Islamic Stories in Hindi
. : इब्मे मुख्तार तलमेसी फ्रमाते हैं के एक शख्स ने ये किस्सा बयान किया
के हम एक सफर में थे और हमारे हमराह एक ऐसा बद गो शख्स भी था
जो हुज॒र सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम के सहाबा इक्राम से बैर
रखता था। ये गुसताख राह में हजारात सहाबा इक्राम अलेहिम-उर-रिज॒वान
की शान में नाजेबा अल्फाजू कहने लगा। हमने रोका मगर वो किसी सूरत
बाज ना आया। रास्ते में हम एक जगह ठहरे और ये शख्स किसी काम को
बाहर निकला तो अचानक बहुत सी भिड़ों ने उस पर हमला कर दिया। ये
चिल्लाया हम उसकी मदद को दोौड़े तो भिड़ों ने हमारा तआक्कूब करके हमें
उसके पास ना पहुँचने दिया के उन भिड़ों ने उस गुसताख् को हलाक कर
दिया। ( हयात-उल-हैवान सफा 8 जिल्दः 3)
सबक्:- हुजर॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम के सहाबा
इक्राम अलेहिम-उर-रिजुबान से अदावत व बैर रखना बड़ी खतरनाक चीज
है। हर मुसलमान को इस मोहलक चीज से इजतिनाब रखना लाजिम है।
हिकायत नम्बर) गएती फरमान
जंग सफैन जब खत्म हो गई तो हजरत अली अलमुर्तजा रजी अल्लाहो
तआला अन्ह ने एक गश्ती फरमान लिखकर इल्राफे मुल्क में रवाना फ्रमाया
जिसमें ये तहरीर फरमाया के: |
“हमारे काम का आगाज यूं हुआ के हम में और अहले शाम को एक
कौम में मुकाबला हुआ, और जाहिर है के हमारा और उनका खुदा एक है
और हमारा और उनका नबी एक है और हमारी और उनकी दअवते इस्लाम
यक््साँ है। अल्लाह पर ईमान रखने में और तसदीके रसूल में ना हम उनसे
ज्यादा होने के मुद्दई हैं, ना वो हमसे ज़्यादा होने के मुददई हैं। हमारे और उनके
पेरमियान सिर्फ खून उस्मान ( रजी अल्लाहो अन्ह ) का झगड़ा है और हम
इस खून से बरी हैं” ( नहज-उल-बलागृत किस्म दो सफा 8 )
सबक्:- सहाबा इक्राम और अहले बैत जाम रजी अल्लाहो तआला
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सच्ची हिकायात 36 हिस्सा दो
अलेहिम अजमईन सबका दीन व मजृहब एक था जो तरीका व तजें अप.
अहले बैत ओजाम का था। वही सहाबा इक्राम भी था। तोहीद व रिसालत
उसूल व फरूअ, सियासत, व इमारत और इरादत व अकादत में ये सह
हज्रांत मुत्तहिद व मुत्तफिक थे। उनमें से किसी एक पर भी किसी
का तान करना ज यज नहीं। ये सब हजरात अल्लाह के मेहबूब के मेहबूह है
( रिजुवानुल्लाही अलेहिम अजमईन ) द क् द
हिकायत नम्बर०छ) मशवरा
अमीर-उल-मोमिनीन हजूरत फारूके आजम रजी अल्लाहो अरू भे
गृज़्वा-ए-रोम के मौके पर हजरत मौला अली रजी अल्लाहो तआला अर मै
मशवरा तलब फ्रमाया के इस गऊज़्वे में में बजाते खुद शिरकत करूं या ना?
हजरत अली रजी अल्लाहो तआला अन्ह ने हस्बे जेल मशवरा दिया।
अल्लाह तआला इस दीन वालों को ग़ालिब फरमाने का जामिल है।
अल्लाह वो है जिसने मुसलमानों की उस वक्त भी मदद फरमाई थी जब
के वो थोड़े थे और दूसरा कोई उनका मददगार ना था और उनकी हिफाजत
फरमाई थी जब के वो थोड़े थे और दूसरा कोई उनकी हिफाजत करने वाला
ना था। ऐ उमर! अगर आप बजाते खुद चले गए और दुश्मन से मुकाबला
हुआ। आपको कोई तकलीफ पहुँची तो फिर मुसलमानों की कोई जाए पनाह
ना रहेगी क्योंके मुसलमानों के लिए सिवाए आपके कोई और मरजओ नहीं
इसलिए आप किसी और को भेज दें, खुद ना जाएँ।” ( नहज-उल-बलागृत
तक्तीआ् खूर्द मतबूआ मिस्र सफा 27)
सबक :- इस मशवरे में हजरत मौला अली रजी अल्लाह तअला अन
ने जिस दीन को हिफाजृत का मुतकुफ्ल और मुहाफिज अल्लाह को फरमांया
था। इसी दीन को हजरत उमर और दीगर सहाबा इक्राम अलेहिम-उर-रिजुवान
इसी सच्चे दीन के अलम्बरदार थे और जिस दीन की पसंदीदगी का एलान
अल्लाह ने क्रआन में फ्रमाया है और वो दीन में कामिल। दीन के हामिल
और दीन पर आमिल थे और जिस शख़्स को मआज अल्लाह सुम्मा मआज
अल्लाह ) उन पाक लोगों के दीन में किसी किस्म का कोई शुबह हो तो वो
खुद अपने ही दीन व ईमान की फिक्र करे। आप
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सच्ची हिकायात, 3॥7 हिस्सा दोम
छटा बाब
अहले बैत ओजाम
रिजवानुल्लाही तआला अलेहिम अजमईन
उन्नामा यूरीदूल्लाहू लियुजहिबा अनकुम रिजसा अहलल बैती व
ततहीरा ( पः 22, रूकू : ) क्
अल्लाह तू यही चाहता है ऐ नबी के घर वालो! के तुम से हर ना पाकी
दूर माफिदे और तुम्हें पाक करके खूब सुथरा कर दे। ( कुंजु-उल-ईमान )
हिकायत नम्बर ९७) उम्म-उल-मोमिनीन
ख़दीजात-उल-कुबरा रजी अल्लाहो तआला अह्हा
खुबील्द नामी एक शख्स अहले क्रैश में बड़ा अमीर कबीर शख्स था।
उसकी एक लड़की थी जिसका नाम खूदीजा था। ये लड़की निहायत जुहीन
आली दिमाग और सूरत व सीरत और अफ्फत व असमत के लिहाज से
मक्का भर में सबसे ज़्यादा मुमताज थी। खदीजा का बाप कुछ जर व माल
छोड़ कर फौत हो चुका था, और ये भी अहेद शबाब में बेवा हो चुकी थी।
सिवाए एक चचा जाद भाई वरका बिन नवफ्फिल के उसका कोई असल
वारिस ना था। लेकिन खदीजा ने अपनी काबलियत से तिजारत का काम
खुद संभाला और बड़ी तरक्की की।
हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सलल्लम के चचा अबु तालिब
की सिफारिफ से हुजुर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम खदीजा के
तिजारती सिलसिले में काम करने लगे और जब आपने खूंदीजा के कारोबार
में काम फरमाया तो खदीजा (रजी अल्लाहों तआला अन्हा ) के कारोबार
में चन्द दिनों ही में बहुत तरक्की हुई और ये कारोबार कहीं से कहीं जा
पहुँचा। इस बर्कत और तरक्की का खुदीजा ( रजी अल्लाहो तआला अन्हा )
के दिल पर असर हुआ। है
एक दिन खुदीजा रजी अल्लाहो तआला अन््हा अपने महल के ऊपर
खड़ी थी। धूप का वक्त था और हुज॒र सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम
तशरीफ् ला रहे थे तो खदीजा ने देखा के हुजुर सल-लल्लाहो तआला अलेह
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सच्ची हिकायात 3॥8 हिस्सा दोम
व सलल्लम के सर पर बादल का साया है और जैसे जैसे हुज्र सल-लल्लाहो
तआला अलेह व सलल्लम आगे बढ़ते हैं और वो बादल का टुकड़ा भी हुजर
सल-लल्लाहो तआला अलेह ‘व॑ सल्लम के सर पर साथ साथ बढ़ रहा है।
खदीज़ा को देखकर बड़ा तअज्जुब हुआ, और हुजर सल-लल्लाहो तंआला
अलेह व सल्लम की इज्जत व तौकीर उसकी नजरों में और भी ज़्यादा हो
गई और एक रोज हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सलल््लम को बुला
कर कहने लगी के मेरे काफला-ए-तिजारत के साथ इस दफा आप भी
तशरीफ ले जाएँ। हुजर॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम ने फ्रमाया
“अच्छा जाऊँगा।” |
खदीजा की तिजारत का बड़ा मोहतमिम खदीजा का आजाद कर्दा
गुलाम मेसरा था जिसकी तहवील में तिजारत का सब हिसाब रहता था।
हजरत खुदीजा रजी अल्लाहो तआला अन््हा ने मेसरा को बुला कर हुजर
सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम के मुतअल्लिक् ताकीदन कह दिया
के इस साल काफले के साथ ये भी जाएँगे। ये जो कुछ तुम लोगों को मशवरा
दें। उनके मशवरे पर अमल करना, और सफर में उनकी जात से जो कुछ
वाकेयात गुजरें , उनको अच्छी तरह याद रखना। मेसरा ने अपनी मालिका की
ये हिदायात सुनकर उन पर अमल करने का इक्रार कर लिया।
चन्न्द रोज बाद ये काफला मक्का से शाम की तरफ् रवाना हुआ। हुजर
सल-लल्लाहो तआला अलेह व सलल्लम भी साथ थे। चन्द मनाजिल तब
करके जब इस काफले ने एक इसाई पादरी नसतूरा नामी के गिर्जे के पास
मंजिल की तो हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सलल्लम जिस दरख़्त
के पास बैठे थे उस दरख्त का साया हुजर॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह ब
सल्लम पर झुक आया। पादरी ये वाकेया देखकर मेसरा की तरफ आया
और मुतअज्जिब होकर पूछने लगा ऐ मेसरा! इस साल तुम्हारे काफले के
साथ कौन नोजवान आए हैं? मेसरा ने कहा ये अहले क्रैश में से हैं पादरी
ने कहा बेशक ये तुम्हारे काफले ही के सरदार नहीं बल्के किसी दिन सारे
जहाँ के सरदार होंगे।
मेसरा ने कहा! आपको ये कैसे मालूम हुआ? पादरी ने कहा’ उनकी
आँखों में सुखी मालूम होती है और सिवाए नबी के इस दरख्त के नीचे और
कोई नहीं बैठा। मुझे तो ये नबी आखिर-उज़्जुमाँ मालूम होते हैं। काश मैं उस
वक्त तक जिन्दा रहता जब के ये मबऊस होंगे। इस तमन्ना के’बाद पादरी
मेसरा को ताकीद कर दी के उनसे किसी वक्त जुदा ना होना। सच्चे ड्रादे
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सच्ची हिकायात 39 हिस्सा दोम
और नेक नीयती से उनके साथ रहना क्योंके मोहम्मद सल-लल्लाहो तआला
अलेह व सल्लम वो हैं जिन्हें अल्लाह तअला शर्फे नबुव्वत से सरफ्राज
फरमाएगा।
अलावा इस वाकये के और भी ऐसे ही वाकेयात रास्ते में गुजरे आखिर
ये काफला मुल्क शाम में पहुँचा और हुज॒र॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह व
सललम की बर्कत से हजरत खुदीजा रजी अल्लाहो तआला अन्हा का तमाम
सामान तिजारत इस साल दुगने चौगने मुनाफे पर फ्रोख़त हो गया तो तमाम
काफले वाले खुश व खुररम अपनी मालिका खदीजा से इनामो इक्राम हासिल
करने की खुशी में मक्का शरीफ की तरफ् वापस हुए।._ ।
इन बाबर्कत वाकेयात से सब काफले वालों के दिलों में हुज॒र
सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम की पहले से भी ज़्यादा अक्ौदत पैदा
हो गई थी। मेसरा अपनी मालिका की हिदायत के मुताबिक् निहायत अदब
से आपकी एक एक अदाऐ मुबारक और पेश आम्दा वाकेयात पर गौर करता
हुआ साथ साथ आ रहा था। जब ये काफला मक्का के करीब पहुँचा तो
सब में राय ये करार पाई के हुज॒र सल-लल्लाहो तआला अलेह व सलल्लम
अपनी सवारी दौड़ाते हुए सय्यदा ख़दीजा को सामान तिजारत की फ्रोख्त
और काफी मुनाफे की खुशखबरी देने सबसे पहले जाएँ।
चुनाँचे इस तजवबीज के मुताबिकु हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह
व सल्लम अपनी सवारी दौड़ाते हुए जिस वक्त खुदीजा के महल की तरफ
तशरीफ ला रहे थे। इत्तेफाकुन उस वक्त खुदीजा भी अपने महल की छत पर
खड़ी थीं। जिन्हें उस सवार वलअतबार की अजीब शान नजुर आई। सवार
का चहरा चाँद से ज़्यादा मुनव्वर था और उसके सर पर अब्न का टुकड़ा
साया किए हुए साथ साथ दौड़ रहा था। हुजूर सल-लल्लाहो तआला अलेह
व सल्लम की ये शान पाक हजरत खुदीजा रजी अल्लाहो तआला अन्हुमा
के दिल पर गहरा असर फरमा गई। हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व
सल्लम जब तशरीफ लाए और माल के चौगने मुनाफे पर फ्रोख़्त हो जाने
की खूबर सुनाई तो खदीजा रजी अल्लाहो तआला अन्हा के दिल मे हुजर
सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम की बर्कत व सीरत और अकोदत
का खास जज़्बा पैदा हो गया।
इतने में काफले वाले भी आ गए। मेसरां ने अपनी मालिका से सफर के
सारे हालात और हुज॒र सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम की बर्कात का
जिक्र किया और पादरी की नसीहत के अल्फाज भी सुनाए। हजरत खदीजा
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५७७२०२०४७
320 ्स्स
सती हि आला अन््हा को पुख्ता यक्नीन हो गया के हजूर सल-लस्तो
रजी अल्लाहो त
रह आलेह व आलिही व सल््लम खुदा के बरगजीदा और मुक्रंब के
हैं। जो हिदायत आलम के लिए पैदा हुए हैं।
हे कुछ दिनों तक तो हजरत खदीजा रजी इस त आला अन्हा खा
रहीं और एक रोज हुज॒र सल-लल्लाहो तआला अलह व सल्लम् को फैग
“निकाह दे दिया। हुजुर॒ सल-लल्लाहा तआला अलेह व सल्लम हक
हया व शर्म के साथ ये जवाब मरहमत फरमाया: के इसके प्र
चचा अबु तालिब की इजाजत जरूरी है।
चुनाँचे हजरत खदीजा रजी तआला अन्हा ने अब तालिब के ||
तोहफा तहायफ देकर हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम ३
साथ अपने निकाह का पैगाम इरसाल किया। अगरचै अबु तालिब को हज
सल-लल्लाहो तआला अलेह की उम्र शरीफ कम और हजूरत खदीजा रे ‘
अल्लाहो तआला अन््हा की उम्र शरीफ ज़्यादा होने के बाइस ये पैगाम कबून
करने में कुछ ताम्मुल था। लेकिन अपनी बीवी के मशवरे से पैगाम कबूल का
लिया और तारीख निकाह मुकुररर हो गई और विरका बिन नवफ्फिल अबु
तालिब, हमजा और दीगर रौसा मक्का की शिर्कत व मौजूदगी में निकाह |
हो गया और हजरत खूदीजतुल कुबरा रजी अल्लाहो तआला अन््हुमा हुजर
सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम के उक्द में आ गईं और निकाह के
बाद हजरत खुदीजा रजी अल्लाहो तआला अन्हुमा ने अपना तमाम माल व
असबाब, जायदाद मनकला वगैरा मनकला हुजर सल-लल्लाहो तआला
अलेह व सलल्लम की नज्ू करके बन्दगाने करैश से कहा के तुम लोग गवाह
रहो मैं अपनी मर्जी से तमाम माल व मताअ हुजर सल-लल्लाहो तआला
अलेह व सल्लम की खिदमत में पेश करती हूँ। आज से ये सब कुछ इन्हीं का
है चाहे अपने पास रखें या किसी को दें या राह खुदा में खर्च कर दें। चुनाँचे
हुज॒र सल-लल्लाहो तआला अलेह व सलल््लम ने हजरत खदीजा रजी
तआला अन्हुमा की मर्जी के मुताबिकु तमाम ज॒र व माल राहे खुदा में खर्च
कर दिया और सब कनीजों, गूलामों को आजाद करके हजरत खूदीजा रजी
अल्लाहो तआला अन्हुमा को भी अपने साथ जाहिदाना जिन्दगी बसर
का अमली सबक् दिया। ( मवाहिब लुदनिया जिल्द: ।, सफा : 3
तारीखे इस्लाम सफा : 90 ता 6)
सबक्:- उम्मुल मोमिनीन हजरत खुदीजा रजी अल्लाहो तआर्ते
अन्हुमा शराफत व निजाबत, सीरत व सूरत और खूबी किसमत में बह
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का मम
(3रनमममनमे’ल्प-मनन उम«+»+++
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सच्ची हिकायात 324 हिस्सा दोम
मुमताज दर्जे पर फायज थीं और सबसे पहले ये शर्फं आपको हासिल
हुआ के सरवरे कोनैन मेहबूबे किल्निया, हुज॒र अहमद मुजतबा मोहम्मद
सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम के निकाह में आईं और
आप बड़ी फय्याज् , दरया दिल और सखी थीं के अपना सारा जर व माल
हुजूर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सलल्लम के कदमों में निछावर कर
दिया और ये भी मालूम हुआ के हमारे हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह
व सल्लम का सिक्का जुमीन व आसमान पर जारी है। जमीन पर इस
शहनशाह ‘ आलम पनाह ” पर अगर दरख़्त साया करते रहे तो आसमान
पर बादल साया किना रहे।
फायदा: () हुजूर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सलल्लम की इस
निकाह के वक्त उम्र शरीफ 5 साल की थी और हजरत खदीजा रजी
अल्लाहो अन्हुमा की 40 साल की और जब तक हजरत खदीजा रजी
अल्लाहो तआला अन््हुमा जिन्दा रहीं। हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह
व सल्लम ने दूसरा निकाह नहीं फरमाया दीगर अजुवाज मुतहरात आपके
निकाह में हजरत खदीजा के विसाल के बाद आईं। ( मवाहिब लुदनिया
सफा 203 जिल्द: ) ।
मालूम हुआ के हुज॒र॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम का निकाह
फ्रमाना, महेजु तालीम व तशरीह उम्मत के लिए था वरना ऐेन आलम शबाब
में हर कोई अपनी हम उम्र औरत से निकाह करता है।
(2) हुजर॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम की जुमला औलाद
अमजाद बजुज हजूरत इब्राहीम के, हजरत खूदीजा रजी अल्लाहो तआला
अन्हुमा से पैदा हुई। हजरत इब्नाहीम हजरत मारिया रजी अल्लाहो तआला
अन्हा से पैदा हुए। ( मवाहिब लुदनिया जिल्द: ।, सफा 4% ) और हाशिया
बुखारी शरीफ जिल्द: , सफा 539 ) क् फ
(3) हजरत खदीजा रजी अल्लाहो अन्हा से हुजर सल-लल्लाहो अलेह व
सल्लम की जो चार साहबजादियाँ पैदा हुईं। उनके नाम ये हैं जैनब, रूक॒य्या,
उम्मे कुलसुम और फातिमा रजी अल्लाहो अन्हन ( मवाहिब लुदनिया जिल्द:
।, सफा 45) ु
.._ (4) हजरत खदीजा रजी अल्लाहो तआला अन्हा से हुजर सल-लल्लाहो
तआला अलेह व सल्लम की चार साहबजादियाँ पैदा होने में मसलक की
किताबें मुत्तफिक् हैं। चुनाँचे हजरात शिआ की मुसतनिद किताब हदीस
उसूल काफी सफा 278, जिल्द: असतरः2 में इसी हकीकत का इजहार है।
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सच्ची हिकायात 322 – हिस्सा दोग
हिकायत नम्बर०७) उम्पमुल मोमिनीन हजरत आयज्ञा
_सिद्दीका रजी अल्लाहो अन्हा
“उम्मुल मोमिनीन हजरत खुदीजा रजी अल्लाहो तआला अनन््हा के विस्ाल
के बाद हुज॒र सल-लल्लाहो तआला अलेह व सललम ने बिन्ते सिद्दैके
अकबर हजरत आयशा रजी अल्लाहों तआला अन्हा से निकाह फ्रमाया।
हुज॒र सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल््लम ने एक मर्तबा हजरत आयशा
से फरमाया ऐ आयशा! निकाह से कृब्ल एक फरिश्ता तीन रात मुतावाति
ख़्वाब में तुम्हारी सूरत एक रेशमी कपड़े में लपेटे हुए मुझे दिखाता रहा और
कहता रहा ये आपकी बीवी है और अब जो मैंने तुझे देखा तो तुम वही हो
और फरमाया एक रोज जिब्राईले अमीन मेरे पास तुम्हारी तसवीर एक सब्ज
रंग के रेशमी कपड़े में लपेट कर लाया और कहने लगा! या रसूल अल्लाह!
ये आपकी दुनिया व आखिरत में बीवी है। अल्लाह तआला ने आपका निकाह
इससे कर दिया है। ( मिश्कात शरीफ सफा 565, मवाहिब लुदनिया सफा
204 जिल्द: )
सबक्:- उम्मुल मोमिनीन हजरत आयशा सिद्दीका की बहुत बड़ी
शान है। आप हूजर सरवरे आलम सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम को
दोनों जहाँ में रफोका हैं और आपका निकाह हुजर सल-लल्लाहो तआला
अलेह व सल्लम से खुद अल्लाह तआला ने फरमाया। फिर अगर कोई बदगो
आपकी जात वाला सिफात पर किसी किस्म का कोई तान करे तो यकीनन
उसने हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम का दिल दुखाया और
अल्लाह ताला पर भी एत्राज किया।
….हिकायत नम्बर७७& बोहताने अजीम
5 हिज़ी में गुज़्वा बनी-उल-मुसतलिक् से वापसी के वक्त काफला
करीब मदीना एक पड़ाव पर ठहरा। तो उम्मुल मोमिनीन हजुरत आयशा
सिद्दीका रजी अल्लाहो तआला अन्हा जुरूरत के लिए एक गोशे में तशरीफ
ले गईं। वहाँ आपका हार टूट गया और आप उसकी तलाश में मसरूफ
हो गईं इधर काफले ने कूच किया और आपका मोहमिल शरीफ उँठ पर
कस दिया। काफले बालों ने यही गुमान किया के उम्मुल मोमिनीन उसमें हैं
काफ़ला चल दिया और जब आप वापस आईं तो देखा के काफला जा चुकी
. है! आप काफले को जगह बैठ गईं। आपने खयाल किया के मेरी तलाश
इ्थ्ाारत एज (था5टा।शः
सच्ची हिकायात हिस्सा दोर्म॑
काफला जुरूर वापस आएगा। काफले के पीछे गिरी पड़ी चीज उठाने के
लिए एक साहब रहा करते थे, उस मौके पर हजरत सफवान उस काम पर
मुतय्यन थे। जब वो आए तो उम्मुल मोमिनीन को देखा तो बुलंद आवाज से
इन्ना लिल्लाही व इन्ना इलेही राजिऊन पढ़ा उम्मुल मोमिनीन ने कपड़े से पर्दा
कर लिया। उन्होंने अपनी ऊँटनी बिठाई आप उस पर सवार होकर लश्कर में
पहुँचीं। मुनाफिकीन सियाह बातिन को मौका मिल गया और उन्होंने ओहाम
फासिदा फैलाने शुरू कर दिए और आपकी शान में बदगोई शुरू कर दी।
उम्मुल मोमिनीन इस बोहतान को सुनकर बीमार हो गईं। और एक माह
तक ब्रीमार रहीं। इस अर्से में आपको इत्तिला ना हुई के मुनाफिकीन आपके
मुतअल्लिक् क्या क्या अफ्वाहें फैला रहे हैं। एक रोज उम्मे मुसतह से उन्हें
ये खूबर मालूम हुईं और उससे आप और भी ज़्यादा बीमार हो गईं और इस
सदमे से इस क॒द्र रोई के आपका आँसू ना थमता था और ना.एक लमहे के
लिए नींद आती थी। इस हाल में हुजर॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम
पर वही नाजिल हुई और हजुंरत उम्मुल मोमिनीन की तहारत व पाकीजगी
की खुद अल्लाह तआला ने शहादत दी और कई आयतें सूरह नूर की आपकी
तहारत और पाकीजगी में नाजिल फ्रमाई और फरमाया
लिकुल्लिमरिग्यन मिनहुम्प मक़्तसाबा मिनल इसमी वल्लजी
तन्वला किनराहू मिनहुम लहू अज़ाबुंन अजीम
“उनमें हर शख्स के लिए वो गुनाह है जो उसने कमाया और उनमें वो
जिसने सबसे बड़ा हिस्सा लिया उसके लिए बड़ा अजाब है। ( सूरह नूर )”
यानी उम्मुल मोमिनीन के बारे में बोहतान तराजी में जिस जिस ने जिस
क॒द्र भी हिस्सा लिया, किसी ने तूफान उठाया, किसी ने बोहतान उठाने वाले
की जुबान मवाफ्कत की। कोई हंस दिया, किसी ने खामोशी के साथ ही सुन
लिया। जिसने जो कुछ किया इस गुनाह का उसे बदला मिलेगा और जिसने
सबसे बड़ा हिस्सा लिया उसके लिए सबसे बड़ा अजाब है।” ( करआन करी
पारा 8, रूकू 8 खुजायन-उल-इर्फान, सफा 49)
सबक्:- उम्मुल मोमिनीन हजरत आयशा सिद्दीका रजी अल्लाहो
तआला अन्हा की वो जात ग्रामी है जिसकी तहारत ब पाकीजुगी की खुद
खुदा ने शहादत दी और आप पर बोहतान उठाने वाले के लिए अजाब का
ऐलान फरमाया और आपको इस शरफ् से नवाजा के करआने पाक के
जूरिये आपकी उफ्फ््त व तहारत. के कयामत तक डंके बजते रहेंगे फिर जो
जालिम आपकी जात वाला सिफात पर कोई किसी किस्म का ऐत्राज करे या
9९९6 099 (थ्वा5८शाशश’
सच्ची हिकायात 324 हिस्सा दोप
आपकी अजमत में शक करे तो वो बड़ा ही जाहिल है और अपने आपको
अजाब का मुसतहिक् बनाने वाला है।
हिकायत नम्बर०७) गवाहियाँ
उम्मुल मोमिनीन हजरत आयशा रजी अल्लाहो त़आला अन्हा प्
मुनाफिकोन ने जब बोहतान उठाया तो हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व
सल्लम ने सहाबा इक्राम अलेहिम-उर-रिजुवान से फ्रमाया के उसकी तरफ
से मेरे पास कौन मअजुरत पेश कर सकता है? हजरत उमर रजी अल्लाहो
तआला अर ने अर्ज किया, या रसूल अल्लाह! मुनाफिकौन बिलयकीन झूः
हैं और उम्मुल मोमिनीन यक्रीनन पाक हैं, अल्लाह तआला ने आपके जिस्म
अतहर को मक्खि बैठने से महफूज रखा है के वो नजासतों पर बैठती है। फिर
केसे हो सकता है के वो आपको बद औरत की सोहबत से महफूज ना रखे।
हजरत उस्मान रजी अल्लाहो तआला अन्ह ने अर्ज किया, या रसूल
अल्लाह! अल्लाह तआला ने आपका साया जमीन पर नहीं पड़ने दिया ताके
उस पर किसी का कदम ना पड़े तो जो परवरदिगार आपके साये को महफज
रखता है किस तरह मुममिन है के वो आपके अहल को महफूज ना रखे। .
हजरत अली रजी अल्लाहो त्आला अन्ह ने अर्ज किया। या रसूल
अल्लाह! एक जूं का खून लगने से अल्लाह तआला ने आपको नअलैन उतार
देने का हुक्म दिया तो जो परवरदिगार आपकी नअल शरीफ की इतनी सी
आलूदगी को पसंद नहीं फ्रमाता मुमकिन नहीं के वो आपके अहल की
आलूदगी को पसंद करे। द द
इसी तरह और बहुत से सहाबा इक्राम और सहाबियात ने,उम्मुल
मोमिनीन के हक् में तहारत व पाकीजुगी के बयान दिए और कसमें खाई।
आयत नाजिल होने से पहले ही उम्मुल मोमिनीन की तरफ से दिल मुतमईन
थे और आयत के नजल ने उम्मुल मोमिनीन का इज़्जो शरफ और ज़्यादा कर
दिया। ( खुजायन-उल-इर्फान, सफा 49, रूह-उल-बयान, सफा 7/, जिल्द
2, व मदारिज-उन्नबुव्वत, सफा 0 )
सबके:- उम्मुल मोमिनीन आयशा सिद्दीका रजी अल्लाहो तआली
अन्हा को अफ़्फ्त व तहारत का हजुरत उमर रजी अल्लाहो तआला अर,
हजुरत उस्मान और हजूरत अली और दीगर सहाबा और सहाबियात रजी किक
अल्लाह तआला अन्हुम सभी को यकीन था और बोहतान तराजी मुनार्फित
का काम था। पस हमें भी हजरत उमर, हजुरत उस्मान और हजरत अली रजी
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सच्ची हिकायात 325 हिस्सा दोम
अल्लाहो तआला अन््हुमा के नवृशे कृदम पर चलना चाहिए और मुनाफिकीन
की आदत से बचना चाहिए।
फायदा:- उम्मुल मोमिनीन आयशा सिद्दीका रजी अल्लाहो तआला
अन्हा की अफ्फ्त व तहारत का खुद हुज॒र सल-लल्लाहो तआला अलेह व
सल्लम को भी इल्म था चुनाँचे हुजर॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम
ने अलल ऐलान फ्र व दिया था।
वल्लाही मा अलिम्तू अला अहली इलला खैरा ( बुखारी शरीफ,
सफा 55 ) ह ।
“कसम अल्लाह की मैं जानता हूँ के मेरी बीवी नेक ही है।”
मगर चूंके काजी फैसला अपने इल्म की बिना पर नहीं करता बल्के
गवाहों की गवाहियों पर करता है। इसलिए हुजर सल-लल्लाहो तआला
अलेह व आलिही व सल्लम ने बाकायदा तहकीक की और गवाहियाँ लीं
और अगर गवाहों की गवाहियाँ लेने से ये साबित होता है के काजी को
इल्म ना था। तो फिर खुदा के मुतअल्लिक् क्या कहा जाएगा जो कुयामत के
दिन लीवकूनू शौहदाआ अलब्नासी और वजीओना बिका अला हौलाई
ग़हीदा के मुताबिक् मुसलमानों से हुजर॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह व
आलिही व सललम से गवाहियाँ लेकर फैसला फ्रमाएगा। नीजू अगर हुज॒र
सल-लल्लाहो तआला अलेह व आलिही व सल्लम खुद ही फौरन फैसला
फरमा देते तो जो शरफू उम्मुल मोमिनीन को सूरह नूर के नजल से और
अल्लाह तआला के ऐलान बरियत से हासिल हुआ है के कयामत तक
आपकी अफ्फत का ऐलान होता रहेगा, ये शरफ् आपको हासिल ना होता।
हिकायत नम्बर (259) शोहर की मोहब्बत
एक दिन हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सलल्लम ने हजूरत
आयशा रजी अल्लाहो तआला अन्न्हा से फ्रमया! ऐ आयशा! जब तुम मुझ से
खुश होती हो तो मुझे पता चल जाता है और जब कुछ नाराज सी हो जाती
हो तो भी मुझे पता चल जाता है। हजरत आयशा रजी अल्लाहो तआला
अन्हा ने अर्ज किया। वो केसे या रसूल अल्लाह! हुजर॒ सल-लल्लाहो तआला
अलेह व आलिही व सललम ने फ्रमाया। जब तुम मुझ से खुश होती हो तो
यूं कहती हो।” –
मुझे रब्बे मोहम्मद की कुसम! और जब कुछ नाराज सी होती हो तो यूं
कहती हो ला व रब्बी इब्राहीम मुझे रब्बे इन्नाहीम की कुसम। हजरत आयशा
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संच्ची हिकायात 326. हिस्सा दोष
रजी अल्लाहो तआला अच्हा ने अर्ज किया, हा या रसूल अल्लाह! बात यही
है मगर हुजर मअह॒जुख इलल्ला इसम्का मैं सिर्फ आपका नाम ही तो
हूं लेकिन आपकी जात ग्रामी की मोहब्बत तो मेरे दिल में बदस्तूर रहती है।
( मदारिज-उन्नबुव्व्त, सफा 276, जिल्द 2) |
सबक्ः- हज॒र सल-लललाहो तआला अलेह व सलल््लम की हर अदा
तालीम उम्मत के लिए है। इस वाकये में हमें ये सबक् दिया गया है के पिया
बीवी की कोई आपस में मामूली सी रंजिश भी हो जःए तो दिली मोहब्बत
में फर्क ना आना चाहिए और ये रंजिश भी मामूली होना चाहिए उसे बढ़ाना
नाचाहिए। द |
. हिकायत नम्बर७७) सखावत
उम्मुल मोमिनीन हजरत आयशा रजी अल्लाहो तआला अन््हा बेहद
सखी थीं। हजरत अरवा बिन जबैर फ्रमाते हैं के मैंने देखा, एक रोज उम्मुल
मोमिनीन सत्तर हजार दरहम राहे खुदा में तक्सीम कर दिए और एक दफा
हजरत अब्दुल्लाह बिन जबैर रजी अल्लाहो तआला अन्ह ने उनकी खिदमत
में सौ हजार दरहम भेजे तो आपने वो सब दर्हम एक ही रोज में राहे खुदा में
तकसीम कर दिए और उस रोज आप खुद रोजे से थीं। शाम के वक्त बाँदी
ने अर्ज किया। क्या अच्छा होता अगर एक दरहम आप अपनी अपूतारी के
लिए रख लेतीं। और आज गोश्त मंगवा लिया जाता। तो फ्रमाया मुझे याद
नहीं रहा। याद रहता तो गोश्त मंगवा लिया जाता। ( मदारिज-उन्नबुव्बत,
सफा 27, जिल्द 2)
सबक्:- उम्मुल मोमिनीन ने बुसअत के बावजूद अपनी जिन्दगी
निहायत सादा और जाहिदाना गुजार दी और जो दौलत भी हाजिर हुई आपने
राहे खुदा में तकसीम फ्रमा दी। आज हमें भी उम्मुल मोमिनीन के नक्ो
कदम पर चलना चाहिए और दौलत से इस क॒द्र मोहब्बत ना रखना चाहिए
के खुदा को भुला दिया जाए और ज॒कात व सदकात व खैरात का नाम तैंके
ना लिया जाए।
हिकायत नम्बर0 खाला जान
उम्मुल मोमिनीन आयशा सिद्दीका रजी अल्लाहो तआला अन््हों की
अपने भांजे हजरत अब्दुल्लाह बिन जबैर से बड़ा प्यार था उन्होंने ही गोवा
. अपने भांजे को पाला थीं। उम्मुल मोमिनीन रजी अल्लाहो तआला अं
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सच्ची हिकायात 327: हिस्सा दोम
सखावत व फय्याजी का ये आलम देखकर जो कुछ आता, आप राहे खुदा
में तकुसीम कर देती थीं। अब्दुल्लाह बिन जबैर रजी अल्लाहो तआला अन्ह
ने एक दिन कह दिया के खाला जान! का हाथ किस तरह रोकना चाहिए।
उम्मुल मोमिनीन को ये बात मालूप हुई के अब्दुल्लाह बिन जबैर रजी
अल्लाहो तआला अन््हा मेरा हाथ रोकना चाहते हैं तो आप नाराज हो गईं
और उनसे ना बोलने की कसम खा ली। हजरत अब्दुल्लाह बिन जबैर रजी
अल्लाह तआला अन्ह को खाला जान की नाराजगी का बेहद सदमा हुआ
बहुत से लोगें से सिफारिश कराई मगर उन्होंने अपनी कसम का उज्ध पेश
कर दिया। आखिर जब अब्दुल्लाह बिन जबैर रजी अल्लाहो तआला अन्ह
बहुत ही परेशान. हुए तो हुजुर॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह व आलिही ब
सललम के ननिहाल के दो हजरात को सिफारशी बनाकर साथ ले गए वो
दोनों हज॒रात इजाजत लेकर अन्दर गए। अब्दुल्लाह बिन जबैर रजी अल्लाहो
तआला अन्ह भी छुप कर साथ हो लिए। जब वो दोनों पर्दे के पीछे बैठे
और उम्मुल मोमिनीन पर्दा के अन्दर बैठकर बात चीत करने लगीं तो हजरत
अब्दुल्लाह बिन जबैर रजी अल्लाहो तआला अन्ह जल्दी से अन्दर चले गए
और खाला जान से लिपट कर रोने लगे और बहुत रोये और खुशामद की।
वो दोनों हजरात भी सिफारिश करते रहे और मुसलमान से बोलना छोड़ने
के मुतअल्लिक्ू हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व आलिही व सल्लम के
इर्शादात याद दिलाते रहे और अहादीस में जो मुमानिअत इसकी आई है वो
सुनाते रहे जिसकी वजह से उम्मुल मोमिनीन इन अहादीस में जो मुभानिअत
और मुसलममान से बोलना छोड़ने पर जो अत्ताब वारिद हुआ। उनकी ताब
ना ला सकें और रोने लगें, आखिर माफ फ्रमा दिया और बोलने लगीं।
लेकिन अपनी कसम के कुफ्फारे में बार बार गुलाम आजाद कराती थीं हत्ता
के चालीस गलाम आजाद किए और जब भी कभी इस कसम के तोड़ने का
खयाल आ जाता इतना रोतीं के दोपूड़ा तक आँसूओं से भीग जाता। ( बुखारी
शरीफ, हिकायात-उल-सहाबा, सफा ॥0)
सबक्ः- अल्लाह वालों की नाराजुगी सिर्फ अल्लाह ही के लिए होती
है वो किसी दुनयवी मुफाद के पेशे नजर किसी से नाराज नहीं होते और ये
भी मालूम हुआ के रसूल अल्लाह सल-लल्लाहो तआला अलेह व आलिही
व सलल्लम के इर्शादात सुनकर मुसलमान का सर तसलीम खम हो जाता है,
और ये भी मालूम हुआ के अल्लाह का नाम लेकर जो अहेद किया जाए,
उसका पूरा करना बहुत जरूरी है और उसको तोड़ने पर कुफ्फारा जृरूरी
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सच्ची हिकायात 328 हिस्सा दोम
है और अल्लाह वालों के कलूब में इस नाम पाक का बड़ा बकार होता
और खुदा का इस क॒द्र खौफ होता है के कुफ़्फारा अदा कर देने के बाद भी
रोते रहते हैं।
हिकायत नम्बर (27) रोजा-ए-मेहबूब
हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम का जब विसाल
शरीफ हो गया तो उम्मुल मोमिनीन हजरत आयशा सिद्दीका रजी
अल्लाहो तआला अन्हा हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सललम
के रोजा-ए-अनवर में हाजिर होने लगीं और चूंके हुजर सल-लल्लाहो
तआल अलेह व सल्लम हजरत आयशा रजी अल्लाहो तआला अहां
के शौहर थे इसलिए हजरत उम्मुल मोमिनीन इस खयाल से के ये भेरे
शौहर हैं। रोजा-ए-अनवर में खुले मुंह हाजिर होतीं और फिर जब
सिद्दीके अंक्बर रजी अल्लाहो तआला अन्ह का विसाल शरीफ हुआ
और वो हजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सललम के साथ इसी
रोजा-ए-अनवर में दफ्न हुए तो फिर भी हजरत आयशा रजी अल्लाहो
त्तआला अन्हा इस खयाल से एक मेरे शौहर हैं और दूसरे मेरे वालिद हैं,
खुले मुंह ही हाजिर होती रहीं और फिर जब हजरत उमर रजी अल्लाहो
‘तआला अन्ह का विसाल शरीफ हुआ, और वो भी इसी रोजा-ए-अनवर
में दफ्न हुए तो अब उम्मुल मोमिनीन ने अपना मुंह सर कपड़े से ढाप
कर हाजिर होना शुरू किया और फ्रमाया अब यहाँ उमर भी हैं जो गैर
मेहरम हैं। इसलिए उनसे हया जरूरी है। ( मिशकात शरीफ, सफा 7%)
सबक्:- अल्लाह वाले कब्र में भी तशरीफ् ले जाएँ तो जिन्दा ही होते
हैं। देखते और सुनदे भी हैं। इसलिए हजुरत उम्मुल मोमिनीन ने हजूरत उमर
रजी अल्लाहो तआला अन्ह के विसाल क बाद और कब्र में तशरीफ ले जाने
के बाद भी उनसे हया ही फरमाई और उनसे पर्दा किया।
हिकायत नम्बर०2) उम्मुल मोमिनीन हजुरत हफ्सा
रजी अल्लाहो अन्हा
. हजरत फारूके आजम रजी अल्लाहो तआला अन्ह की साहबजादी
हजूरत हफ़्सा रजी अललाहो तआला अन्हा हजरत खनीस की बीवी थीं,
हजरत खूनीस के इन्तिकाल से ये बेवा हो गईं तो हजरत फारूक्े अर्थ
रजी अल्लाहो तआला अन्ह को उनकी फिक्र रहने लगी और जब हजरत
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सच्ची हिकायात 329 हिस्सा दोम
उस्मान रजी अल्लाहो तआला अन्ह की बीवी हजरत रूक्य्या का जो हुज॒र
सल-लल्लाहों तआला अलेह व सल्लम की साहबजादी थीं। इन्तिकाल हुआ
तो हजरत फारूके आजम ने हजरत उस्मान रजी अल्लाहो तआला अन्ह से
दरख़्वास्त की के वो हजरत हफ्सा से निकाह कर लें। हजरत उस्मान ने इस बारे
में सकूत फ्रमाया और हाँ ना की। हजरत उमर रजी अल्लाहो तआला अन्ह
ने इस बात की हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सलल्लम से शिकायत
की तो हुज्र सल-लल्लाहो तआला अलेह व सललम ने फ्रमाया के मैं हफ्सा
के लिए उस्मान से बेहतर खाविंद और उस्मान के लिए हफ्सा से बेहतर
बीवी बताता हूँ। उसके बाद हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सलल््लम ने
हजरत हफ्सा से खुद निकाह फ्रेमाया और हजुरत उस्मान का निकाह अपनी
साहबजादी हजरत उम्मे कुलसुम से कर दिया। ( मदारिज-उन्नबुव्वत, सफा
27, जिल्द 2)
सबक्:- हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सलल्लम के साथ
सहाबा इक्राम अलेहिम-उर-रिज॒वान के रूहानी व जिस्मानी दोनों रिश्ते
थे। सिद्दीके अकबर व फारूके आजम रजी अल्लाहो तआला अन्ह के हुजर
सल-लल्लाहो तआला अलेह व सलल्लम दामाद थे और उस्मान गनी अली
अली अलमुर्तजा रजी अल्लाहो अन्ह के आप खुस्र थे फिर जो कोई उन पाक
लोगों के खिलाफ कुछ कहेगा तो हुजर सल-लर् गहो त्आला अलेह व
सल्लम कोश्क््यों रंज ना पहुँचेगा।
हिकायत नम्बर०9 उम्मुल मोमिनीन जैनब बिनते
हबश रजी अल्लाहो तआला अन्हा
हुज॒र सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम की फूफी जाद बहन जैनब
का निकाह हजरत जैद रजी अल्लाहो तआला अन्ह से जो हुजर सल-लल्लाहो
तआला अलेह व सलल््लम के मुतनब्बे थे, हुआ था, हजरत जैद ने उनको
तलाक दे दी थी। तलाक के बाद फिर उनका निकाह खुद खुदा तआला ने
हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सलल्लम से कर दिया था। चुनाँचे हजरत
जैद रजी अल्लाहो तआला अन्ह ने जब उनको तलाक् दी और इद्दत गुजर गई
तो हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सलल्लम ने उनके पास पयाम भेजा।
उन्होंने जवाब में अर्ज किया के मैं उस वक्त तक कुछ नहीं कह सकती, जब
तक अपने अल्लाह से मशवरह ना कर लूं और ये कह कर वज किया और
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सच्ची हिकायात 330 हिस्सा दोष
नमाज की नीयत बाँध ली और ये दुआ की के या अल्लाह! तेरे रसूल मुझ से
निकाह करना चाहते हैं अगर मैं इस काबिल हूँ तो मेरा निकाह उनसे फरपा
दे इधर हुज्र पर ये आयत उत्तरी फलम्मा कुज़ा जैदन बतरन ज़न्वजना
काहा ( प 23, रूकू 2 ) द
“फिर जब जैद की गर्ज उससे निकल गई तो हमने वो तुम्हारे निकाह
भें दे द्वी १
.. हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम ने इस आयत की
खुशखबरी भेजी तो आप खुशी से सज्दे में गिर गई और आपको इस बात
पर बड़ा फख्र रहा के सब बीबियों का निकाह उनके वलियों ने किया और
मेरा निकाह खुद खुदा जिललो शानहू ने किया। ( मदारिज-उन-नबुव्वत,
सफा 279 )
सबक्:- हुज॒र॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह व सलल्लम की बदौलत
अजुवाज मुतहरात की इतनी बुलंद शानें थीं के वो अपने उमूर में अपने
अल्लाह से मशवरह लेती थीं और अल्लाह तआला उन्हें मसरूर फ्रमाता
था फिर अगर कोई बदगौ इन पाक हस्तियों की शान में कोई एत्राज करे तो
खुदा उस पर क्यों नाराज ना होगा?
