short islamic stories

short islamic stories

 

 

Islamic Stories in Hindi

 

मै पहली नजुर क्‍
जाती इस जमाने में अपसाने, ड्रामे, किस्से और कहानियाँ बड़े शौक से प्रढ़ी
जाती हैं और ये शौक्‌ बिलअमूप हर छोटे बड़े मर्द और औरत में पाया जाता ‘
है, आज कल हर वो तहरीर जिसमें अपूसानवी तर्ज और हिकायती रंग मौजूद
हो, पसंदीदगी की नजूर से देखी जाती है, कौम का यही रूहजान तबओे
इस अग्र का बाइस है के मुल्क के अक्सर रसावल व जरायद अपने अपने
“कहानी नम्बर ” और “अपूसाना नम्बर” शाय करते हैं और अप्साना पसंद
अफ्राद इन्हें हाथों हाथ लेते हैं। है बे ्ः
ये अफ्साने, ड्रामे और आज कल की हिकायात व कहानियाँ ज़्यादा
तर दरोग व कजिब और गैर वाकई बिना पर मुबनी होती हैं, उनकी कोई
हकीकत और असल नहीं होती और ऐसे अपूसाना लिखने वाले उन वजुअई
हिंकायात को “तबै जाद” और अपनी तखूलीक्‌ करार देकर अपने वजुओ व
कजिब को अपना एक शाहकार साबित करते हैं और अपसाना पसंद तबीअतें
उन्हें उस कारनामे पर दादे तहसीन देती हैं और उसे तरक्की पसंद अदब के
नाम से मोसूम करने लगती हैं। गा
किस्से और हिकायात जूरूरी नहीं के झूट ही हों, इस आलम में किस्सों
और सच्ची हिकायात का वजूद भी है, खुद करआने पाक और अहादीसे
शरीफा में भी हिकायात व कसस मौजूद हैं और वो हिकायात व कुसस ऐसे
हैं जिनमें सौ फीसदी सदाकुत है और जो अपनी सदाकृत के बाइस मख्लूक्‌
के लिए मौजिबे रूश्दो हिदायत और वजह दर्से इब्नत हैं। खुदा तआला ने
अपनी सच्ची किताब मजीद में अम्बियाइक्राम अलेहिमअस्सलाम के ईमान
अफ्रोज किस्से और उमम साबिका की सबक आमोजु हिकायात बयान
फ्रमाई हैं और रसूले खुदा सल-लल्लाहों-तआला-अलेह व सललम ने भी
अपने इर्शादाते आलिया में पहली उम्मतों के इब्नत आमोज वाक्रेयात और
सबक आमोज हिकायात सुनाई हैं और इसी तरह बुजुर्गाने दीन के इर्शादात
और उनकी तालीफात में भी इस किस्म की सच्ची हिकायत का वजूद पाया
जाता है मगर मुश्किल ये है के ये सब पुरानी बातें हैं और इस नए दौर में
उन परानी बातों की तरफ तवज्जह्ट नहीं की जाती ऐ काश! मुसलमान आज

9९९06 99 (थ्वा5८शाशश’

 

 

सच्ची हिकायात हिस्सा अव्वल
‘कल के लायानी अफ्सानों और वजुअई और झूटी हिकायात की बजाए अपने
हकीकी अफ्सानों और सच्ची हिंकायात को पढ़ते पढ़ाते तो दिलचस्पी के
अलावा उन्हें दीनी और दुनयवी फ्वायद भी हासिल होते।
मुद्दत से मेर दिल में ये खयाल था के करआन व हदीस और दीगर
इस्लामी लिटरेचर से हकीकी किस्सों और सच्ची हिकायात को जमा करूं
और उन्हें सादा और आम फहेमो तर्ज में कुलमबंद कर के मुसलमानों के
लिए एक ऐसी किताब लिखूं जिसका मुतअल्ला उनके लिए दिलचस्पी भी
पैदा करे और साथ साथ ही उनके लिए सबक व इब्नत पेश करके उनके दीन
व दुनिया की इसलाह भी करे चुनाँचे इसी अपने इरादे के तहेत मैंने सच्ची
हिकायात॑ को जमा करना शुरू कर दिया और क्रआन व हदीस के अलावा
और बहुत सी इस्लामी कुतुब का मुतअल्ला करने के बाद इस सबक आमोज
सिसिले की इब्तिदा कर दी।
मेरे जहेन में ये सिलसिला बड़ा तवील है और इरादा है के मुबारक
सिलसिला को दूर तक ले जाऊं, मैंने इस तालीफ के लिए जो बाब तजवीज

किए हैं वो हस्त्रे जेल हैं:-
पहला बाब तौहीदे बारी
दूसरा बाब सय्यद-उल-अम्बिया हुजर अहमद मुजतबा
हि मोहम्मद मुसतफा सल-लल्लाहो-अलेह
व सलल्‍लम ह
तीसरा बाब अम्बियाऐक्राम अलेहिम-उल-सलाम
चौथा बाब खलफाए राशिदीन रिज॒वान-उल्लाही
तआला अलेहिम अजमईन
पाँचवा बाब सहाबाइक्राम रिज॒वान-उल्लाही तआला
द अलेहिम अजमईन
. छटा बाब अहले बैत अजाम रिज॒वान-उल्लाह
…._ तआला अलेहिम अजमईन
सातवाँ बाब आयम्माइक्राम रहमत-उल्लाही अलेहिम
अजमईन
आठवाँ बाब औलियाइक्राम रहमत-उल्लाही तआला
अलैेहिम अजमईन
नवाँ बाब सलातीने इस्लाम.

दसवाँ बाब मख्तलिफ हिकायात

9९९06 99 (थ्वा5८शाशश’

सच्ची हिकायात द हिस्सा अव्वल

चूँके ये सिलसिला बहुत तबील है इसलिए इस किताब को तीन हिस्सों
पर तकसीम कर दिया है इसका ये पहला हिस्सा जो आपके हाथ में है पहले
चार अबवाब पर मुशतमिल है, इसमें पहला, दूसरा, तीसरा, और चौथा बाब
है और बाकी दूसरे अबवाब इंशाअल्लाह दूसरे हिस्सों में आएँगे इस किताब
के पहले बाब में ऐसी हिकायात का इन्तिखाब है जिनका ताल्लुक “तौहीदे
बारी ” से है और दूर. बाब में उन रिवायात व हिकायात का जिक्र है जिनका
ताल्लुक्‌ हुजर॒ सरवरे आलम सल-लल्लाहो अलेह व सल्लम की जातेग्रामी से
है, उन सच्ची हिकायात व रिवायात से हुजर॒ सल-लल्लाहो अलेह व सल्‍लम
के मरातिब व मदारिज, आपके इख्तियारात व कमालात और आपके उलूम
का पता चलता है और ये बात साबित होती है के हमारे हुजर सल-लल्लाहो
अलेह व सल्‍्लम मालिक व मुख़्तार हैं और दानाऐ ग॒यूब हैं और हर गिज॒ हर
गिज हमारी मिस्ल नहीं हैं, तीसरे बाब में अम्बियाऐक्राम अलेहिम-उल सलाम
के मुतअल्लिक्‌ हिकायात दर्ज हैं जिनसे पता चलता है के अम्बियाऐक्राम की
बहुत बड़ी शानें हैं और अल्लाह तआला ने उन्हें बड़े बड़े इख््तियारात अता
फ्रमाए हैं, चौथे बाब में खल्फाऐं राशिदीन यानी हजरत सिद्दिके अक्बर,
हजूरते उमर फारूक आजुम हजरत उस्मान जलनोरैन और हजरते मौला अली
रिज॒वानउललाही अलेहिम अजमईन के मुतअल्लिक्‌ हिकायात दर्ज हैं जिनसे
इन चार याराने नबी के मरातिब व मदारिज जाहिर होते हैं और पता चलता
है के ये चारों ही अल्लाह के महबूब के महबूब हैं और उनकी मोहब्बत ऐन
ईमान है और उनकी अदावत से ईमान जाता रहता है। इस हिस्से में ये चारों
बाब हैं बाकी के छः अबवाब दूसरे और तीसरे हिस्से में हैं। द

जरूरत है के आज वो मुसलमान जो किस्सों के शौकीन हैं वो झूटी
हिकायात को छोड़ कर उन सच्ची हिकायात को पढ़ें ताके उन के लिए दीनी
तरक्को का सबब हो और वो मुसलमान औरतें जो रातों में बच्चों को झूटी
आज इन सच्ची हिकायात को पढ़ें, याद करें और

ब सच्ची ‘हिकायात सनाएँ ताके बच्चों में

रे एक लव हि सुनाएं ताके बच्चों के दिल में भी दीन

( अबु अलनूर मोहम्मद बशीर )

9९९06 99 (थ्वा]5८शाशश’

सच्ची हिकायात फेहरिस्त 6 हिस्सा अव्वल
फेहरिस्त हिकायात_
| उनवान_[स० | [न० उनवान- [स* |

पहला बाब हु
बजूदे बारी और तौहीद

हम का एक दहरिया से मुनाजरह
हजरत इमाम जअफर
सादिक( र०अ” ) और एक
दहरिया मल्लाह
हि

3 [एक अक्लमंद बुढ़िया
दूसरा बाल
सब्यद-उल-अम्बिया हुजर

अहमद मुजतबा ४
मोहम्मद मुसतफाए सन्‍्अध्सः )

जिब्बाईले अमीन और एक य्र
ते |
28

2
हजरत सिद्दीके अकबर रजी | 3
अल्लाहो अन्ह का ख़्वाब

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

दरख्तों पर हकूमत

दीवाना ऊँट ह
बैत-उल्लाह को कुंजी
गुमशुदा ऊँटनी

कैदी चचा

कबूतर के बच्चे

जन्नत को ऊँटनी

जंगल की हिरनी

34 | एक काफिरा का मकान
शीरख्वार बच्चे का एलाने

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4 4 [4 | 34

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4 च्च्च

ध्ज्

 

 

रात का चोर

भेड़िये की गवाही
खुश अकोदा यअफ़्र
आ | हुजर सब्अन्स०) और
-मौत

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इब्लीस का पता | 3
मुकदा करिल

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ले एक जन्तर मन्तर से इलाज ]
करने वाला
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बालिद को ठेक [कर
बल का काल [
बकती जिया तो
गए अयबाआ #
हजरत जाबिर का मकान हा

और एक हजार मेहमान

|
च्च्यु

5

च्च्च

कौ

आसमान का गिरया
बिलाल का ख़्वाब

43

 

 

 

9०९6 99 (थ्वा]58८शाशश’

सच्ची हिकायात 7 हिस्सा अव्यल

|% | [9 | आतिश कदाऐं नमरूद
_# | | ७ |खलील व जिब्राईल

रसूल अल्लाह स“्ञव्स०) का छा जिन्नाईल की मुशक्कत 80
पैगाम एक मजूसी के नाम बेटे की कर्बानी…

फिरऔन का ख़बाब

ख्वाब को रोटी फिरऔन को बेटी

मूसा अलेहिस्सलाम का मुक्का
मूप्ता अलेहिस्पलाम का तमाचा

 

 

 

(४ | (४ |
फफ

 

 

 

 

 

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73

शाहे रोम का कैदी

5
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हा
हा
हज ४
हा |_& |
ह हि

दरख्त से आवाज
खौफनाक साँप ह
अज्डहा का हमला
जादूगरों की शिकस्त
पानी का अजाब

 

 

ब्ब्ज 3 ञ् #०… | सी. जज

ता हि
2% | हि
4 | ७4 *
+ | ल कि

है| 2!

अब्दुल्लाह बिन मुबारक और | ७7
सय्यदजादा


हदीस का दर्स

47
57

एक वली ओर मोहह्विस
एक मुशायरा

जुए

 

 

फिरऔन की हलाकत
नमक हराम गुलाम

8 | हजरत मूसा अलेहिस्सलाम
और एक बूढ़िया

बनी इग्राईल को गुमराही

तीसरा ब्ाब
अम्बियाइक्राम ( अलेहिस्सलाम )

59 | हजरत आदम अलेहिस्सलाम पे
और शैतान

हजरत आदम अलेहिस्सलाम | श
और जंगली. हिरन ह

 

 

 

 

 

 

 

 

 

8 9

 

 

शव
श्प्य
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कातिल का सुराग

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न्यट। 52
$ | 47
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हे [हे [३ [डै.

खिज्र

नृह अलेहिस्सलाम की कश्ती | 7

तूफाने नूृहू और एक बूढ़िया | 72
3
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8

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७ | ?

| हजरत उजैर अलेहिस्सलाम और | 7
ख़दा की कद्गेत के करिएमे

हक ‘

|_&_

 

 

92

 

 

ठंडा चश्मा
एक अजीमुएशान हकमत |
सुलेमान अलेहिस्सलाम का फैसला

9०९06 099 (थ्वा]5८शाशश’

हजरत इलब्राहीप अलेहिस्सलाम
और चार परिन्‍्दे

खलील व नमरूद का मुनाजरह हज

 

 

| |

 

 

सच्ची हिकायात 8 हिस्सा अव्वल

चौथा बाब

खुलंफा-ए-राशिदीन

 

 

 

 

 

 

 

 

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कै
4 -+४
रे ,
नी
र्ञ
4
श्ध्न

 

 

तेरह सौ साल(/॥0को .उम्र के
का बादशाह

बेसिबाती दुनिया
यूसुफ अलेहिस्सलाम और आईना | ।

 

 

१03

ष्फ
क्ज्ज
2/2| #
पा ।
ब्ब्न्मी
बम
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अंगूठी का नक्श

खुदा की तसदीक |_॥88.
बिलाल की आजादी 459
337 | गजवा-ए-तबूक | 489 |
दिलैर व बहादुर | 40 |
खुत्वा-ए-खिलाफत
पुर असरार खादिम
फिराके महबूब
दीदारे महबूब
बसीयत

अबु उबैदा का ख़्वाब

 

 

जन बन
|| ||
पा जे

 

 

मु
हि
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|

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बादशाह का ख़्वाब

 

 

।200-

कक बन न्न्जे क्न्न्के
प्रा धो थ्या प्ग्प
जग पे कर्ज जे

॥7

्ख
।०8॥
है]

गुमशुदगी

2

जी कस 7 जी दिल
छ्ज 0 ८]

 

 

ज्व्व्यो

१4॥|

मौसम का फल दबदबा-ए-फारूक

 

 

न कप 6 54 8 जज || 45|
०, 2 4 न >, तर ० 88
8 -+ |
हज 44 8 | |
“4 न्जैव
टरि डरा रत |
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हक

दस्ते मसीहा… गैबी आवाज

नजरे ईमान

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4 मं, मै 8 | | मे | |]

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बनने
ष्खा

27 | दुनिया परस्त का अंजाम

 

 

दे

9०९06 99 (थ्वा]58८शाशश’

सच्ची हिकायात द १ | हिस्सा अव्वल

७ हा
हा हनन
घ घर

 

 

 

 

]
मुकहस नकाब पोश

फारूके आजम और एक बह

फारूके आजम और एक बूढ़िया

रसूल अल्लाह( सब्अन्स० ) का

एलाने हक्‌ ।

| 494 | सिद्दीक व फारूक का दुश्मन| 2॥8

 

 

ने नग्न ्न्न्के ््न्फे चने जनक
प्ठा प्छा पा 8. पा
॥ क्न5 ध्र्ज ष्द्छ ्च्ज प्रा

नर 20 6५ | | ब्य ब्स म
ता १ | कक 3 |
# 9), | 39% |
| 4 $, | ‘5ी 8
2 ग | 2 5]
3, ञ् न
[८-7 । 4).

रूअय्यत और कृयामत

॥63 | रोप का एलची

फारूके आजम और एक चोर.
फारूके आजुम की शहादत
॥6 | हजरत उस्मान जुलनूरैन

467 | हथा उस्मान

|]

 

 

 

 

 

 

486

पे ज)
०४] दो बं>

| 68 | उस्मान भूनी सखावत का धनी पाच्चदा बद्ाबतन्र
| 69 / सहाबा इक्राम रिदन्यनुल्लाही
770 | मुबारक हाथ 3479 | आला अलेहिम अजमईन

 

 

 

 

महबब के कदमों में | 223 |

398 | जन्नत 5” खुशब्‌
एक औरत

शहद की मक्खियाँ .

बेनजीर जियाफत
मोहर की गुमशदगी
एक फितने बाज यहूदी

 

 

 

जे
स्व

जन बन ने के जन
4 न] न्ञ्ज च्ज
95] बच | | क्ज तप

हु
| 22 | हजरत कअब की दर्दगाक कहानी | 22

77 । हजरत उस्मान की शहादत

008

अली मुर्तज़ा करमल्लाहो वजह
अबु त्राब
/8 | हैदर कर्रार 208
| ।9 | जिरह की चोरी
अनीब फैसला
82 | आठ रोटियाँ 208

जंगली दर्रिंदा
जिनब्नाईल की तलाश
लड़के की माँ
मुश्किल सवालात

चने
प्र
फ्नि

| 0 |
[20 |
| 22 |

5८धाा९रत छए (_्ात9८क्वा॥र

कर्ज 4 | उनमे ् न.
2 प्य प्छ प्> जि ट्ट प्प्
प्छ् प्ञ्ज प्‌ किन 3 प््ज

20

 

 

32.
पड
पडा

सच्ची हिकायात 40 हिस्सा अव्वल

>> ऋणद जे के
[2७ [दी नहे मुजाहिद
2० [आराबी का घोड़ा
[2७ [लिराली सजा
2७ [सोने की अंगूठे
[७ |

 

 

 

नसरानी पहलवान

जंगल का शेर

शौहर या बेटा !
सुहैब व अम्मार

किला जमीन में घंस गया

 

 

 

 

 

6४8,

 

 

[5 | [8 [8 [8 [8 [8
जज

 

 

 

 

| 2% |
फसतात का किला. [ २७ सरदार हवाजून__
[209 | हा
[220 20 | | 2४2 302
_22। | हुजर सब्अन्स०) की फूफी _29 | 303

सिद्दीके अक्यर( र» ) की बेटियाँ
हजरत मअविजु की बेटी

2५ [नार्वना सहाय
2७ [एक हाजतमंद
हज

असीर रोम
नअत ख़्चानी
खून को अक

| 2% |
हि
[2७ |
[२ |
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पुकक पाती ||
७ व्ुलुकोते आलिया (3७
[28 [इिठत आपज ख़ाव
[2७ [भिों का हमला
/& [गिरती फरमान
2० [शव

 

 

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376

 

 

छटठा बाबर
अहले बैत ओजाम

हे कम ल्‍लाही तआला
अलेदिल अजमईन

प््
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नई जय
4 |% कि 4
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28

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वफा-ए-अहेद

 

 

कुबरा रजे अल्लाहों तआला अह्ा

उम्मुल मोमिनीन हज़रत आयशा
सिद्दीका रजी अल्लाहो अब्हा

9९९06 099 (थ्वा]5८शाशश’

 

 

292

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45 £० मि श्भ
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र्य्न रथ
थे।काद्र

-नः

 

 

सच्ची हिकायात (॥ ह हिस्सा अव्यल

270 । बोहताने अजीम खुताकार को इनाम
गवाहियाँ सखी घराना

 

 

सखावत खून आलूद छुरी

 

 

 

 

प्ज्ज
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रोजा-ए-मेहबूब

 

 

प्यास का इलाज

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2४ ६ || | # ०७
# | + 03
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रजी अल्लाहो अन्हा 3७ । हैबत व शुजाअत
277 | उम्मुल मोमिनीन गैनव बिनते 39 | एक अजीब ख़्वाब
हबश रजी अल्लाहों तआला अहा पर्दापोशी

 

 

रड
ब्ध्थ्
9
47१
ध्गा
श्श्नी

हजरत इमाम हसन[रब्अन) [३

279 | यसरब का बादशाह 3॥0 | इमाम हुसैन और एक बदवी | 357
नबी की बेटी, भतीजी और बीवी! | 33 बूऐ कर्बला

72 | दिलैराना जवाब
282 | रसमे निकाह

जलवा-ए-बराअत

 

 

दि
लि
त््+

नशा

|

जल

न्‍्ञ

्ध्न

कूफियों के खतूत

 

 

शाहजादी को जिन्दगी

जन्नत का जोड़ा

शाही दावत ,

राज की बात

विसाल फातिमा

हज़ख अली और कूफे का लश्कर
किवाला नवैसी

अमल का संदूक

खुश तबई ‘<

ये
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ण्श्य प्ख्ज
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3१9 | जालिम का अंजाम

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इब्ने जियाद का खत

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294 | इम्तिहान नहर फिरात … 375
मसले का जवाब 345 | | 3३१ |कुआँ 377

बरीर हमदानी और इब्मे साद
प्रजलूम सय्यद
सरबो अंबिया| रूअछः ) की आमद

हजरत इमाम हसन रजी
अल्लाहों तआला अन्ह
डेढ़ लाख
अच्छा सवार

श्र

उस

 

 

तप

 

 

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च्च्ज
प््

आह
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298

 

 

9०९06 99 (थ्वा]5८शाशश’

सच्ची हिकायात (2 ,.. हिस्सा अव्वल

धाप्ू–ज। सातवां बाब

 

 

 

 

 

७ आइम्मा इक्राम रिजुवान-उल्लाही
7४ जिशेर ______ [७ | _ तआला अलेहिम अजप्

 

 

 

 

 

33 | इमाम-उल-मुस्लिमीन 42
अब हनीफाएं रन्‍्अ०) –

मुकहस बूढ़ा
शब बेंदार इमाम .

नाखन भर मिटद्री 477

कै

[8 अिल्मकरदार की शहाकत ३७ |

३ री ) 386
अली अकबर की शहादत 388
यतीम_______
ननन्‍्हां शहीद 397

 

 

 

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389
370 | तासीर क्रआन
37। | खौफे कयामत
372 । हमसाया-ए-मोची
एहसान व करम
374 | फिरासत इमाम

37 | इमाम मालिक व इमाम 423
379 । रोशन दान ह

4
ल्‍

आदा हि

 

 

 

शेर का हमला
आखरी दीदार

३43
; 34

 

 

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श्ज्जे |

उम्मुल मोमिनीन का ख़ाब | 3

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था

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349 | उजैर बिन हारून
गिरजें का पादरी 402
ढोल बाजे

गुप्तताख

फरैब का रोना
नक्कारा-ए-खुदा

355 | द्िएक को जामओ मस्जिद
मदीने को वापसी

0

पा

403


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दया

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प्ज पीछे
4 ।: | 98

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359 | खतरनाक असदहा
कीमती लिबास
दीनारों की थेली

हारून अलरशीद और एक आराबी

 

 

4]7

 

 

 

३52 44 432

9९९6 99 (थ्वा]5८शाशश’

सच्ची हिकायात 43 हिस्सा अंव्वंल

कल

 

 

 

 

 

 

 

 

हजरत उबैस करनी( २०० )
मातियों का सौदागर
जिनों में वाज

म्रस्जिद खरीफ का बा कमाल
आतिश परस्त शमऊन

 

 

जैन
8 ||
ब्न्के
|

हत
2,
3५
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ते
|

 

 

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गीबत का बदला
दहरिये से मुनाजरा

422 | यहूदी का परनाला
हबीब अजमी रहम्रत-उल्लाह
राबिया बसरी

चीख
प्ध्ज
3
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छठ

 

 

3
पा

रहबानी
फिरासत
403 विरासत अंबिया

इमाम-उल-मुस्लिमीन हजरत 44
इमाम अहमद बिन हंबला र०% )

खमीरी रोटी
एहत्ामे

427
443
3

429

.।
छत

2 |4 4 है, 4!
५० ||
०4 ||

रूमान-उल-आबेदीन
पैगामे हक

चौपायों का अदब |
जलनून

 

 

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430

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प्प्ज
श्ज्ज

 

 

इल्म

इमाम-उल-मुस्लिमीन हजरत | 46
इमाम मालिक (रू)

इंसान और कात्ता
बायजीद और एक कुत्ता

3 44 । 0 | +४। | 4.
न्ण्न्न ख््ब्न्प ज्ध्य

35 3|3
चर बक खरे कत्ल

२4
शव
ष्द्द
पे

 

 

है
० किस में विद

हिस्सा सोम

बच
||

प्र प् नि
[हक] ध्ञ्य (]

बराऐ नाम मुसलमात्
मुनकर नकौर को जवाब
दौलतमंद और दुरबैश

पुर असरार बुढ़िया

बीमार या तबीब

 

 

 

 

है| |!
3
का
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है लि [हि

 

 

आठवा बाब हर दिल अजीज
औलिया इक्राम रहमत-उल्लाह हारून रशीद को नसीहत
तआला अलेहिम अजमईन बदशाह फकौर के घर 482

9९९06 99 (थ्वा]5८शाशश’

सच्ची हिकायात 44 हिस्सा अव्यल

रक्ल कशफू क्तबाद 7-7

सुलतान मेहमूद दर खरकानी पर

 

 

 

 

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० |
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479

480

री
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वर
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गण
4
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सरवरे आलम सन्भग्स०) और
गौसे आजुम( र०आ० )

|

65
| 449 | एक मुलहिद का जवाब
[५ |

शैतान की मायूसी
बली की बीवी

गौसे आजमए र०आ० ) का इल्म
डाकओं का सरदार. का सरदार

रमजान का चाँद

गौसे आजम की फफी

प्जा

 

 

७|

2]
4 | 4 (4 (4
2५ | +* कम
है. हे
से

बुज्॒गों का इत्म
| 456 | बुज॒र्गों की दुआ

ले

*्ध्न

कम बिडइजुनिल्लाही
चल का सर

बायजीद बसतामी और
समआन का बुत खाना
9 चुड़िया और आंधा सांप
शेर पर हकूमत

या लतीफ

मेहमान या मेजबान
दाना दीवाना

 

 

489

इन्तिकाल मकानी
चिरागाँ
भाई को नसीहत
ख्वाब की ताबीर॒.

92

 

 

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शव -थध
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9

बगदाद का ताज _ | का ताजिर

8]
५४ ४ ५ि 4 >
ष््म्न हज धो च्छ प्ऊ प्र

 

 

हसीन लोंडी की कीमत॑
गुनाह करने का तरीका __ करने का तरीका

9९९6 99 (थ्वा]5८शाशश’

कड़िजिब्िब्विकि
# 4 | /%
| ट! £ है 26 दि;
। से |
५९ सं 4 । (5
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507

सच्ची हिकायात (5 हिस्सा अव्वल

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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का | |

हा हा

हा हु

हा हा

हा हा

38 |

हा ने

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हा नवा बाह्य

ह्त /»|_ खुलफा-ए-सलातीन

हा ५ | [% [सवारी का घोड़ा | |

शो लय | |

हा [& | [४ |

हज ता धछ

पस हरगिज नमीरद आँके दिलिश री ॥ 7 | | 568 |
निंदा शद्‌ बअश्क हा हवा

हल

७ स्शातता 90

[७ | [ऋ.

[9 | भेडियों और बकरियों में सुलह | 9५ | है

हि श्बकता

जज तुम्हारे मुंह से जो निकली वो का ७
बात हो के रही. हा

5 | _$% | [४ | श

हा

का हि

[3 छा हा

की मा हि

| 9 | फि उल्लू की कहानी 58।

 

 

324॥0॥॥ | फए (_ध्ा9८क्वा॥र

सच्ची हिकायात । 46 हिस्सा अव्वल

[ऋ
हा दुश्मन का बअज
दौफाकल 7 सलतबत व पर्वत
श्र का बदला

आलमगीरी अदल बली की कब्र पर
बरसाती नाला

574 | सुलतान आलमगीर और एक | 5०
कफनी लिखने का फायदा
ताजीम व तकरीम

बहरूपिया

हा
ह्ति


दसवा बाब

मुख्तलिफ हिकायात

हा
हज
हज

का

 

 

 

 

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हे दा ध्र्शा च्ख
पा च्न्न्के बनी बनी.

8.

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9०व॥९06 99 (थ्वा]5८शाशशः

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सच्ची हिकायात |

| 628 | रुपों की थेली

| ७8

| ७9 |

७0 |

| ७4 |
[६४2
9 |
| ७4 |

 

 

 

 

गवाह 67


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[७७]
[७०]
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672 | हजरत अबु सईद 585

ध्र्ो पा ध्गे
पथ प्ध्ज प+
3 पल

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[७४ जिम जबाब 7 छ

जा

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22 |

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ण्छ

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| 6५ | हथैली के बाल | ६60 | |__| रहमत-उल्लाह अलेह
62 ६06

हिस्सा चहरम किऋ हि
दसवा बाब हल ॥ फरोश कक
मुख्तलिफ हिकायात दर क्िणय

सफेद साँप €2 दिल की बात
848 | उमरो बिन जाबिर (२«आ ) ४79 | दूरदराज से 692

 

 

8 | & (६

 

 

548 | 68.
हा
७० [खौफनाक वाद ७७]
है ७ | [छिगिय __ 7

 

 

| 652 | बिछड़ों का मिलाप एक राहिब का ख़्वाब
| 653 | आरिफा
554 | ना अहल 670

684 | राहिब के सवालात
_68 [नपृस की मुखालफत
9०९06 99 (थ्वा58८शाशश’

छा
फ्

 

 

सच्ची हिकायात – 48 हिस्सा अव्चल

| 6६६ | बातिनी किला फसाहत व हाजिर जवाबी | 723
587 शैतान

 

 

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3 उ |
०] प्रा प्रा जी

| 699 |

 

 

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ग्र 74

एक लड़के को दानाई.
नोशेरवाँ और एक बूढ़ी औरत
एक
ए्‌ः

 

 

 

 

 

 

है 0.4 |

722 | इसतकलाल हे

सिद्दीके अकबर (र०आ० )

724 | जमा करआन
माफी-उल-अरहाम का इल्म

चोरी

दुनिया की तमसील

आईनूनी या इबादल्लाही

729 | सबके हाजत रवा सलामुन अलेक

730 | हलवान का पहाड़

१4
2

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खजूरें

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खोशा 708 728

732

 

 

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732

 

 

ध्च्च
प्म्ने
प्म्उ

– 69 | गृजुवा-ए-तबूक में
दूध का पियाला
0.

कि
स्ब्उ
बनने
वि

हह।

 

 

732 | जृहरीला सांप

73 | अबु अलमआली की हिंकायत
734 | क॒जीब की हिकायत्त

75 | अबु अब्दुल्लाह मोहम्मद 738
करशी रहमत-उल्लाह अलेह
सच्चा मुसलमान

॥7

ञ्ञ्व
|
ध्ा

बज जज जे
न सं कसम प्र

700

70 | नायब रसूल अल्लाह सल-लल्लाहों | 72
पर तआला अलेह व सलल्‍्लम

7७
| 708.

09

हि
72

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3

शक

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खौफनाक सांप
अमीर व हाकिम
चीस्त दुनिया…
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_?7७ |तीन रूके

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शक

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7399 | सब्कतगीन बाशाह
740
फ्का कालासांप.. सांप

सब्र

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कि । जज जज ञ्ञ्ज
न््के ग्ग्प्के ब्न्मी
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33, 3, [8 || | | |
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जलाल फकोर

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9०९06 99 (थ्वा]5८शाशश’

सच्ची हिकायात

748 | नर्मा व
4

 

 

 

है

शेर शाह सूरी

नूर मोहम्मदी ( सब्अभ्स० )
पैश्वाऐ कुल

दुर्रे यतीम ( सब्अन्स०)
आग को खाई .

रसूले बरहक्‌

755 | दानाऐ गैब

79 | हर गिज नमीरद आँके दिलश | 759
जिन्दा शुद बअश्क

बुजर्गों को दुआ

खुदा की बन्दगी

760 नासहाना कलमात

दिलजोई

हजारों साल की उप्र

763 | अजाबे कब्र

784 | सुलतान को नसीहत सअदी
हजरत हसन बसरी अलेह
अरहप्ा की नसीहत
बादशाह और फकीर

32

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्ऊ ह–‘ 5

753

 

 

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754

॥॥॥॥

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उल्ल

हजरत उमर बिन अब्दुल अजीज | ४७
लाखों सलाम |

पाँचवाँ हिस्सा
बल 3 पक लि कक

 

 

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क्च्य क्ष्ज

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7655 फ्र््व

 

 

766

च्््पू
ञ्ज्ज

5
758 | निज्ञाने मर्दमी
चुगुल खौर पर लानत

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शैतान का अफसोस
एक मकक्‍्बूल बंदी | 7६४8

77

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किया च्ञ्ज ध्च्च जे ञ्ज न |
कि शत त्ज्ज

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शक हनी 5४ धर
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[हे [|

 

 

77 | हक बहक दार रसौद

9०९06 99 (थ्वा]5८शाशश’

संच्ची हिकांयात …. 20 ु 6७0 प्पाएने
चार बातें
ख़्वाहिशे नफ्स
दोनों जहाँ

और “को”

 

 

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स्न
4

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शक
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5]

 

 

2]

 

 

हल

हसन व हुसैन रज़ी अल्लाहो | 883
तंआला अन्हुमा

सिद्दीके अकबर ( र०आ० )

809 | नेक खसलतें तीन सौ साठहें

839

के

 

 

 

वध
2]
्ध

7]
|

मुसाफिर मदीना
अल्लाह के शेर
इल्म की बर्कत
दुआ में एक हाथ
बुजर्गो का फंज 858
845 | भेड़ और शेर
847 | एक नेक बीबी
एक बुजूर्ग

849 | हक गो

ध्ट्र

!

842

+ 4५

डे
[8 प्रा पा
३ कल है किये

 

 

चार मेहबूब

845

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प्ञ्ज प्ज ्ध्

3 प्० (००
|
प््ठ ०2]
ता पा
छ्ख ण्प

 

 

खारजी को जवाब |

&

838

श्र
श्

अजीब सवाल 848

>॥
2 है | 5 8 | 4
सर सं।अं
श्पं रु 5
[|
शव
हि”
शत
>]

 

 

 

प््

च्च्ज्

्च्ज्ज
॥०
ब>
3

848

|
्ध्म
न्फे

5

अदल की बर्कत ह जेल खाना
तलबे सादिक्‌
नरानी ख्ाब

खदा का मेहमान

552

न्ध | 5

7:+ छे ्
प््ज हा | घ््

प््
4
रे

827 | गुलाम खलील ह 853

प््च
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८4|

नसीहत क्‍
हजरत शिबली अलेह अर्रह्मा

खुदा की जमानत
ब्ेनियाजी

््र्ज
प्रो
श्

2 844 लाइलाहा इल-लल्लाह

/2!|

दर दर
प्ज्ज प्छ

नि
4
नजर
[8 [६

छा
हा >स
च्ञ्च

मोहताज 865
अल्लाह की मर्जी 866

पथ | 0०
>| | 2४
(र्ध
बनी
नी

 

 

 

 

827

््य
>>
प््प

8 | पर
पा
प्ग्ज
ध्र्य

850

 

 

| डे

खुदा का खोफ 868
फिक्र इख़्तियारी
चार सवारियाँ
बन्द को खोल

प््वं

0

3

[असतगफार.. |
सल-लल्लाहो अलेह व सल्‍लम
मोहब्बत औलिया

ईसाले सवाब

अदाऐ कर्ज

9
पा
पफ्प

862

983

5
+ 3,
_|


ब्न्न्क फ्ण
दर एफ
कक |
जिम
8 | ्
हे
ष्ण

 

 

834 85

अजजो बेचारगी 870

9०९06 99 (थ्वा]58८शाशश’

865

सच्ची हिकायात ० मी हिस्सा अव्वल

8५ | गाफिल इंसान की हकीकत
सहाबा इक्राम

नेक काम में खर्घ

दुनिया का घर

बुजर्गों की नजर
कब्रिस्तान

904 | माहान अरमनी

गवाही

 

 

 

 

अनानियत

फएछ्छ च्र्ज्ठ
| रे

507॥
9
तय

रब
प्र

जब
।3३|

|

 

 

 

 

ग्रं


0० 09

है

पत्थर में आदमी
नेक नीयती
बुजर्गों का हसद

सदका

तल


सजधथिस
प्रा बी तक

|

कि
3

 

 

(0
है. ।
दो

बुजर्गों की शर्म 876

अर

बुजर्गों का तक॒वा

|

एक बुजुर्ग

एक शहीद

जिन्दा जिन्दा ही हैं
दायाँ हाथ

कल को बात

हजरत उमर की कहानी
नसीहत
नमाज
गुदड़ी में लअल

बढ़ा यहूदी__

दुआ कबूल क्‍यों नहीं होती
अबु अल्फा

(0

5
जे
च्च्जि

>.]
५्थ

ण्प प्प्य फ््य प्र ८50 छ्च छ9 प्ज प्फ
जज 9 । ञ्ज | शव शव जज श्् पं

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हिंद | हि हि[8 [४ हि है हि || [8 8 8

हजरत सईद बिन जबीर व | 883

886

हज्जाज

चिज हि
य्ष्य
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2 | 9
न्य|
-॥

ठप
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१]

887

 

 

मक्बूल लकड़हाश
कमाल तकुवा

१23 | बड़ा दरवाजा
दिल और जुबान

नसीहत
रहम दिली

है

 

 

आराईश

ए्र्छ ण्ए छ०
ध्द

894

सबसे ज़्यादा मौअस्जिज

५५ | जहरीला फौड़ा

पट

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दुनिया की हैसियत

896.

आटे में मिलावट करने वाले का अंग

9९९6 9ए (थ्वा]5८शाशश’

हि

फारूके आजुम( र०अ० ) और
एक चोर

कु हा
हज हनन
है
| 94 चालाक औरत | 934 |
| %५ |हसद व रश्क | 9४ |

 

 

 

 

 

927

 

 

9९९06 99 (थ्वा5८शाशश’

सच्ची हिकायात 23 जिस्मिल्लारह्मानिरहींम हिस्सा । अव्बल

नहमदुह्दू व नुसल्ली अला -> क नसलली अला रसुलीहिलकरीम न,
पहला बाब:
बजूदे बारी और तौहीद
हिस्सा अव्वल

लो काना फीहिमअआ आलिहातन इल्‍ललाहू लफुसादता |
हिकायत नम्बर 0) हजरत इमाम आजमए र०्आ० )
का एक दहरिया से मुनाजरह

हमारे इमाम हजरत इमामे आजूम रजीअल्लाहो अन्ह का एक दहरिया,
खुदा की हस्ती के मुनकिर से मुनाजरा मुक्रर हुआ और मोजुओ मुनाजूरां
यही मसला था के आलम का कोई खालिक है या नहीं? इस अहम मसले
पर मुनाजूरा और फिर इतने बड़े इमाम से चुनाँचे मैदाने मुनाजरा में दोस्त
दुश्मन सभी जमा हो गए मगर हजरते इमाम आजूम वक्ते मुक्ररह से बहुत
देर के बाद मजलिस में तशरीफ्‌ लाए, दहरिया ने पूछा के आपने इतनी देर
क्यों लगाई? आपने फ्रमाया के अगर मैं इसका जवाब ये दूं के मैं एक जंगल
की तरफ निकल गया था वहाँ एक अजीब वाकेया नजूरा आया जिसको
देखकर में हैरत में आकर वहीं खड़ा हो गया और वो बाकेया ये था के दरया
के किनारे एक दरख़्त था, देखते ही देखते वो दरख़्त खुद ब खुद कट कर
जमीन पर गिर पड़ा फिर खुद उसके तख़ते तैयार हुए फिर उन तख्तों की खुद
ब खुद एक कश्ती तैयार हुई और खुद ब खुद ही दरया में चली गई और
फिर खुद ब खुद ही वो दरया के इस तरफ्‌ के मुसाफिरों को उस तरफ्‌ और
उस तरफ के मुसाफिरों को इस तरंफ्‌ लाने और ले जाने लगी, फिर हर एक
सवारी से खुद ही किराया भी वसूल करती थी,

तो बताओ तुम मेरी इस बात पर यकीन कर लोगे?

दहरिया ने ये सुन कर एक कुहेकृहा लगाया और कहा, आप जैसा बुजुर्ग
और इमाम ऐसा झूट बोले तो तआज्जुब है, भला ये काम क़हीं खुद ब खुद
हो सकते हैं? जब तक कोई करने वाला ना हो किसी तरह नहीं हो सकते।

हजरते इमाम आजम ने फ्रमाया के ये तो कुछ भी काम नहीं हैं तुम्हारे
नजदीक तो उससे भी ज़्यादा बड़े बड़े आलीशान कांम खुद ब खेद बगैंर

9०९06 099 (थ्वा5८शाशश’

सच्ची हिकायात स्‍4 हिस्सा अव्वल
किसी करने वाले के तैयार होते हैं, ये जुमीन, ये आसमान, ये चाँद, ये सूरज,
ये सितारे, ये बागात, ये सदहा किस्म के रंगीन फूल और शीरीं फल ये पहाड़,
ये चौपाए, ये इंसान, और ये सारी खुदाई बगैर बनाने वाले के तैयार हो गई,
अगर एक कश्ती का बगैर किसी बनाने वाले के खुद ब खुद बन जाना झूट
है तो सारे जहान का बगैर बनाने वाले के बन जाना इससे भी ज़्यादा झूट है।
दहरिया आपकी तकरीर सुन कर दम ब खुद हैरत में आ गया और
फौरन अपने अकीदे से तायब होकर मुसलमान हो गया। ( तफ़्सीर कबीर
सफा 22 जिल्द 4)
. सबक्‌ुः- इस कायनात का यकीनन एक खालिक्‌ है जिसका नाम
अल्लाह हैं और वजूदे बारी का इंकार अक्ल के भी खिलाफ है।

विकार

सादिक( र०आ० ) और एक दहरिया मल्लाह
खुदा की हस्ती के एक मुनकिर की जो मललाह था हजूरत इमाम जाफर
सादिक रजीअल्लाहो अच्ह से गुफ्तगू हुई , वो मल्‍लाह कहता था के खुदा कोई
नहीं( मआज अल्लाह! ) हजरत इमाम जाफर सादिक्‌ रजीअल्लाहो अन्ह ने
उससे फ्रमया तुम जहाज रान हो, ये तो बताओ कभी समुद्री तूफान से भी
तुम्हें साबिका पड़ा? वो बोला हाँ! मुझे अच्छी तरह याद है के एक मर्तबा
समुद्र के सख्त तूफान में मेरा जहाज फंस गया था, हजरत इमाम ने फरमाया
फिर कया हुआ? वो बोला, मेरा जहाज गृर्क हो गया और सब लोग जो उस
पर सवार थे डूब कर हलाक हो गए, आपने पूछा और तुम कैसे बच गए?
बो बोला मेरे हाथ जहाज का एक तख्ता आ गया, मैं उसके सहारे तेरता हुआ
साहिल के कुछ क्रीब पहुँच गया मगर अभी साहिल दूर ही था के वो तख़्ता
भी हाथ से छूट गया, फिर मैंने खुद ही कोशिश शुरू कर दी और हाथ पैर.
मार कर किसी ना किसी तरह किनारे आ लगा, हजरत इमाम जाफ्र सादिक
रजी अल्लाहो अन्ह फ्रमाने लगे, लो अब सुनो!
हर तुम अपने जहाजु पर सवार थे तो तुम्हें अपने जहाज प्र ऐतमाद
व भरोसा था के ये जहाज पार लगा देगा और जब वो डूब गया तो फिर
तुम्हारा ऐतमाद व भरोसा उस तख़्ते पर रहा जो इत्तेफाकुन तुम्हारे हाथ लग
गया था मगर जब वो भी तुम्हारे हाथ से छूट गया तो अब सोच कर बताओ
के इस बेसहारा वक्त और बेचारगी के आलम में भी क्‍या तुम्हें ये उम्मीद थी

9९९06 99 (थ्वा]5८शाशश’

सच्ची हिकायात 25 हिस्सा अव्यल
के अब भी कोई बचाना चाहे तो मैं बच्च सकता हूँ? वो बोला हाँ! ये उम्मीद
तो थी, हजरत ने फ्रमाया मगर वो उम्मीद थी किससे के कौन बचा सकता
है? अब वो दहरिया खामोश हो गया और आपने फ्रमया खूब याद रखो उस
बेचारगी के आलम में तुम्हें जिस जात पर उम्मीद थी वही खुदा है और उसी
ने तुम्हें बचा लिया था, मल्लाह ये सुन कर होश में आ गया और इस्लाम ले
आया। ( तफ़्सीर कबीर सफा 22/ जिल्द )

सबक: खुदा है और यक्रीनन है और मुसीबत के वक्त गैर इख़्तियारी
तौर पर भी खुदा की तरफ खयाल जाता है गोया खुदा की हस्ती का इक्रार
फिन्नी चीज है। ‘

हिकायात नम्बर 0) एक अक्लमंद बुढ़िया

एक आलिम ने एक बुढ़िया को चर्खा कातते देख कर फ्रमाया के
बुढ़िया! सारी उम्र चर्खा ही काता या कुछ अपने खुदा की भी पहचान की?
बुढ़िया ने जवाब दिया के बेटा सब कुछ इसी चर्खे में देख लिया, फ्रमाया!
बड़ी बी! ये तो बताओ के खुदा मौजूद है या नहीं? बुढ़िया ने जवाब दिया
के हाँ हर घड़ी और रात दिन हर वक्त खुदा मौजूद है, आलिम ने फ्रमाया
मगर इसकी दलील? बुढ़िया बोली, दलील ये मेरा चर्खा, आलिम ने पूछा
ये कैसे? वो बोली वो ऐसे के जब तक मैं इस चर्खे को चलाती रहती हूँ ये
बराबर चलता रहता है और जब मैं इसे छोड़ देती हूँ तब ये ठहर जाता है
तो जब इस छोटे से चर्खे को हर वक़्त चलाने वाले की जरूरत है तो जमीन
व आसमान, चाँद सूरज के इतने बड़े चर्खो को किस तरह चलाने वाले की
जरूरत ना होगी? पस जिस तरह जमीन व आसमान के अर्खें को एक चलाने
वाला चाहिए जब तक वो चलाता रहेगा ये सब चर्खे चलते रहेंगे और जब
वो छोड़ देगा तो ये ठहर जाऐंगे मगर हम ने कभी जुमीम ब आसमान, चाँद
सूरज को ठहरे नहीं देखा तो जान लिया के उनका चलने वाला हर घड़ी
मौजूद है। मौलवी साहब ने सवाल किया, अच्छा ये बताओ के आसमान
व जमीन का चर्खा चलाने वाला एक है या दो? बुढ़िया ने जवाब दिया के
एक है और इस दावे की दलील भी यही मेरा चर्खा है क्‍यों के-जब इस चर्खे
को मैं अपनी मर्जी से एक तरफ्‌ को चलाती हूँ ये चर्खा मेरी मर्जी से एक
ही तरफ्‌ को चलता है अगर कोई दूसरी चलाने वाली भी होती फिर या तो
वो मेरी मददगार होकर मेरी मर्जी के मुताबिक्‌ चर्खा चलाती तब तो चर्खा
की रफ्तार तेज हो जाती और इस चर्खें की रफ़्तार में फर्क आकंर नतीजा

324॥0॥ | छ9 (_ध्ा9८क्वा॥र

सच्ची हिकायात 26 .’ हिस्सा अव्वल
हासिल ना होता और अगर वो मेरी मर्जी के खिलाफ और मेरे चलाने की
मुखालिफ जहेत पर चलाती तो ये चर्खा चलने से ठहर जाता या टूट जाता
मगर ऐसा नहीं होता इस वजह से के कोई दूसरी चलाने वाली नहीं है इसी
तरह आसमान व जुमीन का चलाने वाला अगर कोई दूसरा होता तो जुरूर
आसमानी चर्खा की रफ़्तार तेज होकर दिन रात के निजाम में फर्क आ जाता
या चलने से ठहर जाता या टूट जाता जब ऐसा नहीं है तो जरूर आसमान व
जमीन के चर्खे को चलाने वाला एक ही है। ( सीरत-उल-सालेहीन स०:3)
सबक्‌ः- दुनिया की हर चीज अपने खालिक्‌ के वजूद और उसकी
यक्‍ताई पर शाहिद है मगर अक्ले सलीम दरकार है। ब

दूसरा बाब
सय्यद-उल-अम्बिया हुजर अहमद मुजतबा
मोहम्मद मुसतफाएं सब्अग्स* )

वमा अरसल्नाकाइल्‍ला रहमतल-लिलआलमगीन

हिकायत नम्बर ७) जिब्राईले अमीन और एक
नूरानी तारा

एक मर्तबा हुजर॒ सल-लललाहो अलेह व सलल्‍लम ने हजरत जिब्राईले
अमीन अलेहिस्सलाम से दरयाफ्त फ्रमाया के ऐ जिन्नाईल तुम्हारी उम्र कितनी
है? तो जिब्नाईल ने अर्ज किया हुजर मुझे कुछ खबर नहीं हाँ इतना जानता
हूँ के चौथे हिजाब में एक नूरानी तारा सत्तर हजार बरस के बाद चमकता
था, मैंने उसे बहत्तर हज़ार मर्तबा चमकते देखा है, हुजर अलेहिस्सलाम ने
ये सुनकर फ्रमाया व इज्ज़ती रब्बी अना जालिकल कोकब मेरे रब की
इज्जत की कसम! मैं ही वो नूरानी तारा हूँ। ( रूह-उल-बयान सफा 9#
जिल्द ) क्‍ ;

सबक्‌ः- हमारे हुलर॒ सल-लल्लाहो अलेह व सल्‍लम कायनात की
हर चौज से पहले पैदा फ्रमाए गए हैं और आपका नूरे पाक उस वक्त भी
था जब के ना कोई फरिश्ता था ना कोई बशर ना जमीन थी ना आसमातर
और ना कोई और शै। फ्सल-लल्लाहो’ अलेह व सलल्‍लम।

9०९06 99 (थ्वा5८शाशश’

सच्ची हिकायात क्‍ ्थ ््ि हिस्सा अव्वल
हिकायत नम्बर ७) यमन का बादशाह

किताब-उल-मुसतजुरफ और हज्जतुल्लाह अली अलआलमीन और
तारीखे इल्ले असाकर में है के हुजर॒ सल-लल्लाहो अलेह व सल्‍लम से एक
हजार साल पैश्तर यमन का बादशा तुब्बओ अव्वल हमेरी था एक मर्तबा वो
अपनी सल्तनत के दौरे को निकला, बारह हजार आलिम और हकीम और
एक लाख बत्तीस हजार सवार और एक लाख तेरह हजार पियादे अपने
हमराह लिए और इस शान से निकला के जहाँ भी पहुँचता उसकी शान व
शौकते शाही देखकर मख्लूके खुदा चारों तरफ से नजारे को जमा हो जाती
थी, ये बादशाह जब दौरा करता हुआ मक्का पहुँचा तो अहले मक्का से कोई
उसे देखने ना आया, बादशा हैरान हुआ और अपने वजीरे आजम से इसकी
वजह पूछी तो उसने बताया के इस शहर में एक घर है जिसे बैत-उल्लाह
कहते हैं, उसकी और उसके खादिमों की जो यहाँ के बाशिन्दे हैं तमाम लोग
बेहद तअजीम करते हैं और जितना आपका लश्कर है उससे कहीं ज़्यादा दूर
और नजदीक के लोग उस घर की जियारत को आते हैं और यहाँ के बाशिन्दों
की खिदमत करके चले जाते हैं, फिर आपका लश्कर उनके खयाल में क्‍यों
आए, ये सुन कर बादशाह को गस्सा आया और कसम खा कर कहने लगा
के मैं उस घर को खुदवा दूंगा और यहाँ के बाशिन्दों को कृत्ल करवाऊँगा,
ये कहना था के बादशा के नाक, मुंह और आँखों से खून बहना शुरू हो गया
और ऐसा बदबूदार माद्दा बहने लगा के उसके पास बैठने की भी किसी को
ताक॒त ना रही, इस मर्ज का इलाज किया गया मगर अफाका-ना हुआ शाम
के वक्त बादशा के हमराही उलमा में से एक आलिम रब्बानी तशरीफ लाए
और नब्जु देख कर फ्रमाया, मर्ज आसमानी है और इलाज जमीन का हो रहा
है, ऐ बादशाह! आपने अगर कोई बुरी नीयत की है तो फौरन उससे तौबा
कोजिए, बादशाह ने दिल ही दिल में बेत-उल्लाह शरीफ और खद्दामे कअबा
के मुतअल्लिक्‌ अपने इरादे से तौबा की , तौबा करते ही उसका वो खून और
माद्दा बहना बन्द हो गया और फिर सेहत की खुशी में उसने ह#(-उल्लाह
शरीफ को रेशमी गिलाफ चढ़ाया और शहर के हंर बशिन्दे को सात सात
अशर्फी और सात सात रेशमी जोड़े नज् किए।

फिर यहाँ से चल कर जब मदीना मुनव्वरह पहुँचा तो हमराही उल्पां ने
जो कृतुब समावियां के आंलिम थे वहाँ की मिट्ी को सूंघा और कंकरियों को
देखा और नबी आखिर-उज़्जमाँ की हिज़तगाह की जो अलामतें उन्होंने पंढी

9९९06 99 (थ्वा]5८शाा]श’

सच्ची हिकायात 28 अव्यत ।
थीं, उनके मुताबिकु उस सरजमीन को पाया तो बाहम अहेद कर लिया के हर

यहाँ ही मर जाएँगे मगर इस सर जमीन को ना छोड़ेंगे, अगर हमारी किस्पो
ने यावरी की तो कभी ना कभी जब नबी आखिर-उज्जमो सल-लल्लाहे
अलेह व सल्‍लम यहाँ तशरीफ्‌ लायेंगे हमें भी जियारत का शर्फ हासिल है
जाएगा, वरना हमारी क॒ब्रों पर तो जरूर ही कभी ना कभी उनको जूतियो
की मुकृदस खाक उड़कर पड़ जाएगी जो हमारी निजात के लिए काफी है।
ये सुनकर बादशाह ने उन आलिमों के वास्ते चार सौ मकान
और इस बड़े आलिमे रब्बानी के मकान पास हुजर सल-लल्लाहो अलेह 4
सललम की खातिर एक दो मंजिला उम्दा मकान तैयार कराया और वसीयत
करं दी के जब आप तशरीफ्‌ लायें तो ये मकान आपकी अरामगाह होगी
और उन चार सौ उल्मा की काफी माली इम्दाद भी की और कहा, तुप
हमेशा यहीं रहो और फिर इस बड़े आलिमे रब्बानी को एक खत लिख दिया
और कहा के मेरा ये खत इस नबी आखिर-उज्जमाँ सल-लल्लाहो अलेह व
सलल्‍लम की खिदमते अक्दस में पेश कर देना और अगर जिन्दगी भर तुमें
सल-लल्लाहो अलेह व सलल्‍लम की ज़्यारत का मौका ना मिले तो अपनी
औलाद को बसीयत कर देना के नसस्‍लन बाद नस्ल मेरा ये खृत महेफज्‌
हत्ता के सरकारे अब्दक्रार सल-लल्लाहो अलेह व सल्‍लम की खिदमत में
पेश किया जाए, ये कहकर बादशाह वहाँ से चल दिया।

वो खत नबी करीम सल-लल्लाहो अलेह व सल्‍लम की खिदमत में एक
हजार साल बाद पेश हुआ कैसे हुआ और खूत में क्‍या लिखा था? सुनिए
और अजूमते मुसतफा सल-लल्लाहो अलेह व सलल्‍लम का एत्राफ फ्रमाईए,
खुत का मजमून ये था:

( तर्जुमह )“कमतरीन मख्लूकू तबओ अव्वल हमेरी की तरफ से,
शफीअ-उलमुजूुनबीन सय्यद-उलमुर्सलीन मोहम्मद रसूल अल्लाह
सल-लल्लाहो व सल्‍लम अम्मा बाद: ऐ अल्लाह के हबीब मैं आप पर ईमान
लाता हूँ और जो किताब आप पर नाजिल होगी उस पर ईमान लाता हूँ और
आपके दीन पर हूँ, पस अगर मुझे आपकी ज़्यारत का मौका मिल गया तो |
बहुत अच्छा व गुनीमत और अगर मैं आपकी ज़्यारत ना कर सका तो मेरी |
शफाअत फ्रमाना और कयामत के रोज मुझे फ्रामोश ना करना, मैं आपकी
पहली उम्मत में से हूँ और आपके साथ आपकी आमद से पहले ही बैत करता.
हूँ, मैं गवाही देता हूँ के अल्लाह एक है और आप उसके सच्चे रसूल हैं।”

शाहे यमन का ये खत नसस्‍लन बाद नस्ल उन चार सौ उल्मा के अन्दर

9९606 099 (थ्वा58८शाशश’

सच्ची हिकायात 29 हिस्सा अव्वल
हर्जुजान की हैसियत से महेफूज चला आया यहाँ तक के एक हजार साल
का अर्सा गुजर गया, उन उल्मा की औलाद इस कसरत से बढ़ी के मदीने की
आबादी में कई गुना इजाफा हो गया और ये खत दस्त ब दस्त मओ वसीयत
के उस बड़े आलिमे रब्बानी की औलाद में से हजरत अबु अय्युब अनसारी
रजी अल्लाहो अन्ह के पास पहुँचा और आपने वो खत अपने गूलामे खास
अबु लैला की तहवील में रखा और जब हुज॒र सल-लल्लाहो अलेह व सल्‍लम
मक्का-ए-मोअज्जुमा से हिज़त फ्रमा कर मदीना मुनव्वरह पहुँचे और
मदीना मुनव्वरह की अलविदाई घाटी सनियात की घाटिय६ों से आपकी ऊँटनी
नमूदार हुई और मदीने के खुश नसीब लोग महेबूबे खुदा का इस्तक्‌बाल करने
को जूक दर जूक आ रहे थे और कोई अपने मकानों का सजा रहा था तो कोई
गलियों और सड़कों को साफ कर रहा था कोई दावत का इन्तेजाम कर रहा
था और सब यही इसरार कर रहे थे के हुजर॒ सल-लल्लाहो अलेह व सल्‍लम
मेरे घर तशरीफ फरमा हों। हुजर सल-लल्लाहो अलेह व सल्लम ने फरमाया
के मेरी ऊँटनी की नकेल छोड़ दो जिस घर में ये ठहरेगी और बैठ जाएगी
वही मेरी कुयामंगाह होगी, चुनाँचे जो दो मंजिला मकान शाहे यमन तबओ
ने हुजूर की खातिर बनवाया था वो उस वक्त हजूरत अबु अय्युब अनसारी
रजी अल्लाहो अन्ह की तहवील में था, उसी-में हुजर॒ सल-लल्लाहो अलेह व
सललम की ऊँटनी जाकर ठहर गई। लोगों ने अबु लैला को भेजा के जाओ
हुजूर को शाहे यमन तबओ का खत दे आओ जब अबु लैला हाजिर हुआ तो
हुजूर ने उसे देखते ही फ्रमाया तू अबु लैला है? ये सुनकर अबु लैला हैरान
हो गया हुजर ने फिर फ्रमाया, मैं मोहम्मद रसूल अल्लाह हूँ, शाहे यमन का
जो मेरा खत तुम्हारे पास है लाओ वो मुझे दो चुनाँचे अबु लैला ने वो खत
दिया और और हुजर ने पढ़ कर फ्रमाया, सालेह भाई तबओ को आफूरी व
शाबास है। ( मेजान-उल-दयान सफा 47)

हे सबके :- हमारे हुजर सल-लल्लाहो अलेह व सल्‍लम का हर जमाने
में चर्चा रहा और खुश किस्मत अफ्राद ने हर दौर में हुजर से फेज पाया और
मोहम्मद सल-लल्लाहो अलेह व सललम अगली पिछली तमाम बातें जानते हैं
और ये भी मालूम हुआ के हुजर सल-लल्लाहो अलेह व सल्‍लम की आमद
आमद की खुशी में कमानात और बाजारों को सजाना और मुजुय्यन करना
सहाबाइक्राम की सुन्नत है, फिर आज अगर हुजर की आमद की खुशी में
बाजारों को सजाया जाए घरों को मुजृय्यन किया जाए और जलूस निकाला
जाए तो उसे बिदअत कहने वाला खूद क्‍यों बिदअती ना होगा।

9९९06 99 (थ्वा5८शाशश’

सच्ची हिकायात कक हिस्सा अव्वल

30
हिकायत नम्बर ७ हजरत सिद्दीके अक्बर रजी
अल्लाहो अन्ह का ख़्वाब

हजरत सिद्दीके अक्कर रजी अल्लाहो अन्ह कब्ले अज॒ इस्लाम एक
बहुत बड़े ताजिर थे, आप तिजारत के सिलसिले में मुल्के शाम में तशरीफ्‌
फ्रमा थे के एक रात ख़्वाब में देखा के चाँद और सूरज आसमान से उतर
कर उनकी गोद में आ पड़े हैं, हजरते सिद्दीके अक्बर रजी अल्लाहो अन्ह
ने अपने हाथ से चाँद और सूरज को पकड़ कर अपने सीने से लगाया और
उन्हें अपनी चादर के अन्दर कर लिया सुबह उठे तो एक इसाई राहिब के
पास पहुँचे और उससे इस ख़्वाब की ताबीर पूछी, राहिब ने पूछ आप कोन
हैं? आपने फ्रमाया में अबु बक्र हूँ और मक्का का रहने वाला हूँ राहिब ने
पूछा कौन से कुबीले से हैं आप? फ्रमाया, बनू हाशिम से, और जूरियाऐ
मआश क्या है? फरमाया तिजारत! राहिब ने कहा तो फिर गौर से सुन लो
नबी आखिर-उज्जमाँ हजरते मोहम्मद रसूल अल्लाह सल-लल्लाहो अलेह
व सल्‍लम तशरीफ ले आए हैं वो भी इसी कबीले बनी हाशिम से हैं और वो
आख़री नबी हैं और अगर वो ना होते तो खुदाऐे तआला जमीन व आसमान
को पैदा ना फरमाता, वो अव्वलीन व आखरीन के सरदार हैं और ऐ अबु
बक्र! तुम उसके दीन में शामिल होगे और उसके वजीर और उसके बाद
उसके खलीफा बनोगे ये है तुम्हारे ख़्वाब की ताबीर और ये भी सुन लो मेंने
उस पाक नबी की तारीफ व नाअत तौरात व इंजील में पढ़ी है और मैं उस
पर ईमान ला चुका हूँ और मुसलमान हूँ लेकिन इसाईयों के खौफ से अपने
ईमान का इजुहार नहीं किया। हजुरते सिद्दीक्‌ अकबर रजी अल्लाहो अन्ह ने
जब अपने ख़्वाब की ये ताबीर सुनी तो इश्के रसूल का जज़्बा बैदार हुआ और
आप फौरन मक्का मोअज्ज्मा में वापस आए और हुजर की तलाश करके
बारगाहे रिसालत में हाजिर हुए और दीदारे पुर अनवार से अपनी आँखों को
ठंडा किया। हुज॒र ने फ्रमाया, अबु बक्र! तुम आ गए, लो अब जल्दी करो
और दीनें हक्‌ में दाखिल हो जाओ। सिद्दीके अकबर ने अर्ज किया बहुत अच्छा
हुजूर! मगर कोई मौजजा तो दिखाईये। हुजूर ने फरमाया, वो ख़्वाब जो शाम
में देख कर आए हो और उसकी तांबीर जो उस राहिब से सुनकर आए हो
मेरा ही तो मौजजा है, सिद्दीके अक्बर ने ये सुन कर अर्ज किया : सद्क्ती
बा रसूलअल्लाही/ अगा अशहदअन्नाका रसूलअल्लाह सच फ्रमाया,
अल्लाह के रसूल आपने और मैं गवाही देता हूँ के आप वाकई अल्लाह

9९३९6 99 (थ्वा5८शाशश’

सच्ची हिकायाता._/ ३ हिस्सा अव्वल
सच्चे रसूल हैं (जामओ अलमोजजात सफा 4) क्‍ द
सबक्‌ः- हजूरत अबु बक्र सिद्दीक्‌ रजी अल्लाहो अन्ह हुजर

सल-लल्लाहा तआला व सलल्‍लम के वजीर और खलीफा बरहक्‌ हैं
हमारे हुज॒र॒ सल-लल्लाहो अलेह व सललम से कोई बात छुपी नहीं रहती आप
दानाऐ गयूब हैं और ये भी मालूम हुआ के तमाम मख़्लूक्‌ हमारे हुज्र के ही
सदके में पेदा की गईं है अगर हुज॒र ना होते तो कुछ ना होता!

बोजोनाथेवो कुछ ना था, वो जो ना हों तो कुछ ना ही!

जान हैं वो जहान की, जान है तो जहान हैं

हिकायत नम्बर) इबलीस का पोता

बेहेकी में अमीर-उल-मोमिनीन हजरते उमर फारूक्‌ू रजी अल्लाहो
अन्ह से रिवायत है के एक रोज हम हुज॒र॒ सल-लल्लाहो अलेह व सलल्‍्लम
के हमराह तहामा की पहाड़ी पर बैठे थे के अचानक एक बूढ़ा हाथ में असा
लिए हुए हुज॒र रसूल-उले-सकलेन सय्यद-उल-अम्बिया सल-लल्लाहो
तअला अलेह व सल्‍लम के सामने हाजिर हुआ और सलाम अर्ज किया, हुज॒र
ने जवाब दिया और फरमाया, उसकी आवाज जिनों की सी है, फिर आपने
उससे दरयाफ्त किया तू कौन है? उसने अर्ज किया मैं जिन्न हूँ मेरा नाम हामा
है, बेटा हेम का और हेम बेटा लाकीस का और लाकीस बेटा इबलीस का है,
हुज॒र ने फ्रमाया तो गोया तेरे और इबलीस के दरमियान सिर्फ दो पुछतें हैं,
फिर फ्रमाया अच्छा ये बताओ तुम्हारी उम्र कितनी है? उसने कहा या रसूल
अल्लाह! जितनी उप्र दुनिया की है उतनी ही मेरी है कुछ थोड़ी सी कम है,
हुजर जिन दिनों काबील ने हाबील को कत्ल किया था उस वक्त मैं कई बरस
का बच्चा ही था मगर बात समझता था, पहाड़ों में दौड़ता फिरता था और
लोगों का खाना व गलला चोरी कर लिया करता था और लोगों के दिलों में
वसवसे भी डाल लेता था के वो अपने ख़वीश व अक्रबअ से बदसलूकी करें।

हुजर ने फ्रमाया: तब तो तुम बहुत बुरे हो, उसने अर्ज की हुजर
मुझे मलामत ना फ्रमाईये इसलिए के अब मैं हुज॒र की खिदमत में तोबा
करने हाजिर हुआ हूँ, या रसूल अल्लाह! मैंने हजरते नूह अलेहिस्सलाम से
मुलाकात की है और एक साल तक उनके साथ उनकी मस्जिद में रहा हूँ,
उससे पहले मैं उनकी बारगाह में भी तौबा कर चुका हूँ, हजरते हूद, हजरते
याकूब और हजरते यूसुफ अलेहिस्सलाम की सोहबतों में भी रह चुका हूँ
और उन से तौरात सीखी है और उनका सलाम हजरत ईसा अलेहिस्सलाम को

9९९06 99 (थ्वा98८शाशश’

 

 

हिकायात 32 क्‍ हिस्सा अब
आजा था और ऐ नबियों के सरदार ईसा अलेहिस्सलाम ने फ्रमाया था।
अंगर तू मोहम्मद रसूल अल्लाह सल-लल्लाहो तआला अलेह व सललम है
मुलाकात करे तो मेरा सलाम उनको पहुँचाना , सो हुजूर! अब मैं इस अमान
से सबुकदोश होने को हाजिर हुआ हूँ और ये भी आरेजू है के आप अपन
जबाने हक तर्जुमान से मुझे कुछ कलाम अल्लाह तलीम फ्रमाईये, हज
अलेहिस्सलाम ने उसे सूरह मुरसलात, सूरह अम्मायतासअलून, अख़्लास आई
मऊजतीन और इजा अश्शम्स तालीम फ्रमायीं और ये भी फरमाया के
हामा! जिस वक्त तुम्हें कोई अहेतियाज हो फिर मेरे पास आ जाना और हु
से मुलाकात ना छोड़ना। न |
हजरते उमर रजी अल्लाहो अन्ह फरमाते हैं हुज॒र अलेहिस्सलाम ने वे
बिसाल फ्रमाया लेकिन हामा की बाबत फिर कुछ ना फ्रमाया, खुदा जाने
हामा अब भी जिन्दा है या मर गया है ( खुलासत-उल-तफासीर सफा ॥7)
सबकुः- हमारे हुजर॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्ल॥
रसूल-उल-सकूलेन और रसूल अलकुल हैं और आपकी बारगाहे आलिय

जिन्नो इन्स की मरजओ है। द
हिकायत नम्बर ७ मुकृदस कातिल

मक्का मोअज्जमा में एक काफिर वलीद नामी रहता था, उसका एक
सोने का बुत था जिसे वो पूजा करता था एक दिन उस बुत में हरकत पैदा हु
और वो बोलने लगा, उस बुत ने कहा। “लोगो! मोहम्मद अल्लाह का रसूल
नहीं है, उसकी हर गिजु तसदीक्‌ ना करना।” ( मआजू अल्लाह ) बलीद बढ़
खुश हुआ और बाहर निकल कर अपने दोस्तों से कहा, मुबारकबाद! आज
मेरा मअबूद बोला है और साफ साफ उसने कहा है के मोहम्मद अल्लाह का
रसूल नहीं है, ये सुनकर लोग उसके घर आए तो देखा के वाकई उसका बुर
ये जुमले दोहरा रहा है, वो लोग भी बहुत खुश हुए और दूसरे दिन एक आए
एलान के जूरिये बलीद के घर में एक बहुत बड़ा इजतमअ हो गया
उस दिन भी वो लोग बुत के मुंह से वही जुमला सुनें, जब बड़ा इजतमअ हे
गया तो उन लोगों नें हुजरः सल-लल्लाहो अलेह व सल्‍लम को भी दअवत रब
ताके हुज॒र खुद भी तशरीफ्‌ लाकर चुत के मुंह से वही बकवास सुन जा”
बुनाँचे हुजर॒ सल-लल्लाहो अलेह व सल्‍लम भी तशरीफ ले आए, जब हर्य्‌’
शरीफ लाए तो बुत बोल उठा: | है

“ऐ मक्का वालो! खूब जान लो के मोहम्मद अल्लाह के सच्छे रसूल |

9९९06 099 (थ्वा]5८शाशश’

 

 

 

सच्ची हिकायात 33 हिस्सा अव्वल
उनका हर इर्शाद सच्चा है और उनका दीन बरहक्‌ है तुम और तुम्हारे बुत
झूटे, गुमराह और गुमराह करने वाले हैं अगर तुम इस सच्चे रसूल पर ईमान
ना लाओगे तो जहन्नम में जाओगे पस अक्लमंदी से काम लो और इस सच्चे
रसूल की गलामी इख़्तियार कर लो।” ।

बुत का ये वाजु सुन कर वलीद बड़ा घबराया और अपने मअबूद को
पकड़ कर जमीन पर दे मारा और उसके टुकड़े दुकड़े कर दिए।

हुज॒र सल-लल्लाहो अलेह व सललम फातेहाना तौर पर वापस हुए तो
रास्ते में एक घोड़े का सवार जो सब्जू पोश था हुजूर से मिला उसके हाथ
में तलवार थी जिससे खून बह रहा था, हुज॒र ने फरमाया तुम कौन हो? वो
बोला हुज॒र! मैं जिन हूँ और आपका गूलाम और मुसलमान हूँ, जबले तूर पर
रहता हूँ, मेरा नाम महीन बिन अलअओबर है, मैं कुछ दिनों के लिए कहीं बाहर
गया हुआ था आज घर वापस आया तो मेरे घर वाले रो रहे थे, मैंने वजह
दरयाफ्त की तो मालूम हुआ के एक काफिर जिन्न जिसका नाम मुसफ्फ्र था
वो मक्का में आकर वलीद के बुत में घुस कर हुजर के खिलाफ बकवास कर
गया है और आज फिर गया है ताके फिर बुत में घुसकर आपके मुतअल्लिक्‌
बकवास करे या रसूल अल्लाह! मुझे सख्त गूस्सा आया, मैं तलवार लेकर
उसके पीछे दौड़ा और उसे रास्ते ही में कत्ल कर दिया और फिर मैं खुद
बलीद के बुत के अन्दर घुस गया और आज जिस क॒द्र तकरीर की है मैंने ही
की है या रसूल अल्लाह! कक

हुजर ने ये किस्सा सुना तो आपने बड़ी मुसर्रत का इजहार किया और उस
अपने गुलाम जिन्न के लिए दुआ फ्रमाई। ( जाम” -अलमौजजात सफा 7)

सबक :- हमारे हुजर जिनों के भी रसूल / और हुज॒र सल-लल्लाहो
अलेह व सल्‍लम की शाने पाक के खिलाफ सुनने सुनाने के लिए कोई जल्सा
करना ये बलीद जैसे काफिर की सुन्नत है।

हिकायत नम्बर ७ एक जन्तर मन्तर से
इलाज करने वाला

कबीलाऐ अज्दशनवत में एक शख्स था जिसका नाम जमाद थां वो
अपने जन्तर मन्तर से लोगों के जिन्न भूत बगेरा के साए उतारा करता था एक
मर्तबा वो मक्का मोअज़्ज्मा में आया तो बाज लोगों को ये कहते सुना के
मोहम्मद को जिन्न का साया है या जुनून है (मआजुअल्लाह ) जुमाद ने कहा
मैं ऐसे बीमारों का इलाज अपने जन्तर मन्तर से कर लेता हूँ मुझे दिखाओं,

9८०॥॥९0 09५ (.ब्वा$८क्या।ल

 

 

सच्ची हिकायात उ4 .. हिस्सा अव्वल,
वो कहाँ है? वो उसे हुज॒र के पास ले आए। जुमाद जब हुजूर के पास बैठा तो :
हुजर ने फ्रमाया, जमादं! अपना जन्तर मन्तर फिर सुनाना पहले मेरा कलाम ;
सुनो चुनाँचे आपने अपनी जूबाने हक्‌ से ये ख॒त्बा पढ़ना शुरू किया:

” अल्हग्दुल्लाही नहमदहू व मसंतड़नुहूं व नसतग्राफिरहू व
नोअमिन्‌ बिहि व नतावक्‍्कलू अलेडि व नऊजूबिल्लाही मिन शुरूरी
अनफुसिना व मिन सब्यीआती अआमालिना मवहवीहील्लाह फूला
मुजुल्ल-ललाहू वमंब-वुजालिलहु फूला हादीयलाहू व अशहद
अन्ला-ईलाहा इल-लल्लाहू वहदाहू लाग्रीकलाहू व अशहदु, अन्ना
मोहस्मदन अब्दुह्द व रसूलुह्ू |

जुमाद ने ये ख॒त्वाऐ मुबारका सुना तो मबहूत रह गया और अर्ज करने
लगा हुजर! एक बार फिर पढ़िए। हुजर नें फिर यही खुत्वा पढ़ा, अब जुमाद
( वो जमाद जो साया उतारने आया था उसका अपना सायाऐ कुफ्र उतरता है
देखिये ) ना रह सका और बोला:

“खुदा की कसम! मैंने कई काहिनों, साहिरों और शायरों की बातें
सुनी लेकिन जो आपसे मैंने सुना है ये तो मअनन एक बहेरे जुखार है अपना
हाथ बढ़ाईए, मैं आपकी बैअत करता हूँ, ये कहकर मुसलमन हो गया और
जो लोग उसे इलाज करने के लिए लाए थे हैरान व पशेमान वापस फिरे ”
( मुस्लिम सफा 320 जिल्द: ) ।

सबक्‌:- हमारे हुजर॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह व सलल्‍लम
जुबाने हक तर्जुमान में वो तासीर पाक थी के बड़े बड़े संग दिल मोम हो
जाते थे और ये भी मालूम हुआ के हमारे हुजर को जो लोग साहिर व मजनू
कहते थे दरअसल वो खुद ही मजनून थे इसी तरह आज भी जो शख्स हुजर
के इल्म व इख्तियार और आपके नूरे जमाल का इंकार करता है वो दरअसल
खुद ही जाहिल, सियाह दिल और सियाह रू है।

हिकायत नम्बर (0 रकाना पहलवान

बनी हाशिम में एक मुश्रिक शख्स रकाना नामी बड़ा जुबरदस्त और
दिलैर पहलवान था उसका रिकार्ड था के उसे किसी ने ना गिराया था। वो एक
जंगल में जिसे इज़्म कहते थे रहा करता था बकरियाँ चराता था। और बड़ा
माल॒दार था, एक दिन हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍लम अकेले
उस तरंफ्‌ जा निकले, रकाना ने आपको-देखा तो आप के पास आकर कहने
लगा: ऐ मोहम्मद! त्‌ ही वो है जो हमारे लात व उज़्जा की तोहीन व तहकीरें

9०९6 99 (थ्वा]58८शाशश’

सच्ची हिकायात 35 हिस्सा अव्यल
करता है और अपने एक खुदा की बड़ाई बयान करता ह? अगर भरेरा तुझ
से ताललुक रहमी ना होता तो आज मैं तुझे मार डालता, आ मेरे साथ कुश्ति
कर, तू अपने खुदा को पुकार! मैं अपने लात व उज़्जा को पुकारता हूँ देखें
तो तुप्हारे खुदा में कितनी ताकत है? हुज॒र ने फरमाया रकाना। अगर कुष्टित
ही करना है तो चल पैं तैयार हूँ, रकाना ये जवाय सुनकर अव्वल तो हैरान
हुआ और फिर बड़े गरूर के प्ताथ मुकायले में खड़ा हो गया।

हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍लम ने पहली ही झपट में उसे
गिरा लिया और उसके सीने पर बैठ गए, रक्काना उप्र में पहली मर्तबा गिर
कर बड़ा शर्मिंदा भी हुआ और हैगन भी, और बोला ऐ मोहम्मद! मेरे सीने
से उठ खड़ा हो मेरे लात व उज़्जा ने मेरी तरफ ध्यान नहीं किया एक बार
और मौका दो और दूसटी मर मर्तबा कुश्ति लड्ढं , हुजर सीने से उठ खड़े हुए और
दोबारा कुश्ति के लिए भी उठा, हुज॒र न दूसरी मर्तबा भी रकाना को
पल भर में गिरा लिया, रकाना ने कहा ऐ मोहम्मद! मालूम होता है आज
मेरा लात व उज़्जा मुझ पर नाराज है और तुप्हारा खुदा तेरी मदद कर रहा
है, खैर एक मर्तवा और आओ, अब की दफा लात व उज्जा जरूर मेरी
मदद करेंगे, हुजर ने तीसरी मर्तबा की कुश्ति भी मंजर फरमाई और तीसरी
मर्तवा भी हुज॒र ने उसे पिछाड़ दिया, अब तो रकाना बड़ा ही शर्मिंदा हुआ
और बोला ऐ मोहम्मद! मेरी इन बकरियों में जितनी चाहों बकरियाँ ले लो
हुजर ने फ्रमाया रकाना मुझे तुम्हारे माल की जरूरत नहीं , हाँ मुसलमान हो
जाओ ताके जहन्नम से बच जाओ। वो बोला या मोहम्मद! मुसलमान तो हो
जाऊं मगर नफ़्स खझिझकता है के मदीना और नवाह की औरतें और बच्चे
क्या कहेंगे के इतने बड़े पहलवान ने शिकस्त खाई और मुसलमान हो गया।

हुज॒र ने फ्रमाया तो तेरा माल तुझी को मुबारक! ये कहकर आप
वापस्त तशरीफ ले आए, इधर हजरत अबु बक्र व उमर रजी अल्लाहो अन्हुमा
आपकी तलाश में थे और ये मालूम करके के हुजर वादीऐ इज़्म की तरफ
तशर्गफ ले गए हैं। मुताफुक्किर थे के इस तरफ्‌ रकाना पहलवान रहता है
मुबादा हुजर को ईजा दे, हुजर को वापस तशरीफ लाते देखकर दोनों हुजर
की ग्विदमत में हाजिर हुए और अर्ज किया या रसूल अल्लाह! आप इधर
अकंल क्‍यों तशरीफ ले गए थे जब के उस तरफ रकाना पहलवान जो बड़ा
जोरआबर और दुश्पने इस्लाम है, रहता है? हुजर ये सुनकर मुसकुराए और
फरमाया जब मेरा अल्लाह हर वक्त मेरे साथ है फिर किसी रकाना बकाना
की क्‍या परवाह। लो इस रकाना की पहलवानी का किस्सा सुनो, चुनाँखे

9९९6 99 (थ्वा]5८शाशश’

 

 

ब्ज्ली ॥हिका’ द 36. -: हस्सा अन्य
हुजर ने सारा किस्सा सुनाया, सिद्दीक्‌ व फारूक सुन सुन कर खुश होने लगे
और अर्ज किया हुजर वो तो ऐसा पहलवान था के आज तक उसे किसी नेः
गिराया ही ना था, उसे गिराना गिराना अल्लाह के रसूल ही का काम है:( अबू
दाऊंद सफा 209 जिल्द 2)

सबकः:- हमारे हुजर सल-लल्लाहों तआला अलेह व सलल्‍लम हर
फज़्लो कमाल के मुनब्बओ व मख़्जन हैं और दुनिया की कोई ताकत हुजर के
मुकाबले में नहीं ठहर सकती और मुखालफीन के दिल भी हुज॒र के फज्लो
कमाल को जानते हैं लेकिन दुनिया की आर से उसका इक्रार नहीं करते।

. हिकायत नम्बर () खालिद की टोपी

हजरत खालिद बिन वलीद रजी अल्लाहो अन्ह ज़ो अल्लाह की तलवारों
में से एक तलवार थे, आप जिस मैदाने जंग में तशरींफ्‌ ले जाते अपनी टोपी
को जुरूर सर पर रख कर जाते और हमेशा फतेह ही पाकर लौटते, कभी
शिकस्त का मुंह ना देखते, एक मर्तबा जंगे यरमूक में जब के मैदाने जंग
गर्म हो रहा था हजरत खालिद की टोपी गुम हो गई , आपने लड़ना छोड़ कर
टोपी की तलाश शुरू कर दी, लोगों ने जब देखा के तीर और पत्थर बरस
रहे हैं, तलवार और नेजेह अपना काम कर रहे हैं, मौत सामने है और उस
आलम में खांलिद को अपनी टोपी की पड़ी हुई है और वो उसी को दूंडने
में मसरूफ हो गए हैं तो उन्होंने हजरत खालिद से कहा, जनाब टोपी का
खयाल छोड़िये और लड़ना शुरू किजिए, हजरत खालिद ने उनकी उस बात
की परवाह ना की और टोपी की बदस्तूर तलाश शुरू रखी, आखिर टोपी
उनको मिल गई तो उन्होंने खुश होकर कहा भाईयो! जानते हो मुझे ये टोपी
क्यों इतनी अजीज है? जान लो के मैंने आज तक जो जंग भी जीती इसी टोपी
के तुफल, मेरा क्या है सब इसी की बर्कतें हैं, मैं इसके बगैर कुछ भी नहीं
और अगर ये मेरे सर पर हो तो फिर दुश्मन मेरे सामने कुछ भी नहीं, लोगों
ने कहा आखिर इस टोपी की क्‍या खूबी है? तो फ्रमाया, ये देखो इसमें
क्या है, ये हुजर सरवरे आलम सल-लल्लाहो तआला अलेह व सललम के
सर अनवर के बाल मुबारक हैं जो मैंने इसी में सी रखे हैं। हुज॒र एक मर्तबा
उमरह बजा लाने को बैअत-उल्लाह शरीफ तशरीफ ले गए और सर मुबारक
के बाल उतरवाए तो उस वक्त हम में से हर एक शख्स बाल मुबारक लेने
की कोशिश करं रहा था और हर एक दूसरे पर गिरता था-तो मैंने भी इसी
क्रोशिश में आंगे बढ़ कर चंन्द बाल मुबारक हांसिल कर लिए थे और फिर

9०९6 99 (थ्वा5८शाशश’

सच्ची हिकायात हिस्सा अव्वल
इस टोपी में सी लिए, ये टोपी अब मेरे लिए जुमला बर्कातव फतूहात का
जरिया है, मैं इसी के सदके में हर मैदान का फातहे बनकर लौटता हूँ फिर
बताओ! ये टोपी अगर ना मिलती तो मुझे चैन कैसे आता? ( हुज्जत-उल्लाह
अललआलमीन सफा 282 )

सबक: – हुज॒र सरवरे आलम सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍लम
ही जुमला बर्कोत व इनामात का जूरिया हैं और आपका बाल बाल शरीफ
बर्कत व रहमत है और ये भी मालूम हुआ के सहाबाऐ इक्राम अलेहिम
अर्रिजुवान हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सलल्‍लम से मुतअल्लिक्‌
अशिया को बतौर तबर््रक अपने पास रखते थे और जिसके पास आपका बाल
मुबारक भी होता अल्लाह तआला उसे कामयाबियों से सरफ्राज्‌ फ्रमाता था।

हिकायत नम्बर (४2 बाल का कमाल :

हुज॒र सरवरे आलम सल-लल्लाहों तआला अलेह व सलल्‍लम की रेश
मुबारक के दो बाल मुबारक हजूरत सिद्दीके अकबर रजी अल्लाहो अन्ह
को मिल गए, आप उन दो बालों को बतौर तबररूक घर ले आए और बड़ी
तअजीम के साथ अन्दर एक जगह रख दिए, थोड़ी देर. के बाद अन्दर से
करआन पढ़ने की आवाजें आने लगीं, सिद्दीके अकबर रजी अल्लाहो अन्ह
अन्दर गए तो मुलाकात की आवाजें तो आ रही थीं मगर पढ़ने वाले नजर
ना आते थे, हजरत सिद्दीके अकबर रजी अल्लाहों अन्ह ने हुजर की खिदमत
में हाजिर होकर सारा किस्सा अर्ज किया तो हुज॒र ने मुसक्रा कर फ्रमाया

उन्नत मलाएकता यजत्मीऊना अला शओरी व यकराऊनल क रओन

“ये फरिश्ते हैं जो मेरे बाल के पास जमा होकर करआन पढ़ते
हैं / जामअ-अल-मौजजात सफा 62)

सबक्‌:- हुजर सरवरे आलम’ सल-लल्लाहो व्शाला अलेह व
सललम का हर बाल मुनब्बओ अलकमाल है और आपका बाल बाल शरीफ
जियारतगाहे खुलायक्‌ है, फिर जिन लोगों के बाल मूंड कर नाई नालियों

में फैंक देता है वो अगर हुज॒र की मिस्ल होने का दावा करने लगें तो किस
क्‌द्र जुल्म है।

हिकायत नम्बर (9 बकरी जिन्दा हो गई

जंगे अहंजाब में हजरत जाबिर रज़ी अल्लाहो अन्ह ने हुजर सरवरे आलम
सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍लम की दअवत की और एक बकरी

9९९06 99 (थ्वा]5८शाशश’

सच्ची हिकायात . . 38 ै॑ै . . – हिस्सा अव्वल
जब्ह की, हुजर॑ जब सहाबाऐ इक्राम की मईयत में जाबिर के घर पहुँचे तो
जाबिर ने खाना लाकर आगे रखा, खाना थोड़ा था और खाने वाले ज़्यादा
थे, हुजूर ने फ्रमाया थोड़े थोड़े आदमी आते जाओ और बारी बारी खाना
खाते जाओ, चुनाँचे ऐसा ही हुआ के जितने आदमी खाना खा लेते वो
निकल जाते, उसी तरह सब ने खाना खा लिया, जाबिर फ्रमाते हैं के हुजर
ने पहले ही फरमा दिया था के कोई शख्स गोश्त की हड्डी ना तोड़े, ना फैंक,
सब एक जगह रखते जाएँ जब सब खा चुके तो आपने हुक्म दिया के छोटी
मोटी सब हंड़ियाँ जमा कर दो, जमा हो गईं तो आपने अपना दस्त मुबारक
उन पर रख कर कुछ पढ़ा आपका दस्ते मुबारक अभी हड्डियों के ऊपर ही
था और जूबाने मुबारक से आप कुछ पढ़ ही रहे थे के वो हड्डियाँ कुछ का
कुछ बनने लगीं, यहाँ तक के गोश्त पोस्त तैयार होकर कान झाड़ती हुई वो
बकरी उठ खड़ी हुई, हुज॒र ने फ्रमाया: “जाबिर! ले ये अपनी बकरी ले
जा।” ( दलायल-उल-नबुव्वत सफा 224 जिल्द 2)

सबक :- हमारे हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍्लम मुनब्बओ
अल-हयात और हयात बरुश हैं, आपने मुर्दा दिलों और मुर्दा जिस्मों को भी
जिन्दा फरमा दिया फिर जो लोग ( मआज अल्लाह ) हुजर को “मर कर
मिट्टी में मिलने वाला” कहते हैं किस क॒द्र जाहिल और बेदीन हैं।

हिकायत नम्बर (३ साँप का अण्डा

एक सहाबी हजरत हबीब अल्लाह बिन फिदयक रजी अल्लाहो अन्ह
कहीं जा रहे थे के उनका पाँऊ इत्तेफाकन एक जहरीले साँप के अण्डे पर
पड़ गया और वो पिस गिया और उसके जुहर के असर से हजरत हबीब बिन
फिदयक रजी अल्लाहो अन्ह की आँखें बिलकुल सफेद हो गईं और नजर
जाती रही, ये हाल देखकर उनके वालिद बहुत परेशान हुए और उन्हें लेकर
हुजर सरवरे आलम सल-लल्लाहो तआला अलेह ब सलल्‍लम की खिदमत
में पहुँचे, हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम ने सारा किस्सा
सुनकर अपना थूक मुबारक उनकी आँखों में डाला तो हजरत हबीब बिन
फिदयक की अंधी आँखें फौरन रोशन हो गईं और उन्हें नजर आने लगा।
रावी का बयान है के मैंने खुद हजरत फिद्यक को देखा उस वक़्त उनकी
उम्र अस्सी(80) साल की थी और आँखें तो उनकी बिलकुल सफेद थीं मगर
हुज॒र को थूक मुबारक के असर से नजर इतनी तेज थी के सूई में धागा डाल
लेते थे। ( दलायल-उल-नब॒व्बत सफा ॥67) |

9९९06 99 (थ्वा]58८शाशश’

सच्ची हिकायात 39 हिस्सा अव्वल

सबक्‌:- हमारे हुजर॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍लम की
मिस्ल बनने वालों के लिए मुकाम गौर है के हुज॒र वो हैं जिनकी थूक मुबारक
से अंधी आँखों में बीनाई और नूर पैदा हो जाए और वो वो हैं के उनकी थूक
के मुतअल्लिक्‌ रेल गाड़ियों में ये लिखा होता है के “थूकों मत। इससे बीमारी
फैलती है।” फिर मर्ज व शिफा दोनों बराबर कैसे हो सकती हैं?

