मैं किस मुँह से बोलूँ हुज़ूर आप का हूँ
मैं किस मुँह से बोलूँ, हुज़ूर आप का हूँ / Main Kis Munh Se Bolun, Huzoor Aap Ka Hun
हुज़ूर ! आप का हूँ, मगर सोचता हूँ
मैं किस मुँह से बोलूँ, हुज़ूर ! आप का हूँ
गुनाहों के दरिया में डूबा हुआ हूँ
मैं किस मुँह से बोलूँ, हुज़ूर ! आप का हूँ
किया रब ने पैदा ‘इबादत की ख़ातिर
मोहब्बत ‘अता की इता’अत की ख़ातिर
ज़माने के चक्कर में फिर भी फँसा हूँ
मैं किस मुँह से बोलूँ, हुज़ूर ! आप का हूँ
बहुत चाहता हूँ, मदीने में आऊँ
वहाँ आ के पलकों से झाड़ू लगाऊँ
मगर कैसे आऊँ, बहुत ही बुरा हूँ
मैं किस मुँह से बोलूँ, हुज़ूर ! आप का हूँ
मेरे वास्ते आप रातों को रोए
कभी चैन से एक पल भी न सोए
यहाँ चैन से रोज़ मैं सो रहा हूँ
मैं किस मुँह से बोलूँ, हुज़ूर ! आप का हूँ
हराम और हलाल आप ने सब बताया
हर इक राज़-ए-हस्ती से पर्दा उठाया
मैं सब जान कर भी बुरा बन गया हूँ
मैं किस मुँह से बोलूँ, हुज़ूर ! आप का हूँ
हसद, झूट, ग़ीबत समाई है मुझ में
ज़माने की सारी बुराई है मुझ में
बहुत तौबा करता हूँ, फिर तोड़ता हूँ
मैं किस मुँह से बोलूँ, हुज़ूर ! आप का हूँ
हुज़ूर ! अपने मद्दाह की लाज रखिए
है जावेद मेरा, ख़ुदा से ये कहिए
गुनहगार हूँ, मुँह छुपाए खड़ा हूँ
मैं किस मुँह से बोलूँ, हुज़ूर ! आप का हूँ