हिकायत नम्बर(24) लम्बा हाथ
उम्मुल मोमिनीन हजरत रजी अल्लाहो तआला अन्हा बड़ी सखी थीं और
बड़ी मेहनती, अपने हाथ से मेहनत करतीं जो हासिल होता वो सदका कर
देतीं। एक दिन हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सलल््लम ने अजृवाज
मुतहरात से फ्रमाया के मुझ से सबसे पहले मरने के बाद वो मिलगी जिसका
हाथ लम्बा होगा। ये इरशाद सुनकर अजुवाज मुतहरात ने जाहिरी लम्बाई
समझी और लकड़ी से अपने अपने हाथ नापने शुरू कर दिंए। देखा तो
हजरत सौदा रजी अल्लाहो तआला अन्हा का हाथ सबसे लम्बा निकला, और
जब हजरत जैनब रजी अल्लाहो अन्हा का इन्तिकाल सबसे पहले हुआ तो
फिर समझी के हाथ की लम्बाई से मुराद सदका व खैरात की कसरत थी।
( मदारिज-उन्नबुव्वत, सफा 279 ) क्
सबक :- सखावत से खुदा और रसूल की क्रबत हासिल होती है।
हिकायत नम्बर25) यसरब७) का बादशाह
उम्मुल मोमिनीन हजुरत सफिया रजी अल्लाहो तआला अन्हा हजरत
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सच्ची हिकायात ३ हिस्सा दोम
3॥
मूसा अलेहिस्सलाम के भाई हजूरत हारून अलेहिस्सलाम की औलाद हैं और
सरदार जी की बेटी हैं। आप पहले किनाना इब्ने अबी हकौक के निकाह में
थीं। एक रात आपने ख़्वाब में देखा के चाँद मेरी गोद में है, आपने ये ख़्वाब
अपने खाविंद क़िनाना से बयान किया तो उसने गस्से में आकर एक तमाँचा
इस जोर से मुंह पर मारा के आँख पर उसका निशान पड़ गया, और ये कहा
के तू यसरब के बादशाह से निकाह की तमन्ना करती है। ं
खैबर की लड़ाई में किनाना मारा गया और हज़रत सफिया रजी
अल्लाहो तआला अन््हा बाँदी बन कर मुसलमानों के कब्जे में आ गईं। हजरत
दहिया कल्बी रजी अल्लाहो तआला अन्न्हा ने हुजर सल-लल्लाहो तआला
अलेह व सल्लम से एक बाँदी माँगी। हुजर ने हजरत सफिया उन्हें दे दी। चूंके
मदीने मुनव्वरह में हजरत सफिया रजी अल्लाहो तआला अन्हा के कबीले के
बहुत से लोग आबाद थे और ये सरदार की बेटी थीं इसलिए लोगों ने अर्ज
किया या रसूल अल्लाह! ये बात बहुत से लोगों को ना गवार गुजरेगी। सफिया
को अगर हजर अपने निकाह में ले लें तो बहुत से लोगों की दिलदारी होगी।
चुनाँचे हुजर॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह व सललम ने हजरत दहिया रजी
अल्लाहो तआला अन्ह को खातिर ख़्वाह मुआवजा देकर उनको ले लिया
और उनको आजाद फरमा कर उनसे निकाह फरमा लिया, और खैबर से
वापसी में एक मंजिल पर उनकी रूख्सती हुईं। सुबह को हुजर ने फरमाया के
जिसके पास जो च्चीजु खाने की हो वो ले आए, सहाबा के पास मुताफर्रिक्
चीजें खजूरें , पनीर, घी वगैरा जो था वो ले आए, एक चमड़े का दसतरख्वान
बिछाया और उस पर वो सब डाल दिया गया और सब ने शरीक होकर खा
लिया। यही वलीमा था।
बाज रिवायात में ये भी आया है के हुजर॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह
व सलल्लम ने हजरत सफिया को इख़्तियार दे दिया था के अगर तुम अपनी
कौम और मुल्क में रहना चाहो तो आजाद हो, चली जाओ और अगर मेरे
पास मेरे निकाह में रहना चाहो तो रहो, उन्होंने अर्ज़ किया के या रसूल
अल्लाह! मैं शिर्क की हालत में हुज॒र॒ की तमन्ना करती थी, अब मुसलमान
होकर कैसे जा सकती हूँ? ( मवाहिब लुदनिया, सफा 25, जिल्द 4)
सबक्:- इस्लाम में तकल्लुफात का वजूद नहीं है देख लीजिए वलीमा
किस सादगी से हुआ के जिसके पास जो चीज भी थी ले आया और एक
दसतरख़्वान पर रखकर सब ने मिल कर खा लिया। फिर आज जो दुनिया
भर के तकल्लुफात इख़्तियार किए जाते हैं और बिरादरी की खुशी के लिए
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सच्ची हिकायात । 332 हिस्सा दोष
अंधा धुंद फिजल खर्ची की जाती है। किस क॒द्र गुलत और तकलीफ दह
रविश है। ऐसी रविश के इंसान उमर भर के लिए मक्रूजू भी हो जाता है।
(।) मदीना मुनव्वरह का पहला नाम यसरब था और हुजर सल-लल्लाहो
तआला अलेह व संल्लम की तशरीफ् आवरी से उसका नाम मदीना मुनव्वरह
हो गया। अब प्रदीना मुनव्वरह को यसरब कहना जायज नहीं। उनवान
हिकायत में यसरब इसलिए लिखा गया है के हजरत सफिया रजी अल्लाहो
तआला अन्हा के पहले खाविद ने यसरश ही कहा था।
हिकायत नम्बर27) नबी की बेटी, भतीजी और बीवी!
एक रोज हजरत हफ्सा रजी अल्लाहो तआला अन््हा ने हजरत
सफिया रजी अल्लाहो तआला अन््हा से कह दिया के तू यहूदी की बेटी
है। हजरत सफिया रोने लगीं। इतने मैं हुजर॒ सरवरे आलम सल-लल्लहो
तआला अलेह व सल्लम तशरीफ ले आए और दरयाफ्त फ्रमाया,
सफिया। क्यों रो रही हो? उन्होंने अर्ज किया या रसूल अल्लाह! हफ्सा
ने मुझे “यहूदी की बेटी ” कहा है हुज॒र( स०्अण्स० ) ने फ्रमाया, सफिया
तुम क्यों रोती हो, तुम नबी की बेटी हो , नबी की भतीजी हो और नबी
की बीवी हो, यानी तुम्हारे बाप हारून अलेहिस्सलाम हैं, चचा मूसा
अलेहिस्सलाम हैं और खाविंद मैं हँ। फिर ये हफ़्सा तुम पर किस बात
का फख्र करती है। फिर हुज॒र( स०्अन्स० ) ने हजरत हफ्सा से मुखातिब
होकर फरमाया। ऐ हफ्सा! अल्लाह से डरो और ऐसी बात ना करो।
( मिशकात शरीफ, सफा 566) द
सबक्:- किसी मुसलमान का दिल नहीं दुखाना चाहिए।
फ़ायदा:- ()) मोहद्िसीन का अजवाजे मुतहरात की तादाद में इख़्तिलाफ
है। ग्यारह होने में तो सबका इत्तिफाक् है ग्यारह से ज़्यादा में इख़्तिलाफ है।
( प्रवाहिब लुदनिया, सफा 20, जिल्द )
(2) ग्यारह अजवाजे मुतहरात के असमाग्रामी ये हैं:- उम्मुल मोमिनीन
हजरत खुदीजा। उम्मुल मोमिनीन हजरत आयशा। उम्मुल मोमिनीन
हजरत हफ्सा। उम्मुल मोमिनीन हजरत हबीबा। उम्मुल मोमिनीन हजरत
उम्मे सलमा। उम्मुल मोमिनीन हजरत सौदा। उम्मुल मोमिनीन हजरत
जैनब बिनते हबश। उम्मुल मोमिनीन हजरत मेमूना। उम्मुल मोमिनीन
हजरत जैनब बिनते खुजीमा। उम्मुल मोमिनीन हजरत जवेरिया बिनते
हारिस। उम्मुल मोमिनीन हजरत सफिया रिजृवानुल्लाही तआला अलेहिन।
9९९06 099 (थ्वा]5८शाशश’
सच्ची हिकायात बेड हिस्सा दोम
(मवाहिब लुदनिया, सफा मजकूरा ) के
() हम ने सिर्फ पाँच अजवाजे मुतहरात का जिक्र किया है।
हिकायत नम्बर) खातूने जन्नत
हुजूर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सलल्लम की चार साहबजादियों
में से हजरत खातूने जन्नत फातिमा रजी अल्लाहो तआला अन्हा से हुज॒र
को बहुत ज़्यादा प्यार था और आपकी बहुत बड़ी शान थी। एक दिन हुज॒र
सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम मुसकुराते हुए तशरीफ लाए। हजरत
अब्दुरहमान बिन ओफ रजी अल्लाहो तआला अन्ह ने दरयाफ्त किया। या
रसूल अल्लाह! ये कैसी खुशी है? फ्रमाया। एक ताजा खुशखबरी की वजह
से। जो अभी मेरे परवरदिगार की तरफ से अली और फातिमा के बारे में
आई है। आज खुदा तआला ने फातिमा को अली के निकाह में दे दिया है।
( नुजुह्त-ठउल-मजालिस, सफा 378, जिल्द 2)
सबक्:- हजरत फातिमा रजी अल्लाहो तआला अन्हा की बहुत बड़ी
शान हैं और आपका निकाह हजरत अली रजी अल्लाहो तआला अन्ह से
खुदा की मर्जी के मुताबिक् हुआ है।
हिकायत नम्बर27) रसमे निकाह
हजरत फातिमा रजी अल्लाहो तआला अन्हा जब बालिग हो गई तो
हुजर सल-लल्लहो तआला अलेह व सल्लम की खिदमत में बहुत से पयाम
पहुँचे लेकिन हुजर॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह व सलल्लम ने किसी पर्याम
को मंजर ना फरमाया। हजरत अली रजी अल्लाहो तआला अन्ह से एक
मर्तबा सहाबा इक्राम अलेहिम-उर-रिजुवान ने आपस में मशवरा करके
कहा के आप भी हुज॒र सल-लल्लाहो तआला अलेह व सलल्लम की खिदमत
में निकाह का पैगाम भेजें। हजरत अबुबक्र रजी अल्लाहो तआला अन्ह ने
जर इम्दाद देने का भी वादा फ्रमाया। चुनाँचे हजरत अली रजी अल्लाहो
तआला अन्ह हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम की खिदमत में
हाजिर हुए लेकिन इजूहार अर्ज के लिए हया मानओ थी। इसलिए सर झुका
खामोश बैठ गए। आखिर हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम
ने खुद ही फ्रमाया क्यों ऐ अली। क्या कहना चाहते हो, कहो जो कहना
है तुम्हारी अर्जी सुनी जाएगी। हजरत अली रजी अल्लाहो तआला अन्ह ने
अपना इरादा जाहिर फ्रमाया। जिसको सुनकर हुजूर सल-लल्लाहो तआला
9९९06 99 (थ्वा]5८शाशश’
सच्ची हिकायात 334 हिस्सा
अलेह व सल्लम ने फ्रमाया, हमें मंजर है। और फिर एक दिन हजरत
रजी अल्लाहो तआला अन्ह का हजरत फातिमा रजी अल्लाहो तआला
के साथ चालीस दीनार चाँदी मेहर बाँधकर मस्जिदे नबत्वी में खुत्बा पढ़ा।
( तारीखे इस्लाम, सफा 62 ) द द
– सबक्ः- सहाबा इक्राम और हजूरत अली रजी अल्लाहो तआला
सब आपस में एक दूसरे के खैर ख़्वाह और दोस्त थे और हजरत अलो के
निकाह क लिए सब ने कोशिश की और और हजरत सिद्दीके अक्बर ने माली
इम्दाद भी फ्रमाई और ये भी मालूम हुआ के अल्लाह व रसूल की मजी यही
थी के हजरत फातिमा का निकाह हजूरत अली से हो
. (मंजूम)
हिकायत नम्बर” जलवा-ए-बराअत
गोशे दिल से मोमिनों सुन लो जरा
है ये किस्पा फातिया के अकृद का
पंद्रह साला नबी की लाडली!
और थी बाईस साल उम्र अली
अकृद का पयाम हैदर ने. दिया
‘मुसतका ने मरहबा अहलन कहा
पीर का दिन सत्रह माहे रजब
– दूसगा सनहे हिजरत शाहे अरब
फिर मदीना में हुआ एलाने आम
जोहर के वक़्त आएँ सारे खास व आम
इस ख़बर से शोर बर्षा हो गया
कूचा व बाज़ार में गल सा मचा
आज है मौला की दुख्तर का निकाह
आज है उस नेक अख्तर का निकाह
आज है उस पाक सच्ची का निकाह
आज है बे माँ की बच्ची का निकाह
खैर से जब बक़्त आया जोहर का
मस्जिद नबव्वी में मजमा हो गया |
एक जानिब हैं अबुबक्र और उमर
इक तरफ उस्पान भी हैं जलवा गर
9९९06 99 (थ्वा58८शाशश’
सच्ची हिकायात कद क् किस्सा वो
हर तरफ असहाब और अनार हैं
दरामिया में अहमदे मुख्तार हैं
सामने नोशा अली अल -मुर्तज़ा
हैदर करार शाहे ला फता
आज गोया अर्श आया है उतर
या के कृदसी आ गए हैं फर्श पर
जमा जब ये सारा मजया हो गया
सय्यद-उल-कोनैन ने ख़त्ला दिया
जब हुए ख़त्बे से फारिग मुसतफा
अकद जौहरा का अली से कर दिया
चार यौँ गिसकाल चाँदी मेहर था
वज़न जिसका डेढ़ सौ तोला हुआ
बाद में खर्मे लुगाए ला कलाम
मासिवा उसके ना था कोर्ट तआम
उनके हक में फिर दुआऐ खैर की
‘ और हर हक ने मुबारकबाद दी
घर से रूख्सत जिस घड़ी जोहरा हुई
वालिदा की याद में रोने लरग्ीं
दी तसलल्ली अहमद मुख्तार ने
और फरमाया शहे अबरार ने
फातिमा हर तरह से बाला हो तुम
मैंका व सुसराल में आला हो तुम
बाप हैं तेरे डइमाम-उल-अंबिया
ओर श्ौहर ऑलिया के पैशवा
माह ज़िलहिज में जब रूख़्तत हुई
तब अली के घर में इक दावत हुई |
जिसमें थीं देस सैर जो की रोटियाँ
कुछ पनीर और थोड़े खर्मे बेयमों
इस जियाफत का वलीमा. नाम है
और ये . दावत सुन्नते इस्लाम है
( मौलाना मुफ्ती अहमद यार खाँ की तालीफ इस्लामी जिन्दगी
सफा 30)
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सच्ची हिकायात 336 हिस्सा दोप.
सबक:- सबको उनकी राह पर चलना चाहिए
और बुरी रसमों से बचना चाहिए
हिकायत नम्बर (280) जहैज
फातिमा जोहर का जिय दिन अकृद था
सुन लो उनके साथ क्या क्या नक़्द था
एक चादर सत्रह पैवंद”’ की
मुसतफा ने अपनी दुख्तर को ये दी
एक तोशक जिसका चमड़े का ग्रिलाफ
एक वकिया – ऐसा ही लिहाफ
जिसके अन्दर ऊन ना रेशयब रूईई
बल्के उसमें छाल खर्मे की भरी
एक चक्की पीसने के वास्ते
एक मशकीजह भी पानी के लिए
एक लकड़ी का पियाला साथ में
नुकरई कंगन की जोड़ी हाथ में
और गले में हार हाथी दांत का
एक जोड़ा भी खड़ाओं का दिया
शाहज़ादी सप्यदे कोनैन की
बे सवारी ही अली के घर गई!
साहने लोलाक पर लाखों सलाम
… इस जहैज़े पाक पर लाखों सलाम
( किताबे मजुकूरा, सफा 3॥ )
| सबक्:- वास्ते जिनके बने दोनों जहाँ
उनके घर की थीं सादीं शादियाँ
हिकायत नम्बर) शाहजादी की जिन्दगी
आई जब ख़ातूने जन्नत अपने घर
._ पड़ गए सब काम उनकी जात पर
काम हि कंपड़े भी काले पड़ गए
हाथ में चक्की से छाले गए
दी ख़बर ज़ोहरा को असद-उल्लाह ने
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सच्ची हिकायात हिस्सा दोम
बाँटे हैं कैदी रसल अल्लाह ने
एक लोंडी भी अगर हमको मिले
इस मुसीबत से तुम्हें राहत मिले
सुनकर ज़ोहरा आईं सिद्दीका के घर
त्राके देखें हाथ को छाले पद्र
पर ना थे दौलत कदा यै शाहे दीं
वालिदा ने माजया सारा कहा
फातिमा छाले दिखाने आई थीं
घर की तकलीफें सुनाने आई थीं.
आपको पर में ना पाया गज़ाहे दीं
. मुझ से सब दुख दर्द अपना कह गर्ड
एक लोंडी आप गर उनको भी दें
. चक्की ओर चूलहे के वो दुख से बचें
सुन लिया सब कुछ रसूले याक ने
कुछ ना फ्रमाया शहे लोलाक – ने
| श़ब को आए मृुसतफा जोहर के घर
और कहा दुख्तर से ऐ जान पद्रः
हैं ये खादिम इन यतीमों के लिए
बाप जिनके जंग में. मारे गए
तुम पर साया है रसूल अल्लाह का
आयरा रखो फक्त् अल्लाह का
हम तुम्हें तसबीह इक ऐसी बताएँ
आप जिससे ख़ादिमों को धूल जाएँ क्
| अव्वल_ सुबहान 3 बार हो!
. और फिर अलहम्द इतनी ही पढ़ो
और + बार हो तकबीर भी
ताके सो हो जाएँ ये मिल कर सभी
न पढ़ लिया करना इसे हर सुबह व शाम
:…विर्द में रखना इसे अपने मुदाम
खलल्द की मुख्तारा राजी हो गई
सुन के ये इर्शाद खुश खुश सो गई
( किताब मज॒कूरा, सफा 32 )
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सच्ची हिकायात 338 हिस्सा दोग
सबक:ः- सालिक उनकी राह जो कोर्ड़ चले
. एणणद्वन व दुनिया की मुसीबत से दले
फायदा:- अल्लामा रहावी जामओ-उल-मोजजात में फरमाते हैं, हजरत
फातिमा रजी अल्लाहो तआला अन्हा हाथ से आटा गूंथती , जबान से करआन
पढ़ती, दिल से तफ़्सीर करतीं और पैर मुबारक से हुसनैन का झोला झुलाती
और आँखों से खुदा की याद में रोती थीं और आज कल की औरतें हाथ प्र
ढोलक बजातीं, जबान से गीबत करतीं , दिल से दुनिया को चाहतीं, आँखें
से बेशर्मी का मुजाहेरा करतीं और पैरों से नाचतीं हैं, फिर ये जन्नत में कैसे
जा सकेंगी?
हिंकायत नम्बर००) जन्नत का जोड़ा
एक यहूदी की लड़की जो बड़ी मालदार थी, बियाही गई और बहुत
सी औरतें उसकी शादी में बुलाई गईं जो बड़े बैश कौमत कपड़े पहन
कर आईं। उन औरतों ने कहा के हमारी दिली आरजू है के किसी तरह
मोहम्मद( स०अब्स० ) की बेटी फातिमा और उसके फुक्र को भी देखें।
चुनाँचे यहूदी की लड़की ने हजरत फातिमा रजी अल्लाहो तआला अन्हा
को बुला भेजा। आपने उसकी इस तंक्रीब में शामिल होने का वादा भी .
कर लिया अभी थोड़ी देर भी ना गुजूरी थी के जिब्राईल अलेहिस्सलाम
जन्नत का एक जोड़ा लेकर हाजिर हुए और हुज॒र( स“्अन्स० ) ने वो जन्नती
जोड़ा हजरत फातिमा को पहनने के लिए दियां। आपने वही जोड़ा पहना
और यहूदी की लड़की की शादी में तशरीफ ले गई। जब आप उन औरतों
में बैठीं तो उस जोड़े से नूर के चमकारे पैदा हुए। औरतों ने हैरत में आकर
पूछा, फातिमा ये लिबास तुम्हारे पास कहाँ से आया? फ्रमाया, मेरे
बाप के घर से। औरतें बोलीं , तुम्हारे बाप को किस ने दिया? फ्रमाया,
जिब्राईल ने, और जिब्राईल कहाँ से लाए? फ्रमाया, जन्नत से ये सुनकर
सबने बाइत्तिफाकु कलमा-ए-शहादत पढ़ा और नशह॒दअन्ना लाइलाह
इललल्लाह वभन्ना मोहम्मदन रसूल अल्लाह के नारे से सारा मर्की
गूंज उठा। ( नुजुहृत-उल-मजालिस, सफा 279, जिल्द 2)
सबक:- हुज॒र सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम और अहले
बैत अंजाम का फुक्र, फुक्र इख़्तियारी था, जैहदो फुक्र और सादगी
अपनी इख़्तियार कर्दा और तालीम उम्मत के लिए थी वरना वो जन्नेते
मालिक थे और उनका लिबास भी जन्नत से बन कर आता था।
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सच्ची हिकायात 339 हिस्सा दोम
हिकायत नम्बर०७) शाही टावत
एक रोज हजरत उस्मान गृनी रजी अल्लाहों तआला अन्ह हुजर
सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम की खिदमत में हाजिर हुए और अर्ज
की या रसूल अल्लाह! आज आपकी मेरे घर दावत है, हुजर ने कबूल फ्रमा
लिया और अपने असहाब समेत हजरत उस्मान के घर तशरीफ ले चले,
हजरत उस्मान रजी अल्लाहो तआला अन्ह हुज॒र के पीछे पीछे चलने लगे
और हुजूर और हुज्र का एक एक कदम मुबारंक जो उनके घर की तरफ्
चलते हुए जुमीन पर पड़ रहा था गिनने लगे। हुजर सल-लल्लाहो तआला
अलेह व सललम ने दरयाफ्त फ्रमाया। ऐ उस्मान! ये मेरे कृदम क्यों गिन रहे
हो? हजरत उस्मान ने अर्ज किया। या रसूल अल्लाह! मेरे माँ बाप आप पर –
कर्बान हों। मैं चाहता हूँ के हुजुर के एक एक कदम के अवज में आपकी
तअजीम व तौकीर की खातिर एक एक गलाम आजाद करूं। चुनाँचे हजरत
उस्मान के घर तक हुजर के जिस कृद्र कृदम पड़े, उसी क॒द्र गलाम हजरत
उस्मान ने आजाद किए। का
जब ये दावत हो चुकी तो हजरत मौला अली रजी अल्लाहो तआला
अन्ह अपने घर तशरीफ लाए तो हजरत फातिमा रजी अल्लाहो तआला अन्हा
ने देखा के आप बड़े मगृमूम से थे। हजरत फातिमा ने दरयाफ्त फ्रमाया। क्के
आप परेशान क्यों हैं। तो फरमाया, फातिमा! आज मेरे भाई उस्मान ने हुजर
सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम की बड़ी शानदार दावत की है और
हुज॒र के एक एक कदम के अवज उसने गलाम आजाद किए हैं ऐ काश!
हम भी हुज॒र की इसी किस्म की कोई दावत कर सकते। हजरत फातिमा
ने फरमाया। आप परेशान ना हों। जाईये और हुजर को आप भी दावत दे
आईये। हजरत रजी अल्लाहों तआला अन्ह ने फ्रमाया मगर इस क॒द्र बड़ा
इन्तिजाम और एक एक कदम के बदले एक एक गूलाम् आजाद करना
ये कैसे होगा? फरमाया, इंशा अल्लाह सारा इन्तिजाम हो जाएगा। चुनाँचे
हजरत अली गए और हुजर की खिदमत में हाजिर होकर दावत अर्ज कर
दी। हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम ने कूबूल फ्रमा ली और
अपने असहाब समेत हजरत फातिमा के घर तशरीफ ले चले। हजरत फातिमा
रजी अल्लाहो तआला अन््हा ने हुजर॒ को असहाब समेत बिठाया और खुद .
खुलवत में तशरीफ ले ज़ाकर सज्दे में गिर गईं और अल्लाह से अर्ज की के:
ऐ अल्लाह! तेरी बंदी फातिमा ने तेरे मेहबूब और मेहबूब के असहाब
9९९6 99 (थ्वा]5८शाशश’
सच्ची हिकायात. 340 का हिस्सा दोग
की दावत की है और तेरी बंदी का तुझी पर भरोसा है। इलाही! मेरी लाज
रख और इस दावत के खाने का तू इन्तिजाम फ्रमा दे।”
ये दुआ माँग कर हजरत फातिमा ने हंडिया-को चूलहे पर रखा और
रो रो कर फिर अपने अल्लाह से दुआ की के मौला! अपनी बंदी
को शर्मिंदा ना करना। खुदा तआला का दरयाऐ करम जोश में आया
और उसने उस हंडिया को जन्नत के खाने से भर दिया। हजरत फातिग्ा
रजी अल्लाहो तआला अन््हा ने इस हंडिया में से सबको खाना भेजना
शुरू फ्रमाया। हुजर॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम और आफ
सारे असहाब ने.खाना तनावुल फ्रमा लिया। लेकिन, हंडिया में से कुछ
भी कम ना हुआ।
हुज॒र सल-लल्लाहो तआला अलेह व सलल््लम ने सहाबा इक्राम पे
फरमाया जानते हो! ये खाना कहाँ से आया है? सहाबा ने अर्ज की, नहीं या
रसूल अल्लाह! फ्रमाया, ये खाना अल्लाह ने हमारे लिए जन्नत से भेजा है।
सहाबा इक्राम ये सुनकर बड़े खुश हुए। द
हजरत फातिमा रजी अल्लाहो अन्हा फिर खूलवत में गईं और सच्े में
गिर कर दुआ की के: |
“ऐ अल्लाह! उस्मान ने तेरे मेहबूब के एक एक कदम के अवज एक
एक गुलाम आजाद किया है और तेरी बंदी में इतनी इसतताअत नहीं। मौला!
जहाँ तूने मेरी खातिर जन्नत से खाना भेज कर मेरी शर्म रख ली है वहाँ तू
मेरी खातिर अपने मेहबूब के इन कदमों के बराबर जितने कृदम चलकर
वो मेरे घर तशरीफ लाए हैं मेहबूब की उम्मत के गुनहगारों को जह॒न्लुम से
आजाद कर दे।” ।
हजूरत फातिमा जब इस दुआ से फारिगु हुईं तो जिब्बनाईले अमीन ही
हाजिर होकर हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सललम से अर्जु किया, वा ‘
रसूल अल्लाह! अल्लाह तआला ने मुझे ये बशारत देकर भेजा है के
साहबजादी की दुआ कबूल फ्रमाते हुए हमने आपके हर कृदम के अर
एक हजार गुनहगारों को जहन्मम से आजाद कर दिया। ये बशारत सुनर्के
हुजूर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम और सहाबा इक्राम बड़े कर
हुए। ( जामअ-अल-मोजजात मिस्री, सफा 6 ) ह ।
सबक्:- हजरत फातिमा रजी अल्लाहो त्आला अन््हा का बड़ा बल
मर्तबा है के आपकी खातिर अल्लाह ने जन्नत से खाना भेजा। और
तुफैल खुदा ने गुनहगारों को जहन्नम से आजाद कर दिया, और ये भी
9९९6 99 (थ्वा5८शाशश’
सच्ची हिकायात 34॥ …… हिस्सा दोम
हुआ के हजरत उस्मान रजी अल्लाहो तआला अन्ह बड़े सखी और ह॒जर के
सच्चे जाँबाज थे और ये भी मालूम हुआ के सहाबा इक्राम और अहले बैत
ओअजाम सब आपस में मोहब्बत रखते थे।
हिकायत नम्बर०७) राज की बात
उम्मुल मोमिनीन हजरत आयशा रजी अल्लाहों तआला अन्हा
फ्रमाती हैं के हुजर अलेहिस्सलाम के मर्ज विसाल के दिनों एक दिन
हजरत फातिमा रजौ अल्लाहो तआला अन्हा की खिदमत में हाजिर हुईं
तो हुज॒र सल-लल्लाहो तआला अलेह व सलल्लम ने उन्हें अपने दायें
जानिब बिठा लिया और फिर कोई राज की बात उनसे फ्रमाईं। जिसे
सुनकर हजरत फातिमा रो पड़ीं हुज॒र ने फिर कोई दूसरी बात फ्रमाई
जिसे सुनकर हजुरत फातिमा हंस पड़ीं। हजरत फातिमा ने फ्रमाया, मैं
रसूल अल्लाह सल-लल्लाहो तआला अलेह व सलल्लम के राज को’ अफ्शा
ना करूंगी। फिर जब हुज॒र सल-लल्लाहो तआला अलेह व सलल्लम का
विसाल हो गया तो मैंने हजरत फातिमा से पूछा के बेटी! अब तो बता
दो, के उस रोज क्या बातें हुईं थीं के तुम पहले रो पड़ी थीं और फिर हंस
भी दी थीं। हजरत फातिमा ने फरमाया, अम्मी जान! हुजर सल-लल्लाहो
तआला अलेह व सल्लम ने मुझे पहले ये फ्रमाया था के जिब्नाईल मेरे
साथ हर साल कुरआन का एक बार दौरा किया करता था मगर इस साल
उसने दो दफा दौरा किया है। मुझे मालूम होता है के मेरे विसाल का
वक्त आ गया है। मैं ये बात सुन कर रो पड़ी और फिर हुजर ने फरमाया
बेटी! मेरे अहले बैत में से सबसे पहले तुम्हारा विसाल होगा, तो मैं ये
बात सुनकर हंस पड़ी थी। ( बुखारी शरीफ, सफा 522, जिल्द )
‘सबकः:- हजरत फातिमा रजी अल्लाहो तआला अन्हा को एक
खास मुकाम हासिल था और हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम
को अपने विसाल शरीफ का इल्म था। और आपको हजरत फातिमा रजी
अल्लाहो तआला अन्हा के भी विसाल शरीफ का इल्म था।
हिकायत नम्बर०७) विसाल फातिमा
खातूने जन्नत हजरत फातिमा रजी अल्लाहो तआला अन्हा जब
बीमार हुईं तो हजरत अली रजी अल्लाहो तआला अंन्ह ने उनसे फरमाया।
ऐ फातिमा! मेरी ये वसीयत है के जब हुज्र सल-लल्लाहो तआला अलेह
9९९06 99 (थ्वा]5८शाशश’
सच्ची हिकायात 342 हिस्सा दोम
व॑ सलल्लम के पास पहुँचो तो मेरा सलाम अर्ज करना और कहना, या
रसूल अल्लाह! मैं आप का बड़ा मुश्ताक् हूँ। हजरत फातिमा ने फरमाया
और मेरी भी एक वसीयत है और वो ये के जब मेरा इन्तिकाल हो जाए
तो मुझ पर चीख चिललाकर मातम ना करना और मेरे नूरे चश्म हसन व
हुसैन को मारना नहीं , और ऐ शेरे खुदा! वो देखिए, हुजुर सल-लल्लाहो
तआला अलेह व सल््लम फरिश्तों के अंबूह में तशरीफ ले आए हैं। अब
में जा रही हूँ और मेरे इन्तिकाल के बाद फलाँ जगह मैंने एक कागज का
टुकड़ा बड़ी हिफाजुत से रखा है उस कागज को निकाल कर मेरे कफन
में रख देना और उसे पढ़ना नहीं। हजरत अली ने फ्रमाया, फातिमा!
रसूल अल्लाह का वास्ता देकर कहता हूँ के मुझे बता दो के उस कागृज॒
में क्या लिखा है? हजरत फातिमा ने फरमाया। मेरा निकाह जब आपसे
होने लगा था तो हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सलल््लम ने मुझ
से फ्रमाया, फातिमा! मैं अली से चार सौ मिश्काल चाँदी के मेहर पर
तुम्हारा निकाह करने लगा हू। मैंने अर्ज किया। या रसूल अल्लाह! अली
मंजर हैं लेकिन इतना मेहर मुझे मंजर नहीं। इतने में जिद्बाईले अमीन ने
हाजिर होकर हुज्र से अर्ज किया, या रसूल अल्लाह! खुदा फरमाता है
के मैं जन्नत और उसकी नअमतें फातिमा का मेहर मुकरर करता हूँ। हुजर
मे मुझे उसकी खबर दी तो मैं फिर भी राजी ना हुई हुजर ने फरमाया तो
फिर तुम खुद ही बंताओ के मेहर क्या हो? मैंने अर्ज़ किया, या रसूल
अल्लाह! आप हर वक्त अपनी उम्मत के गम में रहते हैं। मैं चाहती हूँ ‘
के आपकी गुनहगार उम्मत की बख्िशिश मेरा मेहर मुक्रर हो। चुनाँचे
जिब्राईल वापस गए और फिर ये कागृज का टुकड़ा लेकर आए जिसमें
लिखा है। जआल्तू शिफाअता उम्पती मोहम्पादिन सदाकू फातिमाता
मैंनें उम्मते मोहम्मद की शफाअत फातिमा का मेहर मुक्रर किया”
( जामओ-अल-भोजजूत मिमस्री, सफा 62)
सबक :- हुज॒र सल-लल्लाहो तआला अलेह व सलल््लम के सदका में
हम गुनहगारों पर अल्लाह का बड़ा फज्लो करम है के हुज॒र॒ को साहबजादी
को भी हम गुनहगारों का खयाल रहा और वो हमारी बरिक्रिश का इन्तिजाम
फ्रमा गई। फिर ये कहना के उन अल्लाह वालों से कुछ हासिल नहीं होता।
किस क॒द्र जहालत की बात है है और ये भी मालूम हुआ के चीख चिल्ला
कर मातम नहीं करना चाहिए। इस चीज से खुद खातूने जन्नत ने भी मना
फरमाया है। ह
9९९06 99 (थ्वा5८शाशश’
सच्ची हिकायात हिस्सा दोम
हिकायत नम्बर०७) हजरत अलीए र०आ० ) और
कफे का लश्कर
. एक दफा जब हजुरत मौला अली रजी अल्लाहो तआला अच्ह ने कूफे
से लश्कर तलब फ्रमाया और बहुत सी कीलो काल के बाद वहाँ से लश्कर
भेजा गया तो लश्कर के आने से पहले ही हजरत अली रजी अल्लाहो तआला
अन्ह ने खबर दें दी के कूफे से बारह हजार आदमी आ रहे हैं। आपके साथियों
में से एक साहब लश्कर की गुजरगाह पर आन बैठे और जब लश्कर आया
तो एक एक आदमी को गिनना शुरू कर दिया। चुनाँचे जितनी तादाद हजरात
अली ने बताई थी। उससे एक भी कमो बैश ना निकला, और पूरे बारह हजार
आदमी ही निकले ( शवाहिद-उन्नबुव्वत, सफा 2)
सबक :- हजरत अली रजी अल्लाहो तआला अन्ह का ये इल्म सब
सदका था हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम का फिर खुद हुजर
सल-लल्लाहों तआला अलेह व सलल्लम की वुसअते इल्म का कौन अंदाजा
कर सकता है, बावजूद इसके अगर कोई हुज॒र सल-लल्लाहो तआला अलेह
व सलल्लम के मुतअल्लिक् यूं कहे के आपको दीवार पीछे का भी इल्म ना
था तो खुद ही फैसला कर लीजिए के वो शख्स खुद जाहिल बल्के अजहल
है या नहीं?