हिकायत नम्बर (5) हजरत जाबिर का मकान और

एक हजार मेहमान

हजरत जाबिर रज़ी अल्लाहो अन्ह ने जंगे खुन्दक के दिनों हुजूर
सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍लम शिकम अनवर पर पत्थर बंधा देखा
तो घर आकर अपनी बीवी से कहा के क्या घर में कुछ है ताके हम हुजर
सल-लल्लाहों तआला अलेह व सल्‍लम के लिए कुछ पकाएँ और हुजूर
खिलाएँ? बीबी ने कहा, थोड़े से जौ हैं और ये एक बकरी का छोटा बच्चा
है इसे जब्ह कर लेते हैं आप हुज॒र॒ सल-लल्लाहो अलेह व सल्‍लम को बुला
लाईये मगर चूंके वहाँ लश्कर बहुत ज़्यादा है इसलिए हुज॒र से पौशीदगी में
कहियेगा के वो अपने हमराह दस आदमियों से कुछ कम ही लाएँ। जाबिर
ने कहा, अच्छा तो लो मैं इस बकरी के बच्चे को जुब्ह करता हूँ तुम इसे
पकाओ और मैं हुजर को बुला लात हूँ, चुनाँचे जाबिर हुजूर की खिदमत में
पहुँचे और कान में अर्ज किया हुजर मेरे हाँ तशरीफ ले चलिये और अपने
साथ दस आदमियों से कुछ कम आदमी ले चलिये। हुज॒र॒ सल-लल्लाहो
अलेह व सल्‍लम ने सारे लश्कर को मुखातिब फ्रमा कर फरमाया चलो मेरे
साथ चलो जाबिर ने खाना पकाया है और फिर जाबिर के घर आकर हुजर
ने उस थोड़े से आटे में अपना थूक मुबारक डाल दिया और इसी तरह हंडिया
में भी अपना धूक मुबारक डाल दिया और फिर हुक्म दिया के अब रोटियाँ
और हंडिया पकाओ, चुनाँचे उस थोड़े से आटे और गोश्त में थूक मुबारक
की बर्कत से इतनी बर्कत पैदा हुई के एक हजार आदमी खाना खा गया मगर
ना कोई रोटी कम हुई और ना कोई बोटी। ( मिश्कात शरीफ सफा 524 )

सबक;:- ये हुजर के थूक मुबारक की बर्कत थी के थोड़े से खाने में
इतनी बर्कत पैदा हो गई के हजार आदमी सेर शिकम होकर खा गया लेकिन
खाना बदस्तूर वैसे का वैसा ही रहा और कम ना हुआ और ये हुजर की थूक
मुबारक है और जो उनकी मिस्‍्ल बशर बनने वाले हैं वो अगर कभी अपने

9९९06 99 (थ्वा58८शाशश’

सच्ची हिकायात |… 40 हिस्सा अव्वल
घर की हंडिया में भी थूकें तो उनकी बीवी ही वो हंडिया बाहर फैंक देगी
और कोई खाने को तैयार ना होगा, गोया उनके थूकने से थोड़े बहुत खाने

से भी जवाब। क्‍ क्‍
हिकायत नम्बर (0 कोजे में दरया

हुदैबिया के रोज सारे लश्कर सहाबा में पानी खृत्म हो गया हत्ता के वजु
और पीने के लिए भी पानी का कृतरा तक बाकी ना रहा। हुजूर सल-लल्लाहों
तआला अलेह व सल्‍लम के पास एक कोजृह पानी का था हुज॒र जब उस
कोजेह से वज फ्रमाने लगे तो सब लोग हुज॒र की तरफ्‌ लपके और फरयाद
की के या रसूल अल्लाह! हमारे पास तो एक कृतरा भी पानी का बाकी नहीं
रहा हम ना तो वज॒ कर सकते हैं और ना ही अपनी प्यास बुझा सकते हैं हुज॒र!
ये आप ही के कजे में पानी बाकी है हम सब के पास पानी खत्म हो गया
और हम प्यास की शिद्दत से बेचेन हैं। हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व
सल्लमं ने ये बात सुनकर अपना हाथ मुबारक उस कोजे में डाल दिया लोगों
ने देखा के हुज॒र के हाथ मुबारक की पाँचों उंगलियों से पानी के पाँच चश्मे
जारी हो गए और सब लोग उन चश्मों से सैराब होने लगे और हर शख्स ने
जी भर के पानी पिया और प्यास बुझाई सब ने बज भी कर लिया हजरत
जाबिर से पूछा गया के लश्कर की तअदाद कितनी थी? तो फरमाया उस
वक्त अगर एक लाख आदमी भी होते तो वो पानी सब के लिए काफी था
मगर हम उस वक्त पन्द्रह सौ की तअदाद में थे। मिश्कात शरीफ सफा 524)

सबक्‌:- हमारे हुज॒र॒ को अल्लाह ने ये इख़्तियार व तसरूफ फरमाया
है के आप थोड़ी चीज को ज़्यादा कर देते हैं “ना” से हाँ और मअदूम से
मौजूद करना अल्लाह का काम है और थोड़े से ज़्यादा कर देना मसतफा का
काम है और ये अल्लाह ही की अता है। ि

हिकायत नम्बर (0 एक सहराई काफ्ला
अरब के एक सहरा में एक बहुत बड़ा काफ्ला राह पैमा था के अचानक
>प काएुला का पानी ख़त्म हो गया उस काफ्ला में छोटे बड़े बूढ़े जवान
और मर्द औरतें सभी थे प्यास के मारे सब का बुरा हाल था और दूर तक
पानी का निशान तक ना था और पानी उनके पास एक कतरा तक बाकी ना

रहा था ये आलम देखकर मौत उनके सामने रक्स करने लगी मगर उन पर
ये खास करम हुआ के द

9९९06 99 (थ्वा]5८शाशश’

सच्ची हिकायात 4 हिस्सा अव्वल
नायगहानी आँ मग्रीस हरा दोकौन
मुसतफा पैदा ,शुदह अज बहरे औन
यानी अचानक दो जहाँ के फरयादरस मोहम्मद मुसतफा सल-लल्लाहो
तआला अलेह व सल्‍लम उनकी मदद फ्रमाने वहाँ पहुँच गए हुज्‌र को देख
कर सबकी जान में जान आ गई और सब हुजर के गिर्द जमा हो गए। हुजर
ने उन्हें तसल्‍ली दी और फरमाया के वो सामने जो टीला है उसके पीछे एक
सियाह रंग हबशी गृूलाम ऊंटनी पर सवार हुए जा रहा है उसके पास पानी
का एक मशकीजह है उसको ऊंटनी समेत मेरे पास ले आओ चुनाँचे कुछ
आदमी टीले के उस पार गए तो देखा के बाकुई एक ऊंटनी पर सवार हबशी
जा रहा है वो उस हबशी को ह॒जर के पास ले आए। हुजर सल-लल्लाहो
तआला अलेह व सल्लम ने उस हंबशी से मशकीजुह ले लिया और अपना
दस्ते रहमत उस मशकीजडहे पर फैर कर उसका मुंह खोल दिया और फ्रमाया,
आओ अब जिस क॒द्र भी प्यासे हो आते जाओ और पानी पी पी कर अपनी
प्यास बुझाते जाओ चुनाँचे सारे काफ्ले ने उस एक मशकीजूहे से जारी
चश्माऐ रहमत से पानी पीना शुरू किया और फिर सब ने अपने अपने बर्तन
भी भर लिए, सब के सब सैराब हो गए और सब बर्तन भी पुर आब हो गए,
हुजूर का ये मौजजा देखकर वो हबशी बड़ा हैरान हुआ और हुजर के दस्ते
अनवर चूमने लगा हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍लम ने अपना
दस्ते अनवर उसके मुंह पर फैरा तो
शुद . सपदाँ रंगी जावहऐे.. हबश
हमचू.. बदरूरोज़े रोशन शुद _शबश्ञ
उस हबशी का सियाह रंग काफूर हो गया और वो सफेद पुरनूर हो गया
फिर उस हबशी ने कलमा पढ़ कर अपना दिल भी मुनव्वर कर लिया और
मुसलमान होकर जब वो अपने मालिक के पास पहुँचा तो मालिक ने पूछा
तुम कौन हो? वो बोला तुम्हारा गुलाम हूँ, मालिक ने कहा तुम गुलत कहते
हो, वो तो बड़ा सियाह रंग का था वो बोला ये ठीक है मगर मैं उस मुनब्बओ
नूर जाते बाबर्कात से मिल कर और उस पर ईमान लाकर आया हूँ जिसने
सारी कायनात को मुनव्वर फ्रमा दिया है मालिक ने सारा किस्सा सुना तो
वो भी ईमान ले आया। ( मसनवी शरीफ ) | ु
सबक :- हमारे हुजुर बइज्न अल्लाह दो जहान के फ्रयादरस हैं और
मुसीबत के वक्त मदद फ्रेमाने वाले हैं फिर अगर कोई शख्स यूं कहे के
हुजूर किसी की मदद नहीं फरमा सकते और किसी की फ्रयाद नहीं सुनते तो

9८०९0 09५ (क्रा$८क्याहटा

सच्ची हिकायात 42 48 ९-९+॥ चाहिए
वो किस क॒ंद्र जाहिल व बेखबर है पस अपना अकीदह ये रखना चाहिए

फरयादअम्ती जो करे हाले, जार में
मुमकिन नहीँ के खैर बशर को ख़बर ना हो

हिकायत नम्बर/७ बादलों पर हकूमत

मदीना मुनव्वरह में एक मर्तबा बारिश नहीं हुईं थी कहेत का सा आल|
था और लोग बड़े परेशान थे एक जुमओ के रोज हुजर॒ सल-लल्लाहो ४
अलेह व सल्‍लम जब के वाज फरमा रहे थे एक आराबी उठा और
करने लगा या रसूल अल्लाह! माल हलाक हो गया और औलाद फाक्‌
करने लगी दुआ फरमाईये बारिश हो। हुजुर सल-लल्लाहो तआला अलेह १
सल्लम ने उसी वक्त अपने प्यारे प्यारे न्रानी हाथ उठाए रावी का बयान है
आसमान बिलकुल साफ था अब्र का नाम व निशान तक ना था मगर मर्द
सरकार के हाथ मुबारक उठे ही थे के पहाड़ों की मार्निंद अन्न छा गए औ
छाते ही मिनह बरसने लगा, हुजर मिंबर पर ही तशरीफ्‌ फरमा थे के मिन ।
शुरू हो गया, इतना बरसा के छत टपकने लगी और हुज्‌र की रैश अनव
से पानी के कतरे गिरते हमने देखे फिर ये मिनह बन्द नहीं हुआ बल्के हफ्े
को बरसता रहा फिर अगले दिन भी और फिर उससे अगले दिन भी हत्त
के लगातार अगले जुमओ तक बरसता ही रहा और हुजर जब दूसरे द
का वाज फरमाने उठे तो वही आराबी जिसने पहले जुमओ में वारिश ना
की तकलीफ अर्ज की थी उठा और अर्ज करने लगा या रसूल अल्लाह!
तो माल ग॒र्कु होने लगा और मकान गिरने लगे अब फिर हाथ उठाईये के
बारिश बन्द भी हो। चुनाँचे हुजर ने फिर उसी वक्‍त अपने प्यारे प्यारे
हाथ उठाए और अपनी उंगली मुबारक से इशारा फ्रमा कर दुआ ह
के ऐ अल्लाह! हमारे इर्दगिर्द बारिश हो, हम पर ना हो, हुजर का ये शा
करना ही था के जिस जिस तरफ्‌ हुज॒र की उंगली गई उस तरफ से
फटता गया और मदीना मुनव्वरह के ऊपर ऊपर सब आसमान साफ्‌ हो गया
( मिश्कात शरीफ सफा 528 )

सबकः:- सहाबाइक्राम मुश्किल के वक्त हुज॒र ही की बारगाह मे
फरयांद लेकर आते थे और उनका यकीन था के हर मुश्किल यहीं हल होती
और वाकई वहीं हल होती रही है इसी तरह आज भी हम हुज॒र ही के मोहला
हैं और बगैर हुजर के वसीले के हम अल्लाह से कुछ भी नहीं पा सकते ऑ’
सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍लम की हकमत बादलों पर भी जारी है|

9९९06 99 (थ्वा5८शाशश’

 

 

सच्ची हिकायात 43 ५ हिस्सा अव्वल
हिकायत नम्बर ॥/) चांद पर हकूमत

हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सललम के दुश्मनों ने बिलखसूस
अबु जहल ने एक मर्तबा हुजर से कहा के अगर तुम खुदा के रसूल हो तो
आसमान पर जो चाँद है उसके दो टुकड़े करके दिखाओ। हुजर ने फ्रमाया
लो ये भी करके दिखा देता हूँ चुनाँचे आपने चाँद की तरफ अपनी उंगली
मुबारक से इशारा फ्रमाया तो चाँद के दो टुकड़े हो गए, ये देख कर अबु
जहल हैरान हो गया मगर बे ईमान माना भी नहीं और हुजूर को जादूगर ही
कहता रहा। ( हुज्जतु-उललाह सफा 35% और बुखारी शरीफ सफा 27 जुजू 2)

सबक्‌:- हमारे हुज॒र की हकूमत चाँद पर भी जारी है और बावजूद
इतने बड़े इख्तियार के बे ईमान अफ्राद हुजर के इख़्तियार व तसर्रूफ्‌ को
फिर भी नहीं मानते। ः

हिकायत नम्बर (0) सूरज पर हकूमत

एक रोज मुकामे सेहबा में हुजर॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍लम
ने नमाज जौहर अदा की और फिर हजरते अली रजी अल्लाहो अन्ह को
किसी काम के लिए रवाना फ्रमाया हजुरते अली रजी अल्लाहो अन्ह के
वापस आने तक हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम ने नमाज अस्र
भी अदा फरमा ली और जब हजूरते अली वापस आए तो उनकी आगोुश में
अपना सर रख कर 6हुज॒र सो गए हजरते अली ने अभी तक नमाजु अख्तर अदा
ना की थी इधर सूरज को देखा तो गरूब होने वाला था। हजरत अली-सोचने
लगे के इधर रसूले खुदा आराम फ्रमा हैं और इधर नमाजे खुदा का वक्त
हो रहा है, रसूले खुदा की इसतराहत का खयाल रखूं तो नमाज जाती है और
नमाज का खयाल करूं तो रसूले खुदा की इसतराहत में खुलल वाकओ होता
है। करूं तो क्या करूं? आखिर मौला अली शेरे खुदा रजी अल्लाहो अन्ह ने
फैसला किया के नमाज को कूजा होने दो मगर हुजर की नींद मुठारक में
खलल ना आए चुनाँचे सूरज डूब गया और असर का वक़्त जाता रहा, हुजुर
उठे तो हजरत अली को मगृमूम देखकर वनह दरयाफ्त की तो हजरत अली
ने अर्ज किया या रसूल अल्लाह! मैंने आपकी इसतराहत के पेशे नजुर अभी
तक नमाज अग्र नहीं पढ़ी और सूरज गृरूब हो गया है हुज॒र ने फ्रमाया तो
गम किस बात का, लो अभी सूरज वापस आता है और फिर उसी मुकाम
पर आकर रूकता है जहाँ वक्ते अस्र होता है चुनाँचे हुजर ने दुआ फ्रमाई

9९९6 99 (थ्वा5८शााश’

सच्ची हिकायात 44 हिस्सा अव्वल
तो गरूब शुदा सूरत फिर निकला और उल्टे कृदम उसी जगह आकर ठहर
गया जहाँ अस्र के वक्त होता है हजरते अली ने उठकर अस्र की नमाज पढ़ी
तो सूरज गृरूब हो गया। ( हुज्जत-उलअली-अलआलमीन सफा 39 )

: सबकः हमारे हुज॒र की हकूमत सूरज पर भी जारी है और आप
कायनात के हर जरें के हाकिम व मुख्तार हैं आप जैसा ना कोई हुआ ना
होगा ना हो सकता है। द

हिकायत नम्बर 2) जमीन पर हकूमत

हुज॒र सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍लम ने हजरत सिद्दीक्‌ अकबर
रजी अल्लाहो अन्ह की मईयत में जब मक्का से हिज़त फ्रमाई तो क्रैशे
मक्का ने एलान किया के जो कोई मोहम्मद ( सल-लल्लाहो तआला अलेह
व सलल्‍लम ) और उसके साथी ( सिद्देके अकबर रजीअल्लाहो अन्ह ) को
गिरफ्तार करके लाएगा उसे सौ ऊँट इनाम में दिए जाएँगे, सर्राका बिन
जअशिम ने ये एलान सुना तो अपना तेज रफ़्तार घोड़ा निकाला और उस पर
बैठ क़र कहने लगा के मेरा ये तेज रफ़्तार घोड़ा मोहम्मद और अबु बक्र का
पीछा कर लेगा और मैं अभी उन दोनों को पकड़ कर लाता हूँ चुनाँचे उनसे
अपने घोड़े को दौड़ाया और थोड़ी देर में हुज॒र॒ के करीब पहुँच गया। सिद्दीके
अकबर ने जब देखा के सर्राका घोड़े पर सवार हमारे पीछे आ रहा है और हम
तक पहुँचने ही वाला है तो अर्ज किया या रसूल अल्लाह! सर्राका ने हमें देख
लिया है और वो देखिए हमारे पीछे आ रहा है। हुज॒र ने फरमाया ऐ सिद्दीक
कोई फिक्र ना करो अल्लाह हमारे साथ है, इतने में सर्राकु बिलकुल क्रीब
आ पहुँचा तो हुज॒र ने दुआ फरमाई तो जमीन ने फौरन सर्राका के घोड़े को
पकड़ लिया और उसके चारों पैर पेट तक जूमीन में धंस गए, सर्राक्ा ये
मंजर देख कर घबराया और अर्ज करने लगा।

“या मोहम्मद! मुझे और मेरे घोड़े को इस मुसीबत से निजात दिलाईये में
आप से वादा करता हूँ के मैं पीछे मुड़ जाऊँगा और जो कोई आपका पीछा
करता हुआ आपकी तलाश में इधर आ रहा होगा उसे भी वापस ले जाऊँगा
और आप तक ना आने दूंगा चुनाँचे हुजूर के हुक्म से जमीन ने उसे छोड़ दिया।”

सबक ः हमारे हुज॒र का हुक्मो फ्रमान जूमीन पर भी जारी है और
कायनात की हर चीज अल्लाह ने हुज॒र के ताबओ कर दी है फिर जिस शख्स
की अपनी बीवी भी उसकी ताबओ ना हो वो अगर हुजूर की मिस्ल बनने लगे
तो वो किस-क्‌द्र अहमद; व बेवक॒फ है। 9

9९९06 099 (थ्वा5८शाशश’

हि लि हिस्सा अव्य
दरख्तों अव्वल
हि कब दल पर हकूमत
मर्तबा ल-लल्लाहो
;द! अगर आप अल्लाह के रसूल हैं अलेह व सल्‍लम से कहा

तो कोई निशानी दिखलाईये
है जे फ्रमाया अच्छा लो देखा। वो जो सामने दरस्त खड़ा है उसे जाकर

हुज्र ० तुम्हें
०» कह दो के तुम्हें अल्लाह का रसूल बुलाता है चुनाँचे
38 के पास गया और उससे कहा, तुम्हे अल्लाह का 44 608
दा ये बात सुन कर अपने आगे पीछे और दायें बायें गिरा और अपनी
जड़ें जमीन से उखाड़ कर जमीन पर चलने लगा और चलते हुए हुजर की
द्वमत में हाजिर हो गया और अर्ज करने लगा, “अस्सलाम अलेकुप या
रसूल 2288 अल्लाह! आराबी हुजूर से कहने लगा अब इसे हुक्म दीजिए के ये फिर
अपनी जगह पर चला जाए चुनाँचे हुज॒र ने उसे फ्रमाया के जाओ वापस
चले जाओ, वो दरख़्त ये सुनकर पीछे मुड़ गया और अपनी जगह जाकर
फिर कायम हो गया। |
आराबी ये मौजजा देख कर मुसलमान हो गया और हुज॒र को सज्दा
करने की इजाजूत चाही हुजर ने फरमाया सज्दा करना जायज नहीं फिर
उसने हुजर के हाथ पैर मुबारक चूमने की इजाजत चाही तो हुज॒र ने फरमाया
हाँ ये बात जायज है और उसने हुजर के हाथ और पैर मुबारक चूम लिए।
(हुज्जत-उललाह अली अलआलमीन सफा 44)
सबक्‌:- हमारे हुजर का हुक्म दरख़्तों पर भी जारी है और यें भी
मालूम हुआ के बुजुर्गों के हाथ पैर चूमने जायज हैं हुजर॒ सल-लल्लाहो
तआला अलेह व सल्‍लम ने उससे मना नहीं फरमाया।

हिकायत नम्बर (3 दीवाना ऊंट :

बनी निजार के एक बाग में एक दीवाना ऊँठ घुस आया जो शख्स भी
उस बाग में जाता वो ऊँट उसे काटने दौड़ता था लोग बड़े परेशान थे और
हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍लम की खिदमत में हाजिर हुए
और सारा किस्सा अर्ज किया हुज॒र ने फरमाया, चलो मैं चलता हूँ चुनाँचे
हुजर उस बाग में तशरीफ्‌ ले गए और उस ऊँट से फ्रमाया, इधर आओ उस
ऊंट ने जब रसूल अल्लाह सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍लम का हुक्म
सुना तो दौड़ता हुआ हाजिर हुआ और अपना सर हुज॒र के कदमों में डाल
दिया हुजूर ने फ्रमाया इसकी नकेल लाओ, नकेल लाई गई और हुजूर ने

9९९06 99 (थ्वा]5८शाशश’

सच्ची

सच्ची हिकायात 46 हिस्सा अव्वल
उसे नकेल डाल कर उसके मालिक के हवाले कर दिया और वो आराम से
चला गया, हुज॒र ने फिर सहाबा से फ्रमाया, काफिरों के सिवा मुझे जमीन
व आसमान वाले सब जानते हैं मैं अल्लाह का रसूल हूँ। ( हुज्जत-उल्लाह
अली अलआलमीन सफा 58 )
सबक्‌:- हमारे हुज॒र का हुक्म जानवरों पर भी जारी है और कायनात
की हर शे बजुज काफिरों के हमारे हुज॒र की रिसालत व सदाकत को जानती है

हिकायत नम्बर 24) बैत-उल्लाह की कुंजी

हिज्जत से पहले बैत-उल्लाह की कुंजी करैशे मक्का के कब्जे में थी और
ये कुंजी उस्मान बिन तलहा के पास रहा करती थी, ये लोग बैत-उल्लाह को
पीर और जुमओरात के रोज खोला करते थे, एक दिन हुज॒र सल-लल्लाहो
तआला अलेह व सल्लम तशरीफ्‌ लाए और उस्मान बिन तलहा से दरवाजा
खोलने को फरमाया तो उस्मान ने दरवाजा खोलने से इंकार कर दिया, हुजर
ने फरमाया ऐ उस्मान! आज तो तू ये दरवाजा खोलने से इंकार कर रहा है
और एक दिन ऐसा भी आएगा के बैत-उल्लाह की ये कुंजी मेरे कब्जे में होगी
और मैं जिसे चाहूंगा ये कुंजी दूंगा, उस्मान ने कहा तो क्या उस दिन कौमे
करैश हलाक हो चुकी होगी? देखा जाएगा, फिर हिज़त के बाद जब मक्का
फतह हुआ और हुज॒र सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍लम सहाबा के
कहुसी लश्कर समेत मक्का में फातेहाना दाखिल हुए तो सबसे पहले कअबा
शरीफ में तशरीफ लाए और उस्ती कलीद बरदार उस्मान से कहा, लाओ वो
कुंजी मेरे हवाले कर दो, नाचार उस्मान को वो कुंजी देनी पड़ी , हुजूर ने वो
कूंजी लेकर उस्मान को मुखातिब फ्रमा कर फ्रमाया, उस्मान! लो, कलीद
बरदार मैं भी तुझी को मुक्र॑र करता हूँ तुम से कोई जालिम ही ये कुंजी लेगा।
उस्मान ने दोबारा कुंजी ली तो हुज॒र ने फ्रमाया उस्मान! वो दिन याद
है जब मैंने तुम से कुंजी तलब की थी और तुम ने दरवाजा खोलने से इंकार
कर दिया था और मैं ने कहा था के एक दिन ऐसा भी आएगा के ये कुंजी मेरे
कब्जे में होगी और मैं जिसे चाहूंगा दूंगा, उस्मान ने कहा हाँ हुजूर! मुझे याद
है और मैं गवाही देता हँँ के आप अल्लाह के सच्चे रसूल हैं। ( हुज्जत-उल्लाह
अलआलमीन 499)
. सबक॒ः- हमारे हुजर अगली पिछली सब बातों के आलिम हैं और
कृयामत तक जो कुछ भी होने वाला है सब आप पर रोशन है खुदा ने
आपको इल्मे गैब अता फरमाया है और आप दानाऐ गूयूब व आलमे माकान

9९९06 99 (थ्वा]5८शाशश’

सच्बी हैं फिर अगर कोई कह ह हिस्सा अव्वल
ह | शख्स
# आज वो किस क॒द्र जाहिल न कहनूर को 3 को बात का

हिकायत नम्बर ७) गुमशुदा ऊँटनी
जंगे तबूक में हुजूर सरवरे आलम सल-लल्लाहो
लम की ऊँटनी गुम हो गई तो एक मुनाफिक ने मुसलमानों से के
हुुहारा मोहम्मद हर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम ) तो नबी होने का
पुर है और तुम्हें आसमान को बातें सुनाता है फिर उसे अपनी ऊँटनी का पता
क्यों नहीं चलता के वो कहा है? हुज्र ने जब मुनाफिक की ये बात सुनी तो
बेशक मैं नबी.हूं और मेरा इल्म अल्लाह ही का अता फ्रमूदा है लो
सुनो । मेरी ऊँटनी फलों जगह खड़ी है एक दरख़्त ने उसकी नकेल को रोक
रखा है जाओ वहाँ से उस ऊंटनी को ले आओ, चुनाँचे सहाबाइक्राम गए तो
बाकुई ऊँटनी उसी जगह खड़ी थी और उसकी नकेल दरख़्त से अटकी हुई
थी। ( जाद-उल-मआद सफूा 3 जिल्द 3 हुज्जत-उल्लाह अली अलआलप्रीन
सफा 5॥00 )
सबकः- हमारे हुज्‌र को अल्लाह ने इस कृद्र इल्मे गैब अता फरमाया
है के कोई बात आप से छुपी हुईं नहीं मगर मुनाफिक्‌ इस इल्मे गैब के
मोअतरिफ नहीं।

हिकायत नम्बर७७ केदी चचा

जंगे बद्र में जब अल्लाह ने मुसलमानों को फ्तह और कुफ्फार को
शिकस्त दी तो मुसलमानों के हाथ जो केदी आए उनमें हुज॒र॒ सल-लल्लाहो
तआला अलेह व सललम के चचा हजरते अब्बास भी थे कैदियों से जब
तावान तलब किया गया तो हजूरत अब्बास कहने लगे ऐ मोहम्मद! मैं तो एक
ग्रीब आदमी हूँ मेरे पास कया है मक्का में जब आपने मुझे छोड़ा था तो में
तमाम कबीले के अफ्राद से गूरीब था हुज॒र॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह व
सललम ने फरमाया और अब जब के आपने अपने घर से फौज कुफ्फार के
साथ जंगे बद्र में आना चाहा तो आप अपनी बीवी उम्मे फज्ल को पौशीदगी
में चन्द सोने की ईंटें देकर आए थे चचा जान! ये राजु आप क्‍यों छुपा रहे
हैं, हजरते अब्बास ये गैब की बात सुन कर हैरान रह गए और बकौले शायर

जनाबे हजरत अब्बास: पह रओेशा हुआ वारी

के पैगम्बर तो रखता है दिलों की भी ख़ूबरदारी

9९९06 99 (थ्वा]5८शाशश’

सच्ची हिकायात … 48 हिस्सा अव्यह
. खयाल आया मुसलमाँ नेक व॑ बद पहचान जाते हैं

मोहम्मद आदमी के बिल की बातें जान जाते हैं
हुज॒र की ये इत्तिला अली अलगैब का मौजजा देखकर हजरत अब्बास
ईमान ले आए।
नल व शक सफा 77 जिल्द 2) |
सबक ;- हमारे हुजर॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम से को
बात मख्फी नहीं अल्लाह ने हर चीज का हुजूर को इल्म दे दिया है और
इल्मे गैब भी हुजूर का एक मौजजा है जिस पर हर मुसलमान का ईमान है|

हिकायत नम्बर 7) कबूतर के बच्चे

एक आराबी अपनी आसतीन में कुछ छुपाए हुए हुज॒र सल-लल्लाहो
तआला अलेह व सल्‍लम की खिदमत में हाजिर हुआ और कहने लगा
मोहम्मद! ( मोहम्मद सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍लम ) अगर तू बता
दे के मेरी आसतीन के अन्दर क्‍या है तो मान लूंगा के वाकई तू सच्चा नबी
है। हुजर ने फ्रमाया वाकई ईमान ले आओगे? उसने कहा हाँ वाकई ईमान
ले आरऊँगा, फरमाया तो सुनो! तुम एक जंगल से गुजूर रहे थे तो तुम न एक
दरख्त देखा जिस पर कबूतर का एक घोंसला था उस घोंसले में कबूतर के
दो बच्चे थे तुम ने उन दोनों बच्चों को पकड़ लिया उन बच्चों की माँ ने जब
देखा तो वो माँ अपने बच्चों पर गिरी तो तुम ने उसे भी पकड़ लिया और वो
दोनों बच्चे और उनकी माँ इस वक्त भी तुम्हारे पास हैं और इस आसतीन
के अन्दर हैं। |

आराबी ये सुनकर हैरान रह गया और झट पुकार उठा: अशहद-अक-ला
इलाहा इल-लल्लाह व अश़हद अन्नका रसूल अल्लाह ( जामओ
अलमौजजात सफा 2 )

सबक्‌:ः- हमारे हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम से
कोई चीज पनेहाँ ना थी और एक आराबी भी उस हकीकत जानता था के
जो नबी हो वो गैब जान. लेता है फिर बराए नाम पढ़ा लिखा होकर हुजर
के इल्म को तसलीम ना करे वो उजंड और गंवार से भी ज़्यादा उजद
गंवार हुआ या नहीं? | |

हिकायत नम्बर ७७ जन्नत की उँटनी

हजरत मौला अली रजी अल्लाहो अन्ह एक बार घर तशरीफ लाए त़ो

9०९06 099 (थ्वा]5८शाशश’

(मत फातिया ही अल अहम कह बन थे भूत लात है आप

बाजार ले ) को रोटी खिलाऊँ, हजरत अली व 2855

बाजार ले गएं
उसे छः रुपये पर बेच दिया, फिर उन रुपयों का कुछ खरीदना चाहते

सायल ने सदा को मठुक्रिज-उल्लाहा क्रज़न हजरत
थे की ने वो रुपये उस सायल को दे दिए थोड़ी देर के बात
आया जिंसके पास बड़ी फरबा एक ऊँटनी थी वो बोला ऐ अली! ये ऊँटनी
बरीदोगे? फ्रमाया पैसे पास नहीं, आराबी ने फ्रमाया उधार देता हूँ ये कह
क्र ऊँटनी की मिहार हजरत अली के हाथ में दे दी और खुद चला गया
इतने में एक दूसरा आराबी नमूदार हुआ और कहा अली! उँटनी देते हो?
ले लो आराबी ने कहा तीन सौ नकद देता हूँ ये कहा और तीन
सौ नकद हजरत अली को दे दिए और ऊँटनी लेकर चला गया उसके बाद
हज॒रत अली ने पहले आराबी को तलाश किया मगर वो ना मिला आप घर
आए और देखा हुजूर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सललम हजरत फातिमा
के पास तशरीफ्‌ फ्रमा हैं हुज्‌र ने मुसकुरा कर फ्रमाया, अली! ऊँटनी का
किस्सा तुम खुद सुनाते हो या मैं सुनाऊँ?
हजरत अली ने अर्ज किया हुजर आप ही सुनाएँ फ्रमाया पहला आराबी
जिंब्राईल था और दूसरा आराबी इसराफील था और ऊँटनी जन्नत की वो
ऊटनी थी जिस पर जन्नत में फातिमा सवार होगी खुदा को तुम्हारा ईसार
जो तुम ने छः रुपये सायल मो दिए पसंद आया और उसके सिले में दुनिया
में भी उसने तुम्हें उसका अज् ऊँटनी की खरीद व फ्रोख्त के बहाने दिया।
(जामओ अलमोजजात सफा 4) क्‍ या
सबकः;:- अल्लाह वाले खुद भूके रहकर भी मोहताजों को खाना
खिलाते हैं ये भी मालूम हुआ के हमारे हुजर॒ सल-लल्लाहो तआला अलेहं
व सलल्‍लम दानाऐ गृयूब हैं आपसे कोई बात मख्फी नहीं।

हिकायत नम्बर (9 जंगल की हिरनी
एक जंगल मैं एक हिरनी रहती थी उसके दो बच्चे थे एक बार वो बाहर
निकली तो किसी शिकारी ने राह में जाल बिछा रखा था बेखूबर हिरनी उस
जाल में फंस गई जब उसने देखा के मैं तो फंस गई हूँ तो बड़ी परेशान हुई
उसकी खुश किस्मती देखिए के उसी जंगल में हुजर सल-लल्लाहो तेआला
अलेह व सल्‍लम तशरीफ लाते हुए उसे नजर आए जब उसने हुजूर रहमते

9०९6 099 (थ्वा]58८शाशश’

सच्ची हिकायात 50… हस्सा अच्चल
आलम सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍लम को देखा तो पुकारी या रसूल
अल्लाह! मुझ पर रहम फ्रमाईए हुजर ने उसकी पुकार सुनी और उसके पाप्त
तशरीफ लाकर फ्रमाया क्‍या हाजत है? वो बोली हुजूर! मैं उस आराबी
के जाल में फंस गई हूँ मेरे दो छोटे छोटे बच्चे हैं जो उस करीब के पहाड़ों
में हैं थोड़ी देर के लिए आप मेरी जमानत देकर इस जाल से मुझे आजाद
करा दीजिए ताके मैं आखिरी बार एक मर्तबा 2988 8 को दूध पिला आऊँँ,
हुज॒र मैं दूध पिलाकर फिर यहीं वापस ईरगी, हुजर ने फ्रमाया अच्छा
जा मैं तुम्हारी जूमानत देता हूँ और तुम्हारी जगह यहीं ठहरता हूँ, तो बच्चों
को दूध पिलाकर जल्दी वापस आ जाओ चुनाँचे हिरनी को आपने रिहा
कर दिया और वहाँ खुद कृयाम फ्रमा हो गए आराबी जो मुसलमान ना था
कहने लगा, अगर मेरा शिकार वापस ना आया तो अच्छा ना होगा हजर ने
फ्रमाया तुप देखो तो सही के हिरनी वापस आती है या नहीं। चुनाँचे हिरनी
बच्चों के पास पहुँची और बच्चों को दूध पिला कर फौरन वापस लौटी और
आते ही हुजूर के कदमों पर सर डाल दिया ये अजाज देखकर वो आराबी
भी कृदमों पर गिर गया
झुक गए सर हिरनी व काफिर के दोनों साथ साथ
मुसतफ्ा ने उनके सर पर रख दिया रहमत का हाथ
फिर बच्चमारत उसको और उसको मिली सरकार से
जाल से आजाद तू, और तू अज़ाबे नार से?
(शिफा शरीफ सफा 7 जिल्द 2)
सबक :- हमारे हुज॒ः॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह व सललम जानवरों
तक के लिए रहमत हैं और जानवर भी हुजूर के हुक्म की तामील करते है
फिर जो इंसान होकर हुजूर का हुक्म ना माने वो जाचवरों से भी गया गुजरा

है या नहीं?
हिकायत नम्बर ॥) एक काफिरा का मकान

हुज॒र सरवरे आलम सर्ल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍लम फतह
मक्का के बाद एक दिन मक्का मोअज़्जमा की एक काफिरा औरत के मकान
की दीवार से तकिया लगाकर किसी अपने गुलाम से गुफ्तगू फ्रमा रहे थे
उस माकन वाली काफिरा को जब पता चला के मोहम्मद सल-लल्लाहो
तआला अलेह व सललम मेरे मकान की दीवार से तकिया लगाए खड़े हैं तो
बग्जु व अदावत से उसने अपने मकाल की सब खिड़कियाँ बन्द कर डार्ली

9९९06 99 (थ्वा]58८शाशश’

| |
इक की आवाज ना सुन पाए उरी चक्‍्त जिन्नाईले की न कद
कियाः स्‍ीमिज
और 8 अल्लाह! खुदा फरमाता है के अगरचे ये औरत काफिरा है
आपकी शान बड़ी अरफृअ व बुलंद है चूंके उस काफिरा के मकान की
के साथ आपकी पुश्ते अनवर लग गई है इस लिए मैं नहीं चाहता के ये
20 बाली अब जहन्नम में जले। उस औरत ने अपने मकान की खिड़कियों
बन्द किया है मगर मैंने उसके दिल की खिड़की खोल दी है और ये सिर्फ
दीवार से आपके तकिया लगा कर खड़े होने की बर्कत से है, इतने
प्रो औरत बेचैन होरक घर से निकली और हुज्र के कदमों पर “गिर गई
और सच्चे दिल से पुकार उठी। अश़हद-अनब-ला इलाहा इल-लल्लाह व
अब्नका रसूल अल्लाह ( नुजृहत-उल-मजालिस सफा 78 जिल्द 2)
सबक्‌:- जिस औरत के मकान की दीवार से हुजर की पुश्ते अनवर
लग गई वो औरत आग से बच गई तो जिस खुश किस्मत और मुक्‌हस खातून
हज॒रते आमना रजी अल्लाहो अन्हा के शिकम अनवर में हुजर ने कयाम
फरमया हो वो मुकुद्स खातून क्यों जन्नत की मालिक ना होगी फिर किस
क॒द्र बदबख़्त हैं वो लोग जो हुजर के वालदैन मोअजृमीन के मुतअल्लिक्‌
कुछे का कुछ बकते हैं। 5 ।
. “जी अल्लाहो तआला अन व अलदीयह सल-लल्लाहो अलेह
ब आलिही व सल्‍लम ”

हिकायत नम्बर 0) शीरख्वार बच्चे का.
एलाने हक

हुज॒र सरवरे आलम सल-लल्लाहो तआला अलेहं.ब सल्‍लम एक मर्तबा

सहाबाइक्राम अलेहिम अर्रिज॒वान में तशरीफ फरमा थे के एक मुशरिका

औरत जिसकी गोद में दो माह का शीरख्वार बच्चा था उस तरफ्‌ से गुजरी

उस बच्चे ने हुजर॒ की तरफ नजर की तो यकदम बजुबाने फ्सीह पुकार उठा:
अस्थलाय अलेका या रसूल व या अकरमा खल्काीअल्लाह

माँ ने जब देखा के मेरा दो माह बच्चा कलाम करने लगा है तो हैरान

है गई और बोली बेटा! ये कलाम करना तुझे किस ने सिखा दिया? और

अल्लाह के रसूल हैं, ये तुझे किस ने बता दिया? बच्चा अब अपनी माँ

से मुखातिब होकर कहने लगा ऐ माँ! ये कलाम करना मुझे उसी अल्लाह ने

9९९06 099 (थ्वा5८शाशश’

‘ सच्ची हिकायात | हिस्सा अव्वल
सिखाया है जिसने सब इंसानों को ये ताकृत दी है और ये देख मेरे सर पर
जिब्राईले अमीन खड़े हैं जो मुझे बता रहे हैं के ये अल्लाह के रसूल हैं माँ
ने ये अजाजु देखा तो झट कलमा पढ़ कर मुसलमान हो गईं, मौलाना रूमी
अलेह अर्रहमत मसनवी शरीफ में फ्रमाते हैं के फिर हुज॒र ने उस बच्चे को
मुखातिब फ्रमाया और दरयाफ्त फ्रमाया के तुम्हारा नाम क्‍या है? तो वो
बोला
अब्द ईफ्ज़ा पेश एँ यकमशत चीज,
लेक नागमम पेशे हकू अबुुल अजीज
यानी या रसूल अल्लाह! इस मुश्ते खाक माँ के नजदीक तो मेरा नाम
अब्दे ईज़्जा है लेकिन अल्लाह के नजदीक मेरा नाम अब्दुल अजीज है।
( नुजहत-उल-मजालिस सफा 78 जिल्द 2)
सबक्‌:- एक दो माह का बच्चा तो हुज॒र को जान और मान ले और
अपनी माँ को भी जन्नत में ले जाए मगर अफ्सोस उन उम्र रसीदा बदबख्तों
पर जिन्होंने हुजर को ना जाना ना माना और अपनो जहालत व गुस्ताखियों
से खुद भी डूबे और दूसरों को भी ले डूबे।

हिकायत नम्बर (2) रात का चोर

एक मर्तबा हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम ने हजरत
अबु हरेरा रजी अल्लाहो अन्ह को सदकाए फित्र की हिफाजृत के लिए
मुकरर फ्रमाया, हजरत अबु हरेरा रजी अल्लाहो अन्ह रात भर उस माल
की हिफाजुत फरमाते रहे , एक रात एक चोर आया और माल चुराने लगा,
हजूरते अबु हुरेरा ने उसे देख लिया और उसे पकड़ लिया और फ्रमाया
मैं तुझे हुजअ सल-लल्लाहो तआला अलेह व सलल्‍लम की खिदमत में पेश
करूंगा उस चोर ने मिन्नत समाजत करना शुरू की और कहा खुदारा मुझे
छोड़ दो मैं साहिबे अयाल हूँ और मोहताज हूँ, अबु हुरेरह को रहम आ गया
और उसे छोड़ दिया। सुबह अबु हुरेरह जब बारगाहे रिसालत में हाजिर हुए
तो हुजर ने मुसकुरा कर फ्रमाया अबु हुरेरह! वो रात वाले तुमहारे कैदी
(चोर ) ने क्या किया? अबु हरेरह ने अर्ज किया, हुज॒र! उसने अपनी अयाल
दारी और मोहताजी बयान की तो मुझे रहम आ गया और मैंने छोड़ दिया
हुजर ने फरमाय( उसने तुम से झूट बोला, खुबरदार रहना आज रात वो फिर
आएगा। अबु हरेरह कहते हैं के मैं दूसरी रात भी उसके इन्तिजार में रहा
क्या देखता हूँ के वो वाकई फिर आ पहुँचा और माल चुराने लगा मैंने फिर

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| >>
| हिस्सा
(नमी दि लिया उसने फिर मिन्नत खुशामद की और मुझे फिर संस
सै और मैंने फिर छोड़ दिया सुबह जब हुज॒र की बारगाह में हाजिर
गया आकर अबु हुरेरह! वो रात वाले २5 कमा
ने फिर फ्रमाग, 7 है है! वो रात वाले कैदी (चोर) ने क्या
के फिर अर्ज किया के हुजूर! वो अपनी हाजत बयान करने लगा
सा रहम आ गया और मैंने फिर छोड़ दिया, हुज॒र ने फरमाया उसने तुप
वेट कहा खबरदार! आज वो फिर आएगा अबु हरेरह कहते हैं के तीसरी
ते फिर आया : 0२ मैंने उसे पकड़ कर कहा कमबझ्त आज ना छोडंगा
हर हुजुर के पास हा ले जाऊँगा। वो बोला, अबु हरेरह! मैं तुझे चन्द
२8६ सिखा जाता हू जिनको पढ़ने से तू नफा में रहेगा, सुनो । जब
लगो तो आयत-अलकरुर्सा’ पढ़ कर सोया करों; इससे अल्लाह तआला
तुह्री हिफाजत फ्रमाएगा और शैतान तुम्हारे नजदीक नहीं आ सकेगा,
अबु हरेरह कहते हैं वो मुझे ये कलमात सिखा कर फिर मुझ से रिहाई पा
गया और मैंने जब सुबह हुजूरं की बारगाह में ये सारा किस्सा बयान किया
वो हज॒र ने फ्रमाया उसने ये बात सच्ची कही है हालाँके खुद वो बड़ा झूटा
है क्या तू जानता है ऐ, अबु हुरेरह! के वो तीन रात आने वाला कौन था?
मैंने अर्ज किया नहीं या रसूल अल्लाह! में नहीं जानता, फ्रमाया वो शैतान
था। ( मिश्कात शरीफ सफा 47 )
सबक्‌ः- हमारे हुजर॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह ब सललम गुज्रे
हुए और होने वाले सब वाकेयात को जानते हैं अबु हुरेरह के पास रात को
चोर आया तो हुजर ने खुद ही फ्रमाया के अबु हुरेरह रात के कैदी ने क्या
किया और फिर ये भी फरमाया के आज फिर आएगा चुनाँचे वही कुछ हुआ
जो हुजुर ने फ्रमाया। मालूम हुआ के हुज॒र सल-लल्लाहो तआला अलेह व
सललम आलिम माकाना वमा यक्‌न हैं।

हिकायत नम्बर ७) भेड़िये की गवाही

:.. मदीना मुनव्वरा के किसी मुक्काम पर एक चरवाहा अपनी बंकरियों
चरा रहा था के अचानक एक भेड़िया आया। और बकरियों के रेवड़ में घुस
कर एक बकरी का शिकार ले भागा चरवाहे ने देखा तो उस भेड़िये का
/भावृकूब किया और उससे बकरी छुड़ा ली भेड़िये ने जब देखा के मेरा
शिकार मुझ से छील लिया गया है तो एक टीले पर चढ़ कर बजूबान फ्सीह
क्षे लेगा, मियाँ चरवाहे! अल्लाह ने मुझे रिज़्कु दिया था मगर अफ्सोंस!

ऐुम ने मुझ से छीन लिया, चरवाहे ने जब एक भेड़िये को कलाम करते

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च्ची हिकायांत 54 हिस्सा
देखा तो हैरान होकर बोला तआज्जुब है के एक भेड़िया भी कमान
है, भेड़िये ने फिर कलाम किया और कहा और उससे से भी ज़्यादा
वली बात तो ये है के मदीना शरीफ में एक ऐसा वजूद मौजूद है जो तुम्हें जो
कुछ हो चुका है और जो कुछ आईदा होने वाला है उन सब अगली पिछली
बातों की खबर देता है मगर तुम उस पर ईमान नहीं लाते चरवाहा जो
था भेडिये की उस गवाही को सुन कर बड़ा मुतास्छिरि हुआ और बारगाहे
रिसालत में हाजिर होकर मुसलमान हो गया। ( मिश्कात शरीफ सफा 533)
सबक :- एक जानवर भी जानता और मानता है के हुज॒र सल-लल्लाहो
तआला अलेह व सल्‍लम हर गुजरी हुई और होने वाली बात को जानते हैं मगर
एक बराए नाम इंसान भी हैं जो ( मआजू अल्लाह ) हजूर के लिए दीवार के
पीछे का इल्म भी तसलीम नहीं करते।

हिकायत नम्बर ७) खुश अकोदा यअफूर

फतह खैबर के बाद हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम
वापस आ रहे थे के रास्ते में आपकी खिदमत में एक गधा हाजिर हुआ और
अर्ज करने लगा।

हुज॒र! मेरी अर्ज भी सुनते जाईये। हुज॒र रहमते आलम सल-लल्लाहो
तआला अलेह व सलल्‍लम उस मिसकीन जानवर की अर्ज सुनने को ठहर
गए और फ्रमाया बताओ क्‍या कहना चाहते हो, वो बोला, हुजूर मेरा नाम
यजीद बिन शहाब है और मेरे दादा की नस्ल से खुदा ने साठ खुर पैदा किए
हैं उन सब पर अल्लाह के नबी सवार होते रहे और हुजूर! मेरे दिल की ये
तमन्ना है के मुझ मिसकीन पर हुजर सवारी फ्रमाएँ और या रसूल अल्लाहः
मैं उस बात का मुसतहिक्‌ हूँ. और वो इस तरह के मेरे दादा की औलाद में
से सिवा मेरे कोई बाकी नहीं रहा और अल्लाह के रसूलों में से सिवा आपके
कोई बाकी नहीं रहा। हर

हुज॒र ने उसकी ये ख़्वाहिश सुन कर फ्रमाया अच्छा हम तुम्हें अपनी
सवारी के लिए मंजर फ्रमाते हैं और तुम्हारा नाम बदल कर हम यअफू
रखते हैं ( हुज्जत-उललाह अली अलआलमीन सफा 460 )

सबक्‌:- हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सललम की खेल
नबुव्वत का इक्रार एक गधा भी कर रहा है फिर जो खृत्म नबुव्वत का इंकार
करे वो क्‍यों ना गश्े से भी बदत्तर हो।

 

 

9९९06 99 (थ्वा]5८शाशश’

सच्बी हिंकीया। या … हिस्सा अव्वल
हिकायत नस्पर &) हुज्रा सथ्अन्स०) और
मलक-उल-मौत
सरवरे आलम सल-लल्लाहो त्तआला
शरीफ का जब वक्‍त आया तो मलक-उल-मौत किला के विसाल
हाजिर हुआ जिब्नाईले अमीन ने अर्ज किया: ह मईयत में
0 50 0308 ! ये मलक-उल-मौत आया है और
करता है, हुजर! उसने आज तक कभी ना |

की आपके बाद किसी से इजाजत लेगा हुजर अगर 0498 हट हे
काम करे हुजर ने फ्रमाया! मलक-उल-मौत को आगे आने दो चुनाँचे
प्रलक-उल-मौत आगे-बढ़ा और अर्ज करने लगा ” या रसूल अल्लाह! अल्लाह
तआला ने मुझे आपकी तरफ भेजा है और मुझे ये हुक्म दिया है के मैं आपका
हर हम मानूं और जो आप फ्रमाएँ वही करूँ, लिहाजा आप अगर फ्रमाएँ
तो मैं रूह मुबारक कब्ज करूं वरना वापस चला जाऊँ जिब्राइंल ने अर्ज
किया, हुजूर! खुदा बंद करीम आपके लकाऐ विसाल को चाहता है हुज॒र
ने फ्रमया तो ऐे मलक-उल-मौत तुम्हें जान लेने की इजाज है, जिब्राईल
बोले हुजूर! अब जब के आप तशरीफ्‌ लिए जा रहे हैं तो फिर जुमीन पर
मेरा ये आखिरी फेरा है इसलिए के मेरा मक्सूद तो आप ही थे, इसके बाद

मलक-उल-मौत कब्ज रूहे अनवर के शरफ्‌ से मुशर्रफ हुआ।
443 8 सफा 5/, जिल्द: 4, मिश्कात शरीफ सफा 54)
पा 2:- हमारे हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍्लम की
इतनी बड़ी शान है के वो मलक-उल-मौत जिसने कभी किसी बड़े से बड़े
बादशाह से भी इजाजत नहीं ली हमारे हुजर की खिदमत में हाजिर होकर
3 इजाजत तलब करता है और यूं कहता है के अगर आप फरमाएँ तो
वरना वापस चला जाऊँ और खुदा उसे ये हुक्म देकर भेज॑ता है के
कर “हमूब की इताअत करना, जो वो फ्रमाएँ वही करना बावजूद उसके
उनसे जी… को अपनी मिस्ल कहते हैं किस कृद्र गुमराह हैं क्या कभी

मलक-उल-मौत ने इजाजत ली है।

हिकायत नम्बर ७ शाही इसतकूबाल
जिब्नाइल, भैल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍लम के विसाल शरीफ्‌ के वक्त
अमीन हाजिर हुआ और अर्ज करने लगा या रसूल अल्लाह! आज

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आप से इजाजत

सच्ची हिकायात 5५6 न हे हिस्सा अव्वल
‘ आसमानों पर हुज॒र के इसतक्बाल की | हो रही हैं, खुदा तआला ने
जहन्नम के दारोगा मालिक को हुक्म दिया है के मालिक! मेरे हबीब की रूह
मुतहेरा आसमानों पर तशरीफ्‌ ला रही है, इस ओजाज में दोजुख की आग
बुझा दे और हूराने जन्नत से फ्रमाया के तुम सब अपनी तजईन व आरास्तगी
करों और सब फ्रिश्तों को हुक्म दिया है के तअजीमे रूह मुसत्तफा के लिए
सब सफ बसफ खड़े हो जाओ और मुझे हुक्म फ्रमाया है के में जनाब की
खिदमत में हाजिर होकर आपको बशारत दूं के तमाम अम्बिया और उनकी
उम्पतों पर जन्नत हराम है जब तक के आप और आपको उम्मत जन्नत में
दाखिल ना हो जाए और कल क्यामत को अल्लाह तआला आपकी उम्मत्‌
पर आपके तुफूल इस क॒द्र बख््शिश व मगृफ्रित की बारिश फरमाएगा के
आप राजी हो जाएँगे। ( मदारिज-उन्नबुव्वत सफा 54 जिल्द 2)

.. सबक्‌ः- हमारे हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍लम का
ओजाज व इक्राम दोनों आलम में है और जिन्न व बशर हूरो मलायक सभी
हुजर के खुद्दाम व लश्करी हैं और आप दोनों आलम के बादशाह हैं।

हिकायत नम्बर 0 हुजर सम्अन्सः ) का गुसल मुबारक
हुजर सल-लल्लाहो अलेह व सलल्‍लम के ग्स्ल मुबारक के वक्‍त
सहाबाइक्राम अलेहिम-उर्रिजुवान सोचने लगे और आपस में कहने लगे के
जिस तरह दूसरे लोगों के कपड़े उतार कर उनको गृस्ल दिया जाता है क्या
इसी तरह हुज॒र के कपड़े मुबारक भी उतार कर हुजूर को गृस्ल दिया जाएगा
या हुज॒र को कपड़ों समेत गस्‍ल दिया जाए? इस बात पर गुफ्तगू कर रहे थे
के अचानक सब पर नींद तारी हो गई और सब के सर उनके सीनों पर ढलक
आए फिर सब को एक आवाज आईं, कोई कहने वाला कह रहा था के तुम
जानते नहीं ये कौन हैं? खबरदार! ये “रसूल अल्लाह ” हैं इनके कपड़े ना
उतारना इन्हें “कपड़ों समेत ही गुस्ल दो” फिर सब की आँखें खुल गईं और
हुजूरः को कपड़ों समेत ही गुस्‍ल दिया गया। ( मबाहिब लद॒निया सफा 37
जिल्द 2 मिश्कात सफा 59)
सबक्‌:- हमारे हुजर॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍लम की
शान सब से मुमताज और बरगजीदा है और कोई शख्स ऐसा नहीं जो उनकी
मिस्‍ल हो आपकी ये जिन्दगी आपका विसाल शरीफ, आपका गृसल शरीफ
और आपका कब्र अनवार में रोनक्‌ अफ्रोजू होना हर बात आपकी मुमताज
है और कोई शख्स किसी बात में आपकी मिस्‍्ल नहीं।

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हिकावा 3/
की हिंकायत नम्बर 80 कृब्र अनवर से बाज

आवाज
(जस्त अली रजी अल्लाहो अन्ह फरमाते हैं जब हम हुज॒र सल-लल्लाहो
अलेह व सल्लम के दफ़ने मुबारक से फारिग हुए तो तीन रोज के बाद
कब्रे अनवर पर हाजिर हुआ और कब्र अनवर के सामने गिर
हर क्न्ब अनवर की खाक अपने सर डालने लगा और फिर कहने लगा। या
अल्लाह! जो कुछ आपने फ्रमाया हम ने सुना और आपकी जुबानी हम
अनफुसाहुम

आन की ये आयत भी सुनी कलो अन्नाहुम
आपके पास

जाऊका “यानी जो लोग अपनी जानों पर जुल्म कर बेठें वो
हाजिर हों” पस ऐ अल्लाह के रसूल! मैं अपनी जान पर जल्म कर बैठा हूँ
और अब गुनाहों की माफी के लिए आपके पास आ पहुँचा हूँ।

आराबी ने ये कहा तो कृत्र अनवर से आवाज आईं, “जाओ अल्लाह ने
तुर्ें बख़शा दिया।” ( हु,ज्जत-उल्लाह अली अलआलमीन सफा 77)

सबक्‌:- हमारे हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍्लम का
दरबार रहमत, विसाल शरीफ के बाद भी बदस्तूर लगा हुआ है और हुजर
अपने विसाल शरीफ के बाद भी गुनहगारों के लिए जरियाऐ निज़ात और
पुनब्बओ फयूज व बर्कात हैं और आज भी हम हुज॒र सल-लल्लाहो तआला
अलेह व सल्‍लम के बदस्तू मोहताज हैं। हे

हिकायत नम्बर 09 कृत्र अनवर से अज़ान की आवाज

जिन दिनों लश्करे यजीद ने मदीना मुनव्वरह पर चढ़ाई की उन दिनों तीन
दिन मस्जिद नबत्वी में अजान ना हो सकी हजरत सईद बिन अलमसीब र्जी
अल्लाह अन्ह ने ये तीन दिन मस्जिद नबत्वी में रह कर गुजारे, आप फरमाते
हैं के नमाज के बकृत हो जाने का मुझे कुछ पता नहीं चलता था मगर इस
7रह जब नमाज का वक्‍त आता कृब्र अनवर से एक हल्की सी अजान की
आवाज आने लगती। ( मिश्कात शरीफ सफा 59)
सबक्‌:- हमारे हुजर॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍लम कब्र
नव में भी जिन्दा हे और जो शख्स ( मआजृ अल्लाह ) हुज॒र को मर कर
मिट्टी में मिल जाने बाला लिखता है वो बड़ा बे अदब और गुस्ताखे रसूल है।

हिकायत नम्बर ७) आसमान का गिरया

मुनव्वरह में एक बार कहेत पड़ गया, बारिश होती ही ना थी लोग
>’जुल मोमिनीन हजरत आयशा सिद्दीका रजी अल्लाहो अन्हा की खिदमत

9९९06 99 (थ्वा]58८शाशश’

संच्ची हिकायात 58 हिस्सा अव्वल
में फरयाद लेकर हाजिर हुए हजरत उम्मुल मोमिनीन रजी अल्लाहो अच्हा ने
फ्रमाया, हुज्‌र सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍्लम की क॒न्न अनवर पर
से छत में एक सूराख कर दो ताके आसमान और कून्र में कोई हिजाब ना रहे
चुनाँचे लोगों ने ऐसा ही किया तो इस क्‌द्र बारिश हुईं के खेतियाँ हरी भरी
हो गईं और जानवर मोटे हो गए मोहद्दिसीन लिखते हैं के आसमान ने जब
कब्र अनवर को देखा तो रो पड़ा था। ( मिश्कात शरीफ सफा 527)
सबक्‌ः- हमारे हुजुर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍लम का
फ्यूज पाक विसाल शरीफ के बाद भी बदस्तूर जारी है और हुजर को
कब अनवर की जियारत से हर आँख आँसूओं के फूल बरसाने लगती
है और ये भी मालूम हुआ के अल्लाह से कुछ पाने के लिए हजर का
वसीला जरूरी है। हे

हिकायत नम्बर ७) बिलाल का ख़्वाब

हजरत उमर रजी अल्लाहो अन्ह के अहेदे खिलाफत में एक मर्तबा कहेत
पड़ गया तो हजरत बिलाल बिन हारिस मुजनी रजी अल्लाहो अन्ह रोजाऐ
अनवर पर हाजिर हुए और अर्ज किया या रसूल अल्लाह! आपकी उप्मत
हलाक हो रही है बारिश नहीं होती, हुजर॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह व
सल्लम उन्हें ख़्वाब में मिले और फरमाया ऐ बिलाल! उमर के पास जाओ उसे
मेरा सलाम कहो और कह दो के बारिश हो जाएगी और उमर से ये भी कहना
के कुछ नर्मी इख़््तियार करे ( ये हुज॒र ने इस लिए फ्रमाया के हजरत उमर
फारूक रजी अल्लाहो अन्ह दीन के मामले में बड़े सख्त थे ) हजरत बिलाल
हजूरत उमर की खिदमत में हाजिर हुए और हुज॒र का सलाम व पैगाम पहुँचा
दिया, हजरत उमर ये सलाम व पैगामे महबूब पा कर रोए और फिर बारिश
भी खूब हुई। ( शवाहिद-उल-हक्‌-लिलनबहानी सफा 67)

सबक्‌:- मालूम हुआ के विसाल शरीफ के बाद भी सहाबाइक्राम
मुश्किल के वक्‍त हजर ही की खिदमत में हाजिर होते थे और हर
मुश्किल यहीं से हल होती थी और ये भी मालूम हुआ के हजूरत उमर
फारूक रजी अल्लाहो अन्ह की बड़ी शान है और आप खुलीफा
बरहक्‌ हैं और इस क॒द्र खुशक्रिस्मत हैं के विसाल शरीफ के बाद
भी हुजर के सलाम व पैगाम से मुशर्रफ होते हैं फिर जिसे फारूके
आजम से अदावत होगी वो हजर सल-लल्लहो तआला अलेह व
सललम को क्‍यों ना बुरा लगेगा।

9९९06 99 (थ्वा5८शाशश’

हिका4 8९॥ जैज हिस्सा ५

(व हिकायत नम्बर उम्मे फातिमा मी
की एक औरत उम्मे फातिमा क्‍ में

असकन्द्रिया श तिमा मदीना मुनव्वरह में हाजिर

हुई तो उसका एक 8824: जख्मी और मुतावर्रिभ हो गया हत्ता के है

(है गई लोग मक्का मोअज्जमा जाने लगे मगर वो वहीं रह गईं, एक दिन वो

किसी तरह रोजाऐ अनवर पर हाजिर हुईं और रोजाऐं अनवर का तवाफ करने

करती जाती और ये कहती जाती, या हबीबी या रसूल अल्लाह

लगी तवाफ ! हि
चले गए और मैं रह गई, हुज्र! या तो मुझे भी वापस भेजिये या
8 पास बुला लीजिए ये कह रही थी के तीन अरबी नोजवान बम
हुए और कहने लगे के कौन मसक्‍्का मोअज़्जमा जाना चाहता है उप्मे
फातिमा ने जल्दी से कहा मैं जाना चाहती हूँ उनमें से एक बोला तो उठो,
उम्मे फातिमा बोली मैं उठ नहीं सकती उसने कहा अपना पैर फैलाओ तो
उम्मे फातिमा ने मतावर्रिम पैर फैला दिया उसका जो अब मुतावर्रिम पैर देखा
तो तीनों बोले हाँ यही वो है और फिर तीनों आगे बढ़े और उम्मे फातिमा
को उठा कर सवारी पर बैठा दिया और मक्का मोअज़्ज्मा पहुँचा दिया और
दरयाफ्त करने पर उनमें से एक नोजवान ने बताया के मुझे हुज॒र ने ख़्वाब में
हुक्म फ्रमाया था के उस औरत को मक्का पहुँचा दो उम्मे फातिमा कहती
है के मैं बड़े आराम से मक्का पहुँच गई। ( शवाहिद-उल-हक सफा १64)
सबक्‌:- हमारे हुजर॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍लम आज
भी हर फ्रयादी की फरयाद सुनते हैं और हर मुश्किल हल फरमा देते हैं
बशर्त ये के फरयादी दिल और सच्ची अकीदत से या हबीबी या रसूल
अल्लाह कहने का भी आदी हो।

हिकायत नम्बर (8) एक हाशमी औरत
मदीना मुनव्वरह में एक हाशमी औरत रहती थी उसे बअज लोग ईजा
दिया करते थे एक दिन वो हजर के रोजे पर हाजिर हुई और अर्जु करने लगी,
वा रसूल अल्लाह! ये लोग मुझे ईजा देते हैं, रोजाऐं अनवर से आवाज आई।
क्या मेरा असवाऐ हस्ना तुम्हारे सामने नहीं, दुश्मनों ने मुझे ईज़ाएँ दीं
और मैंने सब्र किया मेरी तरह तुम भी सब्र करो, वो औरत फ्रमाती है के
मुझे बड़ी तसकीन हुई और चन्द दिन के बाद मुझे ईजा देने वाले भी मर गए।
सबक्‌:- हमारे हजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍लम सबकी

9९९6 099 (थ्वा]5८शाशश’

. हिस्सा अव्वल
हिकॉयात 60
सच्ची हिकायात के लिए आप ही का दर, जाऐ पनाह है और या

सुनते है। और हर मजुलूम
रसूल हि कहने से हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍लम की
जानिब से रहमत व तसकीन, हासिल होती है।

हिंकायत नम्बर ७७ रसूल अल्लाह( स०्अध्सः ) का
…_ प्ैगाम एक मजूसी के नाम

शीराज के एक बुजर्ग हजरत फाश फ्रमाते हैं मेरे हाँ एक बच्चा पैदा
हुआ और भेरे पास खर्च करने के लिए कुछ भी ना था और वो मोसम इन्तिहाई
सर्दी का था मैं उसी फिक्र में सो गया तो ख़्वाब में हुजुर सल-लल्लाहो
तआला अलेह व सल्‍लम की जियारत नसीब हुई आपने फ्रमाया क्‍या बात
है? मैंने अर्ज किया हुज॒र खर्च के लिए मेरे पास कुछ नहीं बस इसी फिक्र
में था, हुज॒र ने फ्रमाया, दिन चढ़े तो फलाँ मजूसी के घर जाना और उससे
कहना के रसूल अल्लाह ने तुझे कहा है के बीस दीनार तुझे दे सा दे, हजरते
फाश सुबह उठे तो हैरान हुए के एक मजूसी के घर कैसे जाऊँ और रसूल
अल्लाह का हुक्म वहाँ कैसे सुनाऊँ और फिर ये बात भी दुर॒स्त है के ख़्वाब
में हुजर नजर आएँ तो वो हुजर ही होते हैं इसी शश व पंज में वो दिन गुजर
गया और दूसरी रात फिर हुज॒र की जियारत हुई और हुजुर ने फ्रमया तुम
इस खयाल को छोड़ो और उस मजूसी के पास जाकर मेरा पैगाम दो चुनाँचे
हजरत फाश सुबह उठे और उस मजूसी के घर चल पड़े, क्‍या देखते हैं के
वो मजूसी अपने हाथ में कुछ लिए हुए दरवाजे पर खड़ा है जब उसके पास ‘
पहुँचे तो चूंके वो उनको जानता ना था और ये पहली मर्तता उसके पास आए
थे इसलिए शर्मा गए और वो मजूसी खुद ही बोल पड़ा, बड़े मियाँ! क्‍या कुछ
हाजत है? हजरत फाश बोले हाँ मुझे रसूल अल्लाह सल-लल्लाहो तआला
अलेह व सललम ने तुम्हारे पास ये कह कर भेजा है के तुम मुझे बीस दीनार
दे दो, उस मजूसी ने अपना हाथा खोला और कहा तो लीजिए ये बीस दीनार
मैंने आप ही के लिए निकाल रखे थे और आपकी राह देख रहा था। हजरत
फाश ने वो दीनार ले लिए और उस मजूसी से पूछा, भई में तो भला रसूल
अल्लाह सल-लल्लाहो तआला अलेह व सललम को ख़्वाब में देख कर यहाँ
आया हूँ मगर तुझे मेरे आने का कैसे इल्म हो गया तो वो बोला, मैंने रात को
उस शक्ल व सूरत्त के एक नूरानी बुजर्ग को ख़्वाब में देखा है जिसने मुझ से
फरमाया के एक शख्स साहिबे हाजत है वो कल तुम्हारे पास पहुँचेगा उसे
बीस दीनार दे देना चुनाँचे मैं ये बीस दीनार लेकर तुम्हारे ही इन्तिजार में था।

9९९06 99 (थ्वा]58८शाशश’

9॥ हिस्सा. अव्वल
सच हि, ने जब उसकी जूबानी रात को मिलने वाले नूरांनी बुजर्ग का
हजरत सुना तो वो ह॒जूर सल-लल्लाहो अलेह व सल्‍लम का था चुनाँचे फाश
बसे कहा, यही रसूल सल-लल्लाहो अलेह व सल्लम हैं उस मजूसी ने ये
ने उससे धुन कर थोड़ी देर तोकिफ्‌ किया और फिर कहा मुझे अपने घर ले
वा चु्नाचे वो हजरत फाश के घर आया और कलमा पढ़ कर मुसलमान
गया फिर उसकी बीवी, बहन और उसकी औलाद भी मुसलमान हो गईं।
शवाहिद-उल- है ” सफा ॥69)
( सबक्‌ः- हमारे हुजूर सल-लल्लाहो अलेह व सल्‍लम की नजुरे रहमत
कु चर भी पड़े जाए उसका बेड़ा पार हो जाता है और ये भी मालूम हुआ
हर सल-लल्लाहो अलेह व सल्‍लम अपने मोहताज गलामों की फरयाद
सुतते हैं और विसाल शरीफ के बाद भी मोहताजों की मदद फरमाते हैं।

हिकायत नम्बर ७) ख्वाब का दूध

हजरत शेख अबु अब्दुल्लाह फरमाते हैं एक मर्तबा हम मदीना मुनव्वरह
हाजिरत हुए तो मस्जिद नबत्बी में महेराब के पास एक बुजुर्ग आदमी को
सोए हुए देखा थोड़ी देर में वो जागे और जागते ही रोजाएं अनवर के पास
जाकर हुजर अनवर सल-लल्लाहो अलेह व सल्‍लम पर सलाम अर्जू किया
और फिर मुसक्ुराते हुए लौटे एक खादिम ने उन से इस मुसकुराहट की वजह
पूछी तो बोले मैं सख्त भूका था इसी आलम में मैंने रोजाऐे अनवर पर हाजिर
होकर भूक की शिकायत की तो ख़्वाब में मैंने हुजर को देखा आपने मुझे
एक पियाला दूध का अता फ्रमाया और मैंने खूब पेट भर कर दूध पिया और
फिर उस बुजुर्ग ने अपनी हथेली पर मुंह से थूक कर दिखाया तो हम ने देखा
के हथेली पर वाकई दूध ही था। ( हुज्जत-उल्लाह,अलआलमीन, सफा 80)

सबक:- हुजर( स०्अब्स० ) को ख़्वाब में देखने बाला हुजर ही को
देखता है और हुजर की ख़्वाब में भी जो अता हो वो वाकुईं अता होती है
और ये भी मालूम हुआ के हुजर भी वैसे ही जिन्दा हैं जैसे पहले थे।

हिकायत नम्बर ७ ख़्वाब की रोटी…

|. हजरत अबुअलखेर फ्रमाते हैं एक मर्तबा मैं मदीना मुनव्वरह में हाजिर
ह्आा ३ मुझे पाँच दिन का फाक॒ह आ गया, मैं रोजाऐे अनवर पर हाजिर
हुआ और हुजर पर सलाम अर्ज करके फिर हजरत अबु बक्र और हजरत
उपर रजी अल्लाहो अन्हमा पर सलाम अर्ज़ किया और फिर अर्ज किय

9९९6 099 (थ्वा58८शाशश’

सच्ची हिकायात 652… ५ हिस्सा अव्वल
या रसूल अल्लाह! मैं तो आप का मेहमान हूँ और पाँच रोज से भूका हूँ,
अबुअलखैर कहते हैं के मैं फिर मिंबर के पास सो गया तो ख़्वाब में देखा
के हुज॒र॒ सल-लल्लाहो अलेह व सलल्‍्लम तशरीफ लाए हैं आपके दायें तरफ्‌
हजरत सिद्दीकु और बायें तरफ्‌ हजरत उमर और आगे हजूरत अली (रजी
अल्लाहो अन्हुम ) थे। हजरत अली ने मुझे आगे बढ़ कर खबरदार किया
और फरमाया उठो वो देखो! रसूल अल्लाह सल-लल्लाहो अलेह व सल्लम
तशरीफ ला रहे हैं और तुम्हारे लिए खाना लाए हैं, मैं उठा और देखा के
हुज॒र के हाथ में रोटी है वो रोटी हुजर ने मुझे अता फरमाई मैंने हुज्र की
पैशानी अनवर को बोसा देकर वो रोटो ले ली और खाने लगा आधी खाली
तो मेरी आँख खुल गई क्‍या देखता हूँ के बाकी आधी रोटी मेरे हाथ में है।
( हुज्जत-उललाह अली अलआलमीन, सफा 80 )

सबक्‌:- हमारे हुजर॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍लम विसाल
शरीफ के बाद भी कासिम रिज़्क्‌ु उल्लाह हैं और मोहताजों के लिए दाता
हैं और ये भी मालूम हुआ के बुजर्गाने दीन अपनी तकालीफ व मुश्किलात
बारगाहे नबव्वी में पेश किया करते थे और हुजूर विसाल के बाद भी अपने
गूलामों की फ्रयाद रसी फरमाते हैं।

हिकायत नम्बर ७0 शाहे रोम का कैदी

उन्दलिस के एक मर्द सालेह के लड़के को शाहे रोम ने कैद कर लिया
था वो मर्द सालेह फ्रयाद लेकर मदीना मुनव्वरह को चल पड़ा रास्ते में
एक दोस्त मिला, और उसने पूछा कहाँ जा रहे हो? तो उसने बताया के मेरे
लड़के को शाहे रोम ने कैद कर लिया है और त्तीन सौ रूपये उस पर जुर्माना
कर दिया है। मेरे पास इतना रूपया नहीं जो देकर मैं उसे छुड़ा सकूँ इसलिए
मैं हुजः सल-लल्लाहो अलेह व सल्‍लम के पास फ्रयाद लेकर जा रहा हूँ
उस दोस्त ने कहा मगर मदीना मुनव्वरह ही पहुँचने की क्‍या जुरूरत है हुज्र
से तो हर मकान पर शफाअत कराई जा सकती है उसने कहा ठीक है मगर
मैं तो वहीं हाजिर होरऊँगा। चुनाँचे वो मदीना मुनव्वरह हाजिर हुआ और
रोजाए अनवर की हाजूरी के बांद अपनी हाजत अर्ज की फिर ख्वाब में हुजर
सल-लल्लाहो अलेह व सल्‍लम की जियारत हुईं तो हुज॒र ने उससे फ्रमाया
“जाओ अपने शहर पहुँचो ” चुनाँचे वो वापस आ गया और घर आकर देखा
के लड़का घर आ गया है, लड़के से रिहाई का किस्सा पूछा तो उसने बताया
के फलानी रात मुझे और मेरे सब साथी कैदियों को बादशाह ने खद ही

9९९06 99 (थ्वा]5८शाशश’

हिकारवर्ति 03
संब्बी | था है इस मर्द सालेह ने हिसाब लगाया तोचेड हिस्सा अव्वल
रिहा की जियारत हुई थी और आपने फ्रमाया 58७) जिस

रात है. (हुज्जत-उललाह अली अलआलमीन, सफा 780 पा अपने शहर

पहुँची हमारे हुजर सल-लल्लाहो
सबक ४7 ९7६४ & अलेह व सल्लम
ह्व मदद फे करमाते हैं और क॒ब्र अनवर में तशरीफ कक
जुदा की मद हैं १ फ्रमा होकर भी अपने
पलामों ं क्की एआनत फरमाते हें और उनके गुलाम

