गंदुम को जला दो। -Allama Iqbal Shayari in Hindi
  8. खुदा के बन्दे तो हैं हजारों बनो में फिरते हैं मारे-मारे
    मैं उसका बन्दा बनूंगा जिसको खुदा के बन्दों से प्यार होगा
  9. उम्र भर तेरी मोहब्बत मेरी खिदमत रही
    मैं तेरी खिदमत के क़ाबिल जब हुआ तो तू चल बसी। -अल्लामा इकबाल शायरी
  10. अगर खो गया इक नशेमन तो क्या ग़म
    मक़ामात-ए-आह-ओ-फ़ुग़ां और भी हैं
  11. मुझ सा कोई शख्स नादान भी न हो।
    करे जो इश्क़ कहता है नुकसान भी न हो। -Allama Iqbal Shayari in Hindi

Allama iqbal की छवि एक देशभक्त मुसलमान के रूप में रही थी “हिंदी है हम वतन है” “मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना” जैसे मशहूर पंक्तियों को लिखने वाले इकबाल का मनोभाव अचानक से पूरी तरह बदल गया और वे “विभाजन ही एक मात्र विकल्प” जैसे शब्दों को वे खुलेआम प्रयोग करने लगे।

  1. कभी ऐ हक़ीक़त-ए-मुंतज़र नज़र आ लिबास-ए-मजाज़ में कि हज़ारों सज्दे तड़प रहे हैं मिरी जबीन-ए-नियाज़ में
  2. सख्तियां करता हूं दिल पर गैर से गाफिल* हूं मैं
    हाय क्या अच्छी कही जालिम हूं, जाहिल हूं मैं। -अल्लामा इकबाल शायरी
  3. मिटा दे अपनी हस्ती को अगर कुछ मर्तबा चाहे
    कि दाना खाक में मिलकर गुले गुलज़ार होता है
  4. अगर खो गया इक नशेमन तो क्या ग़म
    मक़ामात-ए-आह-ओ-फ़ुग़ां और भी हैं। -Allama Iqbal Shayari in Hindi
  5. तू शाहीं है परवाज़ है काम तेरा
    तिरे सामने आसमां और भी हैं
  6. उरूज-ए-आदम-ए-ख़ाकी से अंजुम सहमे जाते हैं
    कि ये टूटा हुआ तारा मह-ए-कामिल न बन जाए
    बड़े इसरार पोशीदा हैं इस तनहा पसंदी में। -अल्लामा इकबाल शायरी
  7. यह मत समझो के दीवाने जहनदीदा नहीं होते,
    ताजुब क्या अगर इक़बाल दुनिया तुझ से नाखुश है,
    बहुत से लोग दुनिया में पसंददीदा नहीं होते।
  8. यक़ीं मोहकम अमल पैहम मोहब्बत फ़ातेह-ए-आलम
    जिहाद-ए-ज़िंदगानी में हैं ये मर्दों की शमशीरें
  9. तू ने ये क्या ग़ज़ब किया मुझको भी फ़ाश कर दिया,
    मैं ही तो एक राज़ था सीना-ए-काएनात में। -Allama Iqbal Shayari in Hindi

अल्लामा इकबाल की लिखी शायरियाँ और कवितायेँ सीधे दिल को स्पर्श करती है। क्या आपको पता है अल्लामा इकबाल ने श्री राम नवमी के दिन राम जी पर एक कविता भी लिखी थी। पर दिल में एक कसक सी रह ही जाती है की हमारे देश के टुकड़े करने में इनका सबसे बड़ा हाथ है। जब इनसे जलियांवाला हत्याकांड पर कुछ बोलने के लिए कहा जाता तो ये गरम हो जाते। सभी का मानना है की इन्होने जलियांवाला हत्याकांड के विरोध में एक शब्द भी नहीं कहा था।

  1. तेरी दुआ से कज़ा* तो बदल नहीं सकती
    मगर है इस से यह मुमकिन की तू बदल जाये
    तेरी दुआ है की हो तेरी आरज़ू पूरी
    मेरी दुआ है तेरी आरज़ू बदल जाये। -अल्लामा इकबाल शायरी
  2. मुझे रोकेगा तू ऐ नाख़ुदा क्या ग़र्क़ होने से,
    कि जिन को डूबना है डूब जाते हैं सफ़ीनों में। -Allama Iqbal Shayari in Hindi
  3. अनोखी वज़्अ’ है सारे ज़माने से निराले हैं
    ये आशिक़ कौन सी बस्ती के या-रब रहने वाले हैं
  4. आज फिर तेरी याद मुश्किल बना देगी
    सोने से काबिल ही मुझे रुला देगी
    आँख लग गई भले से तो डर है
    कोई आवाज़ फिर मुझे जगा देगी। -Allama Iqbal Shayari in Hindi
  5. उठा कर चूम ली हैं चंद मुरझाई हुई कलियाँ ,
    न तुम ए तो यूं जश्न -ऐ -बहाराँ कर लिया मैने ..
    जिन के आँगन में अमीरी का शजर लगता है ,
    उन का हर ऐब भी ज़माने को हुनर लगता है …
  6. अपने मन में डूब कर पा जा सुराग़-ए-ज़ि़ंदगी।
    तू अगर मेरा नहीं बनता न बन अपना तो बन। -अल्लामा इकबाल शायरी

आशा करते हैं आपको अल्लामा इकबाल शायरी बेस्ट शायरी Allama Iqbal Shayari in Hindi पसंद आए होंगे।

 

 

 

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नहीं मिन्नत-कश-ए-ताब-ए-शुनीदन दास्ताँ मेरी

ख़मोशी गुफ़्तुगू है बे-ज़बानी है ज़बाँ मेरी

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‘इक़बाल’ लखनऊ से न दिल्ली से है ग़रज़

हम तो असीर हैं ख़म-ए-ज़ुल्फ़-ए-कमाल के

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राज़-ए-हयात पूछ ले ख़िज़्र-ए-ख़जिस्ता गाम से

ज़िंदा हर एक चीज़ है कोशिश-ए-ना-तमाम से

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