फैला है चारो सम्त अँधेरा मेरे हुज़ूर लिल्लाह अब तो कीजे उजाला मेरे हुज़ूर
/ Phaila Hai Chaaro Samt Andhera Mere Huzoor, Lillah Ab To Keeje Ujaala Mere Huzoor
फैला है चारो सम्त अँधेरा, मेरे हुज़ूर !
लिल्लाह ! अब तो कीजे उजाला, मेरे हुज़ूर !
डूबे न बहर-ए-ग़म में सफ़ीना, मेरे हुज़ूर !
दिखलाइए ख़ुदारा मदीना, मेरे हुज़ूर !
उम्मत की कितनी फ़िक्र है ज़हरा बतूल को
बख़्शिश की कितनी चाह है बिन्त-ए-रसूल को
भीगा है आँसूओं से मुसल्ला, मेरे हुज़ूर !
लिल्लाह ! अब तो कीजे उजाला, मेरे हुज़ूर !
डूबे न बहर-ए-ग़म में सफ़ीना, मेरे हुज़ूर !
दिखलाइए ख़ुदारा मदीना, मेरे हुज़ूर !
बन कर नजिस वो पैदा हुए हैं जहान में
कुत्ते जो भौंकते हैं सहाबा की शान में
कर दें ‘अली अब उन का सफ़ाया, मेरे हुज़ूर !
लिल्लाह ! अब तो कीजे उजाला, मेरे हुज़ूर !
डूबे न बहर-ए-ग़म में सफ़ीना, मेरे हुज़ूर !
दिखलाइए ख़ुदारा मदीना, मेरे हुज़ूर !
आईन-ए-ज़िंदगी का वो दर खोलने लगे
शम्स-ओ-क़मर भी चुपके से ये बोलने लगे
हो जाए काश फिर से इशारा, मेरे हुज़ूर !
लिल्लाह ! अब तो कीजे उजाला, मेरे हुज़ूर !
डूबे न बहर-ए-ग़म में सफ़ीना, मेरे हुज़ूर !
दिखलाइए ख़ुदारा मदीना, मेरे हुज़ूर !