गुलाम किसी मकान
/ ६ लब॒र्जह करें हुजूर की रहमत उनका काम कर देती है। से भी उनकी

हे हुआ के पहले हे क्‍
और ये भी मालूम हुआ के पहले बुजुर्ग की बारगाह में फाएं
करते थे और उसे किसी ने भी शिर्क नहीं कहा। . के का किया

हिकायत नम्बर (8 कातिल की रिहाई

बगृदाद के हाकिम इन्नाहीम बिन इसहाक्‌ ने एक रात ख्वाब में हुजरे
अक्रम सल-लल्लाहो अलेह व सलल्‍्लम को देखा और हुज॒र ने उससे फरमाया
“कातिल को रिहा कर दो ” ये हुक्म सुन कर हाकिम बगदाद कांपता हुआ
उठा और मातहेत अम्ले से पूछा के क्या कोई ऐसा मुज़िम भी है जो कातिल
हो? उन्होंने बताया के हाँ एक ऐसा शख्स भी है जिस पर इल्जाम- कत्ल हे
हाकिम बगृदाद ने कहा उसे मेरे सामने लाओ, चुनाँचे उसे लाया गया, हाकियें
बगृदाद ने पूछा के सच सच बताओ वाकेया क्‍या है? उसने कहा सच कहूँगा
झूट हरगिजू ना बोलूंगा, बात ये हुईं के हम अन्द आदमी मिलकर अय्याशी
व बदमाशी किया करते थे एक बूढ़ी औरत को हम ने मुक्र॑र कर रखा था
जो हर रात किसी बहाने से कोई ना कोई औरत. ले आती थी एक रात वो
एक ऐसी औरत को लाई जिसने मेरी दुनिया में इंकिलाब बर्पा कर दिया बात
० 2 वो नोवारिद औरत जब हमारे सामने आई तो चीख मार कर और
0९ डा गई मैंने उसे उठा कर एक दूसरे कमरे में लाकर उसे होश
बोशि श की और जब वो होश में आ गई तो उससे चीखने और
फिर के हक 5 हे गायों मेरे हक के 2 से

| |

रस जगह ले आई है देख:- जम जज ड़ पड

| डैके शरीफ औरत हूँ और सय्यदा हूँ, मेरे नाना रसूल अल्लाह
है _ल्लाहो तआला अलेह व सलल्‍्लम और मेरी माँ फातिमा-त-उज्जोहरा
था कद इस निस्बत का लिहाज रखना और मेरी तरफ्‌ बद निगाही से

9९९06 99 (थ्वा5८शाशश’

सच्ची हिकायात 64 हिस्सा अव्वल

हर मैंने जब उस पाक औरत से जो सय्यदा थी ये बात सुनी त्तो लरज गया
और अपने दोस्तों के पास आकर उन्हें हकीकृत हाल से आगाह किया और
कहा के अगर आक्बत की खैर चाहते हो तो इस मुकर्रमा व मोअज्जभा
खातून को बे अदबी ना होने पाए। मेरे दोस्तों ने मेरे इस वाज से ये समझा
के शायद मैं उनको हटा कर खुद तनहा ही इरतिकाबे गुनाह करना चाहता
हूँ और उनसे धोका कर रहा हूँ इस खयाल से मुझ से लड़ने पर आमादा हो
गए, मैंने कहा मैं तुम लोगों को किसी सूरत में इस अग्ने शीनअ की इजाजत
जा दूंगा लड़ंगा, मर जाऊंगा मगर उस सय्यदा की तरफ बद निगाही मंजर ना
करूंगा चुनाँचे वो मुझ पर झपट पड़े और मुझे उनके हमले से एक जख्म भी
आ गया और इसी असना में एक शख्स जो उस सय्यदा के कमरे की तरफ
जाना चाहता था मेरे रोकने पर मुझ पर जो हमला आवर हुआ तो मैंने उम्त
पर छुरी से हमला कर दिया और उसे मार डाला फिर उस सय्यदा को अपनी
हिफाजुत में लेकर बाहर निकाला तो शोर मच गया छूरी मेरे हाथ में थी पैं
पकड़ा गया और आज ये बयान दे रहा है

हाकिमे बगृदाद ने कहा, जाओ तुम्हें रसूल सल-लल्लाहो तआला
अलेह व सललम के हुक्म से रिहा किया जाता है। ( हुज्जत-उल्लाह अली
अलआलपमीन सफा 803 ) ु

सबक्‌:- हमारे हुजर॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह व सलल्‍लम अपनी
उम्मत के हर नेक व बद आदमी और हर नेक व बद अमल को जानते और
देखते हैं और ये भी मालूम हुआ के हुजर की निस्बत के लिहाज व अदब
से आदमी का अंजाम अच्छा हो जाता है लिहाजा हर उस चीज का दिल में
अदब व एहब्रामे रखना चाहिए जिसका हुज॒र सल-लल्लाहो तआला अलेह
व सल्लम से ताल्लुक्‌ हो। ०

हिकायत नम्बर ७७ जजीरे का केदी

इब्ने मरजक बयान करते हैं के जजीराऐं शिक्र के एक मुसलमान क्को
दुश्मनों ने कैद कर लिया और उसके हाथ पाँऊ लोहे की जंजीरों से बाँध कर
कैदखाने में डाल दिया और उस मुसलमान ने हुजर सल-लल्लाहो तआला
अलेह व सल्‍लम का नाम लेकर फरयाद की और जोर से कहने लगा “या
रसूल अल्लाह” ये नअरा सुन कर काफिर बोले अपने रसूल से कहो तुम्हें
इस कैद से छूड़ाने आए फिर जब रात हुई और आधी रात का वक्त हुआ तो
‘कैदखाने में कोई शख्स आया और उसने कैदी से कहा, उठो! “अजान कहो ”

9९९06 99 (थ्वा5८शाशश’

। 65 सदर
| हिस्सा अव्वल
ली किला दे न जजीरे पहुँचा अज्नहदत्ना
कैदी अल्लाह तो उसकी सब जंजीरें टूट गईं और वो आजाद हो
फिर सामने एक लकी रिहा हो गया और वो उस बाग से होता
गर्थी गया, सुबह उसको रिहाई का सारे जजीरे में चर्चा है
हुआ बाहर दक सफा 62) परे में चर्चा होने लगा।
( :- मुसलमान हुजूर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सलल्‍्लम
उक्षतत सिसालत हमेशा लगाते रहे और इस नअरा का मजाक उड़ाना
क्का काले र्सालत का काम है और ये भी मालूम हुआ के हुज॒र सल-लल्लाहो
का अलेह व सलल्‍लम का नाम मुश्किल कुशा है के ये नाम लेते ही मुसीबत
कली कड़ियाँ दूट जाती हैं। ्ि
हिकायत नम्बर ७0 फंसा हुआ जहाज
एक मर्दे सालेह को एक काफिर बादशाह ने गिरफ्तार कर लिया वो
फरमाते हैं उस बादशाह का एक बहुत बड़ा जहाज दरया में फंस गया था
जो बड़ी कोशिश के बावजूद दरया से निकल ना सका आखिर एक दिन
जिम्त क्र कैदी थे उनको बुलाया गया ताके वो सब मिलकर उस जहाजू
को निकालें चुनाने उन कैदियों ने जिनकी त्तअदाद तीन हजार थी मिलकर
कोशिश की मगर फिर भी वो जहाज निकल ना सका फिर उन कैदियों
ने बादशाह से कहा के जिस कुद्र मुसलमान कैदी हैं उनको कहिये वो ये
जहाज निकाल सकेंगे लेकिन शर्त ये है के वो जो नअरा लगाएं उन्हें रोका
ना जाए, बादशाह ने ये बात तसलीम कर ली और सब मुसलमान कैदियों
को रिहा कर के कहा के तुम अपनी मर्जी के मुताबिक्‌ जो नअरा लगाना
चाहो लगाओ और उस जहाज को निकालो। वो मर्दे सालेह फ्रमाते हैं के
हम सब मुसलमान कैदियों की तअदाद चार सौ थी हम ने मिल कर नअराऐ
रिसालत लगाया और एक आवाज से “या रसूल अल्लाह ” कहा और जहाजू
को एक धक्का लगाया तो वो जहाज अपनी जगह से हिल गया फिर हम ने
नअरा लगाते हुए उसे रूकने नहीं दिया हत्ता के उसे बाहर निकाल दिया।
( शवाहिद-उल-हक्‌-लिलनबहानी सफा ॥6)
सबक;:- नअराऐ रिसालत मुटतमरानों का मेहबूब नअरा है और
उसे हमेशा अपनाए रखाऔर उस नामे पाक से बड़े बड़े
काम हल हो जाते हैं फिर जो शख्स उस नअरा की मुखाल्फत करे
कृद्र बेखबर है | ॒

 

 

9९९06 099 (थ्वा]5८शाशश’

सच्ची हिकायात 66 हिस्सा अव्वल
. हिकायत नम्बर ७) एक सब्यदजादी और मजूसी

मुल्के समरकन्द में एक बेवा सय्यदजादी रहती थी उसके चन्‍न्द
भी थे, एक दिन वो अपने भूके बच्चों को लेकर एक रईस आदमी के पाप्त
पहुँची और कहा मैं सय्यदजादी हूँ मेरे बच्चे भूके हैं उन्हें खाना खिलाओ, वो
रईस आदमी जो दौलत के नशे में मख़्मूर और बराए नाम मुसलमान था कहने
लगा तुम अगर वाकुई सय्यदजादी हो तो कोई दलील पेश करो, सय्यदजाले
बोली मैं एक गुरीब बेवा हूँ जुबान पर एतबार करो के सय्यदजादी हूँ और
दलील क्या पेश करूँ? वो बोला मैं जुबानी जमा खर्च का मोअतकिद नहीं
अगर कोई दलील है तो पेश करो वरना जाओ , वो सय्यदजादी अपने बच्चों
को लेकर वापस चली आई और एक मजूसी रईस के पास पहुँची और अपना
किस्सा बयान किया वो मजूसी बोला, मोहत्रमा! अगरचे मैं मुसलमान नहीं
हूँ मगर तुम्हारी सियादत की तअजीम व क॒द्र करता हूँ आओ और मेरे हाँ हे
कयाम फ्रमाओ मैं तुम्हारी रोटी और कपड़े का जामिन हूँ, ये कहा और उम्े
अपने हाँ ठहरा कर उसे और उसके बच्चों को खाना खिलाया और उनकी
बड़ी खिदमत की, रात हुई तो वो बराए नाम मुसलमन रईस सोया तो उसने
ख़्वाब में हुजर॒ सरवरे आलम सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम को
देखा जो एक बहुत बड़े नूरानी महल के पास तशरीफ्‌ फ्रमा थे, इस रईस ने
पूछा या रसूल! ये नूरानी महल किस लिए है? हुजर ने फ्रमाया, मुसलमान
के लिए, वो बोला तो हुजर मैं भी मुसलमान हूँ ये मुझे अता फ्रमा दीजिए,
हुजर ने फरमाया अगर तू मुसलमान है तो अपने इस्लाम की कोई दलील पेश
कर! वो रईस ये सुनकर बड़ा घबराया, हुज॒र ने फिर उसे फ्रमाया मेरी बेटी
तुम्हारे पास आए तो उससे सियादत की दलील तलब करे और खुद बगैर
दलील पेश किए इस महल में चला जाए ना मुमकिन है, ये सुन कर उसकी
आँख खुल गई और बड़ा रोया फिर उस सय्यदजादी की तलाश में निकला
तो उसे पता चला के वो फलाँ मजूसी के घर कयाम पजीर है चुनाँचे उप
मजूसी के पास पहुँचा और कहा के हजार रूपये ले लो और वो सय्यदजाद॑
मेरे सपुर्द कर दो, मजूसी बोला क्‍या मैं वो नूरानी महल एक हजार
पर बेच दूं? ना मुमकिन है, सुन लो! हुज॒र॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह 4
सल्लम जो तुम्हें ख़्वाब में मिलकर उस महल से दूर कर गए हैं वो मुझे ४
ख़्वाब में मिलकर और कलमा पढ़ा कर उस महल में दाखिल फ्रमा गए अर
मैं भी बीवी बच्चों समेत मसलमान हँ और मझे हजर बशारत दे गए हैं के |

9९९06 99 (थ्वा]58८शाशश’

हिकरयीात है 67 “हिस्सा अब अव्वल ल्‍

के अयाल समेत जन्नती है। ( नुजहत-उल-मजालिस सफा क्‍५4 जिल्‍्द 2)

सबकः- दलील तलब करने वाला बराए नाम मुसलमान भी जन्नत से
पहुखूमे रहे गया और निस्‍्बते रसूल का लिहाज करके बगैर दलील के भी
वअजीम व अदब का वाला एक मजूसी भी दौलते ईमान से मुशर्रफ होकर
क्षत्रत पा गया मालूम हुआ के अदब व तअजीम रसूल के बाब में बात बात
पर दलील तलब करने वाले बराए नाम मुसलमान बदबख़्त और महरूम रह.
जाने वाले हैं।

हिकायत नम्बर ७0 अब्दुल्लाह बिन मुबारक
और सय्यदजादा

हजूरत अब्दुल्लाह बिन मुबारक रहमत-उल्लाह अलेह एक बड़े मजमओे
के साथ मस्जिद से निकले तो एक सब्यदजूदे ने उनसे कहा।

ऐ अब्दुल्लाह! ये कैसा मजमअ है? देख मैं फरजन्द रसूल हूँ और तेरा
बाप तो ऐसा ना था, हजरत अब्दुल्लाह बिन मुबारक ने जबाब दिया, मैं
वो काम करता हूँ जो तुम्हारे नाना जान ने किया था और तुम नहीं- करते
और ये भी कहा के बेशक तुम सय्यद हो और तुम्हारे वालिद रसूल अल्लाह
सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लपं हैं और मेरा वालिद ऐसा ना था
मगर तुम्हारे वालिद से इल्म की मीरास बाकी रही, मैंने तुम्हारे वालिद की
मीरास ली में अजीज और बुजूर्ग हो गया तुम ने मेरे वालिद की मीरास ली
तुमइज्जूत नापासके।…….

उसी रात ख्वाब में हजुरत अब्दुल्लाह बिन मुबारक ने हुजर सल-लल्लाहो
तआला अलेह व सल्‍लम को देखा के चेहराऐं मुबारक आपका मुतगय्यर है,
अर्जु किया या रसूल अल्लाह! ये रंजिश क्‍यों? फ्रमाया! तुम ने मेरे एक बेटे
पर नुक्ता चीनी की है अब्दुल्लाह बिन मुबारक जागे और उस सय्यदजादे की
पलाश में निकले ताके उससे माफी तलब करें, इधर इस सय्यद जादे ने भी
उसी रात को ख़्वाब में हुज़॒रे अक्रम को देखा और हुज॒र ने उससे ये फ्रमाया

बेटा अगर अच्छा होता तो वो तुम्हें क्यों ऐसा कलमा कहता बो सय्यद
जादा भी जागा और हजरत अब्दुल्लाह बिन मुबारक की तलाश में निकला
चुनांचे दोनों की मुलाकात हो गई और दोनों ने अपने अपने ख़्वाब सुना कर
पक दूसरे से मआजूरत तलब कर ली। ( तज॒करत-उल-औलिया सफा (73)
-….0:7 हमारे सल-लल्लाहो तआला अलेह व सललम उम्मत को

9०९06 99 (थ्वा]5८शाशश’

0 कि… 658 हिस्सा अच्बल
हर जात पर शाहिद और हर बात से बाखूबर हैं और ये भी मालूम हुआ के
२४ सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम से निस्बत रखने बाली किसी
ग पर नुक्ता चीनी करना हुजर की खृफ्गी का मौजिब है।

_हिकायत नम्बर ७७ अबु अलहसन खरकानी और
हदीस का दर्स

हैं जृरत अनु अलहसन खुरकानी अलेह अरहमा के पास एक शख्स इल्मे
हदीस पढ़ने के लिए आया और दरयाफ्त किया के आपने हदीस कहाँ से
पढ़ी? हजरत ने फ्रमाया, बराहे रास्त हुजर॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह ब
सल्लम से, उस शख्स को यकोन ना आया, रात को सोया तो हुज॒र ख्याब
में तशरीफ्‌ लाए और फ्रमाया अबु अलहसल सच कहता है मैंने ही उसे
पढ़ाया है, सुबह को हजरत अबु अलहसन की खिदमत में वो हाजिर हुआ
और हदीस पढ़ने लगा, बअज मुकामात पर हजरत अबु अलहसन ने फरमाया
हदीस आँ हजरत सल-लल्लाहो तआला अलेह व सलल्‍्लम से मरवी नहीं उस
शख्स ने पूछा के आपको कैसे मालूम हुआ, फ्रमया तुम ने हदीस पढ़ना
शुरू को तो मैंने हुजर॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह व॑ सल्‍लम के अब्नरूऐ
मुबारक को देखना शुरू किया मेरी आँखें हुज॒र के अन्नरूऐ मुबारक पर हैं
जब हुजूर के अब्नरूऐ मुबारक पर शिकन पड़ते है तो मैं समझ जाता हूँ के
हुजूर इस हदीस से इंकार फ्रमा रहे हैं। ( तजकरत-उल-औलिया सफा 4%)
.. सबक :- हमारे हुज॒र[ सन्‍्अब्स० ) जिन्दा हैं और हाजिर व नाजिर और
ये भी मालूम हुआ के अल्लाह वाले हुज॒र के दीदारे पुर अनवार से अब भी
मुशर्रफ होते हैं फिर जो हुजूर को जिन्दा ना माने वो खुद ही मुर्दा है।

_हिकायत नम्बर ७७ एक वली और मोहहिस

एक वली एक मोहहिस के दर्से हदीस में हाजिर हुए तो एक मोहहिस ने
एक हदीस पढ़ी और कहा काला रसूल अल्लाह सल-लल्लाहो तआला अलेह
व सललम यानी रसूल अल्लाह सल-लल्लाहो तआला अलेह ब सल्लम ने य्‌ं
फ्रमाया तो वो वली बोले, ये हदीस बातिल है रसूल अल्लाह सल-लल्लाहो
तआला अलेह व सललम ने हर गिज यूं नहीं फ्रमाया, वो मोहहिस बोले
के तुम ऐसा क्‍यों कह रहे हो? और तुम्हें कैसे पता चला के रसूल अल्लाह

सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम ने ऐसा नहीं फरमाया? तो बली ने
जवाब दिया:-

 

 

9९९06 99 (थ्वा]5८शाशश’

हिंक्कायात 69
6 अन्नषिय्यू सल-लल्लाहो अलेही व सल्त्रम बक
टिका “हे हल अलेह व सल्ता, नस! “ये देखो नबी करीम
५ तआला अलेह व सल्लम तुम्हारे सर पर हर &
डे मैंने हर 22080 हदीस ३5५ अ ह
मोहद्धिंस हैरान रह गए और वली बोले, क्या तुप
वो चाहते हो तो देख लो, चुनाँचे जब उन मोहहिस 2 अप
की को तशरीफ फ्‌रमा देख हा । ( फ्तावा हदीस सफा 2(2)

6६ ब्रक:- हमारे हुजूर हाजिर व नाजिर हैं मगर देखने के लिए किसी
क्कनिजर दरकार है और किसी कामिल वली की नजरे करम हो जाए
थो आज भी सरकारे अबद करार के दीदार पुर अनवार का शरफ्‌ हासिल
हो सकता है।

एक मुशायरा
एक मजलिस मुशायरे में एक इसाई शायर ने हस्बे जेल शैर कहे :-
मोहम्मद तो जमीं में बेगुमाँ है! |
फलक पर इब्ने मरयम का मक्का है
जो ऊँचा है वही अफजल रहेगा
जो नीचे है धला अफ्जल कहाँ है?
एक मुसलमान शायर ने उसके जवाब में ये शैर कहा :-
तराज को उठा कर देख नागा!
वहीं झुकता हैं जो पल्‍ला गिरा है

तीसरा बाब
अम्बियाइक्राम ( अलेहिस्सलाम )

तिल्‍्कर्रसूलु फक्ज्ल्ता बअज़ाहुम अला बअजिन
मिनुस्म मन कल्लायल्लाहो व रफाआ बअजाहुम वराजातिन

हिकायत नम्बर ७७ हजुरत आदम अलेहिस्सलाम
और शैतान दा

खुदावन्द करीम ने फरिश्तों में जब एलान फ्रमाया के मैं जीमन में

पना एक खलीफा बनाने वाला हूँ। तो शैतान लईन ने उस बात का बहुत

9९९06 99 (थ्वा]5८शाशश’

सच्ची हिकायात 70 हिस्सा अव्वल
बुरा मनाया और अपने जी ही जी में हसद की आग में जलने लगा।

चुनाँचे जब खुदा ने हजरत आदम अलेहिस्सलाम को पैदा फरमा कर
फरिश्तों को हुक्म दिया के मेरे खलीफा के आगे सज्दे में झुक जाओ। तो सब
सज्दे में झुक गए। मगर शैतान लईन अकड़ रहा। और ना झुका। खुदावन्द
करीम को उसका ये तजुर्बा पसंद ना आया। और उससे दरयाफ्त फरमाया।
के ऐ इबलीस! मैंने जब अपने ये क॒द्गत से बनाए हुए रालीफा के आगे सज्दा
करने का हुक्म दिया। तो तुम ने क्‍यों ना सज्दा किया शंतान ने जवाब दिया।

मैं आदम से अच्छा हूँ। इसलिए के मैं आग से बना हुआ हूँ और वो पिटरी
से बना है। फिर में एक बशर को सज्दा क्‍यों करता?

खुदा तआला ने उसका ये रऊनत भरा जवाब सुना। तो फरमाया:

मर्दूद निकल जा मेरी बारगाहे रहमत से। जा तू कृुयामत तक के लिए
मर्दूद व मलऊन है। ( क्रआने करीम सूरह बक्र )

सबक :- खदा के रसूल और उसके मक्बूलों की इज्जत व तअजीम
करने से खदा खुश होता है। और उनको अपनी मिसल बशर समझ कर उनकी
तअजीम से इंकार कर देना फैल शैतान है। और एक पैगृम्बरे ख़ुदा को सबसे
पहले तहकीरन बशर कहने वाला शैतान है। हु

हिकायत नम्बर ७७ शैतान की थूक

खदा ने जब हजरत आदम अलेहिस्सलाम का पुतला मुबारक तैयार
फरमाया तो फरिश्ते हजरत आदम अलेहिस्सलाम के उस पुतले मुबारक की
जियारत करते थे। मगर शैतान लईन हसद की आग में जल भुन गया। और
एक मर्तबा उस मर्दूद ने बुग्जु व कीने में आकर हजरत आदम अलेहिस्सलाम
के पुतले मुबारक पर धूक दिया ये थूक हजरत आदम अलेहिस्सलाम
की नाफ मुबारक के मुकाम पर पड़ी, खदा तआला ने हजूरत जिब्राईल
अलेहिस्सलाम को हुक्म दिया। के उस जगह से इतनी मिली निकाल कर उस
मिट्टी का कुत्ता बना दो। ह

चुनाँचे उस शैतानी थूक से मिली हुई मिट्टी का कुत्ता बना दिया गया। ये
कुत्ता आदमी से मानूस इसलिए है। के मिड्री हजरत आदम अलेहिस्सलाम की
है। और पलीद इसलिए है। के थूक शैतान की है। और रात को जागता इसलिए
है के हाथ इसे जिब्राईल के लगे हैं। ( रूह-उल-बयान सफा 68 जिल्द )

सबक्‌ः:- शैतान के थूकने से हजरत आदम अलेहिस्सलाम का कुछ
नहीं बिगड़ा। बल्के मुकामे नाफ शिकम के लिए वजह जीनत बन गया। इसी

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ही हिंकायाते /
## (लाह वालों की बारगाह में गुस्‍ताख़ी करने से उन अल्लाह
(रह हीं बिगड़ता। बलल्‍्कें उनकी शान और भी चमकती है। और ये भरी

आओ । के अल्लाह वालों को हसद व नुसरत की निगाह से देखना

र्क्की
मा काम है।

नम्बर 60) हजरत आदम अलेहिस्सलाम

“7. और जंगली हिरन

हजरत आदम अलेहिस्सलाम जब जन्नत से जमीन पर

र तशरीफ लाए
तो जमीन के जानवर आपको जियारत को हाजिर होने लगे। हजरत आओ

अलेहिस्सलाम हर जानवर के लिए उसके लायक दुआ फरमाते। उसी तरह
जंगल के कुछ हिरन भी सलाम करने और जियारत की नीयत से हाजिर
हुए। आपने अपना हाथ मुबारक उनकी पुश्तों पर फेरा। और उनके लिए
दुआ फरमाई। तो उनमें नाफाऐ मुश्क पैदा हो गई। वो हिरन जब ये खूश्बू
का तोहफा लेकर अपनी कौम में बापस आए। तो हिरनों के दूसरे गिरोह ने
पूछा! के ये खूश्बू तुम कहाँ से ले आए? वो बोले अल्लाह का पैगम्बर आदम
अलेहिस्सलाम जन्नत से जूमीन पर तशरीफ लाया है। हम उनकी जियारत के
लिए हाजिर हुए थे। तो उन्होंने रहमत भरा अपना हाथ हमारी पुछ्तों पर फेरा।
तो ये पक हो गईं। हिरनों का वो दूसरा गिरोह बोला। तो फिर हम भी
जते हैं। चुनाँचे वो भी गए हजरत आदम अलेहिस्सलाम ने उनकी पुएतों पर
है २0 उनमें वो खूश्बू पैदा ना हुई। और वो जैसे गए थे। वैसे
38९६ आ गए। वापस आकर वो मुतअज्जिब होकर बोले। के ये
298 तुम गए तो खूश्बू मिल गई। और हम गए तो कुछ ना मिला।
जो हा जवाब दिया। इसकी वजह ये है के हम गए थे। सिर्फ जियारत
कल ! तुम्हारी नीयत दुरस्त ना थी। ( नुजृहत-उल-मजालिस सफा 4

कुछ मिलता झा 0 अल्लाह वालों के पास नेक नीयती से हाजिर होने में बहुत
अपनी नीयत | ओर अगर किसी बदबख़्त को कुछ ना मिले। तो उसकी
केसर नहीं प्‌ का कसूर होता है। अल्लाह वालों की दैन व अता का कोई
35 नहीं होता।

हज मर पर उकायत नम्बर 60 नूह अलेहिस्सलाम की कश्ती
* नह अलेहिस्सलाम की कौम बडी बदबख़्त और नाआकृबत

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सच्ची हिकायात 72 हिस्सा
अन्देश थी। हजरत नूह अलेहिस्सलाम ने साढ॑ नो सौ साल के अर्से में के
तबलीगे हक्‌ फ्रमाई। मगर वो ना माने। आखिर नूह अलेहिस्सलाम ने उनकी
हलाकत की दुआ माँगी। और खुदा से अर्ज की। के मौला! इन काफिरों
बेखू व बिन से उखाड़ दे। चुनाँंचे आपकी दुआ कबूल हो गईं। और
ने हुक्म दिया के, ऐ नूह! मैं पानी का एक तूफाने अजीम लाऊँगा। और उन
सब काफिरों को हलाक कर दूंगा। तू अपने और चन्द मानने वालों के लिए
एक कश्ती बना ले। ;

चुनाँचे हजरत नूह अलेहिस्सलाम ने एक जंगल में कश्ती बनाना
फ्रमाई काफिर आपको देखते और कहते। ऐ नूह! क्या करते हो आए
फरमाते ऐसा मकान बनाता हूँ। जो पानी चले। काफिर ये सुन कर हंसते और
तमसखर करते थे हजरत नूह अलेहिस्सलाम फ्रमाते। के आज तुम हंसते हो
और एक दिन हम तुम पर हसेंगे। हजरत नूह अलेहिस्सलाम ने ये कश्ती दे
साल में तैयार की। उसकी लम्बाई तीन सौ गज, चौड़ाई पचास गज।] और
ऊँचाई तीस गडझ। थी। इस कशती में तीन दर्जे बनाए गए थे। नीचे के दर्जे में
व-हवश और दरिन्दे, दरमियानी दर्जे में चौपाए वगरा। और ऊपर के दर्जे
में खुद हजरत नूह अलेहिस्सलाम और आपके साथी और खाने पीने का
सामान, परिंदे भी ऊपर के दर्जे में थे, फिर जब बहुक्म इलाही तूफाने अजीग
आया। तो उस कश्ती पर सवार होने वालों के सिवा रूऐ जमीन पर जो कोई
था। पानी में गृर्क हो गया। हत्ता के नूह अलेहिस्सलाम का बेटा कनआन भी
जो काफिर था। उसी तूफान में गृर्क हो गया। ( करआने करीम सूरते हू!
खुजायन-उल-इर्फान सफा 33) पर

सबक:- खदा की नाफरमानी से इस दुनिया में भी तबाही व हलाका।
कासामना करना पड़ता है। और अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान, और
उनकी इताअत से ही दोनों जहान में निजात व फलाह मिल सकती है।

हिकायत नम्बर ७0 तूफाने नूह और एक बूढ़िया
हजरत नूह अलेहिस्सलाम ने बहुक्मे इलाही जब कश्ती बनाना शुर्र
की तो एक मोमिना बूढ़िया ने हजुरत नूह से पूछा। के आप ये कश्ती
बना रहे हैं। आपने फ्रमाया। बड़ी बी! एक बहुत बड़ा पानी का तूफान
वाला है जिसमें सब काफिर हलाक हो जाऐंगे। और मोमिन इस कश्ती के
जरिये बच जाऐंगे। बूढ़िया ने अर्ज किया। हुज॒र! जब तूफान आने वाला हों
तो मुझे खबर कर दीजिएगा। ताके मैं भी कश्ती पर सवार हो जाऊँ। बृढ़ियी

9९९06 099 (थ्वा5८शाशश’

 

 

हिकावात श्जे ‘ हिस्सा
सेल झोपड़ी ढ्ी शहर से बाहर कुछ फासले पर थी। फिर जब बजा न का बतते
आया। तो हजरत नूह अलेहिस्सलाम दूसरे लोगों को तो कश्ती पर चढ़ाने
म मशगल हो गए। मगर उस बूढ़िया का खयाल ना रहा हत्ता के खदा का
क्र अजाब पानी के तूफान की शकल में आया। और रूऐ जमीन के
सब कार्फिर हलाक हो गए। और जब ये अजाब थम गया। और पानी उतर
गया। और कश्ती वाले कश्ती से उतरे तो वो बूढ़िया हजरत नूह अलेहिस्सलाम
के पास हाजिर हुई। और कहने लगी।
हजरत! वो पानी का तूफान कब आएगा? हर रोजू इस इन्तिजार में हूँ
के आप कब कश्ती में सवार होने के लिए फ्रमाते हैं। हजरत ने फ्रमाया
बड़ी बी! तूफान तो आ भी चुका। और काफिरि सब हलाक भी हो चुके। और
कश्ती के जरिये ख॒दा ने अपने मोमिन बन्दों को बचा लिया। मगर तअज्जुब
है के तुम जिन्दा कैसे बच गईं अर्ज किया। अच्छा ये बात है। तो फिर उसी
ख़दा ने जिसने आपको कश्ती के जरिये बचा लिया। मुझे मेरी टूटी फूटी
झॉपड़ी ही के जरिये बचा लिया। ( रूह-उल-बयान सफा & जिल्द 2)
सबक्‌ः- जो खुदा का हो जाए। खुदा हर हाल में उसकी मदद
फरमाता है और बगैर किसी सबब जाहिरी के भी उसके काम हो जाते हैं।

हिकायत नम्बर ७0 हजरत उजेर अलेहिस्सलाम और
खुदा की क॒द्गत के कारिएमे

बनी इस्राईल जब खदा की नाफरमानी में हद से ज़्यादा बढ़ गए।

तो खदा ने उन पर एक जालिम बादशाह बख्त नम्न को मुसलल्‍्लंत कर
दिया। जिसने बनी इस्राईल को कत्ल किया। गिरफ्तार किया। और तबाह
किया। और बैत-उल-मुक्‌दस को बर्बाद व वीरान कर डाला। हजरत ड्जैर
अलेहिस्सलाम एक दिन शहर में तशरीफ्‌ लाए तो आपने शहर को बीरानी
पे बर्बादी को देखा। तमाम शहर में फिरे। किसी शख्स को वहां ना पायां।
शहर की तमाम इमारतों को मुनहदिम देखा! ये मंजूर देख कर आपने बराह
पआज्जुब फ्रमाया। अन्नीया बूहिवी यी हाजीहिल्लाहू बअदा मौतिहा वअनब
“अल्लाह इस शहर की मौत | बाद उसे फिर केसे जिन्दा फ्रमाएगा? .
आप एक दराज गोश पर सवार थे। और आपके पास एक बर्तन खजूर
और एक पियाला अंगूर के रस का था। आपने अपने दराजंगोश को एक
ज्त से ब्राधा और जम वूख्न के नीचे आप सो गए। जब सो गए। तो खुदा

9८०९0 09५ (.क्राइट्याल

संच्छी. हिंकायात स्व हिस्सा अव्वल
ने. उसी हालत में आपकी रूह कब्ज कर ली। और गधा भी मर गया। इस
चाक्केये के सत्तर साल बाद अल्लाह तआला ने शाहाने फारस में से एक
बादशाह को मुसलल्‍लत किया। और वो अपनी फौजें लेकर बैत-उल-मुक्‌दस
पहुँचा। और उसको पहले से भी बेहतर तरीके पर आबाद किया और बनी
इस्राईल में से जो लोग बाकी रहे थे। खुदा तआला उन्हें फिर यहाँ लाया। और
वो बैत-उल-मुकूदस और उसके नवाह में आबाद हुए। और उनकी तअदाद
बढ़ती रही। उस जमाना में अल्लाह तआला ने हजूरत उजैर अलेहिस्सलाम
को दुनिया की आँखों से पौशीदा रखा। और कोई आपको देख ना सका जब
आपकी वफात को सौ साल गुजर गए। तो अल्लाह ने दोबारह आपको जिन्दा
किया। पहले आँखों में जान आईं। अभी तमाम जिस्म मुर्दा था। वो आपके
देखते देखते जिन्दा किया गया। जिस वक्त आप सोए थे। वो सुबह का वक्त
था। और सौ साल के बाद जब आप दोबारह जिन्दा किए गए तो ये शाम का
वक्‍त था। खदा ने पूछा। ऐ उजैर! तुम यहाँ कितने ठहरे? आपने अंदाजे से
अर्ज किया। के एक दिन या कुछ कम। आपका खयाल ये हुआ के ये उसी
दिन की शाम है जिसकी सुबह को सोए थे। खुदा ने फ्रमाया। बल्के तुम तो
सौ बरस ठहरे हो। अपने खाने और पानी यानी खजूर और अंगूर के रस को
देखिये के वैसा ही है इसमें बू तक नहीं आई और अपने गथे को भी जरा
देखिए। आपने देखा। तो वो मरा हुआ और गल चुका था। आजू उसके बिखरे
हुए और हड्डियाँ सफेद चमक रही थीं। आपकी निगाह के सामने अल्लाह
ने उस गधे को भी जिन्दा फ्रमाया। पहले उसके अज्जा जमा हुए और अपने
अपने मौके पर आए। हड्डियों पर गोश्त चढ़ा। गोश्त पर खाल आई। बाल
निकले फिर उसमें रूह आई। और आपके देखते देखते ही वो उठकर खड़ा
हुआ। और आवाज करने लगा। आपने अल्लाह की कूद्रत का मुशाहेदा किया।
और फरमाया मैं जानता हूँ के अल्लाह तआला हर शै पर कादिर है। फिर
आप अपनी सदारी पर सवार होकर अपने मोहल्ले में तशरीफ लाए।

कोई पहचानता ना था। अंदाजे से आप अपने मकान पर पहुँचे उम्र आपकी
वही चालीस साल की थी। एक जईफ बूढ़िया मिली। जिसके पाऊँ रह गए थे
और नाबीना थी। बो आपके घर की बांदी थी और उसने आपको देखा थीं
आपने उससे पूछा। के ये उजैर का मकान है। उसने कहा] हाँ। मगर उजैर
गुम हुए सौ बरस गुजर गए। ये कह कर खूब रोई। आपने फ्रमाया।
तआला ने मुझे सौ बरस मुर्दा रखा फिर जिन्दा किया। बूढ़िया बोली। ई*
अलेहिस्सलाम मुसतजाब-उल-दावात थे। जो दुआ करते कूबूल हो जा

9९९06 99 (थ्वा]58८शाशश’

सच्ची हिंकायात हैं 75 कीजिए हिस्सा अव्वल
। आप अगर उजैर हैं। तो दुआ कीजिए। के मैं मं
करती हक आपको देखे दुआ कोजिए के मैं बीना हो जाऊँ ताके
आपने दुआ की तो वो बीना हो गई। फिर आपने उसका हाथ पकड़
क्र फरमाया खुदा के हुक्म से देख ये फ्रमाते ही उसके मरे हुए पाऊँ भी
दुरूस्त हो गए उसने आपको देख कर पहचाना और कहा। मैं गवाही देती
हूँ। के आप बेशक उजैर ही हैं। फिर वो आपको मोहल्ले में ले गई। वहाँ एक
प्रजलिस में आपके फ्रजन्द थे। जिनकी उम्र एक सौ अ्भारह साल की हो
थी। और आपके पोते भी थे। जो बूढे हो चुके थे। बूढ़िया ने मजलिस
में पुकारा। ये हजुरत डजैर तशरीफ लाए हैं, अहले मजलिस ने उस बात को
। उसने कहा मुझे देखो। मैं आपकी दुआ से बिलकुल तनदुरूस्त और
बीना हो गई हूँ। लोग उठे और आपके पास आए। आपके फ्रजन्द ने कहा।
मेरे वालिद साहब के शानों के दरमियान सियाह बालों का एक हलाल था।
जिस्म मुबारक खोल कर देखा गया। तो वो मौजूद था। ( करआन करीम प०
3 रूकू 3 और खजायन-उल-इफान सफा & ) हु
सबके्‌:- खुदा को नाफ्रमानी का एक नतीजा ये भी है। जालिम
हाकिम मुसललत कर दिए जाते हैं। और मुल्क बर्बाद व वीरान हो जाते हैं।
और अल्लाह तआला बड़ी क॒द्गतों का मालिक है। वो जो चाहे कर सकता
है और एक दिन उसने सब का दोबारह जिन्दा करके अपने हुज॒र बुलाना है
और हिसाब लेना है और ये भी मालूम हुआ के नबी का जिस्म मौत वारिद
होने के बाद भी सही सालिम रहता है। हाँ जो गधे हैं वही मर कर मिट्टी में
मिल जाते और मिट्टी हो जाते हैं।

हिकायत नम्बर ७) हजरतं इब्राहीम अलेहिस्सलाम
और चार परिनदे

हजरत इब्राहीम अलेहिस्सलाम ने एक रोज सपुद्रं के किनारे एक आदमी

भरा हुआ देखा। आपने देखा के समुद्र की मछलियाँ उसकी लाश को खा रही
। और धोड़ी देर के बाद फिर परिन्‍्दे आकर उसकी लाश को खाने लगे
फिर आपने देखा के जंगल के कुछ दरिन्दे आए। और वो भी उसकी लाश को
खाने लगे । आपने ये मंजर देखा। तो आपको शौक हुआ के आप मुलाहेजा
माएँ। के मुर्दे किस तरह जिन्दा किए जाएँगे चुनाँचे आपने खुदा से अर्ज
। इलाही! प्रह्मे यक्कीन है व्मे त मर्ठों को जिन्दा फेरंमाएगा। और उनंके

9९९06 99 (थ्वा]58८शाशश’

 

 

सच्ची हिकायात /6 दरिन्दों के पेटों हस्सा अचल
अज्जाऐ दरयाई जानवरों। परिन्दों और दरिन्द के से जमा फ्रमाणा
लेकिन मैं ये अजीब मंजर देखने की आरजू रखता है। सुदा ने फरमाया
ऐ खूलील! तुम चार परिन्दे लेकर उन्हें अपने साथ हिला लो। ताके
तरह उनकी शनाख़्त हो जाए। फिर उन्हें जिबह करके उनके अज्जाऐ
मिला जुला कर उनका एक एक हिस्सा। एक एक पहाड़ पर रख दो।
फिर उनको बुलाओ। और देखो वो किस तरह जिन्दा होकर. तुम्हारे पाप
दौड़ते हुए आते हैं। |
चुनाँचे हजुरत इब्राहीम अलेहिस्सलाम ने मोर, कबूतर , मुर्ग और कव्चा।
ये चार परिन्दे लिए और उन्हें जिबह किया। और उनके पर उखाड़े , और उन
सब का कीमा करके और आपस में मिला जुला कर उस मजमूओ के कई
हिस्से किए। और एक एक हिस्सा एक एक पहाड़ पर रख दिया। और सा
सब के अपने पास महफूज रखे। और फिर आपने उनसे फ्रमाया। “चल्ले
आओ।” आपके फरमाते ही वो अज्जा उड़े और हर हर जानवर के अज्जा
अलेहदा अलेहदा होकर अपनी तरतीब से जमा हुए। और परिनदों की शक्हें
बनकर अपने पाँऊ से दौड़ते हुए हाजिर हुए। और अपने अपने सरों से मिलक
बईनही पहले की तरह मुकम्मल होकर उड़ गए। ( कुरआन करीम प० 3 रूक्‌
3 खजायन-उल-इफान सफा 6) ‘
सबकः:- खदा तआला बड़ी कृद्रत व ताकृत का मालिक है। कोई
डूब कर मर जाए और उसे मछलियाँ खा जाएँ या जल कर मरे और राख हो
जाए। या किसी को दरिन्दे परिन्दे और दरयाई जानवर थोड़ा थोड़ा खा जाएं।
और उसके अज्जा मुनतशिर हो जाएँ खदाऐ बरतर व तवाना फिर भी उसे
जमा फरमा कर जरूर जिन्दा फ्रमाएगा। और बारगाह ऐज्दी की हाजरी से
उसे मुफ्रि नहीं। और ये भी मालूम हुआ के मुर्दे सुनते हैं। वरना खुदा अपने
खलील से ये ना फ्रमाता के उन मुर्दा और कीमा शुदा परिन्दों को बुला।
हजरत इब्नाहीम अलेहिस्सलाम ने बहुक्म इलाही उन मुर्दा परिन्‍्दों को बुलाया
और वो मुर्दा परिन्दे आपकी आवाज को सुन कर दौड़ पड़े। ये परिन्दों की
समाअत है। और जो अल्लाह वाले हैं। उनकी समाअत का आलम क्या हुआ
और ये भी मालूम हुआ के। उन परिन्‍्दों को जिन्दा तो खदा ने किया। लेकिन ये
जिन्दगी उन्हें मिली इब्राहीम अलेहिस्सलाम के बुलाने और उनके लब हिलने
से, गोया किसी अल्लाह वाले के लब हिल जाएँ। तो खुदा काम कर
है। इसी लिए मुसलमान अल्लाह वालों के पास जाते हैं ताके उनकी मुबारक
और मुसतजाब दुआओं से अल्लाह हमारा काम कर दे।

9०९06 099 (थ्वा5८शाशश’

सच्ची हिरकी हिस्सा अव्वल

. हिकायत नम्बर ७) तीशाऐ खलील

अलेहिस्सलाम जब पैदा हुए

हजार की क्ा बड़ा जोर था। हजरत इब्नाहीम 2203958& बज दिन
डुन बुत परस्तों से फरमाने लगे। के ये तुम्हारी क्या हरकत है के उन मूर्तियों
के आगे झुके रहते हो। ये तो परसतिश के लायक नहीं। परसतिश के लायक

सिर्फ एक अल्लाह है। ह

बो लोग बोले। हमारे तो बाप दादा भी इन्हीं मूर्तियों की पूजा करते चले

आए हैं 5 2४ तुम एक ऐसे आदमी पैदा हो गए हो। जो उनकी पूजा से
लगे हा। ।

कम फरमाया | तुम और तुम्हारे बाप दादा सब गुमराह हैँ । हक बात
यही है। जो मैं कहता हूँ। के तुम्हारा और जूमीन व आसमान सबका रब वो
है जिसने उन सब को पैदा फ्रमाया। और सुन लो! मैं खुदा की कसम खा
कर कहता हूँ। के तुम्हारे इन बुत्तों को मैं समझ लूंगा।

चुनाँचे एक दिन जब के बुत परस्त अपने सालाना मेले पर बाहर जंगल
में गए हुए थे। हजरत इब्राहीम अलेहिस्सलाम उनके बुतखाने में तशरीफ्‌ ले
गए। और अपने तीशे से सारे बुत तोड़ फोड़ डाले और जो बड़ा बुत था। उसे
ना तोड़ा और अपना तीशा उसके कंधे पर रख दिया। उस खयाल से के बुत
परस्त जब यहाँ आएँ। तो अपने बुतों का ये हाल देख कर शायद उस बड़े
बुत से पूछें। के उन छोटे बुतों को ये कौन तोड़ गया है? और ये तीशा तेरे
कंधे पर क्यों रखा है? और उन्हें उनका अज्जु जाहिर हो और होश में आएं
के ऐसे आजिज खुदा नहीं हो सकते।

चुनाँचे जब वो लोग मे मेले से वापस आए और अपने बुतखाने में पहुँचे
तो अपने मअबूदों का ये हाल देखकर के कोई इधर दूटा हुआ पड़ा है, किसी
का हाथ नहीं तो किसी की नाक सलामत नहीं। किसी की गर्दन नहीं तो किसी
की टाँगें ही गायब हैं। बड़े हैरान हुए। और बोले। के किस जालिम ने हमारे
उन मअबूदों का ये हप्न किया है?

फिर ये खुबर नमरूद और उसके अमरआ को पहुँची। और सरकारी तौर
पर उसकी तहकीक्‌ होने लगी। तो लोगों ने बताया। के इब्नाहीम उन हक
खिलाफ बहुत कुछ कहते रहते हैं। ये उन्हीं का काम मालूम होता है। चुनाँचे
हैजूरत इब्राहीम को बुलाया गया। और आपसे पूछा गया। के ऐ इब्राहीम! क्या
तुम ने हमारे ख़दाओं के साथ ये काम किया? आपने फ्रमाया। वो बड़ा बुत,

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सच्ची हिकायात

78 हिस्सा
जिसके कंथे पर तीशा है। उस सूरत में तो ये कयास किया जा सकता है”
ये उसी का काम है। तो फिर मुझ से क्या पूछते हो। उसी से पूछलोना ‘
ये काम किस ने किया। वो बोले मगर वो तो बोल नहीं सकते। उस मौके के
हजूरत इब्राहीम जलाल में आ गए और फ्रमाया जब तुम खुद मानते हो
वो बोल नहीं सकते। तो फिर तुफ्‌ है तुम बे अकलों पर। और उन बुत्तों के
जिन को तुम अल्लाह के सिवा पूजते हो। ( क्रआन प० 7 रूकू 5) . |

सबक्‌:- खुदा को छोड़ कर बुतों को पूजना शिर्क है। और
में जहाँ बिन दूतनिल्लाही यानी “अल्लाह के सिवा” का लफ्ज आया है
वहाँ यही बुत मुराद हैं ना के अम्बिया व औलिया। इसलिए के हज
अलेहिस्सलाम उन पर “तुफ्‌ ” फ्रमा रहे हैं तो अगर उनसे मुराद अम्बियाद
औलिया हों तो हजरत इब्नाहीम अलेहिस्सलाम ऐसा क्‍यों फरमाते।

हिकायत नम्बर (७) खुलील व नमरूद का मुनाजर

. हजरत इब्नाहीम अलेहिस्सलाम ने जब नमरूद को खदा परस्ती की
दअवत दी तो नमरूद और हजूरत इब्राहीम अलेहिस्सलाम में हस्बे जेल
मुनाजरह हुआ।

नमरूदः तुम्हारा रब कौन है। जिसकी पर परसतिश की तुम मुझे
दअवत देते हो? हजरत खलील अलेहिस्सलाम: मेरा रब वो है। जो जिन्दा भ॑
कर देता है। और मार भी डालता है।

नमरूद: ये बात तो मेरे अन्दर भी मौजूद है। लो अभी देखो मैं तुझ्
जिन्दा भी करके दिखाता हूँ और मार कर भी। ये कहकर नमरूद ने दो शस््
को बुलाया। उनमें से एक शख्स को क॒त्ल कर दिया। और एक को छोड़ दिय
और कहने लगा। देख लो। एक को मैंने मार डाला। और एक को गिरफ़्ता
करके छोड़ दिया। गोया उसे जिन्दा कर दिया। नमरूद की ये अहमकान
बात देख कर हजरत खुलील अलेहिस्सलाम ने एक दूसरी मुनाजराना गुफ्त।
फ्रमाई और फरमाया।

खुलील अलेहिस्सलाम: मेरा रब सूरज को मशरिक्‌ की तरफ से लाता है
तुझ में अगर ताकृत है। तो तू मगरिब की तरफ से लाकर दिखा। ये बात सै
कर नमरूद के होश उड़ गए और ला जवाब हो गया। ( कुरआन प० 3 रूकू ?

सबक्‌:- झूटे दअबे का अंजाम जिल्लंत व रूसवाई, और कार्पि’
इन्तिहाई अहमक होता है। ‘ द

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सच्ची हिरकीयीति क्‍ आतिश हिस्सा अत्बल
हिकायत नम्बर ७७ आतिश कदाऐं नमरूद
नमरूद मलऊन ने हजरत इब्राहीम अलेहिस्सलाम से जब मुनाजरह में
झकस्त खाईं। तो और तो कुछ ना कर सका। हजरत का जानी दुश्मन बन
गया। और आपको कद कर लिया। ओर फिर एक बहुत बड़ी चार दीवारी
की, और उसमें महीने भर तक बकोशिश किस्म किस्म की लकड़ियाँ
जमा कीं। और एक अजीम आग जलाईं। जिसकी तपिश से हवा में उड़ने
बाले परिन्दे जल जाते थे। और एक मुनजनीक्‌ ( गोफून ) तैयार करके
खड़ी की और हजरत इब्राहीम को बाँध कर उसमें रखकर आग में फैंका।
हजरत इब्राहीम अलेहिस्सलाम की जुबान पर उस वक्त ये कलमा जारी था।
ब नीओमल वकील इधर नमरूद ने आपको आग में फैंका
और इधर अल्लाह ने आग को हक्‍म फ्रमाया। के ऐ आग! खूबरदार! हमारे
खलील को मत जलाना। तू हमारे इब्राहीम पर ठंडी हो जा। और सलामती
का घर बन जा। चुनाँचे वो आग हजुरत इब्नाहीम के लिए बाग व बहार बन
गई। और नमरूद की सारी कोशिश बेकार चली गई। ( कुरआन करीम प*
7 रूकू 5 और खजायन-उल-इफ्न सफा 43 ) रा
सबक:ः- अल्लाह वालों को दुश्मन हमेशा तंग करते रहे। लेकिन
अल्लाह वालों का कुछ ना बिगाड़ सके और खुद ही जलील होते रहे।

हिकायत नम्बर &) खुलील ब जिब्राईल
हजूरत इब्राहीम अलेहिस्सलाम को नमरूद ने जब आग में फैंकना चाहा
तो जिब्राईल हाजिर हुए। और अर्ज किया। हुजर! अल्लाह से कहिये वो
आपको इस आतिशकदा से बचा ले। आपने फरमाया। अपने जिस्म क्रे लिए
इतनी बुलंद व बाला पाक हस्ती से ये मामूली सा सवाल करूं? जिन्नाईल ने
अर्ज किया। तो अपने दिल के बंचाने के लिए उससे कहिये फ्रमाया ये दिल
उसी के लिए है। वो अपनी चीज से जो चाहे सलूक करे। जिब्राईल ने अर्ज
किया। हुजर! इतनी बड़ी तेज आग से आप क्‍यों नहीं डरते?
फरमाया। ऐ जिब्राईल! ये आग किस ने.जलाई?
जिब्राईल ने जवाब दिया। नमरूद ने!
फ्रमाया। और नमरूद के दिल में ये बात किस ने डाली? _
जिब्नाईल ने जवाब दिया। रब्बे जलील ने!
खेलील ने फरमाया। तो फिर इधर हकक्‍्यमे जलील है। तो इधर रजाऐ

9०९06 099 (थ्वा]5८शाशश’

02४3 80 हिस्सा अच्चल
जहा गम ेल लिए सफा 204 जिल्द 2). अव्वल
व सबक्‌:- अल्लाह वाले हमेशा अल्लाह की रजा में राजी रहते है
( नुजुहत-उल-मजालिस सफा 208 जिल्द 2) क्‍
सबक :- अल्लाह वाले हमेशा अल्लाह को रजा में राजी रहते है।

हिकायत नम्बर ७७ जिब्राईल की मुशक्कत

हुज॒र सल-लल्लाहो तआला ने एक मर्तबा जिब्राईल से पूछा। ऐ जिन्नाईल
कभी तुझे आसमान से मुशक्कृत के साथ बड़ी जल्दी और फौरन भी जूमीन
पर उतरना पड़ा है? जिब्राईल ने जवाब दिया। हा या रसूल अल्लाह! चाए
मर्तबा ऐसा हुआ है के मुझे फीअलफोर बड़ी सरअत के साथ जमीन पर
उतरना पड़ा।
हुजर ने फ्रमाया। वो चार मर्तवा किस किस मौके पर?
‘जिब्राईल ने अर्ज किया। ह
() एक तो जब इब्राहीम अलेहिस्सलाम को आग में डाला गया। तो मैं
5 वक्‍त अर्शें इलाही के नीचे था। मुझे हुक्म इलाही हुआ के जिब्नाईल!
बलील के आग में पहुँचने से पहले पहले फौरन मेरे खुलील के पास पहुंचो।
ँचे मैं बड़ी सअअत के साथ फौरन ही हजरत खलील के पास पहुँचा।
(2) दूसरी बार जब हजरत इसमाईल अलेहिस्सलाम की गर्दने अतहर पर
छुरी रख दी गई तो मुझे हुक्म हुआ के छुरी चलने से पहले ही जमीन पर
पहुँचूँ। और छुरी को उल्टा दूं। चुनाँचे मैं छुरी के चलने से पहले ही जृमीन
पर पहुँच गया। और छुरी को चलने ना दिया। | कर
_.. (3) तीसरी मर्तबा जब हजरत यूसुफ्‌ अलेहिस्सलाम को भाईयों ने कँए में
गिराया तो मुझे हुक्म हुआ के मैं यूसुफ अलेहिस्सलाम के कुए की तह तक
पहुँचने से पहले पहले जमीन पर पहुँचूँ। और कुँए से एक पत्थर निकाल कर
हजरत यूसुफ्‌ को उस पत्थर पर बाआराम बैठा दूं। चुनाँचे मैंने ऐसा ही किया।
(4) और चौथी मर्तबा या रसूल अल्लाह जबके काफिरों ने हुजूर का
दनदाने मुबारक शहीद किया। तो मुझे हुक्म इलाही हुआ के मैं फौरन जमीन
पहुँचूँ और हुज॒र के दनदाने मुबारक का खून मुबारक जुमीन पर ना गिरने $
और जमीन पर गिरने से पहले ही मैं वो खून मुबारक अपने हाथों पर ले टू!
या रसूल अल्लाह! खदा ने मुझे फ्रमाया था। जिन्नाईल! अगर मेरे मेहबूँल
का ये खून जमीन पर गिर गया। तो क॒यामत तक जमीन में से ना कोई सब्नी
उगेगी। और ना कोई दरख्त। चुनाँचे मैं बड़ी सरअत के साथ जमीन पर पह)ची’

9९606 99 (थ्वा]58८शाशश’

॒च्थी ट्िका4४0 को 0॥ के हिस्सा अव्वल
हुजर के खून मुबारक को अपने हाथ पर ले लिया। ( रूह-उल-
22 सबकः- अम्बिया इक्राम अलेहिमुस्सलाम की बहुत बड़ी ब॒ुलं॑
शान हैं। के जिज्ाईल अमीन भी उनका खादिम है। और ये भी आप
हुआ के करोड़ों , पदमों मील का तबील सफर अल्लाह वाले पल भर में

तय कर लेते हैं।
हिकायत नम्बर ७0) बेटे की कर्बानी

हजरत इब्राहीम अलेहिस्सलाम ने एक रात ख़्बाब में देखा। के कोई
शख्य गैब से आवाज देता है। और कहता है। ऐ इब्राहीम! तुम्हें खदा का
हुक्म है के अपने बेटे को खुदा की राह में जिबह कर दो। चूंके नबियों का
ख़राब सच्चा और अज्‌ कबील वही होता है। इसलिए आप अपने मेहबूब
बेटे हजरत इसमाईल अलेहिस्सलाम को अल्लाह की राह में कर्बान करने
को तैयार हो गए। के
चूंके हजरत इसमाईल अभी कम उम्र थे। इसलिए आपने उनसे सिर्फ
इतना कहा। के बेटा रस्सी और एक छुरी लेकर मेरे साथ चलो। चुनाँचे अपने
४ कल है प पर पहुँचे। हजरत इसमाईल ने पूछा। अब्बा
! आप ये छुरी और र कर क्‍यों हर
जग तक ही चलते हैं। मा आगे चलकर
न पक कर कक पक अलेहिस्सलाम ने साफ साफ बयान
कप | हे कहा! बेटा में तो अल्लाह की राह में तुझे ही जिबह करने
कोमजी है ख़्वाब में देखा है के तुझे जिबह कर रहा हूँ। बेटा ये अल्लाह
कब | हक तेरी मर्जी क्‍या है? हजरत इसमाईल ने जवाब दिया।
कल कप जब अल्लाह की यही मर्जी है। तो फिर मेरी मर्जी का क्या
मै कं जिस बात का हुक्म हुआ है। आप वो कीजिए| इंशाअल्लाह
के दिखा दूंगा। बेटे का ये जुराअत आमेजु जवाब सुनकर हजुरत
जिबह कक अलेहिस्सलाम बड़े खुश हुए और अपने बेटे को अल्लाह की राह में
लिटाया हि तैयार हो गए। और जब बाप ने अपने बेटे को माथे के.बल
गर्दन पर छुरी रखी और उस चलाया तो छुरी ने गर्दने इंसमाईल
ब्प पे है; काटा। आपने और जोर से छुरी चलाई। तो आवाज आई
इम्तिहान के भरे हीम! तुम हुक्‍्मे इलाही की तअमील कर चुके। और इस सख्त
पूरे उत्ते। आपने मुड़ कर देखा। तो एक दुंबा पास ही खड़ा था।

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सच्ची हिकायात 82 हिस्सा अव्वल
और आप से कह रहा था। हजरत! इसमाईल की जगह मुझे जिबह कीजिए।
और उन्हें हटा दीजिए। चुनाँचे हजरत इन्नाहीम अलेहिस्सलाम ने उस दुंबे
को जिबह फ्रमा दिया। और हजुरत इसमाईल उठ बैठे ओर इस इम्तिहान में
दोनों बाप बेटे, अलेहिमा अस्सलाम, कामयाब हो गए। ( कुरआन करीम प०
23 कतुब तफासीर )

. सबक्‌:- अल्लाह वाले अल्लाह की राह में सब कुछ कर्बान करने
पर तैयार हो जाते हैं। हत्ता के औलाद भी। फिर आज जो लोग अल्लाह को
राह में एक बकरा भी देने में हजार हीलो हुज्जत करते हैं। उनका खूदा से
क्या तअल्लुक्‌? ध

हिकायत नम्बर ७७ फिरऔन का ख़्वाब

फिरऔन ने एक बार ख़्वाब में देखा। के उसका तख़्त औंधा होकर
गिर गया है। फिरऔन ने काहिनों से उसकी तअबीर पूछी। तो उन्होंने बताया
के एक ऐसा बच्चा पैदा होगा। जो तेरी हकूमत के जूबाल का बाइस होगा।
फिरऔन को उस बात की फिक्र हुई और उसने बच्चों को मरवाना शुरू
कर दिया। जो बच्चा किसी के हाँ पैदा होता। वो उसे मरवा देता था। हजरत
मूसा अलेहिस्सलाम जब पैदा हुए तो अल्लाह ने मूसा अलेहिस्सलाम की माँ
के दिल में ये बात डाली। के उसे दूध पिलाओ और जब कोई खतरा देखो,
तो उसे दरया में डाल दो। चुनाँचे चन्द रोज हजरत मूसा अलेहिस्सलाम की
माँ ने हजरत को दूध पिलाया। इस अर्स में हजरत मूसा अलेहिस्सलाम ना
रोते थे ना उनकी गोद में हरकत करते थे। और ना आपकी बहन के सिवा
किसी को आपकी विलादत का इल्म था। फिर जब तीन.माह का अर्सा गुजर
गया। तो मूसा अलेहिस्सलाम की माँ को कुछ खतरा महसूस हुआ। तो खुदा
ने दिल में ये बात डाल दी। के अब तो मूसा को एक संदूक में बन्द करके
दरया. में डाल दे! और कोई फिक्र ना कर। हम उसे फिर तुम्हारी गोद में ले
आएँगे। चुनाँचे उम्मे मूसा ने एक संदूक्‌ तैयार किया। और उसमें रूई बिछाई
और मूसा अलेहिस्सलाम को उसमें रख कर संदूक्‌ बन्द कर दिया। और
ये संदूक्‌ू दरयाऐ नील में डाल दिया। उस दरया से एक बड़ी नहर निकल
कर फिरऔन के महल में गुजरती थी। फिरऔन मओ अपनी बीबी आसियां
के नहर के किनारे बैठा था। जब एक संदूक नहर में आते देखा। तो उसने
कनीजों और गुलामों को संदूकू निकालने का हुक्म दिया वो संदूक्‌ निकाल
कर सामने लाया गया। खोला। तो उसमें एक नरानी शक्ल फरजन्द जिसकी

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हिकावत 93 ह ।
सत्य से वजाहत व इकबाल के आसार नमूदार थे। नज़र : हिस्सा अव्बल
पैशानी में ऐसी मोहब्बत पैदा “जुर आया। देखते ही

फिरऔन के दिल है ज्नत पैंदा हुई। के वो वारिफ्ता हो गया। लेकिन
: के लोगों ने उसे वरगुलाया। और कहा के मुमकिन है है
क्रीम आपकी को चुनाँचे । यही वो बच्चा
थे। जिसने आपकी हकूमत को बर्बाद करना है। चुनाँचे फिरऔन

क्कल पर आमादा हुआ। तो फिरऔन की बीबी आसिया जो बडी नेक आपके
के ये बच्चा मेरी और तेरी आँख की ठंडक है। इसे जे
शी कहने लगी * परी आंख की ठंडक है। इसे कत्ल ना
क्र। क्या मालूम ये किस सरजमीन से बहता हुआ आया है। और तुझे जिस
कल्ये से अन्देशा है वो तो इसी मुल्क के बनी इस्राईल से बताया गया है।
आपिया की ये बात फिरऔन ने मान ली और हजूरत मूसा अलेहिस्सलाम
फ्रऔन के महल में ही रहने लगे। और फिरऔन ने आपको दूध पिलाने
के लिए दाईयाँ बुलाईं। मगर हजरत मूसा अलेहिस्सलाम किसी दाई का दूध
ना पीते थे। अब 2228 को फिलक्र हुईं। के इस बच्चे के लिए कोई ऐसी
दाई मिले। जिसका ये दूध पीने लगे। इधर हजरत मूसा अलेहिस्सलाम की
माँ अपने बच्चे की जुदाई में बेक्रार थी। और मूसा अलेहिस्सलाम की बहन
जिसका नाम मरयम था। वो आपके तजस्सुस करने और मालूम करने के
स्व कहाँ पहुँचा और आप किस के हाथ आए आपको तलाश में थी हत्ता
2] ही सी वो फिरिऔन के भहल में पहुँच गई और जब मालूप
अर क यु भाई इसी महल में है। और ‘क्विसी दाई का दूध नहीं पी रहा। तो
हे त से कहने लगी। क्या मैं एक ऐसी दाई की खूबर दूं? जिसका दूध
चुने बा पियेगा। फिरऔन ने कहा। हाँ जरूर ऐसी दाईं को लाओ।
आल उसको ख्वाहिश पर अपनी वालिदा को बुला लाईं। और जब वो
हक अलेहिस्सलाम फ्रिऔन की गोद में थे। और दूध के लिए रो
आए 58 * आन आपको बहला रहा था। जब आपकी वालिदा आईं। और
पीने लगे फिआ । तो आप चुप हो गए। और अपनी वालिदा का दूध
का दूध नहीं पिया न ने पूछा। तू इस बच्चे की कौन है? जो उसने किसी दाई
औरत हूँ मेरा था और तेरा झट पी लिया है। उन्होंने कहा मैं एक पाक साफ्‌
मिजाज पे सअक खुशगवार है। जिस्म खुश्बूदार है। इसलिए जिन बच्चों के
पी लेते हैं। स होती है। वो और औरतों का दूध नहीं पीते हैं। मेरा दूध
करके फ्रजन्द गन ने बच्चा उन्हें दिया। और दूध पिलाने पर उन्हें मुक्रर
अलेहिस्सलाम को अपने घर ले जाने की इजाजत दे दी। चुनाँचे आप मूसा
गया केह्म को घर ले आईं। और अल्लाह तआला का ये वादा पूरा हो
फिर तृम्हारी गोल में लाएँगे। ढस तरह मसा अलेहिस्सलाम

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सच्ची हिकायात 84 हिस्सा ह
की परवरिश खुद फिरिऔन ही के जरिये होने लगी। आप दूध पीने के
तक अपनी वालिदा के पास रहे। उस जमाने में फिरऔन उन्हें एक 648
रोजाना देता रहा। दूध छोड़ने के बाद आप मूसा अलेहिस्सलाम को फिरिओ
के पास ले आईं और आप वहाँ परवरिश पाते रहे। ( कुरआन करीम फ
रूकू ॥ प० 20 रूकू 4 खूजायन-उल-इफांन सफा 444, सफा 54) ॥
सबक्‌:- अल्लाह तआला बड़ी क॒द्गरत और बेनियाजी का भालिक |
के मूसा अलेहिस्सलाम को खुद फिरिऔन ही के महल में रख कर उनकी ।
परवरिश फरमाई और मूसा अलेहिस्सलाम ने अपने बचपन में किसी दाईं का
दूध ना पी कर, और अपनी माँ को पहचान कर उन्हीं का दूध पी कर ये बत
दिया के नबी बचपन में भी ऐसा इल्मो इरफान रखता है। जिससे अवाम
होते हैं। अम्बिया को अपनी मिसल बशर कहने वालों में से अगर किसी को
बचपन में कुतिया के दूध पर भी डाला जाए। तो वो उस कुतिया का भी दूध
पीना शुरू कर देगा। मगर नबी की शान इल्म ये है। के वो बचपन में अपने
माँ के सिवा किसी दूसरी औरत का भी दूध नहीं पीता फिर अम्बिया की
प्िसल होने का दावा करना किस क॒द्र जहालत की बात है?

हिकायत नम्बर ७) फिरिऔन की बेटी

फिरऔन की एक बेटी थी। फलबहरी का मर्ज था। फिरऔन ने उसका
बड़े बड़े अत्तिबआ से इलाज कराया। मगर वो अच्छी ना हुई। आखिर फिरिऔन
ने काहिनों से उसके मुतअल्लिक्‌ पूछा। तो उन्होंने बताया के उसको शिफा
दरया से मिलेगी। चुनाँचे एक दिन फिरऔन और उसकी बीबी आसिया औ
‘फिरऔन की बेटी, दरया के किनारे बैठे थे के हजरत मूसा अलेहिस्सला!
का संदूकू बहता हुआ आया। जब ये संदूकू फिरऔन के सामने लाया गया
और खोला। तो मूसा अलेहिस्सलाम नजर आए जो अपने अंगूठे को चूस रे
थे। फिरऔन की बीबी आसिया को, मूसा अलेहिस्सलाम बड़े प्यारे लगे औ।
उसने उन्हें उठा लिया। और फ्रिऔन की बेटी ने मूसा अलेहिस्सलाम की
देखा तो उसे भी ये नूरानी बच्चा बड़ा प्यारा लगा। और उसने आपके दे
मुबारक की थूक मुबारक लेकर अपने बदन पर मल ली। इस थूक मुबाएँ
के असर से फिरओन की बेटी का फलबहरी का मर्ज फौरन जाता रही
( नुजुहत-उल-मजालिस सफा 208 जिल्द 2)

सबके:- अम्बियाक्राम की थूक मुबारक भी दाफओ-उल-बहा
होती हैं। फिर जिन लोगों की थूक बीमारी के खतरनाक जरासीम का वर _

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हिकायात 85 ल्‍
8 नफू्स कुदसिया की मिस्ल कैसे हो सकते हैं? हिस्सा अव्वल

हिकायत नम्बर 00 मूसा अलेहिस्सलाम का मुक्का
हित!
हजरत मूसा अलेहिस्सलाम जब तीस बरस के हो गए। तो एक दिन
फ्रिऔन के महल से निकल कर शहर में दाखिल हुए तो आपने दो आदमी
आपस में लड़ते झगरू4 देखा। एक तो फिरऔन का बाव्ची था और दूसरा
हजरत मूसा अलेहिस्सलाम की कौम यानी बनी इश्राईल में से था। फिरऔन
का बावर्ची लकड़ियों का गूड़ा उस दूसरे आदमी पर लाद कर उसे हुक्म दे
रहा था। के वो फिरऔन के बावर्ची खाने तक वो लकडियाँ ले चले हजरत
मूसा अलेहिस्सलाम ने, ये बात देखी तो फ्रिऔन के बावर्ची से फ्रमाया। उस
गूरीब आदमी पर जुल्म ना कर लेकिन वो बाज ना आया। और बद जबानी पर
उतर आया। हजरत मूसा अलेहिस्सलाम ने उसे एक मुक्का मारा। तो उस एक
ही मुक्के से उस फ्रिऔनी का दम निकल गया। और वो वहीं ढैर हो गया।
( क्रआन करीम पारा 20 रूकू 5 रूह-उल-बयान सफा 9१४ जिल्द 2)
सबक: अम्बियाक्राम अलेहिमुस्सलाम मजूलूमों के हामी बनकर
तशरीफ्‌ लाए हैं और ये भी मालूम हुआ के नबी सीरत व सूरत और जोर
व ताकत में भी सबसे बुलंद व बाला होता है और नबी -का मुक्का एक
इम्तियाजी मुक्का था। के एक ही मुक्के से जालिम का काम तमाम हो गया।

हिकायत नम्बर ७) मूसा अलेहिस्सलाम का तमाचा

हैजूरत मूसा अलेहिस्सलाम के पास जब मलक-उल-मौत हाजिर हुआ।
हजरत मूसा अलेहिस्सलाम ने मलक-उल-मौत को एक ऐसा तमाँचा मारा।
भलक-उल-मौत्त की आँख निकल आई। मलक-उल-मौत फौरन वापस
ऐसे 3 और अल्लाह के हुजर अर्ज करने लगा। इलाही आज तो तूने मुझे एक
अपने बन्दे को तरफ भेजा है। जो मरना ही नहीं चाहता। ये देख के उसने
मुझे तेमाँचा मार कर मेरी आँख निकाल दी है। खदा ने मलक-उल-मौत को
खे दुरस्त फरमा दी। और फ्रमाया मेरे बन्दे मूसा के पास फिर जाओ
४ बैल साथ लेते जाओ। और मूसा, से कहना के अगर तुम चलना चाहते
हक उस बैल की पुश्त पर हाथ फरो। जितने बाल तुम्हारे हाथ के नीचे
बल । उतने ही साल और जिन्दा रह लेना। चुनाँचे मलक-उल-मौत
हाथ लेकर फिर हाजिर हुआ। और अर्ज करने लगा। हुज॒र! उसकी पुश्त पर
थे फेरिये। जितने बाल आपके हाथ के नीचे आजाएँगे इतने साल आप

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सच्ची हिकांयात 86 हिस्सा

और जिन्दा रह लें। हजुरंत मूसा अलेहिस्सलाम ने फ्रमाया और उसके बाद
फिर तुम आ जाओगे? अर्ज किया। हाँ! तो फ्रमाया। फिर अभी ले चलो,
(मिश्कात शरीफ सफा 49)

‘ सबक: – अल्लाह के नबियों की ये शान है के चाहें तो मलक-उल-मौत
को भी तमाँचा मार दें। और उसकी आँख निकाल दें।’और नबी वो होता है
जो मरना चाहे तो मलक-उल-मौत क्रीब आता है और अगर ना मरना चाहे
तो मलक-उल-मौत वापस चला जाता है। हालाँके <वाम की मौत उस ऐशैर
के मिसदाक होती है के

लाई हयात आए कुज़ा ले चली चले
अपनी खुशी ना आए ना अपनी खुशी चले

हिकायत नम्बर 70 मदयन का कुआ

हजरत मूसा अलेहिस्सलाम ने बड़े होकर जब हक का बयान और
फिरऔन और फिरऔनियों की गुमराही का बयान शुरू किया। तो बने
इस्राईल के लोग आपकी बात सुनते और आपका इत्तिबा करते। आए
फिरऔनियों के दीन की मुखालफूत फ्रमाते रफ्ता रफ्ता इस बात का चर्चा
हुआ। और फिरऔनी जुस्तजू में हुए। फिर फि्रिऔन के बावर्चो का मूत्त
अलेहिस्सलाम के मुक्के से मारा जाना भी जब उन लोगों को मालूम हुआ।वे
फिरऔन ने हजरत मूसा अलेहिस्सलाम के कृत्ल का हुक्म दिया। और लो
हजरत मूसा अलेहिस्सलाम की तलाश में निकले। फिरऔनियों में से एक मर
नेक मूसा अलेहिस्सलाम का खैरख़्वाह भी था। वो दौड़ा हुआ आया। और
मूसा अलेहिस्सलाम को ख़बर दी और कहा। आप यहाँ से कहीं और तशरीए
ले जाईये। हजरत मूसा अलेहिस्सलाम उसी हालत में निकल पड़े और मद
की तरफ रूख किया। मदयन वो मुकाम है। जहाँ हजरत शुअब अलेहिस्सली’
तशरीफ्‌ रखते थे। ये शहर फ्रिऔन के हृदूद सलतनत से बाहर था। हज
मूसा अलेहिस्सलाम ने उसका रास्ता भी ना देखा था। ना कोई सवारी साथ
ना कोई हमराही चुनाँचे अल्लाह ने एक फ्रिश्ता भेजा। जो आपको मर्द
तक ले गया। हजरत शुअब अलेहिस्सलाम उसी शहर में रहते थे। आपकी .
लड़कियाँ थीं। और बकरियाँ आपका 2 7 मआश था। मदयन में एक के
था हजरत मूसा अलेहिस्सलाम पहले उसी कुएँ पर पहुँचे और आपने
के बहुत से लोग उस कुएँ से पानी खींचते हैं। और अपने जानवरों को पि
लेते हैं। और हजूरत शूअब अलेहिस्सलाम की दोनों लड़कियाँ भी आए

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हिकायात 87 हिस्सा अव्वल
सच्ची _करियों को अलग रोक कर वहीं खड़ी हैं। हजरत मूसा अलेहिस्सलाम ने

लड़कियों से पूछा के तुम अपनी बकरियों को पानी क्‍यों नहीं ?
इन कहा। के हम से डोल खींचा नहीं जाता। ये लोग चले बाग जे
वानी होज॑ में बच रहेगा। वो हम अपनी बकरियों को पिला लेंगीं। हजरत मूसा
को रहम आ गया। और पास ही जो एक दूसरा कुआँ था। जिस
पर एक बहुत बड़ा पत्थर ढका हुआ था। और जिसको बहुत-आदमी मिलकर
हटा सकते थे। आपने तनहा उसको हटा दिया। और उसमें से डोल खींच
क्र उनकी बकरियों को पानी पिला दिया घर जाकर उन दोनों लड़कियों ने
हजरत शुअब अलेहिस्सलाम से कहा। अब्बा जान! एक बड़ा नेक और क॒वी
नोवारिंद मुसाफिर आया है। जिसने आज हम पर रहम खा के हमारी बकरियों
को सैराब कर दिया है। हजरत शुअब अलेहिस्सलाम ने एक साहबजादी से
फ्रमाया। के जाओ और उस मर्द सालेह को मेरे पास बुला लाओ चुनाँचे
बड़ी साहबजादी चहरे को आसतीन से ढके हुए और जिस्म को छुपाए हुए
बड़ी शर्म व हया से चलती हुई हजरत मूसा अलेहिस्सलाम के पास आई और
कहा के मेरे बाप आपको बुलाते हैं। ताके आपको उजरत दें हजरत मूसा
अलेहिस्सलाम उजरत लेने पर तो राजी ना हुए। हजुरत शुअब अलेहिस्सलाम
की जियारत और उनकी मुलाकात के लिए चल पड़े और उनकी साहबजादी
से फ्रमाया के आप मेरे पीछे रहकर रस्ता बताती जाईये ये आपने पर्द के
एहतिमाम से फरमाया। और इसी तरह तशरीफ्‌ लाए। जब हजरत शुअब के
पास पहुँचे। तो हजुरत शुअब अलेहिस्सलाम से आपने फिरऔन का हाल
और अपनी विलादत से लेकर फिरऔन के बावर्ची के मारे जाने तक का सब
किस्सा सुनाया। हजुरत शुअब अलेहिस्सलाम ने फ्रमाया। अब कोई फिक्र ना
करो तुम जालिमों से बच्च कर चले आए। अब यहीं मेरे पास रहो। ( कुरआन
करीम प०20 रूक्‌ #खुजायन उल-इर्फान सफा 548)
.. सबक: जालिम और मग्रूर हाकिम अल्लाह वालों के दरपये अजाद
हो जाते हैं। और अल्लाह वाले मसायब व अलाम की बर्दाश्त फ्रमा लेते हैं
मगर इशाअते हक से नहीं रूकते और अल्लाह तआला अपने उन हक्‌ गौ
की हिफाजुत फरमाता है।

हिकायत नम्बर (3) दरख़्त से आवाजू क्‍
हजरत मूसा अलेहिस्सलाम हजरत शुअब अलेहिस्सलाम के पास दा
बरस तक रहे और फिर हजरत शअब अलेहिस्सलाम ने अपनी साहबजादी

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सच्ची हिकायात 88 हिस्सा अव्वल
का निकाह हजरत मूसा अलेहिस्सलाम के साथ कर दिया। इतने असें के बाद
आप हजरत शुअब अलेहिस्सलाम से इजाजत लेकर अपनी वालिदा से मिलने
के लिए। मिस्र की तरफ रवाना हुए। आपकी बीवी भी साथ थी। रास्ते में जब
के आप रात के वक्त एक जंगल में पहुँचे तो रास्ता गुम हो गया। अंधेरी रात
और सर्दी का मौसम था। उस वक्त आपने जंगल में दूर एक चमकती हुई
आग देखी। और बीवी से फ्रमाया तुम यहाँ ठहरो मैंने वो दूर आग देखी है
मैं वहाँ जाता हूँ। शायद वहाँ से कुछ खबर मिले। और तुम्हारे तांपने के लिए
कुछ आग भी ला सकूं। चुनाँचे आप अपनी बीवी को वहीं बैठा कर उस आग
की तरफ चले। और जब उसके पास पहुँचे तो वहाँ एक सरसब्ज शादाब
दरख्त देखा जो ऊपर से नीचे तक निहायत रोशन था। और जितना उसके
करीब जाते हैं। वो दूर हो जाता है। और ठहर जाते हैं। तो वो क्रीब हो जाता
है। आप उस नूरानी दरख़्त के अजीब हाल को देख रहे थे के उस दरख्त से
आवाज आई ऐ मूसा! “मैं सारे जहानों का रब अल्लाह हूँ। तुम बड़े पाकीजा
मुकाम में आ गए हो। अपने जूते उतार डालो। और जो तुझे वही होती है। कान
लगाकर सुनो। मैंने तुझे पसंद कर लिया।” ( क्रआन करीम प०॥6 रूक्यू ॥0,
प०20 रूकू 7खजायन उल-इर्फान स०4४2, स०549 )

सबक्‌:- नबुव्वत अल्लाह की अता महेज्‌ है उसमें मेहनत और कसब
को दखल नहीं यानी नबुव्वत किसी कोर्स पूरा करने और मेहनत करने से नहीं
मिलती। बल्के अल्लाह जिसे चाहता था। इस शरफ से मुर्शरफ्‌ फरमा देता था
जैसे मूसा अलेहिस्सलाम! के गए आग लेने को और आए नबुव्व॒त लेकर और
ये सिलसिला हुजर सल-लल्लाहो अलेह व सलल्‍लम तक जारी रहा, फिर जो
शख्स ये कहे इहदीनस सिरातल मुसतकीम पढ़ने से आदमी नबी बन सकता
है वो किस कृद्र जाहिल है!