हिंकायत नम्बर७४) किबाला नवैसी
हजरत मौलाना अली रजी अल्लाहो तआला अन्ह की खिदमत में एक
शख्स हाजिर हुआ और अर्ज की के मैंने एक मकान खरीदा है। आप उसका
किबाला बीअ नामा तहरीर फरमा दीजिए। हजरत अली ने फरमाया के बीअ
_नामा का पहले मुसव्वदा सुन लो फिर किबाला लिखवा लेना।
इडतरा मग्रखरन मिनर संगररूरी रारन ला बकाआ लहा बला
लिसाहिबहा व हिया फी स्िक्कातिल गाफीलीना अलहडद्ू अव्वलु
अलमोौतू। वलहदूस्पानिल क॒ब्र। वलहदूस्सालिसुल हशरू वलहदूर्राबीअ
गैर मालूमिन ड्म्पा जन्नतू अविन्नास्त/
एक मकान धोका खाने वाले ने धोका खाए हुए से ख्रीदा। ना वो मकान
रहेगा, ना मकान वाला और वो मकान गाफिल लोगों की गली में है और
उसकी चारों हदें ये हैं।
“अव्वल हद उसकी मौत है, दूसरी हद कब्र है, तीसरी हद मैदाने हष्न है
9०९06 99 (थ्वा]5८शाशश’
सच्ची हिकायात उबर
और चौथी हद मालूम नहीं जन्नत है या दोजख ”
जब ये मुसव्बदा खरीदार ने सुना तो रोता हुआ चला गया। और मकान
खरीदने से इंकार कर दिया। ( सीरत-उल-सालेहीन, सफा 7 )
सबक :- दुनिया और अहले दुनिया को बका हासिल नहीं आखिर
फना हैं और इंसान को लाजिम है के वो हर वक्त मौत, कृत्र और हप्न को
याद रखे।
. हिकायत नम्बर»8 अमल का संदूक्
. एक शख्स जिनका नाम कमील था। हजरत मौला अली रजी अल्लाहो
तआला अन्ह के हमराह कहीं जा रहे थे के रास्ते में एक कब्रिस्तान आ गया।.
हजरत अली रजी अल्लाहो आला अन्ह ने वहाँ अहले कूबूर को खिताब
फरमाया। और फ्रमाया ऐ अहले कबूर! ऐ वहशत व तनहाई वालो! क्या
ख़बर है और क्या हाल है फिर इर्शाद फ्रमाया के हमारी खबर तो ये है के
तुम्हारे बाद तुम्हारे अमवाल तकसीम हो गए। तुम्हारी औलादें यतीम हो गईं
तुम्हारी बीवियों ने दूसरे खाविंद कर लिए।
ये तो हमारी खबर है, तुम कुछ अपनी तो कहो, कमीन कहते हैं के
हजरत अली रजी अल्लाहो तआला अन्ह फिर मेरी तरफ् मुखातिब हुए और
फरमाया के ऐ कमील! अगर इन लोगों को बोलने की इजाजत होती तोये
लोग जवाब में ये कहते के बेहतरीन तोशा तकवा है। ये फरमया और फिर
हजरत अली रजी अल्लाहो तआला अन्ह रोने लगे और फ्रमाया, ऐ कमील!
कब्र अमल का संदूक है और मरने के बाद कब्र में इस बात का इल्म हो जाता
है। ( कंज-उल-उम्माली व मिसलाहू फी हुज्जतुल्लाही अललआलीमीना,
सफा 852 )
सबक्:- मरने के बाद सब कुछ यहीं रह जाता है और सब चीजे
दूसरों के कब्जे में आ जाती हैं। इंसान के साथ अगर कोई चीजू जाती है
नेक आमाल, बकौल शायर क्
इ कहा ओहबाब ने- ये दफन को वक़्त
को हम क्यों कर वहाँ का हाल जानें
लहद तक आपकी तअजीम कर दी
अब आगे आपके आमाल . जानें मा
और ये भी मालूम हुआ के कुब्र अमल का संदूक् है जिस तरह ***
में चीज मेहफूज रहती है। इसी तरह आदमी जो कुछ अच्छा बुरा काम करती
9९९06 99 (थ्वा]5८शाशश’
हिस्सा दोम
सच्ची हिकायात हा हिस्सा दोम
है। वो उसकी कब्र में मेहफ्ज रहता है। |
हिकायत नम्बर) खुश तबई
एक दिन हजरत अली रजी अल्लाहो तआला अन्ह कहीं तशरीफ ले जा
रहे थे और उनके दायें बायें दो बुलंद कामत सहाबी चल रहे थे। चूंके हजुरत
अली रजी अल्लाहो तआला अन्ह का कद मुबारक उन दोनों सहाबियों से
छोटा था। इसलिए उनमें से एक सहाबी ने हजरत अली से अजरह खुश तबई
कहा के “अता बेनना कान्नोनी फी लगा” यानी ऐ अली! आप हम दोनों
के दरमिमयान ऐसे होते हैं जैसे लफ्ज “लना” में “नून” मतलब ये के हम
दोनों आपकी निस््बत दराज कद के हैं। हजरत अली रजी अल्लाहो तआला
अन्ह ने जवाब में फ्रमाया: लो लम अकुन बैनाककुमा लकुतुमा ला यानी
अगर मैं तुम्हारे दरमियान होता तो तुम मअदूम हो जाते क्योंके “लना” से
नून को निकाल दिया जाए तो बाकी “ला” रह जाता है और का मानी ( ना )
और मअदूम है। ( कशफ-उल-गुमा और मुगनी-उल-वाजैन, सफा 308 )
सबक्:- पाक लोगों का मजाक भी पाक और इल्मी होता है, बस
मजाक व खुश तबई ऐसी होनी चाहिए जिसमें फुक्कड़ बाजी और बेहूदगी .
नाहो। ‘
मंजम । ह
हिकायत नम्बर ००) इम्तिहान
मुर्तज़ा शेरे खुदा को सामने
अर्ज़ की इक मुशरिक नाकाम ने
आपको कहते सुना है. बारहा
| हाफिज़॒ व नासिर हमारा है खुदा
आप का सच्चा है अगर ये कलाम
उस ये रखते हैं यर्कीं भी आप तमाम
उस मकाँ को बाम पर चाढ़ेिए ज़रा
कह के बिस्मिल्लाह गिर यढ़िएं ज़रा
हम भी तो देखें तुम्हारा वो खुदा
किस तरह मरने से लेता है बचा
आपने फरमाया ये तेरा सवाल
है हिमाकृत का निशाँ ऐ बे कमाल
9९९06 99 (थ्वा5८शाशश’
सच्ची हिकायात …_ ३46 हिस्सा दोष
हैं तेरा मतलब बढनूं मैं बे अदब
इम्तिहाँ लूँ उसका जो है मेरा रब
हम वो बन्दे हैं हमारी क्या मजाल
‘ इम्बिहाँ लें उसका जो है ज़िल्लों जलाल
है हकीम व कादिर व मतलक् खुदा:
काम में उसके नहीं चू व चरा
( दर मंजूम तर्जुमा मसनवी शरीफ, सफा % )
सबकः;-
इख्तियार आका की है ये बारहा
आजमाए अपने बचे की वकफा
बन्दा आका का अगर ले इग्विहाँ
उसको दीवाना कहेगा कुल जहाँ
हिकायत नम्बर०७) मसले का जवाब
मुर्तज़ा के पास इक नादाँ गया
फिक्रे जब्र व क॒द्र में था मुबतला े
ये कहा हज़रत मुझे समझाइ़ये
द अक्ल है चक्कर॑ में कुछ बतलाइये
आपने. फरमाया मेरे. सामने
सरोकद हो जाओ डक लहज़ा खड़े
उसने इशाद की तामील चुस्त
आप बोले हाँ खड़े हो तुम दुरूस्त
पर॒ ज़रा तकलीफ इतनी कीजिए!
थोड़ी इक टाँय अपनी ऊँची कीजिए
इक पाऊँ पर खड़ा फौरन. हुआ
और कुछ इर्शाद? वो कहने लगा
कह रहा था ये निहायत फुख़ से
इख्तिरं और मुक़्दरत सब है मुझे द
यू कहा हज़रत ने किया शक है भला
दूसरी भी टाॉँग उठा कर पर दिखा
बोला उससे में मजबूर हूँ
हो सकता नहीं मअजर हूँ
के
ये तो ह
9९९06 099 (थ्वा]5८शाशश’
सच्ची हिकायात 347 हिस्सा दोम
फिर पकड़ कर कान बोला ऐ जनाब
। पा लिया अपनी ज़बाँ से खुद जवाब
(दर मंजर, सफा 44) द
सबक:- गो के कहलाते हैं फाइल सब के सब
…_. है हकींकी फाइल में एक रब
आदमी में यो के हैं अक्सर सिफात
पर वो नाकिस हैं निहायत बे सिबात
(नोट ) हजरत अली रजी अल्लाहो तआला अन्ह के मुतअल्लिक्
मुफस्सिल हिकायत इस किताब के पहले हिस्से के चौथे बाब खलफाऐ
राशिदीन में गुजर चुकी है। ला
हिकायत नम्बर००) हजरत इमाम हसन
रजी अल्लाहो तआला अन्ह
एक दिन हुजर सल-लल्लाहो तअला अलेह व सललम मिंबर पर
तशरीफ फरमा थे। और साथ ही पहलू में हजरत इमाम हसन रजी अल्लाहो
तआला अन्ह भी तशरीफ फरमा थे। हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह ‘व
सललम एक नजर लोगों की तरफ फ्रमाते और एक नजर इमाम हसन रजी
अल्लाहो तआला अन्ह की तरफ। और फ्रमाते ये मेरा बेटा सरदार है और
अल्लाह तआला इसके जरिये मुसलमानों के दो बड़े बड़े गिरोहों में सुलह
कराएगा। ( मिश्कात शरीफ , सफा 50 )
सबक्:- हजरत इमाम हसन रजी अल्लाहो तआला अन्ह हुजर
सल-लल्लाही तआला अलेह व सलल्लम को बहुत प्यारे थे, लिहाजा हर
मुसलमान को उनसे मोहब्बत रखना चाहिए और हजर सल-लल्लाहो तआला
अलेह व सल्लम ने जो आपको मुसलमानों के दो गिराहों में सुलह कराने
वाला फ्रमाया है वो इशारा था इस वाक्रेया की तरफ् जब के हजरत अली
रजी अल्लाहो तआला अन्ह के विसाल शरीफ के बाद हजरत इमाम हसन
रजी अल्लाहो तआला अन्ह तख़्ते खिलाफत पर तशरीफ फ्रमा हुए तो
एक गिरोह हजरत अमीर मुआविया रजी अल्लाहो तआला अन्ह का हामी
था और उसके इख्तिलाफ से लड़ाई का एहमाल था इस मौके पर हजरत
इमाम हसन रजी अल्लाहो तआला अन्ह ने चन्द शरायत पर हजरत अमीर
मुआविया रजी अल्लाहो तआला अन्ह के हक् में खिलाफत से दस्त बरदारी
9९९06 99 (थ्वा]5८शाशश’
सच्ची हिकायात 348 . हिस्सा दोम
फरमा कर तख़्ते सलतनत अमीर युआविया रजी अल्लाहो तआला अर के
लिए खाली कर दिया और मुसलमानों के दो गिराहों को आपस में टकराने
से बचा लिया। मालूम हुआ के हमारे हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व
सल्लम को हजरत अमीर मुआविया रजी अल्लाहो तआला अन्ह का हामी
था और इस इख्तिलाफ से लड़ाई का एहमाल था इस मौके पर हजरत पर
हजरत इमाम हसन रजी अल्लाहो तआला अन्ह ने चन्द शरायत पर हजरत
अमीर मुआविया रजी अल्लाहो तआला अन्ह के हक् में खिलाफत से दस्त
बरदारी फरमा कर तख़्त सलतनत अमीर मुआविया रजी अल्लाहो तआला
अन्ह के लिए खाली कर दिया और मुसलमानों के दो गिरोहों को आपस में
टकराने से बचा लिया। मालूम हुआ के हमारे हुजूुर सल-लल्लाहो तआला
अलेह व सल्लम को हजरत अमीर मुआविया रजी अल्लाहो तआला अर के
तरफदार भी मुसलमान ही थे। इसलिए के हुजर ने मुसलमानों के दो बड़े बढ़े
गिरोहों का जुमला इर्शाद फ्रमाया है और ये भी मालूम हुआ के हजरत अपीर
मुआविया रजी अल्लाहो तआला अन्ह हुज्र सल-लल्लाहो तआला अलेह व
सल्लम के वाजिब-उल-ताजीम सहाबी है। उनके मुतअल्लिक् किसी किस्म
की गुस्ताखी जायज नहीं इसलिए के अगर वो ऐसे ना होते तो हजरत इमाम
हसन रजी अल्लाहो तआला अन्ह उनके हक् में दस्त बरदार क्यों हो जाते।
और क्यों ना उनकी बिलकुल इसी तरह मुखालफत फ्रमाते। जिस तरह आप
के छोटे भाई हजरत इमाम हुसैन रजी अल्लाहो तआला अन्ह ने यजीद की
मुखालफत की थी।
हिकायत नम्बर०७») डेढ़ लाख
हजरत अमीर मुआविया रजी अल्लाहो तआला अन्ह की तरफ से हजरत
इमाम हसन रजी अल्लाहो तआला अन्ह का वजीफा एक लाख सालानों
मुकरर था। एक साल वजीफा पहुँचने में ताखीर हो गई और इस वजह से
हजुरत इमाम हसन रजी अल्लाहो तआला अन्ह को सख्त तंगी दरपैश हैरी
आपने चाहा के अमीर मुआविया रजी अल्लाहो तआला अन्ह को उसके
शिकायत लिखें। लिखने का इरादा फरमाया। और दवात मंगाई। मगर कु
सोच कर तवक्कूफ फ्रमाया। ख़्वाब में हुजर॒ सल-लल्लाहो तआला
व सललम के दीदार से मुशर्रफ हुए। हुजर सेल-लल्लाहो तआला अलेह 7
सल्लम ने दरयाफ्त फ्रमाया के ऐ मेरे फरजंद क्या हाल है? अर्ज किया!
अलहम्दू लिल्लाह बखैर हूँ। और वजीफा की ताखीर की शिकायत की। हू
9८०९0 09५ (थ्ा$८क्यावाट’
सच्ची हिकायात । हिस्सा दोम
ने फ्रमाया तुम ने दवात मंगाई थी ताके तुम अपनी तकलीफ की खैरित लिख
कर भेजो। अर्ज किया। या रसूल अल्लाह मजबूर था। कया करता, फ्रमाया।
ये दुआ पढ़ो। अल्लाहुम्पमा अक््जिफ् फी कुल्बी रिजाअका डइ्रक़्ता 7िजाई
अम्मन सिवाका हत्ता ला अरज् अहादा ग्रैयका। अल्लाहुम्मा कमा
जुअफत अनहू वकावती व कुसरा अनहू अगली वलम तनतही इलेही
रग्बती वलम तबलुगहू मअलतवी वलम याजिर अला लिसानी मिस्मा
आतेता मिनल अव्वलीना व आख़िरीना मिनल यक्ीनी फखल्सनी
बिही या रब्बिल आलमौन।
… हजरत इमाम हसन रजी अल्लाहो तआला अन्ह फ्रमाते हैं के इस वाकेये
पर एक हफ्ता ना गुजरा था के अमीर मुआविया रजी अल्लाहो तआला अन्ह
ने मेरे पास एक लाख पचास हजार भेज दिए और मैंने अल्लाह तआला की
हम्दों सना की और उसका शुक्र बजा लाया। फिर ख़्वाब में दौलत दीदार
से बहरामंद हुआ। सरवेरे आलम सल-लल्लाहो ताला अलेह व सललम ने
इर्शाद फरमाया, ऐ हसन! क्या हाल है, मैंने खुदा का शुक्र करके वाकेया
अर्ज़ कर दिया। हुजर॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम ने फ्रमाया,
ऐ फरजंद जो अपने खालिक् से लौ लगाए। उसके काम यूंही बनते हैं।
( तारीख-उल-खल्फा, सफा ।5 )
सबक:- हज़रत अमीर मुआविया( र०अ० ) के दिल में हजरत इमाम
हसन रजी अल्लाहो तआला अन्ह का अदब व एहत्राम था और आपने हजरत
इमाम हसन रजी अल्लाहों तआला अन्ह का एक माकल वजीफा मुक्रर
कर रखा था और एक साल ताखीर हो जाने पर उसकी तलाफी मजीद
निस्फ लाख से कर दी और ये भी मालूम हुआ के हजरत इमाम हसन रजी
अल्लाहो तआला अन्ह हजरत अमीर मुआविया रजी अल्लाहो त्तआला अन्ह
की खिलाफत व इमामत को जायज समझते थे। वरना आप हजरत अमीर
मुआबिया रजी अल्लाहों तआला अन्ह की तरफ से मुकर्र कर्दा वजीफा
कभी कबूल ना फ्रमाते। ।
_हिकायत नम्बर») अच्छा सवार
एक दिन हुज॒र सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम ने हजरत इमाम
हसन रजी अल्लाहो तआला अन्ह को जब के वो बच्चे थे, अपने कंधे मुबारक
पर बिठा लिया। रास्ते में एक शख़्स मिला और उसने जो इमाम हसन रजी
अल्लाहो तआला अन्ह को हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम
9०९06 99 (थ्वा]58८शाशश’
सच्ची हिकायात 350 : हिस्सा दोष
के कंथे पर देखा तो कहने लगा ऐ बच्चे! बड़ी अच्छी सवारी पर सवार हो।
हुज॒र सल-लल्लाहो अलेह व सल््लम ने ये सुनकर फ्रमाया! और सवार भी
तो बड़ा अच्छा है ( तारीखू-उल-खुल्फा, सफा 32) द
सबक्ः- हजरत इमाम हसन रजी अल्लाहो तआला अन्ह हुजर
सल-लल्लाहों अलेह व सल्लम को बड़े प्यारे थे। पस उनसे प्यार रखना हुजर
सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम को खुश करना है। के
हिकायत नम्बर») खताकार को इनाम
एक दिन हजूरत इमाम हसन रजी अल्लाहो तआला अन्ह अपने दौलत
कदा में चन्द महमानों के साथ मिल कर खाना तनावुल फ्रमा रहे थे के आपने
अपने गुलाम को सालन लाने के लिए इर्शाद फ्रमाया। बो लाया तो अचानक
उसके हाथ से बर्तन गिर पड़ा। और टूट गया। और सालन का कुछ हिस्सा
हजरत इमाम हसन पर भी गिरा। गलाम ये मंजर देखकर घबराया। हजरत
इमाम हसन रजी अलाहो तआला अन्ह ने उसकी तरफ देखा तो उसने झट
ये आयत पढ़ दी के बलकाजीमीनल ग्रैज़ा( और गृस्सा पीने वाले ) आपने
फरमाया, मैंने गुस्सा पी लिया। उसने फिर पढ़ा बलआफरना अनिन्नात्री
( और लोगों से दरगुजुर करने वाले ) आपने फ्रमाया, जाओ, मैंने माफ भी
कर दिया। उसने फिर पढ़ा वल्लाहो युहिब्बुल मृहसीनीना और अहसान
करने वाले अल्लाह के महबूब हैं, आपने फ्रमाया। जाओ मैंने तुम्हें आजाद
भी कर दिया। ( रूह-उल-बयान, सफा 39, जिल्द )
सबक: – जैर दस्तों पर रहम करना चाहिए और गुस्से को पी लेना
और खताकार को माफ कर देना और उस पर एहसान भी करना ये अल्लाह
के महबूबों का काम है। पस हजरत इमाम हसन रजी अल्लाहो तआला अन्ह
अल्लाह के महबूब थे। ‘
हिकायत नम्बर०७) सखी घराना
एक मर्तबा हजरत इमाम हसन, हजरत इमाम हुसैन और हजूरत
अब्दुल्लाह बिन जाफर रजी अल्लाहो तआला अन्ह हज को जा रहे थे के
जिस ऊँट पर जादे राह लदा हुआ था वो ऊँट कहीं पीछे रह गया, एक जगह
भूके प्यासे होकर एक बूढ़िया की झोंपड़ी में तशरीफ ले गए और फ्रमायी
कुछ पीने को है? उसने अर्ज की हाँ है, उस बूढ़िया के पास एक बकरी थी
और उसका दूध दोह कर हाजिर क्िया। उन्होंने पिया। फिर पूछा, कुछ
9९९06 99 (थ्वा5८शाशश’
सच्ची हिकाथात ३5१ हिस्सा दोम
को भी है? हक दिया के तैयार नहीं है। उसी बकरी को जिबह करके
खा लीजिए। चुनाँचे वो बकरी जिबह की गई और उसे खाकर फ्रमाया! बड़ी
बी! हम क्रैश में से हैं। जब इस सफर से फिरेंगे तो तू हमारे पास आना। हम
तेरे एहसान का बदला देंगे ये फ्रमा कर रवाना हो गए। जब उस बूढ़िया का
खाविंद घर पहुँचा तो खफा होकर कहने लगा के तूने बकरी उन लोगों को
खिला दी जिनको तू जानती भी नहीं के वो कौन हैं। थोड़े दिन गुजरे थे के
वो मियाँ बीवी मुफलिसी के बाइस मदीने मुनव्वरह में आ पड़े। और ऊंट की
लेंडियाँ चुन चुन,कर बैचने लगे। एक दिन बूढ़िया कहीं जाती थी के हजरत
इमाम हसन रजी अल्लाहो तआला अन्ह अपने दर दौलत पर तशरीफ फ्रमा
थे। आपने उस बूढ़िया को देख लिया और पहचान लिया और उसे बुलाकर
फरमाया बड़ी बी! मुझे पहचानती है? उसने अर्ज किया नहीं। फ्रमाया! मैं
वो शख्स हूँ जो फलाँ दिन तेरा महमान हुआ था। बूढ़िया ने बगैर देखा और
बोली, हाँ हाँ पहचान गई वाकुई आप मेरी झोंपड़ी में तशरीफ लाए थे।
हजरत इमाम हसन रजी अल्लाहो तआलां अन्ह ने हुक्म फ्रमया के एक हजार
बकरियाँ खरीद कर इस बूढ़िया को दी जाएँ और साथ ही एक हजार दीनार
नकद भी दिया जाए। चुनाँचे तामील इर्शाद की गई और बूढ़िया को एक हजार
बकरियाँ और एक हजार दीनार नकद दे दिया गया और फिर हजरत इमाम
हसन ने अपने गलाम को साथ करके उस बूढ़िया को हजुरत इमाम हुसैन रजी
अल्लाहो तआला अन्ह के पास भेज दिया। हजरत इमाम हुसैन रजी अल्लाहो
तआला अन्ह ने उससे पूछा के भाई साहब ने तुम्हें क्या दिया? बूढ़िया ने
जवाब दिया के एक हजार बकरियाँ और एक हजार दीनार। हजरत इमाम
हुसैन रजी अल्लाहो तआला अन्ह ने भी एक हजार बकरियाँ और एक हजार
दीनार उस बूढ़िया को इनायत फ्रमाए और फिर आपने गुलाम के साथ उस
बूढ़िया को हजरत अब्दुल्लाह बिन जाफरए र०अ० ) के पास भेज दिया। उन्होंने
पूछा के दोनों भाईयों ने तुम्हें क्या दिया। वो बोली! दो हजार बकरियाँ और
दो हजार दीनार। हजरत अब्दुल्लाह बिन जाफर (२०० ) ने भी उसको दो
हजार बकरियाँ और दो हजार दीनार अता फ्रमा दिए। वो बूढ़िया चार हजार
बकरियाँ और चार हजार दीनार लेकर अपने खाविंद के पास आ गई और
कहने लगी। ये इनाम उन सख़ियों ने इनायत फ्रमाया है जिनको मैंने बकरी
खिलाई थी। ( कीमियाएऐे सआदत, सफ्ा 259 ) द
सबक्:- अहले बैत अजाम का घराना सखी घराना है। बूढ़िया ने बगैर
‘जाने पहचाने सिर्फ एक बकरी खिलाई और अहले बैत की सखावत से माला
9९९06 99 (थ्वा]5८शाशश’
सच्ची हिकायात 352 । हिस्सा
माल हो गईं। फिर जो उन लोगों को जान पहचान कर उनके नाम
नियाज का ईसाल करेगा तो वो क्यों ना दीन व दुनिया में कामयाब होगा।
हिकायत नम्बर०9) कौमती शर्बत
: हजरत इमाम हसन रजी अल्लाहो तआला अन्ह के हाँ एक मेहमान
आया। उसने खाना खाने के बाद शर्बत तलब किया हजरत इमाम हसन
रजी अल्लाहो तआला अन्ह ने दरयाफ्त फ्रमाया के आपको कौन सा शर्बत
दरकार है। मेहमान ने जवाब दिया के वो शर्बत जो ना मिलने के वक्त जान
से ज़्यादा कीमती और मिल जाने के वक्त निहायत कम कीमत होता है।
इमाम साहब ने नौकरों से फ्रमाया के मेहमान पानी माँगता है। हाजरीन को
आपकी जुहानत पर निहायत हैरानी हुई। ( मुग़नी-उल-वाजैन, सफा 288)
‘सबकः:- पानी खुदा तआला की एक बड़ी ग्राॉँकृद्र और कीमती नओमत
है। शेख सादी अलेहिरहमत फ्रमाते हैं के मुर्गी को देखिए के एक घूंट पानी
का पी कर फौरन अपना मुंह ऊपर आसमान की तरफ् उठा कर गोया अल्लाह
का शुक्र अदा कर लेती है। मगर अफ्सोस के गाफिल इंसान बीसियों मन
पानी पी कर भी अल्लाह का शुक्र अदा नहीं करता।
हिकायत नम्बर०७) खून आलूद छुरी.
एक रोज एक शख्स को गिरफ्तार करके हजरत अली रजी अल्लाहो
तआला अन्ह के सामने लाया गया। गिरफ्तारी एक वीरान गैर आबाद मुकाम
से हुई थी। गिरफ्तारी के वक्त उसके हाथ में एक खून आलूद छुरी थी। ये
खड़ा हुआ था और एक लाश खाक व खून में तड़प रही थी।
उस शख्स ने हजरत अली रजी अल्लाहो तआला अन्ह के सामने
इक्बाले जुर्म कर लिया और उन्होंने किसास का हुक्म दिया। इतने में एक
और शख्स दौड़ता हुआ आया और उसने हजरत अली रजी अल्लाहो
तआला अन्ह के सामने इक्बाले जुर्म किया। हजरत अली रजी अल्लाहो
तआला अन्ह ने मुल्जिम अव्वल से दरयाफ्त किया के तूने क्यों इकबाल
किया था उसने कहा के जिन हालात में मेरी गिरफ्तारी की गईं थी। मैंने
समझा के इन हालात की मौजूदगी में मेरा इंकार कुछ भी मुफीद साबित
ना होगा पूछा गया के वाकेया कया है? उसने कहा मैं कसाब हूँ,
जाए वक के करीब ही बकरे को जिबह किया था। गोश्त काट रहा था
के मुझे पैशाब का जोर पड़ा और मैं जाए वक के करीब पैशाब के लिए
9९९06 099 (थ्वा5८शाशश’
सच्ची हिकायात 353 हिस्सा दोम
बैठा और जब फारिग् हुआ तो मेरी नजर लाश पर पड़ गई। मैं उसे देखने
के लिए करीब पहुँचा और देख ही रहा था के पुलिस ने गिरफ्तार कर
लिया सब लोग कहने लगे के यही कातिल है मुझे यक्कीन हो गया के
उन लोगों के बयानात के सामने मेरे बयान का कुछ ऐतबार ना किया
जाएगा। इसलिए मैंने इकबाल ही कर लेना बेहतर समझा।
अब दूसरे इक्बाली मुजरिम से दरयाफ्त फरमाया। उसने कहा मैं एक
आराबी हूँ, मुफलिस हूँ, मक़्तूल को मैंने ब तमे माल कृत्ल किया था। इतने
में मुझे किसी के आने की; आहट मालूम हुई मैं एक गोशे में जा छिपा इतने
में पुलिस आ गई उसने पहले मुल्जिम को पकड़ लिया। अब जब उसके
खिलाफ फैसला सुनाया गया तो मेरे दिल ने मुझे आमादा किया के मैं इस
बेगुनाह को बचाऊँ और अपने जुर्म का इकबाल कर लूं।
. ये सुनकर हजरत अली रजी अल्लाहो तआला अन्ह ने हजरत इमाम
हसन रजी अल्लाहो तआला अन्ह से पूछा के तुम्हारी क्या राय है? तो उन्होंने
कहा। अमीर-उल-मोमिनीन अगर इस शख्स ने एक को हलाक किया है तो
उस शख्स की जान भी बचाई है और अल्लाह ने फ्रमाया है वमन अहयाहा
फकान्नामा अहयान्नसा जमीआ हजरत अली रजी अल्लाहो तआला अन्ह ने
ये मशवरा कबूल कर लिया और दूसरे मुल्जिम को भी छोड़ दिया और मक्तूल
का खून बहा बैत-उल-माल से दिला दिया। ( अत्तरकू-उल-हिकमियह फौ
अलसियासत-उल-शरिया, सफा 5 )
सबक :- काजी व हज को फैसला करते वक्त बड़ी सोच और समझ
के साथ और सोच व समझ वालों से मशवरा लेने के बाद फैसला करना
चाहिए। और ये भी मालूम हुआ के हजरत इमाम हसन रजी अल्लाहो तआला
अन्ह बड़े दाना और नुक्ता के मालिक थे और ये भी मालूम हुआ के बड़ा
अगर छोटे के मशवरे को बेहतर जानकर उस पर अमल करे तो उसकी बड़ाई
में फर्क नहीं आ जाता जिस तरह के हजरत उमर फारूक रजी अल्लाहो
तआला अन्ह भी बाज अवकात हजूरत अली रजी अल्लाहो अन्ह के मशबरे
पर अमल फ्रमा लिया करते थे। द
हिकायत नम्बर००) जन्नत का सेब
एक मर्तबा हजरत इमाम हसन और इमाम हुसैन रजी अल्लाहो तआला
अन्हुमा ने बचपन में दो तख़्तियों पर कुछ लिखा और बाहम एक दूसरे से
कहने लगे के मेरा खत अच्छा है, चुनाँचे दोनों इस बात का फैसला लेने
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सच्ची हिकायात दोष
354 पहुँचे हिस्पा
हजरत अली रजी अल्लाहो तआला अन्ह के पास पहुंचे। हजूरत मौला
रजी अल्लाहो तआला अन्ह ने इस मुकदमे का मुराफेआ हजरत फातिमा
अल्लाहो तआला अन््हा के सपुर्द फ्रमाया और हजरत फातिमा रजी अल्लाहो
तआला अन्हा ने फरमाया। बेटो! इस बात का फैसला तुम अपने नाना
हुज॒र मोहम्मद-उर-रसूल अल्लाह सल-लल्लाहो तआला अलेह ब
से कराओ। चुनाँचे दोनों भाई हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लप्
की खिदमत में हाजिर हुए। हुज॒ुर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लग्
ने फ्रमाया। तुम्हारा फैसला जिब्नाईल करेंगे। जिब्राईले अमीन हाजिर हुए
और कहने लगे। या रसूल अल्लाह! खुदा तआला ये फैसला खुद फ्रमाएगा|
चुनाँचे खुदा तआला का जिब्राईल को हुक्म हुआ के जिब्राईल जन्नत से एक
सेब ले जाओ। और वो सेब उन दोनों की तख़्तियों पर डाल दो। सेब जिम
की तख़्ती पर ठहर जाए। वही खुत अच्छा है। चुनाँचे जिब्राईल ने जन्नत का
एक सेब लाकर इन तख़्तियों पर गिरा दिया तो खुदा के हुक्म से उस सेब के
दो टुकड़े हो गए और एक टुकड़ा तो हजरत हसन की तख़्ती पर और दूसरा
हजरत हुसैन की तख़्ती पर जा पड़ा और फैसला ये हुआ के दोनों ही का खत
अच्छा है। ( नुजुहत-उल-मजालिस , सफा 39।, जिल्द 2)
सबक्:- हजरत इमाम हसन और हजूर इमाम हुसैन रजी अल्लाहो
तआला अन्न्हा को खुदा तआला से एक खास निस्बत थी और खुदा तआला
अपने मेहबूब के इन शहजादों की दिल शिकनी नहीं चाहता फिर जो शस््स
इन शहजादों की किसी किस्म की तोहीन का इरतिकाब करे तो वो किम्त
कृद्र जालिम है। | ह
हिकायत नम्बर७७) फरिएशते की डयूटो
एक मर्तबा हजरत इमाम हसन और इमाम हुसैन रजी अल्लाहो अहा
बचपन में घर से कहीं बाहर तशरीफ् ले गए तो हज़रत फातिमा रजी अल्लाहो
तआला अन्हा कुछ परेशान सी हुईं के शहजादे कहाँ चले गए इतने में हज
सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम तशरीफ् ले आए तो हजरत
रजी अल्लाहो अन्ह ने अर्ज़ किया या रसूल अल्लाह! हसन व हुसैन आज
खो गए, और मुझें मालूम नहीं के कहाँ चले गए। इतने में जिन्नाईले अर
हाजिर हुए और अर्ज किया के या रसूल अल्लाह आपके दोनों शहजादे फर्ण
जगह हैं । आप परेशान ना हों। खुदा ने उनकी हिफाज के लिए एक
मतस्यन कर रखा है। ये सुनकर हुजर॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह व
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सच्ची हिकायात 35५ हिस्सा दोम
इस जगह तशरीफ् ले गए। क्या देखते हैं के दोनों साहबजादे तो पड़े सोते
हैं और फरिश्ता एक बाज उनके नीचे बिछाए हुए और दूसरे से साया किए
हुए बैठा है। हुजूर ने दोनों का मुंह चूम लिया और उठा कर घर ले आए।
( नुजृहत-उल-मजालिस , सफा 3०2, जिल्द 2)
सबक :- हज॒र सल-लल्लाहो आला अलेह व सल्लम के ये दोनों
शहजादे फरिश्तों के भी मख़्दूम हैं। फिर इंसानों के लिए भी क्यों लाजिम ना
होगा के वो इन शहजूादों की मोहब्बत अपने दिल में रखें और उनके नक्शे
कदम पर चलकर उनको अपना पैशवा व मख्दूम जानें।
हिकायत नम्बर) प्यास का इलाज
. एक दिन हुज॒र सल-लल्लाहो तआला अलेह व सलल्लम ने 08 8 सन
और हजरत हुसैन रजी अल्लाहो तआला अन्हा के रोने की आवाज सनी तो
आप जल्दी से घर तशरीफ ले गए और हजरत फातिमा रजी अल्लाहो तआला
अन्हा से फरमाया मेरे बेटे क्यों रो रहे हैं? हजरत फातिमा रजी अल्लाहो
तआला अन््हा ने अर्ज किया या रसूल अल्लाह! इन्हें प्यास लग रही है और
इस वक्त पानी यहाँ मौजूद नहीं। हुजर ने फरमाया! इन्हें इधर लाओ। चुनाँचे
हुज॒र सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम ने पहले हसन को उठाया और
अपनी जूबान मुबार उनके मुंह में डाल दी और हसन ने हुजर सल-लल्लाहो
तआला अलेह व सल्लम की जुबान चूसना शुरू की और उनकी प्यास
जाती रही और चुप हो गए। फिर आप सल-लल्लाहो तआला अलेह व
सललम ने हुसैन को उठाया और उनकी मुंह में भी जबान डाली ओर वो भी
जुबान मुबारक चूस कर सैर हो गए। और चुप हो गए। ( हुज्जत-उल्लाह
अललआलमीन सफा 68॥ ) ह
सबक :- हजरत हुसैन रजी अललाहो तआला अन्ह को किसी
किस्म की तकलीफ हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम पर
शाक गुजुरी थी और उनके रोने से हुज॒र को रंज पहुँचता था। फिर जिन
जालिमों ने हजरत हुसैन रजी अल्लाहो तआला अन्ह को सताया और
रूलाया। उन्होंने हुजर को किस कुद्र रंज पहुँचाया? और ये भी मालूम
हुआ के हमारे हुज॒र सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम सरतापा
एजाज् और मुख्तार व मुतसर्रिफ हैं के अपनी जबान मुबारक के चुसाने
से ही प्यास दूर फ्रमा दी आज कोई अपनी जुबान किसी प्यासे के मुह में
डाल कर उसकी प्यास बुझा कर तो दिखाए और हुजुर की भिसल बनने
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सच्ची हिकायात 356… हे हिस्सा दो
वाला कोई शख्स अपने किसी नवासे के मुह में अगर अपनी जूबान डाले
भी तो बहुत मुमकिन है के वो नवासा अपने दांतों से इस गुसताख को
जबान ही चबा डाले।
हिंकायत नम्बर (४०) हैबत व शुजञाअत
एक दिन हजरत फातिमा-उज-जोहरा रजी अल्लाहो तआला अन्हा
अपने दोनों शहजादों यानी हसन व हुसैन रजी अल्लाहो तआला अन्हुमा को
लेकर हुज॒र सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम की खिदमत में हाजिर
हुईं और अर्ज की या रसूल अल्लाह इन दोनों को कुछ अता फ्रमाईये। हुनर
सल-लल्लाहो तआला अलेह व सललम ने फ्रमाया हाँ मंजर है और फिर
फरमाया: हसन को तो मैंने अपना इल््म और अपनी हैबत अता की और हुसैन
को अपनी शुजाअत और अपना करम बखुशा। ( इब्ने असाकर, अलअप्न
वलअला सफा 99) |
संबक्:- हुसैन रजी अल्लाहो तआला अन्ह हैबत व शुजाअत और
इल्मो करम के मालिक थे। और ये चीजें इन्हें अपने नाना जान से मिली
थीं और ये भी मालूम हुआ के हमारे हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह
व सल्लम अल्लाह के खजानों के बाजुन अल्लाह मालिक व मुख़्तार और
मुतसर्रिफ हैं। वरना आप ये क्यों फ्रमाते के मैंने हसन को हैबत व इल्म
और हुसैन को शुजाअत व करम बख़्शा और बरूुछता वही है जो मालिक व
मुख्तार और मुतसर्रिफ हो… द
द कौन देता है देने को दिल चाहिए
देने वाला हैँ सच्चा हमारा नबी
हिकायत नम्बर७७) एक अजीब ख़्वाब
हजरत इमाम हसन ( २०० ) ने एक रात ख़्वाब में देखा के आपकी
दोनों चश्म मुबारक के दरमियान कुल हुवललाहो अहद लिखोी हुईं है,
आपके अहले बैत ये ख़्वाब सुन कर बहुत खुश हुए लेकिन जब
ख़्वाब हजरत सईद बिन अलमसीब ( र०अ० ) के सामने बयान किया गया
तो. उन्होंने फ्रमाया के बाकुई अगर ये ख़्वाब देखा है तो हजरत इमाम
उमर के चन्द रोज ही बाकी रह गए हैं, चुनाँचे ये ताबीर सही वाके हई
और थोड़े दिनों के बाद आपके दुश्मनों ने जेहर देकर शहीद कर दिंवा।
( तारीखु-डउल-खुल्फा / सफा (34)
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सबके :- हजरत इमाम हसन ने दुश्मनों के जुल्म से जाम शहादत
नोश फ्रमाया और आपकी शहादत की तरफ इशारा पहले ही ख़्वाब में हो
गया था।
हिकायत नम्बर७७ पर्दापोशी
हजूरत इमाम हसन रजी अल्लाहो तआला अन्ह को दुश्मनो की साजिश
से जेहर दे दिया गया। जिसके असर से आपको असहाल कबदी लाहक् हुआ
और आंतों के टुकड़े कट कट कर असहाल में खारिज हुए। इस सिलसिले
में आपको चालिस रोजू सख़्त तकलीफ रही। क्रीब बफात जब आपकी
खिदमत में आपके बरादर अजीज हजरत इमाम हुसैन रजी अल्लाहो तआला
अन्ह ने हाजिर होकर दरयाफ्त किया के आपको किसी ने जेहर दिया है
तो आपने फ्रमाया के तुम उसे कृत्ल करोगे? हजरत इमाम हुसैन ने जवाब
दिया। बेशक कत्ल करूंगा। हजरत इमाम हसन रजी अल्लाहो तेआला अन्ह
ने फरमाया के मेरा गुमान जिसकी तरफ है। अगर दर हकीकृत वही कातिल
है तो अल्लाह तआला मुनतकिम हकीको है और उसकी गिरफ्त बहुत सख्त
है अगर वो नहीं तो मैं नहीं चाहता के मेरे सबब से कोई बेगुनाहः मुबतलाऐ
मुसीबत हो। ( तारीखू-उल-खुल्फा सफा 734)
सबक्:- हजरत इमाम हसन रजी अल्लाहो तआला अन्ह का इंसाफ
व अदल और आपकी एहतियात काबिल सद तहसीन व आफरीन है और
ये हजरत इमाम ही का हिस्सा है के सख्त तकलीफ के बावजूद जिसकी
तरफ गुमान है उस कातिल का नाम नहीं बताते ताके गुमान सही ना होने के
बाइस कोई बे गुनाह ना मारा जाए। मालूम हुआ के हजरत इमाम हसन रजी
अल्लाहो तआला अन्ह ने भी वैसे ही किसी को कातिल नहीं करार दे दिया
फिर आज अगर कोई ख़्वाह म ख़्वाह अपनी तरफ से कातिल को मुतय्यन
करता फिरे तो ये इसकी जियादती है या नहीं।
हिकायत नम्बर७७) हजरत इमाम हसन( र०आ० )
हजरत अब्बास की बीवी हजरत उम्मुल फज्ल रजी अल्लाहो तआला
अन्हा ने एक रात ख़्वाब में देखा के हुजए॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह व
सल्लम के जिस्म अक्दस का एक टुकड़ा उनकी गोद में रखा है। ये ख़्वाब देख
कर वो बड़ी हैरान हुईं और हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम की
खिदमत में हाजिर होकर बोलीं। या रसूल अल्लाह! मैंने एक अजीब ख्वाब
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सच्ची हिकायात 358 क् हिस्सा दोग
देखा है और वो ये के आपके जिस्म अक्दस का एक टुकड़ा मैंने अपनी गोर
में पड़ा देखा है। हुज॒र( सण्अन्स० ) ने फ्रमाया तूने बड़ा अच्छा ख़्वाब
है। इंशा अल्ला मेरी फातिमा के हाँ एक बच्चा पैदा होगा। सो तेरी गोद पे
खेलेगा। चुनाँचे हजरत फातिमा र॒जी अल्लाहो तआला अन््हा के हाँ हज
इमाम हुसैन रज़ी अल्लाहो तआला अन्ह पैदा हुए और वो उम्मुल फज्ल की
गोल में खेले। ( मिश्कात शरीफ सफा 504 ) ५. के
सबक :- हजरत इमाम हुसैन रजी अल्लाह तआला अर हुण
सल-लल्लाहो तआला अलेह व सलल्लम के लख़्ते जिगर हैं और आपको
मोहब्बत हुजर की मोहब्बत और आपको ईजूा देना हुजूर को ईजा देना है।
हिकायत नम्बर ७00 इमाम हुसैन( र०अः ) और एक बद्वी
एक बदवी ने हजरत इमाम हुसैन रजी अल्लाहो अन्ह से अर्ज किया के
मैंने आपके नाना यानी नबी करीम सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लग्
से सुना है के जब तुम किसी हाजत के ख़्वास्तगार हो। तो चार शख्मों में से
एक से दरख्वास्त करो। या तो किसी शरीफ से और ये चारों सिफतें आपें
बदर्जा उत्तम पाई जाती हैं। इसलिए के सारे अरब को शराफत अगर मिली
है तो आप ही की वजह से मिली है। और सखावत आपका जबली वस्फ है,
रहा करआन तो वो आपके घर उतरा ही है और मिलाहत के मुतअल्लिक्
अर्ज हैं के मैंने आपके नाना सल-लल्लाहो अलेह व सल्लम से सुना
जब तुम मुझे देखना चाहो तो हसन व हुसैन को देख लो।
बदवी की ये गुफ्तगू सुनकर हजरत इमाम हुसैन रजी अल्लाहो तआल
अन्ह ने फरमाया क्या हाजत है। बयान कर। बदवी ने अपनी हाजत जमीन
पर लिख कर जयान की इस पर हजरत इमाम हुसैन रजी अल्लाहो तआर्ली
अन्ह ने फरंमाया के मैंने अपने नाना जान सल-लल्लाहों तआला व
सल्लम से सुना है के नेकी बक॒द्र मारफत हुआ करती है। मैं तुझ से तीन
मसंअले पूछता हूँ। अगर तूने उनमें से एक का जवाब दे दिया तो इस
का तीसरा हिस्सा तेरी नज़ है और अगर दो का जवाब दिया तो दो हिस्से
तेरे होंगे और अगर तीनों का जवाब दे दिया तो सारी थेली तेरी *ह# हे
दूंगा। बदवी ने कहा दरयाफ्त फ्रमाइये। आपने फ्रमाया तमाम अम्रलों
से कौन सा अमल अफ्जूल है? कहा खुदा पर ईमान लाना, फ्रमार्थो,
की हलाकत से निजात किस चीज से है? कहा खुदा पर ते
में, फरमाया बन्दे को किस चीज से जीनत हासिल होती है? कहीं ड्ल्म
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सच्ची हिकायात हिस्सा दोम
जिसके साथ तहम्मुल व बुर्दबारी भी हो। फ्रमाया। अगर किसी शख्स में ये
वस्फ ना हो तो? कहा उसके पास वो माल होना चाहिए जिसमें सखावत हो।
फ्रमाया अगर किसी के पास ऐसा माल ना हो तो? कहा फिर उसके लिए
जलाने वाली बिजली चाहिए। हजरत हंस पड़े और बदवी को पूरी थेली दे
दी। ( नुजृहृत-उल-मजालिस सफा 39, जिल्द:2 )
सबक्:- अल्लाह वालों से हाजात तलब करना इशदि नबव्वी है और
अल्ला वाले हाजतमंदों की हाजात पूरी फ्रमा देते है। और मालूम हुआ के
हजरत इमाम हुसैन रजी अल्लाहो तआला अन्ह बड़े फय्याज और सखी थे
और ये के पहले जमाने के बदवी भी इल्म व इर्फान के मालिक थे।
हिकायत नम्बर) बऐ कर्बला
एक रोज हजरत इमाम हुसैन रजी अल्लाहो तआला अन्ह हुज॒र
सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम की गोद में तशरीफ् फ्रमा थे। और
हजरत उम्मुल फज्ल भी पास बैठीं थीं। उम्मुल फज्ल ने हुजर॒ सल-लल्लाहो
तआला अलेह व सल्लम की तरफ् देखा के आपकी दोनों आँखों से आँसूं बेह
रहे थे। उम्मुल फज़्ल ने अर्ज किया। या रसूल अल्लाह ये आँसू कैसे हैं?
