Hussain Ibne Ali Tum Par Shahadat Naaz Karti Hai

Hussain Ibne Ali Tum Par Shahadat Naaz Karti Hai

 

Shujaat Naaz Karti Hai [Lyrics]

[youtube https://www.youtube.com/watch?v=Cp52gQdqW1c]
Shujaat Naaz Karti hai, Jalalat Naaz Karti hai
Woh Sultan e Zamaan hai, Unpe Shaokat Naaz Karti hai

Sadaqat Naaz Karti hai, Amanat Naaz Karti hai
Humiyyat Naaz Karti hai, Murawwat Naaz Karti hai

Shah e Khubaan pe Har Khubi o Khaslat Naaz Karti hai
Kareem Aese Hain Woh Un Per Karamat Naaz Karti hai

Jahaan e Husn me Bhi Kuch Nirali shaan Hai Unki
Nabi ke Gul Pe Gulzaron Ki Zeenat Naaz Karti hai

Shahenshah e Shaheedan Ho Anokhi Shaan Waale ho
HUSAIN IBNE ALI Tum per shahadat Naaz Karti Hai

Bitha kar Shana e Aqdas Pe Kardi Shaan Do Baala
NABI ke Ladlon Per har Fazilat Naaz Karti Hai

Jabeen e Naaz Unki Jalwah Gaah e Husn Hai kiski
Rukh e Zaiba Pe Hazrat ki Malahat Naaz Karti Hai

Nigah e Naaz se Naqsha Badal Dete Hain Aalam Ka
Adaa e Sarwar e Khubaan pe Nudrat Naaz Karti Hai

Fidaii Hoon Toh Kis ka Hoon Koi Dekhe Meri Kismat
Qadam per Jis Haseen Ki Jaan e Tal`at Naaz Karti Hai

Khuda ke Fazl se AKHTAR Main Unka Naam Lewa Hoon
Main Hoon Kismat Pe Nazaan Mujh Pe Kismat Naaz Karti Hai

 

Sallallahu Alayhi Wa Aalihi Wa Sahbihi Wa Barak Wa Sallam

शुजाअत नाज़ करती हे, जलालत नाज़ करती हे;
वो सुल्तान-ए-ज़मा(एन) हैं, उन पे शौकत नाज़ करती हैं।

सदाकत नाज़ करती हे, अमानत नाज़ करती हे;
हमियत नाज़ करती हे, मुरव्वत नाज़ करती हे।

शाह-ए-ख़ूबा(एन) पे हर ख़ूबी ओ ख़सलात नाज़ करती है;
करीम ऐसे हैं वो, उन पर करामत नाज़ करती हैं।

जहां-ए-हुस्न में भी कुछ निराली शान है उन की;
नबी के गुल पे गुलज़ारो(एन) की ज़ीनत नाज़ करती है।

शहंशाह-ए-शहीदा(एन) हो, अनोखी शान वाले हो;
हुसैन इब्न-ए-अली, तुम पर शहादत नाज़ करती है।

बिठा कर शाना-ए-अक़दस पे कर दी शान दो-बाला;
नबी काई लाडलो(एन) पर हर फज़ीलत नाज़ करती है।

जबीन-ए-नाज़ उन की जलवा गाह-ए-हुस्न हय किस की;
रुख़-ए-ज़ैयबा पे हज़रत की मलाहत नाज़ करती है।

निगाह-ए-नाज़ से नक़्शा बदल देते हैं आलम का;
अदा-ए-सरवर-ए-ख़ूबा(एन) पे नुदरत नाज़ करती है।

फ़िदाए हुँ तू किस का हुँ, कोई देखे मेरी क़िस्मत;
क़दम पर जिस हसीन की जान-ए-तलअत नाज़ करती है।

ख़ुदा के फ़ज़ल से अख़्तर, मैं उन का नाम लेवा हूँ;
मैं हूं क़िस्मत पे नाज़ (एन), मुझ पे क़िस्मत नाज़ करती है।

(रदी अल्लाहु अन्हु वा अर्दह)


लेखक:
हुज़ूर ताज-उश-शरिया, मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा खान।

 

 

Shuja’at Naaz Karti Hai
शुजाअ़त नाज़ करती है, जलालत नाज़ करती है
वो सुलताने-ज़मां हैं उन पे शौकत नाज़ करती है

सदाक़त नाज़ करती है अमानत नाज़ करती है
हुमीय्यत नाज़ करती है, मुरव्वत नाज़ करती है

शहे-खूबाँ पे हर खूबीयो-ख़स्लत नाज़ करती है
करीम ऐसें हैं वो उन पर करामत नाज़ करती है

जहाँने-हुस्न में भी कुछ निराली शान है उनकी
नबी के गुल पे गुलज़ारों की ज़ीनत नाज़ करती है

शहेनशाहे-शहीदां हो, अनोखी शान वाले हो
हुसैन इब्ने अली तुम पर शहादत नाज़ करती है

बिठा कर शाना-ए-अक़दस पे करदी शान दोबाला
नबी के लाडलों पर हर फ़ज़ीलत नाज़ करती है

ज़बीन-ए-नाज़ उनकी जल्वागाहे-हुस्न है किसकी
रूखे-ज़ेबा पे हज़रत की मलाहत नाज़ करती है

निगाहे-नाज़ से नक़्शा बदल देते हैं आलम का
अदा-ए-सरवरे-खूबां पे नुदरत नाज़ करती है

फ़िदाईं हूँ तो किसका हूँ कोई देखे मेरी क़िस्मत
क़दम पर जिस हसीं की जाने-तलअत नाज़ करती है

ख़ुदा के फ़ज़्ल से अख़्तर मैं उनका नाम लेवा हूँ
मैं हूँ क़िस्मत पे नाज़ां, मुझपे क़िस्मत नाज़ करती है

शायर:
अख़्तर रज़ा खान

नातख्वां:
वासिफ रज़ा नूरी

 

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