हिकायत नम्बर 00 खौफनाक साँप

हजरत मूसा अलेहिस्सलाम के हाथ में एक असा था। ऐ मूसा जूरा इस
असा को जमीन पर तो डालो। हजरत ने उसे जमीन पर डाला। तो वो एक
खौफनाक साँप बनकर लहराने लगा। हजुरत मूसा अलेहिस्सलाम ने ये मजा
देखकर पीठ मोड़ ली। और पीछे मुड़कर ना देखा। खुदा ने फ्रमाया। ऐ मूसा’
डरो नहीं। इसे पकड़ लो। ये फिर वही असा बन जाएगा। चुनाँचे आपने उहें
साँप को पकड़ा। तो वो फिर असा बन गया। अल्लाह तआला ने ये भी एव
मंओजजा अता फ्रमा कर मूसा अलेहिस्सलाम से फरमाया। के अब फिरऔर

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हिंकायात डराओ। आ हिस्सा अव्वल
कली जाओ। और उसे डराओ। और उसको समझाओ। के वो कह

की _* > छोड़ दे। और अगर वो मओजजा
हुग॒यानी हे ओ (क्रआन करीम प०६ रूक्‌ कम ल्‍.. अेसा डाल
कवर उसे दिखा आप हू 0प०2) रूकू 7)
.. म्बकः- अँबिया 80० 2 को अल्लाह तआला ने बड़े बड़े
प्रओजजात अता 3 । और वो ऐसे ऐसे काम कर दिखाते हैं जो दूसरे
हर गिज नहीं कर सकते।
हिकायत नम्बर ७ अज़्दहा का हमला
हजरत मूसा अलेहिस्सलाम शरफ्‌ नबुव्वत से मुर्शरफ होकर जब
फिरऔन के पास पहुँचे। तो उससे फ्रमाया के ऐ फ्रिऔन! मैं अल्लाह का
सूल हूँ। और हक व सदाकृत का अलम्बरदार हूँ। दअवऐ खुदाई को छोड़।
और एक अल्लाह का परस्तार बन! फिरिऔन ने कहा। अगर तुम अल्लाह के
ससूल हो तो कोई निशानी दिखाओ। हजरत मूसा अलेहिस्सलाम ने फरमाया
तो लो देखो आपने असा मुबारक जुमीन पर डाल दिया। जब आपने वो असा
जमीन पर डाला। तो वो एक बड़ा अज्दहा बन गया। जुर्द रंग मुंह खोले हुए
जुमीन से एक मील ऊँचा अपनी दुम पर खड़ा हो गया। और एक जबड़ा
उसने जुमीन पर रखा। और कस्र शाही की दीवार पर। फिर उसने फिरऔन
की तरफ रूख किया तो ऐसी भाग पड़ी के हजारों आदमी कुचल कर मर
गए फ्रिऔन घर में जाकर चींखने लगा। और कह लगा। ऐ मूसा! तुम्हें
उसको कसम जिसने तुझे रसूल बनाया। उसको पकड़ लो। हजरत मूसा
अलेहिस्सलाम ने उसको उठा लिया। तो वो मिसल साबिक्‌ असा था। और
फ्रिऔन की जान में जान आई। द
( कुरआन करीम प०9 रूकू 3उखजायन उल-इर्फान सः2%)
सबकः- पैगृम्बर बड़ी शान व शौकत और अजीम ताकृत का मालिक
हैं और बड़े से बड़ा बादशाह भी उसका मुकाबला नहीं कर सकता।
हिकायत नम्बर (७ जादूगरों की शिकस्त
लिए हजरत मूसा अलेहिस्सलाम के असा का साँप बन जाना फ्रिऔन के
दब मुश्किल का बाइस हुआ। और वो बड़ा घबरा गया। फ्रिऔन के
तुम ते फिरऔन से कहने लगे के मूसा कहीं से जादू सीख आया है। अब
दे भी अपनी सारी मम्लिकत से जादूगरों को जमा करो। और उनको मूसा
मे पेज हि में लाओ। चुनाँचे फिरऔन ने अपने आदमी सारी ममलिकत
। और वो हर मुक्काम से जादूगरों को जमा करके लिए आए।

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।;

होता

सच्ची हिकायात 90 हिस्सा अच्बल
जब हजारों की तादाद में जादूगर जमा हो गए। तो फि्रिऔन ने हजरत
अलेहिस्सलाम को उन जादूगरों से मुकाबला करने का चेलंज दे दिया। हजरत
मूसा अलेहिस्सलाम ने वो चेलंज कुबूल कर लिया। फिरिऔन ने पूछा। दिन
कौन सा होगा? आपने फ्रमाया। तुम्हारे मेले का दिन मुक्रर करता हूँ थे
फिरऔनियों का एक ऐसा दिन था। जिस दिन वो जीनतें कर कर के दूर दूर से
जमा होते थे। हजरत मूसा अलेहिस्सलाम ने ये दिन इस लिए मुकरर फरमाया।
के ये रोज उनकी गायत शौकत का दिन था। उस दिन को मुक्रर करना सब
लोगों पर हक वाजुह कर देने के लिए था। चुनाँचे जब वो दिन आया तो
हजारों जादूगर मुकामे मुकर॑र पर पहुँच गए। और हजरत मूसा अलेहिस्सलाम
भी तशरीफ ले आए। हजारहा के इस इजतमओ में उन जादूगरों ने अपनी
अपनी रस्सियाँ और लाठियाँ डाल दीं। जब डालीं तो वो सब की सब साँप
बन गईं और दौड़ने लगीं। हजरत मूसा अलेहिस्सलाम ने देखा के जमीन सांपों
से भर गई है और मीलों के मैदान में साँप ही साँप दौड़ रहे हैं। ये हैबतनाक
मंजर देख कर लोग हैरान रह गए। इतने में हजरत मूसा अलेहिस्सलाम ने
भी अपना असा डाल दिया। तो वो एक अजीमुश्शान अज़्दहा बन गया। और
जादूगरों की तमाम सहरकारियों को एक एक करके निगलने लगा। तमाप्र
रस्सियाँ और लाठियाँ जो उन्होंने जमा की थीं। और जो साँप बनकर फिर
रही थीं। और जो तीन सौ ऊंट का बौझ थीं। सबका खात्मा कर दिया। और
जब हजूरत मूसा अलेहिस्सलाम ने उसे दस्ते मुबारक में लिया। तो पहले को
तरह वो फिर असा बन गया। और उसका हजम और वजन अपने हाल पर
रहा। ये देखकर जादूगरों ने पहचान लिया। के असाऐ मूसा सहर नहीं है।
और कुद्गरत बशरी ऐसा करिश्मा नहीं दिखा सकती। जूरूर ये अम्र आसमानी
है। ये बात समझ कर वो सब के सब आमतन्ना बिरब्बिल आलमीन कहते हुए
सज्दे में गिर गए और ईमान ले आए। ( क्रआन करीम प०9 रूकू 4 खुजायन
उल-ईफान स०22) )

सबकः- सारी खुदाई इक तरफ्‌ , फज़्ल इलाही इक तरफ के मिसदाके
सारी दुनिया मुकाबले को आ जाए। मगर फतह व नुसरत उसी तरफ्‌ होगी
जिस तरफ ताईद हक होगी। और बातिल को कभी फरोग ना होगा।

…. हिकायत नम्बर 7) पानी का अजाब
हजरत मूसा अलेहिस्सलाम के असा मुबारक का अज़्दहा बन जाना देख
कर फिरऔन के खुश नसीब जादूगर हजरत मसा अलेहिस्सलाम पर ईमा*

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ह 9
सच्ची हि न फिरऔन और उसकी सरकश कौम अपने कद अब

मूसा अलेहिस्सलाम ने ये सरकशी देख में
आईं वी । और अर्ज किया के: 30७७9 335
“इलाही! फिरिऔन बहुत सरकश हो गया है। और उसकी कौम भी अहेद
छ्कन और मगूरूर हो गईं। उन्हें ऐसे अजाब में गिरफ्तार कर जो उन कटे लिए
पा हो। और मेरी कौम और बाद वालों के लिए इब्रत।” ‘
‘ हजरत मूसा अलेहिस्सलाम की ये दुआ कबूल हो गईं। और अल्लाह ने
फिसऔनियों पर एक तूफान भेजा 3380 9 अँब्र आया। अंधेरा छ गया और कसरत
से बारिश होने लगी। फि के घर में पानी उनकी गर्दनों तक आ
गया। उनमें जो बैठा डूब गया। ना हिल सकते थे। ना कुछ काम कर सकते
शै। सनीचर से सनीचर तक सात रोज तक ऐसी मुसीबत में मुबतला रहे और
कंद्रत खदावंदी का करिश्मा देखिये। के बावजूद ये के बनी इस्राईल के घर
उन फिरऔनियों के घरों से मुत्तसिल थे। मगर बनी इस्राईल के घरों में पानी ना
आया।जब ये लोग आजिज्‌ हुए तो हजरत मुसा अलेहिस्सलाम से अर्ज किया।
के हमारे लिए इस मुसीबत के टल जाने की अपने रब से दुआ फ्रमाईये। ये
मुसीबत टल गई तो हम ईमान ले आएंगे। चुनाँचे हजुरत मूसा अलेहिस्सलाम
ने दुआ फ्रमाई। तो तूफान की मुसीबत रफओ हो गई।

( क्रआन करीम पारा 9 रूक्ू 6 खजायन-उल-इफरनि सफा 239,
रूह-उल-बयान सफा 768 जिल्द )

सबक :- ये पानी जो हमारे लिए मौजिब हयात है। जब अजाब इलाही
बनकर आ जाए। तो हमारी जानों और मालों के लिए तबाही का मौजिब
बन जाता हैं और पानी का इस तरह का सैलाब हमारे अपने आमाल बद का
नतीजा होता है। और ये भी मालूम हुआ के मक्बूल और प्यारों की दुआ से
बड़े बड़े अज़ाब टल जाते हैं।

हिकायत नम्बर ४8 टिड्डी दल
फिरऔन की कौम ने हजरत मूसा अलेहिस्सलाम को सताया। तो मूसा
वो को बद दुआ से उन पर पानी का अजाब आ गया। जिस में
चुरी तरह घिर गए। और फिर हजरत मूसा ही से इलतिजा करने लगे। हा
अजाब के टल जाने की दुआ कीजिए। हम आप पर ईमान ले आएंगे।
छह मूसा अलेहिस्सलाम ने दुआ फ्रमाई। तो पानी का अजाब टल उया
: पही पानी रहमत की शक्ल में तब्दील होकर जुमीन की सरसब्जी व

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सच्ची हिकायात 92 क्‍ हिस्सा अव्यल
शादाबी का मौजिब बन गया। खेतियाँ खूब हुईं। दरख़्त खूब फले इस तरह
की सरसब्जी पहले कभी ना देखी थी फ्रिऔनी कहने लगे। के पानी तो
नअमत था। हमें मूसा पर ईमान लाने की क्‍या हाजत है चुनाँचे वो
अपने अहेद से फिर गए। तो मूसा अलेहिस्सलाम ने फिर उनके लिए बद दुआ
को। और एक महीना आफियत से गुजर जाने के बाद अल्लाह ने फिर उन
पर टिड्डलियाँ भेज दीं। जो खेतियाँ, और दरख़्तों के फल। हत्ता के फिरऔनियों
के दरवाजे और छतें भी खा गईं। और क॒द्रते हक्‌ का करिश्मा देखिये। के
टिड्डियाँ फिरऔनियों के घरों में घुस आईं। मगर बनी इस्राईल के घरों मे
मतलक ना गईं। तंग आकर उन मगृरूरों ने हजरत मूसा अलेहिस्सलाम से
फिर इस अजाब के भी टल जाने की इलतिजा की। और वादा किया के थे
बला टल जाए तो हम जूरूर ईमान ले आएंगे। हजरत मूसा अलेहिस्सलाम ने
दुआ फ्रमाई। तो टिड्डी दल का अजाब भी दूर हो गया। मगर काफिरों का
कुफ़ बदस्तूर रहा। और फिर अहेद से फिर गए। ( क्रआन करीम पारा 9
रूकूं 6 खुजायन-उल-इर्फान सफा 229, रूह-उल-बयान सफा760 जिल्द।)
सबकः- इंसान की हद से ज़्यादा सरकशी पर अल्लाह तआला किसी
कमजोर मखलूक से उसे तबाह कर देता है। और गाफिल इंसान मुसीबत
के वक्त तो अल्लाह की तरफ्‌ रूजूअ का अहेद कर लेता है। मगर मुश्किल
रफओ हो जाने के बाद फिर वही चाल बेढंगी इख्तियार कर लेता है। और
ये बात बड़ी खतरनाक है।

‘हिकायत नम्बर ७9 जुएँ और मेण्ढक

हजरत मूसा अलेहिस्सलाम की बद दुआ से फिरऔनियों पर टिड्डी दल
का अजाब आ गया और वो फिरऔनियों की सब खेतियाँ, दरख़्त फल,
और उनके घरों के दरवाजे और छत तक खा गईं। फिरऔनियों ने आजिज
आकर हजूरत मूसा अलेहिस्सलाम से ये अजाब टल जाने की इलतिजा को
और हजरत मूसा पर ईमान लाने का वादा क्िया। हजुरत मूसा ने दुआ की
और आपकी दुआ से ये अजाब टल गया। मगर फिरिऔनी अपने अहेद पर
कायम ना रहे और ईमान ना लाए। उस पर हजुरत मूसा अलेहिस्सलाम ने फिर
बददुआ फरमाई। और फिरिऔनियों प्र जुओं का अजाब नाजिल हो गया। ये
जूएँ फिरऔनियों के कपड़ों में घुस कर उनके जिस्मों को काटतीं और उनके
खाने में भर जाती थीं। और घुन की शक्ल में उनके गेहूं की बोरियों में फैल
कर उनके गेहूं को तबाह करने लगीं। अगर कोई दस बोरी गंदम की चक्र

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हिका4[0 933 | ;
से जाता तो तीन सेर वापस लाता। और फिरऔनियों के 3 अव्वल
_ परत से चलने लगीं के उनके बाल भवें, पलके चाट पर उस

गा उन्हें सोना के जिस्म पर
की तरह दाग कर दिए और उन्हें सोना दुशवार कर दिया। ये मनी बा
क्र उन्होंने हजरत मूसा अलेहिस्सलाम से ये बला टल जाने की दबा को

ईमान लाने का वादा किया। हजरत मूसा अलेहिस्सलाम ने

हक टल गईं। मगर वो काफिर अपने अहेद पर काश ना हर कर

से बाज आए। हजरत मूसा अलेहिस्सलाम ने फिर उनके लिए बददुआ
की। तो अल्लाह तआला ने अब उन पर भेण्ढकों का अजाब नाजिल किया।
ओर हाल ये हुआ के आदमी बैठता था। तो उसकी गोद में मेणडक भर जाते
धे। बात करने के लिए मुंह खोलता तो मेण्डक कूद कर मुंह में पहुँचता था।
हांडियों में मेण्डक। खानों में मेणएहक और चूलहों में मेणडक भर जाते थे और
आग बुझ जाती थी। लेटते तो मेण्ठक ऊपर सवार होते थे। इस मुसीबत से
फिरिऔनी रो पड़े। और हजरत मूसा अलेहिस्सलाम से अर्ज किया के अब
की बार हम अपने अहेद पर कायम रहेंगे और पक्की तौबा करते हैं। हम पर
से मुसीबत टालिये। हजूरत मूसा अलेहिस्सलाम ने फिर दुआ फ्रमाईं। और ये
अजाब भी रफ्ओ हुआ। मगर तमाशा देखिये के वो काफिर फिर भी अपने
अहेद पर कायम ना रहे। और अपने कुफ्र पर बदसतूर डटे रहे। ( करआन
करीम पारा 9 रूकू 6 खुजायन-उल-इर्फान सफा 240 रूह-उल-बयान सफा
790, जिल्द 4) हे ।

सबके: काफिरों के वादे का कोई एतबार नहीं और बार बार अहेद
शिकनी करना काफिरों का काम है। गे

हिकायत नम्बर७0) खून ही खुन
है जुरत मूसा अलेहिस्सलाम की बददुआ से फिरिऔनियों पर जूओं और
मष्ठकों का अजाब नाजिल हुआ। और फिर आपकी दुआ से वो अजाब
दफओ हो गया। मगर फिरऔनी फिर भी ईमान ना लाए और कुफ्र पर कायम
रहे। हजरत मूसा अलेहिस्सलाम ने फिर बददुआ फ्रमाई। तो तमाम कुओं का
पानी, नहरों का और चश्मों का पानी, दरयाए नील का पानी, गुर्ज हर पानी
लिए ताजा खून बन गया। और वो इसी नई मुसीबत से बहुत ही परेशान
3 जो पानी भी उठाते। उनके लिए खून जाता। और क॒द्गते खुदा का करिशमा
। के बनी इस्राईल के लिए पानी, पानी ही था। मगर फिरिऔनियों के
लिए हर पानी खून बन गया था। आखिर तंग आकर फिरिऔनियों ने बनी

9९९06 99 (थ्वा]5८शाशश’

सच्ची हिकायात 94 हिस्सा
इस्राईल के साथ मिल कर एक ही बर्तन से पानी लेने का इरादा किया। तो
जब बनी इस्राईल निकालते। तो पानी निकलता। और फिरिऔनी ।
तो उसी बर्तन से खून निकलता। यहाँ तक के फिरऔनी औरतें प्यास से तंग
आकर बनी इस्राईल की औरतों के पास आईं। और उनसे पानी माँगा। तो वो
पानी उनके बर्तन में आते ही खून हो गया। तो फिरऔनी औरत कहने लगी के
पानी अपने मुंह पानी अपने मुंह में लेकर मेरे मुंह में कुल्ली कर दे जब तक
वो पानी बनी इस्राईल की औरत के मुंह में रहा। पानी था। और फि्रिऔनी
औरत के मुंह में पहँचा तो खून हो गया।

फिरऔन खूद प्यास से लाचार हुआ। तो उसने तर दरख्तों की रतूबत
चूसी। वो रतूबत मुंह में पहुँचते ही खून बन गई। इस कहरे इलाही से आजिजु
आकर फिरऔनियों ने फिर हजरत मूसा से इलतिजा की। के एक मर्तबा
और दुआ कीजिए। और इस अजाब को भी टालिये। फिर हम यक्रोनन ईमान
ले आएंगे। चुनाँचे हजरत मूसा अलेहिस्सलाम ने दुआ फ्रमाई और उन पर
से ये अजाब भी रफ्ओ हो गया। मगर वो बेईमान फिर भी अपने अहेद पर
कायम ना रहे। ( कुरआन करीम पारा 9 रूकू 6 खजायन-उल-इर्फॉन सफा
240 रूह-उल-बयान सफा 460 जिल्द )

सबक: खदा तआला अपने नाफ्रमान बन्दों को बार बार मोहलत देता
है। ताके वो संभल जाएँ! मगर कुफ्र आशना बन्दे उस मोहलत से फायदा नहीं
उठाते। और बदस्तूर अपने कुफ्र पर कायम रहते हैं और नुकसान उठाते हैं।

हिकायत नम्बर) फिरऔन की हलाकत

हजरत मूसा अलेहिस्सलाम फिरऔन और फिरऔनियों के ईमान लाने
से मायूस हो गए। तो आपने उनकी हलाकत की दुआ की। और कहा:

“ऐ रब हमारे! उनके माल बर्बाद कर दे और उनके दिल सख्त कर दें
के ईमान ना लायें। जब तक दर्दनाक अजाब ना देख लें।” हि

हजूरत मूसा अलेहिस्सलाम की ये दुआ कबूल हुई। और खुदा ने उन्हे
हुक्म दिया के वो बनी इस्राईल को लेकर रातों रात शहर से निकल जाए!
चुनाँचे मूसा अलेहिस्सलाम ने अपने कौम को निकल चलने का हुक्म सुनाया
और बनी इस्राईल की औरतें फिरऔनी औरतों के पास गईं। और उनसे कहरे
लगीं। के हमें एक मेले में शरीक होना है। वहाँ पहन कर जाने क्छे लिए हमे
मुसतआर तौर पर अपने जेवरातं दे दो। चुनाँचे फिरऔनी औरतों ने अपने
अपने जेवरात उन बनी इस्राईल की औरतों को दे दिए। और फिर सब बनी

9९९06 099 (थ्वा]58८शाशश’

हिकायात कल 9५ हिस्सा अव्वल
हल औरतों और बच्चों समेत हजरत मूसा अलेहिस्सलाम के साथ रातों

निकल गए। उन सब मर्दों, औरतों, छोटों, बड़ों की तअदाद छः:
है आन को जब उस बात की खबर पहुँची। तो वो भी रातों रात ही पी
के लिए तैयार हो गया। और अपनी सारी कौम को लेकर बनी इस्राईल
के पीछे निकल पड़ा। फिरऔनियों की तअदाद बनी इम्राईल की तअदाद से
थी। सुबह होते ही फिरऔन के लश्कर ने बनी इस्राईल का पा लिया
बनी इसाईल ने देखा। के पीछे फिरऔन मओ लश्कर के आ रहा है। और आगे.
दया भी आ गया हैं। तो उन्होंने मूसा अलेहिस्सलाम से अर्ज किया। तो मूसा
अलेहिस्सलाम ने अपना असा मुबारक दरया पर मारा। तो दरया फट गया।
और उस में बारा रास्ते जाहिर हो गए और बनी इग्राईंल उन रास्तों से द्रया के :
पार हो गए। और जब फिरिऔनी लश्कर दरया के किनाने पहुँचा। तो वो भी
दरया उबूर करने के लिए, उन रास्तों पर चल पड़े जब फिरऔन और उसका
सारा लश्कर उन बारह रास्तों में दाखिल हो गया। तो खुदा ने दरया को हुक्म
दिया। के वो मिल जाए और उन सब को गुर्क कर दे। चुनाँचे दरया फौरन
मिल गया। और फिरऔन अपने लश्कर समेत दरया में ग्क होकर हलाक हो
गया।( कुरआन करीम पारा ॥ रूक्ू 44 रूह-ठल-बयान सफा 76 जिल्द )
सबक: हद से ज़्यादा कुफ़ व सरकशी का अंजाम बेहद होलनाक
होता हैं। और इस दुनिया में भी हलाकत व बर्बादी का सामना करना पड़ता है।

हिकायत नम्बर(७)) नमक हराम गलाम

एक मर्तबा जिब्राईल अलेहिस्सलाम फि्रिऔन के पास एक
जसत्मततआ लाए जिसका मजूमून ये था। के बादशाह का क्‍या हुक्म है
ऐसे गूलाम के हक्‌ में जिसने एक शख्स के माल व नअमत में परवरिश
पाई, फिर उसकी नाशुक्री की। और उसके हक्‌ में मुन॒किर हो गया।
और अपने आप मौला होने का मुद्दई बन गया? इस पर फिरिऔन ने ये
अवाब लिखा। के जो नमक हराम गुलाम अपने आका की नअओमतों का
कार करे। और उसके मुकाबिल आए। उसकी सजा ये है के उसको
शी] कर दिया जाए।
उम्रका फ्रिऔन जब खुद दरया में डूबने लगा। तो हजुरत जिब्राईल ने
(खजायम वही फतवा उसके सामने कर दिया! और उसको उसने पहचान लिया।
‘ * न-उल-इर्फान सफा 3) क्‍ क्‍
सबक: इंसान अगर अपने गुलाम की नाफरमानी पर ग्स्से में आ

9९३९6 99 (थ्वा]5८शाशश’

सच्ची हिकायात ‘ 96 के साखिय, अव्बल
जाता है और उसे सजा देता है। तो फिर वो खुद भी अगर मालिके हकौको
का नाफरमान होगा। तो सजा भुगतने के लिए तैयार रहे।

‘हिक्कायत नम्बर/७0 हजरत मूसा अलेहिस्सलाम और
एक बूढ़िया

हजरत मूसा अलेहिस्सलाम दरया पार करने के लिए जब किन
दरया तक पहुँचे तो सवारी के जानवरों के मुंह अल्लाह ने फैर दिए।
के खुदबखुद वापस पलट आए मूसा अलेहिस्सलाम ने अर्ज की। इलाह
ये क्या हाल है? इर्शाद हुआ तुम कब्न यूसुफ्‌ के पास हो। उनका ज़िस्
मुबारक अपने साथ ले लो। मूसा अलेहिस्सलाम को कब्र का पता मालूम
ना था। फरमाया! क्‍या तुम में कोई जानता है? शायद बनी इस्राईल
की घूढ़िया को मालूम हो। उसके पास आदमी भेजा। के तुझे यूसुफ
अलेहिस्सलाम की कब्र मालूम है? उसने कहा। हाँ मालूम है। हजरत मूस्ा
अलेहिस्सलाम ने फ्रमाया। तू मुझे बता दे। वो बोली खुदा की कसम में
ना बताऊंगी। जब तक के जो कुछ मैं आप से माँगूं। आप मुझे अता ना
फरमाएँ। मूसा अलेहिस्सलाम ने फ्रमाया। तेरी अर्ज कबूल है माँग क्या
माँगती है। वो बूढ़िया बोली। तो हुज॒र से मैं ये माँगती है. के जन्नत में मैं
आपके साथ हूँ। उस दर्जे में जिसमे आप होंगे। मूसा अलेहिस्सलाम ने
फरमाया। जन्नत माँग ले यानी तुझे यही काफी है। इतना बड़ा सवाल ना
कर। बूढ़िया बोली। खुदा की कसम में ना मानूंगी। मगर यही के आपके
साथ हूँ। मूसा अलेहिस्सलाम उससे यही रद्दोबदल करते रहे अल्लाह ने
वही भेजी। मूसा वो जो माँग रही है’ तुम उसे वही अता कर दो। के उसमें
तुम्हारा कुछ नुकसान नहीं। चुनाँचे मूसा अलेहिस्सलाम ने जन्नत में अपने
रफाकृत उसे अता फ्रमा दी। उसने यूसुफ अलेहिस्सलाम की कब्र बता
दी। मूसा अलेहिस्सलाम नअश मुबारक को साथ लेकर दरया से उदबू
फरमा गए। ( तिब्रानी शरीफ अलअमन व अलअला सफा 7229)

सबक्‌: हजरत मूसा अलेहिस्सलाम ने उस बूढ़िया को ना सिर्फ जक्न
ही बल्‍्के जन्नत में अपनी रफाक॒त भी दे दी।

मालूम हुआ के खुदा के मक्बूलों को जन्नत पर इखितियार हासि#
खबर और जाहिल है। अलेह व सलल्‍लम को बेइख्तियार कहे। बड़ा

9०९6 099 (थ्वा5८शाशश’

सच्ची हिंकीयाति 97 इसाईल . हिस्सा अबबल
नम्बर ७) बनी

हिकायत नम्बर७) बनी इस्राईल की गुमराही
बनी इस्राईल ने हजरत मूसा अलेहिस्लाम को मईयत में फ्रऔन से
पा ली। और दरया को उबूर कर के जब पार हो गए। तो उनका
एक बुत परस्त कौम पर हुआ। जब बुतों के आगे आसन मारे बैठे थे।
और उन बुर्तों को पूज रहे थे। ये बुत गाय की शक्ल के थे। बनी इस्राईल
मूसा अलेहिस्सलाम से कहने लगे के ऐ मूसा! जिस तरह उन लोगों
(5 इतने खुदा हैं। इसी तरह हमें भी आप एक खुदा बना दें। हजरत भूसा
| ने फ्रमाया जाहिलों! ये क्या बकने लगे हो। ये बुत्त परस्त तो
बर्बादी व हलाकत के हाल में हैं। और जो कुछ कर रहे हैं। बिलकुल बातिल
है। क्या मैं एक अल्लाह के सिवा कोई दूसरा खुदा तुम्हारा लिए तलाश करू?

(कुरआन करीम 9 रूक्कू 7)

सबक: खुदा तआला की इतनी मेहरबानियों के बावजूद जो उसे
भूल जाए और बुतों के आगे झुकने पर आमादा हो जाएँ। उनकी गुमराही व
जहालत में क्या कलाम है?

हिकायत नम्बर) सामरी सुनार

बनी इस्राईल में सामरी नाम का एक सुनार था। ये कुबीला सामरा की
तरफ्‌ मनसूब था। और ये कूबीला गाय की शक्ल के बुत का पूजारी था।
सामरी जब बनी इस्राईल की कोौम में आया। गे उनके साथ बजाहिर ये
भी मुसलमान हो गया। मगर दिल में “गाए की पूजा” की मोहब्बत रखता
था। चुनाँचे जब बनी इस्राईल दरया से पार ६४ और बनी इग्राईल ने एक
बुत्त परस्त कौम को देखकर हजरत मूसा अलेहिस्सलाम से अपने लिए
भी एक बुत की तरह का खुदा बनाने की दरख्वास्त की और हजरत मूसा
अलेहिस्सलाम उस बात पर नाराज हुए। तो सामरी मौके की तलाश में रहने

णैगा। चुनाँचे हजूरत मूसा अलेहिस्सलाम तौरात लाने के लिए कोहे तूर पर
शरीफ ले गए। तो मौका पाकर सामरी ने बहुत सा जेबर पिघला कर सोना
जमा किया। और उससे एक गाए का बुत तैयार किया। और फिर उसने
फेछ खाक उस गाए के बुत में डाली। तो वो गाए के बछड़े की तरह बोलने
लेगा और उसमें जान पैदा हो गई। सामरी ने बनी इस्राईल में उस बछड़े की
शुरू करा दी। और बनी इस्राईल उस बछड़े के पुजारी बन गए।

उजेरत भूसा अलेहिस्सलाम जब कोहे तूर से वापस तशरीफ लाए। तो कौम

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सच्ची हिकायात 98 हिस्सा
का ये हाल देख कर बड़े गुस्से में आए और सामरी से दरयाफ्त फंरमाया
ऐ सामरी! ये तूने क्या किया? सामरी ने बताया। के मैंने दरया से पार होते
वक्त जिब्नाईल को घोड़े. पर सवार देखा था। और मैंने देखा के जिन्बाइल दर
घोड़े के कृदम जिस जगह पर पड़ते हैं वहाँ सब्जा उग आता है। मैंने उस
के कृदम की जगह से कुछ खाक्‌ उठा ली। और वो खाक मैंने बछड़े के ७.
में डाल दी। तो ये जिन्दा हो गया है और मुझे यही बात अच्छी लगी है। मै
जो कुछ किया है। अच्छा किया है हजुरत मूसा अलेहिस्सलाम ने फ्रमया
अच्छा तो जा, दूर हो जा। अब इस दुनिया में तेरी सजा ये है। के तू हर एक
से ये कहेगा। के मुझे छू ना जाना। यानी तेरा ये हाल हो जाएगा। के तू किस्म
शख्स को अपने क्रीब ना आने देगा। चुनाँचे वाकई उसका ये हाल हो गया।
के जो कोई उससे छू जाता। तो उस छूने वाले को और सामरी को भी बही
शिद्दत का बुखार हो जाता। और उन्हें बड़ी तकलीफ होती। इसलिए सामरी
खुद ही चीख चीख कर लोगों से कहता फिरता के मेरे साथ कोई ना लगे
और लोग भी उससे इजतनाब करे। ताके उससे लगकर बुखार में मुबतल
ना हो जाएँ। इस अजाब दुनिया में गिरफ्तार होकर सामरी बिलकुल तनहा
रह गया और जंगल को चला गया। और बड़ा जुलील होकर मरा। ( कुरआन
करीम पारा 6 रूकू 4 रूह-उल-बयान सफा 599 जिल्द 2 ) हु
सबक्‌ः आज भी गव के पुजारी छूत छात के इल्म बरदार हैं। औ
जिस तरह वो मुसलमानों से अलग रहना चाहते हैं। उसी तरह मुसलमानों को
भी उनसे इजतनाब रखना चाहिए और ये भी मालूम हुआ के जिब्नाईल के
घोड़े के कदम की खाक से अगर जिन्दगी मिल सकती है तो जिब्राईल के
भी आका व मौला सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम हैं। और हुजूर के
उम्मती जो ओलिया अल्लाह हैं। उनके दमकूदम से हजारों लाखों फयूज १
बर्कात क्‍यों हासिल नहीं हो सकते, होते हैं और यकीनन होते हैं
दिल के अंधे हैं और सामरी से भी ज़्यादा शकी हैं। वो उंन अल्लाह बालों के
फयूजु व बर्कात के मुनकिर हैं।

हिकायत नम्बर७७ कातिल का सुराग
बनी इस्राईल में एक मालदार शख़्स था। उसके चचा जाद भाई
बत्‌मओ वारिस उसको कत्ल करके शहर से बाहर फैंक दिया। और
को उसके खून का मुद्ई बन कर वाबेला करने लगा। लोगों ने हजरत
अलेहिस्सलाम से अर्ज किया। के आप दुआ फरमाएँ के अल्लाह

9९९06 99 (थ्वा5८शाशश’

हिंकायात 99
सच्ची ब्वात को जांहिर फ्रमाए। उस पर खुदा का हुक्म बा
जिबह करो और उस गाय का एक दुकड़ा उस हआ के एक
गे जिन्दा होकर खुद ही बता देगा के उसका न परे मारो। तो
मकतूल “ होकर पूछा। के जाक न है? लोगों
ने थे बात सुन करे हैरान होकर पूछा। के क्या मजाक तो नहीं? हजरत मूसा
म ने फ्रमाया। मआज अल्लाह! क्या मैं कोई ऐसी फिजल बात “6
ंगा। मैं बिलकुल सही कह रहा हूँ लोगों ने पूछा। तो फिर फ्रमाईये गाय
क्षेसी हो? हजरत मूसा अलेहिस्सलाम ने फ्रमाया। खुदा फ्रमाता है। के ना
बूढ़ी और ना बिलकुल नो उम्र, बल्के उन दोनों के बीच में हो। लोगों
ने कहा। खुदा से ये भी पूछ दीजिए। के उसका रंग क्या हो? फ्रमाया! खुदा
फरमाता है। के ऐसी पीली गाय हो। जिसकी रंगत डबडबाती और देखने वालों
को खूश कर देने वाली हो। लोगों ने फिर कहा के गाए को हर हैसियत के
मुतअल्लिक जुरा तफ्सील से पूछ दीजिए। ऐसा ना हो के हम से कोई गलती
हो जाए। हजरत मूसा अलेहिस्सलाम ने फ्रमाया। खुदा फरमाता है के ऐसी.
गाय हो, जिस से कोई खिदमत ना ली गई हो। ना हल जोती गई हो ना उससे

खेती को पानी दिया गया हो और बेऐब हो। जिसमें कोई दाग॒ ना हो।
अब वो लोग इस किस्म की गाय की तलाश करने लगे। मगर ऐसी गाय
का मिलना मुश्किल था। हाँ एक गाय के मुतअल्लिक उन्हें पता चला के वो
गाए उन सिफात से मोसूफ है। वो गाय एक यतीम बच्चे की गाय थी। और
उस का किस्सा ये था के बनी इस्राईल में एक सालेह आदमी था| जिसका
एक छोटी उप्र का बच्चा था। और उसके पास सिवांए एक गाय के बच्चे के
कुछ ना रहा था। उसने उस बछिया की गर्दन पर मोहर लगा कर उसे छोड़
दिया। और बारगाह हक में अर्ज़ किया के ऐ अल्लाह! मैं उस बछिया को
हा बेटे के लिए तेरे पास अमानत रखता हुँ। मेरा बेटा जब बड़ा हो जाए।
, य उसके काम आए। उस मर्द सालेह का तो इन्तिकूल हो गया और बछिया

जंगल में परवरिश पाती रही। |

अपनी भा… जड़ा हुआ। तो बाप की तरह सालेह और नेक निकला।
के के के बड़ा फरमाँबरदार था। एक रोज उसकी माँ ने कहा। बेटा! तेरे
गईं 8 जंगल में तेरे लिए एक बछिया छोड़ दी है। वो अब जवान हो
। उसको जंगल से ले आ। और अल्लाह से दुआ कर के वो तुझे तेरी
सं फ्रमा दे। चुनाँचे वो लड़का जंगल ५४ कर

मां को बताई हुईं निशानियाँ उसमें पाकर उसे पहचान
और खुदा को कसम बेक ट बुलाया। तो गाय फौरन हाजिर हो गई वो

9८९6 099 (थ्वा]5८शाशशः

सच्ची हिकायात क्‍ 00 हिस्सा अव्ब्
उसे लेकर माँ के पास पहुँचा। माँ ने हुक्म दिया। के जाओ उसे बाजार में तने
जाकर. तीन दीनार पर बेच आओ। और शर्त ये की के जब सौदा हो जाए
तो एक बार फिर मुझ से पूछ लिया जाए। उस जूमाने में गाय की कीमत
तीन दीनार तक ही होती थी वो लड़का गाय लेकर बाजार पहुँचा। तो
फरिश्ता खरीदार की शक्ल में आया। और उस गाय की कीमत छः
लगा दी। मगर उस शर्त से के लड़का अपनी माँ से इजाजृत लेने ना जाए यहीं
खड़े खड़े खुद ही बेच डाले। लड़के ने मंजर ना किया और कहा के माँ से
इजाजत लिए बगैर मैं हर गिज कोई सौदा ना करूँगा। फिर घर आकर मां
को सारा किस्सा सुनाया। माँ ने छः दीनार पर गाय बेच दने की इजाजूत ते
दे दी। मगर दोबारा बीओ हो जाने के बाद फिर अपनी मर्जी दरयाफ्त कर लगे
की पाबंदी लगा दी। वो लड़का फिर बाजार में आया। और वही फरिश्ता
खरीदार बन कर आया। और बारह दीनार कौमत लगा दी। मगर शर्त पर के
लड़का माँ से इजाजृत लेने ना जाए। लड़के ने ये बात फिर ना मंजर कर दी।
और माँ से आकर सारा हाल कह दिया। माँ समझ गई के ये खरीदार कोई
फरिश्ता है। जो आजमाईश के लिए आता है। लड़के से कहा के अब जो वो
खरीदार आए। तो उससे कहना के आप हमें ये गाय बेचने की इजाजत देते
हैं या नहीं? लड़के ने यही बात उस खरीदार से कह दी। तो फरिएते ने कहा।
के अभी इस गाय को रोके रखो। जब बनी इमस्राईल खरीदने आएँ तो उसकी
कीमत ये मुक्रर करना। के उसकी खाल को सोने से भर दिया जाए। लड़का
गाय को घर वापस ले आया ये गाय ही एक ऐसी गाय थी। जिसमें खुदा की
बताई हुई सारी सिफात पाई जाती थीं और जिसकी बनी इस्राईल को तलाश
थी। चुनाँचे बनी इस्राईल को उस गाय का पता चला तो मकान पर पहुँचे। ते
उस गाय की यही कीमत मुक्‌रर हुई के उसकी खाल को साने से भर दिया
जाए। और हजरत मूसा अलेहिस्सलाम की जमानत पर वो गाय बनी इस्राईल
के सपुर्द कर दी गई। और बनी इस्राईल ने उसे जिबह कर के उस गोश्त का
एक टुकड़ा। उस मक्तूल की लाश पर मारा। तो वो जिन्दा होकर कहने लगा!
के मुझे मेरे बचना जाद भाई ने कत्ल किया है। चुनाँचे कातिल को भी इक्रा’
करना पड़ गया। और वो पकड़ा गया। ( करआन करीम पारा रूकू १
रूह-उल-बयान सफा १09 जिंल्द ) हु

सबक: खुदा की बताई हुई गाय के टुकड़े में अगर इतनी बर्कत रे
के मुर्दे से लग जाए तो वो जिन्दा हो जाए। तो जो खुदा के मक्बूल बच्दे हैं
उनके बजूद बाजूद में क्यों ना लाखों बर्कतें और करामतें होंगी और क्यों *

9९९06 099 (थ्वा]5८शाशश’

हिंकायात त 0॥
ली हरे ही से मुद्दों को जिन्दगी मिलती होती? अव्घल

ड्श हुआ
उतके भी मालूम हुआ के जालिम लाख छुपा कर जुल्म करे। मगर उसका

कर ही रहेगा और जिस तरह हिकमत रब्बानी से

३ के कातिल का पता चल गया। इसी तरह कल जा कक

ने रब्बी से हर जालिम का पता चल जाएगा। और ये भरी मालूम हुआ

के माँ का वजूद बड़ी नओमत है और उसकी रजाई जोई से दीन व दुनिया को

बहेतरी हासिल होती है और ये भी मालूम हुआ। के ये गाय मअबूद नहीं है।

सिर्फ अल्लाह ही है बनी इस्राईल ने चूँके सामरी के बनाए हुए गाय

के बुत ही की पूजा की थी। इसलिए अल्लाह ने उन्हीं के हाथों एक गाय ही

को जिबह कराया। ताके उन्हें पता चल जाए के असल मअबूद तो वो है। जो
उस गाय को जिंबह करने का हृक्‍्म दे रहा है।

हिकायत नम्बर७&) हजरत मूसा व हजरत खिज्

अलेहिस्सलाम

हजूरत मूसा अलेहिस्सलाम ने एक मर्तबा बनी इस्राईल में बड़ा फसीह
व बलीग वाजु फ्रमाया। और ये भी फ्रमाया। के इस बढ़त मैं बहुत बड़ा
आलिम हूँ। हजरत मूसा अलेहिस्सलाम का ये फ्रमाना खुदा को ना भाया
और हजुरत मूसा से फ्रमाया। ऐ मूसा! तुम से ज़्यादा आलिम मेरा बन्दा
खिज है। हजरत मूसा अलेहिस्सलाम ने हजरत खिज् से मुलाकात का शौक्‌
जाहिर किया और खुदा से इजाजत लेकर हजरत खिज् को मिलने के लिए
रवाना हो गए खुदा ने मदद फरमाई। और हजरत मूसा अलेहिस्सलाम ने खिज़
अलेहिस्सलाम को पा लिया। और उनसे कहा के मैं आपके साथ रहना चाहता
है ताके आपके इल्म से मैं भी कुछ मुसतफीद हूँ। हजरत खिज़ ने जवाब दिया
आप मेरे साथ रहकर कई ऐसी बातें देखेंगे के आप ४न पर सब्र ना कर
रे ‘ हजरत मूसा ने फरमाया। नहीं मैं सब्र करूँगा आप मुझे अपने साथ
दीजिए। खिज्च अलेहिस्सलाम ने फ्रमाया। तो फिर मैं चाहे कुछ करूँ

लगे के का बात में दखल ना दें। फ्रमाया! मंजूर है और आप साथ रहने
बिज्ञ ७… रोतों चले और कश्ती पर सवार हुए। कश्ती वाले ने हज़रत
उसको पहचान कर मुफ्त बैठा लिया मगर हजरत खिज् अलेहिस्सलाम ने
गूप्ता अले। ही एक जानिब से तोड़ दिया और ऐबदार कर दिया। हजरत
के एक गरीय ये बात देखकर बोल उठे के जनाब ये आपने क्या किया?

‘गब शख्स को जिसने बैठाया भी हमें मुफ्त है। आपने कश्ती तोड़ दी।

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सच्ची हिकायात 402 हिस्सा
हजरत खिज्ज बोले। मूसा! मैं ना कहता था। के आप से सब्र ना हो सकेगा। और
मेरी बातों में आप दखल दिए बगैर ना रह सकेंगे। हजरत मूसा

ने फरमाया ये मुझ से भूल हो गई है। आईंदा मोहतात रहूंगा। फिर चले तो
रस्ते में एक लड़का मिला। हजरत खिज् ने उस लड़के को कत्ल कर डाला|
हजरत मूसा फिर बोल उठे। के ऐ खिज्ज! तुमने क्‍या किया? एक बच्चे को
मार डाला। खिज् बोले। मूसा! आप फिर बोले जाईये! मेरा और आपका साथ
मुश्किल है। हजरत मूसा फ्रमाने लगे। एक बार और मौका दीजिए अब अगर
बोला। तो मुझे अलग कर देना। चुनाँचे फिर चले। तो एक ऐसे गाँव में पहुँचे।
जिस गाँव के बाशिन्दों ने मूसा व खिज् अलेहिमाअस्सलाम को खाना तक
ना पूछा। बल्के उन्होंने खाना तलब फरमाया तो उन्होंने इंकार कर दिया। उम्र
गाँव में एक शिकस्ता मकान की दीवार गिरने वाली थी। हजरत खिज् ने उम्र
दीवार को अपने हाथ से सीधा कर के मजबूती से कायम कर दिया। हजरत
मूसा अलेहिस्सलाम नें देखा के ये गाँव वाले तो इतने बखील हैं के खाना
तक देने को तैयार नहीं। और ये खिज्ञ इस कदर शफ़्कृत पर उतर आए हैं के
उनकी गिरने वाली दीवारें कायम करने लगे हैं। ये देखकर फिर बोल उठे के
ऐ खिज्ध! अगर आप चाहते। तो इस दीवार के खड़ा कर देने की आप उनसे
उजरत भी ले सकते थे। मगर आपने तो मुफ़्त काम कर दिया। हजरत खिज्
बोले मूसा बस अब मेरी और आपकी जुदाई है। लेकिन जुदा होने से पहले इन
बातों की हिक्ममत भी सुनते जाईये। वो जो मैंने कश्ती को थोड़ा सा तोड़ दिया
था उसकी हिकमत ये थी के दरया के दूसरे किनारे एक जालिम बादशाह था
जो हर साबत कश्ती जबरदस्ती छीन लेता था। मगर जिस कशती में कोई ऐब
होता उसे नहीं छीनता था। कश्ती वाले को उस बात का इल्म ना था। मैं अगर
कश्ती का कुछ हिस्सा ना तोड़ता। तो उस गरीब की सारी कश्ती छिन जाती
ओर वो जो लड़का मैंने मार डाला। उसकी हिकमत ये थी के उसके माँ बाप
मुसलमान थे और ये लड़का, मैं डरा के बड़ा होकर काफिर निकलेगा। और
उसके माँ बाप भी उसकी मोहब्बत में दीन से फिर जाएँगे। तो मैंने इरादा कर
लिया के उसके माँ बाप को अल्लाह उससे बेहतर लड़का दे। और उसे मैंने
मार डाला। ताके उसके माँ बाप इस फितने से महफूज रहें। और मैंने गाँव में
गिरने वाली दीवार को सीधा कर दिया। उसकी हिकमत ये थी के वो दीवार
शहर के दो यतीम लड़कों की थी। और उसके नीचे उनका खजाना था। और
बाप उनका बड़ा सालेह था तो रब की ये मर्जी थी के दोनों बच्चे जवान हो
जाएँ और अपना खजाना आप निकाल लें ये थी उनकी हिकमत जो आपने

9०९06 99 (थ्वा5८शाशश’

हिंकायर्ति 403
सब्मी क्रआन करीम पारा ॥6 रूकू 4, रूह- हिस्सा अव्वल
‘ देखीं। ५… आन की बातों में आह आह उल-अयान सफा 4५ जिल्द ।
; दीन का बातों में जरूर कोई ना कोई हिकमत )

2 की तलाश जारी रखनी चाहिए। चाह है और
अर को हो। और ये भी मालूम हुआ कत्ल है कितना बड़ा
हर होता है। के फ्लाँ बच्चा बड़ा होकर मोमिन या कक बन्दों

और ये भी मालूम हुआ के अल्लाह के मबूबूल बन्दे जिस कस: ।
क्व लें। खुदा बैसे ही कर देता है क्‍्योंके हजरत खिज्न अलेहिस्सलाम रा
को कुत्ल कर के यूं फरमाया था। “फआरदना ३ हे
ड़ खेरम्म मिनहू ” पस हक 3 इरादा कर लिया। के उन दोनों 8
इढढें उससे बेहतर अता फ्रमाए। चुनाँचे खुदा ने हजरत खिज़ अलेहिस्सलाम
के इरदे के मुताबिक उन दौनों को उससे बेहतर बच्चा अता फ्रपा दिया।

हिकायत नम्बर७&) जानवरों की बोलियाँ

हजरत मूसा अलेहिस्सलाम के पास एक शख्स हाजिर हू
लगा हुज्र! मुझे जानवरों को बोलियाँ सिखा दीजिए, मुझे गा
शौक्‌ है। आपने फ्रमाया के तुम्हारा ये शौक अच्छा नहीं तुम इस बात को
हने दो उसने कहा। आपका इसमें क्या नुक्सान है हुज॒र मेरा एक शौक है उसे
पूरा कर ही दीजिए। हजरत मूसा अलेहिस्सलाम ने अल्लाह तआला से अर्ज
की के मौला ये बन्दा मुझ से इस बात का इसरार कर रहा है। इर्शाद फरमा
के मैं क्या करू। हुक्म इलाही हुआ के जब ये शख्स बाज नहीं आता तो तुम
उ्ते जानवरों की बोलियाँ सिखा दो। चुनाँचे हजरत मूसा अलेहिस्सलाम ने
उसे जानवरों की बोलियाँ सिखा दीं। ।
कर शख्स ने एक मुर्ग और एक कुत्ता पाल रखा था एक दिन खाना
रमक 45 उसको खादिमा ने दसतरख़्वान जो झाड़ा तो रोटी का एक
हा के | उसका कुत्ता और मुर्ग दोनों उसकी तरफ्‌ लपके और वो रोटी
भूका आय मुर्ग ने उठा लिया। कुत्ते ने उस मुर्ग से कहा। अरे जालिम मैं
दुकड़ा मुझे खा लेने देता। तेरी खूराक तो दाना दुनका है मगर
काये अं भी ना छोड़ा। मुर्ग बोला, घबराओ नहीं कल हमारे मालिक
शब्प भरे >_… गाएगा तुम कल जितना चाहोगे उसका गोश्त खा लेना। उस
दिन गर तो बा ये गुफ्तगू सुन कर बैल को फौरन बेच डाला वो बैल दस
बेच गया। बेस लेकिन नुक्सान खरीदार का हुआ और ये शख्स नुक्सान
दिन कात्ते ने मुर्ग से कहा बड़े झूटे हो तुम ख़्वाह-म-ख़्वाह

9०९06 99 (थ्वा5८शाशश’

सच्ची हिकायात 404 हिस्सा अव्वल
मुझे आज की उम्मीद में रखा बताओ कहाँ है वो बैल जिसे मैं खा सकू
मुर्ग ने कहा मैं झूटा नहीं हूँ हमारे मालिक ने नुकसान से बचने के लिए वो
बैल बैच डाला है और अपनी बला दूसरे के सर डाल दी है मगर लो सुनो
कल हमारे मालिक का घोड़ा मरेगा, कल घोड़े का गोश्त जी भर कर खाना
उस शख्स ने ये बात सुनी और घोड़ा भी बेच डाला दूसरे दिन क्‌त्ते ने फिर
शिकायत की तो मुर्ग बोला। भई क्या बताऊं हमारा मालिक बड़ा बेवकफ
है जो अपनी आई गैरों के सर डाल रहा है उसने घोड़ा भी बेच डाला और
वो घोड़ा खरीदार के घर जाकर मर गया बेल और घोड़ा इसी घर में मरते
तो हमारे मालिक की जान का फिदया बन जाते। मगर उसने उनको बेच
कर अपनी जान पर आफत मोल ले ली। लो सुनो और यक्रोन करो के कल
हमारा मालिक खुद ही मर जाएगा और उसके मरने पर जो खाने पकेंगे उसमें
से बहुत कुछ खाना तुम्हें मिल जाएगा।

उस शख्स ने जब ये बात सुनी तो होश उड़ गए के अब मैं क्‍या करूँ
कुछ समझ में ना आया ओर दौड़ा दौड़ा हजरत मूसा अलेहिस्सलाम के पास
आया और बोला। हुजर मेरी गुलती माफ फ्रमाईये और मौत से मुझे बचा
लीजिए हजूरत मूसां अलेहिस्सलाम ने फ्रमाया, नादान अब ये बात मुश्किल
है आई क॒जा टल नांसकेगी, तुम्हें अब जो बात सामने आई है मुझे उसी दिन
नजर आ रही थी। जब तुम जानवरों की बोलियाँ सीखने पर इसरार कर रहे
थे। चुनाँने अब मरने के लिए तैयार हो जाओ चुनाँचे दूसरे दिन वो शख्स
मर गया। ( मसनवी शरीफ )

सबक: मालो दौलत पर अगर कोई आफत नाजिल हो और किसी
किस्म का कोई नुक्सान हो जाए तो इंसान को गृम और शिकवा ना करना
चाहिए बल्‍के अपनी जान का फिदया समझ कर अल्लाह का शुक्र ही अदा
करना चाहिए। और ये समझना चाहिए के जो हुआ बेहतर हुआ अगर माल
पर ये आफ्त नाजिल ना होती तो मुमकिन है जान हलाकत मे पड़ जाती।

हिकयत नम्बर७) तूफान बाद
कौमे आद एक बड़ी जबरदस्त कौन थी जो इलाका यमन के एक
रेगिस्तान अहकाफ में रहती थी उन लोगों ने जमीन को फिस्को फुजूर से भर
दिया था। और अपने जोर व कव्वत के जोम में दुनिया की दूसरी कोमों को
अपनी जफा कारियों से पामाल कर डाला था ये लोग बुत परस्त थे। अल्लाह
तआंला ने उनकी हिदायत के लिए हजरत हूद अलेहिस्सलाम को मबऊर्स

9९९06 99 (थ्वा]5८शाशश’

हिकार्थर्ति ] 05 ह हिस्सा
शक आपने उनको दर्स तौहीद दिया और जोर व सितम से कक
; मुनकिर और मुखालिफ हो गए और कहने
लीग २ आवर कौन है? कुछ लोग हजरत हूद हक हम से
आदा जे बहुत थोड़े थे कौम ने जब हद से ज़्यादा बब पर ईमान
लाए मा. किया और अल्लाह के पैगम्बर की हि बा
मुजाहेरह न्जो गजालफतत कक
गा जलता 208 कह जा कक । वो लोग देखकर खूश
द् ता शिह्ठत से चली के ऊँटों और आदमियों को उड़ा… हवा
डर उड़ा उड़ा
कक ले जाती थी। ये देखकर वो लोग घरों में दाखिल हुए हे अप
बन्द कर लिए कर कस कक ना बच सके। उसने दरवाजे भी उखेड़
(रे क बे अगर अपने बा बिना
जुद्रा हो गए थे 20 वो सलामत रहे। ( क्रआन करीम पारा 8, रूक्‌ 38)
(खृजायन-उल-इर्फान, 23, रूह-उल-बयान, सफा 29
सबक; खुदा से बगावत और उसके रसूल की की का एक
कप 33082 अरबआ मिटटी, पानी आग और हवा भी हमारे
! अज्‌ ते हैं।

हिकायत नम्बर७) पत्थर की ऊँठनी

न 3 को हलाकत के बाद कौम समूद पैदा हुईं। ये लोग हिजाजु व
हर यान इक्ताअ में आबाद थे। उनकी उप्रें बहुत बड़ी होतीं। पत्थर
अब बनाते। वो टूट फूट जाते। मगर मकीन बस्तूर बाकी रहते
हिदायत के म ने भी अल्लाह की नाफ्रमानी शुरू की। तो अल्लाह ने उनकी
इंकार करना लिए हजरत सालेह अलेहिस्सलाम को मबऊस फ्रमाया। कौम
लोगों “ना शुरू किया। बअज्‌ गरीब गरीब लोग आप पर ईमान ले आए

पर ईंट पार साल के बाद एक ऐसा दिन आता था। जिसमें ये मेले के तौर
का दिन था करते थे। उसमें दूर दूर से आकर लोग शरीक होते। ये मेले
पुलाया। बज तो लोगों ने हजरत सालेह अलेहिस्सलाम को भी इस मेले में
फो खातिर “ते सालेह अलेहिस्सलाम एक बहुत बड़े मजमओ में तबलीगे हक्‌
भालेह पेशरीफ ले गए। कौमे समूद के बड़े बड़े लोगों ने वहाँ हजरत
अलैहिस्सलाम __’ स्सलाम से ये कहा। के अगर आपका खुदा सच्चा है। और आप

9९३९6 99 (थ्वा58८शाशश’

सच्ची हिकायात 406 हिस्सा
उसके रसूल हैं तो हमें कोई मौजजा दिखलाईये आपने फ्रमाया। बोलो! क्या
देखना चाहते हो। उनका सबसे बड़ा सरदार बोला। वो सामने जो पहाड़ी
नजर आ रही है। अपने रब से कहिये के उसमें से वो एक बहुत बड़ी ऊँटनी
निकाल दे। जो दस महीने की हामला हो। हजरत सालेह अलेहिस्सलाम ने उस
पहाड़ी के करीब आकर दो रकअत नमाजू अदा की। और दुआ की। तो वो
पहाड़ी लरजने लगी। और थोड़ी देर के बाद वो पहाड़ी शक्‌ हुई। और उससे
से सबके सामने एक ऊँटनी निकली। जो हामला थी। और फिर उसने उसी
वक्‍त बच्चा भी जना। इस वाकये से कौम में एक हैरत पैदा हुई। कुछ लोग
मुसलमान हुए और बहतु से अपने कुफ्र पर ही कायम रहे। ( करआन करीम
पारा 8 रूकू 77 रूह-उल-बयान सफा 728 जिल्द ) 7

सबक्‌: अम्बियाक्राम अलेहिमअस्सलाम के मोजजात बरहक हैं।
और अल्लाह तआला हर बात पर कादिर है। अम्बिया अलेहिमअस्सलाम के
मोजजात का इंकार काफिरों का ही काम है।

हिकायत(») ठंडा चश्मा

हजरत अय्युब अलेहिस्सलाम को अल्लाह ने हर तरह की नअमतें अता
फरमाई थीं हुस्ने सूरत भी। कसरत औलाद भी और कसरत अमवाल भी।
अल्लाह तआला ने आपको इल्तला में डाला। और आपके फरजंद व औलाद
मकान के गिरने से दबकर मर गए। तमाम जानवर जिनमें हजारहा ऊँट और
हजारहा बकरियाँ थीं सब मर गए। तमाम खेतियाँ और बागात बर्बाद हो गए।
कुछ बाकी ना रहा। और जब आपको उन चीज़ों के हलाक होने और जाए
हो जाने की खबर मिलती। तो आप हम्द इलाही बजा लाते और फ्रमाते थे
मेरा क्या है। जिसका था उसने ले लिया। जब तक मुझे दिया। मेरे पास रहा
उसका शुक्र अदा नहीं हो सकता। मैं उसकी मर्जी पर राजी हूँ। फिर आप
बीमार हो गए बदन मुबारक पर आबले पड़ गए। जिस्म शरीफ सब जझ्ों
से भर गया। सब लोगों ने छोड़ दिया। बजुज आपकी बीबी साहिबा के के वो
आपकी खिदमत करती रही और ये हालत कितनी मुदहत तक रही। आखिर
एक रोज हजरत अय्युब >लेहिस्सलाम ने अल्लाह से दुआ की। तो अल्लाह
तआला ने फ्रमाया। ऐ अय्युब! तू अपना पाँऊ जमीन पर मार। तेरे पेर मारने
से एक ठंडा चश्मा निकल आएगा। उसका पानी पीना। और उससे नहाना।
चुनाँचे हजरत अय्युब अलेहिस्सलाम ने अपना पाँऊ जमीन पर मारा तो एक
ठंडा चश्मा निकल आया। जिससे आप नहाए और पानी पिया। तो आपका

9९९06 99 (थ्वा]5८शाशश’

 

 

 

हिंकायीतें अर
बह! जाता रहा। ( कुरआन करीम पारा 2 रूकू

पर्ा 2

हिस्सा अव्बल

2 जजायन-उल-इफांन

; अल्लाह वाले मसायबर व आलाम और बीमारियों में

ला का अदा करते रा और उसका
अक्बूलों के पाँऊ में भी ये बकत है। के वो पाँऊ भारें

नकल आए जिसका पानी दाफओ अलबला हो फिर जो काम

3 क्षयूज़ व बरकात का इंकार करता है। किस क॒ृद्र जाहिल व वतबकत

हिकावत चम्बर॥0 हुत् एक अजीमुश्शान हकूपत-

अलेहिस्सलाम अजीमुश्शान हक
की थी और आपके बस में ३२325 हक भी
अता फरमाई हवा कर दी थी। आप हवा को जहाँ
फ्रमाते थे। वो आप के तख़्त को उड़ा कर वहाँ पहुँचा देती थी (॥
कुरआन करीम पारा 77 रूकू 6) और जिन्न व इंसान और परिन्दे सब आपके
ग़बओ और लश्करी थे ( 2, पारा ॥9 रूकू 77) आप हैवानात की बोलियाँ
प्री जानते थे (3, पारा 9 रूकू 77) हजरत सुलेमान अलेहिस्सलाम जब
बैठ-उल-मुक्‌हस की तामीर से फारिग हुए तो आपने हरम शरीफ (मक्का
८३०8 24 का कक फरमाया। चुनाँचे तैयारी शुरू हुई और आपने
४ परिन्दों और दीगर जानवरों को साथ चलने का हुक्म दिया।
335 बहुत बड़ा लश्कर तैयार हो गया। ये अजीम लश्कर तकरीबन
शक रा पे । के ग्‌रत सुलेमान अलेहिस्सलाम ने हुक्म दिया तो हवा
गे रे पहचा मान को मअ उस लश्कर अजीम के उठाया। औरं फौरन हरम
गः हैथा दिया। हजरत सुलेमान अलेहिस्सलाम हरम शरीफ में कुछ
पांच हजार है अर्से में आप मक़ूा मोअज्जमा में हर रोज पाँच हजार ऊँट।
तक पं हे कम और बीस हजार बकरियाँ जिबह फ्रमाते थे। और अपने
को बशारत २५ | २. रत उल-अधस्बिया सल-लल्लाहो अलेह व सल्लम
फिर कोई ९0 रहे और यहीं से एक नबी अर्बी पैदा होंगे (न बाद
के बाद पा पैदा ना होगा। हजूरत सुलेमान अलेहिस्सलाम कुछ अर्से
कहाँ से कक अज्जमा में मनासिक अदा क अ के बाद एक सुबह को
फा एक पहीने क, सनआ मुल्क यमन में पहुँचे। मकर मोअज़्ज्मा से सनआ
पआ जबालल, _. है। और आप मक्का से सुबह को रवाना हुए। और
माया यहाँ वक्त पहुँच गए। आपने यहाँ भी कुछ अर्सा ठहरने का इरादा
____? पहुंच कर परिच्दा हद ह॒दं एक रोज ऊपर उड़ा और बहुत ऊपर

9९९06 99 (थ्वा]58८शाशश’

सच्ची हिकायात 408 हिस्सा अव्वल
जा पहुँचा और सारी दुनिया के तूल व अर्ज को देखा। उसको एक सरसब्ज
बाग नजर आया ये बाग मल्का बिलकिस का था। उसने देखा के उस बाग
में एक हुद हुद बैठा है हजरत सुलमेन अलेहिस्सलाम के हुद हुद का नाम
यअफूर था। यअफूर और यमनी हुद हुद की हस्बे जेल गुफ्तगू हुईं।

यमनी हुद हुदः भई तुम कहाँ से आए और कहाँ जाओगे?

यअफूर: मैं मुल्क शाम से, अपने बादशाह सुलेमान के साथ आया हूँ।

यमनी हुद हुदः सुलेमान कौन है?

यअफूरः वो जिनों, इंसानों, शयातीन, परिन्दों, जानवरों और हवा का
एक अजीमुश्शान फ्रमानरवा और सुलतान है उसमें बड़ी ताकत है हवा
उसकी सवारी है। और हर चीज उसकी ताबओ है। अच्छा तुम बताओ के तुप
किस मुल्क के हो। द

यमनी हुद हुदः मैं इसी मुल्क का रहने वाला हूँ। हमारे इस मुल्क की
बादशाह एक औरत है। जिसका नाम बिलकिस है। उसके मातहत बारह हजार
सिपह सालार हैं। और हर सिपह सालार के मातहत एक एक लाख सिपाही
है फिर उसने यअफ्र से कहा। तुम मेरे साथ एक अजीम एक अजीम मुल्क
और लश्कर देखने चलोगे?

यअफ्रः भई मेरे बादशाह सुलेमान अलेहिस्सलाम की नमाजे अम्र का
वक्‍त हो रहा है। और उन्हें बज लिए पानी दरकार होगा। और पानी की जगह
बताने पर मैं मामूर हँ। अगर दर हो गई तो वो नाराज होंगे।

यमनी हुद हुदः नहीं बल्के यहाँ के मुल्क और फरमानरवा बिलकिस को
मुफस्सिल खबर सुन कर खूश होंगे।

यअफ्ूर: अच्छा तो चलो।

( दोनों उड़ गए। और यअफूर मुल्क यमन को देखने लगा )

और इधर हजरत सुलेमान अलेहिस्सलमा ने नमाज अस्र के वक्त हुद
हुद को तलब फ्रमाया। तो वो गैर हाजिर निकला। आप बड़े जलाल में आ
गए। और फ्रमाया। क्या हुआ। के मैं हुद हुद को नहीं देखता। या वो वाकई
हाजिर नहीं जरूर मैं उसे सख्त अजाब करूंगा। या जिबह करूंगा। या कोई
रोशन सनद मेरे पास लाए। ( करआन करीम पारा 9 रूकू 7) ५;

और फिर अक्ाब को हुक्म दिया। के वो उड़ कर देखे। के हुद हुद कहीं
है? चुनाँचे अकाब उड़ा। और बहुत ऊपर पहुँच कर सारी दुनिया को इस तरह
देखने लगा। जिस तरह आदमी अपने हाथ के पियाले को देखता है। अचानक
उसे ह॒द हद यमन की तरफ से आता हुआ दिखाई दिया। अकाब फौरन उसके

9९९06 99 (थ्वा5८शाशश’

सह हुँचा और कहा गृजब हो गा
मुलेमाने ने लिए कसम खा हे आ फिक्रि कर ले हिस्सा अव्बल
था जिंबह करें दूंगा” के मैं हद हुद को किक गह के नबी
हुद हुद ने डरते हुए पूछा। और अल्लाह न्‍त सजा दूंगा।
का इसतसना भी फ्रमाया है या नहीं? के नबी ने उस हलफ में
है के “या कोई रोशन सनद मेरे पास लाए। अकाब ने कहा। हाँ ये मं
हुद हुद ने कहा तो फिर में बच्च रत । हों ये फ्रमाया
घबर लेकर आया हूँ। फिर अकाब हा । मैं उनके लिए एक
हाज्रि हुए हजरत सुलेमान अलेहिस्तजा बारगाहे की
हुद हुद को हाजिर करो ” ब व जलाल में फरमाया गे
हुद हुद बेचारा दमबखुद , अपनी दुम हम
हुआ और कांपता हुआ हजरत सलमान नीचे किए हुए पर जमीन से
हजरत सुलेमान ने उसको सर से अलेहिस्सलाम के करीब 3022
हु हुद ने कहा: उज़॒कुरू पकड़ कर अपनी 2 जे आवा। तो
के सामने अपनी हाजूरी को याद कूफाका बेना यद्ायिल्लाही “ ! उस वक्त
हि हजरत सुलेमान अर पदक कस 20:80 हि हुज॒र! अल्लाह
उसे माफ फरमा दिया मि ने ये बात सुनकर
की। और बताया के के फिर हुंद हुद ने अपनी गर ड्से छोड़ दिया और
बोर कि [र हाजुरी की वजह बयान
॑ हर किस्म का सामान ऐश व इशर मल्का को देखकर आया हूँ। श
है: वलाहा अरशुन श व इशरत दे रखा है या है। खुदा ने
रिवायत है अजीम और उसका रखा है और वो सूरज की पुजारिन
जवाहरात से है के ये तख्त सोने और चाँ: एक बहुत बड़ां तख्त है।
प््प्रें मरसओ था। बिलकिस र चांदी का बना हुआ था और बड़े
घर । फिर उस मजबूत घर बनवाया
‘ के अन्दर चौ घर के अन्दर तीसरा वाया था। जिस
और छटे में था घर था। उसी र तीसरा घर था। और फिर तीसरे
सातवां घर था तरह फिर उसमें पाँचवाँ और पाँचवें में
थे। एक गिलाफ उस व सातवें घर में वो तख़्त मुकुफ्फिल ६2०5
भा पाया सु चाकत रस 582 02:6/ 225
चौ सुर्ख याकृत का ब्त के चार अदद पाए
कह सफेद मौती का | दूसरा जर्द याकृत का। तीसरा सब्ज जुरमुर्द रद
रखे… » और तीस (0 | था। ये तख़्त अस्सी (80गज लम्बा। चालीस
पे ओर तेख्त अजीम पर के ऊंचा था बिलकिस सातवें घर के अन्दर
हरे ९3 तक पहुँचना ठा करती थी। हर घर के बाहर सख्त पहरा
ने जब घना एक दुश्वार अम्न था। ले

 

 

9९९06 99 (थ्वा]5८शाशश’

सच्ची हिकायात …_॥0 हिस्सा अव्वल
तो सुलेमान अलेहिस्सलाम ने फ्रमाया। मेरा एक खत ले जाओ और
बिलकिस को पहुँचा आओ। चुनाँचे आपने एक खत लिखा। जिस पर
बिस्मिल्लाहिरहिमानिरहीय लिख कर लिखा: अन्ला तअलू अलब्या ३
आतूनी मुस्लिमीन “मेरे मामले में बड़ाई जाहिर ना करो। और मुसलमान बन
कर मेरे हुज॒र हाजिर हो जाओ।” और उस खत पर शाही मोहर सब्त
हुद हुद को दे दिया। हुद हुद गया और सातों किलों के पहरों से बेनियाज
होकर नबी का ये चिह्ढी रसाँ रोशन दानों में से गुजरता हुआ बिलकिस तक
जा पहुँचा बिलकिस उस वक्त सो रही थी। हुद हुद वो ख़त बिलकिस के
सीने पर रख कर बाहर निकल आया। |

बिलकिस जब उठी तो ये खत पाकर घबराई। और अयाने सल्तनत से
मशवरह तलब किया। के क्‍या किया जाए? वो बोले के आप डरती क्‍यों हैं?
हम जोर वाले और लड़ने में माहिर हैं। सुलेमान अगर लड़ना चाहता है तो
लडे। हम शिकस्त तसलीम नहीं करते। आईंदा जो आपकी मर्जी बिलकिस
ने कहा। के जंग अच्छी चीज नहीं बादशाह जब किसी शहर में अपने जोर
कव्वत से दाखिल होते हैं तो उसे तबाह कर देते हैं मेरा खयाल है के मैं
सुलेमान की तरफ्‌ एक तोहफा भेजूं और फिर देखूं के सुलेमान उसे कबूल
करते हैं या नहीं? अगर वो बादशाह हैं तो तोहफा कबूल कर लेंगे। और
अगर नबी हैं तो मेरा ये तोहफा कबूल ना करेंगे बजुजु इसके के उनके दीन
का इत्तिबा किया जाए।

चुनाँचे बिलकिस ने पाँच सौ गुलाम और पाँच सौ बांदियाँ बेहतरीन
रेशमी लिबास और जेवरात के साथ आरास्ता करके उन्हें एसे घोड़ों पर
बैठाया जिनकी काठियाँ सोने की और लगामें जवाहरात से मरसओ थीं।
और एक हजार सोने और चाँदी की ईंटें और एक त्ताज जो बड़े बड़े कीमती
मातियों से मुजब्यन था। बगैरा वगैरा मअ एक खत के अपने कासिद के साथ
रवाना किए।

हुद हुद देख कर चल दिया। और सुलेमान अंलेहिस्सलाम को साश
किस्सा सुना दिया। हजरत सुलेमान अलेहिस्सलाम ने अपने जिनी लश्कर की
हुक्म दिया। के सोने चाँदी की ईंटें बना कर छः: मील तक इनहीं ईंटों की सड़क
बना दी जाए और सड़क के इधर उधर सोने और चाँदी की बुलंद दीवारें
खड़ी कर दी जाएँ और समुद्र के जो खूबसूरत जानवर हैं। इसी तरह खुश्की
के भी जो खूबसूरत जानवर हैं वो सब हाजिर किए जाएँ। चुनाँचे आपके
हुक्म की तअमील फौरन की गईं। छ: मील सोने चाँदी की सड़क बन गई

9०606 99 (थ्वा]58८शाशश’

हिंक्काथात 44॥
४ द्क के दोनों तरफ सोने चाँदी की दीबारें भी बन गईं 3५ अव्बल
के खुबघूरत जानवर भी हा चिर कर दिए गए। और फिर हजरत सुलेघान
अलेहिस्सलॉमि न दाय॑ जा * पान
और बायें आनिब भी चार हजार सोने ली 3 अप सोने की क्‌र्सियाँ
अपने मुर्कबीन व ख़्वास को बिठाया। और अपने पी पक और उन पर
को दूर दूर तक सफ्‌ ब सफ्‌ खड़ा कर दिया। हे जि और इंसानी
और दरिन्दों और चोषायों को भी सफ ब सफ खड़ा क। जानवरों,
25 लोग नाग और इस शान व॑ शौकत की हकूसत चपे
फलक ने कभी नाथी। चए
. बिलकिस का कासिद अपने जुओम में बड़ा क्‍
जब उसने सोने चाँदी की बनी हुईं सड़क पर 26280 800
चाँदी की दीवारें देखीं और फिर सुलेमान अलेहिस्सलाम की जा ु
और शान व शौकत के नजारे देखे तो उसका दिल धक को जाह व इज्जत
और शर्म के मारे पानी पानी हो गया और सोचने लगा हल करने लगा।
का तोहफा किस मुंह से सुलेमान की खिदमत में पेश ॥ के मैं ये बिलकिस
बारगाहे में का ० श करूगा। बहरहाल
वो बारगाहे सुलेमानी में पहुँचा। तो हजुरत ने हाल जब
रिया थे बरी मय करता आआाइग यो न लोग फ्रमाया। क्‍या तुम लोग माल
फ फख़ करते हो। एक दूसरे के तोहफे फ ग अहले मफाख़त्त हो। दुनिया
दुनिया से खूशी होती है। ना उसकी गत अत्लर 5 ा हल
कुछ दे और हे ह तआला बहुत
पलट जा ये इतना कुछ दिया है। लिहाजा ऐ बिलकिस काट
दे अपना तोहफा ले जाओ अपने साथ ही और जाकर
पर लश्कर लायेंगे। के पक कीकी होकर हमारे हुजर हाजिर नहीं होती। तो हम उस
पैलील करके शहर से मिकाल देगा 80000 अं भय
पे सारा किस तक पैगाम ले कर वापस पलटा। और बिलकिस
बेशक वो नबी है और ल से कहा। बिलकिस ने गौर से सुना। और बोली।
फिर उसने अयाने कम उससे मुकाबला करना हमारे बस का काम-नहीं।
दस के व तनत से मशवरह तलब करने के बाद हजरत सुलेमान
पे रिपोर्ट देगा होने का इरादा कर पक । हुद हुद
अलेहिस्सलाम न तक पहुँचा दी। और हजरत
अयुकुम कातिनी ने भरे दरबार में ये एलान फ्रमाया: गे
की नी बिअराशिहा कुब्ला अयातूनी मुसलिमीन “कोन

9०९06 99 (थ्वा]5८शाशश’

सच्ची हिकायात 442 हिस्सा अच्चल
है जो बिलकिस के यहाँ पहुँचने से पहले पहले उसका तख़्त यहाँ ले आए|»

अफ्रीयत नामी एक जिन्न उठा। और बोला: अचा आतिका बिल
कब्ला अन तकमा मिन्यक्रामिका “आपके इजलास बर्खास्त होने से पहले
पहले मैं ले आऊँगा।” ।

हजरत सुलेमान अलेहिस्सलाम ने फ्रमाया। हम उससे भी ज़्यादा जल्दी
मंगवाना चाहते हैं।

तो फिर एक आलिमे किताब उठा। और बोला।

अना आतिका बिही कुब्ला अयरतद्ा इलेका तरफ का

“मैं एक पल मारने से भी पहले ले आऊंगा।”

.._ ये कहा और पल की पल में वो तख़्त ले भी आया। और सुलेमान ने देखा
तो तख््त सामने रखा था। फिर बिलकिस ने हजरत सुलेमान अलेहिस्सलाम
की बारगाह में हाजिर हुई और हजरत की शान व शौकत और सदाकृत व
नबूव्वत का नजारा करके मुसलमान हो गई। ( हैवा अलहैवान सफा ३४5जिल्द
2 रूह-उल-घयान सफा 98% जिल्‍्द 2 )

सबक: हजरत सुलेमान अलेहिस्सलाम के दरबार, और बिलकिस के
तख्त के मुकाम का दरमियानी फासला दो महीना का राह का था। और तूल
व अर्ज उसका आप पढ़ चुके। के तीस गज के तीस गज्‌ ऊँचा। चालीस गज
चौड़ा और अस्सी गज लम्बा था। इतनी तबवील मुसाफ्‌ और इतने वजनदार
होने और इतने महफूज मुकाम में होने के बावजूद सुलेमान अलेहिस्सलाम का
एक सिपाही उसे पल भर में ले आया। तो फिर जो सुलेमान अलेहिस्सलाम के
आका व मौला हुजर सय्यद-उल-अम्बिया सल-लल्लाहो अलेह व सलल्‍्लम
के औलिया उम्मत हैं वो क्‍यों दूर दराजु की मुसाफत से किसी मजलूम की
एआनत व हिमायत को नहीं पहुँच सकते? क्‍

2- बो आलिमे किताब वो तख्त लाने के लिए भरे दरबार से पक
के महल में गया। और वहाँ से तख़त उठा कर वापस आया। मगर इस
वो हजरत सुलेमान के दरबार से गायब भी नहीं हुआ। और मुकाम तर तर
भी पहुँच गया। मालूम हुआ के अल्लाह वालों में ये ताकत है के वो एक
वक्त में मुतअद्दिद जगह हाजिर हो सकते हैं और ये ताकृत हजरत ज
अलेहिस्सलाम के एक सिपाही की है। फिर जो हजुरत सुलेमान के भी रा
व मौला सल-लल्लाहो अलेह सल्लम हैं उनका एक वक्त में मुतअद्दिद रज
तशरीफ फरमा होना क्यों मुमकिन नहीं? |

3- हजरत सुलेमान अलेहिस्सलाम के उस सिपाही ने दो महीने की हे

9९९06 99 (थ्वा]5८शाशश’

हिंकावात॑ ४ ]43
कह भर में तय कर लिया। और पल भर में चला भी रा अआ ३४८
धबे मैशेज पल भर में अर्श पर तशरीफ ले जाना। और वापस ते गे

पते नं र वापस तशरीफ ले
4- तख्त सुलेमान अलेहिस्सलाम को मे ण्क

हि लेती थी ये “सबी ! का तसरूफ्‌ ब इख्तियार है। और जे न के हवा

मिसल बशर कहते हैं उनमें से कोई साहब जर,….., म्बिया को

हक ब जरा
क्रिसी छत से हवा में छिलांग लगाकर दिखाएँ। ताके 2

हो। सुलेमान अलेहिस्सलाम
5- हजरत सुलेमान अलेहिस्सलाम हरम शरीफ में पहँ
पाँच हजार ऊँट पाँच हजार गाय और बीस हजार बकरा जिबाए पा
कल मगर 2844/035 4445 कल ऐसा भी है। जो अय्यामे हज में एक बकरी
तक की क्‌ ?जल कहता है और मुसलमानों
२58९ हा क्‍ मुसलमानों को इस शरई अम्न
– जिन्नो इन्स, वहीश व तियूर, खुश्की और तरी के
दीगर अल्लाह की जबरदस्त मख़्लूकू भी सुलेमान ५ हर
ताबओ थी। और आज जो लोग अम्बिया को अपनी मिस्‍्ल बशर

हैं। उनके
३५ 3 2 घर की ह नजर दौड़ाईये। शी उनकी बीवी भी उनके ताबओ

हैकायत नम्बर७) सुलेमान अलेहिस्सलाम का फैसला

एक 2 अलैहिस्सलाम की अदालर में दो शख्स हाजिर हुए,
खेत में घस गई ! किया। के उस दूसरे शख््य की बकरियाँ रात को भेरे
अलेहिस्सल सा उन्होंने मेरा सारा खेत खा लिया है। हजरत दाऊद
जाएँ उन बकरियों ये फैसला दिया के सब बकरियाँ खेत वाले को दे दी
दोनों शख्स वापस को क्ौमत खेत के नुक्सान के बराबर थी। जब वो
पुलाकात हो हक से हुए। तो हजरत सुलेमान अलेहिस्सलाम से रास्ते में
एप ला 2038 ने सुलेमान 30258 ६४340 गाल
अर ला सुनाया। हजरत सुलेमान अलेहिस्सलाम

शैलेमान ‘ इस फैसले से बेहतर एक और फैसला भी है। उस वक्त हजरत
रेकह अलेहिस्सलाम की उम्र शरीफ ग्यारह बरस की थी। हजूरत
ने जो सलेमान अलेहिस्सलाम के वालिद थे। जब

9९९06 99 (थ्वा]5८शाशश’

सच्ची हिकायात का ॥44 सलिसोत पं – हिस्सा अव्बल
अपने साहबजादे की ये बात सुनी तो सुलेमान अलेहिस्सलाम को बुला
कर दरयाफ्त फ्रमाया। के बेटा! वो कौन सा फैसला है जो बेहतर है?
सुलेमान अलेहिस्सलाम ने फ्रमाया। वो ये है के बकरियों वाला उस खेत
की काश्त करे और जब तक खेती इस हालत को पहुँचे। जिस हालत पे
बकरियों ने खाई है उस वक्त तक खेती बाला बकरियों के दूध वगैरा से
फायदा उठाए और खेती उस हालत में पहुँच जाने के बाद खेती बाले को
खेती वापस कर दी जाए। बकरियों वाले को उसकी बकरियाँ वापस कर
दी जाएँ। ये फैसला हजरत दाऊद अलेहिस्सलाम ने भी पसंद फरमाया।
( क्रआन करीम पारा 77 रूकू 6 रूह-डल-बयान सफा 62 जिल्द 2)

सबक: हजरत दाऊद हजूरत सुलेमान अलेहिम अस्सलाम के ये दोनों
फैसले अजरूऐ इजतहाद थे। मालूम हुआ। के! इजतहाद करना अम्बियाक्राम
अलेहिम अस्सलाम की सुन्नत है।

हिकायत नम्बर७&) माँ की मामता

हजरत दाऊद अलेहिस्सलाम के जूमाने में दो औरतें थीं। दोनों की
गोद में दो बेटे थे। वो दोनों कहीं जा रही थीं के रास्ते में एक भेडिया
आया। और एक का बच्चा उठा कर ले गया। वो औरत जिसका बच्चा
भेड़िया उठा कर ले गया था। दूसरी औरत के बच्चे को छीन कर बोली
के ये बच्चा मेरा है। भेड़िया तेरे बच्चे को उठा कर ले गया है। बच्चे की
माँ ने कहा। बहन अल्लाह से डर। ये बच्चा तो मेरा है। भेड़िये ने तेरे बच्चे
को उठाया है। उन दोनों में जब झगड़ा बढ़ गया। तो दोनों हजरत दाऊद
अलेहिस्सलाम की अदालत में हाजिर हुईं। हजरत दाऊद अलेहिस्सलाम
ने घो बच्चा बड़ी औरत को दिला दिया, हजरत सुलेमान अलेहिस्सलाम
को इस बात की खबर हुई। तो आपने फ्रमाया। अब्बा जान! एक फैसला
मेरा भी है और वो ये है के छुरी मंगवाई जाए मैं उस बच्चे के दो दुकड़े
करता हूँ। और आधा बड़ी को और आधा छोटी को दे देता हूँ। ये फैसला
सुनकर बड़ी तो खामोश रही। और छोटी बोली! के हुज॒र! आप बच्चा
बड़ी को ही दे दें लेकिन खुदारा बच्चे के टुकड़े ना कीजिए। हजूरत
सुलेमान अलेहिस्सलाम ने फ्रमाया। बच्चा इसी छोटी का है। जिसके
दिल में शफ्कृत मादरी पैदा हो गई चुनाँचे बो बच्चा छोटी को दे दिर्ी
गया। ( फ्तह-अल-बारी सफा 268 जुजु 2 मिश्कात शरीफ सफा 500 हे

सबक: इजतिहाद के साथ बड़े बड़े.मुश्किल मसायल हो जाते हैं!