हुजर ने फ्रमाया के जिब्राईल ने मुझे खबर दी है के मेरे इस बच्चे को मेरी
उम्मत क॒त्ल कर देगी। और जिब्नाईल ने मुझे इस सरजृमीन की जहाँ मेरा ये
बच्चा शहीद होगा। सुर्ख मिट्री भी लाकर दी।
हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सलल्लम ने इस मिटटी को सूंघा
और फरमाया इस मिट्टी से मुझे बुएऐ कर्बला आती है और फिर वो मिढ़ी
हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह’ व सलल्लम ने उम्पुल मोमिनीन हजरत उम्मे
सलमा रजी अल्लाहो तआला अन्हा को दे दी। और फरमाया ऐ उम्मे सलमा!
इस मिटटी को पास रखो। जब ये मिढ़ी खून बन जाए तो समझ लेना। मेरा
बेटा शहीद हो गया। हजरत उम्मे सलमा रजी अल्लाहो तआला अन्हा ने उस
मिड्री को एक शीशी में बंद कर लिया और फिर जिस दिन हजरत इमाम
हुसैन रजी अल्लाहों तआला अन्ह कर्बला में शहीद हुए उसी रोज ये मिंड्री
बंद शीशी में खून बन गई। ( मिश्कात शरीफ सफा 564, और हुज्जत-उल्लाह
अललआलमीन सफा 47 )
सबक:- हमारे हुजर॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम को
अपने लज़्ते जिगर इमाम हुसैन रजी अल्लाहो तआला अन्ह को शहादत का
इल्म था और इस सरजुमीन का भी जहाँ ये वाकेया होना था। इल्म था और
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सच्ची हिकायात 360 हिस्सा दोम
इस सरजुमीन का नाम कर्बला भी मालूम था। आपसे कोई बात पनहाँ ना
थी और हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम को ये भी इल्म था
के हजरत उम्मे सलंमा रजी अल्लाहो तआला अन्हा हजरत इमाम हुसैन रजी
अल्लाहो तआला अन्ह की शहादत के बाद तक जिन्दा रहींगी, जभी तो
आपने हजरत उम्मे सलमा से ये फरमाया के इस मिड्री को पास रखो, जब
ये खून बन जाए तो समझ लेना मेरा बेटा शहीद हो गया है बावजूद उसके
फिर भी अगर कोई हुज॒र सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम के इल्पे
गैब में शक व शुबह करे तो गौर कर लीजिए के वो किस कद्र जाहिल है।
हिकायत नम्बर5७ दिलेराना जवाब
“हजरत अमीर मुआविया रजी अल्लाहों तआला अन्ह के विसाल के बाद
जब यजीद तख्त नशीन हुआ तो उसने अपनी बैंत के लिए इत्राफ व मुमालिक
सल्तनत में खत रवाना किए और मंदीना मुनव्वरह के आमिल को भी लिखा
के वो इमाम हुसैन रजी अल्लाहो तआला अन्ह से भी यजीद की बैत ले,
चुनाँचे जब आमिल मदीने हजरत इमाम हुसैन रजी अल्लाहो तआला अब
की खिदमत में यजीद की बैत लेने के लिए हाजिर हुआ। तो हजूरत इमाम
हुसैन रजी अल्लाहो तआला अन्ह ने यजीद के फिस्क् व फिजूर की बिना
पर उसे खिलाफत-के लिए ना अहल करार दिया और शुजाअतत व दिलैरी के.
साथ जवाब दिया के मैं इस जालिम की हर गिज बैत ना करूंगा, आमिल
ये जवाब पाकर पलट गया और यजीद को इस जवाब से मतला कर दिया
यजीद ये जवाब पाकर बड़ा मुश्तअल हुआ। ( सर-उल-शहादतैन सफा 8,
व सवानेह कर्बला सदर-उल-फाजिल सफा 50)
सबक :- यबजीद बड़ा फासिक व फाजिर था और उसके फिस्क् व
फिजूरी ही के पैशेनजर हजरत इमाम हुसैन रजी अल्लाहो अन्ह ने उसकी बैत
से इंकार फ्रमा दिया और ये भी मालूम हुआ है के हजरत इमाम हुसैन रजी
अल्लाहो तआला अन्ह शुजा इब्ने अलशुजा थे। आपने ये जानते हुए भी के
यजी की बैत से इंकार यजीद के लिए वजह इश्तिआल होगा और वो खून
का प्यासा हो जाएगा कलमा-ए-हक् फ्रमाने से ग्रैज ना फरमाया और
जान बचा लेने के लिए हकीकत को नहीं छिपाया। फिर ये कैसे हो सर्कता
है के आपके वालिद माजिद हजरत शेरे खुदा रजी अललाहो तआला ने कभी
हकोकृत को छुपाया हो, या किसी से दब कर आपने कलमा-ए-हक की
एलान ना फ्रमाया हो? ।
9०३९6 099 (थ्वा]5८शाशश’
सच्ची हिकायात ३6| हिस्सा दोम
हिकायत नम्बर७७) मजारे अनवर पर
यजीद को जब इस बात का पता चला के इमाम हुसैन ने मेरी बैत
नहीं की तो उसने मुझ्तअल होकर आमिल मदीने को हुक्म भेजा, के
इमाम हूसैन को मेरी बैत पर मजबूर करो। वरना उसका सर काट कर मेरे
पास भेज दो। हजुरत इमाम हुसैन रजी अल्लाहो तआला अन्ह को जब
इस यजीदी हुक्म का पता चला, तो आपने मदीना मुनव्वरह की सकूनत
तर्क फरमा कर मक्का मोअज़्ज्मा चले जाने का इरादा फ्रमा लिया और
मदीने मुनव्वरह से रवांगी से पहले रात को नाना जान हुज॒र सरवरे आलम
सल-लल्लाहो तआला अलेह व सलल्लम के मजार अनवर पर हाजिर हुए
और रो रो कर अर्जे हाल करने लगे और फिर रौजा-ए-अनवर से लिपट
कर वहीं सो गए। ख्वाब में देखा के नाना जान तशरीफ लाए हैं और
आपने हुसैन को चूमा और सीना-ए-अक्दस से लगा लिया और फ्रमाया
बेटा हुसेन! अनक्रीब जालिम तुझे ‘कर्बला में भूका प्यासा कृत्ल कर
देंगे। तेरे माँ बाप और भाई तेरे इन्तिजार में हैं बहिश्त तेरे लिए आरास्ता
हो रहा है। उसमें ऐसे दर्जात आलिया हैं जो शहीद हुए बगैर तूझे नहीं
मिल सकते जाओ बेटा! सब्र व शुक्र से जामे शहादत पी कर मेरे पास
आ जाओ। हजरत इमाम रजी अल्लाहों तआला अन्ह ये ख़्वाब देखकर
घर आए और अहले बैत को जमा करके ये ख़्वाथ सुनाया और मदीने
से मक्का जाने का मुसम्मिम इरादा कर लिया और फिर अपने बरादर
बुजर्ग हजरत इमाम हसन रजी अल्लाहो तआला अन्ह के मजार अनवर
पर हाजिर हुए और कलमात रूख़्तत जुबान पर लाए और फिर माँ की
कब अनवर पर हाजिर हुए और अर्ज किया। ऐ अम्माँ जान! ये नाजों का
पाला तुम्हारा हुसैन आज तुम से जुदा होने आया है और आखूरी सलाम
अर्ज॒ करता है। कब्र अनवर से आवाज आई। व अलेक अस्सलाम ऐ,
मजलूम और आप वहाँ कुछ देर रोते रहे और फिर वापस तशरीफ् लाए
और मक्का मोअज़्जमा जाने की तैयारी फ्रमा कर मक्का मोअज़्ज्मा को
रवाना हो गए। ( तजुकरह हुसैन सफा 2)
सबक्:- हजरत इमाम की शहादत का खुद हजरत इमाम रजी
अल्लाहों तआला अन्ह को भी इल्म था और ये आप ही की शान है के
इल्म के बावजूद भी पाऐ इसतक्लाल में जूर्रा भी लगृजिश नहीं आई
और शौके शहादत में कमी नहीं आती। और जज़्बा-ए-जाँ निसारी और
9९९06 099 (थ्वा]5८शाशश’
सच्ची हिकायात 362 हिस्सा दोम
भी ज़्यादा ही होता है। हजुरत इमाम रजी अल्लाहों तआला अन्ह ने अपनी
सीरते पाक से बता दिया के तालिबं रजाऐ हक् मौला की मर्जी पर फिदा
होता है। इसी में उसके दिल का चैन और उसकी हकीको तसल्ली है।
कभी वहशत व परेशानी उसके पास नहीं फटकती, बल्के वो इन्तिजार
की साअतें शौक के साथ गुजारता है। और वक्त मोऊद का बेचैनी के
साथ मुनतजिर रहता है।
हिकायत नम्बर३0 कूफियों के खतूत
हजरत अमीर मुआविया रजी अल्लाहो तआला अन्ह को वफात के बाद
यजीद तख़्त नशीं हुआ। तो अहले इराकु को जब मालूम हुआ के हजरत
इमाम हुसैन रजी अल्लाहो तआला अन्ह ने यजीद की बैत नहीं की और आप
मक्का मोअज्जमा तशरीफ ले आए हैं तो उन्होंने मुत्तफिक होकर इमाम रजी
अल्लाहो तआला अन्ह की खिदमत में खत भेजने शुरू किए जिसमें इस अपर
का इजहार था के हम अपने जानो माल आप पर क्र्बान कर देंगे। आप यहाँ
कूफे में तशरीफ् लायें हम आपकी बैत कर के आपके हुक्म से जालितों से
मुकाबला करेंगे और आपका बहरहाल साथ देंगे। इस तरफ के इल्तिजा नामों
और दरख्वास्तों का सिलसिला बंध गया और तमाम जमातों और फिरकों की
तरफ से डेढ़ सौ के क्रीब खतूत हजरत इमाम की खिदमत में पहुँचे। आप
कहाँ तक खामोश रहते। कूफियों के पैहम इसरार पर आपने उन्हें जवाब
दिया के तुम्हारे डेढ़ सौ के करीब खत पहुंचे। मैं फिलहाल अपने चचा जाद
भाई मुस्लिम बिन अकील को तुम्हारी तरफ भेजता हूँ ताके तुम्हारी सच्चाई
का पता चल सके। तुम अगर बाकई मेरा साथ देना चाहते हो तो मेरे नुप्ाईदे
मुस्लिम बिन अकील की बैत करो जब वो तुम्हारे हाल और सिद्के मकाल
से मुझे मतलअ करेंगे तो मैं भी आ जाऊँगा। ( सर-उल-शहादतें, सफा ४,
व सवानह कर्बला, सफा 52, व तज॒करह , सफा 300 )
सबक ;:- क्ूफियों की बे वफाई मश्हूर होने के बावजूद हजरत इमाः
रजी अल्लाहो तआला अन्ह ने उनकी दरख़्वास्तों पर तवज्जह इसलिए फ्रमाई
ताके कल कयामत के दिन वो लोग ये ना कह सकें के हम जालिमों
मुकाबला और उन से रिहाई के तलबगार थे। लेकिन इब्मे अली हुसैन ५
अल्लाहो तआला अन्ह ने हमारी किसी दरख्वास्त पर तवज्जह ना फु्रमाई
हजरत इमाम आली मुकाम ने इतमामे हुज्जत के लिए अपने भाई को कूफा
भेज दिया और आप अपना फर्ज अदा करने को तैयार हो गए।
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सच्ची हिकांयात 363 ः हिस्सा दोम
‘हिकायत नम्बर) बारह हजार _
कूफियों के कूफियों के पैहम इसरार पर हजरत इमाम हुसैन रजी
अल्लाहो तआला अन्ह कूफे तशरीफ् ले जाने पर आमादा हो गए। लेकिन
हालात का पता लगाने के लिए आने पहले अपने चचा जाद भाई हजरत
मुस्लिम बिन अकील रजी अल्लाहो तआला अन्ह को वहाँ भेजा और हजरत
मुस्लिम से फरमाया के तुम वहाँ जाकर मेरे लिए कूफियों से बैत लो। अगर
उन्होंने बैत कर तो मुझे मतलअ करना मैं भी आ जाऊँगा। चुनाँचे हजरत
मुस्लिम अपने दो कमसिन बच्चों को साथ लेकर कूफे को रवाना हो गए।
इन दो साहबजादों का नाम मोहम्मद और इब्नाहीम था। ये दोनों अपने बाप
को बहुत प्यारे थे। इसलिए ये दोनों भी इस सफर में अपने वालिद बुजर्गवार
के हमराह हो गए हजरत मुस्लिम कूफ पहुँचे तो आपने मुख्तार बिन उबेद
के मकान पर कयाम फ्रमाया। आपकी तशरीफ आवरी की खबर सुन कर
जूक दर जूक मखलूक् आपकी जियारत को आई और बारह हजार से ज़्यादा
तादाद ने आपके दस्ते मुबारक पर हजरत इमाम हुसैन रजी अल्लाहो तआला
अन्ह की बैत की। हजरत इमाम मुस्लिम ने अहले इराकु की गरतीदगी व
अकीदत देखकर हजरत इमाम रजी अल्लाहो तआला अन्ह की जनाब में
अरीजा लिखा जिसमें यहाँ के हालात की इत्तिला दी और इल्तिमास किया
के आप जल्दी तशरीफ् ले आएँ ताके बंदगाने खुदा यजीद के नापाक शर
से महफूज रहें और दीने हक् की ताईद हो। ( सर-उल-शहादतें , सफा 4, व
सवानह कर्बला; सफा 35 )
सबक्:ः- अहले बैत ओजाम रिजवान-उल्लाही तआला अलेहिम
अजमईन की भनशा सिफ यही थी के बंदगाने खुदा गैर शरई निजाम से
निजात पाएँ। आला कलमत-उल-हक् और दीने हक् की ताईद हो और अहले
हक हमेशा इसी मसलक पर कायम रहें।
हिकायत नम्बर७2 जलल्लाद इब्ने जियाद
हजूरत इमाम मुस्लिम रजी अल्लाहो तआला अन्ह जब कूफे पहुँचे तो
बारह हजार से ज़्यादा इराकियों ने हजरत इमाम हुसैन रजी अल्लाहो तआला
अन्ह की बैत इमाम मुस्लिम के हाथ पर कर ली। ये सूरते हाल देखकर इमाम
मुस्लिम ने हजरत इमाम हुसैन रजी अल्लाहों तआला अन्ह को लिखा के आप
जल्द तशरीफ ले आएँ उधर जब यजींद को इस सूरते हाल का पता चला तो
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सच्ची हिकायात 364 | हिस्सा दोम
उसने हाकिम बसरा उबैद-उल्लाह बिन जियाद को हुक्म भेजा के वो फौरन
कूफे पहुँच कर लोगों को इमाम हुसैन रजी अल्लाहो तआला अ््ह की बैत् पे
रोके और जिन्होंने बैत कर ली है उन्हें तंबीह करे। इब्ने जियाद बड़ा मक्कार
और जल्लाद था। ये जालिम झट कूफ पहुँचा और अहले कूफे को जमा.
करके यजीद की मुखालफत से डराया धमकाया और बड़े बड़े लालच देकर
उन्हें हिमायत हुसैन से रोका और सब पर अपना रौब व दाब बिठाया। हजुरत
इमाम मुसिल्म ये सूरते हाल देखकर रात को हानी बिन उरवा के मकान में
तशरीफ ले गए और फ्रमाया ऐ हानी! मैं यहाँ गूरीब मुसाफिर हूँ तू अहले
कूफे से खूब वाकिफ है मैं तेरी पनाह में आया हूँ। मुझे अपने मकान में पनाह
दे। हानी ने कूबूल किया और एक हुजरा अपने घर का उनके लिए खाली
कर के कहा के…. ह
रवाके मंजर चश्म मन आशयाना तस्त
करम नमाव फरूद आके खाना खाना तस्त
इब्ने जियाद को पता चल गया के मुस्लिम को हानी ने पनाह दे रखी है।
चुनाँचे उसने अपनी फौज भेजकर हजरत हानी को गिरफ्तार कर लिया और
इस तरह कूफे के दीगर रऊसा व अमायद को भी किले में नजुरबंद कर लिया।
हजरत इमाम मुस्लिम रजी अल्लाहो तआला अन्ह को इस सूरत हाल का
पता चला तो आपकी रग हाश्मी जोश में आई और अपने दोनों बच्चों को
काजी शरीह के घर में रवाना कर के मुहिब्बान अहले बैत को बुलाया तो
आपकी निदा पर जूक दर जूक आदमी आने शुरू हुए। और चालीस हजार
की जमीअत ने आपके साथ मिलकर कस्र शाही का आहाता कर लिया
और इब्ने जियाद को घेर लिया। क्रीब था के इब्ने जियाद और उसके साथी
गिरफ्तार हो जाते के इब्ने जूयाद ने एक चाल चली और बो ये के उसने क्ूफे
के जिन बड़े बड़े आदमियों को किले में नजरबंद कर रखा था। उन्हें मजबूर
किया के तुम छत पर जाकर अहले कूफे को समझाओ और डराओ और उन्हें
मजबूर करके मुस्मिल से अलग कर दो। ये लोग इब्ने जियाद को कैद में थे
ओर जानते थे के अगर इब्ने जियाद को शिकस्त भी हुई तो वो किला फतह
होने तक़ उनका खात्मा कर देगा। इस खौफ़ से वो घबरा कर उठे और दीवार
किले पर चढ़ कर चिल्लाए के भाईयो! मुस्लिम की हिमायत तुम्हारे लिए
खुतरनाक है। हकूमत तुम्हारी दुश्मन हो जाएगी। यजीद तुम्हारे बच्चे
मरवा डालेगा। तुम्हारे माल लुटवा देगा तुम्हारी जागीरें और मकान जूते
जाऐँगे और अगर तुम इमाम मुस्लिम रजी अल्लाहो तआला अन्ह ही के सार्थ
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सच्ची हिकायात हिस्सा दोम
रहे तो देखो हम जो इब्मे जियाद की कैद में हैं। किले के अन्दर मारे जायेंगे।
अपने अंजाम पर नजूर डालो। हमारे हाल पर रहम करो और अपने घरों को
चले जाओ ये हीला कामयाब रहा। और हजरत इमाम मुस्लिम रजी अल्लाहो
तआला अन्ह का लश्कर मुनतशिर होने लगा। सब बेवफाई पर उतर आए
और हजरत इमाम मुस्लिम का साथ छोड़ने लगे। हत्ता के शाम तक हजरत
मस्लिम रजी अल्लाहों तआला अन्ह के साथ सिर्फ पाँच सौ की तादाद रह
गई और गुरूबे आफताब के बाद अंधेरा हुआ तो वो भी साथ छोड़ गए और
इमाम मुस्लिम रजी अल्लाहो तआला अन्ह तनहा रह गए। ( सर-उल-शहादतें
सफा ॥6, व सवानह कर्बला, सफा 5 तजूकरह, हुसैन: सफ़ा 5)
सबक्:- हजूरत इमाम हुसैन रजी अललाहो तआला अन्ह और अहले
बैत अंजाम को मोहब्बत व वफा के उन दावेदारों के जुमला अहदो पैमान
झूटे थे और ये लोग वक्त पर बेवफा साबित हुए, मालूम हुआ के हर मुद्दई
मोहब्बत अहले बैत जरूरी नहीं के सच्चा ही हो।
हिकायत नम्बर७७) इमाम मुस्लिम( र०आ० ) की शहादत
हजरत इमाम मुस्लिम रंजी अल्लाहो तआला अन्ह जब काफे पहुँचे तो
बेवफा कफियों ने आपके हाथ पर बैत करके फिर आप से मुंह मोड़ लिया
और आपका साथ छोड़ दिया और इमाम मुस्लिम रजी अल्लाहो तआला अन्ह
तनहा रह गए। रात का वक्त था और इब्मे जियाद ने आपकी गिरफ्तारी के
लिए शहर के चारों तरफ् कड़ी निगरानी कर रखी थी। हजरत इमाम मुस्लिम
रजी अल्लाहो तआला अर भूके प्यासे एक मस्जिद में बैठे रहे, रात को बाहर
निकले, रास्ते का इल्म ना था दिल में कहते जाते थे, अफसोस हुसैन से छूटे
और दुश्मनों में घिरे ना कोई हमदम है के राजे दिल सुने ना कोई कासिद है
के हुसैन को हमारी खुबर करे।
कासिद ए को पियामे बिसोए यारबर्द
ना महरमे को सलागये दर्गों दयार बर्द
फतादा एम बशहर गरीब दयारे नौस्त
। को किस्सा ज़ग़रीबे बशहर यार बर्द
इसी तरह हैरान परेशान एक मोहल्ले में फिर रहे थे, वहाँ एक बूढ़िया
तूआ नामी को देखकर उंससे पानी तलब फ्रमाया। तो उसने पानी पिलाया
और ये मालूम करके के ये ग्रीब-उल-वतन मुस्लिम हैं। उन्हें अपने मकान में
जगह दी। इस औरत का बेटा इब्ने जियाद का आदमी था। उसने इब्मे जियाद.
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सच्ची हिकायात 366 हिस्सा दोम
को खबर दे दी के मुस्लिम हमारे घर में हैं। इब्ने जियाद ने अपनी फौज भेज
दी जिसने बूढ़िया के मकान का मुहासरा कर लिया और चाहा के हजरत
मुस्लिम रजी अल्लाहो तआला अन्ह को गिरफ्तार कर लें, हजरत इमाप
मुस्लिम रजी अल्लाहो तआला अन्ह को इस मुहासरे का पता चला तो आप
तनहा तलवार लेकर इब्ने जियाद के लश्कर पर टूट पड़े। जैसे शेरे बब्बर
बकरियों के गल्ले पर हमला आवर होता है। आपके हमले से दिल आबरों
ने दिल छोड़ दिए और बहुत आदमी जख्मी हुए और बहुत से मारे भी गए।
उन जालिमों ने फिर दरो दीवार पर चढ़ कर आप पर पत्थर बरसाने शुरू
कर दिए। जिससे हजरत मुस्लिम का बदन मुबारक खुस्ता हो गया और एक
पत्थर आपकी पैशानी पर लगा खून बहने लगा। उस वक्त आपने मक्का की
तरफ रूख करके कहा।
ऐ हुसैन! कुछ आपको आपने भाई खुस्ता जिग्र की भी ख़बर है के उस
पर क्या गुजरी और कूफियों ने उसके साथ क्या किया अफसोस मेरे हाल
जार की आपको खूबर कौन पहुँचाए और कौन आपको यहाँ आने से रोके…
ना कासिद ने सबाऐ मुर्ग नामा बरे
किसे जबे किसी मसानसे बर्द ख़बरे
सबा बगुलशन अहबाब मअगयर बगुज़री
इजा लकीता हबीबी फकल . लह्टू ख़बरी
इसी असना में एक और पत्थर आकर आपके लब व दनदान पर लगा
मुंह से खून जारी हुआ दाढ़ी मुबारक रंगीन हो गई तो अब मजबूर होकर
एक दीवार से तकिया लगा कर बैठ गए के एक नामर्द ने घर में से आकर
आपके सर पर तलवार मारी जिससे ऊपर का होंट कट गया। आपने इसी
हाल में इस बुज॒ुदिल को जहन्चुम रसीद फ्रमा दिया और फिर दीवार से
तकिया लगा कर बैठ गए और फरमाने लगे। इलाही! में इस वक्त प्यासा ६,
आपकी ये फ्रयाद सुनकर वही बूढ़िया घर में से पानी लाई और
दिया। आपने मुंह से लगाया मगर उसमें खून मिल गया। इसलिए आपने फैंक
दिया। बूढ़िया ने दोबारा दिया वो भी खून आलूद हो गया, फिर सहबारह
द्विया उसमें आपके दांत निकल कर गिर पड़े। पस आपने पियाला हाथ
रख कर फरमाया खुदा को मंजर ही नहीं है। पीछे से किसी ने नेजुह मारी जो
पुश्त के पार हो गया। आप सरनिगों हो गए। जालिमों ने दौड़कर पकड़ लिये
और आपको इब्ने जियाद के पास ले आए। इब्में जियाद बद निहाद ने हुक!
दिया के उन्हें छत पर ले जाकर क॒त्ल किया जाए। चनाँचे एक जालिम
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सच्ची हिकायात ३67 हिस्सा दोम
बकीर आपका हाथ पकड़कर आपको छत पर ले गया। हजुरत मुस्लिम जाते
थे दरूद पढ़ते और कहते जाते थे। अल्लाहुम्मा अहकम बेनना व बयाना
कृमिना बिलहकुक जब छत पर पहुँचे तो नीचे देखा के अहले कूफा जमा
होकर देख रहे हैं, आपने फ्रमाया ऐ कूफियो! जब मेरा सर तन से जुदा
किया जाए तो बदन दफन करना और कपड़े उतार कर जो काफला मक्का
जाता हो हुसैन के पास भेज देना और मेरे बच्चों पर रहम करना। फिर मक्का
की तरफ रूख करके कहा अस्सलाम अलेका या ड्ब्ने रसूल अल्लाह
भाई यहाँ की आपको कैसे ख़बर करें!
| हरा ग्रिज़ ड्धर को आप ना अज़्य सफर करें
इतने में जालिम कातिल ने आपका सर मुबारक तन अतहर से जुदा कर
दिया। इन्ना लिल्लाही व इन्ना इलेहि राजिऊन द
शहीद मुस्लिम बेकय हुए हज़ार अफसोस
फरिशते करते हैं इस गम से बार बार अफसोस
शकी ने कुछ भी ना गर्बत का उनकी पास किया
चलाई हलक पे शमशीर आब दार अफसोस
( तजुकरंह हुसैन, सफां 43)
सबक :- दुनिया दार नशा दुनिया में बदमस्त होकर अल्लाहो वालों
पर इन्तिहाई जल्म व सितम ढाने पर उतर आते हैं। लेकिन अल्लाह बालों के
पास इसतकलाल में लग॒जिश नहीं आती और ये भी मालूम हुआ के ये सारे
जल्मो सितम ढाने वाले बड़े ही झूटे और बुज॒दिल थे बजाहिर मुहिब्ब और
बबातिन दुश्मन थे। पहले मोहब्बत का दम भरते रहे और फिर इब्ने जियाद
से डरकर अहले बैत की जान के भी दुश्मन बन गए।
हिकायत नम्बर) मजलूम बच्चे
हजरत इमाम मुस्लिम रजी अल्लाहो तआला अन्ह जब कूफे तशरीफ
ले गए तो अपने दो नन्हे बच्चे हजरत मोहम्मद और हजरत इब्नाहीम रजी
अल्लाहो तआला अन्ह को भी अपने हमराह ले गए थे। इब्ने जियाद हजुरंत
इमाम मुस्लिम रजी अल्लाहो तआला अन्ह के कत्ल से फारिग हुआ तो उसे
पता चला के इमाम मुस्लिम रजी अल्लाहों तआला अन्ह के दो लड़के भी
इसी शहर में हैं। इब्ने जियाद ने फौरन मनादी करा दी के जो कोई मुस्लिम के
लड़कों को अपने घर में जगह देगा। कत्ल व गारत किया जाएगा। उस वक्त
दोनों बच्चे काजी शरीह के घर थे। काजी साहब ने उन बच्चों को सामने
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सच्ची हिकायात 368 रा हिस्सा दोप
बुलाया। और बेइख्तियार रोने लगे। बच्चों ने पूछा काजी साहब आज इस
तरह रोने का सबब क्या है? क्या हम दोनों यतीम तो नहीं हो गए? काजी
साहब ने बजब्र रोना रोक कर कहा बच्चो! अल्लाह तआला तुम्हें सब्र अत
फ्रमाए, वाकुई तुम यतीम हो गए हो। बच्चों ने ये खबर सुनी तो रोने लगे और
वअतबाहू व गरबताहू के नारे लगाने लगे। काजी साहब ने कहा, बच्चो।
चुप रहो। इब्ने जियाद के लोग तुम्हारी तलाश में हैं मुझे तुम्हारी और अपनी
जान का खौफ है मैं चाहता हूँ के तुम्हें किसी के साथ मदीना रवाना कर दूं|
बच्चे ये बात सुनकर इब्ने जियाद के खौफ से चुपके हो रहे।
काजी साहब ने अपने लड़के असद से कहा के आज दरवाज इराकैन
से एक काफला मदीना को जा रहा है तू इन बच्चों को किसी नेक आदी
के सपुर्द कर आ। ताके वो इन्हें मदीना पहुँचा दे, असद जब लेकर दरवाजा
इराकैन पर आया तो काफला रवाना हो चुका था और गर्द काफला नजर आ
रही थी, असद ने बच्चों से कहा के वो काफला जा रहा है। दौड़ कर उसमें
मिल जाओ। बेकस बच्चे काफले की तरफ दौड़ पड़े। मगर काफला दूर जा
चुका था। इसलिए काफले को ना पा सके। असद घर को वापस आ गया
था। अंधेरी रात थी। बच्चे राह भूल गए रात भर इधर उधर फिरते रहे सुबह
होने लगी तो एक चश्मा देखा थके मांदे थे। इसलिए लबे चश्मा बैठ गए।
इत्तिफाकुन एक लोंडी इस चश्मे पर पानी भरने आई और उनको देखकर
जब उसे मालूम हुआ के ये इमाम मुस्लिम रजी अल्लाहो तआला अन के
यतीम बच्चे हैं, रोने लगी और कहा साहबजादो मेरे साथ चलो , मेरी मालिका
मुहिब्ब अहले बैत है वो तुम्हें पाकर बहुत खुश होगी। बिलकुल ना घबराओ
और मेरे साथ चलो बच्चे हैरान व परेशान उसके साथ हो लिए और जब
घर पहुँचे तो घर की मालिका ये मालूम करके के ये मुस्लिम रजी अल्लाहो
तआला अन्ह के यतीम बच्चे हैं दौड़ी दोनों को सीने से लगाया और उनके
हाल पर रोने लगी और फिर खिला पिला कर एक कमरे में सुला दिया।
इधर ये औरत तो इतनी खुदा तरस और मुहिब्ब अहले बैत थी। और इधः
उसका खाविंद हारिस नामी बेहद नाखुदा तरस और दुश्मन अहले बैत थी।
और दिन भर उन्हीं बच्चों की तलाश में सरगर्दा था के ये बच्चे पिल जायें त़ो
+ उन्हें कत्ल करके उनका सर इब्ने जियाद के पास ले जा कर इनाम पाऊ
ये अजीब मंजुर था के हारिस दिन भर जिन बच्चों की तलाश में थी
वो बच्चे उसी के घर में आराम फरमा थे। रात को जब ये जाजिम घर आर्थी
तो उसकी बीवी डरी के कहीं उसे इन बच्चों का इल्म ना हो जाएं, चुनाँचे
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सच्ची हिकायात ३69 हिस्सा दोम
उसकी बीवी ने उसे जल्द जल्द खाना खिला कर उसे सो जाने को कहा और
वो जालिम दिन भर का थका मांदा सो गया।
कुछ रात गए बड़े बच्चे ने छोटे को जगाया और कहा भाई मैंने अभी
अभी ख़्वाब देखा है के हमारे वालिद माजिद बहिश्त में हुजर नबी करीम
सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम के साथ टहल रहे हैं। और हुज॒र
नबी करीम सल-लल्लाहो तआला अलेह व सललम उन से फ्रमा रहे है।
ऐ मुस्लिम! तुम खुद चले आए और बच्चों को क्यों जालिमों में छोड़ आए
‘वालिद माजिद ने उनसे अर्ज किया के या रसूल अल्लाह! वो भी मेरे पीछे
आ रहे हैं और और सुबह तक आ जाएऐंगे।
छोटे बच्चे ने कहा! भाई जान! मैंने भी यही ख़्वाब देखा है ओर फिर
दोनों बगुलगीर होकर रोने लगे।
उनके रोने से हारिस की आँख खुल गईं। बीवी से पूछा ये शौर कैसा है?
घर में कौन छुपा है? वो औरत सहम गई और डरी के खुदा जाने अब क्या
हो? हारिस उठा और चिराग जलाकर अन्दर आया तो उन दोनों यतीमों को
रोते देखकर बोला तुम कौन हो? उन दोनों साहबजादों ने साफ साफ कह
दिया के हम फरजंदाने मुस्लिम हैं। जालिम हारिस खुश हो गया और….
आया हारिस तो कहा तुम ही हो मुस्लिस के युस्र
कल तुम्हीं ने मुझे हैरान किया चार यपहर
खैर अब कल के अवज़ आज मैं लूंगा जी भर
फैंक दी हाथ से फिर शम्रा इधर, तीग़ उधर
दस्त बैदार से इक भाई का बाज खींचा
दूसरे भाई का इक. हाथ से गेस खींचा
कत्ल के खौफ से उठे ना अली के प्यारे
इस तबक़कफक पर सितम गर ने तमाचे सारे
खींचा इस तरह के पुरज़े हुए कुर्ते सारे
मुंह को बल गिर पड़े वो बुर्जे शरफ के तारे
या हुसैन इने अली. इक ने बस्द यास कहा
दूसरे. भाई ने हजरत अब्बास कहा
फिर ये जालिम उन दोनों साहबजादों को घसीटता हुआ बाहर लाया,
और बेचारी बहोतेरा हाथ पैर मारती रही, अपना सर उसके पेरों में रखती रही।
और उसे जल्म से रोकती रही मगर इस जालिम ने एक ना सुनी और वो बे
रहम तलवार लेकर उठा और दोनों को फ्रात की तरफ् ले चला और उनको
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सच्ची हिकायात ३7 हिस्सा दोग
कत्ल करने के लिए तैयार हो गया। जब उन दोनों ने देखा के ये जालिम हमे
कत्ल करने वाला है तो.
की बड़े भाई ने कातिल की ये मिन्नत उस आन
हुझ से अर्ज़ इक मैं करता हूँ अगर तू ले मान
छोटे भाई ये में कर्बाना मिरा सर कबानि
सर मिरा पहले कुलम कर तू बड़ा हो अहसान
शौक से और हर एक सदमा व ईजा दिखला
पर ना भाई का मुझे नन्हा सा लाशा दिखला
आखिर कार जालिम व बेरहम हारिस ने तलवार पकड़ ली। उस वक्त
बच्चों ने कहा। हम यतीम हैं बे वतन हैं। हम पर रहम कर मगर इस दुनिया के
कुत्ते ने एक ना सुनी और जालिम ने बड़े साहबजादे को पहले शहीद किया
और फिर देखते ही देखते छोटे को भी शहीद कर-दिया। इन्ना लिल्लाही व.
