बे तलब भीक यहाँ मिलती है आते जाते
ये वो दर है के जहां दिल नहीं तोड़े जाते
सूए तयबा ये समज़ कर है ज़मानें जाते
ये वो रोज़ा है जहां दिल नहीं तोड़े जाते
ये है आक़ा की इनायत वो करम करते हैं
वरना हम जैसे कहाँ दर पे बुलाए जाते
भूल जाते थे सहाबा ग़मो-आलाम अपने
देख लेते थे जो सरकार को आते जाते
रुतबे सरकार के क्या ख़ल्क़ से जाने जाते
सब पे असरारे इलाही नहीं खोले जाते
नूर की हद में फ़क़त नूर ही जा सकता है
सिर्फ अगर होते बशर अर्श पे कैसे जाते
नूर की हद पे शहे नूर ही जा सकता है
हमसे जो होते बशर अर्श पे कैसे जाते
जिस्म के साथ उठाए गए जब के ईसा
नूर-ए-क़ामिल क्यूं ना शब-ए-असरा बदन से जाते
चश्मे बातिन से मदीने के नज़ारे देखो
सिर्फ आँखों से ये मन्ज़र नहीं देखे जाते
हम कहाँ होते कहाँ होती ये महफ़िल अल्ताफ
ख़ाके करबल पे अगर घर ना लुटाए जाते
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