9९९06 099 (थ्वा]5८शाशश’

पव्ती नम्बर(») सुलेमान अलेहिस्सलाम और
हिल मलक-उल-मौत का
(ज॒रत सुलेमान नेमान अलेहिस्सलाम के दरबार आली में एक्क ३.५…
॥ हाजिर हुआ और अर्ज करने लगा। हुजर हवा को हक्म दीजिए कह
हु हिन्द में पहुचा दे। हजरत सुलेमान अलेहिस्सलाम ने फरमाया। मुझे
हम! ।यहाँ से क्यों जाना चाहते हो वो कहने लगा। हुजर! अभी अभी मैंने
लक्क-उल-मौत को देखा है जो मुझे घूर घूर कर देख रहा था। वो देखिये वो
पे पूर रहा है। हुज्र! मेरी खैर नहीं मुझे अभी हिन्द पहुँचा दीजिए। हजरत
अलेहिस्सलाम ने हवा को हुक्म दिया। तो हवा फौरन उसको हिन्द
छोड़ आई। थोड़ी देर के बाद मलक-उल-मौत हजरत सुलेमान अलेहिस्सलाम
के पास आया और अर्ज करने लगा। हुजर! सुना आपने उस आदमी का
किस्सा? खुदा का मुझे हुक्म था। के उस शख्य की जान सर जमीन हिन्द में
कृष्ण करो। मैं हैरान था। के उसकी जान हिन्द में कब्ज करने को फरमाया
गया है। और ये यहाँ आपके पास खड़ा है। मैं इसी हैरानी में उसे देख रहा था।
के खुद ही उसने हिन्द जाने की तमन्ना जाहिर कर दी। चुनाँचे इधर आपने
हवा को हुक्म दिया और बो उड़ा कर हिन्द ले गई और उधर मैं उसके पीछे
गएया। और जिस 0 वो सर जमीन हिन्द पर उतरा है। उसका वक्‍त आ
बुका था। उसी वक्त मैंने वहाँ उसकी जान कब्ज कर ली। ( मसनवी शरीफ )

>वक: मौत से भागना मुश्किल है जहाँ पहुँचो ये आ जाएगी।

हिकायत(& सौतेली बेटी

बेबी को दा अलेहिस्सलाम ने जमाना में एक बादशाह था। जिसकी
शैड़की थी। छ | बढ़िया थी। उस बूढ़िया की पहले खाविंद से एक नौजवान
शक ये बादशाह बूढ़िया को ये खौफ हुआ के मैं तो बूढ़िया हो गईं हूँ। ऐसा ना
है इसलिए ये बेहतर किसी गैर औरत से शादी कर ले। और मेरी सल्तनत जाती
पैयाल से एक दिन है के अपनी जवान लड़की से उसका उकद कर दूं। इस
भी बुला कर शादी का इन्तिजाम करके हजरत याहिया अलेहिस्सलाम
पिया के ये का मेरा ये इरादा है। हजरत याहिया अलेहिस्सलाम ने
शीफ ले आए। ह हराम है। जायज नहीं। ये फ्रमा कर आप वहाँ से
भी आपको: ५) इस बद खूयाल दुनियादार बूंढ़िया को अत कप त गससा आया।

गई। रात दिन आपके कत्ल करने का फिक्र करती

9८०९0 0५ (.क्राइट्याल

सच्ची हिकाबात , 446 . हिस्सा अच्चल
थी। एक दिन मौका पाकर बादशाह को शराब पिला कर अपनी बेटी को
कर संवार कर बादशाह के पास खलवत में भेज दिया। जब बादशाह
सौतेली बेटी की तरफ्‌ रागिब हुआ। तो बूढ़िया ने कहा के मैं इस काम
खूशी से मंजर करती हूँ। मगर याहिया इजाजूत नहीं देते। बादशाह ने हजरत
याहिया अलेहिस्स्लाम को बुला कर पूछा। हजुरत याहिया अलेहिस्सलाम भे
फरमाया के ये तुम्हारी हकीकी बेटी की तरह तुम पर हराम है। बादशाह भे
जल्लाद को हुक्म दिया के याहिया को जिबह कर दो। फौरन जल्लादों न
हजरत याहिया अलेहिस्सलाम को शहीद कर दिया। शहीद होने के बाद भी
हजरत याहिया के सर अनवर से आवाजू आईं। के ऐ बादशाह ये औरत तुझे
पर हराम है। ऐ बादशाह ये औरत तुझ पर हराम है। ऐ बादशाह ये औरत तुझ
पर हमेशा के लिए हराम है। ( सीरत-उल-सालेहीन स80 )

सबक: फासिक्‌ व फाजिर हाकिम अपनी नफ्सानी ख्वाहिशात की
तकमील के लिए बड़े बड़े मजालिम ढहाते हैं और फासिका व फाजिरश
औरतों के खूश करने की खातिर अल्लाह के प्यारों के दरपैय आजार हो
जाते हैं। और अल्लाह वाले पैगामे हक्‌ पहुँचाने में जान तक की भी परवाह
नहीं करते। |

हिकायत नम्बर(०) तेरह सो साल(३०० की
उम्र का बादशाह

हजरत दानयाल अलेहिस्सलाम एक दिन जंगल में चले जाते थे। आपको
एक गुंबद नजर आया। आवाज आईं। के ऐ दानयाल! इधर आ। दानयाल
अलेहिस्सलाम उस गुंबद के पास गए। मालूम हुआ के किसी मक्बरे का गुबद
है जंब आप मक्बरे के अन्दर तशरीफ्‌ ले गए तो देखा। बड़ी उम्दा इमारत है
और इमारत के बीच एक आलीशान तख़््त बिछा हुआ है। उस पर एक बड़ी
लाश पड़ी है फिर आवाज आई। के दानयाल तख़्त के ऊपर आओ। आ’
ऊपर तशरीफ्‌ ले गए। तो एक लम्बी चौड़ी। तलवार मुर्दे के पहलू में रखी ्
नजूर आई। उस पर ये इबारत लखी हुई नजर आईं के मैं कौमे आदं से ए*
बादशाह हूँ। खुदा ने तेरा सौ साल की मुझे उप्र अता फरमाई। बारह हज
मैंने शादियाँ कीं। आठ हजार बेटे हुए ला तअदाद खजाने मेरे पास थे
क्‌द्र नअमतें लेकर भी मेरे नस ने खुदा का शुक्र ना किया। बलल्‍्के उल्टा ्क्‌
करना शुरू किया। और खुदाई दअबे करने लगा। खुदा ने मेरी हिंदायत

9९९06 99 (थ्वा5८शाशश’

हर थी हिकी क्रो भेजा। हर चन्द उन्होंने मुझे समझाया। की मैंने ८ ली
कट व कल वो पैगृम्बर मुझे बदतुआ दे कर चले गए। ३
॥/५ और मेरे मुल्क पर कहेत मुसल्लत कर दिया। जंब मेरे मुल्क पे
मुझ्न नर हुआ। तब मैंने दूसरे मुल्कों में हुक्म भेजा। के हर एक
नै ना ह्ुअ में जाए बमौजिब ह एक किस्म का
है पैदी प्ेवा मेरे मुल्क में भेजा । बमोजिब मेरे हुक्म के हर किस्म
(है. और मेवा मेरे मुल्क में आने लगा जिस वक्त वो गुल्लह या मेवा
# 7. को सरहद में दाखिल होता है। फौरन मिट्टी बन जाता और वो सारी
फ ०४ आल जाती। और कोई दाना मुझे नसीब ना होता। इसी तरह सात
गन गए। मेरे किले से सारे अहाली मवाली बीवियाँ बच्चे सब भाग
हु हे नहा किले में रह गया। सिवाए फाकह के मेरी कोई गिजा ना थो
8 दिन मैं निहायत मजबूर होकर फाक्‌ह की तकलीफ में किले के दरवाजे
आया वहाँ मुझे एक शख्स नजर आया। जिसके हाथ में कुछ गललह के
थे जिनको वो खाता चला जाता था। मैंने उस जाने वाले से कहा के एक
बढ़ा बर्तन भरा हुआ मोतियों का मुझ से ले ले और ये अनाज के दाने मुझे
देदे मगर उसने ना सुना। और जल्दी से उन दानों को खा कर मेरे सामने से
घला गया अंजाम ये हुआ। के इस फाक्‌ह की तकलीफ से मैं मर गया। ये
फी सरगुजिश्त है जो शख्स मेरा हाल सुने। वो कभी दुनिया के क्रीब ना
आए। ( सीरत-उल-सालेहीन सफा 79) जे क्‍
सबक: खुदा से हर किस्म की नओमत पाकर फिर उसकी नाशुक्री
का। इन्तेहाई नाआक्बत अनदेशी है। और अल्लाह की नांशुक्री से भूक,
“कह, कहेत और मुख्तलिफ किस्म की बलायें नाजिल होती हैं। और ये
3३३ हुआ के इंसान चाहे कितनी बड़ी उप्र पाए! + के दिन उसने मरना

हिंकायत नम्बर७ बेसिबाती दुनिया
इस्राईल के एक नोजवान आबिद के पास हजरत खिज़ अलेहिस्सलाम
: गाया करते थे। ये बात उस वक्त के बादशाह ने सुनी तो उस नोजवान
दि अलेहिस्सलाय और पूछा के क्‍या बात सच है के तुम्हारे पास हजरत
फेहा। अब आया करते हैं? उसने जवाब दिया के हाँ, बादशाह ने
गे मैं तुझे 3 यो आयें तो उन्हें मेरे पास लेकर आना। अगर ना लाओगे।
भाविद के पार… ईँगा। चुनाँने एक दिन हजरत खिज़ अलेहिस्सलाम उस
सि तशरीफ्‌ लाए। तो आबिट ने उनसे सारा वाकेयां अर्ज॒ कर

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सच्ची हिकायात व8 हिस्सा अव्वल
दिया। आपने फ्रमाया चलो उस बादशाह के पांस चलते हैं। चुनाँचे आप
उस बादशाह के पास तशरीफ्‌ ले गए। बादशाह ने पूछा। क्या आप ही खिज्च
हैं? फरमाया हाँ! बादशाह ने कहा। तो हमें कोई बड़ी अजीब बात सुनाईये।
फरमाया मैंने दुनिया की बड़ी बड़ी अजीब बातें देखी हैं। मगर उनमें से एक
सुनाता हूँ। लो सुनो!

मैं एक दफा एक बहुत बड़े खूबसूरत और आबाद शहर से गुजरा मैंने
उस शहर के एक बाशिन्दे से पूछा। ये शहर कब से बना है? तो उसने कहा। ये
शहर बहुत पुराना शहर है। इसकी इब्तिदा का ना मुझे इल्म है। और ना हमारे
आबाओ अज्दाद को। खुदा जाने कब से ये शहर यूं ही आबाद चला आ रहा
है। फिर मैं पाँस सौ साल के बाद इसी जगह से गुजरा तो वहाँ शहर का नाम
व निशान तक ना था। एक जंगल था और वहाँ एक आदमी लकड़ियाँ चुन
रहा था। मैंने उससे पूछा ये। शहर कब से बर्बाद हो गया है? वो मुझे देखकर
हंसा और कहा। यहाँ शहर था ही कब? ये जगह तो मुद्दतों से जंगल चली आ
रही है। हमारे आबाओ अज्दाद ने भी यहाँ जंगल ही देखा है पाँच सो साल
के बाद वहाँ से गुजरा तो वहाँ एक अजीम-मुश्शान दरया बह रहा था। और
किनारे पर चन्द शिकारी बैठे थे। मैंने उनसे पूछा ये जंगल दरया कब से बन
गया है? तो वो लोग मुझे देख कर कहने लगे आप जैसा आदमी ऐसा सवार
करे? यहाँ तो हमेशा ही से दरया बहता चला आ रहा है मैंने पूछा। क्या इससे
पहले ये जगह जंगल ना थी? वो-कहने लगे हर गिज्‌ नहीं ना हम ने देखी।
और ना ही अपने आबाओ अज्दाद से सुनी। फिर मैं पाँच सौ साल के बाद
वहाँ से गुजुरा। तो वो जगह एक बहुत बड़ां चटयल मैदान देखा। जहाँ एक
आदमी को फिरते देखा। मैंने उससे पूछा। ये जगह खुश्क कब से हो गई?
वो बोला के ये जगह तो हमेशा से यूंही चली आती है मैंने पूछा। यहाँ क़भी
दरया नहीं बहता था? उसने कहा। ऐसा ना कभी देखा ना अपने आबाओ
अज्दाद से सुना। फिर मैं पाँच सौ साल के बाद वहाँ से गुजरा तो वहाँ एक
अजीम-मुश्शान शहर आबाद देखा। जो पहले शहर से भी ज़्यादा खूबसूरत
और आबाद था। मैंने एक बाशिन्दे से पूछा ये शहर कब से है? वो बोला ये
शहर पुराना है। इसकी इब्तिदा का ना हमें इल्म है ना.हमारे आबाओ अज्दाद
को। ( अजायब-उल-मख़लूकात-उल-क्‌जूबीनी सफा ॥29 जिल्द )

सबक; इस दुनिया को सिबात नहीं है। ये हजारों रंग बदती है। कभी
आबादी, कभी बर्बादी, कभी मातम, कभी शादी।

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ऑ#“ आाबर७) यूसुफ अलेहिस्सलाम और आईना
कीट “त बूसुफ अलेहिस्सलाम का एक दोस्त आपसे मुलाकात
कि ; यूसुफ अलेहिस्सलाम ने उससे फरमाया। कई »’ की न
| तो हजरत * माया। भई दोस्त दोस्त
भर आता है। तो उसके लिए कोई तोहफा लाता है। बताओ तुम मेरे लिए
(टन जवाब दिवा। इस वक्त दुनिया े जा मर लिए
५ (सीन व जमील चीजू है ही नहीं। जो मैं आपके लिए लाता। इसलिए मैं
खिदमत में आप ही को लाया हूँ। और यूसुफ के लिए तोहफा भी
पुफ लाया हैं, ये कहकर एक आईना यूसुफ अलेहिस्सलाम के सामने रख
हा और कहा लीजिए इसमें अपने हुस्न व जमाल का नजारा कीजिए।
पपते बढ़कर और क्या तोहफा होगा। ( मसनबी शरीफ)…
सबक्‌: इंसान को चाहिए। के वो अपना दिल मिसल आईना के साफ
बशफ्फाफ्‌ बना ले। और कल जब खुदा पूछे के मेरे लिए क्या लाए हो तो
3३03 कर दे और अर्जु करे के इलाही ये दिल लाया हूँ। जिसमें

हिंकायत नम्बर/७) बिरादराने यूसफ
कर हजरत यूसुफ अलेहिस्सलाम बड़े हसीन व जमील थे। आपकी उम्र
पते बा हो को हुईं आपने एक ख़्वाब देखा। के आसमान से ग्यारह
पा किया है । और उनके साथ सूरज और चाँद भी उन सब ने आपको
| हम अपना ये ख़्वाब अपने वालिद माजिद हजरत याकब
समझ गए। कक क्िया। तो याकब अलेहिस्सलाम इस ख़्वाब को
ग्यारह रा यूसुफू शरफ्‌ नब॒ुव्वत से सरफराज किया जाएगा।
ऐजत यूसफ से है भाई उसके मती होंगे। हजरत याकब अलेहिस्सलाम को
फे दिलों पे रा मा मोहब्बत थी। इस मोहब्बत के बाइस बिरादराने यूसुफ
पके अलेहिस्सलाम अलेहिस्सलाम के खिलाफ जज़्ब्ात थे। हजरत
के अलेहिस्सलाम को उस सारी हालत का इल्म था। इसलिए हजूरत
एन भाईयों से ने यूसुफ अलेहिस्सलाम से फरमाया। बेटा! ये ख़्वाब
भेतििसे हजरत भते बयान करना ताके वो तेरे साथ कोई चाल ना चलें।
भेद भोहच्चत * याकूब अलेहिस्सलाम यूसुफ्‌ अलेहिस्सलाम से और भी

किशह करने लगे

पूछुफ पर ये बात बडी नागवार गजरी। और उन्होंने बाहम

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सच्ची हिकायात 420 हिस्सा अव्वल
मिलकर ये मशवरह किया। के कोई ऐसी तरकीब करें के वालिद साहब को
हमारी तरफ ज़्यादा इलतिफात हो जाए। उस मजलिस मशवरे में शैतान भी
शरीक हुआ। और उसने यूसुफ्‌ अलेहिस्सलाम के कत्ल का मशवरा दिया
और तय ये पाया के यूसुफ को किसी बहाने जंगल में ले जाकर किसी गहरे
कुएँ में फैंक दिया जाए। चुनाँचे बिरादराने यूसुफ इकछ्े होकर हजरत याकब
अलेहिस्सलाम के पास हाजिर हुए। और कहा। अब्बा जान! ये क्या बात है
के आप यूसुफ्‌ अलेहिस्सलाम को हमारे साथ नहीं रहने देते। और हमारा
एतबार नहीं करते हम तो उसके खैरख्वाह हैं कल उसे हमारे साथ तफरीह
के लिए। भेज दीजिए। फिर फिरा कर हम वापस आ जाएँगे। और आप कोई
फिक्र ना कीजिए। वो हमारी हिफाजुत में रहेगा। हजरत याक॒तब अलेहिस्सलाम
ने फ्रमाया। मुझे एतबार नहीं है। अगर तुम उसे ले गए। तो डरता हूँ के
तुम्हारी गफ्लत से कोई भेड़िया उसे खा ले। वो बोले! अब्चा जान! हमारे
होते हुए अगर कोई भेड़िया उसे खाले तो फिर हम किसी मुसर्रफ के नहीं।
आप घवराईये नहीं और उसे जुरूर हमारे साथ भेज दीजिए। चुनाँचे उनके
मजबूर करने पर याकब अलेहिस्सलाम ने यूसुफ अलेहिस्सलाम को उनके
साथ भेज दिया। और हजुरत इब्नाहीम अलेहिस्सलाम की कुमीस मुबारक जो
जन्नत की बनी हुई थी। जिस वक्त के इब्राहीम अलेहिस्सलाम के कपड़े उतार
कर आपको आग में डाला गया था। जिब्राईल अलेहिस्सलाम ने वो कमीस
आपको पहनाई थी। वो कमीस हजरत इन्नाहीम अलेहिस्सलाम से हजरत
इसहाक अलेहिस्सलाम और उनसे उनके फरजन्द याक॒ब अलेहिस्सलाम को
पहुँची थी। वो कमीस हजरत याक्‌ब अलेहिस्सलाम ने तअवीज बना कर
हजरत यूसुफ अलेहिस्सलाम के गले में डाल दी। ह

बिरादंराने यूसुफ ने याकृब अलेहिस्सलाम के सामने तो बड़ी मोहब्बत से
यूसुफ अलेहिस्सलाम को कंधे पर उठा लिया। और फिर जब दूर एक जंगल
में पहुँच गए। तो यूसुफ अलेहिस्सलाम को जुमीन पर दे पटका और दिलों में
जो अदावत थी वो जाहिर हुई। जिसकी तरफ जाते थे। वो मारता था। और
वो ख़्वाब जो उन्होंने किसी तरह सुन पाया था। बयान कर कर के ताने देते
थे और कहते थे के ये तअबीर है तुम्हारे ख़्वाब की। फिर उन्होंने एक बहुत
बड़े गहरे और तारीक कएँ में बड़ी बेदर्दी के साथ आपको फैंक दिया। और
अपने गुमान में यूसुफ अलेहिस्सलाम को मार डाला। ( कुरआन करीम पारा
॥2, रूकू 2) ( खजायन-उल-इफान सफा 3%) हु

सबक: किसी भाई की इज्जुत व वकार और उसका उरूज देखकर

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की हि नहीं है। इस कसम की जद अन्यल

व ्छी बात ड़ 7 जज़्बात का अंजाम अच्छा नहीं

कर थे भी मालूम हुआ। के हजरत याकब अलेहिस्सलाम को

है था के मेरा यूसुफ नबी बनने वाला है। और थे भी इ्ल्म कक

का है इसके साथ अच्छा सलूक नहीं करेंगे। और भाईयो ने जो वापस

कक ब्च पेश करना था। के यूसुफ को भेड़िया खा गया है। उसका भी

मार्क अलेहिस्सलाम को इल्म था। इसी लिए आपने फरमाया था के

रत साथ भेज देने में ये डर है के उसे भेड़िया ना खा जाए। ओर ये
हुआ। के अल्लाह वालों के कपड़े भी मुश्किलात के वक्त जरिया

बात हैं। और तअवीज बनाना और गले में डालना पैगम्बरों की सुन्नत है।

हिकायत नम्बर (0॥) रोशन कमीस

ह॒ज॒रत यूसुफ अलेहिस्सलाम को जब उनके भाईयों ने एक बहुत बड़े
हो कुएँ में फैका। तो जिब्राईले अमीन को हुक्मे इलाही हुआ के ऐ जिब्ाईल!
विदात-उल-मुनतहा से इसी वकृत परवाज करो। और यूसुफ्‌ वक्त परवाज्‌
झो। और वूसुफ्‌ को कुएँ दी तह तक पहुँचने से पहले पहले अपने परों पर
झैविठा लो। और बड़े आराम से उस पत्थर पर जो कूएँ में एक तरफ रखा
॥बिठा दो। चुनाँचे। जिन्नाईले अमीन लम्हा भर में वहाँ पहुँचे। और हजरत
बुपुफु अलेहिस्सलाम को अपने परों पर लेकर आराम के साथ उस पत्थर
ए बिठा दिया। और फिर वो ऋमीस इब्नाहीम बतौर तअबीज जो यअकब
अेहिस्सलाम ने गले में डाल दी थी बो तअबीज खोल कर आपको पहना
दा उससे अंधेरे कुएँ में रोशनी पैदा हो गई। ( रूह-उल-बबान सफां ॥87
रिल्द 2, खजायन-उल-इर्फान सफा 3%)
32 हजुरत इब्नाहीम अलेहिस्सलमा की कृमीस मुबारक से
बे काए मे रोशनी पैदा हो गई और एक पैगृम्बर की कुमीस भी नूर है तो
कई ‘उल-अंबिया सल-लल्लाहो अलेह व सललम क्‍यों नूर अला नूर नहीं

आप के वजूद नूर से क्‍यों ततारीक दुनिया रोशन ना हो। ह

कु हिकायत/० जअल साजी है
न यूसुफ ने हजरत यूसुफ अलेहिस्सलाम को एक अपीक कं में
बे और अपने जौम में उन्हें मार डाला। फिर आपकी कुमीस मुबारक
गे 3 जो कुएँ में फैंकने के वक्त उनके बदन से उन्होंने उतारी
पके बकरी के खून में रंग कर साथ ले लिया। और वापस आए

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सच्ची हिकायात – हिस्सा अव्वल
और जब मकान के करीब पहुँचे। तो रोना शुरू कर दिया। हजुरत याकब
अलेहिस्सलाम ने उनको इस हाल में देखा। तो पूछा। मेरे फर्जदों क्या हुआ।
और ये तो बताओ के यूसुफ कहाँ है? वो रोते हुए बोले। अब्बा जान! हम
आपस में एक दूसरे से दौड़ करते थे। के कोन आगे निकल जाता हैं इस दौड़
में हम सब बहुत दूर निकल गए और यूसुफ्‌ को हम अपने असबाब के पास
छोड़ गए थे। वो अकेला रह गया। और एक भेड़िया मौका पाकर उसे खा गया
है ये उसकी खून आलूद कुमीस है। अब्बा जान! आप हमारा यकोन तो ना.
करेंगे मगर बात दरअसल यही है। हजरत याक्‌ब अलेहिस्सलाम ने फरमाया
बेटो! तुम्हारे दिलों ने ये एक बात घड़ी है अच्छा में तो अब सब्र करूंगा और
अल्लाह ही से इस बात में फैसला चाहूंगा। ( कुरआन करीम पारा 72 रूक्‌
॥2, खजायन-उल-इर्फान सफा 36).

सबकः:ः- जालिम अपना जुल्म छुपाने के लिए बड़ी बड़ी जअल
साजियों से काम लेते हैं। और अपनी मजुलूमियत साबित करने के लिए
रोकर भी दिखा देते हैं। मालूम हुआ। के हर रोने वाला जृरूरी नहीं के सच्चा
हो ये भी मालूम हुआ के कमीस को मसनुई खून से रंग कर उसे असल खून
बताना ये भी जअल साजी ही है। और ये भी मालूम हुआ के हजरत याकब
अलेहिस्सलाम को इस बात का सब इल्म था के मेरे यूसुफ को भेड़िये ने
हर गिज॒ नहीं खाया। बलल्‍्के उनके दिल की ये बनाई हुई बात है और ये भी
मालूम हुआ। के जहाँ बिरादराने यूसुफ ने ऊअल साजी से रोना चिल्लाना
शुरू कर दिया। वहाँ अल्लाह के पैगृम्बर हजरत याक्‌ब अलेहिस्सलाम ने
सब्र का मुजाहेरह फ्रमाया! गोया सब्र का मुजाहेरह, यही हक्‌ है ना के
चीखना चिललाना।

हिकायत नम्बर/७) खुश नसीब काफ्ला

हजरत यूसुफ अलेहिस्सलाम को उनके भाईयों ने जंगल के एक तारीक
कुएँ में फैंक दिया। और ये समझ कर के हम ने यूसुफ को मार डाला है
वापस चले आए। मगर अल्लाह तआला ने हजरत यूसुफ्‌ अलेहिस्सलाम को
कुए में महफूज रखा। तीन दिन तक आप उस कए में रहे ये कुआँ जंगल
मं आबादी से बहुत दूर था। और उसका पानी बेहद खारी था मगर यूसुफ
अलेहिस्सलाम की बर्कत से उसका पानी मीठा हो गया। एक रोज वहाँ से एक
काफ्ला गुजूरा। ये काफ्ला मदयन से मिस्र की तरफ जा रहा था। ये काफले
वाले उस कुएँ के क्रीब उतरे तो उन्होंने उस काएँ पर एक आदमी भेजा ताके

9९९06 99 (थ्वा5८शाशश’

हल पानी खींच कर लाए। उसने क्‌एँ में अपना डोल सर अव्वल

अल कचा ने वो डोल पता न उसमें लटक गए डोल दाह
|

तो यूसुफ अलेहिस्सलाम बाहर तशरीफ

० हुए व जमाल देखा तो निहायत खूशी में आकर अप दे
मद सुनाया के ये देखो कक पे उप तह ..त लड़का निकला है हजरत
हे के भाई गा जंगल में अपनी बकरियाँ चराते थे वो
रखते थे आज जो पं अलेहिस्सलाम को काएँ में ना देखा
तो उन्हें तलाश हुई और काफ्ला में पहुंचे। वहाँ उन्होंने यूसुफ अलेहिस्सलाम
क्षे देखा तो सालारे हट से कहा के ये गृलाम है। हमारे पास से भाग
श्राया है किसी काम का नहीं। नाफ्रमान है अगर खरीदो दो हम उसे सस्ता
बेच देंगे। फिर उसे कहीं इतनी दूर ले जाना के इसकी खबर भी हमारे सुनने
पेन आए। यूसुफु अलेहिस्सलाम उनके खौफ से खामोश रहे और फिर आप
के भाईयों ने आपको काफ्ले वालों के हाथ चन्द खोटे दामों पर बेच दिया
और काफले वाले आपको खरीद कर अपने साथ मिग्र ले गए। ( करआन

करीम पारा 2 रूकू /2, खुजायन-उल-इर्फान स39) कं
सबक: जिसे अल्लाह रखे उसे कौन चखे। जुमाना लाख बुरा चाहे
म्रए वही होता है जो मंजरे खुदा होता है। और ये भी मालूम हुआ के अल्लाह

च्ज्ड

वालों की बर्कत से खारी पानी भी मीठे हो जाते हैं।
हिकायत नम्बर /७) शमा और उसके परवाने

80 यूसुफ ने यूसुफ अलेहिस्सलाम को जंगल में एक तारीक कुएँ
शक । अल्लाह ने आपको बचा लिया। और एक खूश नसीब काफ्ले

५ परफ से गुजरते हुए कुएँ से पानी निकालना चाहा। तो हजरत यूसुफ
अलेहिस्सलाम उस डोल के साथ बाहर आ गए और काफ्ले वालों का सितारा

को हक उठा! ये खूश नसीब काफ्ला हजरत यूसुफ अलेहिस्सलाम
पृषर आया और जब यूसुफ अलेहिस्सलाम के मिस्र तशरीफ लाने की
छत पा हैई तो सदहा आदमी सुबह ही सुबह सालारे काफला माल की
भे कनआर कर बोला। लोगो! तुम यहाँ क्‍यों आए हो? वो बोले आपके साथ
| पुलाम है। हम उसकी जियारत के लिए आए हैं। सालार काफ्ला

रे. जो शख्स उसकी जियारत करना चाहे वो एक अशर्फी मुंह
रजासत के | कर शर्त को मंजर कर लिया। और दरवाजा खोलने को
‘काफला ने दरवाजा खोला और मकान के सहन में

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सच्ची हिकायात 424 हिस्सा अव्वल
हजरत यूसुफ्‌ अलेहिस्सलाम को एक कुर्सी पर बिठाया। हर शख्स एक एक
अशर्फी हजरत यूसुफ अलेहिस्सलाम के पैरों में डाल कर आपकी जियारत
करता था। इसी त्तरह दो दिन में सालारे काफ्ला के पास हजारों अशर्फियाँ
जमा हो गईं। फिर तीसरे दिन उसने मनादी करा दी के जो शख्स कनआनी
गुलाम के खरीदने का इरादा रखता हो। वो आज मिम्र के बाजार में चला
आए ये मनादी सुनकर हर एक शख्स आपकी खरीदारी पर आमादा हो गया।
और सारा मिस्र आपको देखने आया। यहाँ तक के पर्दा वाली औरतें और
इबादत गुजार बुड्ढे और सारे गोशा नशीन भी आपकी जियारत के मुश्ताक
होकर मिस्र के बाजार में आ गए और खुद अजीजे मिस्र भी शाही खजाने साथ
लेकर खरीदार यूसुफ बन कर आ गया। ( सीरत-उल-सालेहीन सफा 7%)
सबकः:ः- अल्लाह के मक्बूल और इनाम याफ्ता हजरात मरजओ
खलायक होते हैं। और ये दुनिया उनके कृदमों पर गिरती है और उनके तुफैल
दूसरे लोग खाते हैं। फिर अगर कोई ऐसा शख्स जो शोमई किसमत से सुबह
ही सुबह नजर आ जाए तो देखने वाले को सारा दिन रोटी ना मिले वो अगर
उन अल्लाह वालों को मिसल बनने लगे तो किस क॒द्र जाहिल व बेखबर है।

हिकायत नम्बर।७) मिस्र की रईसजादी

हजरत यूसुफ अलेहिस्सलाम जब मिस्र के बाजार में बिकने के लिए
लाए गए। और ऐसे जाह व जलाल के वक्‍त जब के यूसुफ्‌ के हुस्न का
बाजार निहायत गर्म था। जब के हजारहा मर्द व औरत बेखुद और बेदम
होकर भर रहे थे। एक औरत जिसका नाम फारिगा था और मिस्र की एक
रईसजादी थी वो मुतअद्दिद खच्चर मालं व दौलत के, सांथ लेकर हजरत
यूसुफ को खरीदने के लिए आईं। जब उसकी नजर यक बयक हजरत यूसुफ्‌
अलेहिस्सलाम पर पड़ी। आँखें उसकी चुंधिया गईं और बेखुद होकर बोली
के ऐ यूसुफ! आप कौन हैं? आपका हुस्न व जमाल देखकर मेरी तो अक्ल
कायम नहीं रही। मैं जितना माल व दौलत आपको खरीदने के लिए लाई हूँ।
अब आपको देखकर मुझे मालूम हुआ। के ये सारी दौलत तो आपके एक
पैर की भी कीमत नहीं। लेकिन ये तो बताईये के आपको बनाया किस ने
है? हजूरत यूसुफ अलेहिस्सलाम ने फ्रमाया। मैं अपने खुदा का बन्दा हूँ।
उसी ने मुझे बनाया है। और उसी ने मेरी सूरत ऐसी हसीन बनाई है के तुम
देख कर हैरान रह गई हो। ये बात सुन कर वो औरत बोली के ऐ यूसुफ! मैं
ईमान लाई उसे जात पर, जिसने त्तेरे जैसे हसीन को पैदा फरमाया। जब आप

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दिकायीतें क्वाय्ति 4७.)
तल मखलूक होकर इस कृद्र हसीन हैं तो खालिक के हिस्सा अव्वल
की होगी? ये कहकर कर उस औरत ने सारा माल हक व जमाल की
। श सकीनों को दे दिया। और सब कुछ छोड़ कर ल्लाह की राह प्रें
02 लग गई ॥ ( सीरत-उल-सालेहीन सफा 248 ) हकीकी की
तलीर्शी :- अल्लाह वालों के जरिये से खुदा मिल जाता है और थे
पू हुआ के अल्लाह 3 का हुस्‍स्त व जमाल देखकर खुदा याद हा
है। फिर जिन लोगों को देख कर गाँधी याद आने लगे। वो अगर उन

जागो की मिस्ल बनने लगें तो किस कद्र जुल्म है।

हिकायत नम्बर/७७ अजीज मित्र
यूसुफ अलेहिस्सलाम जब मिस्र के बाजार में लाए गए। इस जमाने में
म्ध्त का बादशाह निरवान इब्मे वलीद अमलीकी था। और उसने अपनी
अ्रान सल्तनत कृतफीर मिस्री के इक्तिदार में दे रखी थी। तमाम खजायन
स्री के ततत और तसरूफ में थे। उसको अजीज मिस्र कहते थे। और वो
बादशाह का वजीरे आजम था। जब हजूरत यूसुफ अलेहिस्सलाम मिस्र के
वाजूर में बेचने के लिए लाए गए तो हर शख्स के दिल में आपकी तलब
पैदा हुई और खरीदारों ने कीमत बढ़ाना शुरू की ताआँके आपके वजन के
बाबर सोना और इतनी हीं चाँदी इतना ही मुश्क और इतनी ही हरीर कीमत
गुर हुई और आपका वजन चार सौ रतल था। और उप्र शरीफ उस वक्त
गह साल की थी। अजीजू मिस्र ने इस कीमत पर आपको खरीद लिया। और
पे घर ले आया। और दूसरे खरीदार उसके मुकाबले में खामोश हो गए।
! शा सफा 39)
0:- खदा तआला के मुक्‌र॑बीन और मक्बूल बन्दों के बड़े बड़े
खत. वार भी तालिब व मोहताज होते हैं। फिर जिसकी परवाह
! बीवी भी ना करे। वो उन अल्लाह वालों की मिस्‍्ल कैसे हो सकता है।

. हिकायत नम्बर/0) जुलेखा
शनेऐक गा बड़ी हसीन औरत थी। और शाहे मगृरिबर तेमूस की बेटी 28
जाके त जझ्जाब में एक पेकर हुस्नो जमाल शख्स को देखा। और के
पे बा कौन हो? तो. उसने बताया के मैं अजीजे मिस्र है) 2
ऐ जैगा। डाक कग नक्शा जम गया और हर वक्‍्त॑ वो ख़्वाब ग्रेश नज्‌

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सच्ची हिकायात 426 हिस्सा अव्वल
बड़े बड़े बादशाहों के पैग़ाम उकद आए लेकिन उसने इंकार कर दिया।
और अपना इरादा जाहिर कर दिया के मैं तो अजीज मिस्र ही से निकाह
करूंगी। चुनाँचे शाहे तेमूस अपनी बेटी जुलेखा का निकाह अजीजे मित्र से
कर दिया।
जुलेखा ने जब अजाजे मिस्र को देखा। त्तो ये देखकर कर हैरान रह गईं
के ये वो नहीं है जिसे ख़्वाब में देखा था। हत्ता के अजीज मिस्र ने मित्र के
बाजार में बिकते हुए हजरत यूसुफ अलेहिस्सलाम को खरीदा। और उन्हें घर
लाया जूलेखा ने जब हजरत यूसुफ अलेहिस्सलाम को देखा। तो ख़्वाब के
नक्शे मुताबिक्‌ पाया। और वो हजूरत यूसुफ अलेहिस्सलाम की मोहब्बत में
वारिफ्ता हो गई और फिर उसने एक महल बनवाया। जिसके अन्दर सात
कमरे थे और उस महल को खूब मुज॒य्यन किया। और खुद भी आरास्ता
होकर किसी बहाने हजरत यूसुफ अलेहिस्सलाम को उस महल में ले गई
और पहले कमरे में दाखिल होते ही उस कमरे का दरवाजा बन्द कर लिया।
फिर दूसरे कमरे में ले गई और उसका दरवाजा भी बन्द कर दिया। फिर तीसरे
: फिर चौथे में। हत्ता के सब कमरों के दरवाजे बन्द करते हुए सातवें कमरे
| हजरत यूसुफ अलेहिस्सलाम को ले गई। और वहाँ जाकर हजरत यूसुफ्‌
अलेहिस्सलाम से कृबाहत की तलबगार हुई हजरत यूसुफ अलेहिस्सलाम
ये सूरतेहाल देखकर हैरान रह गए उस वक्त उस कमरे की छत फटी और
यूसुफ अलेहिस्सलाम ने देखा। के हजरत याकब अलेहिस्सलाम अपनी उंगली
मुंबारक दांतों में दबाए। इर्शाद फरमा रहे हैं। के बेटा! खबरदार! कोई बुरा
खयाल तक ना आने पाए। |
हजूरत यूसुफ अलेहिस्सलाम ने जलेखा से फरमाया। अल्लाह से डर और
इस महल सरवर को महल हजन ना बना और मेरे दरपए ना हो। जलेखा ने
ना माना और वो बेहद दरपए आजार हो गई। हजरत यूसुफ अलेहिस्सलाम
ने जब ये सूरते हाल देखी। तो आप वहाँ से भागे। जलेखा भी पीछे भागी।
हजरत यूसुफ अलेहिस्सलाम ने भागते हुए जिस कमरे का भी रूख किया
उस कमरे के दरवाजे का कफ्ल खुद ब खुद खुलता गया।
.._ जलेखा ने पीछा करते हुए आपका कुर्ता मुबारक पीछे से पकड़
कर खौंचा के आप निकलने ना पाएँ मगर आप गालिब आए और बाहर
निकल आए। इस कशमकश के वक्‍त बाहर के दरवाजे पर अजीज मित्र
खड़ा था। उसने दोनों को दौड़ते देख लिया तो जलेखा ने अपनी बुराअर्त
जाहिर करने और यूसुफ अलेहिस्सलाम को खायफ करने के लिए हीला

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की श ॥०७/ .. हिस्सा
| हि अपने खाबिंद से कहने कह के जो तेरी बीवी से बुराई के
6 आ आए। उसकी क्‍या सजा है। मैं सो रही थी के उसने आकर
हा यड़ा हटा क्र मुझे फ्सलाया है ॥ उसे कैद कर दो । या कोई और
कलीफ देह सजा दो। हजरत यूसुफ अलेहिस्सलाम ने फ्रमाया। थे गलत
ही है। वाकेया इसके बरअवस है फिसलाना तो ये खुद चाहती थी।
और मेरा नाम लगाती है। अजीज मिस्र ने कहा। इस बात का सबूत? उस
करे में जुलेखा के मामूं का एक शीरख़््वार बच्चा जिसकी तीन भाह
की उम्र थी। पंघोड़े में लेटा हुआ था। यूसुफ अलेहिस्सलाम ने फरमाया
क्ष बच्चे से पूछ लो। अजीज मिस्र ने कहा। इस तीन महीने के बच्चे से
झापूछं। और ये क्या बताएगा। यूसुफ अलेहिस्सलाम ने फ्रमाया। खुदा
(आला उसे बोलने की ताक॒त देने और मेरी सच्चाई जाहिर करने पर
क्षादिर है। अजीज मिस्र ने बच्चे से दरयाफृत्त किया। तो वो बच्चा बोला
और कहने के यूसुफ अलेहिस्सलाम का कुर्ता देख लो। अगर उनका
कुर्ता आगे से फटा है तो जुलेखा सच्ची और अगर पीछे से फटा है तो
यूपुफ अलेहिस्सलाम सच्चे। चुनाँचे कुर्ता देखा गया। तो वो पीछे से
फ़ाा था और ये हाल साफ ये बता रहा था। के यूसुफ अलेहिस्सलाम
ुलेखा से भागे थे और जूलेखा पीछे पड़ी थी। इसलिए कर्ता से पीछे
मै फटा। अजीज मिस्र ने ये हकीकत देखकर जान लिया। के यूसुफ
कं 425 सच्चे हैं। फिर उसने यूसुफ अलेहिस्सलाम से मअज्रत
| ( कुरआन करीम पारा 42 रूकू 3, रूहं-उल-बयान सफा
9, सफा 58 ) ह
सबक; अम्बियाक्राम अलेहिमअस्सलाम मासूम होते हैं और हर किस्म
धेटे बड़े गुनाह से पाक और ये भी मालूम हुआ। के इंसान जब अल्लाह से
द्द्हूहो कह तरफ रूजूअ कर ले तो रास्ते की सारी रूकावटें खुद ब
बे थे हैं। और ये भी मालूम हुआ के हजरत याकब अलेहिस्सलाम
थक इस 50 अलेहिस्सलाम के हालात से बाख॒बर थे। और आपको इल्म
केश है। और ये अलेहिस्सलाम कहाँ हैं और उस वक्त उनसे ये मामला
मे हो लेकिन भी मालूम हुआ। के अल्लाह वाले बजाहिर चाहे कोसो दूर
जप हुआ। के के वक्त इम्दाद के लिए पहुँच जाते हैं। और ये भी
होने बच्चे को अल्लाह तआलां अपने मुकुर॑बीन की बराअत के (8 कक तीन
पर शक भी कृव्वते गोयाई दे देता है। और अपने पाक बन्दों के दामन
पे शुबह की मैल का धब्बा तक नहीं आने देता।

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सच्ची हिकायात 4 हिस्सा अव्वल

28
हिकायत नम्बर/७) तासीर हुस्न

हजरत यूसुफ्‌ अलेहिस्सलाम की मोहब्बत में कुछ ऐसी दारिफ्ता
दे के उसे अपना होश ना रहा और उसकी इस मोहब्बत के चर्च सारे प्र
में होने लगे और शरीफ घराने की औरतें कहने लगीं के जुलेखा को तो
अपने नंग व नामूस और पर्दे व उफ़्फत का लिहाज भी ना रहा और वो एक
नोजवान का दिल लुभाने लगी है। जुलेखा ने जब अपने मुतअल्लिक ये बातें
सुनीं तो उसने एक दअवत का इन्तेजाम किया जिस में मिस्र के शरीफ घरानों
की चालीस औरतें बुलाई। इन औरतों में वो औरतें भी थीं जो जुलेखा के
मुतअल्लिक्‌ बातें करती थीं और उसे मलामत करती थीं। जुलेखा ने उनके
लिए मसनदें तैयार कीं और उन्हें बड़ी इज्जत व एहत्राम के साथ बिठाया और
सामने दसतरख्वान बिछाए जिन पर किस्म किस्म के खाने और मेवा चुने
और फिर हर औरत को एक एक छूरी भी दी ताके वो उससे गोएत काटें और
मेवे चीरें और फिर हजरत यूसुफ अलेहिस्सलाम को उम्दा लिबास पहना कर
उनसे कहा के आप जूरा इन औरतों के सामने आकर उनको अपना हुसस्‍्नो
जमाल दिखा दें। हजरत यूसुफ अलेहिस्सलाम ने पहले तो इंकार फ्रमाया।
लेकिन फिर जलेखा की मुखालफत्त के अंदेशे से आप उन औरतों के सामने
तशरीफ ले आए। उन औरतों ने जब यूसुफ अलेहिस्सलाम की तरफ नजर की।
और उस जमाल आलिम अफरोजू के साथ नबुव्वत व रिसालत के अनवार
और तवाजे व इनकिसार के आसार और शाहाना हैबत व इक्तिदार देखा। तो
तअज्जुब में आ गई। और आपकी अजुमत व हैबत दिलों में बैठ गई और हुस्नो
जमाल ने ऐसा वारिफ्ता किया के उन औरतों को खुद फरामोशी हो गई और
बजाए लीमू के उन्होंने उन छुरियों से अपने हाथ काट लिए और तासीर हुल
के बाइस उन्हें तकलीफ का कुछ अहसास ना हुआ। और फिर आलमे हैरत
में बोल उठीं के हाशा लिल्लाह/ ये बशर तो नहीं है ये तो कोई फरिश्ता है।
जुलेखा ने कहा। देख लिया उसके हुस्नो जमाल को? यही- है वो हुस्‍्तो
जमाल का पेकर जिसका तुम मुझे ताना देती थीं। ( करआन करीम पारा 2
रूकू 44, खुजायन-उल-इर्फॉन 339) द *
सबक: – हजरत यूसुफ अलेहिस्सलाम के हुस्नो जमाल की तासीर का ये
आलम था के देखने वाली औरतें पुकार उठीं के ये तो कोई फरिशता है बशर
हर गिज नहीं फिर जो शख्स हजरत यूसुफ अलेहिस्सलाम के भी सरदार
हैजूर अहमद मुख्तार सल-लल्लाहो तआला अलेह व सललम के हुस्‍्नो जमाल |

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| हिंकायाति 4“ ‘
रा भी खयाल ना करे और यूं कहे के वो हमारी कल अव्बल

४ जाहिल औरतों एक बए्र हैं
शा किस कंद्र जाहिल, बे अदब और औरतों से भी गया गुजरा है।

हिकायत नम्बर॥७» साको ब बावर्ची
ने हजरत यूसुफ अलेहिस्सलाम को तंग करने के लिए। और
खत भतवाने के लिए किसी बहाने उनको जेल भेज दिया। को न
दिन हजुरत यूसुफ अलेहिस्सलाम जेल भेजे गए। दो नोजवान और
भ्षे जेल में दाखिल किए गए। ये दोनों बादशाहे मिस्र अमलीकी के वास
लाजिम थे एक उसका साकी था। और एक बावर्ची। उन दोनों पर बादशाह
की मत अवस्थित मेले ले अप
हजूरत यूसुफ अलेहस्सलाम ने जेल में अपने इल्मो फज्ल का
शुरू फ्रमा दिया। और तोहीद की तबलीग शुरू फरमा दी और 03 कक
वाहिर फ्रमाया के मैं ख़्वाबों की तअबीर भी खूब समझता हूँ। चुनाँचे वो
दे नोजवान जो आपके साथ ही जेल में दाखिल किए गए थे। कहने लगे हम
ने आज के कस 0: तअबीर बताईये। |
साकी ने कहा। मैंने देखा है। में एक बाग में हँ और अंगूर
हथ में हैं और मैं उन खोशों से शराब निचोड़ता हे का
बावर्ची ने कहा। और मैंने देखा है। के मेरे सर पर कुछ रोटियाँ हैं जिनमें
पे परिन्दे खा रहे हैं। फरमाईये इनकी क्‍या तअबीर है? द
हजरत यूसुफ अलेहिस्सलाम ने फ्रमाया। ऐ साकी! तू तो अपने ओहदे
अं किया जाएगा। और हस्बे साबिक भपने बादशाह को शराब
हंअबीर और ऐ बावर्ची ! तू सूली दिया जाएगा! और परिन्‍्दे तेरा सर खाएंगे।
हे बज वो दोनों कहने लगे। ख़्वाब ता हम ने कुछ भी नहीं देखा
अंक रे कर रहे थे। हजरत यूसुफ अलेहिस्सलाम ने फ्रमाया अब
दिया । ख़्वाब तुम ने देखा हो या ना देखा हो मगर मैंने जो कुछ कह
चुनाँचे होकर रहेगा। और अब मेरा ये कहना किसी सूरत टल नहीं सकता।
न 3५ हुआ। जो हजरत यूसुफ अलेहिस्सलाम ने फ्रमाया था।
गया और बाबरी साबित ना हो सका। और वो अपने ओहदे पर बहाल हो
( करआन मुज़िम साबित हुआ। और वो सूली दे दिया गया।
जिद शर ने करीम पारा १3, रूकू 5, रूह-उल-बयान सफर ॥7 सफा
जप: पैगृम्बर की ये शान होती है। के वो जो बात फ्रमा दे वो

9९९06 99 (थ्वा]5८शाशश’

सच्ची हिकायात ह 430 हिस्सा
होकर रहती है। फिर जो ये बात कहे के रसूल के चाहने से कुछ नहीं हो

जाहिल
और रसूल नफओ जूरर का मालिक नहीं। किस कद्र | और गुमराह है ल्‍
हिकायत नम्बर॥४) बादशाह का ख्वाब ‘

मिस्र के बादशाह निरवान बिन बलीद अमलीको ने एक रात ख़्वाब रे
के सात फरबा गाँयें हैं। जिन्हें सात दुबली गाँयें खा रही हैं। और सात है
बालें हैं। जिन्हें सात सूखी बालें खा रही हैं। बादशाह को इस ख़्वाब से बह
परेशानी हुईं और बड़े बड़े साहिरों और काहिनों से इस ख्वाब की तअबी,
पूछी। मगर कोई भी उसकी तअबीर बयान ना कर सका।

बादशाह का साक्की जो जेल में रह चुका था और यूसुफ अलेहिस्सलाए
के फरमाने के मुताबिकु अपने ओहदे पर बहाल हो चुका था। बादशाह
कहने लगा के जेल में एक आलिम है। जो ख्वाब को तअबीर बताने में यक्ता
है। बादशाह ने कहा। तो तुम उसके पास जाकर मेरा ख़्वाब बयान करो
और उससे तअबीर पूछकर आओ । चुनाँचे वो साकी जेल में हजरत यूमुफ
अलेहिस्सलाम के पास आया। हजरत यूसुफ्‌ अलेहिस्सलाम से अर्ज के
लगा। ऐ यूसुफ्‌ हमारे बादशाह ने ये ख़्वाब देखा है। इसकी तअबीर क्या है!
आपने फरमाया। इसकी तअबीर ये है। के तुम सात बरस लगातार खेती करेगे
और गृल्लह खूब होगा। सात मोटी गाँयें और सात हरी बालों का उसी ताए
इशारा है। और फिर उसके बाद सात बरस बड़े सख्त और कहेत के आएँ।
उन सालों में तुम पहले सात सालों का जमा कर्दा गुल्लह खा जाओगे। मात
दुबली गाँयें और खुशक बालों का इशारा इसी तरफ है। फिर उसके बाद एक
बरस ऐसा आएगा। जिसमें खूशहाली का दौर होगा और जमीन सर सब
होगी। और दरख्त खूब फलेंगे। ॥॒

साकी ने ये तअबीर जब बादशाह को सुनाई। तो बादशाह इस तअ्वी ,
को सुनकर मुतमईन हो गया। और जान गया। के तअबीर यही हो सकती
और उसको शौक ्‌ पैदा हुआ के ये तअबीर यूसुफ अलेहिस्सलाम की आर
जुबानी सुने। इसलिए उसने हजरत यूसुफ्‌ अलेहिस्सलाम को बुला भेजा
चुनाँचे हजरत यूसुफ अलेहिस्सलाम के पास बादशाह का कासिद पहुंच!
और उसने कहा। के बादशाह आपको बुलाता है तो आपने उस कार्सिद रा
फ्रमाया। पहले तुम बादशाह को जाकर मेरा पैयाम दो के मेरे मामले
तहक़ीक्‌ करे। और देख ले के मुझे बिला वजह जेल में भेज दिया गया ।
कासिद ये पैयाम लेकर बादशाह के पास पहुँचा तो बादशाह ने सारा * किस

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3 द
नी हि औरतों को जमा किया। और जुलेखा को का
रवि यूसुफ हलक, के 22433 55% । तो सब ने मुत्तफिका
# से 5हा के हाशा लिल्लह! हम ः में कोई बुराई नहीं पाईं। और
तौर पर कि कभी ये कहना पड़ा के असली बात खुल गई और वाकई मेरा ही
बेड [और वो बिलकुल सच्चा है। उसके बाद बादशाह के हुक्म से बड़ी
की शहत्राम के साथ हजरत यूसुफ अलेहिस्सलाम जेल से रिहा कर
ता ।( करआन करीम पारा 2 रूकू । खजायन-उल-इर्फान सफा ३7)
दिए सबके: – अम्बियाक्राम के उलूम हक हैं और अंजाम कार हक व
तर्क ही की फतह होती है। लक
। हिकायत नम्बर (44॥) ताजपोशी

हजरत यूसुफ अलेहिस्सलाम जब जेल से बड़ी इज्जत व एहत्राम के
पथ रिहा किए गए। तो बादशाह मिस्र निरवान इब्ने बलीद ने आपको बड़े
अदब व एहत्राम के साथ अपने साथ तख्त पर बिठाया। और फिर अपना
ज्लाब जो उसने देखा था। हजरत यूसुफ अलेहिस्सलाम से खुद बयान किया।
और उसकी तअबीर हजरत यूसुफ अलेहिस्सलाम की जबाने हक्‌ तर्जुमान
पे उसने सुनी। हजरत यूसुफ अलेहिस्सलाम ने पहले तो बादशाह का देखा
हुआ ख़्वाब मुफस्सिल बयान फ्रमाया। और फिर तफसील से उसकी त्तअबीर
बयान फरमाई। बादशाह ये देखकर के बावजूद ये के आपसे ये ख़्वाब पहले
प्रजमलन बयान किया गया था। मगर आपने तफसील से वो सारा ख़्वाब सुना
दिया, बड़ा हैरान हुआ और कहा के ख्वाब तो अजीब थी ही मगर उससे
भी अजीब तर आपका बयान कर देना है, फिर तअबीर सुनकर बादशाह
न हजरत यूसुफ अलेहिस्सलाम से मशवरह तलब किया तो आपने फ्रमाया
के अब लाजिम है के गललह जमा किया जाए और उन फ्राखी के सालों
में कसरत से काश्त की जाए। और गललह मअ बालों के महफूज रखा जाए
और रिआया की पैदावार में से खम्स लिया जाए उससे जो जमा होगा वो
प्ैप्र व हवाली मिग्र के बाशिन्दों के लिए काफी होगा और फिर खल्के खुदा
है तरफ से तेरे पास गुल्लह खरीदने आएगी और तेरे यहाँ अपने खजायन व
मा पप ग मी दुलसे पहले केसिए कर जद
भी ७. कोन करे, हजरत यूसुफ के कह रत
भच्छा फेलमुरू के तमाम खजाने मेरे सपुर्द कर दो, सह परम पर धार

आपसे ज़्यादा मुसतहिक्‌ु और कौन हो सकता है और :

9९३९6 99 (थ्वा]58८शाशश’

हिकायात हिस्सा अव्वल
सच्ची हिकायात 432
लिया और यूसुफ्‌ अलेहिस्सलाम के जेरे तसर्रखूफ मुल्क के सारे खजाने कर
दिए और फिर एक साल के बाद बादशाह ने हजरत यूसुफ अलेहिस्सलाम
को बुला कर आपकी ताजपोशी की और तलवार व मोहर आपके सामने पेश
की और आपको तिलाईं तख़्त पर बिठा कर अपना मुल्क आपके सपुर्द कर
दिया और अजीजु मिस्र को मअजल कर दिया और खुद भी मिसल रिआया
के हजरत यूसुफ्‌ अलेहिस्सलाम के ताबओ हो गया। ( कुरआन करीम पारा
।3, रूकू , खजायन-उंल-इर्फान स, 343 ) ।
सबक्‌:- अल्लाह तआला बड़ा बेनियाज, कादिर व तबाना और
हकीम है और उसने अपने पैगुम्बरों को बड़े बड़े तसर्रूफ व इख़्तियार और
खजायन अर्ज पर तसलल्‍लुत अता फ्रमाया है ओर ये भी मालूम हुआ के
अकामत अदल और हिफाजृत दीन की खातिर किसी जालिम बादशाह से
ओहदा तलब करना और कबूल कर लेना जायज है।

हिकायत नम्बर (०9) यूसुफ व जलेखा

हजरत यूसुफ अलेहिस्सलाम मिस्र के बादशाह बन गए और सारा मिय्र
आपके जेरे इख़्तिताम आ गया, जुलेखा के खावबिंद अजीज का इन्तिकाल हो
गया और जलेखा भायूस व परेशान खातिर होकर अपने इक्तिदार के दौर
के कुछ जर व जवाहरात साथ लकर एक जंगल में चली गई और जंगल में
ही एक कुटिया बना ली जिसमें रहने लगी अब उसका वो हुस्नो जमाल और
आलम शबाब भी बाकी ना रहा , यूसुफ अलेहिस्सलाम के ऊरूज व इक्तिदार
के तो डंके बजने लगे और जलेखा गोशाऐ गुमनामी में जा पड़ी हजरत यूसुफ्‌
अलेहिस्सलाम एक दिन अपने लश्कर समेत बड़ी शान व शौकत और शहाना
जाह व जलाल के साथ उस जंगल से गुजरे जुलेखा को पता चला तो अपनी
क्ुटिया से निकली और हजरत यूसुफ अलेहिस्सलाम को शहाना अंदाज से
गुजुरते हुए देखकर बेसाख्ता बोली:

सुबहाना मन जआलल मुलूका अबीदन बिलमअसियति वें
जआलल अबौीदा मुलूका बित्ताआति

“पाक है वो जात जिसने नाफरमानी के बाइस बादशाहों को गुलाम
बना दिया और फ्रमाँबर्दारी के सदके में गुलामों को बादशाह बना दिया।”

जुलेखा की ये आवाज यूसुफ अलेहिस्सलाम ने सुनी तो रो पड़े और
अपने एक गुलाम से फरमाया, उस बूढ़िया की हाजत पूरी करो, वो गूलाम
जूलेखा के पास पहुँचा और कहा के ऐ बूढ़िया! तुम्हारी क्या हाजत है? वो

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हिंकीयीति 433
(# हाजत यूसुफ ही पूरी कर सकेंगे। हिस्सा अव्बल
सलीम जब महल में पहुँचे और» रा ले आया, इज
(8 और अल्लाह की इबादत के लिए अपने मुसलले पर न दी लिबास
शपक्री फिर वही जुमला याद आया सुबहाना मन हे तो उस वक्‍त
बिलमअसियति व जआलल अबीदा लक आर मुलूका
को, फिर गुलाम को बुला कर पूछा के उस बूढ़िया की हाजत आप रोने
, उसने अर्ज किया, हुजर! वो बूढ़िया यहीं आ पं है और कोया
के मेरी हाजत तो यूसुफ खुद ही पूरी करेंगे, फ्रमाया अच्छा! बप बह
आओ, चुनाँचे जलेखा खिदमत में हाजिर को गई और उससे यहाँ ले
है सलाम अर्ज किया, हजरत यूसुफ अलेहिस्सलाम ने सर 598 होते
लाम का जगा आप कि उरमावा। ऐ औरत! तुष्हाती जो हाजत हो
ब्रयान कर, हुज॒र! क्या आप
हश॑बोबोली… उसे भूल गए? फ्रमाया, कौन हो
परुक्ता आनम्र के चू रूऐ तू देदम
वराज़ जुमलह आलगय करयजीदम!
फाशानदम गंज व गोहर दरबहायत
दिल व जाँ वक़्फ करदम दरहवायत
जवानी दरगमत बर्बाद दारम
दर्री परी को मी बीनी फतादप
3 शाहिद मुल्क अन्दर आगेश
पं यकनार तू करदी फ्रामोश
हे, रयूपुफ मै जुलेखा हूँ। हजरत यूसुफ अलेहिस्सल्गप ये सुन कर पुकार

‘ इलाहा इल्‍्ललाहू अल्लज़ी यूहयी वहुवा हय्युला
४ हुवा हच्वुला यमतु

कप और घी जुलेखा से पूछा के तुम्हारा वो आलमे शबाब और हुस्नो
को जेल से विकाम गया? जुलेखा ने जवाब दिया, वो ले गया जिसने आप
भलेहिस्सलाम ने ला और मिस्र की हकूमत आपको अता फ्रमाई, यूसुफ
क्या ३ फेरमाया अच्छा तो बताओ! अब तुम्हारी क्या हाजत है? वो
शक बा पूरी फ्रमा देंगे? पहले वादा कीजिए, फ्रमाया हाँ! जुरूर

थे के का तो सुनिए! तीन हाजतें हैं: ५८
मैं आप के गृम फिराक में रो रो कर अंधी हो चुकी हूं खुदा

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सच्ची हिकायात 434 हिस्सा अव्वल
तआला से दुओ कीजिए के वो मेरी नजर मुझे वापस दे दे।
दूसरी ये क्के मेरा हुस्त व शबाब मुझे वापस मिल जाए।
हजूरत यूसुफ अलेहिस्सलाम ने दुआ फ्रमाई और मिस्ल साबिक वो
जवान और हसीन भी हो गई। |
यूसुफ्‌ अलेहिस्सलाम ने फ्रमाया, बता अब तीसरी हाजत क्या है?
वो बोली ऐ यूसुफ्‌! तीसरी हाजत ये है के आप मुझ से निकाह फ्रमा लें।
हजरत यूसुफ अलेहिस्सलाम खामोश हो गए और सर अनवर झुका
लिया थोड़ी देर के बाद जिब्राईल हाजिर हुए और कहा ऐ यूसुफ! आपका
रब आपको सलाम फरमाता है और फरमाता है जलेखा जो हाजत पेश कर
रही है उसको पूरा करने में बुख़ल से काम ना लो उसकी दो हाजतें तेरी दुआ
से-हम ने पूरी कर दीं, ये तीसरी हाजत उसकी तुम पूरी कर दो…
को मा अजज जलेखा राच्‌ वीदेयम:!
बतू अर्ज़ वनियाजिश राशनीवेयम//
वलिश अज़तीग नोमीदी नहसतीम
बत्‌ू बालाऐं आअशिश उकद बसतीम
“ह यूसुफ! हमने तुम्हारे साथ उसका निकाह अंर्श पर कर दिया है पस
आप उससे निकाह कर लीजिए के दुनिया व आखिरत में आपकी बीबी है।”
चुनाँचे हजरत यूसुफ अलेहिस्सलाम ने बहुक्मे इलाही हजरत जुलेखा
से निकाह कर लिया और आसमानों से फरिश्तों ने आकर मुबारकबादें
दीं और खुदा ने भी मुबारक बादी फ्रमाई, फिर जलेखा ने हजरत यूसुफ्‌
अलेहिस्सलाम से ये बात भी जाहिर कर दी के अजीज मिस्र औरत के
नाकाबिल था और अल्लाह ने मुझे आपके महफूजू व मामून रखा है।
चुनाँचे हजरत जुलेखा के हाँ फिर हजरत यूसुफ अलेहिस्सलाम के दो
साहबजादे पैदा हुए एक का नाम अफ्राईम और दूसरे का मीशा था और दोनों
ही हुस्त व जमाल के पेकर थे। ( रूह-ठल-बयान , सफा ॥02 ता ।8 जिल्द 2)
सबक: जुलेखा को अल्लाह तआला ने हजरत यूसुफ अलेहिस्सलाम
को खातिर अजीज मिस्र से जो उसका जायज शौहर था महफूजू रखा,
फिर सब्यद-उल-अंबिया सल-लल्लाहो अलेह व सल्‍लम की महबूबा
बीबी उम्म-उल-मोमिनीन हजरत आयशा सिद्दीका रजीअल्लाही अनहा पर
आज जो लोग मआज अल्लाह किसी किस्म का इल्जाम लगाएँ किस कूट्र
गुमराह, जाहिल और बे दीन हैं और ये भी मालूम हुआ के हजरत यूसुफ
अलेहिस्सलाम से हजरत जुलेखा का निकाह अल्लाह के हक्म से आर्श पर

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फ् 38 | ०6 ६०
| |

हज पर भी हुआ और आपके बतन से हजूरत यूसुफ
(हे कद हुए |
हिकायत नम्बर (॥॥3) कहतसाली
अलेहिस्सलाम मित्र के बादशाह
हुज॒रत यूसुफ द्श
मं अदल व इंसाफ और अमनो अमान कायम फ्रणा दिये आपने
(0 कहतसाली के पेशेनजर गल्ले के बड़े बड़े जूखीरे र आने

दहत का दौर आया तो सारे मुल्क में ये बलाऐ अजीम आम हो गई
बिलादो प्र र्‌

उस मुसीबत और

की हित आने लगे । 02008 गए हक कब 83 से लोग
ह् ऊँठ से ज़्यादा गल्लह नहीं देते थे ताके सबकी इमदाद हो कस हक
॥ वे कृहत की मुसीबत तमाम शहरों में नाजिल हुईं उसी तरह कनआन के
क्व्त की लपेट में आ गया हजरत याकब अलेहिस्सलाम ने बिनयामिन ह

प्रवा दस्सों बेटों को गुल्लह खरीदने मिस्र भेजा , जब ये दसों भाई मिस्र हजरत
मुफ़ अलेहिस्सलाम को खिदमत में पहुँचे तो हजरत यूसुफ अलेहिस्सलाम सलाम
*3हें पहचान लिया मगर वो हजरत यूसुफ अलेहिस्सलाम को ना पहचान
पके इसलिए के उनका खयाल था के यूसुफ अलेहिस्सलाम इतने तबील
् में कहीं इन्तिकाल फ्रमा चुके होंगे और इसलिए भी के हजरत यूसुफ्‌
अशहिस्सलाम उस वक़्त शाही लिबास में मलबूस तशरीफ फरमा थे. उन
सं भाईयों ने हजरत यूसुफ अलेहिस्सलाम इब्नानी जुबान में गुफ्तगू की और
गा ।48/025 ने भी इब्रानी में जवाब दिया, आपने फरमाया तुम कौन
33540» का ” हम शाम के रहने वाले हैं और हम भी कहत के बाइस
बा अर गूल्लह खरीदने आए हैं, आपने फ्रमाया, तुम जासूस
व ह कक हम अल्लाह की कृसम खाते हैं के हम जासूस नहीं हैं हम
कप * एक बाप की औलाद हैं हमारे बाप बहुत मोअम्मर बुजुर्ग
है 3० नामी हजरत याकब ( अलेहिस्सलाम ) है। वो अल्लाह के
एप क. रमाया, तुम कितने भाई हो, वो बोले थे तो हम बारह मगर
साथ जंगल में गया था वहाँ हलाक हो गया और वालिंद
क करी सबसे प्यारा था, फ्रमाया, अब तुम कितने भाई हो? वो बोले
फेजे कल यारहवाँ कहाँ है? कहा वो वालिद साहब के पास है क्‍यों
सेलिए अब हो गया था वो माँ की तरफ से भी उसका हकीकी भाई है
वालिद साहब को उसी से कुछ तसलल्‍ली हो जाती है। हजरत

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हिस्सा अव्वल
अलेहिस्सला,

सच्ची हिकायात 436 हिस्सा अच्बल
यूसुफ्‌ अलेहिस्सलाम ने उन भाईयों की बड़ी इज़्ज़त की और उनकी मेजबानी
फरमाई और फिर हर भाई का ऊँट गुल्लेह से भर दिया और जादे सफर शी
दिया और रूख्सत फ्रमाते हुए फ्रमाया के अब जो आओ तो अपने ग्यारहदे
भाई को भी साथ लाना मैं उसके हिस्से का एक ऊंट भर गूल्लह और ज्यादा
दूँगा देख लो मैं कितना महमान नवाज हू. और अगर तुम उसे साथ ना लाए
तो फिर मेरे पास ना आना, तुम्हें मुझ से कुछ ना मिलेगा, फिर आपने गलामों
से फरमाया के उस दसों भाईयों ने गुल्लेह की जो कौमत दी है ये सारी पूंजी
भी उनके गुल्लेह में रख दो। बे

चुनाँचे वो दसों वापस कुनआन पहुँचे और हजरत याक्‌ब अलेहिस्सलाम
से बादशाह मिस्र की और उसके हुस्न सलूक की बड़ी तारीफ की और फिर
जब गल्‍लेह को खोला तो अपनी अदा कर्दा कीमत भी उसमें निकल आई, ये
देख कर वो बड़े मुतास्सिर हुए और कहा अब्बा जान! ये बादशाह तो बड़ा ही
दरया दिल और सखी है, देखिये गुल्लह भी दे दिया है और कीमत भी लौटा
दी, अब्बा जान! उसने हमें ये भी कहा है के तुम अगर अपने भाई बिनयामरिन
को भी साथ ले आओ तो मैं उसके हिस्से का गूल्लह भी दे दूंगा तो अब्बा
जान! आप बिनयामिन को भी हमारे साथ भेज दीजिए ताके उसके हिस्से
का भी गललह मिल जाए। याक्॒‌ब अलेहिस्सलाम ने फ्रमाया, इससे पहले में
बिनयामिन के भाई यूसुफ को तुम्हारे साथ भेज कर देख चुका हूँ अब इसे
भी तुम्हारे साथ भेज कर तुम्हारा फिर एतबार कैसे कर लूं? वो बोले अब्बा
जान! हम उसकी जरूर हिफाजत करेंगे और इस बात पर हम अल्लाह का
जिम्मह देते हैं और इसे जरूर हमारे साथ भेजिए, याकूब अलेहिस्सलाम ने
फरमाया अच्छा खुदा निगहबान है जाओ बिनयामिन को ले जाओ, चुनाँचे
ये लोग बिनयामिन को लेकर फिर मिस्र आए और यूसुफ अलेहिस्सलाम के
पास हाजिर हुए और कहा, जनाब हम अपने ग्यारहवें भाई को भी साथ ले
आए हैं , हजरत यूसुफ अलेहिस्सलाम बहुत खुश हुए और उनकी बड़ी खातिर
मदारात की और फिर एक दअवत का इन्तेजाम फ्रमा कर एक वसीअ
दसत्तरख़्वान बिछाया और दो, दो साहबो को बिठाया, वो दसों भाई तो दो
दो होकर बैठ गए मगर बिनयामिन अकेले रह गए वो रो पड़े और कहने ले
अगर आज मेरे भाई यूसुफ जिन्दा होते तो मेरे साथ वो बैठते, हजूरत यूसुर्फ
अलेहिस्सलाम ने फ्रमाया, तुम्हारा एक भाई अकेला रह गया है लिहाज
उसे मैं अपने साथ बिठाता हूँ चुनाँचे बिनयामिन के साथ आप खुद बैठ गए
और उससे फ्रमाया के अगर तुम्हारे गुमशुदा भाई यूसुफ की जगह मैं तुम्हारा

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का ज3/

(# हि तो कया तुम पसंद करोगे? अली जल
परत विगयामिन ने कहा, सुजहान अल्लाह! आप जैसा भाई अगर मयस्संर
जहे नसीज! लेकिन कप की का फरजुंद और राहील
हे खलाम और बिनयामिन की माँ का नाम) का नूर नजर को त्तो
को हासिल नहीं हों सकता, हजरत यूसुफ रो पड़े और
अपन को गले लगा लिया और फ्रमाया मैं ही तुम्हारा भाई यसफ है

पर जो कुछ ये लोग कर रहे हैं इसका कोई गम ना करो कत्ल

का है के उसने हमको फिर जमा फ्रमा दिया और देखो इस राज को

अपने भाईयों को ना देना, बिनयामिन ये सुन कर खुशी से बेखुद

हे गए। ( कुरआन करीम पारा 33 रूकू 3, ख़जायन-उल-इर्फान सफा ३४ )

सबके: अल्लाह वाले बुरा सलूक करने वालों से खन्‍्दा पैशानी से पेश
आते है और बजाए बुराई के बुराई का बदला भी नेकी से देते हैं।

हिकायत नम्बर॥॥ प्याले की गुमशुदगी
बिनयामिन अपने दसों भाईयों के साथ गृल्लह लेने के लिए मिम्र पहुँचे
वे बादशाह मिस्र ने उनकी खूब खातिर मदारात की और एक दअबत का
भी इन्तेजाम किया, इस दअवत में शाहे मिस्र बिनयामिन के साथ बैठे और
बे गज जाहिर कर दिया के मैं तुम्हारा भाई यूसुफ हूँ, बिनयामिन ये सुनकर
बड़े खुश हुए, कहने लगे भाई जान! अब आप मुझे किसी तरकीब से अपने
पास्त ही रख लीजिए और जुदा ना कीजिए, यूसुफ्‌ अलेहिस्सलाम ने फ्रमाया
वहुत अच्छा। ह ह

यूसुफ अलेहिस्सलाम ने फिर सब भाईयों को एक एक बार ऊँट गुल्लह
दिया और बिनयामिन के हिस्से का भी एक बार ऊँट गृल्लह तैयार किया
अप बढ़त बादशाह के पानी पीने का जवाहरात से मरस्सओ जो पियाला था,
लह नापने का काम इस पियाला से लिया जा रहा था, ये पियाला यूसुफ
ने बिनयामिन के कजावे में रखबा दिया और ये काफ़्ला
आन के इरादे से रवाना हो गया, जब शहर से बाहर जा चुका तो अंबार
(के कारकनों को मालूम हो गया के पियाला नहीं है उनके खयाल की
कह आया के ये काफ्ले वालों का काम है चुनाँचे उन्होंने जुस्तजू के के
के शाही, प्ले के पीछे भेजे और काफ्ले को रोक लिंग ‘तो बोले
षुञ के नहीं मिलता और हमें आप लोगों पर शुतरह तलाशी दो और

:. फेसम हम ऐसे लोग नहीं हैं, उन्होंने कहा, अच्छा तलाः .

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सच्ची हिकायात 438 हिस्सा अव्वल
अगर वो पियाला तुम्हारे कजाबों में से किसी कजावे से निकल आए उसके
बंदले में उस कजावे वाले ही को अपने पास रख लेना, चुनाँचे सामान कक
तलाशी ली गईं तो पियाला बिनयामिन के कजावे से निकल आया और बो
दसों भाई बहुत शर्मिंदा हुए और हजूरत यूसुफ अलेहिस्सलाम के सामने पेश
किए गए तो वो दसों भाई बोले जनाब! इस बिनयामिन ने अगर चोरी की है
तो तअज्जुब की बात नहीं, इसका भाई यूसुफ्‌ भी चोरी कर चुका है हजरत
यूसुफ्‌ अलेहिस्सलाम ने ये बात सुनकर सब्र फ्रमाया और राज फाश नहीं
फरमाया। .

फिर वो दसों भाई कहने लगे, हमारे वालिद साहब बहुत बूढ़े हैं और
उन्हें बिनयामिन से बड़ी मोहब्बत है इसलिए आप इसको जगह हम में से
किसी को ले लें और उसे छोड़ दें, यूसुफ अलेहिस्सलाम ने फ्रमाया, हम
उसको लेने के मुसतहिक्‌ हैं जिसके कजावे में हमारा माल निकला इसके
बदले दूसरे को लेना तो जुल्म होगा।

‘ ये सूरत हाल देखकर वो दसों भाई आपस में सरगोशियाँ करने लगे के
अब क्‍या किया जाए, उनमें से बड़ा बोला के हम वालिद साहब से बिनयामिन
के बारे में अल्लाह का जिम्मह देकर आए हैं, अब बिनयामिन को ना पाकर
वो हमें क्‍या कहेंगे, मैं तो यहीं रहता हूँ और तुम जाओ और वालिद साहब से
सारा वाकेया कह दो चुनाँचे बड़ा भाई बहीं रहा और बाकी वापस कुनआन
पहुँचे और हजरत याकब अलेहिस्सलाम से सारा वाकेया बयान कर दिया,
हजरत याकब अलेहिस्सलाम ने सारा किस्सा सुनकर फिर फ्रमाया के अच्छा
मैं तो अब भी सब्र ही करूंगा और अनक्रीब मुझे अल्लाह तआला उन तीनों
से मिला देगा, फिर याक॒ब अलेहिस्सलाम अलग होकर यूसुफ्‌ अलेहिस्सलाम
को याद फरमाने लगे बेटे बोले अब्बा जान! क्या आप हमेशा यूसुफ ही की
याद करते रहेंगे? आपने फरमाया, मैं अपने गुम की फ्रयाद अपने अल्लाह
ही से तो करता हूँ और सुन लो जो कुछ अपने अल्लाह से मैं जानता हूँ तुम
नहीं जानते, मेरे बेटो! जाओ, यूसुफ और उसके भाई का सुराग लगाओ और
अल्लाह की रहमत से नाउम्मीद ना हो। ( करआन करीम पारा 3, रूकू ॥
खुजायन-उल-इर्फॉन सफा 348 ) हे

सबक: अल्लाह दलले हर हाल में सब्र व शुक्र ही से काम लेते हैं
और ये भी मालूम हुआ के याक्‌ब अलेहिस्सलाम को इस बात का इल्म थी
के यूसुफ अलेहिस्सलाम जिन्दा हैं इसी लिए फरमाया के अनक्रीब
मुझे उन तीनों से मिला देगा, तीनों कौन? बिनयामिन और वो बड़ा

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ह हिंकायात 439
का रह गया था और यूसुफ अलेहिस्सलाम और सी 3

ञं मैं जानता हूँ तुम नहीं जानते फिर जो शख्स ये !
के जो का को यूसुफ अलेहिस्सलाम का इल्म ना था वो 3३४ क

वेखबर अलेहिस्स बेइल्म है।
है बेध+ लिक्करायत नम्बर0) अपशाएं राज
न्न्न्न्नश्न्श्््खिन्न्शीतसफछफछफएडइक $
याक॒ब अलेहिस्सलाम ने अपने बेटों से फ्रमाया के अल्लाह की
से मायूस ना हो और यूसुफ की तलाश करो चुनाँचे वो फिर मिम्र
हुँबे और यूसुफ अलेहिस्सलाम 80 में हाजिर होकर कहने लगे के
आहे मिस्र! हम बड़ी मुसीबत में हैं हमारी हकौर सी पूंजी कबूल कर के
हों और गूल्लह दे और हम पर खैरात भी कर, हजूरत यूसुफ अलेहिस्सलाम
अपने भाईयों का ये अज्जो इन्किसार और उनकी परेशानी देखकर फरमाने
हगे क्या तुम्हें कुछ खबर है के तुम ने यूसुफ और उसके भाई के साथ क्या
पलूक किया? यानी यूसुफ्‌ को मारना, क्‌एँ में फैंकना, बेचना और उनके
बाद उनके भाई को तंग रखना, परेशान करना क्‍या क्‍या कुछ याद. है? और
वे फरमाते हुए यूसुफ अलेहिस्सलाम को हंसी भी आ गई और भाईयों ने
यूसुफ अलेहिस्सलाम के गोहर द्दोँ का हुस्न देखकर पहचान लिया के ये तो
जमाल यूसुफी की शान मालूम होती है और फिर कहने लगे के आप ही तो
यूमुफ नहीं हैं? फरमाया हाँ! मैं ही यूसुफ हूँ और ये मेरा भाई बिनयामिन,
अल्लाह ने हम पर बड़ा एहसान फ्रमाया है और अल्लाह परहेजुगारों और
साबिर बन्दों का अज्ञ जाए नहीं करता।
वो सब बस्द नदामत बोले, खुदा की कुसम! बेशक अल्लाह ने आपको
हमपर फजीलत दी और हम वाकई खुताकार थे हजरत यूसुफ अलेहिस्सलाम
ने फरमाया मगर ऐ भाईयो! तुम पर मेरी तरफ से कोई मलामत नहीं अल्लाह
एके माफ करे और वो बड़ा मेहरबान है। ( क्रआन करीम पारा 3 रूकू 4,
जैजायन-उल-इर्फान सफा 349) कि
सबक: खुदा के मक्बूल बन्दों का ये शैवा है के वो आप+ जात
जायज बदला लेने की ताकत रखकर भी माफ फ्रणा देते हैं और कोई
‘लागत नहीं करते। |

हिकायत नम्बर00 कृमीस यूसुफ्‌
यूसुफ अलेहिस्सलाम ने अपने भाईयों के सामने अफ्शाऐं राज

प्रा दिया और बता दिया के मैं ही यूसुफ हूँ और फिर अपने भाईयों से

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खुद

का

सच्ची हिकायात | ॥40 हिस्सा अव्वल
हजरत याकब अलेहिस्सलाम का हाल दरयाफ्त फ्रमाया, वो कहने लगे के
आपके फिराक में रोते रोते उनकी नजर बहाल नहीं रही , यूसुफ अलेहिस्सलाम
ने फरमाया तो ये लो मेरी कुमीस ले जाओ, इसे वालिदे माजिद के मुंह पर
डाल दो उनकी बीनाई वापस आ जाएगी, हजरत यूसुफ अलेहिस्सलाम की
इस कमीस मुबारक की ये शान थी के किसी बीमार पर भी डाली जाती तो
वो अच्छा हो जाता, चुनाँचे वो लोग कमीस लेकर वापस लौटे और वो भाई
जिसने यूमुफ अलेहिस्सलाम को कुएँ में फँकने के बाद आपकी कमीस खून
आलूद कर के याक्‌ब अलेहिस्सलाम को दिखाई थी कहने लगा के उस दिन
भी मैंने कमीस यूसुफ उठाई थी और वालिद साहब को रंज पहुँचाया था और
आज भी मैं ही कमीस यूसुफ्‌ उठाता हँ और वालिद साहब को खूश करूंगा
चुनाँचे कमीस यूसुफ उसी ने उठाई और कुनआन की तरफ रवाना हुए इधर
ये लोग मिमस्र से निकले और उधर कुनआन में याकब अलेहिस्सलाम अपने
और अहबाब से फरमाने लगे के आज मुझे यूसुफ की खुश्बू आ रही है वो
कहने लगे आप तो उसी पुरानी वारफ्तगी में हैं भला अब यूसुफ कहाँ?

इतने में बिरादराने यूसुफ आ पहुँचे और वो कमीस हजरत याकब
अलेहिस्सलाम के मुंह पर डाली गई तो फौरन आपकी बीनाई फिर आई
आपने अल्लाह का शुक्र अदा किया’ और फ्रमाया मैं ना कहता था के
जो कुछ मैं जानता हूँ तुम नहीं जानते। ( करआन करीम पारा 3, रूकू 5,
रूह-उल-बयान सफा 26 जिल्द 2) |

सबक: अल्लाह वालों के बदन अनवर से जो चीज लग जाए वो
दाफओ-उल-बला और बीमारियों के लिए शिफा बन जाती है फिर अल्लाह
वाले खुद क्यों ना दाफओ-उल-बला होंगे और उन्हें दाफओ-उल-बला कहना
शिर्क कैसे हो सकता है?