इन्ना इलेही राजिऊन ( तज॒करह सफा 48 )
सबकः:- अल्लाह वालों की जान व माल और छोटे बड़ों पर बड़ी
बड़ी आजूमाईशें नाजिल हुईं और उन पाक लोगों ने बड़े सब्रो शुक्र के साथ
उन पर तहम्मुल फ्रमाया और “हरचै रसद जुदो सत नकूसत” पर अमल
पैरा होकर हमेशा दामन रजा व तसलीम को थामे रखा और कोई शिकवा
शिकायत नहीं फ्रमाई।
हिकायत नम्बर७७) जालिम का अंजाम
जालिम हारिस ने हजरत इमाम मुस्लिम र॑ंजी अल्लाहो तआला अन्ह के
दोनों साहबजादों को शहीद कर के चाहा के उनके सर इब्ने जियाद के पास
ले चलूं और इनाम पाऊँ, चुनाँचे वहाँ मुकृदस सरों को लेकर इब्ने जियाद
के पास आया। इब्ने जियाद ने इन नन्हे और नूरानी सरों को देखकर पूछा ये
किसके सर हैं? हारिस ने बताया के मुस्लिम के बच्चों के इब्ने जियाद बजाए
खुश होने के कहने लगा ऐ मलऊन! मैंने तो यजीद को ये लिखा है के वो मेरे
पास कैद हैं अगर उसने जिन्दा मंगवाऐ तो मैं कहाँ से लाऊँगा तू इन्हें मेरे पास
जिन्दा क्यों ना.लाया? हारिस ने कहा, अगर जिन्दा लाता तो शहर वाले मुझ
से छीन लेते और मैं इनाम से महरूम रह जाता। इब्ने जियाद ने कहा के तूने
मुझे खबर की होती मैं खुफिया मंगवा लेता। हारिस चुप हो गया इब्ने जियाद
ने अपने नदीमों में से मकातिल नामी शख्स को जो मुहिब्ब अहले बैत था,
हुक्म दिया के इस खूबीस को लबे फिरात ले जाकर कत्ल कर दो और जहाँ
9०९06 99 (थ्वा]5८शाशश’
सच्ची हिकायात 377 हिस्सा दोम
इन बच्चों के बदन डाले गए हैं। वहीं ये दोनों सर भी डाल दो, मकातिल ये
हुक्म सुनकर बड़ा खुश हुआ और हारिस का हाथ पकड़कर बाहर आकर
अपने राजूदारों से कहने लगा के अगर इब्ने जियाद मुझे तमाम मुल्क दे देता
तब भी मुझे इतनी खुशी ना होती जितनी उसके हुक्म से हुई। फिर मकातिल
ने हारिस के पसे पुएत हाथ बाँथे। सर नंगा किया। सरे बाजार लेकर चला
और बच्चों के सर लोगों को दिखाता जाता था। लोग इन्हें देख कर रोते और
हारिस पर लानत करते। हत्ता के लबे फिरात लाकर मकातिल ने पहले इन
दोनों मुकृदस सरों को नहर में डाला। क॒द्गते इलाही से दोनों के तन पानी के
ऊपर आकर सरों से मिल गए और फिर पानी में डूब गए। |
फिर मकातिल ने जालिम हारिस को भी कत्ल कर दिया और उसकी
लाश को फिरात में फैंका तो फिरात ने उसे कूबूल ना किया और बाहर फैंक
दिया, फिर उसे जमीन में दबा दिया। तो जमीन ने भी कूबूल ना किया और
बाहर निकाल फैंका और आखिर लकड़ियाँ जमा करके उसको जला दिया
गया। (तजरह सफा 50)
सबक;:- दीन से मुंह मोड़ कर इस बेवफा दुनिया को अपनाने का
फल यही मिलता है के आदमी ना दीन का रहता है ना दुनिया का और ऐसा
जालिम धोबी के क्त्ते की तरह ना घर का रहता है ना घाट का।
हिकायत नम्बर॥0 कूफे का सफर
हजरत इमाम मुस्लिम रजी अल्लाहो तआला अन्ह को कूफे में जिस रोज
शहीद किया गया। उसी रोज हजरत इमाम हुसैन रजी अल्लाहो तआला अन्ह
मक्का मोअज़्जमा से कूफे को रवाना हो पड़े। आपके अहले बैत मुवाली
व खुद्दाम कुल बयासी नफूस आपके हमराह थे। ये मुख़्तसिर सा अहले बैत
का काफला मक्का मोअज़्जमा से जब रूख़सत हुआ तो मक्का मुकर्रमा का
बच्चा बच्चा अहले बैत के इस काफले को हरम शरीफ से रूख़सत होता
देख कर आब दीदा और मग॒मूम हो रहा था। हजरत इमाम हुसैन रजी अल्लाहो
अन्ह का ये काफला जब मुकामे शकक में पहुँचा तो कूफे से आने वाले
एक आदमी ने हजरत इमाम रजी अल्लाहो अन्ह को बताया के कूफियों ने बे
वबफाई की और हजरत मुस्लिम रजी अल्लाहो तआला अन्ह शहीद कर दिए
गए हैं। हजरत इमाम रजी अल्लाहो अन्ह ने ये खुबर सुनकर इन्ना लिललाही व
इन्ना इलेही राजिऊन पढ़ी फिर खेमे में आए हजरत मुस्लिम की साहबजादी
सामने आई तो उसके सर पर शफ्कृत से हाथ फैरा और उससे तसल््ली व
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सच्ची हिकायात 372 हिस्सा
शफ्कृत आमेज बातें फ्रमाई। साहबजादी ने खिलाफे आदत ये रो
देखकर अर्ज की के आज तो आप मुझ पर यतीमाना नवाजिश फरमा रे
हैं, शायद मेरे वालिद मारे गए। ये सुनकर हजरत इमाम रजी अल्लाहो अरे
बेइख्तियार रो पड़े और फ्रमाया बेटी। गम ना करो। मैं तेरा बाप। मेरी बहन
तेरी माँ और मेरी लड़कियाँ लड़के तेरे भाई बहन हैं। साहबजादी रोने लग।
फरजुंदाने मुस्लिम दौड़े और वालिद की शहादत की खूबर सुनकर वो भी
रोए और फिर इन्तिहाई दिलैरी से फ्रमाने लगे। चचा जान! इंशा अल्लाह
हम कूफियों से बाप के खून का बदला लेंगे। या खुद भी उनकी तरह शी
हो जाऐंगे। हजरत इमाम रजी अल्लाहो अन्ह ने फिर अपने हमराहियों में एक
तकरीर फरमाई। और फ्रमाया के क्ूफियों ने बदअहदी की और पुस्लिप
रजी अल्लाहो अन्ह को शहीद कर दिया तुम में से जिसका जी चाहे, वापत
चला जाए। चुनाँचे बाज लोग जो इधर उधर से आकर मिल गए थे। ये
सुनकर वापस चले गए और जो शहीद होने वाले थे वो रह गए। आगे बे
तो एक मुकाम सोलबा पर आकर उतरे। हजूरत इमाम अपनी बहन हजस
जैनब रजी अल्लाहो अन्हा के जानो पर सर रखकर सो गए। थोड़ी देर के
बाद रोते हुए उठे और फ्रमाया बहन! मैंने नाना जान को ख़्वाब में देखा
है आप सल-लल्लाहो तआला अलेह व सललम रो रो कर फ्रमा रहे हैं के
ऐ हुसैन! तुम जल्द हम से आकर मिलोगे। और एक सवार कह रहा है के
लोग चल रहे हैं और उनकी क॒जायें उनकी तरफ् चल रही हैं। हजरत अली
अबबर रजीं अल्लाहो तआला अन्ह ने फरमाया। अब्बा जान! क्या हम हक
पर नहीं हैं? इमाम रजी अल्लाहो तआला अन्ह ने फ्रमाया बेशक हम हक
पर हैं। और हक हमारे साथ है। पस अली अकबर ने अर्ज की तो फिर मौत
का क्या खौफ! के एक ना एक दिन मरना ही है, अब्बा जान! हम गुलजाः
शहादत को फूला फला देख रहे हैं। दुनिया से बेहतर घर और उम्दा
हमारे सामने हैं। ( तज॒ुकरह सफा 57 ) ।
सबक :- हजरत इमाम हुसैन रजी अल्लाहो अन्ह और आपके अहले
बैत सभी आला कलमात-उल-हक की खातिर कमर बस्ता थे और मौत
मतलक् हरासाँ ना थे और यजीद के फिस्को फिजूर के खिलाफ आर्वर्
बुलंद फ्रमाने में किसी दुनयवी नुकसान का उन्हें मतलक् खूयाल ना थी
. हिकायत नम्बर7 हुरा इब्मे रबाही
हजूरत इमाम हुसैन रजी अल्लाहो तआला अन्ह; की रवांगी की वे
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हिकायात 373… हिस्सा दोम
पाकर इब्ने जियाद ने हुरा इब्ने रबाही को एक हजार लश्कर देकर हजरत
इमाम को घेर कर कूफे में लाने के वास्ते आगे भेज दिया। हजूरत इमाम
रजी अल्लाहो तआला अन्ह ने जब लश्कर को देखा तो एक शख्स को
मालूम करने के लिए भेजा के ये कैसा लश्कर है। इतने में हुरा इब्ने रबाही
खुद हजरत इमाम के सामने आया और कहने लगा। मुझे इब्ने जियाद ने
आपको घेर कर क्ू’; में ले जाने के लिए भेजा है। हजरत इमाम रजी
अल्लाहो तआला अन्ह ने इस लश्कर में खुत्बा पढ़कर फ्रमाया के ऐ
लोगो! मेरा इरादा इधर आने का ना था। मगर पै दरपै तुम्हारे खुत पहुँचे ,
कासिद आए के जल्द आओ , तो मैं आया। अब अगर तुम अपने वादे पर
कायम हो तो मैं तुम्हारे शहर चलूं वरना वापस चला जाऊँ, हर बोले
के खुदा की कसम मैं इन खुतूत से खूबरदार नहीं हूँ, हजूरत इमाम रजी
अल्लाहो तआला अन्ह ने फरमाया मगर तुम्हारे इसी लश्कर में बहुत से
ऐसे आदमी मौजूद हैं जिन्होंने मुझे खत लिखे। फिर आपने खतूत पढ़कर
सुनाए। अक्सर ने सर नीचा किया। और कुछ जवाब ना दिया हर ने हजरत
इमाम रजी अल्लाहो तआला अन्ह से कहा के हजरत! इब्ने जियाद ने मुझे
आपको घेर कर कूफे ले चलने का हुक्म दिया है। मगर मेरे हाथ कट
जायें जो आप पर तलवार उठाऊँ। चूंके मुखालिफ मेरे साथ हैं। इसलिए
मसलेहत ये है के मैं आपके हमराह रह। रात को आप मसतूरात का
बहाना करके मुझे से अलेहदा उतरें और जब लश्कर वाले सो जायें तो
आप जिस तरह चाहें चले जायें। मैं सुबह को कुछ देर जंगल में तलाश
करके वापस चला जाऊँगा और इब्ने जियाद से कुछ बहाना कर दूँगा।
( सर-उल-शहादतें , सफा ॥9, व तजूकरह , सफा 59 )
सबक्:- हजरत इमाम रजी अल्लाहो अन्ह महज इंतमामे हज्जत
के लिए उन लोगों की दावत पर वहाँ तशरीफ ले गए और सिर्फ दीन की
हिमायत का जज़्बा आपको आगे ले गया। जो गुसताखू आपका मुद्दा सल्तनत
का हिसूल बताते हैं। वो गौर तो करें के अगर बकौल उनके आपका यही
मुद्दा होता तो आप इस बे सरो सामानी के साथ हर गिज सफर ना फ्रमाते,
जब के आपको इल्म था के दुश्मन बे हद क्वी है और हजारों की तादाद में
लश्कर रखता है इधर लश्कर अजीम, और उधर चन्द नफूस कुदसिया किया
कोई अक्ल का दुश्मन ये कह सकता है के इस बे सरो सामानी के साथ आप
सल्तनत के हिसूल के लिए निकले थे? हर गिज् नहीं, बल्के आप को मैदान
में सिर्फ हिमायत दीन का जज़्जा ले गया था… ड ह
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सच्ची हिकायात 374 हिस्सा दोम
ना अपनी आन की खातिर ना अपनी शान की ख़ातिर
वो मैदाँ में निकल आए फक्त ईमान की ख़ातिर
हिकायत नम्बर0 दश्त कर्बला
_ हजरत इमाम रजी अल्लाहो तआला अन्ह की कूफे को रवांगी की खूबर
घाकर इब्मे जियाद ने हुर बिन रबाही को कृयादत में एक लश्कर आगे भेज
दिया था। हुर बिन रबाही मर्दे सईद ने हजरत इमाम रजी अल्लाहों तआला
अन्ह को मशवरा दिया के वो मसतूरात का बहाना फ्रमा कर रात को
अलेहदा उतरें और रात ही को कहीं तशरीफ ले जायें। चुनाँचे हजरत इमाम
रजी अल्लाहो तआला अन्ह ने यही किया और रात को जब यजीदी लश्कर
सो गया तो आपने वहाँ से कूच किया। अंधेरी रात में मालूम ना हुआ के
किधर जा रहे हैं! सुबह को एक मैदान होलनाक में पहुँचे। यहाँ उतरे तो इस
मैदान में जिस जगह मेख गाढ़ते। जुमीन से खून निकलता। जिस दरख़्त से
लकड़ियाँ तोड़ते, खून टपकता। ये हाल देखकर इमाम ने हमराहियों से पूछा।
तुम में से किसी को इस दश्त का नाम मालूम है। एक ने कहा इसे मारिया
कहते हैं। फरमाया! शायद कोई दूसरा नाम भी हो। लोगों ने कहा इसे कर्बला
भी कहते हैं। ये सुनकर आपने फ्रंमाया अल्लाहो अक्बर। अरज़ो कर्बिन व
बलाईँ व मसफका दिमाअ जुमीन कर्बला यही है। हमारे खून बहने की जा
यही है अब हम यहाँ से कहीं नहीं जा सकते…
दुश्मन यहाँ पे खून हमारा बहायेंगे
ज़िन्दा यहाँ से हम ना कभी फिर के जाएंगे
आले नबी का होगा इसी जा पे ख़ात्मा
सब तश्ना लब यहाँ पे सर अपना कटायेंगे।!
. कर्ब व बला है नाम इसी सर जमीं का
* बच्चे यहाँ पे पानी का कृतरा ना यायेंगे
होगा हर डक शहीद यहाँ मुसतफा का लाल
द और लाश कत्ल गाह से हम सबकी लायेंगे
अली. अबबर ने अर्ज किया, अब्बा जान! आप ये क्या फ्रमा रहे हैं,
फरमाया बेटा! तेरे दादा जान अली अलमुर्तज़ा सफैन जाते हुए यहाँ ठहरे
और बड़े भाई हसन के जानो पर सर रख कर सोए। मैं सिरहाने खड़ा था के
रोते हुए उठे। बड़े भाई ने रोने का सबब पूछा। तो फ्रमाया मैंने अभी ख़्वाब
में इस जगह हुसैन को दरयाऐ खून में डूबता हुआ हाथ पाँव मारता हुआ
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सच्ची हिकायात द हिस्सा दोम
फ्रयाद करता हुआ देखा है मगर कोई उसकी फ्रयाद नहीं सुनता। फिर मुझ
से फ्रंमाया। बेटा! जब तुझे इस जगह वाकेया अजीम दरपैश होगा तो तू उस
वक्त क्या करेगा? मैंने अर्ज़ किया के सब्र करूंगा। इस पर फ्रमाया बेटा
ऐसा ही कना के सब्न करने वालों का सवाब बेशुमार है।
अन्नाया यूतिस्पानिस्नना अजराहुम बग्रैरी हिसाब
ये फ्रमा कर आपने असबाब उतरवाया। लब फिरात खैमा नस््ब
फरमाया और दूसरी मोहर॑म 6हि० को आप दश्त कर्बला में कुयाम पजीर
हुए। ( तजुकरह, सफा 6)
. सबक:- दश्त कर्बला अजुल ही से हजरत इमाम हुसैन रज़ी अल्लाहो
तआला अन्ह के लिए इम्तिहान गाह मुक्र॑र हो चुका था और हजरत को खुद
भी अपने इस इम्तिहान देने का इल्म था और ये आप ही की शान और आप
ही का हिस्सा है के इस जबरदस्त इम्तिहान के लिए आप हर तरह तैयार थे
और आपने पाये इसतकलाल और अज़्मो सिबात में जर्रा भी भी लगृजिश
ना आने दी।
हिकायत नम्बर) तलकौन सत्र
हजरत इमाम हुसैन रजी अल्लाहो तआला अन्ह जबं दश्त कर्बला में
उतरे तो आपने अहले बेैत में ये वाज॒ फरमाया के “मेरी मुसीबत व मुफारक्ृत
प्र सब्र करना जब मैं मारा जाऊँगा तो हर गिज् मुंह ना पीटना और बाल ना
नोचना और गिरेबान चाक ना करना ऐ मेरी बहन जैनब! तुम फातिमा जोहरा
की बेटी हो। जैसा उन्होंने हुजरः॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम की
मुफारकृत पर सब्र किया था इसी तरह तुम भी मेरी मुसीबत पर सब्न करना।”
( अनारत-उल-बसायर, सफा 297) (बहवाला नासिख-उल-तवारिख
मनकल अज फ़ेसला शरीया सफा 4 ) ह
सबक ;:- सब का इस अमर पर इत्तिफाक् है के हजरत इमाम हुसैन
रजी अल्लाहों अन्ह ने खुद भी सब्र फ्रमाया और अपने मुतअल्लिकैन को
भी सब्रो शुक्र से रहने की तलकीन फ्रमाई पस हमें भी सब्रो शुक्र से काम
लेना चाहिए। और जजै व फजै से बचना चाहिए। ताके इमाम साहब की
खुशनूदी हासिल हो।
हिकायत नम्बर७०) इब्ने जियाद का खत
हजूरत इमाम हुसैन रजी अल्लाहो तआला अन्ह ने मुकामे कर्बला में
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सच्ची हिकायात 376 … हिस्सा दोम
कयाम फरमाया तो इब्ने जियाद ने एकं खत हजरत इमाम रजी अल्लाहो
तआला अन्ह की तरफ इस मजूमून का भेजा के या तो यजीद को बैत
कीजिए या लड़ने को तैयार हो जाइये। हजरत इमाम हुसैन रजी अल्लाहो
तआला अन्ह ने इस खत को पढ़कर फैंक दिया। और कासिद से फरमाया
मालाहू इन्दी ( जवाब ) मेरे पास इसका कोई जवाब नहीं। इब्ने जियाद
थे सुनकर गस्से में आ गया और इब्ने साद को बुला कर कहा के तुम
एक मुद्दत से मुल्क रैए के हाकिम बनने. की तमन्ना रखते हो लो आज
मौका है तुम हुसैन के मुकाबले के लिए जाओ और हुसैन को मजबूर
करो के वो यजीद की बेत करे वरना उसका सर काट कर ले आओ।
तो मुल्क रैए का परवानाए हकूमत तुम को दे दिया जाएगा। सग दुनिया
इब्ने साद मुल्क रैए की हकूमत के लालच में आकर हजूरत इमाम रजी
अल्लाहो तआला अन्ह के मुकाबले के लिए तैयार हो गया और लश्कर
लेकर कर्बला में पहुँच गया। कर्बला में पहुँच कर उसने हजूरत इमाम
रजी अल्लाहो तआला अन्ह से दरयाफ्त किया के आप यहाँ किस वास्ते
आए हैं आपने फ्रमाया कूफियों ने हजारों खत लिख लिख कर मुझे
बुलाया। मैं खुद यहाँ नहीं आया मगर अब जब के तुम सबकी बेवफाई
मुझे मालूम हो गई है तो मुझे अब भी तुम लोग वापस जाने दो और मुझ .
से मुतआर्रिज ना हो तो वापस चला जाऊँ। इब्ने साद ने हजरत इमाम रजी
अल्लाहो तआला अन्ह की इस गुफ्तगू की इत्तिला इब्ने जियाद को दी
तो इब्ने जियाद ने गस्से से हुक्म भेजा के तुम्हें हुसैन रजी अल्लाहो रजी
अल्लाहो तआला अन्ह से लड़ने को भेजा है सुलह करने नहीं। हम सिवा
बैत के हसैन से कुछ भी कबूल नहीं करेंगे। फिर इब्ने जियाद ने शमरशीत
वगैरा जालिमों को सरदार बना बना कर हजारों की तादाद में और फौजें
भी भेज दीं और हुक्म दे दिया के हुसैन का पानी भी बन्द कर दिया जाए
और उसे हर तरह तंग किया जाए। ( तनक्रीह-उल-शहादतैन, सफा 56)
सबक्:- हजरत इमाम हुसैन रजी अल्लाहो तआला अन्ह दीन के
लिए मैदान में तशरीफ लाए और इब्मे साद वगैरा यजीदी लोग दुनयवी
हकूमत के लालच में हजरत इमाम के मुकाबले में आए। और ये भी
मालूम हुआ के हजरत इमाम रजी अल्लाहो तआला अन्ह आखिर तक
उन पर इतमामे हज्जत फ्रमाते रहे और फ्रमाते रहे के तुम अगर अब
भी मुतारिजु ना हो तो मैं वापस चला जाऊँ। मगर वो लोग खुद ही इस
सारे फितने के बानी थे। ।
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सच्ची हिकायात 377 हिस्सा दोम
हिकायत नम्बर७/॥) नहर फिरात
हजूरत इमाम हुसैन रजी अल्लाहो तआला अर ने मैदाने कर्बला में नहर
फिरात के किनारे अपने खैमे गाढ़ रखे थे मगर मोहर॑म की सातवीं तारीख को
इब्मे साद को फौज ने जो बयासी हजार की तादाद में फिरात को घेर लिया
और हजरत इमाम को पानी लेने से रोक दिया इस फौज में अक्सर वही लोग
थे। जो मुहिब्बाने अली और मुहिब्बाने हुसैन होने का दावा करते और जिन्होंने
हजूरत इमाम को खत लिखकर खुद ही बुलाया था और अब खुद ही उनका
पानी भी बन्द कर दिया। इब्ने साद ने हजरत इमाम को कहा के वो अपने खैमे
नहर के किनारे से उखाड़ लें। हजरत अब्बास ने इस मौके पर फ्रमाया के
ऐसा नहीं हो सकता मगर हजरत इमाम ने फरमाया के भाई अब्बास जाने दो
तुम बहर करम हो ये कृतरा-ए-ना चीज हैं उनसे झगड़ना फिजल है। अपना
खैमा यहाँ नहीं तो नहर से दूर ही सही। चुनाँचे हजरत इमाम ने अपना खैमा
वहाँ से उखाड़ने का हुक्म दे दिया। ( तनक्र_ह-उल-शहादतैन, सफा 5)
सबकः:- साकी कोसर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल््लम के
नवासे और उनके अहले बैत पर पानी बन्द कर देना यजीदियों की इन्तिहाई
शिक्ावत और हजरत इमाम का बकमला सब्रो शुक्र वहाँ से खैमा उखाड़
लेना आपकी इन्तिहाई बुलंद होसलगी और जुर्रातो शुज़ाअत का मुजाहेरा था
और ये भी मालूम हुआ के ये सब शकी जिन्होंने हजरत पर पानी बन्द किया
था और जो पहले अपनी झूटी मोहब्बत का एलान करते रहे थे। अफसोस
उन जालिमों पर जिन्होंने सु
ख़ौफे खुदा व पास पयैेग्रग्बर भुला दिया
सिब्ते नबी का नहर से खैमा उठा दिया
हिकायत नम्बर52) कुआ
मैदाने कर्बला में जालिमों ने हजरत इमाम पर सातवीं मोहर्रम
से पानी बन्द कर दिया। आठवीं तारीख को जब अहले बैत के छोटे
बड़े प्यास से निढाल हुए और अलअतश अलअतश की आवाजें आने
लगीं। तो हजरत इमाम ने वहाँ एक कुआँ खुदवाया जिससे कुछ अफ्राद
ने पानी पिया लेकिन वो कुआँ फिर आप ही आप गायब हो गया।
( तनक्ौह-उल-शहादतैन सफा 57)
सबक्:- मालूम हुआ के खुद ख़ुदा बंद करीम को यही मंजर था के
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सच्ची हिकायात 378. हिस्सा दोष
हुसैनी लश्कर सब्नो शुक्र का मुज़ाहेरा करके अब होजे कोसर ही के पानी
से अपनी प्यास बुझाए।
हिकायत नम्बर(23) बरीर हमदानी ओर इब्ने साद
मोहर॑म की नवीं तारीख को हुसैनी लश्कर में से हजरत इमाम के रफौक
बरीर हमदानी हजरत इमाम से इजाजृत लेकर इब्मे साद के पास गए और
जाके उसके पास बैठ गए। इब्ने साद ने कहा के हमदानी! क्या तुम मुझे
मुसलमान नहीं समझते जो मुझे सलाम अलेक नहीं कहा। हमदानी बोले के
जौफ है तेरे इस मुसलमान बनने पर के दावा तू इस्लाम का करता है और
अहले बैत रसूल को दरया से पानी तक नहीं लेने देता। नहर फिरात से जानवर
तक पानी पी रहे हैं मगर साकी कोसर के लख्ते जिगर प्यास से तड़प रहे हैं
फिटकार जौफ लअन हैँ तुझ बद मआल पर
: पानी किया है बन्द मोहम्मर की आल पर
इब्ने साद ने कहा सच है लेकिन क्या करूं मुझ से मुल्क रैए की हकूमत
नहीं छूटती। ( तनकीह-उल-शहादतैन सफा 58 )
सबक्:- दुनिया परस्त अपनी आक्बत से अंधा हो जाता है।
हिकायत नम्बर७०) मजलूम सय्यद
_मोहर्रम की नवीं तारीख सुबह से दोपहर तक इब्मे साद से गुफ्तगू में
गुज्री। बाद नमाज जोहर हजरत इमाम हुसैन रजी अल्लाहो तआला अन्ह
खैमे से बाहर बैठे हुए कलाम अल्लाह की तिलावत फरमाते थे और आँखों
से आँसू बहते जाते थे। इस दश्त होलनाक में इस वक्त किसी मुसाफिर खुदा
परस्त का गुजर हुआ। हजरत इमाम रजी अललो तआला अन्ह को इस आलम
में देखकर उसने आपका हाल पूछा तो आपने फरमाया…
मुसाफिर सय्यद आवार . वतन
ग़रीक् कलज़्मे रंज व महन
सितम मुझ ये किया उन शामियों ने
नबी की आल हूँ तशना दहन हूँ
. क्ूफियों ने बड़ी बड़ी खुशामदों सेखत और कासिद भेज भेज कर मुझे
बुलाया और अब मेरे साथ बेवफाई और दगा कर रहे हैं और मेरे खून के
प्यासे हो गए। ( तनकीह-उल-शहादतैन सफा 58 )
सबक:- हजरत इमाम आली मुकाम का ये वाक्ेया कुयामत शा
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2४०५५५०॥५
सच्ची हिकायात ३79 हिस्सा दोम
यही पुकारता रहेगा के कूफियों ने झूटी मोहब्बत का मुजाहेरा करके हजरत
इमाम आली मुकाम पर इन्तिहाई जल्मो सितम किया सफा किस्म के झूटे
मदअयान मोहब्बत से इजतिनाब ही लाजिम है।
हिकायत नम्बर 329 सरवरे अंबिया( सब्अन्सः ) की आमद
मोहरम की दसवीं रात शाम से सुबह तक हजरत इमाम ने इबादते इलाही
में गुजार दी। रात के पिछले पहर आप पर एक इसतगूराक् की कैफियत तारी
हुई। हक तआला की याद में इस कदर महू हुए के दुनिया व माफीहा को तरफ
तवज्जह ना रही। इस आलम में हुज॒र सय्यद-उल-अंबिया सल-लल्लाहो
तआला अलेह व सल्लम फरिश्तों की जमात के साथ मैदाने कर्बला में
तशरीफ लाए और हजरत इमाम रजी अल्लाहो तआला अन्ह को बच्चों की
तरह गोद में लेकर खूब प्यार फ्रमाया। और फ्रमाया ऐ जानो दिल के चैन
नूर-उल-ऐन मेरे हुसैन में खूब जानता हूँ के दुश्मन तेरे दरपे आजार हैं और
तुझे कृत्ल करना चाहते हैं। बेटा! तुम सब्रों शुक्र से इस साअत को गुजारना!
तेरे जितने कातिल हैं।
कयामत के दिन सब मेरी शफाअत से महरूम रहेंगे और तुझे शहादत
का बहुत बड़ा दर्जा मिलने वाला हैं और थोड़ी ही देर में तुम कर्बला से छूट
जाओगे। बेटा! बहिश्त तेरे लिए संवारी गई है। तेरे माँ बाप बहिश्त के दरवाजे
पर तेरी राह तक रहे हैं। ये बातें इशाद फरमा कर हुजर ने फिर हजरत इमाम
के सर व सीने पर हाथ मुबारक फैर कर दुआ फ्रमाई के अल्लाहुम्मा आतिल
हुसैना सबरन व अजरन ऐ अल्लाह मेरे हुसैन को सब्रो अज्ञ इनायत फ्रमा।
हजरत इमाम जब इस मुकाशफे से चौंके और अहले बैत से ये
सारा माजरा बयान किया तो सब हैरत से एक दूसरे का मुंह तकने लगे,
( तनक्कीह-ठल-शहादतैन ) –
सबकः:- कर्बला का सारा किस्सा हुज॒र॒ सल-लल्लाहो तंआला अलेह
व सल्लम को नजर आली में था। हुज॒र जालिमों का जल्म और साबिरों का
सन्न मुलाहेजा फ्रमा रहे थे। हर ह
हिकायत नम्बर3०) करामात –
मोहरम की दसवीं को हजरत इमाम ने खैमा के गिर्द जो खंदक खुदवा
रखी थी। वो लकड़ियों से भरवा कर उसमें आग रोशन कर दी ताके हरम
शबखून वगैरा से महफूज रहें और दुश्मन खैमे तक ना पहुँच सके। इस
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सच्ची हिकायात ३80 द हिस्सा दोष
यजीदी बेदीन ने आग रोशन देख कर कहा। ऐ हुसैन! आतिश दोजूख से
पहले ही तुम ने अपने आप को आग में डाल लिया है। ( मआज <
हजरत इमाम ने फ्रमाया कजिब्ता या अदूबल्लाही ऐ दुश्मने खुदा, तूमे
झूट बोला। फिर आपने रूबकिबला होकर फ्रमाया अल्लाहुम्मा अजीज
इलन्नारी ऐ अल्लाह! इसे आग की तरफ् खींच ये दुआ करते ही उस बेदीन
के घोड़े का पाँव एक सूराख् में फंसा, घोड़ा गिरा। लगाम हांथ से छूटी, पाँव
लगाम में उलझा, घोड़ा लेकर भागा हत्ता के उसे खंदक की आग में लाका
गिराया और खुद चला गया। हजूरत इमाम ने सज्दा शुक्र अदा किया और
सर उठा कर बाआवाजे बुलंद फ्रमाया। इलाही हम तेरे रसूल की आल हैं।
हमारा इंसाफ जालिमों से लेना। इतने में एक और बेदीन ने हजूरत इमाम रजी
अल्लाहो तआला अन्ह को मुखातिब करके कहा। देख ऐ हुसैन! नहर फिरात
कैसी मौजें मार रही है। मगर उससे तुझे एक कृतरा भी नसीब ना होगा। यूंही
प्यासा कृत्ल किया जाएगा। इमाम ये सुनकर आजुर्दा हुए और आबदीदा
होकर दुआ फ्रमाई। इलाही! उसे प्यासा मार, यकायक उसके घोड़े ने शोखी
करके गिराया। ये उठ कर घोड़ा पकड़ने दौड़ता फिर। प्यास गालिब हुईं,
प्यास प्यास पुकारता रहा मगर हलक से पानी ना उतरा आखिर उसी प्या्
की हालत में मर गया। ( तज॒करह सफा 68 )
सबक:- हजरत इमाम हुसैन रजी अल्लाहो तआला अन्ह के महबूब
थे। खुदा आपकी सुनता था मगर शहादत चूंके आपके नाम लिखी जा चुकी
थी। और अल्लाह व रसूल की यही मर्जी थी इसलिए आप राजी बरजाऐ हक्
थे। और आपने बकमाल सब्रो रजा जामे शहादत नोश फरमाया।
हिकायत मम्बर७०) इतमामे हुज्जत
यजीदियों ने जब बहर सूरत हजरत इमाम हुसैन रजी अल्लाहो तआला
अल्ह से लड़ना ही चाहा तो हजरत इमाम रजी अल्लाहो तआला अर ने भी
अमामा-ए-रसूल बाँध कर जलफिकार हैदर करार हाथ में लेकर और नाके
पर सवार होकर मैदान में तशरीफ् लाए और करीब लएकर इब्मे साद होकर
फरमाया।
“ऐ इराक वालो! तुम खूब जानते हो के मैं नवासा रसूल हूँ, फरजँद
तबूल और दिलबंद अली अलमुतर्जा और बरादर हसन मुजतबा हूँ थे
अमामा किस का है? गौर करो के इसाईं अब तक निशान पाऐ मूसा को
देते हैं, गृर्ज हर दीन व मिललत के लोग अपने पैशवाओं की यादगार की
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सच्ची हिकायात 38॥ द हिस्सा दोम
दोस्त रखते हैं पस मैं तुम्हारे रसूल का नवासा हूँ, अली शेरे खुदा का फ्रजूंद
हूँ अगर तुम मेरे साथ कोई अच्छा सलूक नहीं कर सकते तो कम अज कम
मुझे कृत्ल ही ना करो। बताओ तुम ने किस वजह से मेरा और मेरे अहलो
अयाल का पानी बन्द कर रखा है, क्या मैंने तुम में से किंसी का खून किया
है या किसी की जागीर जब्त की है? जिसका बदला तुम मुझ से ले रहे हो,
तुम ने खुद मुझ को यहाँ बुलाया और अब ये अच्छी मेरी मेहमान नवाजी कर
रहे हो? जूरा सोचो के तुम क्या कर रहे हो।?” ।
आप ये तक्रीर फ्रमा ही रहे थे के खैमे से रोने की आवाज आई। आपने
मुतास्सिर होकर लाहोल पढ़ी और अब्बास व अली अकबर से फ्रमाया तुम
जाकर सब को रोने से मना करो और कहो, जुरा सब्र करो के अभी तुम्हें बहुत .
रोना है। दोनों हजरात ने अहले हरम को रोने से बाज रखा हजरत इमाम ने
फिर लशएकर इब्मे साद से खिताब फ्रमाया केः
“ऐ कूफियो! तुम्हें मेरा हस्बो नस्ब मालूम है जिसका मिसस्ल आज रूऐ
जमीन पर नहीं है फिर सोच लो के तुम ने खुद ही मुझे खतूत लिखकर बुलाया
है फिर अब मेरे खून के प्यासे क्यों हो गए हो। देखो ये तुम्हारे खुतूत हैं।”
.._’हजरत इमाम ने खतूत दिखाए तो उन बेवफाओं ने इंकार कर दिया और
कहा ये हमारे खतूत नहीं हैं। हजरत इमाम रजी अल्लाहो तआला अन्ह ने
उनके इस कजिब व उज्ध से मुतहय्यर होकर फ्रमाया, बहम्दुलिल्लाह! हुज्जत
तमाम हुई, मुझ पर कोई हुज्जत ना रही। ( तजुकरह सफा 70 )
सबक्ः- हजरत इमाम रजी अल्लाहो तआला अन्ह आखिर तक यही
चाहते रहे के ये लोग अपनी बेवफाई से बाज आयें और मेरे खून नाहक् से
अपने हाथ ना रंगें मगर इन बदबझ़्तों के नसीब ही बुरे थे। इसलिए वो अपने
जल्मो सितम से बाज ना आए और ये भी मालूम हुआ के हजूरत इमाम हुसैन
रजी अल्लाहो अन्ह अपने नाम के और झूटे मेहबूब से बेजार होकर दुनिया
से तशरीफ लेगए।… ।
हिकायत नम्बर50) हजरत हुए रूआ० )…
हिकायत नम्बर 37 में हुर बिन रबाही का जिक्र आपने पढ़ा। ये हुर
मर्दे सईद और खुश किसमत थे। लश्कर इब्मे साद में हजरत इमाम हुसैन
रजी अल्लाहो तआला अन्ह के साथ लड़ने आए थे मगर उनकी तकदीर में
कुछ और ही लिखा था। हजरत इमाम आली मुकाम के अहबाब व अनसार
जब यजीदियों के साथ लड़ते हुए शहीद हो चुके थे और हजूरत इमाम रज्जी
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सच्ची हिकायात उछ2 हिस्सा दोम
अल्लाहो तआला अन्ह के पास बजुज भाई, भतीजों, भांजों, लड़कों और
तीन खादिमों के और कोई बाकी ना रहा तो ये सूरते हाल देखकर हजरत
इमाम बेइख्तियार रो पड़े और पुकार उठे।
हल पिन मुगेसिन यूगीसूना
“है कोई हमारी फ्रयाद सुनने और मदद करने वाला”
ये दर्दनाक आवाज हजरत हुर रजी अल्लाहो तआला अन्ह के कानों में
पड़ी तो कलेजा दहल गया और फौरन अपने घोड़े की बाग दोजख की तरफ
से फैर कर जन्नत की तरफ कर ली। यानी लश्कर इब्ने साद से घोड़ा दौड़ा
कर हजरत इमाम की खिदमत में हाजिर हो गए और रकाब का बोसा देकर
अर्ज किया: हुज॒र! मेरा कुसूर माफ और मेरी तौबा कबूल होगी या नहीं?
इमाम रजी अल्लाहो तआला अन्ह ने उनके सर पर दस्त मुबारक फैर कर
फ्रमाया अल्लाह तआला अपने बन्दों की तौबा कबूल फ्रमाता है, मैं तुप
से खुश हूँ हजरत हुर ये बशारत सुनकर लश्कर इमाम में शामिल हो गए।
( तज॒करह सफ्ा 73) ।
सबक्ः- जिनका नसीब अच्छा हो वो किसी ना किसी वक्त गुमराही
से निकल कर हिदायत की तरफ आ ही जाते हैं।
_ हिकायत नम्बर७०) हजरत हुर( रण” ) की शहादत
हजरत हर रजी अल्लाहो तेझ्ाला अन्ह यजीदी लश्कर से निकल कर
हुसैनी सिपाह में आ मिले थे और इस तरह उन्होंने अपने आपको आग से बचा
कर जन्नत खरीद ली थी। आप बहुत बड़े बहादुर और दिलैर थे। इब्मे साद
के लश्कर के आप सिपह सालार थे। इब्मे साद ने जब उन्हें हुसैनी सिपह में
मिलते हुए देखा तो वो बहुत घबराया और सफवान से कहने लगा तू जा और
हुर को समझा कर वापस फैर। वरना सर तन से जुदा कर। चुनाँचे सफवान
ने हुर से आकर कहा, तुम मर्द दाना व आकिल होकर यजीद जैसे अजीम
हाकिम की रफाकृत छोड़ कर हुसैन की तरफ् क्यों चले आए, चलो वापस
चलो , हजरत हुर रजी अल्लाहो तआला अन्ह ने फरमाया, अब मैं वापस नहीं
जा सकता। सफवान ने पूछा क्यों? तो फरमाया,…
क्यों छोड़ के दीं फौज में गुमराह के आऊँ
हाकियम को हसाऊँ में मोहम्पद को रूलाऊँ
क्या हाकिय दुनिया का तो अहसास करूं में
और ज़ोहरा के सेने का ना कुछ पास करूं मैं
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सच्ची हिकायात हिस्सा दोम
ऐ सफवान! यजीद नापाक है और हुसैन पाक और रीहान मुसतफा
है। सफवान ने गृस्से में आकर नेजृह मारा। हुर ने नेजुह तोड़ डाला और
फिर उसे एक ऐसा नेजुह मारा के सीने से पार हो गया। और फीज्नार हो
गया। ये सूरत देखकर सफवान के भाई दौड़े। हजरत हर ने उन्हें भी मार
डाला और फिर खुद वहाँ से फिर कर हजरत इमाम के पास आकर अर्ज
की। हुजर! अब तो आप मुझ पर राजी हैं। फरमाया में तुझ से राजी हूं
तू आजाद है जैसा के तेरी माँ ने तेरा नाम रखा हे। हुर ये मसदा सुनकर
फिर मैदान में आए जिस तरफ हमला किया कशतों के पुश्ते लगा दिए।
एक यजीदी ने आकर आपके घोड़े को जुख़्मी कर दिया। आप पियादा
ही लड़ने लगे, इमाम ने उन्हें पियादा देख कर दूसरा घोड़ा भेज दिया
हजरत हुर इस पर सवार हो गए। लेकिन अब जालिमों ने एक दम हल्ला
बोल दिया। हजरत हुर ने एकं॑ बार और खिद्मत इमाम में हाजिर होने का
इरादा किया के गैब से आवाज आई। अब ना जाओ , हरें तुम्हारी मुंतजिर
हैं। पस हुर ने वहीं से अर्ज़ की या इब्ने रसूल अल्लाह! ये गुलाम आपके
नाना जान के पास जा रहा है कछ फरमाइये तो कह दे, इमाम ने रो कर
फरमाया हम भी तुम्हारे पीछे आ रहे हैं। उसके बाद हजुरत हुर जालिमों
के मुतावातिर हमलों से निढाल होकर गिर पड़े और इमाम को आवाज
दी। हजरत इमाम आवाज सुनकर दौड़े और हुर को उठा कर लश्कर में
लाए। जानवे मुबारक पर उनका सर रख कर चहरे का गर्दों गुबार साफ
करने लगे। हुर ने अपनी आँखें खोलीं, और अपना सर इमाम के जानो पर
रख कर मुसकुराए और जन्नत को सिधारे। इन्ना लिल्लाही व इन्ना इलेही
राजिऊन( तजुकरह: 75, सर-उल-शहादतैन सफा 22) |
सबक्:- हजरत हर रजी अल्लाहो तआला अन्ह अपने नाम के
मुताबिकु वाकुई हम से आजाद और जन्नत के मालिक बन गए और
ये दर्स दे गए के दुनिया चन्द रोज़ा है और एक दिन आखिर मरना है,
फिर क्यों ना ऐसी मौत मरा जाए जिससे अल्लाह व रसूल खुश हो , और
आक्बत दुरूस्त हो जाए। फिर आज अगर कोई कहलाए हसैनी और ना
नमाज पढ़े ना दाढ़ी रखे। भंग पिये चरस पिये, और बुज॒र्गों की तोहीन
करे गोया कहाऐ हुसैनी और काम करे यजीदी तो उसके मुतअल्लिक्
खा ह’ कहा जाए के ये हूसैनी लश्कर से कट कर यजीदी सिपह में जा
ला है।
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सच्ची हिकायात 384 हिस्सा दोम
हिकायत नम्बर(339) दो शेर
हजरत इमाम रजी अल्लाहो तआला अन्ह के जब सब यार वफादार और
रफीक व जाँनिसार शहीद हो गए तो हजरत की सगी और बेवा बहन हजरत
जैनब रजी अल्लाहो तआला अन्ह के दो यतीम साहबजादे हजरत मोन और
हजूरत मोहम्मद माँ और मामूँ की इजाजत लेकर घोड़ों को दौड़ाते हुए और
नअरा-ए-तकबीर बुलंद करते हुए दुश्मनों की तरफ बढ़े….
