ओवैसियों में बैठ जा, बिलालियों में बैठ जा
तलब है कुछ तो बे-तलब सवालियों में बैठ जा
तलब है कुछ तो बे-तलब सवालियों में बैठ जा
ये मअ़रेफ़त के रास्ते हैं अहले-दिल के वास्ते
जुनैदियों से जा के मिल, ग़ज़ालियों में बैठ जा
जो चाहता है गुल्सिताने-मुस्तफ़ा की नौकरी
तो बूए-मुस्तफ़ा पहन के मालियों में बैठ जा
दुरूद पड़, नमाज़ पड़, इबादतों के राज़ पड़
सफ़ें तो सब बिछी हैं इश्क़वालियों में बैठ जा
हर एक सांस पर जो उनको देखने का शौक़ है
तो आँख बन कर उनके दर की जालियों में बैठ जा
अगर हों ख़ल्वतें अज़ीज़ तो हुजूम में निकल
अगर सुकून चाहिये धमालियों में बैठ जा
मुज़फ्फर ! आप तक रसाई इतनी सहल तो नहीं
तवज्जो चाहिये तो यरग़मालियों में बैठ जा