हिकायत नम्बर/70 बिछड़ों का मिलाप

याक्‌ब अलेहिस्सलाम की मुबारक आँखें कृुमीस यूसुफ्‌ की बर्कत से
अच्छी हो गईं और याकब अलेहिस्सलाम ने वक्त सहर बाद नमाज हाथ उठा
कर अल्लाह तआला के दरबार में अपने साहबजादों के लिए दुआ की वो
कबूल हुई और याकब अलेहिस्सलाम को वही फ्रमाई गई के साहबजादों
की खुता बख्श दी गई इधर हजरत यूसुफ अलेहिस्सलाम ने अपने वालिद॑
माजिद को मओ उनके अहलो अयाल के बुलाने के लिए दो सौ सवारियाँ और
बहुत सा सामान भेजा और याकब अलेहिस्सलाम ने मिस्र का इरादा फ्रमार्यी

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५ हिकायाते काया 444
हे अहल को जमा किया, कुल मर्दों जन बहत्तर कस
और अलेहिस्सलाम मिस्र के करीब पहुँचे तो हजरत अलेहिस्सलाम पर
वर्क ‘लश्करी और कसीर तअदाद मिग्री सवारों को 2
और हजार के लिए रेशर्मी फ्रीरे उड़ाते कतारें बाँघे खा
ता ने देखा तो बेटे यहूदा, से फ्रमाया, बेटा! क्याये फिरऔन
वक्ष का लश्कर है जो इस शानों शिकोह के साथ आ रहा है? अर्ज किया नहीं
शहर के फरजंद यूसुफ हैं फिर जिन्राईल ने हाजिर होकर अर्ज॑ किया हुज्र!
$प देखिए आपके जश्न मुसर्रत में शिर्कत के लिए फरिश्ते भी हाजिर # जो
पके गुम में रोया करते थे मलायका की तसबीह, घोड़ों का हिनहिनाना
हिल व बूकु की आवाजें अजीब कैफियत पैदा कर रही थीं, ये मोहर॑म की
दवीं ताराख थी जब दोनों बाप बेटा करीब हुए तो यूसुफ अलेहिस्सलाम
बे सलाम करना चाहा, जिनब्राईल ने कहा आप तवक्कफ कीजिए, वालिद
को मौका दीजिए, याकूब अलेहिस्सलाम ने फ्रमाया ऐ गृम दूर करने बाले!
असलाम अलेक! फिर दोनों ने मुआनकह किया और खूब रोए और मुजय्यन
बनफौस फरोदगाह में जो खेमों बगैरासे आरास्ता थे दाखिल हुए और फिर
जब मिस्र में दाखिल हुए और यूसुफ अलेहिस्सलाम अपने तख्त पर बैठे तो
आपने अपने माँ बाप को भी तख़्त पर बिठाया हजरत यूसुफ अलेहिस्सलाम
की ये शानो शौकृत और रफ्अत व अजुमत देखी तो आपके वालदैन और
आपके सब भाई आपके लिए सज्दा में गिर गए और उस ख़्वाब की जो आपने
जी था के ग्यारह सितारे और चाँद सूरज उन्हें सज्दा कर रहे हैं तअबीर पूरी
है गई। ( कुरआन करीम पारा (3, रूकू 5, खूजायन-उल-इर्फान सफा 350, )
सबके; बालदैन का इक्राम व अदब हर एक पर लाजिम है और सज्दा
कक गम व तहियत जो यूसुफ्‌ अलेहिस्सलाम को किया गया उस शरीयत में
पा और हमारी शरीअत में ये सज्दा जायज नहीं, हाँ! हमारी शरीअत
पुप्राफेहा व मआनक॒ह तअजीमन दस्त बोसी ये जायज है।

हिकायत नम्बर॥७ बे मौसम का फल

न्पर

भें ऐजरत अस्यलाम हालते पर
पे मरयम अला इब्निहा अस्सलाम की वालिंदा ने ्

भरे मानी मैं मानती हूँ के जो
ऐैप्रेंहैबी नो के ऐ रब मेरे! मैं तेरे लिए मन्नत मानती हूँ है * एक

है वो खालिस का
गा लिस तेरी खिदमत के लिए रहेगा चु
भक हे जिसका नाम मरयम रखा गया और बालिदा कल कस
की “उल-मुकहस में ले गई और मस्जिद की खिंदमत क

9९९06 99 (थ्वा5८शाशश’

सच्ची हिकायात’ . व? हिस्सा
वहाँ दाखिल कर दिया बैत-उल-मुक्‌इस के मुतावल्लियों में हजरत जूक्रया
अलेहिस्सलाम भी थे और आप मरयम के अजीज भी थे आपकी अहलिया
मरयम की खाला थीं इसलिए मरयम को आपने अपनी निगहबानी में रख!
जुक्रया अलेहिस्सलाम ने मरयम के लिए मस्जिद में एक कमरा बनवाया
और मरयम को अपनी जेरे निगरानी उसमें रखा, आपके सिवा इस कमरे परे
कोई ना जा सकता था आप जब बाहर जाते तो कमरे के दरवाजे बन्द कर
के जाते और तशरीफ लाते तो खुद ही खोलते , हजरत मरयम अला इनिह
अस्सलाम की करामत देखिए के जुक्रया अलेहिस्सलाम जब भी उस कमे में
दाखिल होते तो उस बन्द कपरे में मरयम के पास मुख़्तलिफ किस्म के ताजा
फल मौजूद पाते, गर्मियों के फल सर्दियों में और सर्दियों के फल गर्मियों पे
वहाँ रखे होते, हजरत जक्रया अलेहिस्सलाम ने ये सूरत देखी तो फरमाया ऐ
मरयम! ये फल तुम्हें इस बन्द कमरे में कोन दे जाता है? और ये फल कहाँ
से आते हैं मरयम अला डन्निहा अस्सलाम ने फ्रमाया, “वो अल्लाह के
पास से आते हैं वो जिसे चाहे बे हिसाब दे।”

हजरत जुक्रया अलेहिस्सलाम- की उम्र शरीफ पिछत्तर साल से भी ज़्यादा
थी सर अनवर सफेद हो चुका था और आवाज मुबारक में भी जौफ आ चुका
था और आपके हाँ औलाद ना थी, आपने खयाल फ्रमाया के खुदा तआला
मरयम को बे मौसम के फल अता फरमाता है तू मुझे भी इस बूढ़ापे में जब
के मेरी बीवी भी बाँझ है यक्रीनन औलाद देने पर कादिर है इस खयाल से
आपने उसी जगह जहाँ आप मरयम के पास बैठे थे दुआ की के “ऐ अल्लाह
मुझे अपने पास से साफ सुथरी औलाद दे बेशक तू दुआ सुनने वाला हैं।*

आपकी इस दुआ के बाद जिब्राईल हाजिर हुए और अर्ज किया है
अल्लाह तआला ने आपको बशारत दी है के आप के हाँ लड़का पैदा होगे
जिसका नाम याहिया होगा। द

( क्रआन करीम पारा 3, रूक्तू 2, रूह-उल-बयान सफा 324, जिल्द: |)

सबक्‌ः औलिया की करामात बरहक्‌ है, मरयम अला डनिह
अस्सलाम के पास बे मौसम के फल मौजूद होना, ये उनकी करामते
और ये भी मालूम हुआ के जिस जगह अल्लाह वालों के कृदम आ जायें 5
जगह को एक खास खूसूसियत हासिल हो जाती है और उस जगह जो दुअ
माँगी जाए वो खुदा जल्दी सुनता है इसलिए हजरत जुक्रया !
ने उस जगह जहाँ मरयम थी दुआ माँगी और वो कबूल हो गई और ये
मालूम हुआ के अल्लाह के बताने से अंबियाक्राम को माफी-डउल-अरहाई

9०९06 99 (थ्वा5८शाशश’

‘ क्योंके 43 हिस्सा
(वीं जाता है क्योंके जब अल्लाह ने बशारत दी के तुप्हारे शॉयाहिया

(2 के गम अलेहिस्सलाम को इल्म हो गया के मेरी अहलिया के
पेट में लड़
हिकायत नम्बर/॥॥ खुदा को निशानी

हजरत मरयम अलेहा अस्सलाम एक रोज अपने मकान में अलग बैठी थीं
के आपके पास जिब्नाईले अमीन एक तनदरूस्त आदमी की शक्ल में आए,
प््यम अलेहा अस्सलाम ने जो एक गैर आदमी को अपने पास मौजूद देखा
तो आपने फ्रमाया तुम कौन हक और यहाँ क्‍यों आए हो , देखो खुदा से डरना
मैं तुझ से अल्लाह की पनाह गती हू, जिब्राईले अमीन ने कहा, डरो मत मैं
अल्लाह का भेजा हुआ आया हूँ और इसलिए आया हूँ के मैं तूझे एक सुथरा
बेटा दूं, मरयम बोलीं , बेटा मेरे कहाँ से होगा जबके मैं अभी बियाही ही नहीं
गई और किसी आदमी ने मुझे हाथ भी नहीं लगाया और कोई बदकार औरत
भी नहीं हूँ, जिन्नाईल बोले, ये ठीक है मगर रब ने फ्रमाया है के बाप के
बगैर भी बेटा देना मेरे लिए कुछ मुश्किल नहीं और ये बात भी मुझे आसान
है और हम चाहते हैं के तुम्हारे यहाँ बगैर बाप के बेटा पैदा कर के अपनी
रमत का और लोगों के लिए एक निशानी का मुजाहरह करें और ये काम
होकर ही रहेगा, हजरत मरयम ये बात सुनकर मुतमईन हो गईं फिर जिन्नाईले
अमीन ने उनके गिरेबाँ में एक फूंक मारी तो मरयम अला हनिहा अस्सलाम
उसी वक्त हामला हो गईं आपका बगैर शौहर के हामला हो जाना लोगों
के लिए बाइसे तअज्जुब हुआ, सबसे पहले आपके हमल का इल्म आपके
चचा जाद भाई यूसुफ नजार को हुआ जो बैत-उल-मुकुद्दस का खादिम था,
वो हजरत मरयम का जेहदो अंतका और आपकी इबादत और मस्जिद से
हज हाजूरी याद करता और फिर आपका हामला हो जाना देखता तो बड़ा
हैरान होता के ये क्या बात है? आखिर एक दिन उसने जुराअत करके अला

अस्सलाम से पूछ लिया और बात इस तरह शुरू की के ऐ मरबभ

पझे बताओ क्‍या खेती बगैर तुख़्म और दरख़्त बगैर बारिश के और बच्चा

बगैर बाप के पैदा हो सकता है, मरथम अला इनिहा शी
क् बो बगो मालूम नहीं के अल्लाह तआला 39208 के अपनी शिदेत
पे लगाए ३ तुख़्म के ही पैदा की और दरख़्त बरर मै आदम और हंव्वा
।ए और क्‍या नहीं के अल्लाह तआला ने आद
के कक तूझे मालूम नहीं क्‍ अल्लाह तआला उन

र माँ बाप के पैदा किया, यूसुफ्‌ ने कहा बेशक

9०३९6 99 (थ्वा]5८शाशश’

सच्ची हिकायात (7 हिस्सा अव्वल
सब उमूर पर कादिर है और मेरा शुबह रफ्ओ हो गया। 2

उसके बाद अल्लाह तआला ने मरयम को इलहाम किया के वो
कौम से अलेहदा चली आयें इसलिए वो एक दूर जगह चली गईं और जब
बच्चा जनने का दर्द शुरू हुआ तो आप एक खुश्क दरख्त से तकिया लगा
कर बैठ गईं और फजीहत व नदामत के अंदेशे से बोलीं, हाय! किसी
मैं इससे पहले ही मर गई होती और भूली बिसरी हो जाती, मरयम ने जब थे
बात कही तो उन्हें एक आवाज आई के ऐ मरयम! अपनी तनहाई का, लोगों
की चहमेगोई का और खाने पीने का कोई गम ना कर, तेरे रब ने त्तेरे नीचे
एक नहर जारी कर दी है और उस खजूर के दरख़्त की जड़ पकड़ कर उम्मे
हिला, चुनाँचे मरयम ने उस दरख़्त को हिलाया तो वो फौरन सर सब्ज व
शादाब हो गया और उसे ताजा फल भी लग गया और पकी खजूरें गिरने
लगीं, फिर जब आपके पेट से हजरत ईसा अलेहिस्सलाम पैदा हुए तो आवाज
आई के ले फल भी खा पानी भी खा और अपने नूरअन बच्चे से आँखें भ्री
ठण्डी रख और जब कोई शख्स तुझ से इस मामले में पूछे त्तो तुम खुद कह
मत कहना बल्के इसी अपने बच्चे की तरफ इशारा कर देना। है

हजरत मरयम फिर अपने बच्चे को गोद में लेकर अपनी क्कौम के पाप
आई तो लोगों ने ये अजीब बात देख कर कूंबारी मरयम की गोद में बच्चा ह
कहा के ऐ मरयम! तुम ने ये अच्छा काम नहीं किया, तेरे माँ बाप तो ऐसे ना
थे, अफसोस! तुम ने ये बहुत बुरी बात की, मरयम अला ड्रव्निहा अस्सलाम
ने बच्चे को तरफ्‌ इशारा किया के मुझ से कुछ ना कहो, अगर कुछ कहना
है तो उससे कहो लोग ये बात सुन कर और भी गस्से में आ गए और बोले
के हम उस दूध पीते पनघोड़े के बच्चे से कैसे बात करें?

हजूरत ईसा अलेहिस्सलाम ने दूध पीना छोड़ दिया और अपने बायें हाथ
पर टेक लगा कर कौम की तरफ मुखातिंब होकर फ्रमाने लगे, सुनो! #
अल्लाह का बन्दा हूँ, अल्लाह ने मुझे किताब दी है और नबी बनाया है और
मुबारक किया है चाहे मैं कहीं भी रहूँ और अल्लाह ने मुझे नमाज जुकाः
की ताकीद फ्रमाई है और मुझे माँ के साथ नेक सलूक करने वाला बनाये
और बदबख्त नहीं बनाया।

हजरत सा अलेहिस्सलाम की इस शहादत से वो लोग हैरान और
खामोश हो गए। ( कुरआन करीम पारा 6, रूकू 5, खूजायन-उल-कुरआ’
सफा 434) चर

सबंक्‌:- अल्लाह हर चीज पर कादिर है, वो किसी जरिये कर

9९९06 99 (थ्वा]58८शाशश’

हिकायाोर्ति 45
सत्वी नहीं है जो चाहे कर सकता है असबाब को हिस्सा अंब्बल
को आजिजू मानना सरासर जहालत, कफ _अइल जानना या बगैर

का मालूम हुआ के नूरानी मखूलूक का लि नकत है और
जाए तो वो हमारी मिस्ल बशर नहीं हो जाती और उसकी 7 कर आ

जाती जैसे के जिब्नाईले अमीन जो नूरानी थे तंदरूस्त कु केत नूर बदल
20 में आए मगर वो हमारी तरह बशर ना थे और ना हैं बल्‍्के
और नूर ही हैं इसी तरह हमारे हुजर सल-लल्लाहो
सब नूरों के 23 0 कक बशरीयत
लिबादा बशरायत आप हमारी पिस्ल
धैऔर ना हैं बल्के आप नूर ही थे और नूर ही हैं और बाल प के
अल्लाह की कोई नओमत जिस जूरिये से मिले उस नओेमत को मिलना
25 8 34383: 3 की देना जायज है जैसे के बेटा देना अल्लाह डा
काम है मगर जिब्ना [ कहा के “मैं इस लिए इ
है अल यूं इस लिए आया हूँ ताके तुझे एक
चूंके मरयम अला ड्ब्निह्ा अस्सलाम को बेटा मिला
व्तातत से था इसलिए करआन ने ये बेटा देने की निसबत 32 चर
कर दी और इस बात का एलान फरमा दिया के मरयम को बेटा जिब्राईल
नेदिया है गोया मुताबिक आयत करआनी के ईसा अलेहिस्सलाम का दूसरा
नाम जिब्नाईल बखुश है, बिना बरीं किसी अल्लाह वाले की दुआ की वसातत
पे कोई काम हो जाए तो हम कह सकते हैं के ये काम फलाँ बुजर्ग ने किया
है या पीर व मुशिंद की दुआ से अल्लाह बेटा दे तो हम कह सकते हैं के ये
तैच्चा पीर ने दिया है और उसका नाम पीर बख़श रख सकते हैं।
ध पा ये भी मालूम हुआ के अल्लाह के नबियों को आने वाली बातों
वास गा ही का इल्म होता है इसी लिए हजुरत ईसा अलेहिस्सलाम ने शीर
द र के आलम ही में सबसे पहले जो बात की वो ये की के में अल्लाह
बार हूँ यानी आप को इस बात का इल्म था के मुझे अल्लाह और
ड़ का बेटा कहेंगे इसलिए आपने सब से अव्वल अपनी अबूदियत ही
के बा फ्रमाया और ये भी मालूम हुआ के विलादत ईसा अलेहिस्सलाम
‘दे खश्क खजूर से अल्लाह तआला ने ताजा खजूरें निछावर कीं तो
अलेह महफिल मीलाद शरीफ में सरवरे आलम सल-लल्लाहो अं 9)
को ओ के जिक्र मीलाद के बाद हम मिठाई तकसीम करें तो मना
7

आदमी को
नूर ही थे
अलेह व सलल्‍्लम भी जो
रीयत में तशरीफ लाए तो

9९९06 099 (थ्वा5८शाशश’

सच्ची हिकायात 446 हिस्सा अच्यत
हिकयत नम्बर(०) शार्गिद या उस्ताद

इंसा अलेहिस्सलाम जब चलने फिरने लगे तो मरयप

दिशा आपात आपको उस्ताद के पास लेकर आईं और कहा के इस बच्चे
को पढाओ, उस्ताद ने हजरत ईसा अला इब्निहा अस्सलाम से कहा ऐ इंश।
पढ़! ईसा अलेहिस्सलाम ने फ्रमाया, बिसमिल्लाहिरहमानिरहीम, उस्ताद)
फिर कहा कहो रे बे जीम दाल, ईसा अलेहिस्सलाम ने फ्रमाया क्‍या
जानते हो के इन हरूफ का मअनी क्या हैं? उस्ताद ने कहा इन हरूफ
मअनी तो मैं नहीं जानता फरमाया तो मुझ से सुनो अलिफ से मुराद अल्लाह
बे से मुराद अल्लाह की बहुज्जत, जीम से मुराद अल्लाह का जलाल औः
दाल से मुराद है अल्लाह का दीन, उस्ताद ने हजरत मरयम अला
अस्सलाम से कहा के आप इस बच्चे को वापस ले जायें, ये किसी
का मोहताज नहीं भला मैं इसे क्‍या पढ़ा सकता हूँ जब के ये खुद मुझे पद
रहा है। ( नुजुह्त-उल-मजालिस सफा 432 जिल्द 2)

सबकः:- नबी किसी दुनयवी उस्ताद के मोहताज नहीं होते औ!
उसका उस्ताद व मोअल्लिम खुदा होता और नबी ऐसे ऐसे उलूम का मुनव्ब
होता है जिन से दूसरे लोग बेखूबर होते हैं।

हिकायत नम्बर (2) टस्ते मसीहा

हजरत ईसा अलेहिस्सलाम अभी कमसिन बच्चे ही थे के आप का गुना

अपनी वालिदा के साथ एक शहर में हुआ जहाँ के लोग अपने बादशाह
दरवाजे पर जमा थे, ईसा अलेहिस्सलाम ने इस अज्दहाम की वजह पूई
तो पता चला के बादशाह की बीवी बच्चा जनने के करीब है और बच्न
पैदा नहीं होता ये लोग अपने बुतों से इस तकलीफ से निजात के हिं’
गिड़गिड़ा कर दुआयें माँग रहे हैं ईसा अलेहिस्सलाम ने फरमाया अगर मे
हाथ बादशाह की बैगम के पेट पर रख दिया जाए तो फौरन बच्चा पैदा।
जाएगा, लोगों ने ये गुफ्तगू सुनी तो आपको बादशाह के पास ले गए, है
अलेहिस्सलाम ने बादशाह से फरमाया ऐ बादशाह! मैं अगर ये भी बता ई
इस औरत के पेट में लड़का है या लड़की और फिर पेट पर हाथ रख दूं
बच्चा पैदा हो जाए तो क्‍या तू एक अल्लाह पर ईमान ले आएगा? बाद
ह कहा बेशक! हजरत ईसा अलेहिस्सलाम ने फरमाया तो सुन! इसके

लड़का है जिसके रूख़सार पर सियाह तिल और पीठ पर सफेद र्ति

9०९6 099 (थ्वा]5८शाशश’

] हिस्सा ।
हिंकायाते पे स्स़
सच्वी बाद आपने फरमाया ऐ बच्चे मैं तुझे इस जात की कसम दाह
के मख्लूक को पैदा फ्रमाया तो जल्दी पेट से बाहर आ जा, आपके
कहते हुए ही बच्चा पैदा हो गया और सबने देखा के उसके रूखसार पर

जा और पीठ पर सफेद तिल था आपका अजाजू देख कर बादए हे
होने को तैयार हुआ मगर कौम ने ये कहकर ये जादू है बादशाह को

मुसला मुसलमान होने से रोक दिया। ( नुज॒हत-उल-मजालिस सफा 49 जिल्द 2)
सबकः:- कि नबी बड़े बड़े उलूम व इख्तियार लेकर आता

है और उनकी नजर माफी-उल-अरहाम तक भी पहुँच जाती है और उनके
हाथ भी दाफओ-उल-बला होते हैं।

हिकायत नम्बर (०) अन्धा और लंगड़ा चोर
हजूरत ईसा अलेहिस्सलाम अभी नो उप्र ही थे के आप अपनी वालिदा
के साथ मिम्र के एक अमीर कबीर के हाँ महमान हुए इस अमीर आदमी के
हँ बहुत से मुफ़िलस और मोहताज आदमी महमान रहा करते थे, इत्तेफाकं से
एक दिन उसके हाँ चोरी हो गई और कुछ माल जाता रहा, उस अमीर आदमी
को उन्हीं मुफिलिस और मोहतांज लोगों पर जो उसके पास रहते थे शुबह था,
हजरत ईसा अलेहिस्सलाम ने अपनी वालिदा से कहा के उस अमीर आदमी
को कहिये के उन सब मुफ्लिसों को एक जगह इकड़ा करे जब उस शख्स भे
उन मुफ्लिसों को एक जगह जमा कर लिया तो आप उनमें’तशरीफ ले गए
और उनमें से एक लंगड़ा आदमी को उठा कर एक अश्धे शख्स की गर्दन पर
बैठा दिया और कहा ऐ अन्धे! इस लंगड़े को उठा कर खड़ा हो जा, वो अन्धा
बोला मैं निहायत जुईफ और कमजोर आदमी हूँ इसे क्योंकर उठा सकता हूँ,
का ईसा अलेहिस्सलाम ने फ्रमाया गुजिएता शब को तुप में इसके उठाने
8 कहाँ से आ गई थी? ये सुनकर वो अन्धा कांपने लगा, दरअसल
३ ने इस लंगड़े को उठाया था और उसके जरिये ये चोरी की थी
वो दोनों चोरैपकड़े गए। ( नुजुहृत-उल-मजालिस सफा 48 जिल्द 2)
ज्ञ *- अल्लाह के नबी छुपी हुई बातों को जो हो चुकीं या होने
पली हों, सबको जान लेते हैं, नबी को बेखबर जानना बेखूबरों का काम है।

‘हैकायत नम्बर/ दुनिया परस्त का’ अंजाम

हजरत इंसा अलेहिस्सलाम में निकले तो उनके साथ
मं एक सफर में निक सा
यहूदी हो लिया, इस यहूदी के पास दो रोटियाँ थीं और हजरत

9९९06 99 (थ्वा]58८शाशश’

सच्ची हिकायात
के पास एक रोटी

448 हिस्सा
टी थी, ईसा अलेहिस्सलाम ने फ्रमाया ३
दोनों खायें, यहूदी ने मान लिया मगर जब उसने देखा

2 कक कक एक रोटी और मेरे पास दो रोटियाँ है तो पछताय
के मैंने शिरकत का वादा क्यों कर लिया चुनाँचे जब खाने का वक्त हुआ ते
यहूदी ने एक ही रोटी निकाली, ईसा अलेहिस्सलाम ने फ्रमाया, तुम्हारे

दो रोटियाँ थीं एक कहाँ गई? यहूदी बोला मेरे पास तो एक ही रोटी थी,
कब थीं? खाना खाने के बाद जब आगे बढ़े तो रास्ते में एक अन्धा मिला, इस
अलेहिस्सलाम ने इसके लिए दुआ की तो वो बीना हो गया ये मोजजा दि.
कर ईसा अलेहिस्सलाम ने यहूदी से फरमाया, तुझे उस अल्लाह को कप
जिसने मेरी दुआ से इस अन्धे को आँखें दे दीं सच सच बता दूसरी रोटी कहं
गईं, वो बोला मुझे उसी अल्लाह की कसम! मेरे पास तो एक ही रोटी थी
फिर जब और आगे बढ़े तो एक हिरन दिखाई दिया, ईसा अलेहिस्सलाम +
उसे बुलाया, वो आ गया आपने उसे जिबह किया, भूना और खाया और फि
उसकी हड्डियों से फ्रमाया, कुम बिइजनिल्लाह! वो हिरन फिर जिन्दा हे
गया, ईसा अलेहिस्सलाम ने फ्रमाया तुझे उस अल्लाह की कसम जिसने हु
ये हिरन खिलाया और उसे फिर जिन्दा कर दिया, सच्च मुच बताओ के दूर
रोटी कहाँ गई, वो यहूदी बोला मुझे उसी अल्लाह की कसम! मेरे पास ते
दूसरी रोटी थी ही नहीं , आगे बढ़े तो एक कुस्बा आ गया, ईसा अलेहिस्सलाग
ने वहाँ कयाम किया यहूदी ने मौका पाकर हजरत ईसा अलेहिस्सलाम का
असा चुरा लिया और खुश हुआ के मैं इस सोटे से मुर्दे जिन्दा कर लि
करूंगा चुनाँचे उस कस्बे में उसने एलान किया के मुर्दे जिन्दा कराने हों ते
मुझ से करा लो, लोग उसे हाकिम शहर के पास ले गए जो बड़ा सख्त बीमा
था और कहा ये बीमार है उसे अच्छा कर दो, यहूदी ने पहले तो उस हाकिः
के सर पर जोर से वो डंडा मारा और कहा, कम बिइजुनिल्लाह! मगए
जिन्दा ना हो सका, अब तो ये घबराया लोगों ने पकड़ लिया और फॉसी ए
लटकाने लगे, इतने में ईसा अलेहिस्सलाम पहुँच गए और फ्रमाया तुम्हीं
हाकिम मैं जिन्दा कर देता हूँ उसे छोड़ दो चुनॉचे आपने कम बिडडजुनिल्लीं:
फ्रमाया तो वो हाकिम जिन्दा हो गया और लोगों ने यहूदी को छोड़ दिं”
ईसा अलेहिस्सलाम ने उससे कहा तुझे उसी खुदा की कसम जिसने तु
जान बचाई सच सच बताओ , वो दूसरी रोटी कहाँ गई? वो बोला उसी है
की कसम! जिसने मेरी जान बचाई दूसरी रोटी मेरे पास थी ही नहीं,
बढ़े तो सोने की तीन ईटें मिलीं ईसा अलेहिस्सलाम ने फरमाया इनमें से

9०९06 99 (थ्वा]5८शाशश’

हिंकायात 49 फ
ब्त दूसरी तेरी और तीसरी उसकी जिसने तीसरी रोटी कक
(पा! खुदा की कसम तीसरी रोटी मैंने ही खाई थी, आपने वो तीनों इंढे उसे

हैं और फ्रमाया अब तुम मेरा साथ छोड़ दो चुनाँचे वो इन इंटों को लेकर
खुशी वापस हुआ लेकिन रास्ते मैं अल्लाह ने उसे इंटों समेत जमीन पे
(सा दिया। ( नुजुहत-उल-मजालिस सफा 207 जिल्द 2) ह
सबक: दुनिया परस्त बेहद झूटा होता है और दुनिया की मोहब्बत
में खुदा और उसके *सूल को कुछ परवाह नहीं करता और:
अंदेश का अंजाम बड़ा होलनाक होता है। 8

हिकायत नम्बर/») नाकाम कातिल

यहूदी हजरत ईसा अलेहिस्सलाम के बहुत दुश्मन थे एक रोज यहूदियों ;

के एक गिरोह ने हजरत ईसा अलेहिस्सलाम को गालियाँ दीं और यूं कहा के
तुम जादूगर हो और तुम्हारी माँ भी जादूगरनी है और तुम बदकार हो और
तुहारी माँ भी बदकार है ( मआजू अल्लाह ) हजरत ईसा अलेहिस्सलाम को
इस बात से बड़ा रंज हुआ और खुदा से दुआ माँगी के ऐ अल्लाह मैं तेरा
पैगम्बर हूँ और ये लोग मुझे और मेरी माँ को बुरा भला कह रहे हैं इलाही!
उनको अपने अजाब का मजा चखा दे चुनाँचे आपकी दुआ कबूल हुई और
वो यहूदी अजाब मस्ख्‌ में मुब्तला होकर बन्दर और सूअर बन गए, यहूदियों
के अमीर ने जब ये किस्सा सुना तो वो दौड़ा के कहीं ईसा हम सब को ऐसा
ना बना डाले इस डर से उसने सारे यहूदियों को इकठ़ा किया और कहा के
किसी सूरत ईसा को कत्ल कर डालो उधर जिब्राईल ने ईसा अलेहिस्सलाम
को मतलअ कर दिया यहूदी आपको कत्ल करने आयेंगे और आपको जिन्दा
आसमान पर उठा लिया जाएगा चुनाँचे एक रोज सब यहूदियों ने इकड्े होकर
सा अलेहिस्सलाम के घर का मुहासरा कर लिया और सबसे पहले एक
आदी को अन्दर भेजा ताके वो पता ले के ईसा घर में है या नहीं वो आदमी
हा अन्दर गया तो उसकी शक्ल हजरत ईसा अलेहिस्सलाम की सी हो गईं
रे ? ईसा अलेहिस्सलाम को अल्लाह ने ऊपर आसमान पर उठा लिया थोड़ी
का जब यहूदी अन्दर घुसे तो उन्होंने अपने आदमी को ही ईसा समझ कर
ह कर डाला और समझा ये के हमने ईसा को मार डाला है, उसके बाद
8 सोचने लगे के हमारा आदमी जो अन्दर आया था, वो कहां 80%:
मक्तूल इंसा है तो वो कहाँ? और अगर यही है तो फिर ईसा कहाँ:

अपने गुपान में तो उन्होंने ईसा अलेहिस्सलाम को कत्ल कर डाला मगर

9९९06 99 (थ्वा]5८शाशश’

सच्ची हिकायात . 450 हिस्सा
ऐसा हुआ नहीं बल्के उन्होंने अपने ही आदमी को कत्ल कर डाला और ईसा

अलेहिस्सलाम आसमानों पर जिन्दा उठा लिए गए। ( कुरआन करीम पारा ६,
रूकू 2, रूह-उल-बयान सफा 53, जिल्द )

सबक्‌:ः- हजरत ईसा अलेहिस्सलाम आसमान पर जिन्दा उठा लिए
गए हैं और जो लोग उनके कृत्ल हो जाने या मर जाने के कायल हैं वो महज

धोक़े में हैं।
चआथा बाब
खुलफा-ए-राशिदीन रिजवानल्लाही
अलेहिम अज़मईन

मोहम्मद माह व गर्दिश चार अख्तर
अबुबक्र व, उमर, उस्पान व हेवर

हिकायत नम्बर (5) सिद्दीके अक्बर रजी अल्लाहो
अन्ह का ख़्वाब

हजरत सिद्दीके अकबर रजी अल्लाहो अन्ह कब्ल अजु इस्लाम बहुत
बड़े त्राजिर थे आप एक मर्तबा मुल्क शाम में गए तो वहाँ आपने एक
ख़्वाब देखा आपने देखा के चाँद और सूरज आसमान से नीचे उतर आए
हैं और दोनों हजरत अबुबक्र रजी अल्लाहो अन्ह की गोद में दाखिल
हो गए हैं हजरत अबुबक्र रजी अल्लाहो अन्ह ने दोनों को पकड़ का
अपने सीने से लगा लिया और अपनी चादर मुबारक ऊपर डाल दी,
सुबह आप बैदार हुए तो उस अजीबो गरीब ख़्वाब की तअबीर पूछने
के लिए एक राहिब के पास पहुँचे उस राहिब ने सारा ख़्वाब सुनकर
पूछा, आपका नाम क्या है और आप कहाँ के रहने वाले हैं और कौ”
से कबीले में? हजरत सिद्दीके अकबर रजी अल्लाहो अन्ह ने फ्रमाई
मेरा नाम अबुबक्र है मक्का का रहने वाला हूँ और बनी हाशिम से $
राहिब ने पूछा और काम क्‍या करते. हैं? आपने फरमाया तिजारत
हूँ, राहिब ने कहा तो मुबारक हो मक्के से और कबीला-ए- बी हार्शि/
से नबी आखिर-उजू-जुमाँ का जहर होने वाला है अगर ये नबी पार्क
होते तो अल्लाह तआला जमीन व आसमान को पैदा ना फरमाता

9०९06 99 (थ्वा5८शाशश’

5
(ली तभी कभी जाहिर ना होती और जुमला कि बंका
प्री पैदा ना होते वो नबी पाक रसूलों के सरदार होंगे हि. 288;
भरी हज अलअमीन ” के नाम से याद करेंगे और पे अजशक। सब
१८ क्वी तअबीर ये है के तुम उसके दीन में दाखिल होगे और कक
खाने # दजीर बनोगे और उसका खलीफा होगे।
अली अबुबक्र! मैंने उस नबी पाक की तौरेत में तारीफ पढ़ी है इंजील व
खू में उसका जिक्र पढ़ा है और मैं उस पर ईमान ला चुका हूँ और उसके
हून में दाखिल हो चुका हूँ और इंसाइयों के खौफ से अपना ईमान छुपा रहा
*आजतुम सेसारी हहीकृत बयानकर दी। ‘
हजरत अबुबक्रं सिद्दीक्‌ रजी अल्लाहो अन्ह ये सुनकर बड़े मुतास्सिर
हुए और दिल पर रक्त तारी हुई और हुज॒र सल-लल्लाहो अलेह व सललम
मुलाकात के शौक्‌ का गृल्बा हुआ और फौरन मक्का वापस आए और
हुज़र की खिदमत में हाजिर हुए हुजूर को देख कर दिल, बाग बागृ हो गया
हुज॒र भी अबुबक्र को देखकर मुसकुराएं और फ्रमाया अबुबक्र! जल्दी
कलमा पढ़ो और मेरे दीन में आ जाओ, सिद्दीके अकबर रजी अल्लाह अन्ह
ने अर्जु किया हुज॒र! क्या कोई मओज्जा देख सकता हूँ? हुजर ने मुसकुरा
कर फ्रमाया:- है
मुल्क शाम में जो झ़्वाब देखकर आए हो और राहिब ने जो तअबीर
सुनाई थी वो मेरा मओज्जा ही तो है।
सिद्दीके अकबर रजी अल्लाहो अन्ह फौरन पुकार उठे
अशहद अन लाइलाहा इल्ललाहू व अश्हद अन्ना मोहम्पदन
अब्दुहू व रसूलुहू |
( जामओ अलमओ ज्जात सफा 4, नुजुहत-उल-मजालिस सफा
32 जिल्द 2)
सबक्‌:- हजरत सिद्दीक्‌ अकबर रजी अल्लाहो अन्ह हुज॒र॒ सल-लल्लाहो
एआाला अलेह ब सल्‍लम के वजीर अव्वल और खलीफा-ए-बिला फसल हैं
है ये बात पहले ही से मुक्रर हो चुकी थी और इंजील व तोरेत के आलिम
इंकार, हकोकत से बाखबर थे फिर जो आपकी विजारत व खिलाफत का
* करे वो किस क॒द्र ना वाकिफ व बेखबर है!
बसल्लम और ये भी मालूप हुआ के हमारे हुज॒र सल-लल्लाहो तआला अलेह
“जम अगली पिछली दिन और रात की सब बातें जानते थे और आपसे
जीत गायब ना थी।

9९९06 099 (थ्वा]5८शाशश’

सच्ची हिकायात | कछ2 हिस्सा अब्य
हिकायत नम्बर॥2) यार-ए-गार द

. . मक्का मोअज़्जमा में जब मुसलमानों को कुफ्फार की तरफ से
ईजा दी जाने लगी तो अल्लाह ने हुजुर सल-लल्लाहो तआला अलेह ३
सल्लम को मक्का मोअज़्ज्मा से हिजरत फ्रमा जाने का अज्न दे दिया, हज
सल-लल्लाहो त्तआला अलेह व सल्‍लम ने इस बात का जिक्र सिद्दीके अब
से फरमाया और फरमाया के मैं अनक्रीब यहाँ से हिजरत कर जाऊंगा।

सिद्दीके अकबर रजी अल्लाहो अन्ह ने अर्ज़ किया, या रसूल अल्लाह!
मेरे माँ बाप आप पर कर्बान, मैं भी हुज॒र के साथ ही चलूंगा।

चुनाँचे शब हिजरत जब कुफ्फारे मक्का ने हुजुर सल-लल्लाहो तआला
अलेह व सल्‍लम को शहीद कर देने की नीयत से हुजर के घर का मुहासरा
कर लिया और हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम सूरह यासीन
तिलावत फ्रमाते हुए उस मुहासरे से सबके सामने घर से बाहर तशरीफ ले
आए और हुज॒र का बाहर निकलना किसी को भी नजूर ना आ सका तो हुजर
घर से निकल कर सीधे सिद्दीके अक्बर के घर तशरीफ लाए और फरमाया
ऐ अबुबक्र! मुझे अभी इसी वक्त हिजरत फ्रमाने का अज््न मिल चुका है
और मैं मक्का छोड़ कर जा रहा हूँ, सिद्दीक्‌ अकबर ने अर्ज किया या रसूल
अल्लाह! मेरे माँ बाप आप पर कर्बान हों, मैं भी साथ चलूंगा? फ्रमाया
चलो, सिद्दीके अकबर से हुजर की मईयत की इजामत पाकर फर्ते मुसर्रत से
रोने लगे और हुजर के साथ हो लिए और हुजुर सल-लल्लाहो तआला अलेह
व सलल्‍लम सिद्दीक्‌ अकबर को हमराह लेकर मक्का मओज्जमा से चल दिए,
सिद्देके अकबर कभी हुजर से आगे और कभी पीछे रह कर चलते। हुजर ने
इसकी वजह दरयाफ्त की तो अर्ज किया या रसूल अल्लाह! मैं चाहता हूँ के
दुश्मन तआक्क्‌ब करता हुआ आगे या पीछे से आ जाए तो उसका वार मुझी
पर हो और हुजर पर मैं ही कर्बान हों और हुजर को कोई गजिंद ना पहुँचे।
चलते चलते सौर पहाड़ पर-पहुँचे इस पहाड़ में एक ग्रार था जिसका नाम
गारे हृत्वाम था, हुजर सल-लल्लाहो त्तआला अलेह व सल्लम ने उस गार
में तशरीफ्‌ फ्रमा हाने का कूसद फ्रमाया तो सिद्दीक अकबर रजी अल्लाहो
अन्ह ने अर्ज़ किया, या रसूल अल्लाह! ठहर जाईये पहले मुझे अन्दर जाने
दीजिए, पुराना गार है पहले मैं अन्दर जाता हूँ और उसे साफ करता हूँ, सार्फ
कर लूं तो आप अन्दर आ जाईयेगा। जय

चुनाँचे पहले उस गार में सिद्दीके अकबर गए और उसे साफ करने लगे

9०९6 99 (थ्वा]5८शाशश’

सच्ची हिकायात 53
उस गार में कई बिल थे सिद्दीके अकबर उन बिलों को न 333 लंड
फाड़ कर बन्द करने लगे सिफ इसलिए के कोई मूजी जानवर हुजर को
तकलीफ ना पहुँचाए इस गार में एक बहुत बड़ा सांप रहता था सिद्दीके
अकबर ने उसका बिल जो देखा तो कपड़ा खत्म होने के बाइस कपड़े से तो
उसे बन्द ना कर सके और अपनी ऐड़ी उसमें रख दी अपनी जान की परवाह
ना की और यही सोचा के मुझे जो चाहे तकलीफ पहुँचे मगर हुज॒र को कोई
तकलीफ ना पहुँचे इस बिल पर ऐड़ी रखने के बाद सिद्दीके अकबर ने फिर
हुजूर को अन्दर बुला लिया और हुजुर अन्दर तशरीफ ले आए और अपना
सरे अनवर सिद्दीक्‌ अकबर की गोद में रख कर सो गए, वो बिल जिस पर
सिद्दीक्े अकबर की ऐड़ी थी उसमें से जहरीले सांप ने सिद्दीके अकबर को डस
लिया, सिद्दीके अकबर रजी अल्लाहो अन्ह को तकलीफ तो हुई मगर आप
अपनी जगह से हिले तक नहीं ताके हुजर की नींद मुबारक में खलल ना आए,
सांप के जहर की तकलीफ से सिद्दीक अकबर के आंसू निकल आए और
चन्द आंसू हुजर॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह व सललम पर गिरे और हुज॒र
सल-लल्लाहो तआला अलेह व सलल्‍्लम ने दरयाफ्त फ्रमया अबुबक्र क्यों रो
रहे हो? सिद्दीके अकबर ने अर्ज किया या रसूल अल्लाह! मेरे माँ बाप आप
पर कुर्बान हों मुझे सांप ने डस लिया है, हुजर सल-लल्लाहो त्तआला अलेह
व सलल्‍लम ने उसी वक्‍त अपना लआब दहन शरीफ लगा दिया तो सिद्दीके

अकबर की सारी तकलीफ दूर हो गई।

हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍लप और सिद्दीके अकबर जब
उस गार में दाखिल हुए तो गार से दूर एक दरख़्त था हुजर ने उस दरख़्त को
हुक्म दिया तो वो दरख्त अपनी जगह से चल कर गार के मुंह पर आकर
खड़ा हो गया यूं मालूम होने लगा के ये दरख़्त यहीं उगा हुआ है और गार
का मुंह उस दरख्त की शाखों से बन्द हो गया और अल्लाह ने उसी वक्त
एक मकड़ी को भेजा जिसने इस दरख़््त की शाखों के अन्दर जाला बुन दिया,
ये सब सामान इसलिए किया गया ताके काफिर अगर हुजर का तआक्कुब
करते हुए वहाँ तक आएं तो बो गार के मुंह के आगे दरख़्त और उसकी शाखों
में जाला बुना हुआ देखें तो उन्हें हुज॒र॒ के अन्दर चले जाने का शुबह भी ना
गुजरे चुनाँचे इधर जब काफिरों को पता चला के मोहम्मद( सल-लल्लाहो
अलेह व सल्‍लम ) तो अबुबक्र की मईयत में मक्का से चले गए तो बहुत
हैरान हुए और हुजर की तलाश करने लगे और कुछ खोजी हुजर का खोज
के लिए मुकुरर कर दिए उन खोज निकालने वालों में से एक शख्स

9०९06 099 (थ्वा]5८शाशश’

सच्ची हिकायात 454 हिस्सा सा अल)

खोज निकालता हुआ गार तक आ पहुँचा और फिर कहने लगा के ह्‌] यहाँ तक
मोहम्मद और अबुबक्र आए हैं लेकिन उसके बाद पता नहीं चल रहा के दा
गए या बायें, काफिर वहाँ जमा हो गए लेकिन वहीं हैरान के हैरान खड़े
कुछ पता ना चला के यहाँ से आगे किधर गए हैं, सिद्दीके अकबर ने जब
काफिरों के कदम गार से बाहर देखे तो हुजुर॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह
व सल्‍्लाम की फिक्र में आप परेशान से हुए तो हुजर॒ सल-लल्लाहो तआला
अलेह व सल्‍लम ने फरमाया, कोई फिक्र ना करो, अल्लाह हमारे साथ है।

इतने में उन काफिरों में से एक काफिर बोला, जूरा इस गार के अन्य
तो जाकर देखें, ये सुनकर दूसरों ने जवाब दिया बेवकफ हो गार के मुंह
के आगे दरख़्त उगा हुआ है और उसपर मकड़ी का जाला भी बना हुआ है
अगर अन्दर कोई गया होता तो ये शाखें और उनका जाला जुरूर टूटा फूटा
नजर आता मगर ये बात तो नजर नहीं आती फिर किसी के अन्दर जाने का
सवाल ही पैदा नहीं होता।

चुनाँचे वो मायूस होकर वहाँ से लौट गए -और हुज॒र सल-लल्लाहो
तआला अलेह व सल्‍लम और उनके साथी सिद्दीके अकबर रजी अल्लाहो
अन्ह अपने अल्लाह की हिफाजूत में बिलकुल खेरियत से रहे, “कुरआन
करीम पारा 0 रूकू /2” ( मिशएकात शरीफ सफा 548, रूह-उल-बयान सफा
भर? जिल्द !).

सबक्‌:- – क्रआन पाक में इस वाकये के जिम्न में इज वकूतू
लिसाहिबाहाँ फ्रमाया कर अल्लाह तआला ने सिद्दीके अकबर को हज
सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍लम का सहाबी फरमाया है लिहाजा
शख्स सिद्दीके अकबर की सहाबियत का मुनकिर है वो काफिर है।

2- हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍लम ने ला ही
न मआना फरपमा कर यानी “गम ना कर अल्लाह हमारे यानी हम
| के साथ है” ये जाहिर फ्रमाया दिया के अल्लाह तआला सिंद, सिंदीके
अकबर के साथ है, मालूम हुआ के सिद्दीके अकबर रजी अल्लाह अब है.
सल-लल्लाहो तआला अलेह व सलल्‍लम के बाद जो तख्ते खिलाफ
मुतमकिन हुए ये आप ही का हक्‌ था और आप गासिब व जालिम नी
इसलिए अल्लाह गासिब व जालिम के साथ नहीं होता फिर अगर
जालिम आपको जालिम कहे तो उसने गोया आयत ला तहजन ह्ालली ह
– मआना का इंकार कर दिया। | विन

3- शब्रे हिजरत हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम के

9९९06 99 (थ्वा]5८शाशश’

 

 

हिकायात | +55 हिस्सा अव्वल
अकबर के घर तशरीफ ले जाकर उन्हें अपने साथ ले चलना और

सिद्दीके अकबर का सब कुछ छोड़ कर हुजूर के साथ चल पड़ना बताता है
के हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम को सिद्दीके अकबर से और
सिद्दीक अक्बर को हजर से इन्तिहाई मोहब्बत थी। …“*
4- गार के अन्दर हुजूर को बाहर ठहरा कर सिद्दीके अबबर का पहले
खुदा अन्दर जाना और बिलों को अपने कपड़े फाड़ फाड़ कर बन्द करना
और फिर एक बिल पर अपनी ऐड रख देना बताता है के सिद्ीके अक्बर
को माल व जान से भी ज़्यादा प्यारे थे और यही कमाले ईमान की निशानी
है जो सब से ज़्यादा सिद्दीेके अकबर में नजर आती है।

: $- मुकाम डंक पर हुजर का अपना लुआब दहन शरीफ लगा कर शिफा
बख़्श देना साबित करता है के हुजूर का लआब दहन शरीफ भी दाफओ
अलबला है।

6- इर्शाद मुसतफा की तअमील करते हुए दरझ्त का अपने मुकाम से
चल कर गार के मुंह पर आ जाना बताता है के हमारे हुजर का हुक्म व
तसर्ूफ कायनात के हर जरें पर जारी है। ३

7- काफिरों का ग्रार के मुंह तक आ पहुँचना और फिर वहाँ से मायूस
व ना मुराद लौटना बताता है के हक्‌ के मुकाबले में सारी इसकीमें और
तदबीरें खाक में मिल जाती हैं।

हिकायत नम्बर(2) आसमान के तारे

एक रात जब के आसमान साफ था और सितारे चमक रहे थे, हुज्र
सरवरे आलम सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम उम्म-उल-मोमिनीन
आयशा सिद्दीका रजी अल्लाहो अन्हा के पास तशरीफ्‌ फ्रमा थे हजरत
आयशा ने आसमान की तरफ देख कर हुजर से दरयाफ्त फ्रमाया या रसूल
अल्लाह! जितने आसमान के तारे हैं उतनी किसी शख्स की नेकियाँ भी हैं?
‘ ईजुर ने फ्रमाया हाँ! सिद्दीका ने अर्ज किया, हुजूर वो किंस की? हुजर ने
फरमाया उमर की।
उम्म-उल-मोमिनीन आयशा सिद्दीका का खयाल था के हुजूर सिद्दीके
अकबर का नाम लेंगे मगर हजुरत उमर का नाम सुनकर सिद्दीका ने अर्ज़ किया
. जारसूल अल्लाह और मेरे वालिद की नेकियाँ कियर गई हजर सल-लेल्लाहो
:-अकियों में से एक नेकी के बराबर हैं। ( मिश्कात शरीफ सफा $52 0…

9८०९0 09५ (थ्ा$८क्यावाट’

न सच्ची ध्द
॥ सिद्दीके

]

 

 

सच्ची हिकायात – : 456 हिस्सा अव्वन्

सबक: – सिद्दीके अकबर रजी अल्लाहो अन्ह को बहुत बड़ी शान है
नबियों के बाद सबसे बड़ा मर्तवा आप ही का है और घ जो शब हिजरत
हुज॒र सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍लम की मईयत में रहे उस एक हो
नेकी का इतना बड़ा दर्जा है के आसमान के तारों के बराबर नेकियाँ भी उम्र
एक नेकी के बराबर नहीं सकतीं।

और ये भी मालूम हुआ के हमारे हुजूर सल-लल्लाहो तआला अलेह
व सललम से उम्मत के नेक व बद आमाल गायब नहीं बल्के हुजर सब के
आमाल को जानते हैं बाज नेकियाँ अलल एलान होती हैं रा कड़े नेकियाँ
पौशीदा भी होती हैं और हजरत उमर की जुमला नेकिनयाँ जिनमें एलानिया
नेकियाँ भी थीं और पौशीदा नेकियाँ भी उन सब नेकियों का इल्म हुजर
सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍लम को था, जभी ठो फरमाया के उम्र
की नेकियाँ आसमान के तारों के बराबर हैं।

हिंकायत नम्बर(2) पाँच चीजें

एक दिन हजरत अली रजी अल्लाहो अन्ह ने हजरत सिद्दीके अकबर
रजी अल्लाहो अन्ह से पूछा जनाब! ये तो फ्रमाईये आप इत्तने बड़े मर्तबे को
किन बातों से पहुँच गए?

सिद्दीके अकबर ने फरमाया, पाँच बातों से:

4- मैंने लोगों को दो तरह का पाया, एक वो जो दुनिया की तलब में
सरगरदाँ हैं दूसरे वो के जो आखिरत की तलब में कोशां हैं, मैंने मौला को
तलब में कोशिश की है। |

2- में जब से इस्लाम में आया हूँ कभी दुनिया का खाना पेट भर कर
नहीं खाया क्योंके इफाने हक्‌ की लज्ज़्त ने मुझे इस दुनिया के खाने से बे
नियाज्‌ कर दिया है।

३- जब से इस्लाम लाया हूँ कभी सेर होकर पानी नहीं पिया, क्योंके
मोहब्बत इलाही के पानी से सैराब हो चुका हूँ।
हिला 4- जब भी मुझे दुनिया व आखिरत के दो काम पेश आए तो मैं
बरत्री काम को मुकृहम किया और दुनयवी काम की कछ परवाह किए
बगैर अखरवी काम ही को इख़्तियार किया। 0

5- मैं हुज॒र॒ सय्यद-उल-अंबिया सल-लल्लाहों तआला अलेह व सल्ल#
की सोहबत में रहा और मेरी ये सोहबत हुज॒र के साथ बड़ी अच्छी रहीं
( नजृहत-उल-मजालिस सफा 34 जिल्द 2)

9०९6 99 (थ्वा]5८शाशश’

सच्ची हिकायात ले 57 ‘ हिस्सा अव्वल

सबक:- हजरत सिद्दैक्‌ अकबर रजी अल्लाह अन्ह उम्पत में से सबसे
बड़े तालिब मौला आरिफ्‌ कामिल, मुहिब्ब हक, मुत्तदी और सल-लल्लाहो
तआला अलेह व सल्‍लम के सहाबी हैं।

हिकायत नम्बर(०) पुल सिरात की राहदारी

एक दिन सिद्देके अकबर रजी अल्लाहो अन्ह हजूरते मौला अली रजी
अल्लाहो अन्ह को तरफ देख कर मुसक्राए, मौला अली रजी अल्लाहो
अन्ह ने दरयाफृत किया जनाब मुझे देख कर आप मुसकुराए क्यों? सिद्दीके
अकबर ने फ्रमाया ऐ अली! मुबारक हो, मुझ से हुजर सल-लल्लाहो
तआला अलेह व सलल्‍लम ने फ्रमाया के जब तक अली किसी को पुल
सिरात से गुजरने की चिट्ठी ना देगा तब तक वो पुल सिरात से गुजरने ना
सकेगा, इस पर हजरत अली रजी अल्लाहो अन्ह भी मुसकुरा पड़े और
फ्रमाया ऐ खूलीफात-उल-मुसलिमीन! आपको भी मुबारक हो, मुझ से
हुजूर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सलल्‍लम ने फ्रमाया के ऐ अली!
तुम उस शख्स को पुल सिरात की राहदारी हर गिज ना देना जिसके दिल
में अबुबक्र की अदावत हो बलल्‍्के उसी देना जो अबुबक्र का मुहिब्ब हो।
(नुजहत-उल-मजालिस सफा ३5 जिल्द 2) ह

सबक;:- हजरत अली रजी अल्लाहो अन्ह की मोहब्बत व गूलामी से
कुछ फायदा जभी हासिल हो सकता है जब के सिद्दीके अकबर रजी अल्लाहो
अन्ह की मोहब्बत भी दिल में हो वरना बराए नाम मोहब्बते अली किसी
काम की नहीं।

हिकायत नम्बर/%) अंगूठी का नक्श

एक मर्तबा हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सललम ने सिद्दीके
अकबर रजी अल्लाहों अन्ह को अपनी अंगूठी मुबारक दी और फ्रपमाया के
इस /पर ला इलाहा इलल्‍्ललाहू मोहम्मदुर रसूल अल्लाह लिखवा लाए
जब अंगूठी हुजर की खिदमत में पेश की तो उस पर लिखा था; ला इलाहा
#ल्तलाहू मोहम्मदुर रसुल अल्लाह और उसके साथ ही सिद्देके अकबर
का अपना नाम भी लिखा था, हुज॒र ने दरयाफ्त फ्रमाया अबुबक्र! हम ने
ला इलाहा इल्ललाहू लिखवाने को कहा था मगर तुम हमारा नाम भी
और अपना नाम भी लिखवा लाए, अर्ज किया हुजूर! मेरा दिन ना मानता
था के खुदा के नाम के साथ आपका नाम ना हो ये आपका नाम तो मैंने ही

9९९06 99 (थ्वा]5८शाशश’

सच्ची हिकायात _58 . हिस्सा अब
लिखवाया है मगर मेरा नाम? ये तो यहाँ तक आते आते ही लिखा गया गे
मैंने हर गिज नहीं लिखवाया इतने में जिब्बाईल अमीन हाजिर हुए और ञ
किया या रसूल अल्लाह! खुदा फ्रमाता 8. सिद्दीक्‌ इस अग्र पर राजी १
हुए के आपका नाम हमारे नाम से जुदा करें 2 2 इस अप्न पर राजी २:
हुए के सिद्दीक्‌ का नाम आपके नाम से जुदा करें, सिद्दीक ने आपका ना
हमारे नाम के साथ लिखवा दिया और हम ने सिद्दीक्‌ का नाम आपके ना
के साथ लिख दिंया। ( तफ्सीर कबीर सफा 9 जिल्द ) ।

सबक :- सिद्दीेके अवबर रजी अल्लाहो अन्ह हुजूर सल-लल्लाहे
तआला अलेह व सल्लम के सच्चे रफीक हैं और हर जगह हुजूर के साधः
और खुद अल्लाह तआला इस रफाकृत का मोईद व शाहिद है।

हिकायत नम्बर(3) खुदा की तसदीक्‌

हजरत सिद्दीके अकबर रजी अल्लाहो अन्ह एक दिन यहूदियों के एक
मर्दर्स में तशरीफ ले गए उस दिन यहूदियों का एक बहुत बड़ा आलिग
जिसका नाम फिखास था आया हुआ था और उसकी वजह से वहां बहुत पे
यहूदी जमा थे, सिद्दीके अकबर रजी अल्लाहो अन्ह ने वहाँ पहुँच कर फिखाप
से फरमाया ऐ फिखास! अल्लाह से डर और मुसलमान हो जा, खुदा को
कसम मोहम्मद के सच्चे रसूल हैं जो हक्‌ लेकर आए हैं और तुम लोग उनकी
तारीफ तौरेत व इंजील में पढ़ते हो लिहाजा तुम मुसलमान हो जाओ औ!
सच्चे रसूल की तसदीक करो, नमाजें पढ़ो जकात दो और अल्लाह को कर
हुस्त दो ताके तुम जन्नत में जाओ, फिखास बोला ऐ अबुबक्र! क्‍या हम
खुदा हम से कर्ज मांगता है? इससे तो ये साबित हुआ के हम गुनी हैं और
खुदा फकीर है। हजरत सिद्दीके अकबर रजी अल्लाहो अन्ह को ये सुन की
बड़ा गुस्सा आया और फिखास के मुंह पर एक थप्पड़ मारा और फरमा
कसम बखुदा! अगर हम में और तुम में ये मुआहेदा ना होता तो इसी व |
तेरी गर्दन अलग कर देता, फिखास धप्पड़ खा कर हज॒र सल-लत्लाह
तआला अलेह व सल्‍लम के पास आया और सिद्दीके अकबर की शिका
की, हुजूर ने सिद्दीक्‌ अकबर से पूछा तो सिद्दीके अकबर ने अर्जु किया, हा
उसने यूं कहा था के हम गनी हैं और अल्लाह फकीर है मुझे इस बात
गुस्सा आया था फिखास इस बात से फिर गया और कहने लगा मैंने हरा
ऐसा नहीं कहा उसी वक्त सिद्दीके अकबर की तसदीक में अल्लाह 7
ने ये आयत नाजिल फरमाई:- । रे

9९९06 99 (थ्वा]5८शाशश’

बत्ती हिकांयात 459 कल . हिस्सा अव्वल
हकद समी अल्लाहू क्‌ कालू इन्नल्लाहा फंकौर व

#8 के ३३३ ने उन लोगों का ये कौल सुना के अल्लाह फकौर है
और हम गुनी [ . || कर ।
तआला को इस तसदीक्‌ व शहादत से सिद्दीके अकबर रजी

अल्लाहो अन्ह की सदाकृत वाजेह हो गईं। ( क्रआन करीम पारा 4 रूकू ॥0,
हूह-उल-बयान, सफा 33, जिल्द 6).

सबक्‌:- सिद्दीेके अकबर रजी अल्लाहो अन्ह दीन के मामले में बड़े
गूयूर थे और आपके जज़्बा-ए-सादिका की ये शान है के खुदा तआला भी
आपके जज्बा-ए-सादिका का मद्दाह और आपका मोईद है फिर जो शख्स
सिद्दीके अकबर का मद्दाह नहीं वो दरअसल खुदा ही से ख॒फा है।

हिकायत नम्बर(2) बिलाल की आजादी
हजरत बिलाल रजी अल्लाहो अन्ह एक हबशी गुलाम थे ये मुसलमान
हो गए तो उनके मालिक उमय्या ने जो बड़ा दुश्मने रसूल काफिर था हजरत
बिलाल को बड़ी सख्त ईजायें देना शुरू कीं, सिद्दीके अकबर रजी अल्लाहो
अन्ह को पता चला तो आपने बहुत बड़ी कीमत का सोना देकर हजरत
बिलाल को आजाद कर दिया सिद्दीके अक्बर का ये ईसार अल्लाह को
बड़ा पसंद आया और करआन मकें इर्शाद फ्रमाया के वो ( सिद्दीक ) महेज
अल्लाह की रजा के लिए खर्च करता है और अनक्रीब वो राजी होगा।
( क्रआन करीम पारा 30 रूक्ूू 8, रूह-उल-बयान सफा ७0 जिल्द 4)
सबक्‌:- सिद्देके अकबर रजी अल्लाहो अन्ह ने अपना माल व जुर सब
कुछ इंस्लम पर कर्बान कर डाला और खुद अल्लाह तआला ने भी कुरआन
सिद्दीेके अकबर की तारीफ फरमाई है और फ्रमाया है के हम उसे राजी
करेंगे फिर जो सिद्दीक पर राजी नहीं तो खुदा उस पर राजी नहीं।

हिकायत नम्बर७७) गृजुवा-ए-तबूक हि
पजूवा-ए-तबूक के मौके पर हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व
स्ल्लम ने सहाबा-ए-इक्रमा से फरमाया के अल्लाह की राह में जिहाद करने
लिए तैयार हो जाओ ये जमाना निहायत तंगी और कहतसाली का था यहा
तक के दो, दो आदमी एक खजूर पर बसर करते शी थे सफर दूर का था और
कसीर और कंबी थे, हजरत उस्मान रजी अंल्लाहो अन्ह ने उस गजबे

$८क्वाव2०0 एज (था5टा।श’

सच्ची हिकायात । 460 : हिस्सा अव्वल
में बड़ी आली हिम्मती से खर्च किया दस हजार मुजाहिदीन को सामान दिया
और दस हजार दीनार इस गृजूबे पर खर्च किया उनमें सबसे पहले हजरत
अबुबक्र सिद्दीकु रजी अल्लाहो अच्ह हैं जिन्होंने कह कल माल हाजिर कर
दिया, हजरत उमर रजी अल्लाहो अन्ह रावी हैं के इस दिन इत्तेफाकन प्रेरे
पास कुछ माल था मैंने सोचा के मैं आज इस कदर ईंसार करूँगा के अबुबक्र
से भी बढ़ जाऊँ चुनाँचे हजरत उमर ने अपने कुल माल के दो हिस्से
और एक हिस्सा घर रख कर आधा माल हुजूर की खिदमत में ले आए और
फिर इस खयाल से बहुत खुश हुए के मैंने आप बहुत ईसार किया है आज
अबुबक्र आगे ना बढ़ सकेंगे मगर क्या देखते हैं के परवाना-ए-शमा मुसतफा
सिद्दीके अकबर रजी अल्लाह अन्ह अपने घर का कुल माल लिए हुजूर की
खिदमत में हाजिर हो गए और अपनी सारी पूंजी बारगाहे महबूब में पेश कर
दी हजरत उमर ये देखकर हैरान रह गए और सोचने लगे के इनसे बढ़ना
मुश्किल है, हुज॒र सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍लम हं वृरत सिद्दीके
अकबर का ईसार देखकर बहुत खुश हुए और फ्रमाया ऐ सिद्दीकू सब कुछ
यहाँ ले आए हो ये तो बताओ के घर के लिए क्या छोड़ आए हो? सिद्दीक्‌
अबबर का जवाब ये था के…..
परवाने को चिराग तो बुलबुल को फूल बस
सिद्वक्‌ के लिए है खुदा का रसूल बस.
थोड़ी देर के बाद जिब्राईल अमीन हाजिर हुए और अर्ज किया या
रसूल अल्लाह! अल्लाह तआला सिद्दीके अकबर पर सलाम फ्रमाता है या
रसूल अल्लाह! आप सिद्दीके अकबर से पूछिये के वो इस आलमे फकीर में
मुझ अल से राजी है या नाराज? हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह ब
सल्लम ने ये पैगामे खुदा सिद्दीके अक्बर को सुनाया त्तो सिद्दीके अकबर इस
है 02400 4 वजद में आकर कहने लगे:
रब्बा/ अना अन रब्बी स्ब्बी
अना अन रब्बी राजी “क्या मैं अपने रब बराजी 0 जब आर.
हूँ” कप सफा 275, तारीख-उल-खुलफा वा सु गज
रजी रा लग या बी अल्लाह अन्ह ने सारे सहाबा-ए-इक्राम
दा कूर्बानियाँ फ्रमाई हैं और आप ने राहे हक में
सब कुछ निछावर कर दिया था और आपका ये मर्तंबा हक्‌
खुदा जिसकी रजा की सारी खुदाई तालिब मर्तबा है के खुद खुदा, वो
अलेह व सललम के सदके में सिद्दीके ब है हुजूुर सल-लल्लाहो तआला
द * + सेहक अकबर की रजा चाहता है सिद्दीकु के

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वीहिकायात … १64 हिस्सा
सह अपना सलाम भेजता है फिर जो खुद बदबख्त हक अब का

दुश्मन है वो खुदा का दुश्मन ना हुआ तो और क्‍या हुआ?

हिकायत नम्बर (७4), दिलेर व बहादुर

एक दिन हजरत अली रजी अल्लाहो अन्ह ने लोगों से खड़े होकर
फ्रमाया भला तुम जानते हो तमाम लोगों में ज़्यादा बहादुर और शुजअ
कौन है? हाज्रीन ने जवाब दिया जनाब आप! फरमाया नहीं , बल्के सबसे
ज़्यादा दिलैर व बहादुर अबुबक्र सिद्दीकु थे उसका इम्तिहान यूं हुआ के जब
बद्र का मआरका पेश आया तो हमने हुज॒र सल-लल्लाहो तआला अलेह
व सल्‍लम के लिए एक छप्पर तैयार किया और हुज॒र को वहाँ बिठा कर
कहा के हुजर की पासबानी और हिफाजत के लिए कोन शख्स खड़ा होगा?
ताके बुत परस्तों में से कोई शख़्स आपके पास ना पहुँच सके, मैं कुसम खा
कर कहता हूँ के उस वक्त सिर्फ अबुबक्र ही आगे बढ़े और इस बात के
मृताकफ्फिल होकर आपके सर मुबारक पर नंगी तलवार लिए खड़े रहे।
(नुजृहृत-उल-मजालिस सफा 30 जिल्द 2)

सबक :- सिद्दीके अकबर रजी अल्लाहो अन्ह सबसे ज़्यादा सखी भी
और सबसे ज़्यादा जरी भी थे और इस बात के गवाह खुद हजरत मौला अली
रजी अल्लाहों अन्ह हैं।

हिकायत नम्बर(७) खुत्वा-ए-खिलाफत
हजरत सिद्दीक्‌ अकबर रजी अल्लाहो अः ‘ जब तख़्त खिलाफत पर
मुतमकिन हुए तो आपने एक मजमओ आम में – तक्रीर फरमाई।
फरमाया- भाईयो और अजीजो! क्रआ इन्तिखाब मेरे नाम पड़ा और
मैं तुम्हारा खलीफा मुक्रर हो गया। गो में तुम से बहेतर व अफूजूल ना था
भण मैं तुम्हारा सरदार मुक्रर कर दिया गया हूँ लेकिन मेरी सरदारी केसर
व किसरा जैसी सरदारी नहीं के किसी को मेरे काम में मजाल दम जुदन न
हो, खूब समझ लो के तुम्हारे अन्दर जो कृवी है मेरे नजदीक उस वक्त तक
कमजोर व जुईफ है जब तक के मैं जुईफ को उससे हक्‌ न दिलवा दूं और
जो तुम में जुईफ है वो मेरे नजदी कृवी है ता वक्त ये के मेरी एआनत से उसे
उसका हक ना मिल जाए देखो एक बात और है जिहाद से कभी तसाहिल
ना बरतना इस तरीके को हर गिज तर्क ना करना, याद रखो जो कौम जिहाद
को छोड़ देती है वो टनिया में ख्वारियों और रूसवायों की नजर हो जाती है,

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सच्ची हिकायात . 62 आल सा अ्क।
रास्ती और रंसज्ञत रखी अपानत है कूल दी फ्रमॉबरदार हू. फ क्‍
है। जब तक अल्लाह आए और जब मुझे ऐसा करते ना जी |

इताअत वाजिब है,
तक तुम पर बरी इताआत से इंकार कर दो उस वकृत मेरी इताअत नक
वाजिब नहीं तुम्हारा फर्ज है के तुम मुझे सीधे रास्ते पर चलाओ ।( तारध
इस्लाम सफा (30) है
सबक;:- सिद्दीके अकबर रजी अल्लाह अन्ह बइत्तिफाक्‌ मुसलि,
खलींफात- उल-मुसलिमीन मुकरर हुए और आपका मक्सद महज आता
व लमत-उल-हक अल्लाह और अल्लाह के रसूल के अहकाम का निफाइ:
था कोई दुनयवी गूर्ज ना थी और वो अपने आप को अल्लाह, रसूल क्ष!
गलाम समझते थे और रिआया को आजादी दे दी थी के वो खिलाफे शरीआ
हरकत अपने खलीफा में देखें तो उसकी इताअत ना करें।

हिकयत नम्बर(७) पुर असरार खादिम
इब्राफे मदीना मुनव्वरह में एक अंधी बूढ़िया औरत रहती थी जिमका |
कोई अजीज ना था, हजरत उमर फारूक रजी अल्लाह अन्ह हर रोज
को उसके घर आते और उसका पानी भर देते और भी जो कुछ उसका काम
होता कर देते एक रोज रात को उस बूढ़िया के घर आए तो क्या देखते हैं
के उसका सारा काम कोई दूसरा शख़्स कर गया है, दूसरे रोज आए तो
रोज भी आपसे पहले ही कोई शख्स उसका सारा काम कर गया था, टी
तरह हजरत उमर हर रोज उसकी खिदमत के लिए आते तो आप देखते के
उस बूढ़िया का काम कोई दूसरा शख़्स कर गया है आप हैरान रह गए के
ये कौन है जो मुझ से पहले ही यहाँ पहुँच कर इस बूढ़िया का पानी भी भ’
जाता है और उसका सारा काम भी कर जाता है चुनाँचे आप एक रोज बह
जल्दी आए और इस इन्तिजार में रहे के देखें ये पुर असरार खादिम की
है? थोड़ी देर के बाद आने वाला आया और उस बूढ़िया का काम
लगा, फारूके आजूम ये देख कर हैरान रह गए के ये पुर असरार खाद!
खुलीफात-उल-मुसलिमीन हजूरते अबुबक्र सिद्दीक रजी अल्लाहो अर |;
(तारीख-उल-खुलफा सफा 59) ््ि कप
. “सबक्‌ः- इतना बुलंद मरतबत खलीफा और ये तवानै *.
‘जम्ब्ा-ए-खिदमत के एक अंधी बूढ़िया की खिदमत अपने जिसे ५ |

ली, ये बात की निशानी है के सिह्ीके अक्बरं रजी अल्लाह अर

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हिकायात 63 हिस्सा अ
सब -ए-रसूल सल-लल्लाहो त्तआला अलेह व सललम हैं और आप ही
लाफत के हकदार थे वरना दुनिया परस्त और जाह तलब बादशाहों में
बातें कब नजर आती हैं? और मालूम हुआ के इंसानों का अमीर असल
मं मुसलमानों का खादिम होता है और उसका फर्ज होता है के वो अपनी
अमीर ग्रीब सारी रिआया की खबर रखे और सबके काम आए।

हिकायत नम्बर/0) फिराके महबूब

हजरत सिद्दीके अकबर रजी अल्लाहो अन्ह को हुजर सल-लल्लाहो
तआला अलेह व सल्‍्लम से इस क॒द्र मोहब्बत थी के हुजर सल-लल्लाहो
अलेह व सल्‍लम के विसाल शरीफ के बाद आप फिराक महबूब
के सदमे से बेचैन रहने लगे और थोड़ी मुद्दत के बाद ही आप बीमार पड़
गए आपके इलाज के लिए एक तबीब को बुलाया गया, तबीब ने बड़े गौर
से देखा और कहा के ये मरीज किसी की मोहब्बत में बीमार है और उनका
पहबूब उनसे जुदा है इसी फिराक महबूब के गम में ये बीमार हुए उनका
इलाज बजुज दीदारे यार के और कुछ नहीं जहाँ तक हो सके उनके महबूब
को उन्हें दिखाओ। ( सीरत-उल-सालेहीन सफा 9५)
सबक :- सिद्दीक्‌ अकबर रजी अल्लाहो अन्ह सच्चे महबूबसल-लल्लाहो
तआला अलेह व सल्लम के सच्चे मुहिब्ब व तालिब थे।

हिकायत नम्बर/७) दीदारे महबूब

हजरत अबुबक्र सिद्दीकु रजी अल्लाहो अन्ह ने एक रात ख़्वाब
देखा के हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सलल्‍लम तशरीफ लाए
और आपके बदन मुबारक्व पर दो सफेद कपड़े थे थोड़ी देर मे वो दोनों
प्रफेद कपड़े सब्ज रंग के हो गए और इस क्‌द्र चमकने लगे के निगाह
उन पर ना ठहर सकती थी फिर हुज॒र सल-लल्लाहो तआला अलेह व
सललम ने सामने तशरीफ्‌ ताज हक इज 55
फ्रमाया और मुसाफह क्रिया और अपना नूर |
के सोने पर रखा जिसके सबब सारी कुल्ब और सीने की तकलीफ दूर

फिर फ्रमाया के ऐ अबुबक्र! क्या अभी हम से मिलने रो के

आया? हजरत अबुबक्र ये बात हुजूर से सुनकर इस हट लेकर

घर वालों को खबर हो गईं, फिर अर्ज किया व शरद है| का

पूल अल्लाह थ्यां रसूल अल्लाह! देखिये आपकी मुलाकात “का

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सच्ची हिकायात -॥64 द हिस्सा 3… हर
शरफ्‌ कब मुझे हासिल होता है।” हजरत अबुबक्र का फिराक मे हे
सुनकर हुजर ने फरमाया, घबरओ नहीं अब हमारी तुम्हारी मुलाकात
वक्‍त करीब है, इस ख़्वाब को देखकर हजूरत अबुबक्र बहुत खुश पे !
( सीरत-उल-सालेहीन सफा 9१2 ) |

सबक: सिद्दीके अकबर को हुजर से और हुजूर को सिद्दीक से बह |
मोहब्बत थी।. हर ]

हिकायत नम्बर०७ वसीयत
सिद्दीके अकबर रजी अल्लाहो अन्ह ने अपने आखरी मर्ज में हजरत न
रजी अल्लाहो अन्हं को बुलाया और बसीयत फ्रमाई के ऐ अली! जब प्र
वफात हो जाए तो मुझे तुम अपने हाथों से गृस्ल देना क्योंके तुमने उन हाथ
से रसूल अल्लाह सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम को गस्ल दि
है फिर मुझे मेरे पुराने कपड़ों में कफन देकर उस हुजरह शरीफ के सारे
रख देना जिसमें हुज॒र का मजार है फिर अगर बगैर कुंजियों के कफ्ल 2
खुल जाए तो अन्दर दपून कर देना वरना आम मुसलमानों के कब्रिस्तान
ले जाकर दफन करना। ( सीरत-उल-सालेहीन सफा 9)
सबक; सिद्दीके अकबर जिनके विसाल में जान दे रहे हैं चाहते हैं के
विसाल के बाद मुझे उसी महबूब की आगोशे रहमत में जगह मिले। माल
हुआ के सिद्दीके अकबर रजी अल्लाह अन्ह हुजर सल-लल्लाहो तआल
अलेह व सल्‍लम के दिलो जान से चाहने वाले सच्चे मुहिब्ब थे।

. -हिकायत नम्बर॥७) अबु उबेदा का ख़्वाब

जिस वक्त सहाबा-ए-क्राम का लश्कर मुल्क शाम के फतह करे
में मश्गूल था और दमिश्क्‌ फतह करने का मनसूबा दरपेश था मा

‘दमिश्क्‌ के फतह करने में किसी क॒द्र दिक्‍कतें पेश आ रही थीं
सहाबा-ए-क्राम को एक किसम का तरहुद लाहक था ऐसी हैरान ।
वक्‍त हजरत अबु उबैदा रजी अल्लाह अन्ह ने ख़्वाब में देखा के *.
खेमे में हुजूर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍लम तशरीफ लाए
अनु उबैदा को. बशारत दी के ऐ अबु उबैदा! मुसलमानों से कह दो ३
आज ये मुकाम फतह हो जाएगा, इत्तमिनान रखो ये फरमा कर हर
सेहत जल्द वापसी का अज़्म फरमाया हजरत अबु उबैदा ने अर्ज॑ ै’
लिशअल्लाह!इस वक्‍त हुजर को जल्दी इतनी क्यों है? फ्रमर्य ,

ही कक
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हिकायात . 65 |
शा ! आज अबुबक्र को वफात हो गई है मैं उनका कर
कर आया हूँ मुझे अभी अबुबक्र के जनाजे पर वापस जाना है ये
फर्म कर इंजूर फौरन वापस तशरीफ्‌ ले गए। ( सीरत-उल-सालेहीन
फा 39) ह

प्तफी सबक:- हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍लम को हजरत
धहीरके अकबर रजी अल्लाहो अन्ह से एक खास तअल्लुक था और हुजर की

का भी वहाँ भी सिद्दीके अक्बर पर एक खास नजर रही है…

हिकायत नम्बर॥॥) जनाजा

हजरत सिद्दके अवबर रजी अल्लाहो अन्ह ने अपने विसाल मुबारक से
पहले हजरत अली रजी अल्लाहो अन्ह को फ्रमाया था के मेरे जनाजे को
तैयार करके हुजरह शरीफ जिसमें हुजर॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह व
सल्लम का मजार अनवर है के सामने रख कर अर्ज करना अस्सलाम अलेक
बा रसूल अल्लाह , ये अबुबक्र आपके दरवाजे पर हाजिर है फिर जैसा हुक्म
हो करना, चुनाँचे आपकी वसीयत के मुताबिक्‌ु आपके जनाजे को हुजरह
के सामने रख कर अर्ज किया गया या रसूल अल्लाह! ये आपके यारे गार
अबुबक्र आपके दरवाजे पर हाजिर हैं और उनकी तमन्ना आपके हुजरे में
दफन होने की है अगर इजाजत हो तो हुजरह शरीफ में दफ़्त किया जाए, ये
पुनकर हुजरह शरीफ का दरवाजा जो पहले बन्द था खुद ब खुद खुल गया
और आवाज आई। |

अदखिलू अलहबीबा इलल हबीबी फड़न्नल हबीबा इलल हबीबी
एताकुन क्‍
बी को हबीब से मिला दो क्योंके हबीब को < त्रीज से मिलने का

है”
जब हुजरह शरीफ से हजुरत अबुबक्र रजी अल्लाहो अन्ह के दपन
की इजाजुत हुई तो जनाजृह मुबारक को अन्दर ले गए और हुजूर
“लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍लम के कंथे मुनारक के क्रीब
न कर दिया गया। ( सीरत-उल-सालेहीन सफा 2). __
7:- सिद्दीेके अकबर रजी अल्लाह अन्ह हूँ
सत्र से जोहिर है के आप ही सानी असनेन हक कक ० कर
बकक का” फी-अलमजार भी हुए, मालूम हुआ # |
कोई सानी नहीं। क्‍

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ह हिस्सा

सच्ची हिकायात 66 द ह
हिकायंत नम्बर/० उमर बिन अलखत्ताब रजी.
क्‍ अल्लाहो अन्ह आस

हुज॒र सल-लल्लाहों तआला अलेह व सल्‍लम ने एक दिन अल्लाह
ये दुआ की ऐ अल्लाह! उमर बिन खत्ताब के वजूद से इस्लाम को इस्जत हे |
हुज॒र सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍लम की दुआ हो और फिर कबूत
ना हो चुनाँचे इधर तो ये दुआ हुईं और उधर हजूरत उमर रजी अल्लाहो अर
हुज॒र सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍लम को कत्ल कर देने के इरादे पे
घर से निकले, रास्ते में आपको एक शख्स ने मिल कर पूछा के उमर! तु
कहाँ जाते हो? कहा मोहम्मद( सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम ) को
कत्ल करने, उसने कहा, भला अगर तुम ने ऐसा किया तो बनी हाशिम पर
किस तरह अमन में रह सकते हो? और पहले अपने घर की तो खुबर लो,
उमर! तुम्हारी बहन फातिमा और तुम्हारे बहनोई सईद बिन जैद दोनों के
दोनों मुसलमान हो चुके हैं, हजरत उमर रजी अल्लाह अन्ह उस शख्स कै
ये गुफ्तगू सुनकर गस्से में थर थर कांपने लगे और बोले अच्छा तो में उन
ही दोनों का काम तमाम करता हूँ, ये कहकर आप अपनी बहन के घर आए
और थोड़ी देर डेवढ़ी में खड़े होकर अपनी बहन को आवाज को सुना और
दफअतन घर के अन्दर चले गए और बहन से कहने लगे के ये आवाज कंस
थी जो उस चक्त मैंने तुम दोनों से सुनी? उस वक़्त हजरत उमर को बहन
के घर में एक शख्स बैठे उनकी बहन और बहनोई को सूरते ताँहा पढ़ा रे
थे उन्होंने जूंही हज़रत उमर की आहट पाई फौरन मकान के एक गोशे में
छुप गए जब हजुरत उमर ने गृजूब के लहजे में ये अलफाज कहे तो आपके
बहनोई सईद कहने लगे, उमर! भला अगर हम हक्‌ पर हो तो भी आप हमें
बुरा समझेंगे? इस पर हज़रत उपर को और ज़्यादा गुस्सा आया और आए
अपने बहनोई को बड़े जोर से धक्का दिया और दा चार जोर से घूंसे भे
मार दिए, आपकी बहन फातिमा अपने शौहर की ये कैफियत देखकर बडई
बेताबी से उठीं और भाईं को खाबिंद से अलेहदा किया मगर हजरत उर्म
ने उन्हें भी मार कर अपने दिल का खूब ग॒बार निकाला यहाँ तक के उन
चेहरा लहू लुहान हो गया, जब हजरत उमर उन दोनों से अलेहदा हुए 7. .
बहन से कहा लाओ मुझे वो सहीफा तो दिखाओ जिसे तुम पढ़ रही 4!
फातिमा ने कहा भाई इसे पाक लोग छू सकते हैं पहले आप पाक हो *’
हजरत उमर उठे और बहन की हिदायत के मुताबिक वजू किया और वी.