जंग गाह में घोड़ों को उड़ाते हुए आए
.. ज्ञान अपनी सवारी की दिखाते हुए आए
नेज़ों को दिलेरना हिलाते हुए आए
ईनाँ सृूए. अशरार बनाते हुए आए
लरज़ा था शुजाओं को दिलैरों की नज़र से
तकते थे सफे फौज को शेरों की नजर से
लश्कर में ये गल था के वो जॉबाज पुकारे
लड़ना हो जिसे सामने आ जाए हमारे
हम वो हैं के जब होते हैं मैदाँ में उतारे
रूस्तम को भगा देते हैं तलवार के मारे क्
है केहर खुद्ए दो जहाँ हर्ब॑ हमारी
रूकती नहीं दुश्मन से कभी जर्ब हमारी
ये रिज्ज पढ़ी दोनों ने जोलाँ किए घोड़े
बिल्ले में इधर तीर कमानदारों ने जोड़े ।
गल था के ख़बरदार कोर्ड मुह को ना मोड़े
… ये दोनों बहादुर हैं तो हम भी नहीं थोड़े
या मार के तलवार गिरा देते हैं उनको
या नेजों की नोकों पर उठा लेते हैं उनको
ये दोनों शेर फौज अशकिया में घुस गए और कई यजीदी फीज्नार कर
दिए जब अशकिया ने देखा के ये बच्चे तो शेरों की तरह लड़ रहे हैं तो
उन्होंने दोनों को इस तरह नरगे में ले लिया के दोनों भाई एक दूसरे से जुदा
हो गए फिर भी किसी की हिम्मत ना पड़ती थी। ताहम एक शख्स ने पीछे
से आकर इस जोर से नेजा मारा के हजरत जेनब का ये लाल घोड़े से खून
में लहू लहान नीचे गिर पड़ा। दूसरे भाई को भी फिरऔनों ने नेजों से छलनी
कर दिया और दोनों शेर फशें खाक पर तड़पने लगे। उस वक्त हजरत इमाम
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सच्ची हिकायात 385… हिस्सा दोम
रजी अल्लाहो तआला अन्ह दौड़े। आपको देखकर दोनों ने आँखें खोलीं।
और मुसकुरा दिए। और दम तोड़ दिया। हजरत जैनब रजी अल्लाहो तआला
अन्हा आखिर माँ थीं। बच्चों की शहादत की खबर पाकर उनका जिगर पाश
पाश हो गया। आसमान व जूमीन की आँखों में भी आँसूं आ गए थे लेकिन
उन संग दालान कूफे के दिल रहम से बिलकुल खाली थे इन्ना लिल्लाही व
इन्ना इलेही राजिजन ( तनकौह-उल-शहादतैन तबेसर्ूफ मोल्लिफ सफा 7)
सबकः- अहले बेत ओजाम के हर छोटे बड़े फर्द में जुर्रात व शुजाअत
पाई जाती थी और अल्लाह की राह में कट मरने का जज्बा अहले बैत अजाम
में बदर्जा उत्तम मौजूद था और वो पाक लोग दीन की खातिर अपना सब कुछ
कुर्बान कर गए। और हमें ये दर्स दे गए के तुम भी दीन की खातिर अपना
सब कुछ क्र्बान कर देने का अपने आप में जज़्बा पैदा करो।
हिकायत नम्बर७0) अजरक पहलवान
मैदाने कर्बला में जब हजरत हुसैन रजी अल्लाहो तआला अन्ह के
अहबाब शहीद हो चुके और आपके भतीजे और भांजे भी जामे शहादत
नोश फ्रमा चुके। तो फिर हजरत इमाम हुसैन रजी अल्लाहो तआला
अन्ह के साहबजादे हजरत कासिम रजी अल्लाहो तआला अन्ह मैदान
में तशरीफ लाए। आपको देखकर यजीदी लश्कर में खलबली मच गई।
बजीदी लश्कर में एक शख्स अज़्रक् पहलवान भी था। उसे मिस्र व
शाम वाले एक हजार जवान की ताकृत का मालिक समझते थे। ये शख्स
यजीद से दो हजार रुपये सालाना पाता था। और कर्बला में अपने चार
ताकतवर बेटों समेत मौजूद था। जब हजरत इमाम कासिम मैदान में आए
तो मुकाबला में आने के लिए कोई तैयार ना हुआ। इब्मे साद ने अजरक्
से कहा के कासिम के मुकाबले में तुम जाओ अज्रक् ने उसमें अपनी
तोहीन समझी और मजबूरन अपने बड़े बेटे को ये कहकर भेज दिया के
मेरे जाने की क्या जरूरत है। मेरा बेटा अभी कासिम का सर लेकर आता
है। चुनाँचे उसका बेटा हजरत कासिम के मुकाबले में आया और हजरत
कासिम के हाथों बड़ी जिललत के साथ मारा गया। उसकी तलवार पर
हजरत कासिम ने कुब्जा कर लिया और फिर ललकारे के कोई दूसरा
है तो मेरे सामने आए अज्रक् ने अपने बेटे यूं मरते देखा तो बड़ा रोया
और गृस्सा में आकर अपना दूसरा लड़का मुकाबले में भेज दिया। हजरत
कासिम ने उस दूसरे को भी मार डाला। अजुरक् ने दीवाना वार फिर
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सच्ची हिकायात 39 . हिस्सा
अपना तीसरा लड़का भेजा। अल्लाह के शेर ने उसे भी जहन्नुभ रसीद
दिया। अजरक् ने फिर चौथा लड़का भेजा तो कासिम के हाथों वो भी
ना बच सका। अब तो अज्रक् की आँखों में अंधेरा छा गया। और ग्स्से
में दीवाना होकर खुद मैदान में आ गया। हजरत कासिम के मुकाबले में
अज्रक् को देखकर हजूरत इमाम हुसैन रजी अल्लाहो तआला अर ने
हाथ उठाए और दुआ की के मेरे मौला! मेरे कासिम की लाज तेरे हाथ
में है। लोग दोनों की लड़ाई देखने लगे। अज्रक ने पे दरपे बारह नेजे
मारे। हजरत कासिम ने सब रोके। फिर उसने झल्ला कर कासिम के घोड़े
की पुश्त पर नेजा मारा घोड़ा मर गया कासिम पैदल रह गए। हज
इमाम हुसैन रजी अल्लाहो तआला अन्ह ने फौरन दूसरा घोड़ा भेज दिया।
कासिम ने उस सवार होकर मुतावातिर तीन नेजे मारे, अजृरक ने रोक
लिए। और तलवार निकाल ली। हजरत कासिम रजी अल्लाहो तआला
अन्ह ने भी तलवार निकाल ली। अजू्रक् ने तलवार को देखकर कहा। ये
तलवार तो मैंने हजार दीनार से खुरीदी थी और हजार दीनार में जेरे आब
कराई थी। तुम्हारे पास कहाँ से आ गईं? कासिम ने फरमाया ये तुम्हारे
बड़े लड़के की निशानी है वो तुम्हें इसका मजा चखाने के लिए मुझे दे
गया है। और फिर साथ ही ये भी फ्रमाया के तुम एक मशहूर सिपाही
होकर इस क॒द्र बेएहतियाती से काम लेते हो के मेदान में लड़ने के लिए
आ गए। और घोड़े का तंग ढीला रखते हो। उसे कसा भी नहीं वो देखो
जीन पुश्त मुरक्कब से फिसला हुआ है और अज्रक ये देखने को झुका
ही था के हजरत कासिम ने खुदा का नाम लेकर एक ऐसी तलवार मारी
के अज्रक् के वहीं दो टुकड़े हो गए। ( तज॒करह: सफा 80 )
सबक्:- अहले बैत अजाम के मुकुहस अफ्राद फने हर्ब से भी खूब
वबाकिफ थे। पंस आज हमें भी फिनूने हर्ब से आशना होना चाहिए, ताके अगर
कोई ऐसा वक्त आ जाए तो हजरत इमाम कासिम रजी अल्लाहो तआला
अन्ह के सदके में हम भी बातिल के दांत खडे कर सकें।
हिकायत नम्बर७०) अलमबरदार की शहादत
मैदाने कर्बला में हजरत इमाम हुसैन रजी अल्लाहो तआला अर
दोस्त अहबाब भेजते और भांजे शहीद हो गए तो हजरत अब्बास अलमबरदी
रज़ी अल्लाहो तआला अन्ह खिदमत इमाम हाजिर हुए। और कहा के कह
मुझे मैदान में जाने की इजाजत दीजिए। अब तो हद हो गई। इन ज जालिमों
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सच्ची हिकायात हिस्सा दोम
हमारे जुमला अजीज शहीद कर दिए और बाकी जो हैं, सब प्यास के मारे
निढाल हो रहे हैं मुझ से छोटे बच्चों की प्यास देखी नहीं जाती। मैं पानी लेने
फिरात पर जा रहा हूँ।
हजरत इमाम हुसैन रजी अल्लाहो अन्ह ने अपने भाई को चन्द बातें
तालीम फ्रमा कर रूख़्सत फरमाया और आप मुश्क लेकर फिरात की
जानिब से रवाना हुए फिरात पर चार हजार का मुहासरा था हजुरत अब्बास
ने जो फिरात पर कदम रखा। तो सब ने आपको घेर लिया, आपने उन से
मुखातिब होकर फ्रमाया तुम लोग मुसलमान हो काफिर? वो बोले हम
मुसलमान हैं आपने फ्रमाया मुसलमानों में ये कब रवा है के चरिंद व परिंद
तो पानी पियें और फ्रजुंदाने मुसतफा प्यासे तड़पें तुम लोग कृयामत की
प्यास से नहीं डरते? जालिमो! जिगर गोशा रसूल हुसैन प्यासा है उसके बच्चे
प्यासे हैं। कुछ खयाल करो। बच्चों के लिए तो पानी ले लेने दो। ये सुनकर भी
उन संग दिलों पर कुछ असर ना हुआ और सबने आप पर हमला कर दिया।
हजरत ने भी उन पर हमला करके उसी को कृत्ल कर डाला और बाकी को
मुनतशिर करके फिरात तक पहुँचे और यानी में उतर कर मश्क भर ली।
और खुद चुल्लू में पानी भर कर पीना ‘चाहा के बहन भाई और बच्चों की
प्यास याद आ गई, फौरन चुल्लू का पानी फैक दिया और मुश्क कांधे पर
रख कर रवाना हुए। राह में अशकिया ने घेर लिया। आप हर एक से लड़ते
भिड़ते मुश्क पर सीना-ए-सप्र हो के जा रहे थे। कोनाफिल नामी एक जालिम
ने पीछे से आकर हाथ पर तलवार और मुश्क पर तीर मारा। हाथ कट गया
और मुश्क का पानी बह गया। उस वक्त आप अपनी मेहनत और बच्चों की
प्यास पर अफसोस करके रोने लगे। चूंके जुख्म कारी लग चुका था। घोड़े
से गिरकर भाई को आवाज दी। इमाम रजी अल्लाहो तआला अन्ह ने उनकी
आवाज सुनकर एक ऐसी आह की, जिससे जमीन कर्बला लरज गई। और
फिर आगे जो बढ़े। तो हजरत अब्बास को खाक व खून में तड़पता देखकर
फरमाया। अलाना इनकसारा जहारी अब मेरी पीठ टूटी। हजरत अब्बास
रजी अल्लाहो तआला अन्ह ने भाई को देखा और दारे बका को तशरीफ
ले गए। इन्ना लिल्लाही व इन्ना इलेही राजिजन हजरत इमाम उनकी नअश
मुबारक को खैमे की तरफ लाए और फ्रमाने लगे
बाद अब्बास के अब कौन है ग़मख़्वार अपना
‘ ना तो मोनिस है कोर्ट ओर ना मददगार अपना
यूऐ जंग गए सब छोड़ के तनहा मुझ को .
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सच्ची हिकायात 388 हिस्सा दोम
लुट गया आन की इस दश्त में गुलज़ार अपना
तशना लब राहे खुदा में है मिरा सर हाजिर
काम पूरा करें अब जल्द सितमयगर अपना
(तनकीह-उल-शहादतेन सफा ।2)
सबक्:ः- यजीदी बड़े ही जालिम और ना आक्बत अंदेश थे उन्हें
कयामत के होलनाक दिन का कुछ भी खयाल ना रहा। हालाँके मुसलमान को
कृयामत का होलनाक दिन कभी ना भूलना चाहिए। हजरत इमाम हसन और
उनके मुतअल्लिकैन रजी अल्लाहो तआला अन्हुम की शहादत का एक दर्स ये
भी है के इस चन्द रोजा जिन्दगी में हमें कुयामत को भुला नहीं देना चाहिए।
हिकायत नम्बर७59) अली अक्बर( र०अ० )
मैदान कर्बला में जब हजरत इमाम हुसैन रजी अल्लाहो तआला अन्ह के
जुमला अहबाब व अंक्रबा जामे शहादत नोश फ्रमा चुके तो आपके साथ
बजुज आपके तीन साहबजादों के और कोई बाकी ना रहा। ये तीन साहबजादे
हजुरत इमाम जैन-डउल-आबेदीन, हजरत अली अकबर और हजूरत अली
असग्र रजी अल्लाहो तआला अन््हुम थे। हजरत इमाम जैन-उल-आबेदीन तो
बीमार थे। और अली असगर भी शीर ख़्वार ही थे और हजरत अली अकबर
की उम्र शरीफ अड़ारह बरस की थी, हजरत इमाम हुसैन रजी अलाहो तआला
अन्ह ने जब देखा के अब बजुज मेरे तीन बच्चों के और कोई बाकी नहीं रहा
तो आपने खुद ब नफ्से नफीस मैदान कारे जार में जाने का इरादा फ्रमाया
और जलजनह सवारी के लिए मंगवाया हथियार बदन पर आरास्ता फरमाया
और रूख़्सत के वास्ते खैमे के अन्दर तशरीफ लाए और फरमाने लगे….
ऐनक आमद नोबत मन अलविदा
अलविदा ऐ अतरते मन अलविदा
जोद हुलहाऐे.. शा ख्याहिद शदन
सोज़नाक अज़॒ फरकते मन अलविदा
हजरत अली अकबर रजी अल्लाहो तआला अन्ह मंजर देखकर इमाम के
कदमों पर गिरे और अर्ज करने लगे, अब्बा जान! खुदा वो दिन ना दिखाए,
जब के आप मेरे सामने शर्बते शहादत नोश फ्रमायें, आप मेरे होते हुए मैदान
में क्यों तशरीफ् ले जाते हैं, मुझे इजाजत फ्रमाईये मैं जाता हूँ हजरत इमाम
ने फ्रमाया ऐ अली अबबर! किस दिल से तुझे मरने की इजाजत दूं, और
किन आँखों से तुम को जुख़्मों से चूर चूर देखूं। हजरत अली अवबर ने इमाम
9९९6 99 (थ्वा58८शाशश’
सच्ची हिकायात ‘ 389 हिस्सा दोम
को कसमें देना और रोना शुरू किया, आखिर इमाम ने इजाजत दे दी और
अपने हाथ से उनके कदन पर हथियार लगाए। जिरह जोशन पहनाए। अमामा
सर पर रखा टीका कमर पर बाँधा और घोड़े पर बिठा कर फ्रमाया….
शा मैंने दी रह की. इजाजत तुम्हें जाओ बेटा
. हो फिदा मुझ ये गला अपना कटाओ बेटा
अहले बैत रकाब से आकर लिपट गए। इमाम ने सबको हटा कर
फरमाया जाने दो के सफर आखिरत कर रहा है। ( तनक्रोह-उल-शहादतैन
सफा ॥9 ) ।
सबक:- हजरत इमाम हुसैन रजी अल्लाहो तआला अन्ह बड़ें ही
साबिर व शाकिर और इसतकुलाल के मालिक थे के अड़्ारह साल के अपने
लख्ते जिगर को अल्लाह की राह में कर्बान होने के लिए खुद अपने हाथों
तैयार फरमाते हैं ओर शिकवा शिकायत और नाशकीबाई का लफ्ज तक
जुबान पाक पर नहीं लाते। द |
हिकायत नम्बर3७) अली अकबर की शहादत
रजी अल्लाहो तआला अन्ह
हजरत इमाम हुसैन रजी अल्लाहो तआला अन्ह के साहबजादे हजरत
अली अकबर रजी अल्लाहो तआला अन्ह जब मैदाने कारजार में तशरीफ
लाए, तो लश्कर अदा में एक सन्नाटा छा गया। हजरत अली अबबर रजी
अल्लाहो तआला अन्ह अ्लारह साल की उग्र शरीफ रखते थे और शक्ल व
‘ शमायल में हुजर सल-लल्लाहों तआला अलेह व सल्लम से बहुत मुशाबेह
थे, आपका हुस्नो जमाल व जलाल देखकर दुश्मन मुतहय्यर हो गए। हजरत
अली अकबर रजी अल्लाहो तआला अर मैदान में पहुँचते ही रिज्ज ख़बाँ और
मुबारिज तलब हुए, और जब कोई सामने ना आया तो आपने खुद ही लश्कर
आदा में घुस कर हमला कर दिया और अशकिया को दरहम बरहम कर दिया
और ता देर लड़ते रहे और फिर प्यास के बाइस हजरत इमाम की खिदपत में
हाजिर हुए और प्यास का जिक्र किया। हज॒रत इमाम रजी अल्लाहो तआला
अर ने उनके चेहरे का गर्दों गूबार साफ करके रसूल अल्लाह सल-लल्लाहो
तआला अनेह व सल्लम की अंगश्तरी उनके मुंह में डाल दी जिसके चूसने से
उन्हें तसकीन हुई और फिर मैदान में आए। और अक्सर को वअसल जहतन्नुम
करने के बाद आप फिर एक मर्तबा हजरत इमाम रजी अल्लाहो तआला अन्ह
5९धााा€रत ७ (_ध्ा9८क्वार
सच्ची हिकायात 390 द दोम
के हुजर आए और प्यास का जिक्र किया। तो हजरत इमाम रजी अल्लाहो
तआंला अन्ह ने उस वक्त रो कर फ्रमाया के जान पद्र! गृम ना खा अनक्रीब
तुम होजे कोसर पर सैराब होगे, अली अकबर रजी अल्लाहो त्आला अर
ये बशारत सुनकर फिर मैदान की तरफ् तशरीफ् लाए और लश्कर आदा में
घुस कर बहुत सों को वअसल नार किया। दुश्मनों ने चारों तरफ से आपको
घेर लिया और एक जालिम इब्ने नमीर ने आपको एक ऐसा नेजा मारा के
आपकी पुएत मुबारक से पार हो गया। और आप घोड़े से गिर गए। उस वक्त
आपने हजरत इमाम रजी अल्लाहो तआला अन्ह को पुकारा और फरमाया
या आबताह आरारिक्नी अब्बा जान अपने अली अकबर की खबर लीजिए
हजरत इमाम ने अपने लख्ते जिगर की ये आवाज सुनी तो आप दौड़े और
मैदान में जाकर देखा के अली अकबर जुझुमों से चूर जमीन पर गिरे हुए हैं
हजूरत इमाम ने वहाँ बैठ कर बेटे का सर अपने जानों पर रखा और फिर…
होश आया चनद साअत कामिल के बाद जब
देखा के मिट रही है शबीह रसूले रब
आय बहा के रख दिए बेटे के लब पे लब
फरमाया बेटा छोड़ के जाते हो मुझे को अब
दिल से गले लिपटने की हसरत निकाल लो
‘बाहें उठा के बाप की गर्दन में डाल लो
अकबर ने आँखें खोल के देखा रूख पद्र!
गालों पे अश्क आँखों से टपके इधर उधर
फरमाया शेह ने जानों पे रख कर सर यत्र
सेते हो किस लिए थला ऐ गैरत कमर
याँ से उठा के आले पैयम्बर मैं ले चलू
रा . गम माँ का है तो आओ (वुम्हें घर में ले चलू
हजरत अली अकबर रजी अल्लाहो तआला अन्ह ने आँखें खोल कर
कहा अब्बा जान! वो देखिये! दादा जान दो पियाले शर्बत के लिए खड़े हैं
और मुझे एक दे रहे हैं मैं कहता हूँ के मुझे दोनों दीजिए के बहुत प्यासा
हूँ, वो फ्रमाते हैं के एक तू पी दूसरा तेरे बाप हुसैन रजी अल्लाहों तआला
अन्ह के लिए है के वो भी प्यासा है, ये पियाला वो आकर पियेगा। ये कहा
और आप वहीं राही जन्नत हो गए। इन्ना लिल्लाही व इन्ना इलेही राजिऊर्न
( तनकीह-उल-शहादतैन, सफा 99)
सजक:- हजरत इमाम हुसैन रजी अल्लाहो तआला अच्ड ने मैदान
9९९6 99 (थ्वा5८शाशश’
सच्ची हिकायात 394 हिस्सा दोम
कर्बला में बहुत बड़ा इम्तिहान दिया और आपने इस इम्तिहान में बहुत बड़ी
कामयाबी हासिल की। । ह
हिकायत नम्बर5७) यतीम
हजरत इमाम हुसैन रजी अल्लाहो तआला अन्ह के साहबजादे हजूरत
अली अकबर रजी अल्लाहो तआला अन्ह ने जब जामे शहादत नोश फ्रमा
लिया तो हजरत इमाम हुसैन रजी अल्लाहो तआला अन्ह तनहा रह गए। सिफ
हजरत इमाम जैन-उल-आबेदीन बाकी रह गए या हजरत अली असगूर, मगर
इमाम जैन-उल-आबेदीन बीमार थे और अली असगर शीर ख़्वार, इसलिए
हजरत इमाम ने अब खुद मैदान में जाने की तैयारी फुरमाई और आप खैमा
के अन्दर तशरीफ लाए और अहले बैत में तशरीफ् फ्रमा होकर फ्रमाया के
मुसीबत और बला पर सब्र व शुक्र करना तुम्हारे वास्ते बेहतर है। ख़बरदार
मेरे बाद तुम चाहे कैसी ही मुसीबत व बला में मुबतला हो, मगर मेरे गृम में
सर के बाल परेशान ना करना, मुंह पर तमाँचे ना मारना। और सीना जुनी
ना करना और वावेला वजारी ना करना। ये बातें जायज नहीं हैं, हाँ कसरते
गम से आँखों से आँसूं बहाना मजुलूमों और दर्देमंदों का काम है। रोना मना
नहीं फिर आप ने हजरत सकीना को गोद में लिया और गले से लगाया और
अपनी बहन हजरत जैनब से फ्रमाया बहन! ये मेरी सकीना मुझे बड़ी प्यारी
और मुझ से मानूस है, मेरे बाद इसकी गुमख़्वारी व पासदारी करना, फिर
हजरत सकीना से फ्रमाया बेटी मेरी प्यारी बेटी! आज शाम तुम यतीम हो
जाओगी। हजरत सकीना ने लफ्ज यतीम सुना तो…..
$…्छ नन्हे से हाथ जोड़ के कहने लगी ये तशना काम
फरमारईये के आज ये आएगी कैसी शाम्र
बतलाईये मुझे को यतीमी है किस का नाम
आँखों से खूं बहा के ये कहने लगे इमाम
बेटी! ना यूछ कुछ ये मुसीबत अज़ीस है
मर॒ जाए जिसका बाय वो बच्चा अज़ीम है
( तनकीह-उल-शहादतैन, सफा 200 )
सबक्:ः- हजरत इमाम हुसैन रजी अल्लाहो तआला अन्ह का आखरी
वाज मुबारक ये था के मुसीबत और बला के वक्त सत्र व शुक्र करना,
शरीअत का हुक्म है और सब्र व शुक्र का दामन हाथ से छोड़ना देना अच्छी
बात नहीं। इसलिए आज भी हर मुसलमान को हजरत इमाम रजी अल्लाहो
9९९06 099 (थ्वा]58८शाशश’
सच्ची हिकायात “ 392 हिस्सा दो
तआला अन्ह का ये आखरी बाज मुबारक हर वक्त पेशे नजर रखना चाहिए
और हजूरत इमाम रजी अल्लाहो तआला अन्ह के इशांद के खिलाफ
हरकत ना कना चाहिए और ये भी मालूम हुआ के हजूरत इमाम रजी अल्लाहे
तआला अन्ह ने अल्लाह की मोहब्बत पर अपने छोटे छोटे बच्चों की मोहब्बत
भी कूर्बान कर डाली।..
हिकायत नम्बर(७ नन््हा शहीद
. हजरत इमाम हुसैन रजी अल्लाहो तआला अन्ह के साहबजादे हज
अली अकबर रजी अल्लाहो तआला अन्ह भी जब शहीद हो गए तो हज
इमाम ने अहले बैत्त को तसल्ली व तशफ्फी देकर खुद मैदान में आने का
इरादा किया। एक बार खैमा से रोने की आवाज सुनी। आप खैमे की तरफ
फिरे और हाल दरयाफ्त फ्रमाया तो मालूम हुआ के तुफ्ल शीरख्वार हजरत
अली असगर प्यास से बेचैन हैं। छः महीने की उम्र शरीफ में ये मुसीबत के तीन
दिन से भूके और प्यासे हैं। जुबान मुंह के बाहर निकल पड़ी है। मछली की
तरह तड़प रहे हैं। हजरत इमाम ने फरमाया, अली असगर को मेरे पास लाओ
हजरत जैनब लेकर आईं आपने अली असगर को गोद में लिया और मैदान में
जालिमों के सामने लाकर फ्रमाया ऐ कौम! तुम्हारे नजदीक अगर मुज्िम हूँ
तो मैं हूँ मगर ये मेरा नन्हा बच्चा तो बेगुनाह है खुदारा तरस खाओ और इम्
मेरे नन्हे मुसाफिर सय्यद बेकस मजूलूम को तो चुल्लू भर पानी पिला दो..
बच्चा है शीर ख़्वार तड़पता है प्यास से
इस पर तो रहम खाओ के तकता है यास से
ऐ कौम! आज जो मेरे इस नन्हे मुसाफिर को पानी पिलाएगा, मेरा वाद!
है के मैं उसे होजे कोसर पर सैराब करूंगा। |
हजूरत इमाम की ये दर्दनाक तक्रीर सुनकर भी उन जालिमों का दिल
ना पसीजा और एक जालिम हुरमल इब्मे काहिल ने एक ऐसा तीर मारा जो
हजरत इमाम को बगूल से निकल गया। आह! एक फव्वारह खून का इस
नन्हे शहीद के हलक से चलने लगा और नन्हे शहीद की आँखें अपने वालिंद
के चेहरे की तरफ् तकती की तकती रह गईं। और इमाम ने है
अपनी जूबान अनवर नन्हे के मुंह में डाल दी और नन्हे सय्यद ने वहीं
अब्बा की गोद में शहादत पा ली और आप उसकी नन््ही सी नअश मुबारक
लेकर खैमा में आए और माँ की गोद में देकर फरमाया: लो अली असगर
होजे कोसर से सैराब हो गए इसी नन्ही नअश को देख अहले बैत बे करा
9९९06 99 (थ्वा]5८शाशश’
सच्ची हिकायात 393 हिस्सा दोम
हो गए और हजूरत इमाम की मुबारक आँखों से भी आँसूं जारी हो गए। इन्ना
लिल्लाही व इन्ना इलेही राजिऊन ( तजुकरहः& )
सबक्:- यजीदी जुल्म की इन्तिहा तक पहुँच चुके थे और रहम व
शफ्क्त से उनके दिल बिलकुल खाली थे फिर ऐसे लोग खुदा की रहमत के
उम्मीदवार केसे हो सकते हैं।
हिकायत नम्बर59) हजरत शहर बानो का ख़्वाब
मैदाने कर्बला में शबे आशूर हजरत शहर बानो ने एक ख़्वाब देखा के
एक नूरानी सूरत मुकेदस खातून हैं जो बड़ी परेशान नजर आ रही हैं और
कर्बला की जूमीन साफ कर रही हैं, हजुरत शहर बानो ने इस मुकुद्सस खातून
से दरयाफ्त फरमाया के आप कौन हैं? और इस जुमीन को क्यों साफ कर
रही हैं? तो उसने जवाब में फ्रमाया के….
बेटी सुन मैं फातिमा हूँ बिन्ते शाह मुशरकीन
सुबह इस मक़्तल में लेटेया मेरा य्यारा हुसेन
इसलिए मैं झाड़ती हूँ कर्बला की ये जमीन
उसके जख्यों में ना चुभ जाए कोर्ड कंकर कहीं
( तनकीह-उल-शहादतैन सफा ॥॥0 )
सबक्:ः- हजरत असगर की शहादत का 3शञपकी वालिदा हजरत
खातूने जन्नत रंजी अल्लाहो तआला अन्हा को इल्म था और कब्र अनवर में
तशरीफ फरमा होकर भी अपने बेटे के इस इम्तिहान को मुलाहेजा फ्रमा
रही थीं और चूंके माँ थीं इसलिए अपने लख़्ते जिग्रन के मसायब से मुतास्सिर
थीं फिर जिन जालिमों ने हजरत इमाम को इस कद्र सताया उन्होंने हजरत
फातिमा की किस क॒द्र नाराजगी मोल ले ली।
हिकायत नम्बर5७) अलविदा
मैदाने कर्बला में दसवीं मोहरम को जब हजरत इमाम के जुमला
अहबाब व अकारिब शहीद हो गए तो हजरत इमाम हुसैन रजी अल्लाहो
तआला अन्ह ने खुद पोशाक बदली कबाए मिस्री पहनी , अमामा-ए-रसूले
खुदा बाँधा सप्रे हम्जा और जूलफिकार हैदर करार लेकर जलजनह पर
सवार होकर इरादा मैदान का किया। इतने में हजरत के साहबजादे हजरत
अली ओला यानी इमाम जैन-उल-आबेदीन रजी अल्लाहो तआला अन्ह
उस बक्त बीमार थे। और नतवानी से उठ ना सकते थे बड़ी मुश्किल से
9९९06 99 (थ्वा]5८शाा]श’
सच्ची हिकायात 394 हिस्सा दोप़
असा थामे हुए जौफ के बाइस लड़खड़ाते हजरत इमाम के पास आके
अर्ज॑ करने लगे के अब्बा जान! मेरे होते हुए आप क्यों तशरीफ ले जा
रहे हैं, मुझे भी हुक्म दीजिए के मैं भी लड़ कर दर्जा शहादत हासिल
कर लूं और अपने भाईयों से जा मिलूं हजरत इमाम ये गुफ्तगू सुनकर
आबदीदा हो गए और इर्शाद फ्रमाया, ऐ राहत जान हसैन तुम खैमा
अहले बैत में जाकर बैठो! और कुसद शहादत ना करो बेटा। रसूल
मक्बूल सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम की नस्ल तुम्हारे जीने
ही से बाकी रहेगी और कुयामत तक मुनकृतओ ना होगी। हजूरत इमाम
का ये इशांद सुनकर साहबजादे खामोश हो रहे फिर हजरत इमाम ने
उनको नसीहत व वसीयत करके तमाम इलूम जाहिरी व बातिनी और
राज इमामत से आगाह फरमाया जो तरीका तालीम सीना ब सीना रसूल
मक्बूल रजी अल्लाहो तआला अन्ह से जारी हुआ था, सब उसी वक्त
उन पर मुनकशिफ फ्रमा दिया और फिर आप खैमा के अन्दर तशरीफ
लाए और अहले बैत की तरफ मुखातिब होकर हर एक से अलविदाईं
कलाम फ्रमाया जिसका नक्शा शायर ने यूं खींचा है के…
अलविदा ऐ अहले बेत मुसतफा
अलविदा आले पैयम्बन अलविदा
फिर गले लिपटा के आबिद से कहा
ऐ गिरे बीमार दिलबर अलविदा
जैनब व कुलसुम से ये फिर कहा .
अब हैं तुम से भी बिरादार अलविदा
.._ बोले फिर बाली सकीना से हुसेन
ऐ मेरी मजलूम दुख्तर अलविदा
शहर बानो से यही कहते थे शाह
ऐ मेरी ग्मख्वार मुज़तर अलविदा
बस खुदा हाफिज तुम्हारा दोस्तो
क् साबिर व मजलूम मृज़तर अलविदा
( तनकौह-उल-शहादतैन, सफा 78 )
सबक्:- हजरत इमाम जैन-ठउल-आबेदीन बीमारी के आलम में
भी जज़्बा-ए-शहादत की तड़प का इजहार फरमाते हैं फिर जो उनका
नाम लेवा होकर तनदुरूस्तो के आलम में भी नमाज तक के राह ना जाए
तो वो किस कुद्र गाफिल है? और ये भी मालम हआ के हजरत डमाम
9९९06 99 (थ्वा]58८शाशशः
सच्ची हिकायात हिस्सा दोम
जैन-उल-आबेदीन की बीमारी में ये हिकमत मुजूम्रिर थी के आपके –
बजूद से नस्ल मुसतफा की बका थी।
हिकायत नम्बर७७) शेर का हमला
हजूरत इमाम हुसैन रजी अल्लाहो तआला अन्ह के जब अहबाब व
अकारिब सब शहीद हो गए तो हजरत इमाम खुद बनफ्से नफीस मैदान में
तशरीफ लाए और पहले कुछ रिजजिया अएआर पढ़े, फिर लएकर इब्मे साद
से इतमाम हुज्जत के लिए बहुत कुछ फ्रमाया मगर वो जालिम ना माने और
बहर हाल लड़ने पर आमादा हुए और सब अपनी तलवारें और नेजे चमका
कर बढ़े। हजरत इमाम ने भी जुलफिकार मियान से निकाली और दुश्मनों
पर हमला कर दिया। अल्लाह अल्लाह! ये हमला क्या था शेर यजदाँ का
हमला था जो आपके मुकाबले में आया। पेक कूजा ने सीधा उसको जहन्नुम
में पहुँचा दिया। सेंकड़ों जफाकारों से लड़े और सेंकड़ों को फीन्नार कर दिया
जिस तरफ निगाह पलटी सफ की सफ उलट दी…..
चली शगझाहे दीं की ग्र्ज् जलफिकार
ना पैदल रहा सामने ना सवार
यहाँ तक किया जालिमों को हलाक
छुपाया लई्ईनों ने मुह जेरे खाक
दिए रन को पलटे कर्ई्॑दमबदम
श॒जाअत ने भी आके चूमें कृदम
दिलेर ऐसा है और ना होगा कोर
सुना आज तक और ना देखा कोई
हज़ारों ही कुश्तों को पुश्ते बे
तो जिन्दों को जानों के लाले पड़े |
सुनो इस दिलावर की ये ज्ञान हैं!
को रूस्तम की भी रूह कुबान है
( तनकीह सफा 80 ) |
सबक्:- हजरत इमाम आली मुकाम बड़े जरी व बहादुर शुजा, दिलैर
और शेर के बेटे शेर थे रजी अल्लाहो अन्ह
हिकायत नम्बर७७) आखरी दीदार
हजरत इमाम हुसैन रजी अल्लाहो तआला अन्ह जब खुद बनफ्स
9९९06 99 (थ्वा5८शाशश’
सच्ची हिकायात ३3% हिस्सा दोम
नफीस मैदान में तशरीफ लाए तो जुर्रात व शुजाअत के वो जोहर दिखाए
के मलायका भी अश अश कर उठे, इतने में एक शख्स इब्ने कत्बा शाप्री
सामने आया और कहने लगा के ऐ हुसैन! तमाम अहबाब व अकारिब को
हलाक करा चुके मगर अभी भी लड़ाई की हवस बाकी है तुम अकेले हजारों
का मुकाबला कैस कर सकोगे? हजरत इमाम ने फ्रमाया तुम लोग मुझ से
लड़ने आए हो या मैं तुम से? तुम ने मेरा रास्ता बंद किया और तुप ने प्रेरे
अहबाब व अकारिब को कत्ल किया। अब मुझे सिवाए लड़ाई के क्या चारा
है ज़्यादा बातें ना कर और सामने आ। ये फ्रमा कर आपने एक ऐसा नाश
फलक शिगाफ मारा के तमाम लश्कर थंर्रा गया और वो जालिम बद हवा
हो गया और हाथ पैर ना हिला सका। इमाम ने तलवार मार कर सर उड़ा
दिया फिर फौज पर हमला किया और सब भागने लगे। इब्ने असतह नाग्री
एक यजीदी पुकारा। ऐ मर्दों! अब एक तन बाकी रह गया है। उससे भाग रहे
हो? ठहरो मैं उसके मुकाबले को जाता हूँ ये कहकर इमाम के सामने आया
और तलवार मारने को उठाई हजरत इमाम ने पेश दस्ती फरमा कर कमर पर
तलवार मार कर दो टुकड़े कर दिया। फिर हजरत इमरम ने फिरात पर जाने
का इरादा फरमाया। ।
शमर ने पुकार कर कहा। ऐ लश्करियो! हुसैन को हर गिज पानी ना
पीने देना अगर उसने पानी पी लिया तो फिर किसी को जिन्दा ना छोड़ेगा
पस सबने मिलकर हजरत इमाम पर हमला कर दिया। हजूरत इमाम तलवार
खींच कर अशकिया के सर उड़ाते-हुए और सफों को दरहम बरहम फ्रमाते
हुए लबे फिरात तक जा पहुँचे घोड़ा पानी में डाला, चुल्लू में पानी लेकर
पीना चाहा के मककारों ने पुकार कर कहा: ऐ हुसैन! तुम यहाँ पानी पी रहे हो
और वहाँ खैमा लुट रहा है। इमाम फौरन पानी फैंक कर खैमे की तरफ चले
राह में बहतों को फीन्नार किया खैमे के पास आकर देखा तो किसी को ना
पाया और मक्कारों का हीला तसव्व॒ुर फ्रमाया फिर खैमे के अन्दर तशरीए
लाए और अहले बैत से फ्रमाया चादरें ओढ़ो जजुओ व फजुओ ना करो
मुसीबत पर कमर बसता रहो। मिरे यतीमों को आराम से रखना फिर ट्माम
जैन-उल-आबेदीन को सीनेह से लगा कर पैशानी को चूमा और फ्रमाब
बेटा! जब मदीना पहुँचो तो मेरे दोस्तों को मेरा सलाम कहना और मेरी जाति
से मेरा ये पैगाम देना के जब तुम में कोई रंज व बला में मुबतला हो तो परी
रंज व बला में मुबतला होना याद कर ले और जब कोई पानी पिये ते
प्यास याद करे। हजरत इमाम अपना ये आखरी दीदार देकर फिर मैदा”
9९९06 99 (थ्वा]5८शाशश’
सच्ची हिकायात क् 397 क् हिस्सा दोम
तशरीफ ले आए। ( तज॒करह , सफा 90) द
सबक :- हजरत इमाम की जुर्रात व हिम्मत और आपका अज़्म व
इसतकलाले कयामत तक के मुसलमानों के लिए मशअले राह है। अजीज
व अकारिब की जुदाई भूक प्यास और जालिमों के मुतावातिर जुल्मो सितम
के बावजूद आपके जज़्बा-ए-सादिका में सरमू भी फर्क नहीं आया। और हर
हाल में आपने अल्लाह का शुक्र ही अदा किया। और शरीअत के खिलाफ
हर हरकत से हर दम तक मना फ्रमाया। रजी अल्लाहो तआला अन्ह
हिकायत नम्बर(॥) कयामत
हजरत इमाम हुसैन रजी अल्लाहो अन्ह जब खैमे में अपना आखरी दीदार
देकर मैदान में फिर तशरीफ लाए तो यजीदियों ने यकबारगी आप पर हमला
कर दिया। आप ने भी डट कर उनका मुकाबला फ्रमाया। मगर जालिमों ने
इस कद्र मुतावातिर हमले किए के हजरत का तन अनवर जुझन्ओं से चूर हो
गया और आपके घोड़े में भी चलने की ताकृत ना रही पस हजरत इमाम एक
जगह खड़े हो गए। एक शख्स जुदअद नामी ने बढ़कर आपको तलवार मारी।
आपने उसका हाथ पकड़ कर ऐसा झटका दिया के उसका हाथ कांधथे से
जुदा हो गया। हजरत इमाम उस वक्त सबको यास भरी निगाहों से देख रहे
थे। गोया ये खयाल फ्रमा रहे थे के इतनों में कोई गमगुसार नहीं है। सब ही
खून के प्यासे हैं। आखिरकार उन जालिमों ने दूर ही से तीर मारने शुरू किए
के एक जालिम का तीर आपकी पैशानी नूरानी पर आकर लगा। खून का
फव्वारा जारी हुआ आपने वो खून चुल्लू में लेकर मुंह पर मला और फरमाया
कल कयामत के दिन इस हस्यत से अपने नाना जान के पास जाऊँगा और
अपने मारने वालों की शिकायत करूंगा।
उस वक्त हजरत इमाम के तन अनवर पर बहत्तर72) जख्म नेजे और
तलवार के आ चुके थे जिनके बाइस आप बहुत निढाल हो गए थे और
किबला रू होकर अपने मौला की याद कर रहे थे और अर्ज कर रहे थे के….
