Wo Imam e Yaqi Jaan e Haq Rooh e Deen Lyrics
Wo Imam e Yaqi Jaan e Haq Rooh e Deen Lyrics
वो इमाम-ए-यक़ीं जान-ए-ह़क़ रुह-ए-दीं
शरहे ईमां सर-ए-कर्बला कर गया
जगमगाता है जो ताज-ए-तौहीद में
एक सजदा वो ऐसा अदा कर गया।
कौन गुमराह है कौन सच्चाई पे
उसने साबित किया जान पर खेलकर
कैसा शिकवा-गिला मौत से ख़ुद मिला
सब्र-ओ-ईसार की इन्तेहा कर गया।
जगमगाता है जो ताज-ए-तौहीद में
एक सजदा वो ऐसा अदा कर गया।
देता होगा मोअज़्ज़िन अज़ां किस तरहां
देख पाया फ़लक वो समां किस तरहां
सर कहीं तन कहीं, यूं भी सैर-ए-ज़मीं
राग़िब-ए-तोशे ख़ैरुल-वरा कर गया।
जगमगाता है जो ताज-ए-तौहीद में
एक सजदा वो ऐसा अदा कर गया।
शर की उसने कभी ख़ैर-ख़्वाही न की
कट गया, बैअ़त-ए-जब्र-ए-शाही न की
आने वाले ज़माने के मज़लूम को
किस क़दर हौसला वो अ़ता कर गया।
जगमगाता है जो ताज-ए-तौहीद में
एक सजदा वो ऐसा अदा कर गया।
नाज़ उसके लहू पर शहादत करे
गो हर इक रौशनी की क़यादत करे
गुल न होंगी जो सदियों के झोंकों से भी
ऐसी शम’एं हवा में जलाकर गया
जगमगाता है जो ताज-ए-तौहीद में
एक सजदा वो ऐसा अदा कर गया।
Manqabat Khwan: Muhammad Ali Faizi