Mustafa Mustafa Rehmat-e-Do-Jahan Hindi Lyrics
मुस्तफ़ा ! मुस्तफ़ा ! रहमत-ए-दो-जहाँ !
जिस को जो भी मिला तेरे सदक़े मिला
रोज़-ए-महशर हमें तुम नहीं भूलना
जिस को जो भी मिला तेरे सदक़े मिला
रोज़-ए-महशर हमें तुम नहीं भूलना
या हबीबी मुहम्मद ! मैं कहता रहा
नूर के मोतियों की लड़ी बन गई
आयतों से मिलाता रहा आयतें
फिर जो देखा तो ना’त-ए-नबी बन गई
मुस्तफ़ा ! मुस्तफ़ा ! रहमत-ए-दो-जहाँ !
जिस को जो भी मिला तेरे सदक़े मिला
रोज़-ए-महशर हमें तुम नहीं भूलना
जब हुवा तज़्किरा हुस्न-ए-महबूब का
वद्दुहा कह दिया, वल-क़मर पढ़ लिया
आयतों की तिलावत भी होती रही
ना’त भी बन गई, बात भी बन गई
मुस्तफ़ा ! मुस्तफ़ा ! रहमत-ए-दो-जहाँ !
जिस को जो भी मिला तेरे सदक़े मिला
रोज़-ए-महशर हमें तुम नहीं भूलना
जो भी आँसू बहे मेरे सरकार के
सब के सब अब्र-ए-रहमत के छींटे बने
छा गई रात जब ज़ुल्फ़ लहरा गई
जब तबस्सुम किया चाँदनी बन गई
मुस्तफ़ा ! मुस्तफ़ा ! रहमत-ए-दो-जहाँ !
जिस को जो भी मिला तेरे सदक़े मिला
रोज़-ए-महशर हमें तुम नहीं भूलना
नातख्वां:
हाफ़िज़ ताहिर क़ादरी और हम्ज़ा क़ादरी