राह में अंधेरा है और दिया नहीं लेते।।
नौजवान क्यूँ दर्से करबला नहीं लेते।।
हर मरज़ पे क़ाबिज़ है जो दवा, नहीं लेते।।
आयतों से क़ुरआँ की फ़ायदा नहीं लेते।।
इसलिये तरक़्क़ी की राह खो चुके हम लोग,
बैठ कर बुज़ुर्गों से मशवरा नहीं लेते।।
ग़ैर की बुराई पर उँगलियाँ उठाते हैं,
अपनी ज़िन्दगानी का जायज़ा नहीं लेते।।
तज़केरा तो करते हैं हुर का रात दिन लेकिन,
राहे हक़ में हुर जैसा फ़ैसला नहीं लेते।।
वक़्त की ख़राबी है सोचिये अगर हम लोग,
मीलादों महाफ़िल से फ़ायदा नहीं लेते।।
दूर हैं नमाज़ों से, आरज़ू है जन्नत की,
जो मिलादे मन्ज़िल से वो पता नहीं लेते।।
हक़ बयाँ नहीं करते ख़ौफ़े मौत से हम, क्यूँ,
शहीदों की शहादत से हौसला नहीं लेते।।