मुझे अपने दर्द की भीक दे के तेरे ख़ज़ाने में क्या नहीं
हो करम-नवाज़ी हुज़ूर की, मेरे ग़म-कदे में भी आ कभी
मेरे चारागर ! ए मेरे नबी ! मेरा कोई तेरे सिवा नहीं
तेरा नाम विर्द-ए-ज़ुबाँ रहे
वो घड़ी भी आए घड़ी घड़ी ! तेरे दर पे हो मेरे हाज़री
तेरे दर से दूर रहूं अगर, कोई ज़िंदगी का मज़ा नहीं
तेरा नाम विर्द-ए-ज़ुबाँ रहे
ये करम हैं मेरे हुज़ूर के ! सदा मेरे कासे भरे रहे
जो मेरे नबी के गदा हुए, वो तो बादशा हैं गदा नहीं
तेरा नाम विर्द-ए-ज़ुबाँ रहे
ये तेरे नियाज़ी की ईद है, अभी और हसरत-ए-दीद है
इसे चूम लेने दो जालियाँ, अभी दिल तो इस का भरा नहीं
तेरा नाम विर्द-ए-ज़ुबाँ रहे
तेरा नाम विर्द-ए-ज़ुबाँ रहे, मेरी और कोई दुआ नहीं
मुझे अपने दर्द की भीक दे के तेरे ख़ज़ाने में क्या नहीं
शायर:
मौलाना अब्दुल सत्तार नियाज़ी
नातख्वां:
मीलाद रज़ा क़ादरी