या रब ग्रनी बन्दा है इक बन्दा-ए-मोहताज
तेरी ही इनायत से हुआ खलल्कू का सरताज
सरेनज्ञ को दरबार में लाया है गलाम आज
है हाथ विरे मौला मरे आज पिरी लाज
हंगाय तरहुद॒ है. मदद कीजियो गौला/
ये व्रोहफा-ए-दुरवैश ना रद कीजियो मौलाः
9०९06 99 (थ्वा5८शाशश’
सच्ची हिकायात 398
कहता नहीं कुछ और ये कअबे का रा मुसाफिर!
इक जाँ है सौ करबान है. इक सर हैं सौ हाजिर
अब तक मैं तिरी राह में हूँ साबिर व श्ाकिर
बेकस ये करम कीजियो मौला दम आखिर!
सीने पर मिरे ज़ानवऐ कातिल ना ग्रोँ हो
खुंजर को तले नाम तिरा विर्द जबाँ हो
वाकिफ नहीं इस मरहले सोअब से शब्मीर
तकदीर पे -राज़ी हों मैं ऐ मालिक तकदीर
प्यासा हूँ कर्ई रोज़ से में बेकस व दिलगीर
इन खुश्क रगों में कहीं रूक जाए ना श़मशीर
मुज़तर मिरा होगा खलल अंदाज़े अदब हो!
तड़पूं बशरियत से जो दम तो ग्रज़ब हो
आई ये निदा काम में फिर शाहे हुदा के
रहमत तुझे ऐ बन्दा-ए-मक़्बूल खुदा के
सह सब्र से और शुक्र से सब तीर जफा के
ले ताज शहादव प्रिरी सरकार में आ के
गमगीन ना हो हम तुझ को बहुत शाद करेंगे
जेरे दम खुजर तिरी इमदाद करेंगे!
इतने में एक जालिम का तीर आपके हलक् में आकर लंगा और ज॒रआ
इब्ने शरीक ने आपके दस्ते मुबारक पर और शमर ने आपके फर्क अनक
पर तलवार तारी और सनान बिन अनस ने पुश्त मुबारक पर नेजा मारा…
तकदीर व कज़ा से नहीं जब कोई भी चारा
नेजा किसी जालिम ने पसे पुश्त से मरा
तब सह नबी बोली उठा चैन हमारा!
इस तीगे अलम से जियर व दिल है दो पारा
हजरत इमाम इन मुतावातिर जर्बो से चकरा कर घोड़े से गिरे…
आया ये वक्त किबला-ए-हाजाते दीन पर
कअबे को ढाया संग दिलों, ने ज़मीन पर
उस वक्त दोपहर ढल चुकी थी और नमाज जोहर का वक्त था। हजरत
इमाम ने इस वक्त भी उस सूरत में नमाज को अदा किया के गिरते हुए मै
किबला की तरफ् किया। घोड़े पर कुयाम था और जब गृश से झुके
था और जब जब जूमीन पर गिरे तो सर के बल के वो सिन््दे का मुकाम
9०९06 99 (थ्वा5८शाशश’
सच्ची हिकायात 3909 हिस्सा दोम
_था। इतने में शमर आया और आप के सीने मुबारक पर बैठ गया। इमाम ने
आँखें खोल कर पूछा तू कौन है उसने बताया के मैं शमर हूँ फ्रमाया: जरा
सीना खोल कर दिखा उसने सीना खोला तो दाग सफेद नजर आया। आपने
फ्रमाया -सदके जद्दी रसूल अल्लाह सल-लल्लाहो अलेही व सललम
सच फरमाया नाना जान ने रात को ज़्वाब में के तेरे कातिल का निशान ये
है वही निशान तुझ में मौजूद है। फिर आपने फ्रमाया: ऐ शमर तू जानता हैः
आज कोनसा दिन है कहा: जुमआ का, फ्रमाया वक्त कौन सा हे? कहा
खुत्बा पढ़ने और नमाज जुमआ अदा करने का। फ्रमाया इस वक्त खतीब
मिम्बरों पर खत्बा पढ़ते होंगे मेरे नाना जान की तारीफ करते होंगे। इन पर
दुरूद पढ़ते होगे और तू उनके नवासे के साथ ये सलूक कर रहा है। जहाँ
रसूल अल्लाह सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम बोसा दिए करते थे
वहाँ तू खंजर फैरना चाहता है। देख इस वक्त मैं अपनी दहनी तरफ जक्रया
मासूम और बायें तरफ् याहिया मासूम को देख रहा हूँ। ऐ शमर! जरा मेरे
सीने से हट के वक्त नमाज है मैं किबला रूख होकर नमाज पढ़ें तू नमाज
पढ़ते में जो चाहे कर ताके नमाज में जख्मी होना मेरे बाप की मीरास है। पस
शमर आपके सीने से उतरा और इमाम किबला रूह होकर नमाज में खुदा से
राजोनियाज में मशगल हुए और शमर ने हजरत इमाम आली मुकाम का सज्दे
ही में ॥0 मोहर॑म 60हि० योम जुमआ को 5 साल पाँच माह पाँच योम की उमर
शरीफ में सर तन से जुदा कर दिया। इन्ना लिल्लाही व इन्ना इलेही राजिकन
डूबा शफक् में जब मेह ताबाँ मुसतफा
यानी हुसेने इबने अली जान मुसतफा
बाद खिज़ों थी और गुलसिताने मुस्तफा
जब गिर पड़ा जमीन पे वो जानाने मुसतफा
खुद मृत्तफा ने फर्ें ज़मीन से उठा लिया
और फातिमा ने अपने गले से लगा लिया!
आया जो वक़्त जोहर वो सज्दा अदा किया
तन पे जो देखते जख्म तो शुक्र खुदा किया
तय आप ने तमाम मुकरूम रजा किया!
दुश्मन ने जब के सर को बदन से जुदा किया
खुद मुस्तफा ने फर्शे ज़मीन से उठा लिया
और फातिमा ने अपने गले से लगा लिया
खूँ से भरा हुआ जी बदन का लिबास था
9०९06 99 (थ्वा]5८शाशश’
सच्ची हिकायात क् 400 हिस्सा दोम
हूरो पलक को देख के उसे दिल उदास था
पर शाहे कर्बला को ना मतलक् हरास था
जिस दम गिरे जर्मी ये तो कोई ना पास था
. खुद मुस्तफा ने फर्शे ज़मीन से उठा लिया
कं और फातिमा ने अपने गले से लगा लिया!
(तजकरह सफा 89 ता %, और तनकीह, सफा ॥2 ता ॥2)
सबक्:- हजरत इमाम मजलूम रजी अल्लाहो तआला अन्ह पर जिस
कद्र जालिमों ने जल्मो सितम किया। आपने उसी कद्र सब्रो शुक्र का मुजाहेरा
फ्रमाया और आपने हर हाल में अल्लाह की याद की और खुदा को किसी
वक्त भी फ्रामोश नहीं फरमाया और आखरी वक्त जब के आपका तन
अनवर जुझुओं से चूर था, और उनके बाइस आप निढाल हो चुके थे। उस
वक्त भी आपको नमाज का खयाल रहा और नमाज की ही हालत में आपने
जामे शहादत नोश फ्रमाया फिर वो लोग जो हड्ढे कड़े होकर भी कभी
नमाज नहीं पढ़ते और जिन्होंने उम्र भर मोहर॑मात शरीआ को नहीं छोडा।
और जो भंग व चरस पीने के शैदाई और खिलाफे शरओ हरकात के फिदाई
हैं। ऐसे लोग किस मुंह से हजरत इमाम आली मुकाम से किसी निसबत का
दम भर सकते हैं? पस हमें भी चाहिए के हजरत इमाम आली मुकाम के
प्यारे उसवा को सामने रखें और फिस्को फिजूर के खिलाफ सफ आरा हो
जायें और आला कलमत-उल-हक् की खातिर बातिल के मुकाबले में डट
जायें। और अल्लाह की याद किसी हातल में भी तर्क ना करें और नमाज के
इस क॒द्र आदी बन जायें के बड़ी से बड़ी तकलीफ में भी छूट ना सके और
खसूसन सय्यद हजरत को तो एक पंजाबी शायर का ये शैर अपने सामने
रखना चाहिए…
सय्यद सो जो.पढ़े नमाज रब दी सय्यद सज्दा ना करे ताँ सज्दा नहीं
भावें सय्यद दी छाती ते शमर हूदे सय्यद ताँ दी नमाज थीं पहज्दा नहीं
हिकायत नम्बर७०) उम्मुल मोमिनीन का ख़्वाब
एक बी बी फरमाती हैं के मैं उम्मुल मोमिनीन हजरत उम्मे सलमा रजी
अल्लाहो तआला अनन््हा के हाँ गईं तो देखा के उम्मुल मोमिनीन रो रही हैं!
मैंने पूछा आप क्यों रो रही हैं, तो फ्रमाया मैंने रसूल अल्लाह सल-लल्लाहो
_तआला अलेह व सललम को ख़्वाब में देखा है के आपके सर अनवर और
रेश मुबारक पर गदों गुबार है। मैंने अर्ज़ किया या रसूल अल्लाह! ये क्या
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सच्ची हिकायात 40 हिस्सा दोम
बात है? तो आपने फ्रमाया मैं अभी अभी कर्बला से आया हूँ। आज मेरे
हुसैन को कत्ल कर दिया गया है। ( तिरमीजी शरीफ, सफा 28, जिल्दः2 )
.. सबक्:- हजरत इमाम की शहादत के वक्त हुज॒र सरवरे आलम
सल-लल्लाहो तआला अलेह व सलल्लम शहादत गाह में मौजूद थे औ अपने
साहबजादे के इस अजीम इम्तिहान को आपने खुद मुलाहेजा फरमाया। मालूम
हुआ के हमारे हुजुर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम जिन्दा और
उम्मत के जुमला आमाल व अफआल और हालात से बा खबर हैं।
हिकायत नम्बर७७) फ्रैबी
बारहवीं मोहर्म को इब्ने साद अहले बैत अजाम को ऊँटों पर बिठा कर
और सर हाए शोहदा को हमराह लेकर कूफे को रवाना हुआ। और जब ये
लोग कूफे के क्रीब पहुँचे और इब्ने जियाद को इसकी खूबर हुईं तो उसने
तमाम शहर में मनादी करा दी के कोई शख्स हृथ्चियार लेकर घर से बाहर ना
निकले और फौज का पहरा लगा दिया के कोई शख्स फितना व फसाद ना
कर सके, लोग सुनकर देखने को दौड़े और असीराने कर्बला और सरहाऐ
शोहदा को देख कर रोने लगे। हजरत इमाम जैनुलआबेदीन ने फ्रमाया ऐ
रोने वालो! तुम लोग तो हम पर रोने वाले हो, फिर वो कौन लोग हैं जिन्होंने
इन्हें कृत्ल किया है। ( तजकरह: » )
सबक्:- हर रोने वाला सच्चा ही नहीं होता। बाज अवकात
जालिम अपना जुल्म छुपाने को मजूलूम का हामी बन जाता है। और ये
उसका फरैब होता है। ोः
हिकायत नम्बर) जिन्दा हुसैन रजी अल्लाहो
तआला अनच्ह॒
जैद बिन इरकम रजी अल्लाहो तआला अन्ह जो एक सहाबी हैं फरमाते
हैं के जब कूफी सरे इमाम को गली कूचे में फिरा रहे थे। तो मैं अपने घर की
खिड़की में बैठा था जब सर अनवर मेरे क्रीब आया। तो मैंने सर अनवर को
ये आयत पढ़ते हुए सुना उसमे हसिबता अन्ना असहाबुल कहफी वरकीम
कानू मिन आयातिना अजाबन पस मेरे बदन के रोंगटे खड़े हो गए और
मैंने अर्ज किया। ऐ इब्ने रसूल अल्लाह! बखुदा आपका किस्सा इससे ज़्यादा
तअज्जुब खैज है। फिर जब इब्मे जियाद के पास लाकर नेजों से सर उतारे.
गए तो हजरत इमाम के लब मुबारक हिल रहे थे। लोगों ने कान लगा कर
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सच्ची हिकायात 402 हिस्सा दोभ
सुना, तो ये आयत तिलावत फ्रमा रहे थे। फला तहसानत्नल्लाहा ग्राफिलन
अम्पा यामलूृज्जालीमूना ( तजकरह, सफा 5) |
सबक्:ः- अल्लाह की राह में जान देने वाले मरते नहीं, बल्के वो जिन्दा
ही रहते है और शोहदा की जिन्दगी पर क्रआन शाहिद है। चुनाँचे खुदा
फ्रमाता है ला वकुलू लिमन युक़्तलू फी सनील्लाही अमवात यानी
जो अल्लाह की राह में कत्ल हों। उन्हें मुर्दा मत कहो। लिहाजा हजरत इमाम
हुसैन रजी अल्लाहो तआला अन्ह जिन्दा हैं और जिन्दा रहेंगे।
हिंकायत नम्बर७७) उजैर बिन हारून
असीराने कर्बला और सिरहाऐ शोहदा को चन्द रोज कूफे में रखने के
बाद इब्मे जियाद ने फौज के हमराह दमिशक् रवाना किया। दमिश्क जाते हुए
ये काफला हवाली हलब में आकर एक पहाड़ के नीचे उतरा। इस पहाड़ पर
एक कस्बा था। इस कस्बे के अमीर का नाम अजीजू बिन हारून था और ये
यहूदी था। रात को हजरत शहर बानो की लोंडी शीरीं ने रो कर अर्ज किया
के अगर इजाजत हो तो जो कुछ मेरे पास बकिया है उसे बेचकर इस पहाड़ी
कस्बा से आपके वास्ते कुछ कपड़ा खरीद लाऊँ। बी बी साहिबा ने उसके
इसरार पर इजाजत दे दी। पस शीरीं पहाड़ पर गई और कस्बा का दरवाजा
बन्द पाकर खटखटाया। अमीर कुस्बा अजीज बिन हारून ने खुद आकर
दरवाजा खोला और शीररी का नाम लेकर पुकारा। शीरीं ने सलाम किया। वो
बकमाल ताजीम शीरीं को अपने घर ले गया शीरीं ने पूछा। आपने मेरा नाम
कैसे जान लिया? उसने जवाब दिया के मैंने अभी ख़्वाब में हजरत मूसा और
हजरत हारून अलेहिस्सलाम को परेशान हाल देखकर हाल पूछा। तो उन्होंने
फ्रमाया तुझे नहीं मालूम के नबी आखिरउज़्ज्माँ मोहम्मद रसूल अल्लाह
सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम के फ्रजृंद मजुलूमाना मारे गए हैं
उनका सर लोग शाम को ले जा रहे हैं और आज रात इस पहाड़ के नीचे
हरे हैं। मैंने अर्ज़ की। क्या आप मोहम्मद सल-लल्लाहो तआला अलेह व
सल्लम ) को जानते हैं और मानते हैं? फरमाया: ऐ अजीज वो सच्चे हैं। उनके
बारे में अल्लाह ने हम से अहेद लिया है। हम उन पर ईमान लाए हैं जो उन
पर ईमान ना लाएगा दोजूख में जाएगा। मैंने अर्जु की के मजीद यकीन के
लिए मुझे कुछ बतलाईये। तो फ्रमाया दरवाजा-ए-किला पर जाकर खड़े हो
जाओ, एक लोंडी शीरीं नाम आकर दरवाजा बजाएगी तो उसकी मुताबेअत
करना। उसी के बाइस तू मुशर्रफ बा सलाम होगा। और जब सर हसैन के पास
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सच्ची हिकायात 403 हिस्सा दोम
पहुँचे तो हमारा सलाम कहना। वो सलाम का जवाब देंगे चुनाँचे मैं ख्वाब
से चौंक कर फौरन दरवाजे पर आया के तूने दरवाजा बजाया। पस शीरीं ने
सारा किस्सा आकर बी बी साहिबा से कहा। ये किस्सा सुन कर सब अहले
बैत हैरान हुए। और सुबह अजीज इब्ने हारून यजीदी लश्कर को कुछ रिश्वत
देकर अहले बैत के पास आया और हर एक के लिए कीमती जोड़ा लाया।
और हजार दीनार इमाम जैनुलआबेदीन को नज्ञ करके मुसलमान हो गया।
फिर इमाम के हुज॒र हाजिर होकर हजरत मूसा व हारून अलेहिस्सलाम का
सलाम अर्ज किया तो सर अनवर ने सलाम किया जवाब दिया। ( तंजुकरह,
सफा 02) ‘
सबकः:- हजरत इमाम आली. मुकाम का विसाल शरीफ. के बाद
भी फँज जारी है के एक यहूदी मुशर्रफ बा सलाम हो गया। मालूम हुआ के
अल्लाह वाले दुनिया से तशरीफ् ले जायें। तो भी उनके फयूजू व बर्कात
बदस्तूर जारी रहते हैं। द ह
हिकायत नम्बर७७) गिरजे का पादरी
यजीदी लश्कर असीरान कर्बला और सिरहाए शोहदा को दमिश्क् ले
जाते हुए रात के वक्त एक मंजिल पर पहुँचे तो वहाँ एक बड़ा मजबूत
गिरजा नजर आया। यजीदियों ने सोचा के रात का वक्त है। इस गिरजे
में रहना अच्छा रहेगा। गिरजे में एक बूढ़ा पादरी रहता था। शमर ने उस
पादरी से कहा के हम लोग रात तुम्हारे गिरजे में रहना चाहते हैं। पादरी
ने पूछा के तुम कौन हो और कहाँ जाओगे? शमर ने बताया के हम इब्ने
जियाद के सिपाही हैं। एक बागी और उसके साथियों और उसके अहलो
अयाल को दमिश्क लिए जा रहे हैं। पादरी ने पूछा वो सर जिसे तुम बागी
का सर बता रहे हो कहाँ है? शमर ने दिखाया। तो देखकर पादरी पर
एक हैबत तारी हो गई ओर कहने लगा के तुम्हारे साथ बहुत से आदमी हैं
और गिरजे में इतनी जगह नहीं। इसलिए तुम इन सरों और कैदियों को तो
गिरजे में रखो और खुद बाहर रहो। शमर ने उसे गूनीमत समझा के सर
और कैदी महफज् रहेंगे। चुनाँचे सर इमाम को एक संदूक में बंद करके
गिरजे की एक कोठरी में और अहले बैत को गिरजे के एक माकान में
रखा गया। आधी रात के वक॒त पादरी को कोठरी के रोशन दानों में से
कुछ रोशनी नजर आई। पादरी ने उठकर देखा तो कोठरी में चाड्ों तरफ
रोशनी देखी। फिर थोड़ी देर बाद देखा के कोठरी की छतेः फंडी और
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सच्ची हिकायात 404 हिस्सा दोम
हजरत खुदीजा रजी अल्लाहो तआला अन्हा व दीगर अजूवाज मुतहरात
आँहजरत सल-लल्लाहो तआला अलेह व सलल्लम जाहिर हुईं और संदूक्
खोल कर सर अनवर को देखने लगीं फिर थोड़ी देर बाद आवाज सुनी
के ऐ बुड्ढे पादरी! झांकना बन्द कर के खातूने जन्नत तशरीफ लाती हैं।
पादरी ये आवाजु सुनकर बेहोश हो गया और फिर जब होश आया तो
आँखों पर पर्दा पड़ा देखा। मगर ये सुना के कोई रोते हुए यूं कह रहा है:
“अस्सलाम अलेक! ऐ मजूलूम मादर! ऐ शहीद मादर! गम ना कर मैं
दुश्मनों से तेरा इन्तेकाम लूंगी। और खुदा से तेरा इंसाफ चाहूंगी।”
पादरी फिर बेहोश हो गया और फिर जब होश में आया तो कुछ ना
पाया बेहद मुश्ताकु होकर कोठरी का कफ्ल तोड़कर अन्दर आया। संदूक्
का ताला तोड़ा और सर अनवर को निकाल कर मुश्क व गुलाब से धोकर
मुसल्ले पर रखा और सामने दस्त बस्ता खड़े होकर अर्ज की ऐ सरदार! मुझे
मालूम हो गया के आप उनमें से हैं जिनका वस्फ तौरात व इंजील में मैंने पढ़ा
हे। लीजिए गवाह रहिये मैं मुसलमान होता हूँ। चुनाँचे वहीं कलमा पढ़कर
मुसलमान हो गया। ( तजुकरह, सफा ॥6 )
. सबक्:- अल्लाह की राह में कर्बान होंने वाला मरजओ अवाम व
ख्वास होता हैं और ये अल्लाह वाले बजाहिर दुनिया से तशरीफ ले जाते हैं,
लेकिन काम उनका बदस्तूर जारी रहता है और ये भी मालूम हुआ के इमाम
आंली मुक्काम ने विसाल शरीफ के बाद भी इसाईयों को मुसलमान किया।
फिर किस कुद्र अफसोस का मुकाम है के उनके नाम लेवा आज खुद ही
इसाईयों की सीरत व सूरत अपनाने लगे हैं।
हिकायत नम्बर७४) ढोल बाजे
असीरान कर्बला और सरहाए शोहदा जब दुश्मन के करीब पहुँचे
और यजीद को इल्म हुआ तो उसने तमाम शहर आरास्ता करने और
अहले शहर को खुशियाँ मनाने और घर से तमाशा देखने को बाहर आने
का हुक्म दिया और यजीदी खुशियाँ मनाने लगे। एक सहाबी-ए-रसूल
हजरत सहल रजी अल्लाहो तआला अन्ह बगूर्ज तिजारत शाम आए हैं
थे। वो दमिश्क के करीब एक कस्बे गुजरे तो आपने देखा के तमाम लोग
खुशी करते ढोल और बाजे बजाते हैं। उन्होंने एक शख्स से इस
मनाने की वजह पूछी तो लोगों ने बताया के अहले इराक ने सर
यजीद को हदया भेजा है। तमाम अहले अहले शाम उसकी खुशी मना
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सच्ची हिकायात _ 405 हिस्सा दोम
रहे हैं। हजरत सहल ने एक आह भरी और पूछा के सर हुसैन कौन से
दरवाजे से लायेंगे? कहा बाब-उल-साअत से। आप उस तरफ दौड़े और
बड़ी दौड़ धूप के बाद अहले बैत तक पहुँच गए। आपने देखा के एक
सर मुशाबह सरे रसूल अल्लाह सलं-लल्लाहो तआला अलेह व सलल्लम
नेजे पर चढ़ा है। जिसे देखकर आप बे इख्तियार रो पड़े। अहले बैत में
से एक ने पूछा के तुम हम पर क्यों रो रहे हो? उन्होंने पूछ आपका नाम
क्या है? फ्रमाया। भेरा नाम सकीना बिनते हुसैन है। उन्होंने फ्रमाया
और मैं आपके नाना का सहाबी हूँ मेरे लायक् जो खिदमत हो फ्रमाईये
फ्रमाया! मेरे वालिद के सरे अनवर को सब से आगे करा दो ताके लोग
इधर मुतवज्जह हों और हम से दूर रहें उन्होंने चार सौ दरहम देकर सरे।
इमाम मसतूरात से दूर कराया। ( तजुकरह, सफा ॥07 ) हि
सबक्!:ः- मालूम हुआ के ढोल बाजे बजा बजा कर मोहर्रम के दिन
गुजारने यजोदियों की सुन्नत है। हे
हिकायत नम्बर0 गुसताख्
सरहाऐ शोहदा और असीराने कर्बला जब दमिश्क में दाखिल हुए तो
यजीद ने दरबार आरास्ता किया और तमाम रौसाएऐे शहर और सरदाराने
ममलिकत को जमा किया और फिर सब को दरबार में बुलाया। जब लाए
गए तो कैदियों को एक तरफ् ठहराया और सरों को अपने सामने मंगवा कर
हर एक को देखना और हाल पूछना शुरू किया और हालात सुन कर यजीद
देर तक चुपका सर नीचा किए रहा। फिर हुक्म दिया के सरे इमाम तश्त में
रख कर हमारे सामने लाओ। जब तएत में सर मुबारक रख कर लाया गया तो
अपने हाथ की लकड़ी से इमाम के लब व दनदान छू कर बोला के क्या ये
हुसैन के लब व दनदान हैं? ये देख कर एक सहाबी रसूल इब्ने जिनदब रजी
अल्लाहो तआला अन्ह जो उस वक्त वहाँ वहाँ तशरीफ् फ्रमा थे बोले और
कहा कृतअल्लाहू यदाका या यजीदू तू इस जगह को लकड़ी से छू रहा
है जिस जगह मैंनें बारहा आँहजरत सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम
को बोसा देते देखा है। यजीद ने ये सुनकर उन्हें मजलिस से निकाल दिया।
(तजकरह, सफा 40) . मय क्
सबक्:- यजीद फासिक् व फाजिर और बे अदब व गुसताख भी था
और उसे हुज॒र सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम की निसबत का कुछ
भी पास ना था। द .
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_ सच्ची हिकायात 406 हिस्सा दोम
‘हिकायत नम्बर७७ फ्रैब का रोना
जिस वक्त अहले बैत इमाम का काफला कूफे से दमिश्क में आकर
दरबार यजीद में पेश हुआ। तो यजीद की औरत हुंदा बेताब होकर बे पर्दा
दरबार यजीद में चली आईं। यजीद ने दौड़ कर उसके सर पर कपड़ा डाल
दिया और कहा ऐ हुंदा! तू फ्रजृंदे रसूल पर नोहा दारी कर इब्ने जियाद
लईन ने उनके मामले में जल्दी की। हालाँके मैं उनके ‘ऋत्ल पर राजी ना था!
( जलाअ अलउयून और खलासत-उल-मसायब ) बहवाला फैसला शरीया,
सफा 50)
सबक :- यजीद और उसके घर वालों का ये सारा फ्रैब था के खुद
ही कत्ल कराये और फिर इंकार कर दिया।
हिकायत नम्बर(&0 नक्कारा-ए-खुदा
असीराने कर्बला जब दरबारे यजीद में पेश किए गए तो हजरत
इमाम जैनुलआबेदीन को देखकर यजीद ने पूछा। ये कौन है? बताया
गया। ये अली बिन हुसैन है। बोला मैंने तो सुना था। वो मारा गया बताया
गया के हुसैन के तीन लड़के थे। अली अकबर, अली असगर मारे गए,
ये अली औसत हैं के बवजह बीमारी के बच रहे और गिरफ्तार करके
लाए गए। यजीद ने हजरत इमाम जैनुलआबेदीन को बुलाकर अपने
लड़के के पास बिठाया और कहा ऐ अली! मेरा लड़का तेरे बराबर है।
क्या इससे मुकाबला कर सकते हो? आप ने फ्रमाया। एक एक तलवार
दोनों को दे और मुकाबला करा के देख ले। इतने में नक़्कारा-ए-यजीद
बजा, यजीद के बेटे ने बड़े फख़ से कहा ये नौबत मेरे बाप के नाम
की बज रही है या तेरे बाप के नाम की? हजरत इमाम ने जवाब में
ताम्मुल फ्रमाया के मोज़्ज्न ने अजान कही। पस इमाम ने पुस्र यजीद
से फ्रमाया। देख मेरे बाप दादा के नाम की नौबत बजी जो कृयामत
तक यूहीं बजती रहेगी और तेरे बाप के नाम की नौबत चन्द रोज बज
कर बन्द हो जाएगी। पुस्र यजीद इस जवाब से ला जवाब हो गया। और
हाज्रीन फुसाहत शहजादा से बड़े मुताज्जिब हुए। ( तज॒करह, सफा
443, और तनकीह, सफा 34 ) हे
सबक :- हुसैन और अहले बैत ओजाम रजी अल्लाहो तआला अन्हुम
के नाप लेवा कयामत तक बाकी रहेंगे और यजीद का कोई नाम तक लेने
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सच्ची हिकायात 40 हिस्सा दोम
को तैयार नहीं। मालूम हुआ के जुल्म जालिम को मिटा देता है और सत्रो शुक्र
साबिर को खुदाई भर में और खुदा का मक्बूल बना देता है।
हिकायत नम्बर) दमिएक् की जामओ मस्जिद में
दरबार यजीद में हजरत इमाम जैनुलआबेदीन रजी अलाहो तआला अन्ह
पेश किए गए तो यजीद ने हजरत इमाम से कहा के ऐ इब्मे हुसैन! तुम्हें कोई
हाजत हो तो तलब कर। शहजादे ने फ्रमाया एक तो ये हाजत रखता हूँ के
मेरे बाप का कातिल को मेरे हवाले कर त्ताके अपने हाथ से कत्ल करूं
यजीद ने इस बात से इंकार किया। फिर हजरत ने फ्रमाया अच्छा तो सर ‘
इमाम मेरे हवाले कर ताके तन अक्दस से मिलकर दफन करूं। यजीद ने कहा
ये मंजर है और कुछ? फ्रमाया मुझे इजाजत दे के मैं अहले बैत को लेकर
मदीना चला जाऊं। यजीद ने कहा ये भी मंजर है और कुछ? फ्रमाया कल
जुमआ है मुझे इजाजत दे के मिंबर पर जा कर खुत्बा पढूं। यजीद ने कहा ये
ख्वाहिश भी तुम्हारी पूरी कर दी जाएगी और कल खत्बा तुझी से पढ़वाऊँगा।
चुनाँचे दूसरे रोज यजीद ने बादिल नख्वास्ता हजुरत इमाम को खुृत्बा पढ़ने
की इजाजत दे दी। उस रोज मस्जिद में खल्कृत का इस क॒द्र हजूम था के
किसी को जगह ना मिलती थी। हजरत इमाम जादा मिंबर पर रौनक्ु अफरोज
हुए और अव्वल निहायत फसाहत व बलागृत से हम्द व नात बयान की। फिर |
फ्रमाया जो मुझे जानता हो जाने और जो ना जानता हो। अब जाने के मैं नूर
दीदा-ए-मोहम्मद रसूल अल्लाह सल-लल्लाहो तआला अलेह व सललम,
और हसन मुजतबा हूँ। जिन्हें मैदाने कर्बला में तीन रोज भूका प्यासा मजलूम
शहीद किया गया। ये सुनकर मस्जिद में कोहराम पड़ा। अहले दमिश्क में शौर
बर्पा हुआ। यजीद डरा। और मोज्जुन को अकामत के लिए इशारा किया। पस
मोज़्जन ने अललाहो अकबर कहा शहजादे ने नअम ला जर्ई अक्बसत मिनहू
फ्रमाया मोज़्जन ने अग्गहदूअन्नला इलाहा इलललाह कहा शहजादे ने
नअमर ग़हीद् बिहा लहयी व श़ओरी व दमी फ्रमया: मोज्जून ने अग़हदू
अन्ना मोहग्मदन रसल अल्लाह कहा शहजादे ने अपना अमामा उतार कर
मोज्ज्न की तरफ फँका और बाल सर परेशान करके मोज़्जुन से फ्रमाया।
बहक मोहम्मद जरा ठहर जा। मोज़्जन चुप हो गया तो शहजादे फ्रमाया ऐ
यजीद! ये मोहम्मद तेरे दादा हैं या मेरे! अगर तू इन्हें अपना दादा कहेगा तो
आलम तुझे झूटा कहेगा और अगर मेरे दादा कहेगा तो मेरे बाप को मजलूम
क्यों शहीद किया? मुझे यंतीम किया, अहले बैत को शहर बशहर फिराया।
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सच्ची हिकायात 408. हिस्सा दोप
कैद करवाया। दरबार में बुलाया। मेरे बाप दादा के दीन में रखना डाला
बावजूद के उनका कलमा पढ़ता है। फिर भी शर्म नहीं करता है। फिर
ने लोगों से फ्रमाया तुम में से सिवाए मेरे कोई ऐसा है जिसका दादा पैगम्बर
हो? उस वक्त मस्जिद में शौरे कुयामत बर्पा हुआ और लोग रोने लगे
बेहोश हो गए। यजीद ने मोज्जुन को डांटा अकामत पूरी कराई, नमाज अल
की और फिर लोगों से बे चैनी दूर करने के लिए एक मजलिसे आम बुलाई
और उसमें सब के सामने सरदाराने कूफे को बुला कर सख्त बुरा भला कह्।
गालियाँ दीं उनकी हरकात पर नफरीं और खुफ्गी का इजहार किया और
कहा मैं तुम पर जब राजी होता के तुम हुसैन को जिन्दा मेरे पास लाते ै
उनकी खिदमत में खुशामद कर लेता। लानत है इब्ने जियाद जिसने ये काप्र
किया। ( तजुकरह, सफा 5, व ततन्तकीह, सफा 33)
सबक्:- पजीद बड़ा चालाक और मक्कार था के खुद ही सब कराके
फिर करने वालों पर लानत मलामत भी करने लगा और अपने आपको बे
कसूर जाहिर करने लगा।
हिकायत नम्बर७2) मदीने को वापसी
यजीद ने अहले बैत को मओ सरहाऐ शोहदा हजूरत नौमान बिन बशीर
रजी अल्लाहो तआला अन्ह के हमराह मदीने मुनव्वरह जाने की इजाजत दी
और नौमान बिन बशीर निहायत ताजीम व अदब के साथ अहले बैत को
मदीना ले चले। अहले बैत अजाम नोमान बिन बशीर की इस खिदमत व
ताजीम पर बड़े खुश हुए और उन्हें दुआऐं दीं। अहले मदीना को जब अहले बे!
के आने की खबर हुई तो हर छोटा बड़ा बे क्रार होकर रोता हुआ उठ लेन
के लिए दौड़ा। अहले बै अजाम से सब से पहले रोजा-ए-अकूदस पर हार्गि
हुए और दर्दनाक आवाजों में बजद्वाहू का नारा मार कर अर्ज गुजार हा
या रसूल अल्लाह! हम यतीम गरीब मजुलूम मगुमूम दरे वाला पर हाजिर है.
