जाँ की दीवार गिरा दे तो मज़ा आ जाए

जाँ की दीवार गिरा दे तो मज़ा आ जाए

जाँ की दीवार गिरा दे तो मज़ा आ जाए
मौत आक़ा से मिला दे तो मज़ा आ जाए

जाँ की दीवार गिरा दे तो मज़ा आ जाए

नींद आ जाए मुझे पढ़ते हुए उन पे दुरूद
और ख़ुदा उन से मिला दे तो मज़ा आ जाए

जाँ की दीवार गिरा दे तो मज़ा आ जाए

उन की दहलीज़ पे जिस वक़्त पड़े मेरी नज़र
‘इश्क़ दीवाना बना दे तो मज़ा आ जाए

जाँ की दीवार गिरा दे तो मज़ा आ जाए

अपने महबूब के तलवों का मुझे भी धोवन
एक-दो बूँद पिला दे तो मज़ा आ जाए

जाँ की दीवार गिरा दे तो मज़ा आ जाए

उन के ना’लैन कहाँ और कहाँ सर मेरा
फिर भी तौफ़ीक़ ख़ुदा दे तो मज़ा आ जाए

जाँ की दीवार गिरा दे तो मज़ा आ जाए

शहर-ए-सरकार से ला कर के कोई अज्वा खजूर
सिर्फ़ इफ़्तार करा दे तो मज़ा आ जाए

जाँ की दीवार गिरा दे तो मज़ा आ जाए

छोड़ देते हों जिसे खा के मदीने के फ़क़ीर
कोई वो जूठा खिला दे तो मज़ा आ जाए

जाँ की दीवार गिरा दे तो मज़ा आ जाए

और कुछ दिन तेरे महबूब का रौज़ा देखूँ
ए ख़ुदा ! उम्र बढ़ा दे तो मज़ा आ जाए

जाँ की दीवार गिरा दे तो मज़ा आ जाए

अब तो, जावेद ! मदीने में मिलूँगी तुझ से
ये ख़बर मौत सुना दे तो मज़ा आ जाए

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