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सच्ची हिकायात रे 67. : : हिस्सा अव्वल
करके इस सहीफे को हाथ में लिया, इसमें लिखा था तॉहा मा अनजलना

अलेक कुरआना लितश़का इल्ला तज़किरातन लिगयख़डा आप इन

आयतों को पढ़ते पढ़ते डन्नी उजल्लाहा लाइलाहा इल्‍ला अना फआबूदूनी

८ लिज़िक्री तक पहुँचे थे के कलामे इलाही आप पर अपना
असर डाल गया और आपने उसी वक्‍त बचश्म तर फ्रमाया मुझे फौरन
मोहम्मद ( सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍्लम ) के पास ले चली , हजरत
उमर को गुफ्तंगू सुनकर उन सहाबी को जो आपके बहन बहनोई को तालीम
दे रहे थे इतमिनान हुआ और अन्दर से निकल कर कहा / उमर! तुम्हें बशारत
हो के मैंने जनाब रसूले करीम सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍्लम को
फरमाते सुना है के आप जनाब इलाही में यूं दुआ करते हैं;
…_“इलाही उमर बिन अलखत्ताब के वजूद से इस्लाम को इज्जत दे।”

उसके बाद हजरत उमर रजी अल्लाहो अनच्ह हुजर॒ सल-लल्लाहो तआला
अलेह व सल्लम के हुज॒र हाजिर होने को चले दरवाजे पर देखते हैं के
हजरत हम्जा और चन्द आदमी खड़े हैं उन लोगों ने हजरत उमर को देखा
तो डर गए और हजरत उमर की दहशत उन पर तारी हो गई, हजरत हम्जा
ने कहा खुदा तआला अगर हजूरत उमर के साथ भलाई करना चाहता है
तो उसे इस्लाम की हिदायत करेगा और अगर खुदा ने उसके अलावा कोई
दूसरी बात चाही है तो उमर को कत्ल कर डालना हम पर कोई मुश्किल
नहीं है, हुजर॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम को हजरत उमर के
आने की खबर पहुँची तो आप बाहर तशरीफ लाए और उनके कपड़ों को
पकड़ कर फरमाया, उमर! क्‍या तुम अभी भी बाज ना आओगे फिर आपने
वही दुआ माँगी और फ्रमाया इलाही उमर बिन खत्ताब के वजूद से इस्लाम
को इज्जत दे।” जूंही हजरत की जुबान से ये कलमात निकले, हजुरत उमर

बेसाख्ता पुकार उठे:-

अशहद अन लाइलाहा इलललाहू व अशहद अन्नका रसूल अल्लाह

हजरत उमर रजी अल्लाह अन्ह का एलाने हक सुनते ही मौजूदा मुसलमानों
ऐसे जोर से अल्लाह अकबर का नअरा बुलंद किया के तमाम मस्जिद
पलों सुन लिया। ( तारीख-उल-खुलफा सफ् 79, नुजहत-उल-मजालिस

भर 33, जिल्द 2)
और सती – सारे सहाबा-ए-इक्राम अलेहिमुर्रिजवान बहुत बड़ी शान,

बड़े रूत्बे के मालिक हैं मगर हजरत उमर रजी अल्लाह अन्ह की ये
‘ इप्तियाजी शान है के हुजर॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम ने

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सच्ची हिकायात 468… हिस्सा
हजरत उमर को अल्लाह से माँग कर लिया है और जाहिर है के जो
: ख्वाहिश व तमन्ना से हासिल की जाए वो बड़ी अजीज और महबूब शो
है फिर जो लोग हजरत उमर रजी अल्लाहो अन्ह के खिलाफ हो को गो

मरजी-ए-मुसतफा के खिलाफ हैं।
हिकायत नम्बर॥७) एलाने हक्‌

हुज्‌र अलेहिस्सलाम पर जब हजरत उमर रज़ी अल्लाह अन्ह ईमान
आए और मुसलमान हो गए तो इस्लाम का शौकृत को चार चाद लग
और कुफ़ के घर सफे मातम बिछ गई, मुसलमानों की तअदाद भी का
थोड़ी थी और मुसलमान अपने फ्रायज की अदायगी अलल ऐलान ना का
सकते थे मगर हजरत उमर रजी अल्लाहो अन्ह के दाखिले इस्लाम होते ह
मुसलमानों में एक खास जज्बा पैदा हो गया और हजूरत उमर ने एक दिन हुक
सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍लम से अर्ज किया या रसूल अल्लाह हम
दीने हक पर हैं और कुफ्फार बातिल पर तो हम अपने दीन को क्यों छुपाएँ!
या रसूल अल्लाह! मुझे उस जात की कुसम जिसने आपको दीने बरहक के
साथ भेजा है मुझ से वो मजलिस कभी बाकी नहीं रह सकती जिसमें कुफ्र की
मद के लिए ना बैठा था मगर अब इस्लाम के इजहार व इम्दाद के लिए जुरूर
बैठूंगा, इसके बाद हजूरत उपर रजी अल्लाहो अन्ह मजलिस नबव्वी से बाह्य
निकले और खाना कअबा का तवाफ किया, आप कअबे के डर्दगिर्द घूम रहे
थे और कलमा शरीफ जोर जोर से पढ़ रहे थे, मुशरिकीने मक्का ये सुनकर
आप झपट पड़े और सब ने मिल कर हमला किया हजरत उमर रजी अल्लाहो
अन्ह ने तन तनहा सबका मुकाबला किया और उनमें से एक मुशरिक की
गिरा कर उसके सीने पर चढ़ कर अपनी दोनों उंगलियाँ उसकी दोनों आँखों में
डाल दीं जूंही वो शख्स चीखा तमाम मुशरिकीन हजरत उमर के खौफ से भाग
लिए और फिर हजूरत उमर रजी अल्लाह अन्ह ने अलल ऐलान हर मजलिय॑
में आवाज हक बुलंद की और कुफ्फार को चेलेंज दिया के जो शख्स नबी
बरहक्‌ और दीन हक की मुखालफत करेगा मेरी तलवार उसका फैसला करेंगी
और फिर हुजूर सल-लल्लाहो तआला अलेह ब सल्लम से अर्ज किया, यीं
रसूल अल्लाह! कोई मजलिस बाकी नहीं रही जिसमें मैंने एलान हक ना की
दिया हो, ये सुनकर हुजूर सल-लल्लाहो त्तआला अलेह ब सल्लम बहुत खूर
हुए और कअबा को त्तरफ ले आपके आगे आगे तो हजरत्त उपर रजी अल्लाहों
अन्ह चले जाते थे और पीछे पीछे हजुरत हम्जा रजी अल्लाहो अन्ह, हृत्ता

9९९06 99 (थ्वा]5८शाशश’

हिकायात 469 हिस्सा अव्वल
आपने खाना कअबा का ऐलानिया तवाफ किया और मुसलमानों ने खुल्लम
खुल्ला नमाज पढ़ी। ( नुजह्त-उल-मजालिस सफा 34 जिल्द 2 )
सबक्‌:- हजरत उमर रजी अल्लाह अन्ह की जात ग्रामी से इस्लाम को
बल्ब हुआ और ये सारी बरकतें हुजर ही को थीं मगर उनका जूहूर हजूरत
उमर के वजूद से हुआ फिर जिसे हजरत उमर से कोई शिकायत है तो उसे
गोया गुल्बा-ए-इस्लाम ही की शिकायत है।

हिकायत नम्बर0७) कफ्ले जहन्नुम

हजरत अब्दुल्लाह बिन सलाम रजी अल्लाहो तआला अन्ह ने एक दफा
हजरत उमर रजी अल्लाहो तआला अन्ह के बेटे हजरत अब्दुल्लाह रजी
अल्लाहो तआला अन्ह से कहा, ऐ कफ्ल जहन्नुम के बेटे! हजरत अब्दुल्लाह
अपने वालिद माजिद के मुतअल्लिक्‌ ये जुमला सुनकर बड़े परेशान हुए
और घर जाकर हजरत उमर रजी अल्लाह तआला अन्ह से कहा अब्बा जान!
अब्दुल्लाह बिन सलाम ने आपको कफ्ल जहन्नुम कहा है। हजरत उमर ने ये
बात सुनी तो अब्दुल्लाह बिन सलाम के पास पहुँचे और दरयाफ्त फ्रमाया
के आपने मेरे हक में ये अलफाजु क्यों इस्तेमाल फ्रमाया, हजरत >ब्दुल्लाह
बिन सलाम कहने लगे इसकी वजह ये है के मुझे मेरे बाप ने और उन्हें उनके
आबाओ अजदाद ने हजरत मूसा अलेहिस्सलाम से खबर दी है के हजरत
मूसा अलेहिस्सलाम ने फ्रमाया मुझे जिन्नाईल ने खबर दी है के पैगम्बर
आखिर-उज-जमाँ हजरत मोहम्मद मुसतफा सल-लल्लाहो तआला अलेह
ब सल्‍लम की उम्मत में एक शख्स पैदा होगा जिसे उमर बिन ख़॒त्ताब कहा
जाएगा मुबारक नफ्स जब तक उम्मते मोहमदिया में रहेगा तब तक जहतन्नुम
का दरवाजा बन्द रहेगा गोया वो जहन्नुम का कुफ्ल होगा लेकिन जब उसका
इन्तिकाल हो जाएगा तो जहन्नुम का दरवाजा खुल जाएगा और लोग अपनी
नपसानी ख़्वाहिशों में मुबतला होकर इधर उधर परेशान होकर मुतफर्रिक हो
जाएंगे। ( नुज॒हत-उल-मजालिस , सफा 36, जिल्द 2) ।

सबक :- हजरत उमर रजी अल्लाह तआला अन्ह की जाते ग्रामी पर

गुस्ताखाना हमले करने वाला अपने लिए जहन्नुम का कुफ्ल खोलता है।

हिकायत नम्बर (७) देबदबा-ए-फारूक्‌

तशरीप सल-लल्लाहो ततआला अलेह व सल्‍लम एक जंग से वापस
! लाए तो एक लड़की ने आकर अर्ज की या रसूल अल्लाह !

9९९06 099 (थ्वा]5८शाशश’

सच्ची हिकायात ॥70 । हिस्सा अध्य्‌ द
मैंने नज् मानी थी के अल्लाह तआला प्रैदान जंग से आपको भत

लाए तो मैं आपके सामने दफ बजाऊंगी और गाऊंगी, हजर

कणों अच्छा अगर तुम ने यही नज्ञ मानी है तो अपनी नज्ञ पूरक
लो चुनाँचे वो लड़की दफ बजाने लगी। इतने में हजरत अबुबक्र रज
अल्लाहो तआला अन्ह तशरीफ्‌ लाए और वो लड़की दफ बदस्तूर बजाए
रही फिर हजरत उमर रजी अल्लाहों तआला अन्ह भी तशरीफ ले
तो उस लड़की ने फौरन दफ को रानों के नीचे छुपा लिया और ख्
उस दफ के ऊपर बैठ गईं। हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्ला
ये बात देख फरमाने लगे, उमर शैतान तुझ से बहुत डरता है। ये लड्क
मेरे सामने दफ बजाती रही मगर तुझे देखकर उसने दफ को छुपा लिये
( मिशकात शरीफ , सफा 550 )

सबक्‌ः- ये हजरत उमर रजी अल्लाहो तआला अन्ह का दबददवा है के
शैतान आपके वजूद से डरता है बल्के वो आपके नाम भी सुन ले तो का।
उठता है और ये भी मालूम हुआ के हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह 4
सल्लम मुख्तार हैं के जिसको चाहें और जिस बात की चाहें इजाजत दे दें।

हिकायत नम्बर/७ गेरते फारूक

हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सलल्‍लम जब मैराज से बाप
तशरीफ लाए तो फ्रमाया, मैंने जन्नत में एक बहुत बड़ा महल देखा है जिम्मके
सहन में एक औरत बैठी वज कर रही थी, मैंने पूछा ये महल किस का हैं.
तो मुझे बताया गया के ये महल उमर का है।

ऐ उमर! मैं महल के अन्दर जाता मगर तुम्हारी मैरत को याद कर के
अन्दर नहीं गया और वापस चला आया, हजरत उमर रजी अल्लाहो तआतें’
अन्ह ने अर्जु किया या रसूल अल्लाह क्‍या मैं आप पर मैरत करता? मे
बाप आप पर कर्बान हों या रसूल अल्लाह! ऐसा कब हो सकता है एिं
हजरत उमर रोने लगे। ( मिशकात शरीफ, सफा 59, तारीख-उल-खुल
सफा 83) का

सबक:- हजरत उमर रजी अल्लाहो तआला अन्ह इतने गयूर थे *
हे [कप तआला अलेह व सलल्‍लम जो सबके आकाए मौत

आपकी गैरत की गवाही दे रहे है’ फिर जो हजरत उमर रजी अली,

तआला
बेगैरत है। जी जीते ग्रामी पर गुस्ताखाना हमले करे वो किस की

9९९06 099 (थ्वा5८शाशश’

… हिकायत नम्बर/0) अदले फारूक कक
एक दफा का जिक्र है के हजरत उमर रजी अल्लाहो |
‘अदायन किंसरा में एक लश्कर भेजा, जब लश्कर तजलो बे किजार प,
पहुँचा तो वहाँ कोई जहाज और कश्ती ना थी जिसके जरिये पार होते सभ्रद
बिन अबी वकुकास रजी अल्लाहो तआला अन्ह जो इस लश्कर के जरनैल
थे और खालिद बिन बलीद रजी अल्लाहो तआला अन्ह ने लश्कर से आगे
बढ़कर फ्रमाया के ऐ दरया! अगर तू हुक्म इलाही से चलता है तो हम तुझे

हुरमत नबी सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍लम और अदले उमर का
वास्ता देते हैं तो हमें रास्ता दे दे ताके हम बाआसानी पार हो जाएँ ये कहकर
उन दोनों बाहिम्मत जरनेलों ने अपने घोड़े दरया में डाल दिए और जब जान
निसार और वफादार लएकर ने अपने सरदारों के घोड़े दरया में देखे तो सब ने
दफअतन घोड़ों की बागें छोड़ दीं और दरया में कूद पड़े, दरया ने उन पाक
लोगों को रास्ता दे दिया और उनके घोड़ों के खुर तक पानी से तर ना हुए
और सही सालिम पार हो गए। ( नजृहत-उल-मजालिस , सफा 3॥9, सफा 2)
सबके:- हजरत उमर रजी अल्लाहो तआंला अन्ह के अदल की
बरकत थीं जो हुज॒र॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍लम के तुफैल जूहूर
पजीर हुई और बगर किसी जहाज व कश्ती के सारा लश्कर दरया से पार हो
गया और ये भी मालूम हुआ के सच्चे मुसलमान अपने नबी की हुरमत और
अपने अमीर की अदालत पर एतमाद रखते हैं और बड़ी से बड़ी रूकावट
को भी खातिर में नहीं लाते।

. हिकायत नम्बर गेबी आवाज

हेजुरत उमर रजी अल्लाहो तआला अन्ह ने एक मुल्क में अपना लश्कर
जिहाद के लिए भेजा और उस लशएकंर का अफ्सर हजरत सारिया रजी
अल्लाहो तआला अन्ह को मुक्रर फ्रमाया, हजरत सारिया रज़ी अल्लाहों
जिहाद अन्ह अपने लश्कर को लेकर उस मुल्क में गए और कापफिरों से
के दें करने लगे। इधर मदीना मुनव्वरह में एक रोज खुत्बा देंते हुए हजरत
हे मी तआला अन्ह ने आवाज दी “ऐ सारिया पहाड़ के साथ
बे जो “होड़ को अपने पीछे रखो।” लोग हैरान हुए के खुले के आच्दर ये
यह है बात कैसी? सारिया तो यहाँ से दूर किसी मुल्क में लड़ रहा है फिर
आवाज देने का क्या मअनी? थोड़े दिनों के बाद मैदाने जिंहाद से

9९९06 99 (थ्वा]5८शाशश’

सच्ची हिकायात ॥72 श्प््सा ।
एक कासिद आया और उसने बताया के ४४२४४ ०३३४ ४ इक से शी
था और काफिर हम पर गालिब रहे थे के ह का आवाज सम हे
“ऐ सारिया पहाड़ के साथ रहो और पहाई को अप पा रखो।” चुना तै
ने इस हिदायत पर अमल किया और पहाड़ को पीछे रखकर हम े कं
पुश्त को महफूज कर लिया और फिर दुश्मन से डट कर मुकाबला ५
दुश्मन शिकस्त खा गया और अल्लाह तआला ने हमें फतह दी।
सबक :- ‘फारूके आजम रजी 3

फारूक आजम को दी मुसल 43029
ये भी मालूम हुआ के खुदा क मद न न्‍
नहीं बनती और वो दूर की चीजें भी देख लेते हैं और अपने बेकसों को ग६
बिगड़े हुए काम संवर जाते हैं और ये

फरमाते हैं और उनको इम्दाद से हे
मालूम हुआ के अल्लाह वाले दूर की आवाज भी सुन लेते हैं जैसे के हज

सारिया ने हजरत की आवाज सुत्र ली।

हिकायत नम्बर(%) नजरे ईमान

हजरत अली रजी अल्लाहों तआला अन्ह ने फारूके आजूम रन

अल्लाहो तआला अन्ह के दोरे खिलाफ में एक ख़्वाब देखा के मस्जिद नबी

में खुद हुजर सरवरे आलम सल-लल्लाहों तआला अलेह व सल्लम फा

की नमाज पढ़ा रहे हैं और हजुरत अली भी हुज॒र की इक्तिदा में नमाज ए
रहे हैं, सलाम फैरने के बाद दुज॒र सल-लल्लाहो तआला अलेह व सत्ता ‘
मस्जिद की दीवार से पुशएत अनवर लगा कर बैठ गए इतने में एक औछ
खजूरों का एक तबाक्‌ लेकर हाजिर हुई और हुजूर के सामने वो तबाक रव |
दिया, हुज्रे अकरम सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍्लम ने उसमें से ए |
खजूर उठाई और हजरत अली रजी अल्लाहो तआला अन्ह को अता फर*६ .
और बाकी खजूरें दूसरे नमाजियों में तक्सीम फ्रमा दीं। हजरत अली रत
35448 तआला के है 8008 गई और आपने देखा के जूबान का
जायका और शीर है, ठीक आपकी आर
खुली आप फौरन मस्जिद में पहुँचे। आपने दल कि ताक आर्य
324 2422 48३/९६ अन्ह नमाज पढ़ा रहे हैं, आप जमाअत में #
५ बाद हजरत उमर त्त |
मस्जिद की दीवार से तकिया लगा कर 48९३७ 4४४ अर ((॥|

को ख़्वाब में हुजर को देखा था। थोड़ी कटा कक खजूर ष
& । थोड़ी देर के बाद एक औरत भी सै *.

9९९06 099 (थ्वा]5८शाशश’

सच्ची हिकायात 73 |
एक तबाक्‌ लेकर आ गईं और फारूके आजम रजी करी तल
की खिदमत में पेश कर दिया। हजरत उमर ने भी इस तबाक से एक खजूर
उठाई और हजूरत अली रजी अल्लाहों तआला अन्ह को दे दी और बाकी
सब खजूरें दूसरे नमाजियों में बाँट दीं, हजरत अली रजी अल्लाहो अन्ह ने
हजूरत उमर रजी अल्लाहो अन्ह से कहा ऐ अमीर-उल-मोमिनीन! एक खजूर
मुझे भी दे देते तो क्या बात थी हजरत उमर रजी अल्लाहो तआला अन्ह
ने फरमाया: ऐ अली अल-मुर्तजा! अगर रात रसूल अल्लाह सल-लल्लाहो
तआला अलेह व सल्‍लम आपको दूसरी खजूर इनायत फ्रमाते तो उस वक्त
मैं भी आपको दूसरी खजूर दे देता जब सरकार ने ना दी तो मैं कैसे दूं?

हजरत अली रजी अल्लाहो त्तआला अन्ह बोले पऐे उमर! ये ख्वाब का
बाकेया आपको केसे मालूम हो गया? हजरत उमर रजी अल्लाहो तआला
अन्ह ने फ्रमाया ऐ अली! बन्दा-ए-मोमिन नूरे ईमान से सब कुछ देख लेता
है। ( नुजह्त-उल-मजालिस सफ़्ा 49, जिल्द 2)

सबक :- जिस मुसल्ले पर हजरत अली रजी अल्लाहो तआला अन्ह
ने हुजर॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम को ख़्वाब में नमाज पढ़ाते
देखा उसी मुसल्ले पर हजरत फारूके आजम को जागते में नमाज पढ़ाते देख
लिया, गोया फारूके आजूम हुज॒र॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम के
सच्चे जानशीन हैं और ये भी मालूम हुआ के मोमिन की नजर से कोई बात
छुपी नहीं रहती फिर जो बारगाहे ईमान हुजर॒ सल-लललाहो तआला अलेह
व सल्लम के मुतअल्लिक यूं कहे के उनको दीवार के पीछे की भी खबर ना
थी किस कद्र बेखबर और बे इल्म है।

हिकायत नम्बर (5) फेसला

हुजर सल-लल्लाहों तआला अलेह व सल्लम के जुमाने में एक यहूदी
और एक मुनाफिक्‌ में किसी बात पर झगड़ा पैदा हो गया, यहूदी चाहता
था के जिस तरह भी हो मैं उसे हजरत मोहम्मद मुसतफा सल-लल्लाहो
अलेह व सल्‍लम की खिदमत में ले चलूं चुनाँचे वो कोशिश कक उसे हुजूर
सल-लल्लाहो त्तआला अलेह व सलल्‍लम की बारगाह अदालतत में ले पा आया
और हुजूर ने वाकेयात सुनकर फैसला यहूदी के हक में दे दिया। वो मुनाफिक
यहूदी से कहने लगा के मैं तो उमर के पास चलूंगा और उनका फैसला मंजूर
करूंगा, यहूदी बोला, अजब उल्टे आदमी हो, कोई बड़ी अदालत से होकर
छोटी अदालत में भी जाता है? जब तुम्हारे पैगृम्बर मोहम्मद ( सल-लल्लाहो

9९९06 99 (थ्वा5८शाशश’

| 74 हिस्सा
सस्ची हिल, फैसला दे चुके तो अब उमर के पास जाने की क्याज
है? मगर वो मुनाफिक्‌ ना माना और इस यहूदी कर हजरत पद जप
आया और हजरत उमर से फैसला तलब करने लगा, यहूदी बोला जन
पहले ये बात सुन लीजिए के हम इससे क्‌ब्ल ३४540 ( हल, भक्े ।
व सल्‍लम ) से फैसला ले आए हैं और उन्होंने फैसला मेरे हक में दिया
मगर ये शख्स इस फैसले पर मुतमईन नहीं और अब यहाँ आपके पाप भे.
पहुँचा है, हजरत उमर रजी अल्लाहो अन्ह ने ये बात सुनी तो आपने फरपाय
अच्छा ठहरो मैं अभी आया और अभी तुम्हारा फंसला करता हूँ, ये कहकर
आप अन्दर तशरीफ ले गए और फिर एक तलवार लेकर निकले और गम
मुनाफिक की गर्दन पर ये कहते हुए मारी के, “जो हुज्‌र का फैसला ना पर
उसका फैसला ये है।” ही
हुज॒र सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍लम तक ये बात पहुँची 7
आपने फरमाया बाकुई उमर की तलवार किसी मोमिन पर नहीं उठती उम्र
बाद फिर अल्लाह तआला ने भी ये आयत नाजिल फरमा दी।
फला व रब्बिका ला योगमिननूना हत्ता यृहक्कीमूनाका एग्र
ज़जरा बेनाहुम ।
“तेरे रब की कसम! ये लोग कभी मोमिन नहीं हो सकते जब तक तु
या रसूल अल्लाह अपना हाकिम ना मानें और तेरा फैसला तसलीम ना को
(त्तरीख-डउल-खुलफा सफा 58) द
सबक्‌:- हजरत उमर रजी अल्लाह अन्ह का इस बात पर यकीव
के हुजर सल-लल्लाहो अलेह व सलल्‍लम हाकिमे आला हैं और उनका फंसत
ही मोमिन के लिए वाजिब-उल-अमल है और जो उनका फैसला तसलीए*
करे वो मुज़िम है और ये भी मालूम हुआ के हजरत उमर रजी अल्लाही #
के अमल की रसूल खुदा सल-लल्लाहो अलेह व सल्‍लम भी ताईद फ
हैं और खुद खुदा भी ताईंद फ्रमाता है।

हिकायत नम्बर/७) पानी पर हकूमंत

… मिस्र का दरयाए नील हर साल खुश्क हो जाता था और ता वर्क
कुंवारी खूबसूरत लड़की की भेंट ना ले लेता, इसी तरह खुश्क रहेंगी
जारी ना होता था हत्ता के हजरत उमर रजी अल्लाह अन्ह के अहेदे आई
में मित्र फतह हुआ और हजरत उमरो व बिन अलआस रजी अल्लाह मै
वहाँ के गवरनर मुक्रर हुए, कुछ असे के बाद हजरत उमरो बिन अलर्ओ

9९९06 99 (थ्वा5८शाशश’

हिआा।काई ।75
के दरया खुश्क हो गया है आपने लोगों से दरवाफ़्त किन रे
6? शा इज तह छुक हो गात हमे किस के बाप
इसी तरह खुश्क॑ हो जाता है और जब तक हम एक कुंबारी हाँ जनाब!
भेंट ना चढ़ायें ये जारी नहीं होता, गवरनर 2 कप लड़की
ब साल एक जे गुनाह लड़की का ना हक्‌ कत्ल व खून इस्लाम पा
मगर वही ३34 0कीलआ ‘हदा को क्‍या मंजूर है और फिर आपने उसी
धरवत एक चिड्डी मदीना मुनव्वरह में हजरत उमर रज़ी अल्लाहो अच्ह की
लिखी जिस में दरया के खुश्क हो जाने और हर साल तरफ्‌

लएक कुंवारी
का मुफस्सिल वाकेया लिखा। उनका ये खत जब बजा डक
ज़ी अल्लाहो अन्ह को खिंदमत में पहुँचा और आपने कैफियत मालूम की

तो उसी वक्त आपने एक खत दरया के नाम और एक गवरनर साहब के नाम
हहरीर फरमाया, जो खत दरया के नाम था उसका मजूमून ये था:
मिन अब्दिल्लाही उमरा बिन अलखत्ताब इला नीली मिच्च अम्मा
बअदा इन कुनता तजरी बिअमरिल्लाही फड्नन्रा नस्अलू इज्राअका
पिनिल्‍लाही बड़ कुन्ता तजरी सिन द्वॉदिका फला हाजता लगा बिका।
“ये खत अल्लाह के बन्दे उमर बिन खृत्ताब की तरफ से दरयाए नील के
नाम है, ऐ दरया! अगर तू खुदा के हुक्म से बहता था तो हम अब भी खुदा
ही से तेरी जारी होना माँगते हैं और अगर तू खुद अपनी मर्जी से बहता है
और अपनी ही मर्जी से रूक जाता है तो हमें तेरी कोई परवाह और जरूरत
नहीं है।” ह
फिर हजरत उमर रजी अल्लाहो अन्ह ने गवरनर मिस्र के नाम ये हुक्म
नाप्रा लिखा के बजाए किसी लड़की के मेरा ये ख़त दरया के अन्दर खुएक
रेत में जाकर डाल देना,
ओमर-उल-मोमिनीन का ये अनोखा इर्शाद सुनकर सारे मिस्र में धूम
भच गई, लाखों आदमी ये मंजर देखने को दरया पर जमा हो गए, मजमओ
‘कसीर के साथ गवरनर मिस्र भी हजरत फारूक का खत लेकर दरया ०.
पहुँचे और फिर दरथा के अन्दर जाकर फारूके आजम का हुक्म नामा दरया
को पहुँचा कर वहाँ से बाहर चले आए, चन्द लाहों के बाद दरयाए नील
खुद ब खुद इस जोर व शोर से जारी हुआ के कभी भेंट लेकर भी ऐसा जारी
ना हुआ था और हर साल से इस साल छः गज पानी ज़्यादा ऊचा आया
फिर इस दिन से ऐसा जारी हुआ के आज तक बन्द होने का नाम ना लिया ।
(तारीखु-ठल-खुलफा, सफा 90)

9९९06 99 (थ्वा]5८शाशश’

सच्ची हिकायात 476 क्‍ हिस्सा
सबकः- फारूक्े आजुम रजी अल्लाहो अन्ह खुदा व मुस्तफा ४
सच्चे ताबअंदार थे और कपाल ड्त्तिबा का ये नतीजा था के दरया के
आपके फरमाँबरदार थे और आपकी हकूमत पानी पर भी जारी थी और कर
आज हम भी हैं के खुदा और रसूल से मुंह मोड़ लिया जिसको पादाश मे
पानी सैलाब की शक्ल में हमें हलाक कर रहा है।

हिकायत नम्बर (52) फकौर सिफ्त बादशाह |

बज़चमहर ने हजरत उमर फारूक रजी अल्लाहो अन्ह की खिदमत।
अपना एक कासिद भेजा ताके वो देखकर आए के मुसलमानों के इतने ढ
जलील-उल-क॒द्र बादशाह की सूरत व सीरत कैसी है? चुनाँचे वो काएि
मदीना मुनव्वरह में पहुँचा तो मुसलमानों से पूछने लगा के ऐन-उल-मुल्
यानी तुम्हारा बादशाह कहाँ है? मुसलमानों ने जवाब दिया वो हमारा बादशा
नहीं बल्के हमारा अमीर है अभी अभी घर से बाहर तशरीफ ले गया है,वे
कासिद भी पीछे गया और क्या देखता है के हजरत उमर रजी अल्लाहो अर
एक जगह धूप में सो रहे हैं दुररह सर के नीचे रखा है और पैशानी नूरानी पे
ऐसा पसीना बहा है के जुमीन तर हो गईं है, कासिद ने जब ये हाल देख
तो उसके दिल पर बड़ा असर हुआ और सोचने लगा के तमाम दुनिया
बड़े बड़े बादशाह जिसकी हैबत से लरजृह बरइंदाम हैं तअज्जुब है कर
इस फकीराना सिफ्त पर है फिर अर्ज करने लगा, ऐ अमीर-उल-मोमिनी
आपने अदल किया उस वजह से बे खटके सोए, और हमारा बादरशा
जुल्म करता है इसलिए ख़्वाह-म-ख़्वाह हरासाँ रहता है, मैं गवाही वी
हूँ के तुम्हारा दीन सच्चा है अगर मैं कासिद बन कर ना आया सा क्‍
अभी मुसलमान हो जाता मगर अब मैं फिर हाजिर होकर मुसलमान हाँ.
( कीमियाए सआदत, सफा 267 ) है
सबक्‌:- फारूके आजम रजी अल्लाहो अन्ह बावजूद इतनी ब
बुलंद शान के अपना मिजाज जाहिदाना और फकीराना रखते थे औँ’
अल्लाह वालों को यही सीरत होती है।

हिकायत नम्बर(७) मुकृहस नकाब पोश

मदीना मुनव्वरह का मुकृहस व मुतहर शहर रहमत है और फाह

आजम उमर बिन अलखुृत्ताब रजी अल्लाह अन्ह मसनद नशीन खिलाफ
सरे अनवर पर खिलाफत नंबव्बी का ताज सज रहा है और हर तरफ अ

9९३९6 99 (थ्वा5८शाशश’

28 ५. को डेंकां बज रहा है, आधी रात का वक्त है, दरया हबीब के खूश

 

 

अंसीब बांशिन्दे इक घरों में इसत्राहत फ्रमां हैं इस आधी रात के
ंबत इस पाक शहर में एक नकाब पोश अपने एक साथी के हमराह शहर
दे है और हर गली

न अर्वकर लगा रहा रहरग कूचे और एक एक मकान को अगौर
देखता हुआ जा रहा है अचानक उसने एक मकान से धुंदली सी रोशनी

देखी, नकाब पोश वहाँ रूक गया और साथी से मुखातिब होकर
कहने लगा;- १) रा
नकाब पक तुम हज हे मकान से रोशनी आश्कार है और मेरें
ख़बाल में साहबे खाना भा बंदार हैं।

. साथीः हाँ हुजर ऐसा ही है और सुनिए तो बच्चों के रोने की भी आवाजे
आ रही है और हक ये गालिबन बच्चों की माँ है जो उन्हें समझा रही है
और चुप करा रही है।
._नकाब पोशः खामोश रह कर सुनो और गौर करो, ये किस्सा क्‍या है?
चुनाँचे वो नकाब पोश और उसका साथी हमातन गोश होकर मकान की
आवाज सुनने लगे और उन्होने सुना के मकान के अन्दर बच्चों और उनकी .
माँ में ये गुफ्तगू हो रही है। .

एक बच्चा: अम्मी जान! कितना वक्‍त गुजर गया है? आधी रात होने को.
आई और अभी तक ना हंडिया पकी और मा हम ने कुछ खाया। –
दूसरा बच्चा: अम्मी! ये देख तेरा बच्चा भूक से मर रहा है, खुदारा कुछ
खाने को दो, अम्मी जान! कुछ खाने को दो! किम,
तीसरा बच्चा: ( रोते हुए) या अल्लाह! रहम फ्रमा और हमारी इस
इंडिया को खूब पका ताके हम कुछ खा सकें और अपनी जान बचा सकें।
माँ! मेरे बच्चो! घबराओ नहीं सक्न करो और खुदा पर भरोसा रखो, ये.
देखो तुम्हारे सामने ही हंडिया चढ़ा रखी है खुदा को मंजूर हो तो अभी इस
है चे कप 83003 जद, बनती हम पर गया बच्चे और
गुफ्तगू सुनकर वो नकाब पोश मकान के अन्दर पह आक;
उनकी माँ एक अजनबी नकाब पोश और उसके साथी को देखकर घबरा
रबो औरत बोली। ह हर ः 3
औरत: तुम कौन हो और मेरे मकान के अन्दर क्य हा को खातिर
पुकार जे पोशः बहन! मैं इस वक़्त अपने एक मसले से तुम्हारे बच्चों की
देपनाक, के पास से गुजर रहा था के मैंने तुम्हारी और कर रह गयों माफ
कि गुफ्तगू सुनी मेरा दिल तुम्हारी इस गुफ्तगू से तड़प कर रह…»

9०३९6 99 (थ्वा5८शाशश’

है

क्‍ ॥78.. :-: हु अच्बह
कल जय कि मालूम करने अच्द आगया है!
औरत: भई! तुम अपनी राह लो, ना जान ना पहल न पु नदनसीब का
किस्सा सुनकर हर कर 3 हक लोगे तो मेरा क्या फायदा औ,
तुम्हारा क्या नुकूसान? –
कल बहन तुम मुझे अपना दुश्मन ना समझो और ना यहाँ मे
पहुँचना बेकार जानो तुम अपना किस्सा सुनाओ और मुझे अपना हमह
करोी। | ५
सम मैं ग्रीब हूँ, गुमजदा हू और हैरान हू और इन बच्चों के लिए
बड़ी परेशान हूँ, छोड़ो इस किस्से को और मेरे जुख््मों , दिल के टाँकों को
ना उधेड़ो।
नकाब पोश: बहन मेरी इल्तिजा तुम्हें कान धरना ही होगा और असल
वाकेया जाहिर करना ही होगा।
औरत: अच्छा तो लो सुनो! मुझे अमीर-उल-मोमिनीन उमर से शिकायत
है वो हमारा अमीर है खुदा ने उसे हमारी हिफाजृत व खिदमत के लिए मसनरे
खिलाफत पर बिठाया-है मगर उसने मुझ गुरीब बेवा औरत की खबर ना रखे
दो रोज से में और मेरे यतीम बच्चे फाकृह से हैं आज ये भूक से निढाल हो
गए तो मैंने महेज उनका दिल बहलाने की खातिर अव्वल शब से इस हंडिया
* को चूलहे पर चढ़ा रखा है और हंडिया में बजुज पानी के और कुछ भी नहीँ
उनको यूंही तसल्लियाँ देते देते सुबह हो जाएगी और सुबह फिर जो खुदा को
मंजर हुआ वो होगा, अफ्सोस! के अमीर-उल-मोमिनीन को मेरे इन यतीम
और भूके बच्चों का कुछ पता नहीं।
हि हक 30२5२ में ) बहन! लेकिन उमर को क्या ख़ब
तुम इस हाल में हो? तुम ने क्‍यों उस तक पहुँच
आगद्अ गा तु स तक पहुंच कर उसे अपने हालात
औरत: वाह साहब बाह! खूलीफा-ए-बक्त को जब खुदा ने रिआया क॑
हक 20४8 ज़याल के लिए मुक्॒र॑र फ्रमाया है तो ये खलीफा का अर
! है के वो अपनी सारी रिआया के हालात से बाखबर हो, अगर
अपनी रिआया के हालात से यूंही बेखबर है तो फिर हि सिने
पर बैठने का कोई हक्‌ नहीं, आज उसने मेरे इन यतीम सम खिला,
नहीं की तो कल में इंशाअल्लाह अर इन यततीम बच्चों की ख॑ क्ष
शिकायत करूंगी। कमली वाले आका के सामने उमर .
नकाब पोश ये बात सुन कर रोने लगा और फौरन मकान से निर्क

9८०९0 9५ (.्रा$टथ्याएल

 

 

द और (पट सक बार अपनी पीठ पर मे की एक बोरी हिस्सा अव्वल
हाखिले वीक नकी कं: ँ एक बोरी उठाए हुए अन्दर
क्‍ यम अर बोरी को पीठ से उतारा झौर कपड़े झाड़े और अपने साथी
जा पोश: अलहम्दूलिल्लाह! आटे की बोरी मैं खुद उठा कर ले
साथी: हुजर मैंने अंज की थी के मैं दु
हि. कब नहीं फरमाया। बोरी उठाता हूँ मगर आपने मेरी अर्ज
नकाब पोशः इफ्लाह! ( नकाब पोश के साथी के नाम ) क्या कयामत
के दिन भी मेरा बोझ उठा लोगे? अगर नहीं तो रे हि
हो उठाना मुनासित्र था| ७७७७४ मुझी
औरत: (ये मंजूर देखकर ) भई! खुदा तुम पर हजार हजार बरकतें
नाजिल फ्रमाए तुम तो कोई फरिश्ता खूसलत इंसान हो, मैं तो अब बहुत
शर्मिंदा हू के अपना किस्सा तुम्हें सुनांकर तुम्हें नाहक्‌ कोफ्त में डाला।
नकाब पोशः इन बातों को रहने दीजिए और मुझे अपना फर्ज अदा
करने दीजिए।
नकाब पोश ने फिर बोरी से आटा निकाला, खुद ही गूंद्धा और खुद ही
आग सुलगाई, साथी का बयान है के चूलहे में फूंक मारते हुए मैंने नक्ाब
पोश की दाढ़ी से धुआँ निकलते देखा रोटियाँ भी खुद ही इस फरिश्ता
खूसलत इंसान ने पकाई और फिर उन बच्चों को खिलाईं और फिर उन रोते
हुए यतीम बच्चों को खाना खिला कर खूश तबई को बातें करके हंसाया
ओर कहा मैं चाहता हूँ के जिन आँखों से मैंने. न बच्चों को रोते हुए देखा
है उन्हीं आँखों से इन्हें हंसते हुए भी देखूं।
नकाब पोश का ये सलूक रहमत देखकर वो औरत बड़ी मुत्तास्सिर हुई
और बोली। द
औरत: ऐ नेक दिल इंसान! तुमने तो कमाल कर दिया और हम गरीबों
को खुशहाल कर दिया। द |
नकाब पोश: क्‍या वाकुई तुम मुझ पर खुश हो बहन!
. औरत: खुदा गवाह है के मैं तुम पर बड़ी खुश हं।
नकाब पोश: तो फिरं मेरी खातिर उमर का कसूर माफ कर दे बहन!
कल कयामत के दिन उसकी शिकायत क़मली वाले आका से ना करना।
औरत: मगर तुम्हें अभीर-ठल-मोमिनीन की इतनी पासदारी क्‍यों है?
: नकाब योश: तुम पहले उसे माफ कर दो फिर मैं इस पासदारी की

9९९06 9ए (थ्वा5८शाशश’

क्‍ कल वो मैंने उसे तुम्हारी खातिर माफ.कर दिया मगर
जुरूर करूंगी के खुदा उसे मसनदे

बिठाए।.
नकाब पोशः तो बहन सुनो! तुम्हारी

हे ? |
४ हम को मुंह से हटाते हुए ) इधर देखो। का ७ .]॥|
औरतः ( हैरान व शशिद्र रह कर ) ऐ अमीर-उल- खुद

( मुंतखित कंजु-उल-अमाल हिकायत-उल-सहाबा, सफ 35 )
सबक : हजरत फारूके 5 अ क 3 अल्लाहो ही मे को खिल,
हू की एक रहमत थी जिससे सब ने फायदा उठा हजरत उप.
रजी अल्लाहो अनह अल्लाह के सच्चे बन्दे और अल्लाह के बन्दों के बेहतर)
निगहबान थे। फिर जो हजूरत उमर से राजी नहीं वो गोया अल्लाह की रहफ

पर राजी नहीं।
हिकायत नम्बर (5५) फारूके आजम और एक बह

हजरत उमर रजी अल्लाहो अन्ह अपने जमानाए खिलाफत में बच्चा
अवकात रात को चौकीदार के तौर पर शहर की हिफाजत भी फरमाते थे
एक मर्तबा इसी हालत में एक मैदान में गुजर हुआ-तो देखा के एक खेमा बाहूं
का लगा हुआ है जो पहले वहाँ नहीं था उसके क्रीब पहुँचे तो देखा के एक
साहब वहाँ बैठे हैं और खेमे से कुछ कराहने की आवाज आ रही है, सलाम
करके उन साहब के पास बैठ गए और दरयाफ्त किया के तुम कौन हो
उन्होंने कहा एक मुसाफिर हूँ जंगल का रहने वाला हूँ, अमीर-उल-मोमिनी
के सामने कुछ अपनी जरूरत पेश करके मदद चाहने के वास्ते आया
दरयाफ्त फरमाया के ये खेमे से आवाज कैसे आ रही है? उन साहब ने कई
प्रियाँ जाओ अपना काम करो, आपने इसरार फ्रमाया के नहीं बता दो मे
तकलीफ की आवाज है, उन साहब ने कहा के मेरी बीवी है और विला्क
का वक्त करीब है, दर्दे जेह हो रहा है, आपने दरयाफ्त फ्रमाया के को
दूसरी औरत भी पास है? उन्होंने कहा कोई नहीं, आप वहाँ से उठे और
मकान में तशरीफ ले गए और अपनी बीवी हजरत उम्मे कुलसुम से फरमी
के एक बड़े सवाब की चीज मुकुहर से तुम्हारे लिए आई है, उन्होंने पूछा क
है, फ्रमाया एक गाँव की रहने वाली बेचारी तनहा है उसको दर्दे जे ही

9९९06 99 (थ्वा]5८शाशश’

 

 

खिलाफत से हटाए और तुम्हे जो ।

ये दुआ भी रायगों नहीं गईं |
द |

 

 

 

 

 

:! “2720 ॥6 वि जिस 80.. :: . हि
ऋरषंमॉयां के विलादत के वक्‍त ३७ 383, मैं तैयार हूं, हजरत तेल गहह
बे ले लो और एक हांडी और कुछ था और हर हक हो तेल गई

में कुलसुम गईं और आपने आग जलाकर उस हांडी में दाने
उबाले, घी डाला, इतने में विलादत से फ्रागत हो गईं, अन्दर से हजरत उम्मे
कुलसुम ने आवाज देकर अर्ज किया, अमीर-उल-मोमिनीन! अपने दोस्त
को लड़का पैदा होने को बशारत दीजिए, अमीर-उल-मोमिनीन का लफ्ज
जब उन साहब के काम में पड़ा तो वो घबराए, आपने फ्रमाया घबराने की
बात नहीं, वो हांडी खेमे के पास रख दी के उस औरत को भी कुछ खिला
दें, हजरत उम्मे कुलसुम ने उसको खिलाया उसके बाद हांडी बाहर दे दी।
हजरत उमर ने उस बहू से कहा के लो तुम भी खाओ, रात भर तुम्हारी जागने
में गुजर गई उसके बाद अहलिया को साथ लेकर तशरीफ्‌ लाए और उन
साहब से फ्रमा दिया के कल आना तुम्हारे लिए इन्तिजाम कर दिया जाएगा।
(अशहर-उल-मशाहीर , हिकायत-उल-सहाबा, सफा 62)
सबक :- क्ौम का सरदार कौम का खादिम होता है और इस हकीकत
का इजहार खलफा-ए-राशिदीन के अहेद में खूब हुआ। हजरत फारूके
आजूम रजी अल्लाहो अन्ह इतनी बड़ी बुलंद शान के बावजूद एक ग्रीब
बह की रात भी खिदमत करते हैं भला इस जुमाना में कोई बादशाह या रईस
नहीं कोई मामूली हैसियत का मालदार भी ऐसा है जो गरीबी की जरूरत में
मुसाफिर की मदद के वास्ते इस तरह बीवी को जंगल में ले जाए और खुद
चूलहा धूंक कर पकाए। मुसलमानों को अपने इन बुजूर्गों को सीरत को अपने
सामने रखना चाहिए।

हिकायत नम्बर/७) फारूके आजुम और एक बूढ़िया
हजरत उमर रजी अल्लाहो अन्ह एक मर्तबा अपनी रूअव्यत के हालात

का मुतालेआ फरमाने गएत लगा रहे थे के एक बूढ़िया औरत को अपने खेमे
में बैठे देखा। आप उसके यास पहुँचे और उससे पूछा ऐ जईफा! उमर के
मुतअल्लिक्‌ तुम्हारा क्या खयाल है? वो बोली खुदा उमर का भला ना करे,

हजरत उमर बोले ये तुम ने बद दुआ क्‍यों की, उमर से क्‍या कुसूर सरजद
हुआ है? वो बोली, उमर ने आज तक मुझ गरीब बूढ़िया की खूबर नहीं
ली और मुझे कभी कुछ नहीं दिया, हजरत उमर बोले मगर उमर को क्या

9०९06 99 (थ्वा]5८शाशश’

*%*- ₹*. पर
$।

पं …. हिस्सा
हिकायात . 482 . चो अव्यत
2 उस खेमे में इम्दाद की मुसतहिक एक जईफा रहती है। वो बोल
सुबहान अल्लाह! एक शख्स लोगों पर अमीर मुक्रर हो और फिर वो
ममलिकत के मशरिक्‌ व मगरिब से नावाकिफ हो? तअज्जुब की बात है,
ये बात सुनकर हजरत उमर रो पड़े और अपने आपको मुखातिब फरमा कर
बोले, ऐ उमर! तुझ से तो ये बूढ़िया ही दाना निकली फिर आपने इस बूढ़िया
से फ्रमाया ऐ अल्लाह की बंदी! ये तकलीफ ‘जो तुम्हें उमर से पहुँची है
तुम मेरे हाथों कितने दामों पर बेचोगी मैं चाहता हूँ के उमर की ये लगृजिष
तुम से कीमतन खरीद लूं और उमर को बचा लूं, बूढ़िया बोली भई मुझ पे
मजाक क्यों करते हो, फ्रमाया, नहीं मैं मज़ाक हरगिज्‌ नहीं करता सच कह
रहा हूँ के तुंम ये उमर से पहुँची हुई अपनी तकलीफ बेच दो मैं जो माँगोगी
उसकी कीमत दे दूंगा, बूढ़िया बोली, तो पच्चीस दीनार दे दो, ये बातें हो
रही थीं के इतने में हजरत अली रजी अल्लाहो अन्ह और हजूरत इब्ने मसऊद
रजी अल्लाहो अन्ह तशरीफ ले आए और आकर कहा “अस्सलाम अलेका
या अमीर-उल-मोमिनीन!” बूढ़िया ने जब “अमीर-उल-मोमिनीन” का
लफ्ज सुना तो बड़ी परेशान हुई अर अपना हाथ पैशानी पर रख कर बोली
गृजुब हो गया ये तो खुद ही अमीर-उल-मोमिनीन उमर है और मैंने उन्हें मुंह
पर ही क्‍या कुछ कह दिया। हजरत उमर ने बुढ़िया की ये परेशानी देखी तो
फ्रमाया, जुईफा! घबराओ मत, खुदा रहम फ्रमाए तुम बिलकुल सच्ची हो,
फिर आपने एक तहरीर लिखी जिसकी इबारत बिस्मिल्लाह के बाद ये थी के
“ये तहरीर इस अम्र के मुतअल्लिक्‌ है के उमर बिन खत्ताब ने इस जुईफा

से अपनी लगृजिश और इस जईफा की परेशानी जो उमर के अहेदे खिलाफत
से लेकर आज तक वाकओ हुई पच्चीस दीनार पर खरीद ली, अब ये बुढ़िया
कयामत के दिन अल्लाह के सामने उमर की कोई शिकायत ना करेगी अब
उमर इस लगृजिश से बरी है इस बीअ पर अली इब्ने अबी तालिब और अबी
इब्ने मसऊद गवाह हैं।” रे

ये तहरीर लिख कर बुढ़िया को पच्चीस दीनार दे दिए और इ
कतआ-ए-तहरीर को हजूरत उमर ने अपने साहबजादे को दे दिंग
और फ्रमाया, जब मैं मरूं तो मेरे कफ्त में इस तहरीर को रख देंगां
( हयात-उल-हैवान, सफा 43, जिल्द )
._ सबक्‌:- हजरत उमर रजी अल्लाहो अन्ह जो कतई जन्नती हैं उनकी
मुबारक हाल देख के अल अपनी फिक्र करनी चाहिए और सोचना चाहिए
के कल कयामत के दिंन जब हमारा आमोल नामा जाहिर हुआ तो हम

9९९06 99 (थ्वा]5८शाशश’

सच्ची हिर्की [ए.“. .. . [६83 ह द
आब देंगे? औरं आज कल दुनिया के सरबराहों को भी हि अव्वल
क्षे वो अपनी रिआया का कहाँ तक खूयाल-रखते हैं। | चाहिए

. हिकायत नम्बर॥७) नफीस हलवा

हजरत उमर फारूके आजम रजी अल्लाहो अन्ू के दौर में.
आजुरबाईजान फतह हुआ और मुसलमानों को मुखृतलिफ चीजे मिली शक
शख्स उत्बा नामी को निहायत नफीस हलवा दसतियाब हुआ जो उसने हजरत
फारूके आजम रजी अल्लाह अन्ह की खिदमत में तोहफातन भेज दिया।
हजरत फारूके आजम ने इस हलवे को देखकर और चख कर फ्रमाया,
क्या ये हलवा सबने खाया है या मेरे ही लिए आया है? लाने वाले ने कहा
हुज॒र! सिर्फ आप ही के लिए आया है, आपने उसी वक्त भेजने वाले के नाम
हस्बे जेल खुत लिखा:-

“अल्लाह के बन्दे अमीर-उल-मोमिनीन उमर की जानिब से उत्बा बिन
मरक॒द के नाम, अम्मा बअद! याद रखो के ये हलवा ना तो तुमहारी कोशिश
से हासिल हुआ और ना ही तुम्हारे माल या तुम्हारे बाप की कोशिश से हासिल
हुआ है, हम तो सिर्फ वही चीजें खायेंगे जिसे तमाम मुसलमान अपने अपने
घरों में पेट भर कर खायें।” ( फतूह-उल-बलदान, मुगृनी-उल-आजीन,
सफा 473) .. द

सबक्‌:- ये थे हमारे इसलाफ जिन्हें रिआया के हर ‘फर्द का खयाल
था और वो कोई ऐसी चीज ना खाते जो रिआया को मयस्सर ना आ सके
और वो रिआया को औलाद से भी अजीज समझते थे।

हिकायत नम्बर/७) इसकंद्रिया की फतह

इसकंद्रिया की फतह में ताखीर हुई तो फारूके आजम रजी अल्लाह
अच्ह ने उमरो बिन आस रजी अल्लाह अन्ह को लिखा क॑ तुम वहाँ हक
शायद ऐशो इशरत में मशगल हो गए हो तुम्हें चआहिए के ांचे सब
सब एक दम हमला कर दो और फतह करके ही दम लो, चुन कतिया 82423
के मुताबिक॑ किया गया तो इसकंद्रिया फतह हो गया, पहँचा
फतह की बशारत लेकर कासिद दोपहर के वक्त मदीना मी होंगे सीधा
और सोच कर के फारूके आजम इस वक्त आराम 24९ ही
अस्जद नवव्बी की तरफ चल दिया एक औरत के दरयाफ्त जा के
इसकेंद्रिंया फतह हो गया है और मैं ये मसदह पहुँचाने इसकंद्रिया

9९९06 099 (थ्वा]5८शाशश’

सच्ची हिकांबात॑ …# 484 हि हिस्सा अब्ब
द पद ने झट ये खबर फारूके आजम को पहुँचा दी हजरत फारई
आजम कासिद से मिलने बाहर तशरीफ्‌ लाने लगे के इतने में कासिद भे
पहुँच गया, हजरत फारूके आजम ने फ्रमाया तुम सीधे मेरे यास क्यों ,
चले आए? अर्ज की इस खयाल से के आपके आराम में 038: नाहो,
‘फ्रमाया तुम ने मेरी निसबत ऐसा खयाल क्यों किया अगर में दिन में आशा
की खातिर सो जाया करूं तो खिलाफत का काम कौन सर अंजाम देगा!
फिर इसके बाद इसकंद्रिया की फतह का मसदह सुनकर आप सकते में गि
पड़े। ( फतूह-उल-बलदान मुगुनी-उठल-वाजैन, सफा 44)

. सबक्‌ः- मालूम हुआ के कौम की इमारत ऐशो इशरत और ख़्वाब
गफ्लत के लिए नहीं होती बल्के उसमें बैदारो होशयार रहना पड़ता है।

हिकायत नम्बर(७) रूअय्यत और कृयामत

. हजरत उमर फारूक रजी अल्लाहो अन्ह के जुमाना-ए-खिलाफत ऐं
लोगों ने अर्ज़ किया के आप इस क्‌द्र मेहनत शाका क्‍यों उठाते हैं के ना दिन
को चैन ना रात को आराम फ्रमाते हैं, फरमाया के अगर दिन को आर
करूं तो रूअय्यत बे आराम हो और अगर रात को चैन करूं और खुदा का
जिक्र ना करू तो कृयामत में क्‍या मुंह दिखाऊंगा। ( किताब मजुकूर )

सबके:- मुसलमान हाकिम रिआया की हमदर्दी और खदा की बन्दर्ग
में मशगूल रहते हैं। हि

…_ हिकायत नम्बर७9 रोम का एलची
. (मंजम हिकायत )
खिदमत फारूक में इक एलची
येम से लाया प्यामे. कैसरी
वो मदीने में फिय ये पूछता
दो खलीफा के महल का कुछ पता.
लोग जब सुनते थे उसका ये कलाम
हंस के कहते थे के ऐ फ्रखंदा नाम
यह
* द््स ँ
है. अमीर-उल-मोमिनीन गर्चै डे गा |
पर नहीं रखता गरीबों सा थी घर ह

9०३९6 99 (थ्वा]5८शाशश’

हर तरफ करता रहा वो जलता.
करें रहा था अपने दिल से गुफ़्तंगू….
४३ जाओ 7गजुब फातह मुल्क झहाँ
है जाने रोशन को तरह हो यू नहाँ
आख़िर इक बुढ़िया ये बोली देखकर
नख़्त खुरमा को तले है बो उमर
…_ जिल हक्‌ साया में है सोया हुआ:
हे उमर है जिसका तू जोया हुआ?!
डील में था एलची गोपील तन
लेकिन उसका कांप उठा तन बदन |
दिल में कहता था इलाही क्‍या हुआ
| कंसर व किसरा को देखा बारहा
मेंने मारे बीसियों श्रोर ॑[ब पलंग
पर कभी बदला ना उस चेहरे का रंग
कांपता हैं अब तो मेरा. जोड़ जोड़
आके याँ निकली है अब सारे मरोड़
आसमानी रौब है उस शख्स का
है खुदाई भेद गदड़ी में छुपा ( मोतियों का हार तर्जुमा मसनवी
शरीफ, सफा 44) ।
सबक: जो डरे हक्‌ से हर इक उससे डरे
“ ज्स्से सब देव व परी भागें फो

हिकायत नम्बर॥७) फारूके आजम और एक चोर
( मंजम हिकायत ) |
.. चोरी करते एक दुल्दे बे हवा
अहेद में फारूकू को पकड़ा गया
. -. लाए जब उसको हुजूर दीं पनाह
| और साबित हो गया उसका गुनाह
_ उस मुजस्सिसम अदल ने फत्वा दिया
हाथ काटो है यही इसकी. सजा

9९९06 99 (थ्वा5८शाशश’

सच्ची हिकायात 486 ‘ रप्सा अब
ह सुन के ये चिल्‍ला उठा वो बे जश्ऊर के
रहम कीजिए है मिय पहला कुसूर
पास वालों ने सिफारिश की बहुत
अपवब व रहमत की सताईश की बहुत
इक ना सानी और कहा फासक्‌ ने
हद करो जारी हमारे. सामने
झूठ, बकता है ये मुझ को हैं वकरीन द
पहली इसकी ये ख़ता हराग्रिज़ नहीं!
है मिरे रब की ये सत्तारी से दूर
इस ग्रगी की है ये ग्रफ्फारी से दूर
यूं फज़ीहत अपने बन्दे को करे
और तौबा की ना दे मोहलत इसे
(मोतियों का हार, सफा 79)
सबकृ:- ये समझ बन्दा के टल जाएगा अब
चश्प पोशी बारहा करता है रब/
नाज़ आता ही नहीं जब बे हया
रूसवा करता हैं उसे फिर बरमला?

हिकायत नम्बर/७) फारूके आजम की शहादत
हजरत उमर फारूक रजी अल्लाहो अन्ह ने एक रात खत्नाब में देखा

के एक सुर्ख रंग के मुर्ग ने आपके बदन में दो तीन ठोंगें मारी हैं, आपने ये
ख़्वाब-ए-जुमओ में बयान फ्रमया, इस ख़्वाब की ये तअबीर बयान की गई
के कोई काफिर उमर को शहीद कर देगा, चुनाँचे जुमओ के रोज ये ख़्वाब
बयान किया गया और बुध के दिन सुबह की नमाज में आप जम्मी किए
गए, आपकी ये आदत थी के नमाज शुरू करने से पहले सफों को सीधा
किया करते थे जब सफें सीधी हो जाती तब अल्लाह अकबर कह कर नीया
बॉधते थे, बुध के दिन जब आपने सफें सीधी करने के बाद नीयत बाँधी तई
फिरोज नामी एक आतिश परस्त मशरिक गुलाम ने आपको दो धारी छुरी से
जख्मी कर दिया, फारूके आजम के शिकम पर जख्म आया, आपको गिंए
हक वो शादी जाके फिरोज भागा, रस्ते में जमाअत के अन्दर और भी सहार्बी
हु बाल नस लगाए आखिर एक अनसारी ने उस पर अपने कम्बल की
कर ञ्से पकड़ लिया जब उस जालिम ने जान लिया के अब मैं पकर्ड

9९९06 099 (थ्वा]58८शाशश’

 

 

हित ॥87
हीरे हम ब॒ग होगा तो वो काफिर अपने हाथ से छुती मर
४. उमर रजी अल्लाहो अन्ह ने अब्दुरहमान बिन ओफ को २ कर
(थी बाज पढ़ाने के लिए हुक्म दिया और खुद वहीं बैठ कर 8024
कम जख्मी होकर भी वहीं हाजिर रहे जब लोग नमाज से फारिंग ह

है इब्मे अब्बास ने फ्रमाया, ऐ इब्ने अब्बास! देखो तो मे से

हजरत डब्ने ड्न्म | किया
8 क्रिया है? इन अब्बास ने अर्ज किया के एक आतिश परस्त मुशरिक
प्र ने जिंसका नाम फिरोज है, हजरत उमर रजी अल्लाहो अन्ह ने ये
(कर फ्रमाया, इलाही तेरा 74050 है मेरी मौत किसी कलमा गो शख्य के
(रो नहीं हुई, आपको शदीद जूख्म आया था हत्ता के आपको जो शर्बत
लाया गया वो जख्म के रास्ते से बाहर निकल आया, लोग आपके पूछने
कै लिए आते थे, एक नोजवान आया और हाल पूछ कर लोटा तो हजरत
आर ने देखा के उसका तहबंद जमीन से लगता है, फ्रमाया इस नोजवान
हु पास 480 कस दोबारा ८258६ तो फरमाया, मियाँ!
तहबंद को ऊँचा कर अमल अल्लाह के नज॒दीक अच्छा है और
[हारा कपड़ा भी जमीन पर खराब होने से महफ्ज रहेगा। जब आपकी
हलत ज़्यादा खराब हो गई तब आपने अपने साहजादे अब्दुल्लाह से फ्रमाया
देश! तुम उम्म-उल-मोमिनीन हजूरत आयशा सिद्दीका रजी अल्लाहो अनहा
के पास जाओ और उनसे मेरा सलाम कह कर अर्ज करना के उमर ने आपसे
अल चाहां है के आप अपने हुजरह में हुजुर सल-लल्लाहो अलेह व सल्‍लम
पैरों में दफ़्न होने की इजाजत फ्रमायें चुनाँचे हजरत अब्दुल्लाह रजी
भल्लाहो अन्ह हजरत आयशा सिद्दीका रजी अल्लाहो अनहा के पास आए,
है हैं के उम्प-उल-मोमिनीन भी हजुरत उमर के गृम में रो रही
बा अब्दुल्लाह ने हजरत उमर का सलाम व पैगाम अर्ज किया तो
| ३३08६ ने फ्रमाया के ये जगह खास मैं अपने लिए रखी थी मगर
के. “न से उमर की जान को ज़्यादा पसंद करती हूँ और इजाजत देती

शौक से इ्स में ६ जब हजरत
फाॉ३. मुबारक दफ्न किए जाएं जब हज अब्दुल्लाह
से मलिक कक को उनका इजाज दे देना

 

 

 

 

वापस आए और हजूरत उमर
बह नर उमर ने फ्रमाया अलहम्दूलिल्लाह इजाजूत मिल गई मगर
े र फिर गुम एक काम करना जिस वक्‍त मैं मर जाऊँ मेरे जनाजे को.तैयार
ता और हजरत आयशा सिद्दीका रजी अल्लाहो अनहा के सामने ले 4
जा ये कहना के इस ववबत उमर का जनाजा हाजिर है और आपस

9८०९0 0५ (थ्ा$८क्लावाट’

देनां मुझे अंदेशा है के शायद कुछ मेरे लिहाज से इजाजत दी हो इसलिएक क्‍
‘वफात फिंर इंजाजत ले लेना और फिर फ्रमाया बेटां! मेरा सर तकिंये सेहत
कर जुमीन पर डाल दे ताके मैं अपना सर खुदा के सामने जमीन पर डाल

रह ताके मेरा रब सुझ पर रहंस करमाए. ऐ बेटा मैं मर जाऊँ तो मेरी ओर
बन्द कर देना और मेरे कफन में मियाना रवी करना, इसराफं ना करना क्योंके
मैं अगर खुदा के नजदीक कुछ अच्छा ठहरूंगा तो मुझे दुनिया के कफन:
बहुत बेहतर कफन मिल जाएगा और अगर मैं बुरा करार दिया गया तो पे
भी मेरें पोस ना रहेगा, बेटा! अगर सारे जहान की दौलत और
वकृत मेरे पास होता तो मैं उसे कृयामत के दिन की घबराहट से निजात पाने
“के लिए खैरात कर देता, ये सुनकर हजुरत इब्मे अब्बास रजी अल्लाहो अर
ने फरमाया के कुसम अल्लाह की मैं तो आपके मुतअल्लिक्‌ ये यकीन
हू के आप तो बराए नाम ही कयामत की होलनाक चीजें देखेंगे क्‍्योंके आ।
_अमीर-उल-मोमिनीन हैं, अमीन-उल-मोमिनीन हैं » सय्यद-उल-मोमिनीन
हैं, आप किताब उल्लाह से और निहायत इंसाफ से फैसला करने वाले हैं
हजरत उमर रजी अल्लाहो अन्ह को हजरत इब्ने अब्बास की ये तकरीर बह
पसंद आई और सख्त तकलीफ के बावजूद जोश व शौक में उठ कर बैह
गए और फ्रमाया ऐ इब्ने अब्बास! क्या तू इन बातों की शहादत कयामत के
दिन अल्लाह के सामने देगा? हजरत इब्मे अब्बास ने फ्रमाया, हाँ दूंगा, ये
बसीयतें पर. को इंतमिनान हुआ, उसके बाद बहुत सी नसीहतें औ
वसीयतें फ्रमाई और इन्तिकाल फरमाया। उन्ना लिल्लाही ४
पराजिऊन/फिर आपके जनाजे को तैयार के है 3048”
५. आर करके हजरत आयशा सिद्दीका खी

अनहा
बुलंद अर्ज विज शरीफ के सामने लाकर रखा गया और ब आवान
और अब फिर आपसे अल ! ये जनाजा उमर का हाजिर
वन किया जाए। हजरत कप… के अगर हुक्म हो तो हुजाह शर

“मोमिनीन रोती थीं और फरंमाती

लगा सारे मदीना में १8 इन्तिकाल हुआ उस दिन सूरज को ही
‘ियाह होना एक मअरका कया/… “फे लोगों का रोना, इधर सूरत *
माँओं से पूछते थे ऐ भा कया आज जग नजर आता था। मदीने के २ हे
अमीर-उल- मोमिनीन इंकार ? माँयें करत॑ ।

‘नेनि उमर का इन्तिकाल हुआ है। कहती थीं के

9८०९0 09५ (थ्ा$८क्लावाट’

# हिकायाति . |893
## ६ अजू वफात हजूरत अब्बास रजी अल्लाहो अच् ने हिस्सा अच्बल
क्‍ के ऐ अमीर-उल-मोमिनीन! क्‍या मामला _ पक ख्वाब
और पूछा “मैंने अपने क्या मामला हुआ?
गत रब्बी रहीमन “मैंने अपने रब को बड़ा _ अरमाया।
पएत-ढल-सालेहीन )सफा ७) आह सब
( :- हजरत उमर रजी अल्लाहो’अन्ह का कतई होने
है क इलाही देखिये के किस तरह अल्लाह के हज. हो के
4 ब्ृशियत का इजहार फरमाते थे और नजूओ का आलय राग के
हे बात नहीं देख सकते और नोजवान को तहबंद ऊँचा बांधने की नसीहत
दे है | े ु ह्त
मालूम हुआ के मुसलमान को बहर हाल शरीअत का पाबंद और
|़रीअत के खिलाफ हर बात से वेजार रहना चाहिए और अल्लाह के हज
हत्रिर होने से डरते रहना चाहिए और ये भी मालूम हुआ के सिद्दीके हक
2 तरह फारूके आजम भी बड़े ही खुश किसमत थे के उन्हें भी के
ग्राध्व ही दफन होने को जगह पिली। ह्ट्ट

हैकायत नम्बर।७) हजरत उस्मान जलनूरैन रजी
अल्लाहो अह
हुज॒र सल

श्कप्या’ उप्मे लल्लाहो हक 5 अ को चार साहबजादियाँ थीं, जेनब,
रे गा इन्िकाल ल हो गया और जल मान अलग
रंज पहुँचा हे रत उस्मान रजी अल्लाहो अन्ह को इस बात
बरहबजारी >>… तर सल-लल्लाहो अलेह व सल्लम ने अपनी दसरी
गादी हजरत उप है व सल्‍्लम ने अपनी दूसरी
व्थान से कर दिया अर रजी अल्लाहों अनहा का भी निकाह हजुरत
कि का यके वाद हज ड ऐ उस्मान! अगर मेरी सौ लड़की भी हो
हमें देता जाऊँ इन्तिकाल होता जाए तो मैं यके बाद दीगरे तुम्हारे

। बिक: ।( मवाहिब लुदनिया, सफा ॥%, जिल्द 4)
भी की दो जटिज सिर्फ उस्मान रजी अल्लाहो अन्ह को हासिल
गत से से किसी आपके निकाह में आईं जब से दुनिया शुरू हुई
३७ जिम्के निकाह भें… जजुज हजरत उस्मान के ना कोई हुआ ना
+ नि” है। नबी की दो ब्रेटियाँ आई हों इसलिए आपका लककंंब

9९९06 99 (थ्वा5८शाशश’

सच्ची हिकायात (90 द हिस्सा भ
हिकायत नम्बर/॥७) हया उस्मान

एक दफा हुज॒र सल-लल्लाहो अलेह सब अपने दौलत कद)
लेटे हुए थे और आपकी रान मुबारक या पिंडली मुबारक से
हुआ था इतने में हजरत सिद्दीके अकबर रजी अल्लाहो अन्ह तशरीफ
आए और अन्दर आने की इजाजत माँगी, हुजूर ने इजाजत दे दी. « णे
अन्दर आए और हुजर सल-लल्लाहो अलेह व सलल्‍लम उसी तरह बा
लेटे रहे और रान मुबारक या पिंडली मुबारक से कपड़ा बदस्तूर बा
और आप गुफ्तगू फ्रमाते रहे फिर हजरत उमर रजी अल्लाहो अनु भरे
आ गए और अन्दर आने की इजाजूत माँगी, हुजूर ने उन्हें भी इजाजत
दी और वो भी अन्दर आ गए और हुजूर फिर भी बदस्तूर लेटे रहे औ
रान या पिंडली मुबारक से कपड़ा मुबारक बदस्तूर हटा रहा और आए
गुफ्तगू फ्रमाते रहे, फिर हजरत उस्मान रजी अल्लाहो अन्ह भी आग
और आपने अन्दर आने की इजाजत माँगी तो हुजर सल-लल्लाहो अल्ले
व सल्‍लम फौरन उठ बैठे और अपना कपड़ा बराबर फ्रमाते हुए, ण
पिंडली मुबारक को ढांप लिया और फिर हजरत उस्मान को अन्दर आगे
की इजाजत दी, हजरत सिद्दीका रजी अल्लाहो अनहा फरमाती हैं जब
वो लोग चले गए तो मैंने हुज॒र से दरयाफुत किया, या रसूल अल्लाह!
ये क्या बात के सिद्दके अकबर आए तो आप बदस्तूर लेटे रहे, फारुके
आजूम आए तो भी बदस्तूर लेटे रहे मगर जब उस्मान आए तो आप फौस
उठ बैठे और कपड़ा बराबर फरमा लिया। कि
हुजर सल-लल्लाहो अलेह व सलल्‍्लम ने फ्रमाया ऐ आयशा! मैं हैं
शख्स से हया क्‍यों ना करूं जिससे फरिश्ते भी हया करते हैं। ( मिश्की.
शरीफ, सफा 553 ) ।
सबक्‌:- हजरत उस्मान रजी अल्लाहो अन्ह की ये शान है के फिर
और खुदा का रसूल भी उनसे हवा फ्रमाता है फिर जो शख्स हजरत की
का अन्ह की जात वाला में बेअदबी और गुस्ताखी करे किर्स *
या है।

हिकायत नम्बर/७) उस्मान गनी सखावत का धनी

हर जंगे तबूक के मौके पर हुजर सल-लल्लाहो अलेह व सल्लम मुर् डी
! अल्लाह को राह में खर्च करने की तरगीब दे रहें थे के हजरतें

9०९06 099 (थ्वा]5८शाशश’

9] हिस्सा अव्वल
(# हित आह उठे और अर्ज किया, या रसूल अल्लाह! साजो सामान
(ही आयी ऊाँट मैं हक हूँ हुजूर अलेहिस्सलाम ने फिर तरगीब दी तो
परत रात ने अर्ज किया, या रसूल अल्लाह! साजो सामान समेत दो
(अर कद्वेता हूँ, हुजूर ने फिर तरग्रीब दी तो हजरत उस्मान ने फिर अर्ज
| कर साजो सामान समेत तीन सौ ऊूँट मैं देता हूँ और फिर उन तीन
कि के अलावा हजरत उस्मान’ ने एक हजार दीनार (एक रिवायत के
पे हज॒रत उस्मान ने एक हजार ऊंट, सत्तर घोड़े और दस हजार रुपये
20 खर्च किए। ( मवाहिब लुद॒निया, सफा 772, जिल्द ) भी हुजर
पल-लल्लाहो अलेह व सलल्‍्लम के सामने पेश कर दिए, हुज॒र॒ सल-लल्लाहो
व सललम ने हजरत उस्मान की ये सखावत देखी तो हजूरत उस्मान
के पेश कर्दा दीनारों में अपना हाथ मुबारक डाल कर फ्रमाया, उस्मान के
इस नेक अमल के बाद अब इसे कोई बात जुरर ना देगी। ( मिएकात शरीफ,
प्फा 558 ) |
सबक्‌ः- हजरत उस्मान रजी अल्लाहो अन्ह बहुत बड़े गूनी थे और
फिर संखावत के धनी भी थे और रसूल के इर्शाद पर अपना सब कुछ लुटा
देने वाले थे।

हिकायत नम्बर(७) जन्नत का चश्मा

जब पुहाज़ीन मक्का मओज़्जमा से हिजरत करके मदीना मुनव्वरह में
आए तो यहाँ का पानी पसंद ना आया जो खारी था, मदीना मुनव्वरह में एक
शख्स की मिलक में चएमा था जिसका नाम रोमा था वो शख्स अपने चश्मे
जे पानी कोमतन देता था, हुजर सल-लल्लाहो अलेह व सल्लम ने उससे
या के तुम अपना ये चश्मा मेरे हाथ जन्नत के चश्मे के अवज्‌ बेच दो
रा बैत का चश्मा मुझ से ले लो, उसने अर्ज किया या रसूल अल्लाह:
गा मेरे बाल बच्चों की मआश इसी से है, मुझ में ताकत नहीं, ये खबर
देकर जैस्मान रजी अल्लाह अन्ह को पहुँची तो आपने ऊ हजार रुपये नकद
शाजिर शख्स से वो चश्मा खरीद लिया और फिर हुजूर की खिंदमत में
भेष्नत का अर्ज की, या रसूल अल्लाह! जिस तरह आप उस कप को
हज सो ‘पश्मा अता फ्रमाते थे अगर मैं ये चश्मा उससे खरीद लूं तो क्या
गेेक. अप का चश्मा मुझे दे देंगे? आपने फ्रमाया हाँ दे दूँगा, अर्जु को
(वैबरानी …. जेरीद लिया है और मुसलमानों पर मैं उसे वकफ करता है!
शरीफ, अलअमन व अला, स227 मे

9९९06 99 (थ्वा॥5८शाशश’

संच्ची:हिकायात . जैकेट… हिस्सा न है
हिकांयत नम्बरं/& मुबारंक हाथ.
एक मर्तबा हुज॒र सल॑-लल्लाहो अलेह व सल्लम बैत-

की जिंयारंत के लिए बकस्दे उमरा मक्का मओज़्जमा को रत

‘सहाबा-ए-इक्राम भी साथ थे, रास्तें में एक मुकामे हुदैबिया पर ठ्हरे ष््‌
हजरत उस्मान रजी अल्लाहो अन्ह को क्रैश मक्का के पास मक्का मओज़ा
भेजा और फ्रमाया, जाकर उनसे कहना के हमारा इरादा किसी जंग ।
नहीं है, हम सिर्फ जियारत बैत-उललाह के लिए आए हैं और जो हि
मक्का मओज्जूमा में हैं उनसे कहना के घबराओ मत, मक्का म ओज्ञण
अंनक्रीब फतह हो जाएगा चुनाँचे हजूरत उस्मान रजी अल्लाहो अन् पैगाके
खुदा सल-लल्लाहो अलेह व सल्‍लम के पयामबर बनकर मक्का मओज़्जा
पहुँचे और क्रैश मक्का को इशदि नबव्वी सुनाया, क्रैश मक्का ने जबाब
दिया के इस साल तो हम मोहम्मद ( सल-लल्लाहो अलेह व सल्लम ) के
मक्का में ना आने देंगे और हजरत उस्मान से कहा के अगर आप कअबा का
तवाफ कंरना चाहें तो शौक से कर लें, हजरत उस्मान ने जवाब दिया, ऐप्
नहीं हो सकता के मैं बगैर रसूले करीम सल-लल्लाहो अलेह व सल्लप के
तवाफ करूँ और फिर वहाँ से उठकर मक्का के जुईफ मुसलमानों के पा
पहुँचे और उनको मक्का की फतह की बशारत सुनाई। इधर मुकाम हुदैबिय
में सहाबा इक्राम ने हजरत उस्मान रजी अल्लाहो अन्ह के मुतअल्लिक कहा
के उस्मान बड़े खुशक्सिमत हैं जो कअबा मओज़्जमा पहुँच गए हैं और
बैत-उल्लाह के तवाफ से मुर्शफ हो गए हैं। हुजर॒ सल-लल्लाहो अलेह व
सल्लम ने फ्रमाया के उस्मान बगैर मेरे कभी तवाफ ना करेंगे।

कर फिरं जो हजरत उस्मान रजी अल्लाहो अन्ह को वापस आने में कुछ दे
हुई तो आपके मुतअल्लिक्‌ ये बात मश्हूर हो गई के क्रैश मक्का ने हीं
उस्मान को शहीद कर दिया है, इस बात से मुसलमानों में जोश पैदा हो गे
और. हुज्रं सल-लल्लाहो अलेह व सलल्‍लम ने सहाबा-ए-इक्राम से में चूंे
के मुकाबले में जिहाद में साबित कदम रहने की बैत ली। इस हक
हजूरत उस्मान रज़ी अल्लाहो अन्ह मौजूद ना थे इसलिए हुज॒र सल- मे लेक
अलेह व सल्लम ने खुद अपना बायाँ हाथ अपने ही दायें हाथे बक्सो’
फ्रमाया के ये हाथ उस्मान का है और मैं उस्मान से भी बैत लेता हूँ ( त*
खुजायन-उल-इफंनि, सफा 722, तारीखू-उल-खुलफा सफा 07) हा
– सबक: हुजूर सल-लल्लहों अलेह व॑ सल्लम ने अपने मुबारवे

9०९06 099 (थ्वा]5८शाशश’

हैकायात … 493
(समान के हाथ करार दिया गोया हजरत न जे

कली हे सबत हासिल है फिर जो लोग हजरत उस्मान के पे और
(का गोया इस निसबत के पेशे नजर हुजूर ही के मुखालिफ हैः और है
तो # हुआ के हजूरत उस्मान रजी अल्लाहो अन्ह को हुज॒र इतने 5 दे
/ “आपके दिल में हुजूर का इस क॒द्र एहत्राम व बकार था के छा
और अल शी गर था के बगैर
पल-लल्लाहो अलेह व सल्‍लम के बैत-उल्लाह शरीफ के तवाफ को
कर अंदाज कर दिया और ये भी मालूम हुआ के हुज॒र सल-लल्लहो
व सल्‍लम को इस बात का इल्म था के उस्मान शहीद नहीं हुए और
गे बररियत है जभी तो आपने अपने हाथ को उनका हाथ करार देकर
जकी बत ली। ह
और ये भी मालूम हुआ के क्रआन जो हजरत उस्मान के हाथों जमा
(आइस निसबत से अल्लाह ही के हाथ से जमा हुआ क्योंके हजरत उस्मान
श़हाथ, हुजुर॒ का हाथ और हुजूर का हाथ और हुजर का हाथ अल्लाह का
| है तो हज़रत उस्मान का हाथ वसीला मुसतफा से अल्लाह का हाथ हुआ
गउस्मान के हाथ से जमा शुदा कुरआन अल्लाह के हाथ से ही जमा शुद्ा है।

हिकायत नम्बर(20 बेनजीर जियाफत

एक मर्तबा हजरत उस्मान रजी अल्लाहो अन्ह ने हुजर सल-लल्लाहो
अं वे सललम को जियाफत की और अर्ज किया, या रसूल अल्लाह!
व खाने पर अपने दोस्तों समेत तशरीफ लाएँ और माहज् तनावुल
कक हर सल-लल्लाहो अलेह व सललम ने ये दअवत कबूल फ्रमा
चले, इज पर मओ सहाबा इक्राम के हजरत उस्मान के घर तशरीफ
हुजर + ते उस्मान रजी अल्लाहो अन्ह हुज॒र के पीछे पीछे चलने लगे
ग्रीन परे कि पक एक कदम मुबारक जो उनके घर की तरफ चलते हुए

रेबाप्त फरप रहा था गिनने लगे, हुज॒र सल-लल्लाहो अलेह व सल्‍लम ने
नै 388 ऐ उस्मान! ये मेरे कृदम क्‍यों गिन रहे हो? हजरत उस्मान
के हेजर हक रसूल अल्लाह! मेरे माँ बाप आप पर कूर्बान हों मैं चाहता
पति ण्क उक एक कदम के अवज में आपकी तअजीम व तोकीर की
जे जिस गुलाम आजाद करूं, चुनाँचे हजरत उस्मान के घर तक
धन. मे कदम पड़े उसी क॒द्र गलाम हजरत उस्मान ने आजाद किए।
द भेषक “मोजजात गत, सफ़ा छ) दे
४: हेजुरत उस्मान रजी अल्लाहो अन्ह बड़े ग॒ती, और बड़

9०९06 99 (थ्वा]58८शाशश’

सच्ची हिकायात ॥9स्‍4 हिस्सा
ही सखी और हुज॒र सल-लल्लही अलेह व सल्लम के सच्चे मुह

और त्तालिब थे।
हिंकायत नम्बर/७8 मोहर को गुमशदगी

[५ ८0: 2कलिदअिकय
हजरत उस्मान रजो अल्लाहों अन्ह क पास हुज॒र सल-लल्लहा अलेह
सललम की मोहर मुबारक थी जिस पर “मोहम्मद रसूल अल्लाह” कंदह 4
एक दिन हजरत उस्मान रजी अल्लाहो,अन्ह एक कुएं पर बैठे थे के इत्तेफाब:
मोहर मवारक आपके हाथ से कुंए में गिर गईं, इस कुएं में इंसान की कफ
तक पानी था हजरत उस्मान ने हुक्म दिया के जो शख्स इस मोहर को कंगे
निकाल देगा, एक लाख रुपया उसे इनाम दूंगा, लोगा न हर चद काशिशक॑
और इस कएँ की मिठ्री तक निकाल डाली मगर मोहर ना मिली, इस मोह
की बर्कत से हजरत उस्मान के सब मतीअ थे, मगर जब वा मौहर गुम्नह्ञ
गईं तो लोगों का खयाल कछ दींगरगूँ हो गया और तरह तरह को वेबुनियाद
शिकायतें हजरत उस्मान की करने लगे और मामूली मामूली बातो पर आपका
गिरफ्त करने लगे, एक शख्स ने मदीना मुनव्वरह में कबूतर उड़ाने शुरू क
दिए, हजरत उस्मान ने उन कवूतरों के पर काट डाले अब वा कबूतर वाः
हजरत के दश्मन हो गए फिर किसी ने गलेल बनाई और गुल्लह उड़ान उड़ाने लग
आपने फरमाया के इससे किसी को तकलीफ होंगी वो गृलल तुड़वा
गलेल बाज भा आपक दश्मन हां गए, गमशदगी स इसी तरह 7॥५
बिला वजह आपके खिलाफ होने लगे। ( सीरत-उल-सालेहीन, सफा ?)
सबक:- चंके शर्फें ज़ह्दत से आपको मुशर्रफ होना था, और हम
खुबर हुज्जर न पहले ही से दे दी थी, चुनाँचे एक मर्तवा हुजूर सल-लत्लई
अलेह व सल्‍्लम मञ्े अवबक़् व उमर और उसामन के एक पहाड़ पर तर
ले गए और वो पहाड़ हिला तो हज॒र ने अपना पेर मवारक इस पहाड़ 7 हु
कर फरमाया , ठहर जा ए पहाड़! क्र नझा पर एक नत्रा वाक सिद्दीक कं
शब्ीद खड़े हैं। ( मिश्कात शरीफ , सफ़ा 554) कल
कः शद्रीद कौन शथ7 एक हजरत उम्र और टसरे हजरत उस्माने
उमर तो शद्वीद डो यए थे और अब इजरत ठस्मान की बारी थी, हे थ
सल-लल्लाडो अलेड व सल्‍लम ने एक मर्तवा ठस्मान रजी अल्लरद
के कान में भी आपके शहीद होने का सारा क्रिस्सा बयान फरमी
( नुजुद्त-ठल-पजालिस , सफ़ा 3/, जिल्द 2) इसलिए हजरत 2
इस मुकुदर शहादत की इखिदा इस मोहर की गुपशुदगी से हो गई!

