या नबी सब करम है तुम्हारा ये जो वारे-न्यारे हुए हैं

या नबी सब करम है तुम्हारा ये जो वारे-न्यारे हुए हैं

या नबी सब करम है तुम्हारा, ये जो वारे-न्यारे हुए हैं
अब कमी का तसव्वुर भी कैसा, जब से मँगते तुम्हारे हुए हैं

कोई मुँह न लगाता था हम को, पास तक न बिठाता था हम को
जब से थामा है दामन तुम्हारा, दुनिया वाले हमारे हुए है

दूर होने को है अब ये दूरी, उन की चौखट पे होगी हुज़ूरी
ख़्वाब में मुझ को आक़ा के दर से हाज़री के इशारे हुए है

देख कर उन के रोज़े के जल्वे, मुझ को महसूस ये हो रहा था
जैसे मंज़र ये सारे के सारे आसमाँ से उतारे हुए हैं

उन के दरबार से जब भी मैंने, पंजतन के वसीले से माँगा
मुझ को ख़ैरात फ़ौरन मिली है, ख़ूब मेरे गुज़ारे हुए हैं

हश्र के रोज़ जब मेरे आक़ा उम्मती की शफ़ाअ’त करेंगे
रब कहेगा, उन्हें मैंने बख़्शा, जो दीवाने तुम्हारे हुए हैं

चाहते हो अगर नेक-नामी, आल-ए-ज़हरा की कर लो ग़ुलामी
उन के सदक़े से ज़ाहिद नियाज़ी ! पुर-सुकूँ ग़म के मारे हुए हैं

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