Bhar Do Jholi Naat Lyrics In Hindi

Bhar Do Jholi Naat Lyrics In Hindi

 

शाह-ए-मदीना सुनो इलतेजा खुदा के लिए
करम हो मुझ पे हबीब-ए-खुदा खुदा के लिए
हुज़ूर घुंचा-ए-उम्मीद अब तो खिल जाए
तुम्हारे दर का गाड़ा हूँ तो भीक मिल जाए

भर दो झोली मेरी या मुहम्मद
लौटकर मैं ना जवँगा खाली

तुम्हारे आस्ताने से ज़माना क्या नहीं पाता
कोई भी दर से खाली माँगने वाला नहीं जाता

भर दो झोली मेरी सरकार-ए-मदीना
भर दो झोली मेरी ताजदार-ए-मदीना

तुम ज़माने के मुख़्तार हो या नबी
बेकसों के मददगार हो या नबी
सब की सुनते हो अपने हो या घैर हो
तुम घरीबों के घाम-ख्वार हो नबी

भर दो झोली मेरी सरकार-ए-मदीना
भर दो झोली मेरी ताजदार-ए-मदीना

हम हैं रंज-ओ-मुसीबत के मारे हुए
सक़त मुश्किल में हैं घाम से हारे हुए
या नबी कुच्छ खुदारा हूमें भीक दो
दर पे आए हैं झोली पसारे हुए

भर दो झोली मेरी सरकार-ए-मदीना
भर दो झोली मेरी ताजदार-ए-मदीना

है मुखालिफ़ ज़माना किधर जाएं हम
हालत-ए-बेकासी किसको दिखलाए हम
हम तुम्हारे भिकारी हैं या मुस्तफ़ा
किसके आयेज भला हाथ फैलायें हम

भर दो झोली मेरी सरकार-ए-मदीना
भर दो झोली मेरी ताजदार-ए-मदीना

भर दो झोली मेरी या मुहम्मद
लौटकर मैं ना जवँगा खाली
कुच्छ नवासों का सदक़ा आता हो
दर पे आया हूँ बनकर सवाली

हक़ से पाई वो शान-ए-करीमी
मरहबा दोनो आलम के वाली
उसकी क़िस्मत का चमका सितारा
जिस पे नज़र-ए-करम तुम ने डाली

ज़िंदगी बख़्श की बंदगी को
आबरू दीं-ए-हक़ की बचाली
वो मुहम्मद का प्यारा नवासा
जिसने सजदे में गर्दन कॅताली

जो इब्न-ए-मुर्तज़ा ने किया काम खूब है
क़ुर्बानी-ए-हूसेन का अंजाम खूब है
खुरबान हो के फतेमा ज़हरा के चैन ने
दीं-ए-खुदा की शान बधाई हूसेन ने
बख़्शी है जिसने मज़हब-ए-इस्लाम को हयात
जितनी अज़ीम हज़रत-ए-शब्बीर की है ज़ात
मैदान-ए-करबला में शाह-ए-खुश खिसाल ने
सजदे में सर कटा के मोहम्मद के लाल ने
ज़िंदगी बख़्श दी बंदगी को
आबरू दीं-ए-हक़ की बचाली
वो मुहम्मद का प्यारा नवासा
जिसने सजदे में गर्दन कॅताली

हश्र में उनको देखेंगे जिस दम
उम्मति ये कहेंगे खुशी से
आ रहे हैं वो देखो मोहम्मद
जिनके काँधे पे कॅंब्ली है काली

महशर के रोज़ पेश-ए-खुदा होंगे जिस घड़ी
होगी गुनहगारों में किस दर्जा बेकली
आते हुए नबी को जो देखेंगे उम्मति
एक दूसरे से सब ये कहेंगे खुशी खुशी
आ रहे हैं वो देखो मोहम्मद
जिनके काँधे पे कॅंब्ली है काली

सर-ए-महशर गुनहगारों से पूर्ज़िश जिस घड़ी होगी
यक़ीनन हर बशर को अपनी बखशीश की परही होगी
सभी को आस उस दिन कॅंब्ली वाले से लगी होगी
के ऐसे में मोहम्मद की सवारी आ रही होगी
पुकारेगा ज़माना उस घड़ी दुख दर्द के मारों
ना घबराओ गुनहगारों ना घबराओ गुनहगारों
आ रहे हैं वो देखो मोहम्मद
जिनके काँधे पे कॅंब्ली है काली

आशिक़-ए-मुस्तफ़ा की अज़ान में अल्लाह अल्लाह कितना असर तहा
साचा ये वाक़िया है अज़ान-ए-बिलाल का
एक दिन रसूल-ए-पाक से लोगों ने यूँ कहा
या मुस्तफ़ा अज़ान घालत देते हैं बिलाल
कहिए हुज़ूर आपका इस में है क्या ख़याल
फ़रमाया मुस्तफ़ा ने ये सच है तो देखिए
वक़्त-ए-सहर की आज अज़ान और कोई दे
हज़रत बिलाल ने जो अज़ान-ए-सहर ना दी
खुद्रट खुदा की देखो ना मुतलक़ सहर हुई
आए नबी के पास कुच्छ आस’हाब-ए-बासबा
की अर्ज़ मुस्तफ़ा से आय शाह-ए-अंबिया
है क्या सबब सहर ना हुई आज मुस्तफ़ा
जिबरील लाए ऐसे में पयघाम-ए-कीब्रिया
पहले तो मुस्तफ़ा को अदब से किया सलाम
बाद आस सलाम उनको खुदा का दिया पयाँ
यूँ जिबराईल ने कहा खैर उल अनाम से
अल्लाह को है प्यार तुम्हारे घुलाम से
फ़ार्मा रहा है आप से ये रब्ब-ए-ज़ुलज़लाल
होगी ना सुबा देंगे ना जब तक अज़ान बिलाल
आशिक़-ए-मुस्तफ़ा की अज़ान में अल्लाह अल्लाह कितना असर तहा
अर्श वाले भी सुनते तहे जिसको
क्या अज़ान थी अज़ान-ए-बिलाली

काश पूर्णाम से आए नबी में
जीते जी हो बुलावा किसी दिन
हाल-ए-घाम मुस्तफ़ा को सुनाऊं
तहां कर उनके रौज़े की जाली

भर दो झोली मेरी या मुहम्मद
लौटकर मैं ना जवँगा खाली

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