9९९06 99 (थ्वा]5८शाशश’

हिकीयार्ति 935 फितने रु हिस्सा ।
४ हुक्ायत नम्बर नम्बर॥७ एक फितने बाज यहूदी

,ूललाह बिन सबा एक शरीर और मुफत्तन यहूदी था जो हजरत
के वक्त में मुनाफिक्‌ बनकर मुसलमान हो गया था, कुछ दिन का
02 में रहा मगर यहाँ उसका दाव ना चला तो फिर ये मुसाफिर शहर
हे में कछ वहाँ नुक्स फैलाया, फिर कूफे में गया मगर रे
बता में गगा। 3 क या मगर कहीं
(से उसको मौका ना मिला, जब मिस्र में आया तो अहले मिम्न को ये बात
गम दी के बताओ मोहम्मद ( सल-लल्लाहो अलेह व सल्लम ) का म्तंबा
ल्राद्ा है या ईसा ( 02; ) का? सबने कहा हमारे हजरत का मर्तबा
ल्ञाद्य है, कहा, तो बड़ा अफसोस हैं क॑ ईसा तो कयामत से पहले दुनिया में
ब्बें और काफिरों को हलाक करें और हुजूर सल-लल्लाहो अलेह व सल्‍लम
बरआवें और आपके दुश्मन जो चाहें किया करें, ये बात कब हो सकती है?
ब्बृ अहले मिस्र ने ये रजअत का मसला मान लिया, जब इस यहूदी का ये
बव चल गया तो फिर वो एक कृदम और आगे बढ़ा और कहने लगा के हर
वो का एक वसी दाता है और जनाब नबी करीम सल-लल्लाहो अलेह व
प्लम के वसी हजुरत अली करमल्लाहों वजह हैं, खिलाफत का हक बसी
का हवाई /” उस्मान ने खिलाफत का गसब कर लिया है , तुम किसी तरह
पाना चाहता के. ना था जो तो महेज मुसलमानों मे इप्ाक
रहने लगे के हम 5 चुनो चे कई लोग उसके इस दाव में भी आ गए और
के तुप पहले जो कक को किस तरह खिलाफत से अलग करें। वो बोला
गये खाज करो 3. मान की तरफ से मित्र पर मुक॒र हैं उनकी
पिग्न में और हंस ओर लोगों को अपनी तरफ रागिब करो और जगह जगह
* मुनअल्लिक. मे ख़त रवाना करो चुनाँचे जगह जगह से खत हाकिमों
क्या जाने लगा ता पता के लिखे जाने लगे और राय आम्मा को इस तरफ
हा के लोग क्षी अल के हाकिम जुल्म करते हैँ बहुत से कूफा और
ले कफा व कक साजिश में शरीक हो गए यहाँ तक के अहले मिम्र
कई चैन से है मु. रत उस्मान की तरफ लिखा के और तो हम
भा भाकफ कर दे का आपके हाकिम हम पर बड़ा जुल्म करते है, है
५… जल्म य उस्मान ने जवाब में लिखा के जिस जिस पर
५2. अमल है वो इस मर्तबा जुरूर हज करने आए, मेरे आमिल
… *केत सबके जुल्म का बदला दिलवाऊँग, हजरत उत्सात ने

9०३९6 099 (थ्वा5८शाशश’

सच्ची हिकाथात 496 चुनाँचे हिस्सा
इधर अपने सब आमिलों को तलब कर लिया चुनाँचे हुक्काम तो जक
गए मगर शिकायत करने वालो. का से कोई ना आया, हजरत उस्मान भे
हाकिमों से पूछा कके तुम जल्म क्यों करते हो? तो उन सब ने अर्ज
ये बात बिलकूल गलत और बनावटी है हम ने कभी कोई जुल्म नहीं
चुनाँचे हजरत उस्मान ने भी मालूम कर लिया के ये महेज शरारत और
है। ( सीरत-उल-सालेहीन, सफा ॥00 )

सबक्‌:- हजरत उस्मान रजी अल्लाहो अन्ह के खिलाफ ये
यहूदियों को थी और यहूदियों की ये दिली ख़्वाहिश थी के मुसलमानों ज॑
आपस में फट पड़े और हमारा दिल ठंडा हो।

हिकायत नम्बर(॥) हाकिम की तबदीली

इब्मे सबा यहूदी की साजिश से अहले मिस्र कूफा और बसरा वाले
हजरत उस्मान रजी अल्लाहो अन्ह के खिलाफ हो गए और बसरा वालों ने
एक मर्तबा बे बुनियाद शिकायात के खृत लिखे जिनका जवाब हजरत उस्म्ान
ने दिया मगर उन्होंने जब दूसरी मर्तबा बेबुनियाद शिकायतों के खृत लिखे ते
हजरत उस्मान ने फिर कोई जवाब ना दिया उसके बाद फिर इब्ने सबा यहूद|
के उक्साने पर एक हजार मिस्री और उसी कृद्र कूफी और पाँच सौ बसरा
के लोग हज के नाम से मदीना मुनव्वरह की तरफ रवाना हुए और मदन
मुनव्वरह को घेर लिया, जब हजूरत उस्मान ने देखा के लोग मेरे कत्ल के
दरपे हैं तो आप हजरत अली रजी अल्लाहो अन्ह के पास आए और ये कहा
के मेरी और तुम्हारी कराबत है लोग तुम्हारी बात मान लेंगे उन लोगों को मं
करो के मेरे खून में हाथ रंगीं ना करें और जो कुछ उनका मतलब है बा!
करें, मैं पूरा करूंगा, हजुरत अली रजी अल्लाहो अन्ह उन लोगों के पाप्त 7
30९52 से उनको रोका और दरवाफ्त फ्रमाया के तुम्हारा मतलब क्या ।
उन्होंने कहा के मिम्र से पहले हाकिम को माकुफ किया जाए और
बिन अबी बक्र को मिस्र का हाकिम बनाया जाए हजरत उस्मान ने
बात को तसलीम करके पहले हाकिम को मोकफ कर दिया और
बिन अबी बक्र को हाकिम बना दिया अहले मिस्र उस वक्त वापस चले **
( तारीख-उल-खुलफा, सफा 4॥4, सीरत-उल-सालेहीन, सफा 7)
ड्ब्ने ज््बा यह; ही व बागी बराए नाम तरफे दाराने हजुरत अली थे और दरअर ै
अल्लाह अं की साजिश का शिकार थे और खुद हजुरत अली बुर
अल्लांही अर हजरत उस्मान रजी अल्लाहो अन्ह ही के तरंफदार थे है

9९९06 99 (थ्वा5८शाशश’

शेर

 

 

सती ब्ागियों को सख्ती से बार एक हिस्सा अव्वल
गा रजी अल्लाहो का से फरमाया हक 80580 के आपने
हद इजाजूत दीजिए मैं आपकी तरफ से उन बागियों के साथ ज॑ ।
कह मगर हजरत उस्मान रजी अल्लाहो अच् ने फ्रमया के ऐ अली! मैं नही
बहता के मेरी वजह से लोगों का खून बहे। ( हयात- -जीवान, सफा 4;

जिल्द ) द
हिकायत नम्बर॥/) जअली खत

हजरत उस्मान रजी अल्लाहो अन्ह का एक रिश्तादार था जिसका नाम
परवान था, ये शख्स बड़ा निकम्मा और फितने बाज था, हजरत उस्मान ने
जब मिस्र के हाकिम को मअजूल करके मोहम्मद बिन अबी बक्र को मुक्रर
किया तो चूंके मिस्र का साबिक्‌ हाकिम मरवान का रिश्तेदार था इसलिए
से ये बात बुरी मालूम हुई और उसने एक जअली खत मिश्र के हाकिम के
नाम लिखा के ये खुत उस्मान अमीर-उल-मोमिनीन की तरफ से है जिस वक्‍त
परेहम्मद बिन अबी बक्र तुम्हारे पास आए तो उसे कत्ल कर देना, और फलाँ
फलों सात आदमियों को भी कृत्ल कर देना, खफिया तौर पर हजरत उस्मान
को मोहर लगाकर हजरत उस्मान के गूलाम को उःँट पर सवार करके मिस्र को
जाना किया, रास्ते में वो लोग और ये गुलाम बाहम मिल गए, इस गुलाम से
हे कु कहां जाते हो, कहा के मैं मिस्र जाता हूँ, पूछा क्यों जाते हो? कहा
शक मिलन का एक पैगाम बनाम हाकिम मिस्र लेकर जाता हूँ,
गेम |. किम मिस्र तो हमारे साथ है जो पैगाम है उन से कहो, कहा
ब कक जो मिस्र में है, कहा तुम्हारे पास कोई खृत है? गुलाम ने
ते तो देखा के हों” लोगों को शुबह हुआ उस गुलाम की तलाशी
उसमें लिख हजरत उस्मान की तरफ्‌ से पहले हाकिम मिस्र के नाम खत
पक फेरलाया । है के मोहम्मद बिन अबी बक्र को लोगों ने जुबरदस्ती हाकिम
कक हाथ हे है जिस वक्त ये लोग मिस्र में आवें तो मोहम्मद बिन अबी
रा * काट देना और उन सबको दायम-उल-हब्स करना, ये खृत

और मदीना हे में आग हो गए और फिर वापस मदीना मुनव्वरह में आए
पी खत से… भें लोगों को जमा किया और वो खूत सुनाया, मदीने लोग
और पृ हजरत उस्मान की खिदमत में हाजिर हुए और खत दिखाया
रहे गए हम आपने लिखवाया है? हजरत उस्मान वो खत आग

र फ्रमाया, मैंने ये खत हरगिज नहीं लिखवाया, लोग

9९९6 99 (थ्वा]5८शाशश’

सच्ची हिकायात 498 .. हिस्सा अव्यल
कहा के सवारी का ऊँट आप ही का हैं? आपने फरमाया हाँ! ऊँट तो मेरा श
है और जो उस पर गुलाम बैठ कर खत लिए जा रहा था वो गलाम भी भा
ही का है? फ्रमाया हाँ वो गुलाम मेरा ही है, ये मोहर आपकी है जो खत के
ऊपर लगी हुईं है? फ्रमाया हाँ! मोहर भी मेरी है, फिर खत आपका द्यों
कर नहीं? फरमाया वल्लाह! ना मैंने खृत लिखा ना लिखवाया, मेरी
किसी ने चुराई है और मेरी तरफ से लगाई है अब तो सबने कहा के ये ऐसे
बूढ़े हो गए हैं के उनको मोहर और खत की भी ख-र नहीं रही तो उनको
बहरहाल खिलाफत से मअजूल करना ही पड़ेगा वरना उन्हें हम कत्ल कर
देंगे। ( तारीखू-उल-खुलफा, सफा ॥॥, सीरत-उल-सालेहीन, सफा ॥00)

हिकायत नम्बर॥70) हजरत उस्मान को शहादत

इब्मे सबा यहूदी की साजिश और मरवान को शरारत से अहले बसरा को
कूफे और मिस्र वाले हजूरत उस्मान रजी अल्लाहो अन्ह के बेगुनाह खून से
हाथ रंगे बगैर ना रह सके चुनाँचे वो लोग हजारों की तअदाद में बलवा करके
आ गए उस वक्‍त सहाबा-ए-इक्राम ने अर्ज किया, या अमीर-उल-मोमिनीन!
आप हम को लड़ाई का हुक्म दीजिए ताके हम उनको मार भगायें, आपने
फरमाया के तुमको कूसम है अल्लाह की! मेरे लिए किसी मुसलमान का
एक कृतरा खून ना गिराना, मैं कूयामत के दिन खुदा को क्‍या जवाब दूंगा?
सहाबाइक्राम ने कहा आप मक्का मोअज्जूमा चले जाईये, या मुल्क शाम
चले जाईये वहाँ हजरत मुआविया रजी अल्लाहो अन्ह हैं और उनका लश्कर
है आपने फरमाया दोस्तो! मैं आखरी वक्त में अपने नबी के मजार की किस
तरह छोड़ कर चला जाऊँ? हाँ! मस्जिदे नबव्वी में चलता हूँ और उन लोगों
से पूछता हूँ के तुम बिला वजह मुझे क्यों कृत्ल करना चाहते हो।

चुनाँचे आप तशरीफ्‌ ले गए और उन बलवाईयों से खिताब फ्रमाया
के ऐ मिस्री लोगो! तुम मुझ को क्‍यों कृत्ल करते हो, मेरी उम्र थोड़ी सी
गई है मैं खुद ब खुद ही इन्तिकाल कर जाऊंगा कुसम है खुदा की जब क्रम

 

 

लोगों ने किसी नबी को नाहक्‌ क॒ृत्ल किया है तो हजारहा आदमी ड्स का
के बदले में कृतल हुए और मैं ख -उल-मुरसलीन हूँ मेरे बदले यो
अस्सी हजार कतल होंगे अगर मेरे कातिलों से बदला ना

आसमान से अल्लाह तआला पत्थर बरसा कर मेरे कातिलों को ह
देगा, देखो ऐसा ना करना, खुदा की कसम इस वक्त तो तुम मेरी मौत
हो और मेरे कत्ल होने के बाद यूं तमन्ना करोगे के काश उस्मान कीं

9०९6 099 (थ्वा5८शाशशः

हि. पक्क बरस की बराबर उप्र का होता, उस ब७५ पल
772 असा जो हुजूर सल-लल्लाहो अंलेह ले सता आहत
ऑर्किि के उस्मान के हाथ से छीन कर अपने घुटने पर रख हि

॥* लक घुटने में एक फोड़ा पैदा हुआ और

0 एल कर मर गया, अब बलवाई सेंकड़ो हो नंद ज
के गिद आकर जमा हो गए और मकान को घेर लिया और या
208 आपको कत्ल किए बगैर ना छोड़ेंगे, सबका लक
(अब हम कद आना जाना अन्दर
इद्ध किया, हजरत उस्मान को नमाज के वास्ते भी घर से ना निकलने

हक चीज खाने की भी अन्दर ना जाने दी यहाँ तक के आपका पानी
में नी
बद किया जो कुछ घर में था वो सब खृत्म हुआ फिर सारा घर प्यासा
ने लगा जब सात दिन बराबर इसी तरह गुज्रे और किसी को एक कतरा
परी का ना मिला तब हजूरत उस्मान ने अपने मकान की खिड़की से सर
(बाहर निकाला और आवाज दी के यहाँ अली हैं? किसी ने जवाब ना दिया ।॒
एम्राया सअद हैं? फिर किसी ने जवाब ना दिया, हजरत उस्मान ने फरमाया
केऐ उम्मते मोहम्मदिया! रोम फारस के बादशाह भी अगर किसी को कैद
हा हैं जरूर कैदी को दाना पानी देते हैं, ऐ लोगो! मैं तुम्हारा ऐसा गुनेहगार
‘दी हूं के मुझ को पानी भी नहीं देते। है कोई जो अल्लाह के वास्ते उस्मान
हे प् कक पानी का दे उसका बदला मैं पहला पियाला जो मुझ को
है 308 कोसर पर मिलेगा उसको दूंगा। वहाँ होजे कोसर की किस
बा पर जब हजरत अली को खबर हुई, तीन मशकें आपने
कप हक पतेलवार बाँधी और सर पर आँहज्रत सल-लल्लाहो अलेह
बा ०03] बाध कर पानी लेकर चले और लोगों से कहा के ये
रे गज हा नहीं करते जो काम तुम ने किया है पानी बन्द ना करो,
का पानी किए नाजिल हो जाएगा। मगर उन जालिमों ने मश्कों में बरछे
‘द्च्चर पर ले दिया इतने में जनाब उम्मे हबीबा उम्म-उल-मोमिनीन
‘घयाल कक के होकर और एक पानी की मश्क साथ लेकर आईं और
पेन ग्पव्या के कमबख्त मेरा तो अदब करेंगे और लोगों से कहा के
ही हं ताक ये अमानतें उस्मान के पास हैं जुरा मैं उनको पास जाना
“कहा खेल्चर अमानत ले आरऊँ, ये सुनकर बलवाई बोले के ओ झूटी!
पिया कफ मुह पर लकड़ी मारी और चार जामे का बन्द काट दिया
पेश देखकर भागा, हजरत उम्म-उल-मोमिनीन गिरते गिरते बच्चीं। ये
लोग घबराए और ये कहा, खूदा तुम्हारा नास करे अजबाजे

9९९06 99 (थ्वा5८शाशश’

ख कर

 

 

सच्ची हिकायात 200. . – 0 +सा अत्यज्
नवी के साथ भी ऐसी बुरी तरह पेश आने लगे, अहले मदीना को ॥
आया और तलवारें लेकर हजरत उस्मान से अर्ज किया के अब तो अजूबाजे
नबी की भी बेहुर्मती होने लगी ऐ उस्मान! अब ता लड़न को इजाजत दीजिए
हजरत उस्मान ने फ्रमाया, तुम मेरे लिए अपना जात जाए ना करो मुझे आग.
लड़ना मंजर होता तो अब तक हजरहा फोज हाम आए इाक से मंगवात्ा
मैं लड़ना हरगिज नहीं चाहता, सब को कसमें देकर वापस कर दिया फि.
जब कुछ दिन गुजरे और हजरत उस्मान को प्यास की बहुत सख्त तकलोफ़
हुई तो आपने फिर अपना मुंह खिड़की से बाहर निकाला और फरमाया
जानते हो जब हुज॒र॒ सल-लल्लाहो अलेह व सल्लम मदीना मुनव्बरह में

थे तो यहाँ पानी मुंसलमानों को मोल मिलता था और कुआ यहूद के कृब्ने
में था। हुजूर ने फुरमाया कोन है जो इस कुएँ को खरीद दे और इसके बदले
में जन्नत का चश्मा ले ले, मैंने वो ककुआ 35 हजार मे खूरीदकर तुम्हारे ऊप
वकक्‍फ कर दिया वही आज मैं हूँ के चालीस दिन से पानी के लिए उस्मान के
बच्चे रोते हैं और उन्हें पानी नहीं मिलता, लोगो! तुम को मालूम है के मस्जिद
नबव्ची इब्तिदा में निहायत तंग थी मैंने पच्चीस हजार रुपया देकर मकान
और जमीन देकर मस्जिदे नबव्वी में शामिल को, आज मैं ऐसा हो गया के
तुम मुझ को इसी मस्जिद में दो रकातें पढ़ने से रोकते हो, लोगो! कृयामत
के रोज क्‍या उद्ध करोगे? | ह |

पच्चास दिन तक हजरत उस्मान उसी मकान में कैद रहे, इस अर्से में
बराबर रोजे रखते रहे एक रात आपने ख़्वाब में देखा के जनाब रिसालत
मआब सल-लल्लाहो अलेह व सलल्‍लम अपने मजार शरीफ से बाहर तशरीफ
लाए और अबुबक्र और उमर रजी अल्लाहो अन्हुमा आपके साथ हैं, हजरत
उस्मान के पास आए और फ्रमाया, ऐ उस्मान! क्या तुम्हें प्यास बहुत लगी
है? तुमने चालीस दिन तक रोजा रखा, ऐ उस्मान! कल रोजा तुम हमारे 38
आकर खोलोगे, हम होजे कोसर से तुम्हारा रोजा खुलबाएंगे, ऐ उस्मान’
कल तुम शहीद किए जाओगे, और तुम्हारा खून का पहला कंतरा आय
फसायकफौीकाहुमुल्लाहू वहुवस्समी-उल-अलीम पर पड़ेगा।
ये ख्वाब देखकर हजरत उस्मान ने अपने मकान का दरवाजा ३5

दिया और फ्रमाया, आने दो आज तो मेरी दअवत हुजर होजे कोर्स
कर गए हैं, दरवाजा खोलते ही बलवाई अन्दर घुस आए, और इस कब
से के कोई दरवाजा फिर बन्द ना कर दे किवाड़ों में आग लगा द्वी, प्र
के ऊपर छप्पर पड़ा था उसको भी आग लग गईं, घर वाले घबरा गई

9९९06 099 (थ्वा]5८शाशश’

.. आहिंकीरयर्ति “0॥।
(6, न उस वक्‍त नमाज पढ़ते थे और सूरत तॉहा शुरू बह का
67, 8 मगर जनाब की नमाज या क्रिअत पढ़ने में जरा नव
रा कल धी यहाँ तक के नमाज से आप फारिग हुए ,क या
सामने रखा वही आयत निकली, एक आदमी आपके गाया,
होती, . यु आया, आपने फ्रमाया, तू मुझको जप के झरादे
वर्क जे तेरे लिए दुआ की थी को – तह. वंयोंके नवी

लेहिसललाम ललाह तुझ को उस्मान
. शंगने से बचाए क्‍या तू मेरे नबी की दुआ के खिलाफ के खून
मैं हाथ रे कल टैलाफ करेगा? इस
शर्म को तो ये बात सुनते ही पसीना आया और शर्मिंदा होकर घर से निकल
प्रा, हजरत अब्दुल्लाह बिन सलाम रजी अल्लाहो अन्ह इस मौके पर आए
और फ्रमाया, जालिमो! खबरदार! उस्मान का खून ना करो, देखो अल्लाह
तआला एक उस्मान के बदले अस्सी हजार को कत्ल करेगा, उस वक्त तक
पीना मुनव्वरह 8 280 फरिश्ते करते हैं जिस वक्‍त तुम उस्मान को
करोगे फरिश्ते चले जाएंगे, न्‍

३ जाने, जा अपना काम कर, 5:/0489: 2658 “३९४. गो
क्या ३2० न कक / हजरत उस्मान ने 2028 के तुम सब्र करो।
रान एक शख्स आया और कहने लगा, ओ
अमान तू किस दीन पर है? आपने फरमाया मैं दीने मोहम्मदी पर हूँ, उसने
५ जोर 32088 गला घोंटा, फिर एक और जालिम आपके पास आया
हक चहरे पर तमाचा मारा और तलवार आपकी जानिब उठाई
हे हक से तलवार को रोका, हाथ कट गया, <रमाया ये वो हाथ था
का लिखा करता था आज ये राहे मौला में कटे हैं, ये वो हाथ है जिसने
पे गत के हाथ पर बैत की जिस दिन से ये हाथ नबी के हाथ
भरे जल किसी गंदी चीज को इस हाथ ने छुआ था, लोगो! जरा इस हाथ
की करना, उस जालिम ने कहा लो बुलाओ अपने मददगारों
हे था मरा जो मददगार है मेरें पास है, फिर एक और जालिम आया
है आपके माथे पर और तीन छाती पर बरछी की नोक से किए
9 आन शरीफ सामने रखा था और उसे आप पढ़ रहे थे उस
आपके खून का जो पड़ा वो इस आयात पर पड़ा वो इस
8 काफी फसायकफीकाहुमुल्लाहू “ऐ उस्मान! तेरा बदला लेने को तेरा
पेहमरन है” आप अशहदअंल्लाइलाहा इल्लललाहू व अशहदअन्ना
भलियों पर ७… पे कहते हुए जमीन पर गिरे, उस जालिम ने आपकी
४ आपके औदना शुरू किया, आपकी तीन पसलियाँ दूट गईं जालिमों
जवाज का जेवर उतारा और घर का सब असबाब लूद लिया।

9९९6 099 (थ्वा]5८शाशश’

भाषत फा पड़ा

सच्ची हिकायात 202 हिस्सा 3…
( तारीख-उल-खुलफा, सफा ॥, सीरत-उल-सालेहीन, सफा 0 के
सबक: अब्दुल्लाह बिन सबा यहूदी को साजिश रंग लाई और के
मिम्र उसके मंसूबे का शिकार होकर मुसलमानों में एक अजीम हि
जुहूर का मौजिब बन गए, ये फितना फिर हजरत अली रजी अल्लाहे
के दौर में और भी ज्यादा फैला और यहूदियत मुख़्तलिफ रूपों में जाहिर
और ये भी मालूम हुआ के हजूरत उस्मान रजी अल्लाहो अन्ह को
करीम सल-लल्लाहो अलेह व सल्‍लम से अपनी शहादत का सारा किस
मालूम हो चुका था और आप राजी बरजाऐ इलाही थे इसी वास्ते आप
सहाबाइक्राम को उनसे लड़ने की इजाजत ना दी और ना ही शाम व झा
से कोई फौज मंगवाई और ये भी मालूम हुआ के इब्ने सबा यहूदी की ताली
से बलवाईयों के दिल में ना सहाबा की इज्जत रही और ना अजृवाज-उम्रब
की हुर्मत और ये भी मालूम हुआ के हजरत इमाम हुसैन रज़ी अल्लाहो अर
की शहादत शरीफा से हजरत उस्मान रजी अल्लाहो अन्ह की शहाद्वत भरी
कुछ कम नहीं बलल्‍्के उससे भी ज़्यादा दर्दनाक है करबला में जालिमों ने चर
दिन पानी बन्द किया था मगर यहाँ चालीस रोज से ज़्यादा पानी बन्द रहा,
अगर हजरत इमाम हुसैन रजी अल्लाहो अन्ह मजूलूम हैं तो हजूरत उस््मत
रजी अल्लाहो अन्ह उनसे भी बढ़कर मजूलूम हैं। रजी अल्लाहो अन्हुमा

हिकायत नम्बर/8 हजरत अली मुर्तजा करमल्लाहो वजू
हुज॒र सल-लल्लाहो अलेह व सलल्‍लम के एक चचा थे जिनका नाग
इमरान व्ुनियत अबु तालिब थी, अबु तालिब की बहुत सी औलाद थी जिन
से एक हजरत अली रजी अल्लाहो अन्ह भी थे, एक मर्तबा मक्का मोअज्यग
में केहत पड़ गया और लोग इस मुसीबत में बुरी तरह घिर गए, अबु तालिई
जो कसीर-उल-अयाल थे अपनी महदूद आमदनी और कसीर-उल-
को वजह से इस केहत से बहुत मुतास्सिर हुए, उस वक्‍त हुजर सल- ि
अलेह व सल्लम ने अपने दूसरे चाचा हजरत अब्बास से फ्रमाया के
मेरे साथ अबु तालिब के घर चलें और उनके अयाल का बार कुछ हक
करें चुनाँचे हुजर॒ सल-लल्लाहो अलेह व सल्‍लम और हजूरत अब्बास
अल्लाहो अन्ह अबु तालिब के पास पहुँचे और हजुरत अब्बास नेता
कफालत में जअफर को ले लिया और हुज॒र सल-लल्लाहो अलेह वें
ने अपनी निगरानी में हजरत अली को ले लिया और हजरत अली
अल्लांहो अन्ह अभी सात या आठ साल ही के थे के आने इंस्लॉर्म ‘

9९३९6 99 (थ्वा]58८शाशश’

हिंकायाते. “03 ह ह
मी लिया । ( नुजुहत-उल-मजालिस न्‍ सफा 243 , जिल्द कक अव्वल
(रथ, हजरत अली रजी अल्लाहो अन्ह |
सबक 5 | लोगों में हैजूर को तरबीयत में रहे
कवि के लोगों में से सबसे पहले आप ही हुजूर सल-लल्लाहो अलेह
मम पर ईमान लाए। द
हिकायत नम्बर॥9) अबु त्राब

दिन हजरत अली रजी अल्लाहो अन्ह मस्जिद की दीवार के पास
अपन घर आराम फ्रमा थे और आपकी पुएते अनवर मिट्टी से लग रही थी
के में हुजर सल-लल्लाहो अलेह व सल्लम मस्जिद में तशरीफ लाए और
दब अली को जुमीन पर लेटे हुए देख कर आपको उठाया और आपकी
प्त अनवर से अपने दस्ते अनवबर से मिट्री झाड़ते हुए फरमाया अजलस
अब जब मिट्री वाले उठ बैठ। हजूरत अली को हुजर के मुंह से “ अबुत्राब”
का लफ्ज कुछ ऐसा पसंद आया के आपको अपने असली नाम से ज़्यादा यही
नाम पसंद आने लगा और अली कहने से आप इतना खुश ना होते जितना
अब॒ुत्राब कहने से खुश होते। ( तारीख-उल-खुलफा सफा ॥॥8 )
सबक :- हजरत अली रजी अल्लाहो अन्ह का कुनयती नाम “अबु
ब्राब” हुजर सल-लल्लाहो अलेह व सल्‍लम का रखा हुआ था और इस नाम
में एक खास मोहब्बत जलवा फ्रमा है, इसीलिए हजरत अली को ये नाम
बड़ा प्यारा था के ये नाम प्यारे का रखा हुआ प्यार का नाम है।

हिकायत नम्बर/7७) हैदर कर्रार
हुजूरसल-लल्लाहो अलेह व सल्‍लम सहाबा इक्राम अंलेहिम-उर्र-रिजुवान
के मुकदस लश्कर को लेकर खैबर के यहूदियों की सरकोबी के लिए निकले
जे और डैबर पहुँच कर यहूदियों के सब किलों को महसूर किया, यहूदियों ने
बर अपने आपको किलों में महसूर पाया तो मजबूर होकर किलों के अन्दर
»ए ही मदाफअत करने लगे। यहूदियों को अपने इन किलों पर बड़ा नाज
लेकिन इस्लामी शेरों ने उनके तीरों और पत्थरों की जद में रहते हुए आगे
किला ७७… मे के साथ और भी दो एक किले फतह कर लिए फिर
वा जो पर धावा किया चुनाँचे ये किला भी दो तीन दिन में फतह हो
शे बा * इसी तरह मसअब , तलीह और सलायम नाम के किले भी फतह
अक्षी ए. ऐे खैबर की बारी थी ये किला सबसे ज्यादा मरा
तह के लिए बड़ी कोशिश की गई मगर ये किला फतह होने में ना.

9०९06 099 (थ्वा॥5८शाशश’

& 4 टः
सच्ची हिकायात गुजर गए तो हुज॒र सल-लल्लाहो अलेह व भेजे)
आया। जब कई रो । कल मैं झंडा ऐसे शख्स को दूंगा जो मसल )
फरमाया खुदा 2 2 करेगा चुनाँचे दूसरे दिन हुजर सल.- 0)
दाद कुव्वत से ‘न हजरत अली रजी अल्लाहो अन्ह को झंडा देय
5 आस तुम इस किले को फतह करो, हजरत अली रजो आह
वीर लश्कर लेकर किले खैबर की तरफ्‌ बढ़े तो किले हैक
पालिक मरहब हजरत अली के मुकाबले में 0238 ये शैर पढ़ने लग.
; कद अलियव ख़ेबरू है मरहबन
जञाकी-इस-सिलाही बतलन मुजारिंब
मतलब इन शैरों का ये है के तमाम खैबर को मालूम है के मैं मरहृ !
बो मुसललह और तजुर्बेकार बहादुर है।
हजरत अली रजी अल्लाहो अन्ह ने जब मरहब का ये शैर सुना तो आ
जवाब में ये शैर पढ़ा।
अनाअललजी. सम्पतनी . उम्मी हेदराहू
-.. कलीसी ग्राबतिन करीहिल – मज़राहू
यानी सुन ओ मरहब! “मैं वो हूँ जिसका नाम मेरी माँ ने शेर रखा है
जंगल के शेरों की तरह मुहीब है ”
इसके बाद मरहब और हजुरत अली का मुकाबला शुरू हो गया, आदि
हजरत शेरे खुदा रजी अल्लाहो अन्ह की तलवार मरहब की सप्र को काटे
हुए उसके सर पर पहुँची और सर के दो टुकड़े करके उसके बदन के #
दो टुकड़े कर दिए।
सरे खुद सर को काटा चेहरा काटा हलक से निकली
निदाऐं अलहज़ हर स्‌ ज़बान ख़लल्‍्क से निकली
मरहब खाक पर लौटने लगा, मरहब को इस हालत में देखकर
दूसरे साथियों ने किले से निकल कर मुसलमानों पर हमला कर दिंया लेकि.
बहादुराने इस्लाम ने जान पर खेल कर ऐसा धावा किया के यहूदी हिर्म |
हार के भागे और मुसलमानों ने उनका तआक्कब किया, हजुरत अली ज
अल्लाहो अन्ह किले के फाटक पर पहुँच गए और किले के दरवाजे को
28 280 से कक के पल भर में उसे उखाड़ के लानों की रा
अहतियों के कब, के अन्दर दाखिल हो गए मुसलमानों के
यलगार से यहदियों छट पे तारीय
इस्लाम, सफा 29, न है गए और किला फतह हो गया। (तं

9९९06 99 (थ्वा5८शाशश’

हिंकायां “05
(* बकः – हजरत अली रजी अल्लाहो अन्ह बहुत बढ हिस्सा अव्वल
द्ुद्ष थ और ये सब कुछ हुजूर सल-लल्लाहो अलेर बहादुर थे और

अंती में तोड़ने

में उनका तकब्बुर व गृरूर तोड़ने के लिए
क पु तौर पर बयान करना जायज है और ये थी आल कर बन
04% बालों गे हु बड़ी कर होती है जो वजनी दरवाजा कई आदी
खोलते थे हजरत अली ने इतना बड़ा दरवाजा अपने
हलक व 2 दरवाजा अपने एक हाथ से

हिकायत नम्बर/४) जिरह की चोरी

एक मर्तबा हजरत अली रजी अल्लाहो अन्ह की जिरह चोरी हो गईं
ओर एक यहूदी से बरआमद हुई हजुरत अली ने उससे फरमाया के ये तो
पेरी जिरह है, यहूदी ने कहा अगर आपकी है तो दावा कीजिए और कोई
गवाह पेश कीजिए। |
चुनाँचे हजरत अली शेरे खुदा रजी अल्लाहो अन्ह ने हजरत काजी
शरीह रजी अल्लाहो अन्ह की अदालत में दावा दायर कर दिया और हजरत
अली रजी अल्लाहो अन्ह और वो यहूदी मुदई और मुद्दा अलिया की सूरत में
अदालत में पेश हुए। काजी ने बगैर किसी रिआयत के दोनों के बयान लिए
और हजरत अली से गवाह तलब किए हजरत अली रजी अल्लाहो अन्ह ने
अपने साहबजादे इमाम हसन रजी अल्लाहो अन्ह और अपने गलाम कंबर
को गवाही के लिए पेश किया, बेटे और गलाम की गवाही हजरत अली के
नजदीक जायज थी मगर काजी साहब के नजदीक जायज ना थी, ये मसला
अपीर-उल-मोमिनीन और काजी साहब के माबेन मुख्तलिफ फीह था इसी
लिए काजी साहब ने अपने इजतिहाद पर अमल करके हजरत अली का
देवा खारिज कर दिया।
फेमरा-ए-अदालत से बाहर निकलने पर यहूदी ने हजरत अली
चहरे पर बगौर देखा तो उसे कोई रंज व मलाल नजुर’ना आया।
‘हूदी दिल में सोचने लगा के हजूरत अली ने खलीफा-ए-वक्त और
गे ह होने के बावजूद अपना दावा खारिज हाते हुए देखकर कोई
श व मनाया और आप मतलक्‌ बरहम नहीं हुए आखिर किस चीज
द्या हा बात से रोका है? उस सवाल का जवाब यहूदी के दिल ही ने
‘* इस्लाम ने, चुनाँचे यहूदी फ़ौरन हजरत अली रजी अल्लाही अब

9९९06 99 (थ्वा5८शाशश’

सच्ची हिकायात 206 हिस्सा अव्बल
के कदमों में गिर गया और अर्ज कीः

हुजर मैंने आपकी जिरह ली, आपने मेरा दिल ले लिया
अशहद-अन-लाइलाहा इल्ललाहू व अशहदअन्ना मोहम्मदुर रसूल अल्लाह
( मुगुनी-उल-वाजैन, सफा 5% )

. सबक्‌ः- इस्लाम ने अदूल व इंसाफ का दर्स दिया है और हमे
इसलाफ ने हर हाल में अदल व इंसाफ का साथ दिया है, इस्लाम की नजर
में कानून छोटे बड़े, राई रिआया और अमीर गूरीब सबके लिए बराबर है
हमारे बुज॒र्गों ने इसी अदूल व इंसाफ और इस्लामी अखलाक्‌ की तलवार से
दुनिया को फतह किया।

हिकायत नम्बर(7) अजीब फेसला

अमीर-उल-मोमिनीन हजूरत अली रजी अल्लाहो अन्ह का अहेदे
खिलाफत है एक नोजवान घबराया हुआ और ये कहता हुआ के ऐ
अहकम-उल-हाकमीन मुझ में और मेरी माँ में फैसला फ्रमा, हाजिर हुआ
और आकर अर्ज की ऐ अमीर-उल-मोमिनीन! मेरी माँ ने नो माह तक मुझे
शिकम में रखा फिर वजुओ के बाद दो साल तक मुझे दूध पिलाया जब मैं
जवान हो गया तो उसने मुझे घर से निकाल दिया और मेरी फ्रजुंदी का इंकार
कर बैठी और अब कहती है के वो पहचानती भी नहीं।

अमीर-उल-मोमिनीन! तेरी वालिदा कहाँ है?

नोजवानः फलाँ कबीले के फलाँ मकान में रहती है।

अमीर-उल-मोमिनीन:ः इस नोजवान की माँ को मेरे पास लाया जाए।

आपके. हुक्म की तामील की गई और फौरन इस औरत को उसके चार
भाईयों और चालीस मसनुई गवाहों समेत लाया गया जो इस बात की कुसम
खाते थे के ये औरत इस नोजवान को जानती भी नहीं बल्के ये नोजवान झूव
और जूालिमाना दावा कर रहा है। इसका मतलब इस बात से ये है के वो इस
औरत को उसके कबीले में जुलील करे हालाँके इस औरत का अभी निकाईँ
ही नहीं हुआ, फिर बच्चा कहाँ से जनती , ये तो इस वक्त तक पाक दामन है!

. अमीर-उल-मोमिनीन: ऐ नोजवान! तू क्या कहता है? ह
: “नोजवानः ऐ अमीर-उल-मोमिनीन! खुदा की कसम, ये मेरी माँ है। उसने

मुझे हक और 232 सह घर से निकाल दिया।

अर्मर-उल-माोमिनीन: ऐ औरत ये लड़का क्या कहता है? .: किम
“औरतः ऐ मोमिनों के सरदार! मुझे खुदा की कसम! ना मैं उसे पहचान

9९९06 99 (थ्वा]58८शाशश’

हिकलाथात “<0/ : हिस्सां अंड+
## 3 जानती हूँ के ये किन लोगों में से है, ये अत्वंल
| और कक चाहता है, मैं एक क्रेशी लड़की हूँ और आयी” म-ख्वाह
! अमीर-उल-मोमिनीन: तो इस मामले का तेरे पास गवाह आल हूँ

औरतः हाँ! ये हैं, उसके बाद फौरन चालीस गवाह 3३५5४ कि

थे बढ़े जिन्होंने कुसमें खाकर औरत के हक्‌ में गवाही दी और

को झट बतलाय मोमिनीन: तो आज मैं

अमीर-उल- : अच्छा तो आज मैं तुम्हारे दरमियान ऐसा फैसला

करूंगा जिसको मालिक अर्श बालाऐ अर्श पसंद फ्रमाएगा, क्‍यों

ऐ औरत तेरा कोई वली है? कर

औरतः क्यों नहीं, ये मेरे भाई हैं।

अपीर-उल-मोमिनीनः ( उसके भाईयों से मुखातिब होकर ) क्या मेरा
हुक्म तुम्हारे लिए और तुम्हारी बहन के लिए काबिले कबूल होगा?

पे भाई: हाँ हाँ! क्‍यों नहीं! अमीर-उल-मोमिनीन जो फरमायें हमें
मंजर है।

_ अप्रीर-उल-मोमिनीन: मैं खुदा को और हाजूरीन को गवाह करता हूँ के
मैंने बिला शक इस औरत को इस नोजवान के साथ बयाह दिया » चार सौ
नकद दरहमों के मेहर पर अपने माल से, ऐ कंबर! मेरे पास चार सौ दरहम
३ कर ने फोरन तामील की और उन दरहमों को नोजवान के हाथ में
क पा नोयिगीन ऐ नोजवान! इन दरहमों को अपनी औरत की
के बा और जाओ अब मेरे पास इस हालत में आना के तुझ में नहाने
शाद ( यानी ये मुबाशरत व गुस्ल के हाजिर होना ) नोजवान ये

बी उठा ओर दरहम औरत की गोद में डाल दिए।
बिल चिल्ला कर ) ऐ अमीर-उल-मोमिनीन! जहन्नम जहन्नम! क्या
है, मरे है यो हैं के आप मुझे मेरे फ्रजुंद से बयाह दें, बखुदा ये मेरा फ्रजूद
थे फ्रजूंद जना ने एक कमीने आदमी से मेरा उकृद कर दिया था जिससे मैंने
के मैं इसकी | फिर जब ये बालिग हुआ तो भाईयों ने मुझे ये हुक्म दिया
पेश ले जगा से इंकार कर दूं और उसे घर से निकाल दूं, बखुदा ये

‘ पी, उेल-मोमिनीन: अच्छा जाओ, अपने फ्रजृंद को घर ले जाओ।
7-४ हेजूरत अली रजी अल्लाहो अन्ह बाब मदीवत-उल-इल्म

9०९06 99 (थ्वा]5८शाशश’

सच्ची हिकायात 208 हिस्सा अव्वल
थे और ये इस पाक इल्म का नतीजा था के ऐसे ऐसे मुश्किल मसायल बह

आसानी से हल फ्रमा लेते थे और इस किस्म की मुश्किलात इल्म द्वीन ही
से हल होतीः हैं।

हिकायत नम्बर(78 आठ रोटियाँ

दो आदमी हम सफर थे एक के पास पाँच रोटियाँ थीं और दूसरे के
पास तीन, खाने का वक्त आया तो रास्ते में एक जगह दोनों ठहरे और वो
रोटियाँ इकड़ी करके दोनों मिलकर खाने को बैठे इतने में एक तीसरा शख्स
भी आ गया, उन्होंने उससे कहा आओ भई।! खाना हाजिर है इस शख्स ने ये
दअवत कुबूल कर ली और वो भी उनके साथ खाने में शरीक हो गया और
फिर तीनों ने मिलकर वो रोटियाँ खाईं, खाना खा लेने के बाद तीसरा शख्स
आठ रुपये उनको दे गया और कह गया के आपस में बॉट लेना चुनाँचे जब
वो दोनों उन आठ रुपयों को बाँटने लगे तो पाँच रोटी वाले ने कहा के मेरी
याँच रोटियाँ थीं मैं पाँच रुपये लेता हूँ और तेरी तीन थीं, तो तीन ले तीन रोटी
वाला कहने लगा, ऐसा हर गिज ना होगा बल्के आधे रुपये तेरे और आधे
मेरे, हम दोनों ने मिलकर रोटी खाई है इसलिए दोनों का हिस्सा भी बराबर
होगा, दोनों में तकरार बढ़ गई और फिर दोनों अपने इस झगड़े का फैसला
कराने हजरत मौला अली रजी अल्लाहो अन्ह की अदालत में पहुँचे , हजरत
अली रजी अल्लाहो अन्ह ने सारा किस्सा सुनकर तीन रोटी वाले से फ्रमाया
के तुम्हें अगर तीन रुपये मिलते हैं तो तीन ही ले लो, तुम्हारा फायद इसी में
है वरना अगर हिसाब करके लोगे तो तुम्हारे हिस्से में सिर्फ एक रुपया आता
है, वो हैरान होकर बोला, एक रुपया? भला ये किस तरह हो सकता है?
मुझे ये हिसाब समझा दीजिए तो मैं एक ही ले लूंगा।

हजरत अली ने फ्रमाया, अच्छा तो सुनो! तुम्हारी तीन रोटियाँ थीं और
इस तुम्हारे साथी की पाँच, कुल आठ रोटियाँ थीं और तुम खाने वाले तीन
तो उन आठ रोटियों के तीन तीन टुकड़े टुकड़े करो तो चौबीस टुकड़े बनते
हैं अब इन चोबीस टुकड़ों को तीन खाने वालों पर तकसीम करो तो आठ
आठ टुकड़े सबके हिस्से में आए यानी तीनों ने आठ आठ टुकड़े खाए। आठ
तुम ने, आठ तुम्हारे साथी और आठ तुम्हारे महमान ने, अब सुनो के तुम्हारी
तीन रोटियाँ थीं, इन तीन रोटियों के तीन तीन टुकड़े करें तो नो टुकड़े बनते
हैं और तुम्हारे साथी की पाँच रोटियाँ थीं, इन पाँच रोटियों के तीनः तीन
टुकड़े करें तो पंद्रह टुकड़े बनते हैं तो तुमने अपने नो टुकड़ों में आठ खुद

9०९06 99 (थ्वा]5८शाशश’

4 ः 4209 -.. हिस्सा
हि सिर्फ एक दुकड़ा बचा जो महमान ने खाया लिहाज
5 और तुम्हारे साथी ने अपने पंद्रह टुकड़ों में से ”
हा रूपया, तुम्ह आठ खुद
एक मात टुकड़े बचे जो महमान ने खाए, लिहाजा सात
हक उसके सात ५ औैरान गाया ४ रुपये
४ चो शख्स हैरान रह गया और मजबूरन उसे एक ही
] वा पड़ा और दिल में हल लगा के तीन ही ले लेता तो अच्छा था।
४. खलफा, सफा !
रकः _ हजरत मौला अली रजी अल्लाहो अन्ह ने जो बाब
तह हैं. बड़े हर मुश्किल मसायल को हल फ्रमाया और
कई आप मुश्किल कुशा ह। ‘

हिंकायत नम्बर/०) जंगली दरिंदा
एक शख्स ने हजरत अली रज रजी अल्लाहो अन्ह से अर्ज किया के जनाब!
एह्ादा सफर का है मगर मैं जंगली दरिंदों से डरता हूँ आपने उसे एक
शहर देकर फ्रमाया, जब तेरे नजदीक खौफनाक जानवर आए तो फौरन
# देना के ये अली बिन अबी तालिब की अंगूठी है, अजाँ बाद इस शख्स
प्र किया और इत्तेफाक से राह में एक जंगली दरिंदा उस पर हमला
बने दौ़ा, उसने पुकार कर कहा ऐ ६ दरिंदे! ये देख मेरे पास अली इब्ने अबी
हतिब की अंगूठी है, दरिंदे ने जब हजुरत अली की अंगूठी देखी तो अपना
४ आसमान को तरफ उठाया और फिर वहाँ से दौड़ता हुआ कहीं चला
पा,ये मुसाफिर जब सफर से बापस आया तो उसने ये सारा किस्सा हजरत
‘तै को सुनाया तो आपने फरमाया, उस दरिंदे ने आसमान की तरफ्‌ मुंह
गैके ये कसम खाईं थी और कहा था के मुझे रब्बे समा की कसम! मैं इस
पे बे हर हरगिजु ना रहूंगा जिसमें लोग अली इब्ने अबी तालिब
शिकायत करें। ( नुजुहत-उल-मजालिस , सफा 5, जिल्द 2)
प्‌ कक ये जुदा रजी अल्लाहो अच्ह का रौब व दबदबा जंगली शेरों

को नम्बर अप अर जिन्नाईल को तलाश
की छ… जी अल्लाहो अन्ह के पास एक मर्तबा जिब्नाईल एक

पद आन में हाज्र हुआ और आकर कहने लगा ऐ, अली!
भर कोहये ७… ऐे-इल्म हैं जूरा जिब्राईल की तलाश तो कीजिए
। रस वक़्त जिनब्नाईल कहाँ है? हजरत अली रजी अल्लाहो

9९९06 99 (थ्वा]5८शाशश’

संच्ची हिकायात 3 मी हिस्सा अब्यल
अच्ह ने पहले तो दायें बायें मान फिर, जमीन की तरफ देखा फिर ऊपर
देखा और फ्रमाया, इस वक्‍त जिब्राईल नातो आसमानों में नजर आशु
है और ना जमीन में कहीं लिहाजा मेरे खयाल में जिब्नाईल तू से है
(नुजृहत-उल-मजालिस, सफा 352)
सबक:- ये नजर है हजरत मौला अली रजी अल्लाहो अन्ह की के
मदीनंत-उल-इंल्म के दरवाजे हैं फिर जो मदीनत-उल-इल्म हैं और मौल
अली के भी मौला हैं यानी हुजूर सरवरे आलम सल-लल्लाहो अलेह ३
सललम के इल्म व नजर की वुसअत का जो इंकार करे और यूं कहे के हज
को दीवार के पीछे की भी खबर ना थी किस क॒द्र जाहिल व बेखबर है।’

हिकायत नम्बर(४) लड़के की माँ

हजरत अली रजी अल्लाहो अन्ह के जमाने में दो औरतों ने बच्चे जने
रात अंधेरी थी, एक के हाँ लड़का पैदा हुआ और एक के हाँ लड़की, दोनों
में झगड़ा इस बात का पैदा हुआ के हर एक कहती थी के लड़का मैंने जना
है, आखिर कार दोनों हजरत अली रजी अल्लाहो अन्ह के पास लाई गईं ह
एक उनमें से ये कहती थी के लड़के की माँ मैं हूँ, हजरत अली ने फ्रमाया
के तुम दोनों थोड़ा थोड़ा दूध छातियों से निकाल कर दो बर्तनों में रखो,
चुनाँचे ऐसी ही किया गया आपने दोनों दूधों को तोला एक वजनी उत्तर
फरमाया जिसका दूध वजूनी है लड़का उसी का है, ये फैसला सुनकर लोगों
ने दरयाफ्त किया के आपने ये मसला कहाँ से निकाला, फरमाया आय
लिफ्जुकरी मिस्‍्लू हाज्जिल उनसीयीनसे, इस आयत से साफ मालूम होठ
है के खुदा ने मर्द को हर चीज में फजीलत दी है हत्ता के गिजा में भी, पप्
मैंने इसी हकीकत के पेशे नजर सोचा था के लड़के की माँ का दूध जुरूर
वजनी होगा। ( नुजुहृत-उल-मजालिस, सफा 355, जिल्द 2)

सबक: इस किस्म की उक्दा कुशाई इल्मे दीन ही की बदौलत हे
सकती है और करआने पाक का सही इल्म रखने वाला करआने पाक से है!
मुश्किल का हल पा लेता है।

हिकायत नम्बर/७0 मुश्किल सवालात

– तौरात के एक आलिम ने जिसका नाम मुजिर था एक मर्तबा हज!
अली से पूछा के मेरे चन्द सवालों का जवाब दीजिए। हजरत अली ने फुरमा
पूछो क्‍या पूछते हो? उसने पूछा। । ‘

 

 

5७ – (४
है –ह

|
॥ १

9९606 99 (थ्वा]5८शाशश’

लिए का -# | अव्बल
[ ( थिंत वो कौन सा मर्द है जिसका ना बाप है ना माँ रोज
ई ना बाप है ना मा? और वो कौन सा मर्द है ॥
औहहै न नहीं और वो कौन सा पत्थर है जिसने जानवर जिसकी माँ तो
है सी औरत है 32 दिन में सिर्फ तीन घड़ियों पे बच्चा
ह। कौन से स्‍्त है जा आपस में कभी बनेंगे
३ गे दुश्मन हैं जो 84 हक दोस्त ना बेर कब
अली रजी अल्लाह अन्ह न फरमाया, जवाब जिसका
जाम आदम 200 कम और वो पे ना बाप
॥#_ *उह्वा अलेहिस्सलाम हैं और वो मर्द जिसकी माँ है ले*
मय अलेहिस्सलाम हैं और वो पत्थर जिसमे जालवर सर
हर पत्थर है जिससे हजरत सालेह अलेहिस्सलाम की ऊंटनी पैदा हुई
और वो औरत जिसने एक ही दिन में तीन घड़ियों में बच्चा जना, मरयम
हैं जिनको एक घड़ी में हमल ठहर गया और दूसरी घड़ी में
दजेह पैदा हई और 2 अब हर हजूरत 42302 54000 पैदा हो गए
और वो दोस्त जो कभी आपस में दुश्मन ना बनेंगे जिस्म और रूह हैं और
वो दुश्मन जो कभी आपस में दोस्त ना बनेंगे मौत और हयात हैं। मुजिर ने
सुनकर कहा वाकई हु अली! कक ने हि अप जवाब दिए और वाकई तुम बाब
प्रदीवत-उल-ट्रल्म हो। ( जामओ-उल-भोजजात, सफा 23) क्‍
सबक्‌:- मदीनत-उलं-ड्नल्म के,बाब के इल्म से पता चलता है के
020 सल-लल्लाहो अलेह व सल्लम में कोई ऐसी शै नहीं
नाहो।

हिकायत नम्बर(७) यहूदी की दाढ़ी

एक यहूदी की दाढ़ी बहुत मुख़्तसिर थी, ठोड़ी पर चन्द एक गिनती
के बाल थे और हजरत मौला अली रजी अल्लाहो अन्ह की दाढ़ी मुबारक
पड़ी घनी और भरी हुईं थी, एक दिन वो यहूदी हजुरत अली से कहने लगा,
ऐ अली! तुम्हारा ये दावा है के करआन में जमीअ उलूम हैं और तुम बाब
फैय ० ही तो बताओ के कुरआन में क्या तुम्हारी घनी दाढ़ी और

पुज्ञसिर दाढ़ी का भी जिक्र है? हजरत अली ने फ्रमाया? हाँ है लो सुनो!

फेरआन में आता है: – क्‍ रि ५

लबलादूत्तव्यबू यखुखूजू नवाताहू बिड्ज॒नी रब्वीही वल्‍लजा
पाला वखरूज इल्‍ला नकीदा

9९९06 99 (थ्वा]5८शाशश’

“सच्ची हिकायात .._ 272 हिस्सा अव्वल
“यानी जो अच्छी जमीन है उसका अल्लाह के हुक्म से खूब निकलता
है और जो खराब है उसमें नहीं निकलता मगर थोड़ा मुश्किल!”
तो ऐ यहूदी! वो अच्छी जमीन मेरी ठोड़ी है और खराब जूमीन तेरी ठोड़ी।
सबक्‌:- क्रआने पाक में जमीअ उलूम मौजूद हैं मगर कोई समझने
वाला होना चाहिए। ।
हिंकायत नम्बर(७) हजरत अली और इख्लिस
– (मंजम हिकायत )
कहते हैं शेरे खुदा ने एक बार
एक दुश्मन पर किया खंजर का कार
भागा ऐसा जख्म खा के पुश्त पर
की ना मारे खौफ को पीछे नज़र
कब भला मुमकिन था कर के कोर्ड़ छल
शेर को पजे से यूं जाए निकल
॥ कर तआक्कब जा गिराया खाक यरः
थे जुदा करने को सर से उसका वन
नागहाँ.. उस मुंशरिक बेअक़्ल ने
चाँद से चहरे पर धूका जहल से
मुर्तज़ा ने हाथ से खंजर को छीड़
मुंह लिया उस काफिर बे दीं से मोड़
छोड़ कर उसको हुए यक्‍सयू खड़े
ये कहा बख़्या तुझे हट जा परे
करगुजर॒थी ये खिलाफ दाबे जंग
रह गया काफिर खड़ा हैरान व दंग
दस्त बस्ता अर्ज की ऐ बा कमाल
गर इजाजत ही कर मैं इक सवाल
| मौत थी मेरी शरारत . की सज़ा
£. अफव में मुझ को बता हिकमत है क्‍या
मुस्कुरा कर वो. कली उन्‍्स व जा
यूं हुए अपनी जबाँ से दरफिशाँ
। भूझ को तुझ से थी ना जाती दुश्मनी
जो अदावत तुझ से थी लिल्‍लाह थी

9९९6 99 (थ्वा]5८शाशश’

; «जि –
# ता, उस वक़्त मैं तुझ को अफ. हिस्सा अव्वल
कक्स कहता बिल में अपने फल कर ध्5
्; इन्तेकाम उससे लिया अच्छा किया
ह हि हक हक का पाया मजो
(6 दिखता फिर खुदा को किस तरह
शेरे हक हूं हक पे है मेरा बकरी
नफ़्स हक कम ये मैं चलता नहीं
इख्लिस न का
पाहिक बे दीं मुसलमान हो गया |
मुर्तज़ा का देखकर इख्लिसे ताम
– कौपम भी उसकी हुई मोमिन तमाम
ग्रे हक से ले सबके इडख्लिास का है
यूं अदा करते हैं हक इख्लास का
(मसनवी शरीफ का तर्जमा, मोतियों का हार, सफा 78)
सबक:- हिल्य की तलवार करती है वो काम
: छोड़ती हर ग्रिज़ नहीं दुश्पन का नाम

हिकायत नम्बर/) अली अलमुर्तजा को शहादत

जिस तरह इब्मे सबा के गिरोह को संहाबा इक्राम से अदावत थी इसी

है खारजी गिरोह को अहले बैत से अदावत थी और ये दोनों 32 ही

शाप और मुसलमानों के लिए बेहद खृतरनाक साबित हुए। चुनाँचे हजरत

पे अलमुर्तजा रजी अल्लाहो अन्ह से उन खारजियों को सख्त अदावत

और एक खारजी मलऊन ने जिसका.नाम इब्मे मलजिम था हजरत अली

रन अन्ह को शहीदं कर देने का प्रोग्राम बनाया और एक एक

| क्षेमृ की ख़ास इसी नापाक्‌ मकसद के लिए जूहर में बुझाया और हा

गऔर३ रहा, हजरत अली रजी अल्लाहो का हार ले

पान खा एक रोज सुबह की नमाज पढ़ने मस्जिद को जा रहे का
पा जी ने जो रास्ते में छुपकर बैठा हुआ था, हजूरत पर हक

क्‍ पके माथे पर तलवार मारी, हजरत अली रजी अल्लाहो खत

गे कस] गरम खा कर एक नअरा मारा फुरूतू बिरव्बिल कअबती

मैं अपनी मुराद को पहुँचा” और फिर आप जुमीन पर गिर गए

9९९06 99 (थ्वा]5८शाशश’

सच्ची हिक्ायात 244 हिस्सा 3
और हुक्म फ्रमाया के मरे कातिल को पकड़ कर मेरे पास ले आओ ये हुक्म
सुनकर लोग इब्मे मलजिम खारजी को पकड़ कर ले आए। हजरत अली ने
फरमाया इस मेरे मेहमान के लिए नर्म बिस्तर बिछाओ, अच्छा खुश जायका
खाना पका कर उसे खिलाओ और उसे ठंडा पानी भी पिलाओ। जमस्म से
खून ज़्यादा निकल जाने से फिर आपको बहुत ज़्यादा जौफ लाहक्‌ हुआ
और आपको शिद्दत से प्यास लगी, घर वाले आपके लिए शर्बतं बना कर
लाए, हजरत ने फ्रमाया के पहले मेरे कातिल को < शर्बत पिलाओ, घर
वाले जब शर्बत इब्ने मलजिम के पास लाए तो वो बदबख्त बोला, में जानता
हूँ के तुमने इसमें मेरे लिए जहर घोल रखा है ये कह कर पीने से इंकार कर
दिया, हजूरत अली करमल्लाहो वजह ये बात सुनकर रोए और फ्रमाया ऐ
बद नसीब! अगर तू इस वक्त ये मेरा शर्बत पी लेता तो मैं कयामत के दिन
जामे कोसर हर गिज ना पीता जब तक पहले तुझे ना पिलाता मगर मैं क्‍या
करूं के तूने मेरे साथ रहना पसंद नहीं किया। इसके बाद आपकी हालत बहुत
नाजक हो गई और फ्रमाया, मैं देख रहा हँ के बहुत बड़ी जमात फरिश्तों की
है उनके साथ बहुत बड़े कांफले नबियों के हैं सबसे आगे सालार काफला
हुज॒र सय्यद-उल-मुरसलीन मोहम्मद रसूल अल्लाह सल-लल्लाहो अलेह व
सल्लम हैं और मुझ से फ्रमाते हैं के ऐ अली! खुश हो जाओ के अब तुम बड़े
बेचैन और राहत में बुलाए जाते हो , उसके बाद आपने कुछ वसीयतें फ्रमाईं
फिर कुछ मुश्क बतौर तबुर््ु्क निकाला और रोए, पूछा गया के ये मुश्क
कैसा है? फ्रमाया हुजर॒ सल-लल्लाहो अलेह व सलल्‍्लम के मुबारक जनाजृह
को इस मुश्क में बसाया गया था उस बकक्‍ूत थोड़ा सा मुश्क बतौर तबर्रुूक
मैंने आज के दिन के लिए रख लिया था जब मुझे गस्ल देकर कफन पहनाओ
तो ये मुश्क मेरे बदन पर लगा देना फिर अस्सलाम अलेकुम कहा, उसके
बाद कलमा शरीफ का विर्द फरमाया और अपनी जान राहे हक में कुर्बान
कर दी, ज्ञह्मा लिल्लाही ब जन्मा इलेही राजिऊकन।( सीरत-उल-सालेहीन,
सफा 4॥)

सबक्‌:- उन अल्लाह वालों की ये सीरत है के अल्लाह की राह में
जुख्म खाते हैं और कूसम खा कर फरमाते हैं के हम अपनी मुराद को पहुँचे
और अपने कातिल की खातिर व मदारात करते हैं और उन पर बड़े बड़े
मसायब व आलाम नाजिल होते हैं और वो हर हाल में खुदा की मर्जी पर
राजी रहते हैं और ये भी मालूम हुआ के उन पाक लोगों की मौत महेज एक
इन्तिकाल मकानी होती है और वो बड़े इतमिनान के साथ अस्सलाम अलेकुम

9९९06 99 (थ्वा]5८शाशश’

# और कलमा शरीफ का विद फ्रमाते हुए अपने भा अेच्चल
(# दा जाते है ,
४ क्रायत नम्बर/& नबी के चार यार
हिकायत यार
दिन हजरत जिब्नाईल एक तबाक्‌ लेकर आए, जो जन्नत के सेबों

होगा तबाक्‌ हुजर सल-लल्लहो अलेह व सल्लम के सामने
!, क्या या रसूल अल्लाह ! आप इसमें से उस शख्स को इनायत कीजिए
बा प्यारा हो, ये तबाक्‌ एक नूरानी खुबानपोश से ढका हुआ था
(ने अपना दस्ते अनवर उसमें दाखिल करके एक सेब निकाला देखते
शाह के उसकी एक जानिब लिखा हुआ है हाजिही हदयातुभ मिनल्‍्लाही
क्री बक़्निस्सिददीक “यानी ये खुदा का तोहफा है अबुबक्र के लिए”
॥( उसकी दूसरी जानिब ये इबारत लिखी हुई है मत अबगृज़ञास सिह्ढीका
हु ज़िदीकुत “यानी सिद्दीक से जुग्ज रखने वाले बेदीन है” फिर आपने
एशसेब उठाया, उसके एक तरफ्‌ तो ये लिखा था हदयातुन मिनलवहाबी
विप्ररिबनिल खुत्ताबी “यानी ये खुदाऐे बहाब का तोहफा है उमर बिन
एव के लिए” और दूसरी जानिब ये लिखा है मन अबग्रज़ा उमर फहुवा
हैं प्कृरा यानी उमर के दुश्मन का ठिकाना जहन्नम में है” जाँ बाद
क़ और सेब उठाया जिसके एक जानिब ये लिखा था हाज़िही हदयातुन
गिलहज्नानिल मन्नानिल उसमानिबनी अफ्र्फान “यानी ये खुदाए मन्नान
कान का तोहफा है उस्मान बिन अफ्फान के लिए” और दूसरी तरफ ये
तित्रा था मन अबग्रज़ा उस्माना फखसामाहू अरहमानू “यानी उस्मान
य का रहमान दुश्मन है ”। फिर हुज॒र सल-लल्लाहो अलेह व सल्‍लम

$ में से एक और सेब उठाया जिसके एक जानिब तो ये लिखा था
णृपी पक मिनल्लाहिल ग्रालिबी लिअलि्यिन्नी अबी तालिबी
शी दी खुदाऐं गालिब का तोहफा है अली इब्ने अबी तालिब के लिए”
गिलाही जानिब ये लिखा है मन अबग्॒ज़ा अलिव्यन लग बकुन
२ लत्लाहो वलिय्यन “यानी अली का दुश्मन खुदा का दोस्त नहीं”। बेहद
ना हक व सलल्‍लम ने इन इबारात को पढ़ कर अल्लाह कमल क्‍
सबक. ( नुजृहृत-उल-मजालिस , सफा %6, जिल्द 2) पक
न शैकाबार, हुजूर सल-लल्लाहो अलेह व सल्लम के ये चार यार जिन
नबी ७…) पढ़ीं बड़े मर्तबरों और दर्जों के मालिक हे 2

हि रैश्मन अल्लाह का दुश्मन है लिहाजा हर आल

9९९06 99 (थ्वा]5८शाशश’

सच्ची हिकायात 246 हिस्सा अव्वल
“चार यार” से मोहब्बत रखना लाजिम है और उनकी अद्वावत से बचना

चवाजिब वरना ईमान की खूबर नहीं।
._हिकायत नम्बर(४) पंजतन पाक

एक दिन नबी करीम सल-लल्लाहो अलेह व सलल्‍लम मदीना मुनव्वरह डे
एक दरवाजे से इस तरह बरआमद हुए के आपके दायें तरफ हजरत
बायें तरफ हजरत उमर, आगे हजरत अली और पीछे हजरत उस्मान रज्ी
अल्लाहो अनहुम थे। हुजुर सल-लल्लाहो अलेह व सल्‍्लम ने फ्रमाया सुन लो
के हम जन्नत में भी यूं हो दाखिल होंगे तो जो कोई हम में जुरा भी तफरीक
डाले उस पर खुदा का मार। ( नुजृहृत-उल-मजालिस, सफा ३2, जिल्द 2)

सबक :- हुजर के चार यार हुज॒र सल-लल्लाहो अलेह व सल्लम के
यहाँ भी साथी थे और जन्नत में भी साथी होंगे।

हिकायत नम्बर (७) रसूल अल्लाह( सण्अन्स० )

का एलाने हक्‌

एक दिन नबी करीम सल-लल्लाहो अलेह व सल्लम ने मिंबर पर
चढ़कर अव्वल तो खुदा की हम्दो सना की फिर फरमाया, अबु बक्र हुजर
के पासं आए हुजर ने उन्हें सीने से लगा लिया और दोनों आँखों के दरमियान
बोसा दिया और फिर बुलंद आवाज से फ्रमाया, ऐ मुसलमानों के गिरोह!
ये अबु बक्र सिद्दीक्‌ हैं, मुहाज़ीन व अनसार के बुजूर्ग व शेख हैं ये मेरे सच्चे
दोस्त और हमदर्द हैं, जिस वक्त लोगों ने मुझे झुटलाया उन्होंने मेरी तसदीक
की, उन्होंने जान व माल से मेरी खैर ख़्वाही की, मेरी खातिर बिलाल का
खरीदा और उसे आजाद किया तो सुन लो के उनके दुश्मन पर खुदा का
फटकार हो, खुदा ऐसे शख्स से बेजार है और मैं भी बेजार हूँ, तुम लोगों
को चाहिए के मेरा ये एलान सब को सुना दो।

फिर फरमाया, उमर कहाँ हैं? हजरत उमर बोले मैं हाजिर हूँ, फुरमार्या
मेरे पास आओ, आप हुजर के पास पहुँचे तो हुज॒ुर सल-लल्लाहो अलेह
सल्लम ने उन्हें भी सीने से लगा कर पैशानी पर बोसा दिया और फिर बेल
आवाज से फ्रमाया ऐ मुसलमानों की जमात! ये उमर बिन खृत्ताब मुहाजी।
व अनसार के शेख व बुजुर्ग हैं, यही वो हैं जिनके दिल और जुबान पर खुई
ने हक नाजिल फरमाया और जो सच्ची बात कहने से नहीं रूकते तोर
लो के जो उनका दुश्मन है खुदा और उसका रसूल उससे भी बेजार हैं और

9९९06 99 (थ्वा5८शाशश’

– है…
# हि आर हो, जाँ बाद फ्रमाया, उस्मान कहाँ हैं? बे रा
कप ् हाजिर हूँ, प्हरमाया, मेरे पास आओ, हजूरत उस्पान
हे हर तो हज ने उन्हें भी छाती से लगाया और पैशानी को से
पर्स गए रे फरमाया, ये उस्मान मुहाज़ीन व अनसार के शेख व है
हद उस हैं जिन से आसमान के फरिश्ते भी हया करते हैं, यही यो
की वो में मैंने खुदा के हुक्म से दो बेटियाँ दीं और उनद
वह 6 लकाह में मैंने खुदा के हुक्म टियाँ दीं और उनको अपना
है यथा, तो सुन लो के उनके दुश्मन पर भी खुदा की लानत!
बाद फरमाया अप हैं? 228 अली बोले या रसूल
। मैं हाजिर हूँ, फ्रमाया, मेरे घास आओ, हजूरत अली हुजर के पास
तो हर ने उे भी सीने से लगाया, पैशानी को चूमा और फिर बुलंद
आवाज से फ्रमया ऐ मुसलमानों के गिरोह! ये अली इब्ने अबी तालिब हैं,
नव अनसार के शेख व बरगजीदा हैं ये मेरे भाई और मेरे चचा के
32 और मेरे दामाद भी हैं, ये मेरे भाई गोश्त और खून हैं ये अल्लाह के
हुपनों के लिए तलवार हैं, यही शेर खुदा हैं, सो सुन लो के उनके दुश्मन
ए खुदा की लानत इससे मैं भी बुरी हूँ, और खुदा भी बरी है जो शख्स खुदा
और रसूल से बेजारी चाहे वो अली से बेजार हो। ( नुजुहृत-उल-मजाजिलस,
प्रफा 35, जिल्द 2)
सबक्‌:- रसूल अल्लाह सल-लल्लाहो अलेह व सल्‍लम ने अलल
एलान अपने चार यारों के मदारिज बयान फ्रमा दिए और मुसलमानों को
अं पा दिया के उनसे मोहब्बत रखना जुरूरी है और उनसे अदावत व
बेगारी मोजिब लानत है लिहाजा हर मुसलमान को चाहिए के रसूल अल्लाह
‘त-लल्लाहो अलेह व सल्‍लम के चार यारों से मोहब्बत रखे।

हिकायत नम्बर(७) जजीरे का जिन्न

हजरत इमाम शफअई अलेह अर्रहमत ने एक शख्स को मक्का में देखा
हाई था और अब मुसलमान हो चुका था, इमाम शफअई ने उससे

पेधाक्े पुपलमान होने का सबब क्‍या है? वो बोला, मैं एक बहरी सफर
जा बा कश्ती टूट गई और पानी की मोजों ने उसे एक ऐसे जजीरे में
हे “मे दिया जिसमें फल फूल और साफ सुथरे पानी की नहें जारी
पोषाया जेजीरे पर सारा दिन गुजारा, रात हुई तो क्‍या देखता हूँ के एक
भेके शाध पं सर शुत्तर मुर्ग के सर जैसा था और चेहरा आदमी का सा,
उॉऊ ऊँट के से थे और दुम मछली की सी, वो बुलंद आवाज से

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सच्ची हिकायात 2]8 हस्सा
8 के खुदा के सिवा कोई परसतिश के लायक नहीं और मोह
उसके बरगजीदा रसूल हैं और अबु बक्र उनके यारे गार, उमर
मालिक, उस्मान शहीद और अली काफिरों पर खुदा की तलवार हैं| उनके
दुश्मनों पर खुदा की मार हो। मैं ये मंजर देख कर डर कर भागने लगा त्तो स्प़ो
कहा, ठहर जा और एक कृदम भी आगे मत रखना वरना अभी हलाक
जाएगा, फिर मेरी तरफ मुतबज्जह होकर कहने लगा, तेरा दीन क्‍या है? मै
कहां, इसाई, उसने बड़ी नर्मी से कहा तो मुसलमान हो जा, तमाम आफत्तों
महफूजू रहेगा, चुनाँचे मैं मुसलमान हो गया, फिर उसने कहा खूब याद
के तेरा इस्लाम अबु.बक्र, उमर, उस्मान और अली को मोहब्बत रखने को
वजह से तकमील को पहुँचेगा, मैंने उससे पूछा के ये बातें तुम्हें कैसे
हुई? वो बोला, मैं जिन्न हूँ और हमारी एक जमात है जो हुजर सल-लल्लाहो
अलेह व सल्लम पर ईमान ला चुकी है, ये सब बातें हमारी इस जमात ने हु
की जबानी सुनी हैं। ( नुजुह्त-उल-मजालिस, सफा ३0, जिल्द 2)…
सबक:- हुज॒र सल-लल्लाहो अलेह व सललम के चार यारों की
मोहब्बत व उल्फत इंसानों और जिनों के दिल में भी है लेकिन शर्त ये है के

इस्लाम मौजूद हो। ह
हिकायत नम्बर/०) सिद्दीक्‌ व फारूक का दुश्मन

एक दिन हुज॒र सल-लल्लाहो अलेह व सलल्‍लम सहाबा इक्राम की
मईयत में अपनी मस्जिद में रौनक अफरोज थे के एक मुनाफिक्‌ जो बजाहि
मुसमलमान था आया और उसकी पिंडलियों से खून बह रहा था, ने
दरयाफ्त फ्रमाया ये क्या हुआ? उसने बताया के फलाँ मुहल्ले की फला गली
से गुजर रहा था के वहाँ एक कुतिया ने मुझे काट लिया है, थोड़ी देर के के
एक और मुनाफिक्‌ आया उसकी पिंडलियों से भी खून बह रहा था, 57
भी यही बताया के उस कुतिया ने मुझे काट खाया है, हुजूर सल-लल्लही दे
अलेह व सललम ने सहाबा इक्राम से फरमाया, चलो तो उस कुतिया को दे,
मुमकिन है वो दीवानी हो गई हो, चुनाँचे हुजर सहाबा इक्राम की हज
वहाँ पहुँचे तो उस कुतिया ने हुजर को देखते ही आपके कदमों पर कार्ट!
शुरू कर दिया और जब हुजर ने उससे पूछा के तूने उन दोनों को हैं औ
तो वो बजबाने फसीह बोली, या रसूल अल्लाह! ये दोनों मुनार्फिक _ 8
ये दोनों आपके यारे गार सिद्दीके अक्बर और फारूके आजम को गरर्लिई+
रहे थे मुझे गुस्सा आया तो मैंने उन्हें काट खाया, हुज्र सल-

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ह “॥9 हिस्सा
पत्ती कर उन दोनों आदमियों से पूछा तो उन्होंने डकार कि

ध् का (जामओ अलमोजजात हल मतबूआ मिप्न, गाज और

क्की
ही ऋ:- सिद्दीके अकबर और फारूके आजम रजी अल्लाहो
सबक |, अ्लियो देता है उससे तो जानवर भी अच्छे हैं और ये भी आओ
पहाबा-ए-इक्राम को गालियाँ देने वाले से कुत्ते भी अदावत रखते हैं फिर
हुःमुताने सहाबा से दोस्ती रखे सोचिए के वो कौन है?

हिकायत नम्बर(9) एक बे दीन कुफ्हार
हजरत इमाम आजूम रहमत-उल्लाह अलेह के पड़ोसी में एक बे दीन
रहता था जिसने अपने एक गधे का नाम अबु बक्र और एक का
उप्र रखकर अपनी दिली खुबासत का इजहार कर रखा था, एक दिन उन
दोनों गधों में से एक ने इस कुम्हार को ऐसी लात मारी के बो मलऊन वहीं
हैर हो गयां, ये खूबर जब हजूरत इमाम आजम रहमत-उल्लाह अलेह को
पहुँची तो आपने फ्रमाया, जाकर देख लो, जिस गधे का नाम मलऊन ने
उमर रखा था ये उसी से मारा गया होगा, चुनाँचे तहकौक की गई तो वो
वाकुई उसी गथे की जुर्ब से मारा गया था जिसका नाम उसने उमर रखा था।
(रूह-उल-बयान, सफा 59, जिल्द )
सबकः- सिद्दीक्‌ व फारूक्‌ू रजी अल्लाहो अन्हुमा की बे अदबी व
गुस्ताखी बहुत खतरनाक है और ये भी मालूम हुआ के हजरत उमर रजी
अल्लाहो अनह अशिद्वाऊ अलल कुफ्फारी के कुछ ऐसे मजहर थे के
आपका नाम पाक भी जहाँ आया कुफ्र पर हमला आवर हो गया।

हिकायत नम्बर७») खतरनाक दरिंदा
जाफर खिदरी फ्रमाते हैं के मैं एक ऐसे काफले के साथ सफर कर
हा था जिसके सब अफ़राद सहाबा इक्राम के दुश्मन थे वो सबके सब हजुरत
भै्दीक गे हजरत फारूक के मुतअल्लिक्‌ मुझ से मुनाजुरह करते हुए चल
ऐ थे मैं हत्ता उलइ्म्कान उनके हर एत्राज का जवाब दे रहा था, इतने में एक
भगरनाक जंगल आ गया जिस से एक खुतरनाक दरिंदा निकला, इत्तेफाक्‌
झे के वो दरिंदा सीधा मेरी ही तरफ्‌ आया और मुझ पर हमला कर के
उठा कर चल दिया, ये देखकर वो काफले’वाले बड़े खुश हुए और मुझे
नाल से बड़ी कोफ्त हुई के वो कहते होंगे के मोहब्बत शेखेन का मा
लिया, इस दरिंदे ने मुझे अपने भूके बच्चों के आगे लाकर डाल दिया

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हिकांयात 2.20 ॥॒ । ह्स् भरे
2 शआ2सन जाएँ, उस वकत मेरे मुंह से बे साख़्सा निकला ३०)
गा रसूल अल्लाह बिहुरमतिश शेखेनी अब जो इस दरिदे के पे है
मेरे करीब आए तो मुझे सूंघ कर सब के सब पीछे हट गए, ये देख,
दरिंदा खौफनाक आवाज में बोला मेरी समझ में वो कह रहा ध। डे ‘
क्यों नहीं? पीछे क्यों हट गए? इसके बच्चों ने बजबान फसीह जवा, पे
नकद जव्वातगा सलसवा अव्यामिन सुम्या जिअतना बिम्न पे
असहाबन नबिय्यी सल-लल्लाहो अलेह व सल्‍लम
“तुने हमें तीन दिन का भूका रखा और आज इस शख्स को ले
हो जो नबी करीम सल-लल्लाहो अलेह व सल्‍लम के असहाब से गे
रखता है” ( भला हम इसे कैसे खायें )। लि क्‍
मैंने खुद उनका ये जवाब सुना और मुसर्रत में उठा और चला
खुदा की कुसम! मुझे उन्होंने कुछ भी इईंजा ना दी। ( जामओ अल मेज
सफा 2 ) ह
‘सबक्‌ः- याराने नबी की मोहब्बत का जंगली दरिंदों को भी ए
और इस मोहब्बत से जैसे जाफर की जान बच गई इसी तरह इस मोहन्न।
ईमान भी बचता है और ये भी मालूम हुआ के पहले मुसलमान भी मर
के वक़्त हुजर॒ सल-लल्लाहो अलेह व सल्‍लम को याद किया करते बर
या रसूल अल्लाह का नारा लगा कर हुजर से मदद माँगा करते थे।

9९९06 099 (थ्वा]5८शाशश’

|
|
हा

 

 

 

नअी5“हन्‍ााआ पत्र साहब ब्र हब ८ है
प्रौलजा अबुनुर मेहमसद 7
हजरत प्रोलएना ‘ 5 78,

कक ७ 4 । 4४44 है] |; ॥.॥,

 

 

9९थ॥7९6 99 (राई टशााश

इल्तिज़ा है कि इस किताब को अपनी मोबाईल
की मैमोरी में सेव करके ना रखे वल्कि आप
से गुजारिश है कि इस किताब का मुताला की
जिये ये किताब बहुत शानदार है।

दुआ की गुजारिश
डॉ ज़ाहर रज़वी
अल अश्हर अकडमी

दुआ की गुज़ारिश
मोहम्मद पा टोम

हिस्सा

आप हज़रात से गुजारिश है कि इस किताब
को आप अपना निम्ती वक़्त दे और इस किता
ब का मुताला करे और हम ना चीज़ को अपनी
अपनी दुआओं में याद रखे

शी

 

 

 

 

 

5सप्गाााल्त 99 (95

90थ॥९ 0799 ([क्रा5८थााश’

जुमला हकक बहक्‌ नाशिर महफज हैं

नाम किताब : सच्छी हिकायात मुकप्मल
तालीफ ; मौलाना अबु अलनूर बशीर
सन इशाअत ः 203
सफहात – 936
मतबअ हम नाहिद प्रेस, देहली
. हृदिया
नाशिर म अदबोी दुनिया, देहली
इस किताब में

 

 

 

 

कुतव॒ अहादीस और दीगर
मुसत्तनिद इस्लामी किताओं से दिलचस्प,
मुफीद और सबक आमोज हिकायात
जमा कर दी गई हैं और हर हिकायत के
बाद इससे जो सबक हासिल होता हैए
लिख दिया गया है और हर हिकायत को
असल किताब से देखकर दर्ज किया गया
है और किताब का नाम, सफ्हा और
‘जिल्द सब कुछ दिया गया है।

 

 

 

 

॥0॥0शौीशा

50£/»8छा 00१४5
399, ६9 99|/ | ४8 ॥9श 0,
एआ-व40006
॥076 : 23250422

धटशाशश्त 9५४ (शक्राडइ्शाश
9९९06 99 (थ्वा]5८शाशश’

बिस्मिल्लाहिरहमानिरहीम

7हमदुददू ॥ नुस्ल्ली अला रएलीहिलकरीम

पहली नजर

इस जमाने में अफ्साने, ड्रामे, किस्से और कहानियाँ खड़े शौक से पढ़ी
जाती हैं और ये शौक बिलअपूम हर छोटे बड़े मर्द और औरत में पाया जाता ‘
है, आज कल हर वो तहरीर जिसमें अपसानबी तर्ज और हिकायती रंग मौजूद
हो, पसंदीदगी की नजर से देखी जाती है, कौम का यही रूहजान
इस अप्र का बाइस है के मुल्क के अक्सर रसायल व जरायद अपने अपने
“कहानी नम्बर” और “अफ्साना नम्बर” शाय करते हैं और अपसाना पसंद
अफ्राद इन्हें हाथों हाथ लेते हैं। 5 कि

ये अफ्साने, ड्रामे और आज कल की हिकायात व कहानियों ज़्यादा
तर दरोग व कजिब और गैर वाकई बिना पर मुबनी होती हैं, उनकी कोई
हकीकत और असल नहीं होती और ऐसे अफ्साना लिखने वाले उन वजुअई
हिकायात को “तबै जाद” और अपनी तखलीक्‌ करार देकर अपने वजुओ व
कजिब को अपना एक शाहकार साबित करते हैं और अफुसाना पसंद तबीअतें
उन्हें उस कारनामे पर दादे तहसींन देती हैं और उसे तरक्की पसंद अदब के
नाम से भोसूम करने लगती हैं।

किस्से और हिकायात जुरूरी नहीं के झूट ही हों, इस आलम में किस्सों
और सच्ची हिकायात का वजूद भी है, खुद करआने पाक और अहादीसे
शरीफा में भी हिकायात व कूसस मौजूद हैं और वो हिकायात व कूसस ऐसे
हैं जिनमें सौ फीसदी सदाकृत है और जो अपनी सदाकृत के बाइस मख़लूक्‌
के लिए भौजिबे रूएदो हिदायत और वजह दर्से इम्नत हैं। खुदा तआला नें
अपनी सच्ची किताब प्रजीद में अम्बियाइक्राम अलेहिमअस्सलाम के ईमान
अपरोज किस्से और उम्म साबिका की सबक आमोजु हिकायात बयान
फ्रमाई