या रसूल अल्लाह! ज़रा देखो हमारा हाले जार
दुश्मनों के हाथ से कंसे हुए हम जलफिगार
जो मुसीबत हम पे गुज़री क्या करें उसका बयान
कोई दुनिया में ना होया इस तरह जारो नजार
अहले बैत ओजाम यूं रो रो कर अपने प्यारे नाना जान से अज द
रहे थे के उम्मुलमोमिनीन हजरत उम्मे सलमा रजी अल्लाहो तआर्ली रा
हाथ में शीशी जिसमें वो मि्ठी भरी हुई थी, जो हुजूर ने उल्हें देकर |
9९606 99 (थ्वा]5८शाशश’
सच्ची हिकायात 409 हिस्सा टोम
था के जब मेरा बेआ हुसैन कर्बला में शहीद होगा उस दिन ये मिढी खून बन
जाएगी जिसका जिक्र हिकायत नम्बर 30 में हो चुका है। और आज ये मिटटी
खून बन चुकी थी, जिसमें खाक कर्बला खून शुदा भरी थी। लिए हुए और
दूसरे हाथ से हाथ सिगरा दुख़्तर इमाम पकड़े हुए आईं। अहले बैत ने जो उन्हें
देखा और शीशी की खाक को खून शुदा पाया तो और ज़्यादा बे करार हुए।
अलगूर्ज वो वक्त भी कृयामत का नमूना था। मदीना मुनव्वरह. में कोहराम
पड़ा था हर छोटा बड़ा बे करार और अशकबार हो रहा था। ( तजुकरह,
सफा ॥6, व तनकीह, सफा 7%) ह ह
सबक्:- वाकेया कर्बला बड़ा ही दर्दनाक वाक्ेया है और मुसलमान
का दिल उससे मुतास्सिर हुए बगैर नहीं रहता और उसमें मुसलमान के
लिए सेंकड़ों सबक, इबरतें और दर्स हैं। पस मुसलमानों को चाहिए के वो
अहले बैत ओअजाम को नक्शे कृदम पर चल कर ईलाओ कलमत-उल-हक्
की खातिर हर किस्म की कुर्बानी का जज़्बा पैदा करें। और उन मुनकिरात
शरीआ और बिदआत से बचें। जिनसे आखिर तक अहले बैत ओजाम मना
फरमाते रहे हैं।
हिकायत नम्बर७9 जैनुल आबेदीन
हजूरत इमाम हुसैन( र०अ० ) के साहबजादे अली औसत(र०आ० ) का
नाम नामी तो अली था। मगर आप कसरत इबाद + की वजह से जैनुल
आबेदीन के लकुब से मश्हूर थे। आप हर दिन रात में एक हजार नफिल
पढ़ा करते थे। एक रोजू आप अपने मकान में नफिल पढ़ रहे थे के
आपके मकान को आग लग गईं। लोग आग बुझाने लगे। मगर हजरत
इमाम उसी खुज व खुशू से नमाज अदा करते रहे। जब आग बुझ गई
और आप नमाज से फारिग हुए तो लोगों ने अर्ज की हुजूर! मकान
को आग लग गई थी, हम बुझाने में मसरूफ रहे मगर आपने परवाह
तक ना फरमाई। आपने फ्रमाया तुम लोग ये आग बुझा रहे थे और में
आखिरत की आग बुझाने में मशगूल था। ( रोज-उल-रियाहीन, सफा
55, व हयात-उल-हैवान, सफा 7, जिल्दः।)
सबक:- हजरत इमाम जैनुल आबेदीन जन्नती होने के बावजूद इस
कद्र इबादत फ्रमाते और आखिरत कौ आग बुझाने में मसरूफ रहते थे।
फिर हम लोग अगर पाँच नमाजें भी बाकादगी से अदा ना करें और जहन्नुम
की आग से बचने की कोशिश ना करें तो हमारी ये किस कद्र गफ्लत है।
9०९6 99 (थ्वा]5८शाशश’
सच्ची हिकायात द 4 हिस्सा दोम
0
. हिकायत नम्बर(59 बुर्दबारी
एक दिन हजरत इमाम जैनुल आबेदीन रजी अल्लाहो तआला अंन्ह घर
से तशरीफ ले जा रहे थे के रास्ते में गुसताखू ने आपको बुरा भला कहना
शुरू कर दिया। हजुरत इमाम ने उससे फ्रमाया के भाई, जो कुछ तुम ने मुझे
कहा है। अगर मैं बाकुई ऐसा ही हूँ तो खुदा मुझे माफ फ्रमाए। ये सुनकर
वो शख्स बड़ा नादिम हुआ और बढ़कर आपकी पैशानी चूम कर कहने लगा
हुज॒र! जो कुछ मैंने कहा है। आप हर गिज एसे नहीं हैं, मैं ही झूटा हूँ। आप
मेरी मगुफिरत की दुआ फ्रमाएँ। आपने फ्रमाया अच्छा जाओ खुदा तुझे
माफ फरमाए। ( रोज-उल-रियाहीन, सफा % ) |
सबक्:- अल्लाह वालों की ये सीरत है के बुराई का बदला कुछ ऐसे
तरीक से देते हैं के खता कार नादिम होकर अपनी खूता से किनारा कश हो
जाता है और नेकी इख्तियार कर लेता है।
हिकायत नम्बर ७5) खतरनाक असदहा
खुलीफा मनसूर ने एक दिन अपने वजीर से कहा के इमाम जाफर
सादिक् रजी अल्लाहो तआला अन्ह को बुला लाता के में उसे कृत्ल कर दूं
वजीर ने कहा के एक सब्यद गोशा नशीन को कत्ल करना मुनासिब नहीं,
खलीफा उस पर नाराजु हुआ और कहा जो हुक्म मैं देता हँ तुम बजा लाओ।
नाचार वजीर हजरत इमाम जाफर सादिक् को बुलाने के लिए गया और उधर
खुलीफा मनसूर ने गलामों को हुक्म दिया के जब जाफर सादिक् आए और मैं
ताज को अपने सर से उतार लूं। तो तुम उसी दम उसको कत्ल कर देना चुनाँचे
हजरत इमाम जाफर सादिक् रजी अल्लाहो तआला अन्ह तशरीफ लाए। आप
दरबार में दाखिल हुए तो मनसूर उन्हें देखते ही उनके इसतकबाल को दौड़ा
और सद्र मुकाम पर आपको बिठाया और खुद मोहबाना तरीक् से आपके
सामने बैठ गया। गुलामों को बड़ा ताज्जुब हुआ के परोग्राम तो कुछ और था
और हो कुछ और रहा है। मनसूर ने हजरत इमाम रजी अल्लाहो तआला अन
से फ्रमाया के आपकी कोई हाजत हो तो बयान फरमाइये। आपने फरमाया
के मेरी हाजत तुम से यही है के आईदा मुझे अपने हुज॒र तलब ना करना ताके
मैं खुदा की इबादत में मशगल रहूं। मनसूर ने इजाजूत दी और बड़ी
इज्जत से आपको रूख़्सत किया और उस वक्त मनसूर का बदन कांप रहा
था। हजुरत इमाम रजी अल्लाहो तआला अन्ह के तशरीफ ले जाने के बाद
9०९66 99 (थ्वा5८शाशश’
सच्ची हिकायात | बात हिस्सा दोम
बजीर ने इस हाल का सबब पूछा तो मनसूर ने कहा के जब जाफर सादिक्
दरवाजे से दरबार में दाखिल हुए तो मैंने आपके हमराह एक बड़ा खतरनाक
असदहा देखा जिसका एक लब मेरे तख़्त से ऊपर और एक नीचे था और
वो बजुबाने हाल मुझ से कह रहा था के अगर तूने इमाम रजी अल्लाहो
तआला अन्ह को सताया तो मैं तुम्हें तख़त समेत निगल जाऊँगा। चुनाँचे मैंने
इस असदहे के खौफ से जो कुछ सलूक उनसे किया। तुम ने वो देख लिया।
( तजूकरत-उल-औलिया, सफा (5)
सबक्:- अल्लाह वालों को सताना बड़ा खृतरनाक होता है, इसी लिए
मौलाना रूमी भी फरमाते हैं |
गर॒ खुदा ख़्याहिंद के पर्दा किस दर्द
मेलिश अन्दर वाना-ए- या काँ कद
हिकायत नम्बर&७ कोमती लिबास
हजरत इमाम जाफर सादिक् रजी अल्लाहो तआला अन्ह को लोगों
ने देखा के आप बड़ा बैश कीमती लिबास पहने हुए हैं एक शख्स ने कहा
के ऐ इब्ने रसूल अल्लाह! इतना कीमती लिबास अहले बैत को जैबा नहीं।
आपने उसका हाथ पकड़ा और आसतीन के अन्दर खींच कर दिखाया के
देख ये क्या है? उसने देखा के नीचे आप टाट जैसा खुरदुरा लिबास पहने
हुए हैं। आपने फ्रमाया के ये खालिक् के लिए है और वो खृल्क के वास्ते
है। ( तजुकरत-उल-औलिया, सफा 77)
सबकः्ः:- अल्लाह वालों के पास बजाहिर दुनिया नजुर आए तो किसी
किस्म की बदगुमानी ना करना चाहिए। उन अल्लाह वालों का दिल जब
दुनिया से बिलकुल खाली होता है।
हिकायत नम्बर) दीनारों की थेली
एक शख्स की दीनारों की थेली गुम हो गई। इस नादान ने हजरत इमाम
जाफर सादिक रजी अल्लाहो तआला अन्ह को पकड़ कर कहा के थेली
आपने ली है। इस बेखबर ने हजरत इमाम रजी अल्लांहो तआला अन्ह को
पहचाना नहीं और इलजाम लगा दिया हजरत ने फरमाया थेली में कितनी
रकम थी वो बोला एक हजार आप उसे घर ले गए और हजार दीनार उसे दे
दिया। दूसरे रोज उस शख्स को वो गुमशुदा थेली मिल गईं। फिर वो हजरत
इमाम रजी अल्लाहो तआला अन्ह के पास आया और माजुरत करते हुए वो
9०९06 99 (थ्वा]58८शाशश’
सच्ची हिकायात 42 हिस्सा दोम
हजार दीनार वापस करने लगा। आपने फ्रमाया अब ये माल तुम्हारा ही हुआ
हम ने जो चीज दे दी वापस नहीं लेते। उसके बाद उसने किसी से पूछा के ये
कौन हैं। लोगों ने बताया के ये इमाम जाफर सादिक् रजी अल्लाहो तआला
अन् हैं। वो शख्स बड़ा नादिम हुआ। ( तज॒करत-उल-औलिया सफा 7)
सबक्;:- अल्लाह वाले दुनिया को बिलकुल हैच समझते हैं और वो
दुनिया का कुतअन कोई लालच नहीं रखते। फिर आज वो लोग जो मुरदार
दुनिया के लिए मुख़्तलिफ हीले बहाने करते और दुनिया पर मरते हैं किम
कद्र ग़ाफिल और नादान हैं।
हिकायत नम्बर550 हारून अलरशीद और एक आरगबी
हारून अलरशीद एक मर्तबा मक्का में आया तो अवाभ को तवाफ कंरने
से रोक दिया ताके वो खुद तनहा तवाफ कर सके। और जब वो तवाफ करने
लगा तो झट एक आराबी ने सबकृत करके उसके साथ तवाफ करना शुरू
कर दिया। हारून अलरशीद को ये बात नागवार गुजरी और अपने हाजिब
की तरफ देखा। हाजिब ने अपने बादशाह की मर्जी पाकार आराबी से कहा
मियाँ आराबी! यहाँ से हट जाओ ताके अमीर-उल-मोमिनीन तवाफ कर
सकें। आराबी ने जवाब दिया खुदा के नजुदीक इस मुकाम में छोटे, बड़े,
अदना, व आला अमीर व ग्रीब और राई व रिआया सब बराबर हैं। यहाँ
कौन छोटा और कौन बड़ा है जाओ मैं ना हटता। हारून अलरशीद ने उसकी
ये गुफ्तगू सुनी तो हाजिब से कहा उसे रहने दो। उसके बाद हारून अलरशौद
हज़े असवद को चूमने के लिए आगे बढ़ा तो आराबी ने सबकृत करके हज
असवद को पहले चूम लिया। हारून अलरशीद जब मुकामे इन्नाहीम में नमाय
पढ़ने को बढ़ा तो आराबी ने सबकृत करके वहाँ पहले नमाज पढ़नी शुरू
कर दी। हारूल अलरशीद जब तवाफ व नमाज से फारिगु हुआ तो हाजिब
से कहा के उस आराबी को मेरे पास बुला लाओ। चुनाँचे हाजिब गया और
आराबी से कहने लगा। चलो तुम्हें अमीर-उल-मोमिनीन बुलाते हैं। आरादी
ने कहा मुझे उन से कोई हाजत नहीं है। फिर मैं क्यों जाऊँ। हाँ अगर उन्हे
मुझ से कोई काम है तो वो खुद मेरे पास क्यों नहीं आते? हाजिब ये सुनर्की
गस्से में आकर वापस हुआ और उसका जवाब हारून अलरशीद को स॒7′
दिया। हारून अलरशीद ने सुनकर कहा बेशक वो ठीक कहता है। मुझे ख*
उसके पास चलना चाहिए, चुनाँचे हारूनल अलरशीद खुद उस आराबी
पास पहुँचे और उसके सामने खड़े होकर अस्सलाम अलेकुम कहा
9९९06 99 (थ्वा]5८शाशश’
सच्ची हिकाबात 5 .. हिस्सा दोम
जवाब व अलेकुल अस्सलाम कहकर आराबी ने दिया। हारून अलरशीद
ने कहा क्यों भई! इजाजत है बैठ जाऊँ। आराबी ने जवाब दिया। ये घर ना
आपका है ना मेरा। फिर मुझ से इजाजत कैसी? और मैं इजाजत देने वाला
कौन? यहाँ हम सब बराबर हैं। आप चाहें तो बैठ जायें, चाहें तो वापस चले
जायें। हारून अलरशीद इस किस्म की जुर्रात आमेजु गुफ्तगू सुनकर हैरान:
रह गया उसे गुमान तक ना था के ऐसी गुफ्तगू भी कोई उससे कर सकता
है। फिर वो आराबी के पहलू में बैठ गया और कहने लगा। मियाँ आराबी! मैं
तुम से तुम्हारे फर्ज के मुतअल्लिक् पूछता हूँ क्या तुम बता सकोगे? अगर तुम
अपने फर्ज पर रोशनी डाल सको तो मैं तुम्हारा कायल हो जाऊँगा। आराबी
ने जवाब दिया आपका ये सवाल मोअल्लिम बन कर है या मुतअल्लिम
बन कर? हारून अलरशीद ने कहा मुतअल्लिम बन कर। आराबी ने कहा
तो फिर तालिब इल्मों की तरह सामने मौहिब होकर बैठो। और फिर पूछो!
चुनाँचे हारून अलरशीद मौह॒बाना तरीक् से सामने बैठ गया और फिर फर्ज
के मुतअल्लिक् पूछा। आराबी ने जवाब दिया के एक फर्ज बताऊँ या पाँच,
सत्रह फर्ज बताऊँ, चौंतीस बताऊँ या चोरानवे, चालीस में से एक फर्ज का
बयान करूं या उम्र भर में एक फर्ज का?
ये तफसील सुनकर हारून अलरशीद ने तनजन हंस कर कहा, मैंने तो
तुम से एक फर्ज का पूछां है और तुम दुनिया भर का हिसाब ले बैठे हो।
आराबी ने कहा हारून! अगर दीन में हिसाब ना होता तो कयामत के रोज
खालिक् मखलूकं से कभी हिसाब ना लेता खुदा का इर्शाद क्या याद नहीं
बड़न काना मिसक्ालू हब्बाती खूजदलिन आतैना बिहा व॑ काफा
बिना हासिबीना हारून अलरशीद ने जब ये सुना के आराबी ने उसका नाम
लेकर उसे मुखातिब किया है। और उसे अमीर-उल-मोमिनीन नहीं कहा तो
गुस्से में आ गया और जब गृस्सस फरू हुआ तो कहने लगा। कुसम बखुदा
अगर तुम ने मेरे सवाल का जवाब ना दिया. तो मैं तुझे सका और मरवा की
पहाड़ियों के दरमियान मरवा दूंगा हाजिब ने कहा अमीर-उल-मोमिनीन जाने
दीजिए। इस हरम शरीफ के तुफेल इसकी जाँ बख्शी फरमा दीजिए। आराबी
ये सुनकर खिलखिला कर खूब हंसा, हारून अलरशीद और भी ज़्यादा हैरान
हुआ। और पूछा इस क॒द्र हंसे क्यों? आराबी ने जवाब दिया तुम दोनों की
मुजेहका खैज गुफ्तगू सुनकर के एक तुम दोनों में से ऐसी मौत ले आने का
मुह है जो आई नहीं और दूसरा ऐसी मौत को हटा रहा है जो आ चुकी। भला
ऐसी ना मअकल बातें दाना तसलीम कर सकता है, हारून रशीद ये सुनकर
9८०९0 9५ (.क्राइट्याल
सच्ची हिकायात 44 हिस्सा दोम
बेहद नादिम हुआ और मिन्नत से कहने लगा। भई! अब तो मुझे तुम्हारे जवाब
का बेहद शौक है। बराऐ खुदा मेरे सवाल का जवाब जरूर दो। आराबी न
कहा तो लो सुनो। तुम्हारा सवाल इस फर्ज के मुतअल्लिक है। जो खुदा ने
मुझ पर किया है। तो खुदा के मुझ पर बहुत से फ्रायज हैं मैंने जो तुम से
एक फर्ज का कहा था वो तो दीने इस्लाम है और जो पाँच फर्ज कहे थे। वो
पाँच नमाजें हैं और जो सत्रह फर्ज हैं वो दिन रात की सत्रह रकआत हैं। और
चौंतीस फर्ज? दिन रात के सज्दे हैं और चौरानवे फर्ज? वो उन सब रकआत
की तकबीरात हें और जो मैंने चालीस में से एक फर्ज कहा था वो चालीस
दीनार में से एक दानार ज॒कात है और सारी उम्र में से एक फर्ज? वो हज है।
हारून अल रशीद आराबी के हुस्ने बयाँ और तशरीह मसायल को सुनकर
-बेहद मसरूर हुआ और उसके दिल में बेहद कद्र पैदा हो गई।
उसके बाद आराबी ने कहा के आपके सवाल का जवाब तो मेंने दे
दिया। अब मेरे भी सवाल का जवाब क्या आप देंगे? हारून रशीद ने कहा
हाँ पूछिये आराबी ने कहा। क्या फ्रमाते हैं। अमीर-उल-मोमिनीन उस शख्स
के लिए जिसने सुबह एक औरत को देखा तो वो औरत उस पर हराम थी।
जोहर का वक्त हुआ तो हलाल हो गईं। इशा का वक़्त आया तो फिर हराम
हो गई। सुबह हुई तो हलाल हो गई उसके बाद फिर जोहर का वक्त आया तो
हराम हो गईं अम्र का वक्त आया तो फिर हलाल हो गईं। मगरिब का वक्त
हुआ तो हराम हो गई। इशा का वक्त आया तो फिर हलाल हो गई। हारून
अलरशीद ये सुनकर कहने लगा के तुम ने मुझे एक ऐसे दरया में डाल दिया
है जिससे बजुज तुम्हारे दूसरा कोई ना निकाल सकेगा तुम खुद ही उसका
जवाब दो। आराबी ने कहा अमीर-उल-मोमिनीन! आप तो बहुत बड़े साहबे
इख़्तियार हाकिम हैं। मेरे एक मामूली से मसले के सामने आजिज क्यों आ
गए? हारून अलरशीद ने कहा वाकेया ये है के खुदा ने तुम्हारा दर्जा-ए-इल्म
मुझ से बुलंद किया है। मेरी दरख्वास्त है के इस हरम शरीफ की खातिर तुम
ही जवाब दो। आराबी ने कहा बहुत अच्छा तो सुनिए वो एक ऐसा शख्स है
जिसने सुबह किसी दूसरे की लोंडी को देखा जो उस पर हराम थी। जोहर
का वक्त आया तो वो लोंडी उसने खरीद ली। अब वो इस पर हलाल हो गई
अस्र के वक्त उसने उसे आजाद कर दिया त्तो वो फिर उस पर हराम हो गई!
मगरिब के वक्त उसने उससे निकाह कर लिया तो फिर हलाल हो गई। इशा
के वक्त उसने तलाक दे दी तो वो फिर हराम हो गई। सुबह उसने रूजू कर
लिया तो फिर हलाल हो गईं। जोहर का वक्त आया तो वो शख्स मुरतिद
9०९06 099 (थ्वा]5८शाशश’
सच्ची हिकायात 4५ द हिस्सा टोम
गया। वो फिर उस पर हराम हो गईं। अम्न के वक्त वो शख्स फिर मुसलमान
हो गया तो उसकी औरत फिर उस पर हलाल हो गई। मगरिब के वक्त वो
औरत मुरतिद हो गई फिर वो हराम हो गई, इशा का वक्त आया तो फिर
वो मुसलमान हो गई। लिहाजा फिर हलाल हो गई।
हारून अलरशीद ये तफसील सुनकर हैरान व शशिद्र रह गया और
उस आराबी को दस हजार दीनार देने का हुक्म दिया। जब ये दीनार आराबी
को पेश किए गए तो उसने कहा के ये दरहम उनके अहल को दे दो। मुझे
जुरूरत नहीं। हारून अलरशाद ने कहा क्या मैं तुम्हारे नाम कोई जागीर कर
दूं जो उम्र भर तुम्हारे लिए काफी हो? आराबी ने कहा जिस ने तुम्हारे नाम
मुल्क कर रखा है वो चाहेगा तो मेरे नाम भी कोई जागीर कर देगा तुम्हारे
वास्ते की जरूरत नहीं। |
हारून अलरशीद वहाँ से लौटा और उस आराबी के मुतअल्लिक्
दरयाफ्त किया तो लोगों ने बातथा के ये हजरत इमाम जाफर सादिक् रजी
अल्लाहो तआला अन्ह के साहबजादे मूसा रजा हैं जिन्होंने जाहिदाना जिन्दगी
इख्तियार फ्रमा रखी है। हारून अलरशीद ये हकीकृत सुनकर उल्टे पाऊँ
दौड़ा और हजरत मूसा रजा बिन जाफर सादिक् बिन मोहम्मद बिन अली
बिन अबी तालिब रजी अल्लाहो तआला अन्ह की पैशानी को चूम लिया।
( अलरोज अलफायक्, सफा 58 ता 59)
सबकः:ः- अहले बैत ओजूाम मुनब्बओ अलउलूम थे। और ये भी मालूम
हुआ के पहले बादशाह भी इल्म दोस्त और बुजुर्गाने दीन के क॒द्र शनास थे।
सातवाँ बाब
आइम्मा इक्राम द
रिजवान-उललाही तआला अलेहिम अजमईन
योगा नवऊ कुल्ला उनासिन बिड्मामीहिम फमिन ऊविया किताबाहू
बिंयमीनिही फऊलाईका यक्राऊना कितवाबाहुस .बला बुजुलमूना
फतीला ( प ॥5, रूकू 8)
जिस दिन हम हर जमात को उसके इमाम के साथ बुलायेंगे तो जो अपना
नामा दाहिने हाथ में दिया गया। ये लोग अपना नामा पढ़ेंगें और तांगे फिर
उनका हक् ना दबाया जाएगा। ( कनजुल ईमान )
9०९06 99 (थ्वा5८शाशश’
सच्ची हिकायात 46 । हिस्सा दोप
. ‘हिकायत नम्बर0७ इमाम-उल-पमुस्लिमीन
अबु हनीफा( र०आ० )
हजरत इमाम आजूम इमाम अबु हनीफा रंजी अल्लाहो तआला अर
हुज॒र सरवरे आलम सल-लल्लाहो तआला अलेह व सलल्लम की जियारत
के लिए जब मदीना मुनव्वरह पहुँचे और रोजा-ए-अनवर पर हाजिर हुए तो
आपने अर्ज किया। अस्सलाम अलेका या सय्यदुल मुरसलीन
तो रोजा-ए-अनवर से जवाब आया
.. ब अलेका अस्सलाम या इ्माम-उल-मुस्लिमीन( तजुकरत-उल-
औलिया, सफा 26)…
सबक्ः- मालूम हुआ के हमारे हुजर॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह
व सल्लम हयात-उन्नबी हैं। गुलाम का सलाम सुनते हैं और जवाब भी अता
फरमाते हैं और ये भी मालूम हुआ के हजरत इमाम आजुम रजी अल्लाहो
तआला अन्ह मुसलमानों के इमाम हैं और खुद सरवरे आलम सल-लल्लाहो
तआला अलेह व सलल््लम ने आपको मुसलमानों का इमाम फ्रमाया है फिर
अगर कोई शख्स हजरत इमाम आजुम रजी अल्लाहो तआंला अन्ह की शान
वाला में कोई बे अदबी का लफ्ज कहे तो हुजर सरवरे आलम सल-लल्लाहो
तआला अलेह व सल्लम क्यों ना उससे नाराज होंगे।
. हिकायत नम्बर) मुकदस बूढ़ा
हजरत शेख बू अली बिन उस्मान जलाली रहमत-उल्लाह अलेह फ्रमाते
हैं के मैं मुल्के शाम में था के एक रोज में हजरत बिलाल रजी अल्लाहो अर
के मजार शरीफ पर सो गया। मैंने ख्वाब में देखा के मैं मक्का शरीफ में हूं
और हुजर सरवरे आलम सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम बाब बनी
शीबा से दाखिल हुए और आप एक बूढ़े शख़्स को बड़ी शफ़्कृत से अपनी
मुबारक गोद में लिए हुए और अपने सहारे चला रहे हैं। मैंने दौड़कर हुजर
सल-लल्लाहो आला अलेह व सल्लम के मुबारक कदमों को बूसा दिया
मेरे दिल में ये सवाल उठ रहा था के ये बूढ़े कौन हैं जिन्हें हुज॒र इतनी शफ्कत
से अपनी गोद में संभाले और अपने सहारे चला रहे हैं। हुज॒र संल-लल्लांहो
तआला अलेह व सललम ने मेरे इस सवाल को सुना और फ्रमाया
मुसलमानों का इमाम अबु हनीफा है। ( तज॒करत-उल-औलिया, सफी 22)
सबक्ः- मालूम हुआ के हमारे इमामे आजूम रजी अल्लाहो तआलों
9९९6 99 (थ्वा5८शाशश’
सच्ची हिकायात हिस्सा दोम
4॥7
अन्ह के जुमला मसायल वही हैं जो हदीस में बयान हुए और आपका मजहब
वही है जिस पर हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सलल्लम ने चलाया
और हमारे इमाम ने शरई मसायल और इसतंबात व इजतिहाद में जो कृदम
भी उठाया है। हदीस नबत्बी के सहारे पर ही उठाया है।
हिकायत नम्बर) पैश्वा
एक दिन हजूरत इमाम आजुम( र०अ० ) कहीं तशरीफ ले जा रहे थे के
एक लड़के को आपने देखा के कीचड़ में चल रहा है आपने उस लड़के से
फरमाया। बेटा! होश से चलो। ऐसा ना हो के तुम्हारा पाँव फिसल जाए और
गिर पड़ो। लड़के ने जवाब दिया। ऐ अमीर-उल-मुस्लिमीन! मैं तो अकेला हूँ
अगर फिसलूंगा भी तो फिर संभल जाऊँगा। और ना भी संभल सका तो मैं ही
गिरूंगा। मगर आप तो मुसलमानों के पैश्वा हैं आपको इसका खयाल रखना
बहुत जुरूरी है के आपका पाँव ना फिसले क्योंके अगर आपका पाँव फिसल
गया तो सारे मुसलमानों का जो आपके पीछे चल रहे हैं पाँव फिसल जाएगा
और इस वक्त सबका संभलना बहुत मुश्किल हो जाएगा। हजरत इमाम उस
लड़के की ये बात सुनकर रोने लगे। ( तज़॒करत-उल-औलिया, सफा 250 )
सबक्:- इमाम आजम रजी अल्लाहो तआला अन्ह मुसलमानों के
पैश्वा हैं। और हर छोटे बड़े को उसका एत्राफ है के हजरत इमाम आजम
इमाम-उल-मुस्लिमीन हैं और ये भी मालूम हुआ के इमाम व पैश्वा पर कौम
व जमात की बहुत बड़ी जिम्मेदारियाँ होती हैं। ह
हिकायत नम्बर) शब बे दर इम्राम
हजरत इमाम आजम रजी अल्लाहो तआहल- अन्ह हर रात तीन सौ रकात
नफिल पढ़ा करते थे। एक बार आप कहीं जा रहे त्थे के रास्ते में एक शख्स
ने दूसरे से कहा। ये वो इमाम है जो हर रात पाँच सौ रकांत नफिल पढ़ता
है। हजरत इमाम ने ये सुना तो उसी वक्त ये नीयत कर ली के आज से पाँच
सौ रकात ही नफिल पढ़ा करूंगा। तांके उसका गुमान दुरूस्त हो जाए। एक
दिन आपके शार्गिंदों ने आप से कहा के लोग कहते हैं के इमाम साहब
रात भर इबादत करते रहते हैं और नहीं सोते। फरमाया आज से मैं ऐसा
ही किया करूंगा। और सारी सारी रात जागा करूंगा। क्योंके खुदा तआला
फरमाता है के जो बन्दे इस चीज की तारीफ को पसंद करते हैं जो उनमें
नहीं है पस वो हर गिज॒ अजूाब से ना छूटेंगे लिहाजा आईंदा मैं सारी रात
9९९06 99 (थ्वा]5८शाशश’
सच्ची हिकायात 48
जागा करूंगा ताके इस आयत की जूद में ना आ जाऊँ। उसके बाद
चालीस बरस तक इशा के वज से सुबह की नमाज पढ़ी और आपने
जगह वफात पाई वहाँ आपने सात हजार बार क्रआन शरीफ खूत्म फ्रमाया
था। ( तजुकरत-उल-औलिया, सफा 240 और जवाहर-उल-बयान है
तर्जुमत-उल-खैरात अलहस्सान, सफा 60), क्
सबक्ः- हमारे इमाम हम्माम इमाम आजम रजी अल्लाहो तआला
अन्ह शब बैदार इमाम थे। और अपने अल्लांह की बड़ी इबादत करने वाले
और अल्लाह के बहुत बड़े मक्बूल व मुक्रिब बन्दे थे। फिर जिसने कभी
उमर भर वज ही ना किया हो वो अगर हजरत इमाम की शान वाला कोई
गुस््ताख़ी करे तो किस क॒द्र जुल्म है?
हिकायत नम्बर७७) नाखन भर मिट़ो
.. हजरत इमाम आजम रजी अल्लाहो तआला अन्ह इक बार बाजार से
गुजर रहे थे के नाखन भर कीचड़ उड़कर आपके लिबास पर आ पड़ा। आप
‘उसी वक्त दजले के किनारे गए और उस मिट़ी को खूब मल मल कर धोया।
लोगों ने कहा हुजर आप उसके बराबर तो निजासत को जामे पर जायज
बताते हैं और खुद इस क॒द्र मिढ़ी को धोत्ते हैं। आपने फरमाया। तुम सच
कहते हो। मगर वो फतवा है और ये तकवा है। ( तज॒ुकरत-उल-औलिया,
सफा 25) |
सबक :- हमारे इमाम तक॒वे व परहैजगारी के पैकर थे। फिर जिब्ोंने
ने कभी फ़तवे की भी परवाह ना की हो। वो अगर इस पैकरे तकवा पर किसी
किस्म का तान करें तो क्यों ना खुद ही मतऊन होंगे। द
हिकायत नम्बर७७) ओहदा-ए-क्जा
खलीफा मनसूर ने हजरत इमाम आजूमए रण” ) को बुलाकर कहां
आप ओहदा-ए-क॒जा कबूल कर लें। और मेरी ममलिकत के आप काजी
अलकजूात यानी चीफ जज बन जायें। हजरत इमाम आजम ने फ्रमाया।
इस ओहदे के काबिल नहीं हूं। खुलीफ ने कहा। आप झूट कहते हैं। आप से
ज़्यादा इस ओहदे के और कौन काबिल होगा। आपने फ्रमाया अगर मैं झूट
बोलता हूँ तो आपने खुद ही फैसला कर दिया के मैं जज बनने के काबिल
नहीं हूँ इसलिए झूटा आदमी जज नहीं बन सकता ये कह कर आप वहाँ से
उठकर चले गए। ( तजूकरत-उल-औलिया, सफा 248)
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सच्ची हिकायात 4॥9 हिस्सा दोम
सबक्:- अल्लाह बालों में किसी दुनयवी ओहदे की लालच नहीं
होती। और अगर दुनिया के पीछे भी पड़े तो वो दुनिया से हत्ता अलइमकांन
पीछा छुड़ाना चाहते हैं। फिर जो रूपे खर्च करके और दिन रात कोशिश
कर करके किसी बड़े ओहदे पर पहुँचने की कोशिश करें। वो अगर ऐसे बड़े
मुत्तकी इमाम की शान में गुस्ताखी करें तो किस क॒द्र बे इंसाफी है।
हिकायत नम्बर७७) कमाल तकवा
हजरत इमाम आजम रजी अल्लाहो तआला अन्ह एक जनाजा पढ़ने
तशरीफ् ले गए। धूप की बड़ी शिद्तत थी और वहाँ कोई साया ना था। साथ
ही एक शख्स का मकान था। उस मकान की दीवार का साया देखकर लोगों
ने हजरत इमाम से अर्ज किया के हुज॒र! आप इस साये में खड़े हो जाइये।
हजरत ने फ्रमाया के इस मकान का जो मालिक है वो मेरा मकरूज है
और अगर मैंने उसकी दीवार से कुछ नफा हासिल किया तो मैं डरता हूँ
के इंदल्लाह मैं कहीं सूद लेने वालों में शुमार ना हो जाऊँ। क्योंके सरवरे
आलम सल-लल्लाहो आला अलेह व सलल्लम ने फरमाया है के जिस
कर्ज से कुछ नफा लिया जाए वो सूद है! चुनाँचे आप धूप में ही खड़े रहे।
(तज॒करत-उल-औलिया, सफा 248 ) ह
सबक्ः- मालूम हुआ के हमारे इमाम हम्माम रजी अल्लाहो तआला
अन्ह में कमाल दर्जा का तक्वा पाया जाता था। आप बड़े ही म॒ुत्तकी व
परहेजुगार थे और ये भी मालूम हुआ के आप हर हाल में हदीस रसूल
सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम को पेशे नजर रखते थे। फिर ये
कैसे कहा जा सकता है के आपने रोजे नमाज वगैरा शरई उमूर में हदीस को
मलहूज नहीं रखा ओर अपने कयास से काम लिया।
हिकायत नम्बर) तासीर करआन
हजरत यजीद बिन लीस जो अखयार में से थे, फरमाते हैं। मैंने एक बार
इशा की नमाज में देखा के इमाम ने सूरत हजा जलजिलातिल. अर्ज पढ़ी
और इमामे आजम मुक्तदी थे। जब नमाज से फारिग हुए तो मैंने देखा के
इमाम साहब मुतफक्किर बैठे हैं और ठंडी सांस ले रहे हैं। में वहाँ से उठ गया
ताके आपका दिल मशगल ना हो। और चिराग को रोशन ही छोड़ दिया।
और उसमें थोड़ा सा तेल था। फिर तुलू फन्न के बाद मैंने देखा के चिराग
रोशन है और इमाम साहब अपनी रेश मुबारक पकड़े हुए कह रहे हैं, ऐ वो
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सच्ची हिकायात | 420 हिस्सा
जात! के बमिक्दार जुर्रा खैर के जजाऐ खैर देगा और मिक्दार जरा बर
जजाऐ शर देगा। नौमान को तो अपने फज्ल से आग से बचा ले के आग के
करीब भी ना जाए और उसको अपनी वंसी रहमत में दाखिल कर ले। जब मैं
अन्दर गया तो इमाम साहब ने पूछा क्या चिराग लेना चाहते हो? मैंने कहा
के मैं तो सुबह की अजान भी दे चुका। फ्रमाया। जो कुछ तुम ने देखा है।
उसे छुपाना। जाहिर ना करना। ( जवाहर-उठल-बयान फी तर्जुमात-उल-खैरात
अलहस्सान, सफा 55) द
सबक्:- इमामे आजम अलेह अर्रहमत जितने बड़े इमाम थे इतने ही
बड़े मुत्तका और आरिफ् कामिल थे। फिर जिस पाक हस्ती के तकवा व
परहैजगारी और खौफे खुदा का ये आलम हो कम मुमकिन है के दो किसी
मसले में अल्लाह व रसूल के इर्शाद के खिलाफ कोई अपनी राय पेश करे।
हिकायत नम्बर&) खोफे कयामत
एक बार हजरत इमामे आजूम रजी अल्लाहो तआला अन्ह का बे ख़बरी
में एक लड़के के पाँव पर पाँव पड़ गया। लड़के ने कहा ऐ शेख! कृयामत के
दिन के बदले से नहीं डरते? हजुरत इमाम ने ये सुना। तो आप पर गुशी तारी
हो गईं। जब अफाका हुआ तो फ्रमाया के मेरा ये खयाल है के ये कलमा
उसे तलकीन हुआ है। ( जवाहर-उल-बयान, सफा 69)
सबक्ः- इमाम साहब अलेह अर्रहमत बावजूद इतने बड़े इमाम और
मुत्तकी होने के कुयामत के बदले से डरते हैं। फिर किस क्द्र गफ्लत है।
हम लोगों की। के सरतापा गुनहगार होने के बावजूद कृयामत के दिन का
हमें कोई अहसास ही नहीं। और इमाम साहब से बेखबरी के आलम में एक
लड़के का पाँव कुचला गया तो आप बेहोश हो गए मगर हम जान बूझ कर
भी सेंकड़ों जुल्म करते हैं। मगर कुछ परवाह नहीं करते।
_ हिकायत नम्बर) हमसाया-ए-मोची
हजरत इमामे आजम रजी अल्लाहो अन्ह के मोहल्ले में एक मोची रहता
था जो .निहायत रंगीन तबओ और खुश मिजाज था। उसका मामूल था
दिन भर मेहनत मजदूरी करता। शाम को बाजार जाकर गोश्त और शराब
मोल लाता। कुछ रात गए दोस्त व अहबाब जमा होते। खुद सीख पर कबाब
लगाता। खुद खाता। यारों को खिलाता। खूब शराब का दौर चलता. और मजे
में आकर शैर गाता… द
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सच्ची हिकायात 424 हिस्सा दोम
अजाऊनी वअय्या फता .अजाऊ .
लियोमा करीहतिन सिदादी सग्रीरिन
यानी लोगों ने मझ्न को हाथ से खो दिया। और कैसे बड़े शख्स को खोया।
जो लड़ाई और रिखना बंदी के दिनकाम आता।.. क्
इमाम साहब जिक्र व शुग्ल की वजह से रात को बहुत कम सोते थे।
रात को उसकी नगृमा सबखियाँ सुनते और कुछ तअर्स्ूज ना करते। एक रात
ऐसा हुआ के शहर का कोतवाल इधर आ निकाला और उसका गिरफ्तार
करके ले गया। और कैदखाने में भेज दिया। सुबह को इमाम साहब ने दोस्तों
से तजुकरह किया के गुजिश्ता रात हमारे हमसाया की आवाज नहीं आईं।
ना मालूम क्या वजह हुई। लोगों ने रात का तमाम माजरा बयान कर॑ दिया।
के वो गरीब तो केदखाने में है। आपने उसी वक़्त सवारी तलब की और
दरबार के कपड़े पहन कर दार-उल-इमारत की तरफ रवाना हो गएं। कूफे
के गवरनर को लोगों ने इत्तिला दी के इमाम अबु हनीफा आप्र से मिलने
आए हैं। उसने ये सुनते ही आपके इसतक्बाल के लिए अपने दरबारियों
को भेजा जब आपकी सवारी नजूदीक आई तो गवरनर खुद भी ताजीम के
लिए उठा। और निहायत अदबो एहत्राम से लाकर बिठाया और अर्ज किया।
आपने कयों तकलीफ फ्रमाई। मुझ को बुला भेजते। मैं खुद हाजिर हो जाता।
आपने फरमाया, हमारे मोहल्ले में एक मोची रहता था। कोतवाल ने उसको
गिरफ्तार कर लिया है में चाहता हूँ के वो रिहा कर दिया जाए। गवरनर ने
उसी वक्त हुक्म भेजा और वो रिहा कर दिया गया। इमाम साहब जैसे गवरनर
से रूख्संत होकर चले तो वो मोची भी हमरकाब हो गया। इमाम साहब. ने
उसे मुखातिब होकर फरमाया। क्यों हम ने तुम को जाये तो नहीं किया। उसने
अर्ज किया। नहीं आपने हक् हमसायगी खूब अदा क्रि७”‘ इमाम साहब के इस
खूल्क् व मुरव्वत का उसके दिल पर ये असर हुआ के उस्नने ऐश परस्ती से
तौबा की और इमाम साहब के हल्का दरस में बैठने लगा। रफ़्ता रफ़्ता इल्मे
फिका में महारत हासिल की। और फिकिया के लकब से मुमताज हुआ।
( हयात-उल-हैवान, सफा 78, जिल्द ) का
सबक्:- इमामे आजम रजी अल्लाहो तआला अन्ह अपने हमसांयों के
एक बहुत बड़े अच्छे हमसाये थे। और मालूम हुआ के हमसायों के दुख दर्द में
शरीक होना चाहिए। ओर ये भी मालूम हुआ के हजरत इमामे आजुम( र०आ० )
की तवज्जह से एक अय्याश आदमी की काया पलट गई और वो इल्मो फज्ल
को दौलत से माला माल हो गया।
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सच्ची हिकायात 422 – हिस्सा
हिकायत नम्बर(७) एहसान व करम
. हजरत शफीक फ्रमाते हैं के मैं हजरत इमाम आजूम के साथ जा
था के एक शख्स ने आपको देखा। और छूप गया। और दूसरा रास्ता
किया। आपको मालूम हुआ। तो आपने उसे पुकारा। वो आया। तो आपने
उससे पूछा के तुम क्यों अपनी राह से बे’राह होकर चले। उसने कहा में
आपका मक्रूज हूँ। दस हजार दरहम मैंने आपको देने हैं। जिसको काफी
अर्सा गुजर चुका है। और मैं तंग दस्त हूँ। आप से शर्माता हूँ। आपने फ्रमाया।
सुबहान अल्लाह! मेरी वजह से तुम्हारी ये हालत है। जाओ मैंने सब रूपया
तुप को बख्श दिया। और मैंने अपने आपको अपने नफ्स पर गवाह किया।
अब आईदा मुझ से ना छुपना। और जो खौफ तुम्हारे दिल में मेरी बजह से
पैदा हुआ। मुझे माफ कर दो। ( जवाहर-ठल-बयान, सफा 74)
सबक्ः:- हमारे इमाम हम्माम हजरात इमाम आजम रजी अल्लाहो
अन्ह बड़े जाहिंद, सखी, मोहसिन और मखूलूक् पर मेहरबानी फरमाने वाले
थे। हम सबको आपके नक्शे कृदम पर चलना चाहिए और जेर दस्तों पर रहम
करना चाहिए और दुनिया की मोहब्बत से दिल को खाली रखना चाहिए।
हिकायत नम्बर0 फिरासत इमाम
_अन्द लड़के गेंद खेल रहे थे। इत्तिफाक् से एक बार उनकी. गेंद हजरत
इमाम आजम रजी अल्लाहो तआला अन्ह के आगे मजमओ में आकर गिरी।
किसी लड़के की ये हिम्मत ना पड़ी। के गेंद वहाँ से उठा लाए। एक लड़के
ने उन लड़कों में से कहा के अगर कहो तो गेंद में उठा लाऊँ? फिर इन्तिहाई
गुस्ताखी के साथ गया। और वो गेंद जाकर उठा लाया। हजरत इमाम आजम
रजी अल्लाहो तआला अन्ह ने फ्रमाया। मालूम होता है के ये लड़का हलाली
नहीं है लोगों ने दरयाफ्त किया तो वाकुई वो लड़का बैसा ही निकला। जैसा
के हजरत इमाम ने फ्रमाया था। लोगों ने पूछा। हुजर! आपने ये कैसे जान
लिया के वो लड़का हलाली नहीं है। फ्रमाया अगर वो हलाली होती तो हया
उसे मानओ होती। ( तजुकरत-उल-औलिया, सफा 28)
सबक :- बुजर्गों से हया अर उनका अदब करना नेक॑ बख़्ती और
कै
शराफत व निजाबत की अलामत है।
हिकायत नम्बर /) मसकत जवाब
हजूरत इमाम आजूम( २र०अ० ) के मुखालिफों में से एक शख्स ने आप से
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सच्ची हिकायात | .. हिस्सा दोम
पूछा के आपका फतवा-ऐसे शख्स के बारे में क्या है? जो जन्नत का उम्मीदवार
ना हो, और ना दोजूख से डरता हो। ना खुदा से। और मुरदार खाता है और
बे रूकू सजूद के नमाज पढ़ता है। और बिन देखे गवाही देता है। सच्ची बात
को ना पसंद करता है। फितने को दोस्त रखता है। रहमत से भागता है। यहूद
नसारा को तसदीक करता है।
इमाम आजुम अलेह अरहमत ने अपने शार्गिंदों से फरमाया के ऐसे
शख्स के बारे में तुम क्या कहते हो? उन लोगों ने जवाब दिया। ऐसा शख्स
बहुत ही बुरा है। ये सिफात तो काफिर की हैं। आपने तबस्सुम फ्रमाया।
और इर्शाद फ्रमाया नहीं बल््के ऐसा शख्स तो अल्लाह का दोस्त! और
मोमिन कामिल है। फिर आपने उस शख्स से कहा। के अगर मैं उसका
जवाब बता दूं। तो तू मेरी बदगोई से बाज रहेगा? उसने वादा किया के
हाँ। आप ने फ्रमाया के वो रब जन्नत की उम्मीद रखता है। और रब नार
से डरता है। और अल्लाह तआला से इस बात का खौफ नहीं करता के
वो उस पर जुल्म करेगा। मुर्दा मछली खाता है जनाजे की नमाज पढ़ता
है। नबी सल-लल्लाहो तआला अलेह व सलल्लम पर दुरूद पढ़ता है। और
अन देखी बात पर गवाही देने के ये मानी हैं के वो अल्लाह को बिन देखे
उसकी गवाही देता है। और वो मौत को ना पसंद करता है। जो हक है।
ताके जिन्दा रह कर अल्लाह की फरमाँबरदारी करे। और माल व औलाद
फितना जिसको दोस्त रखता है और वो रहमत जिससे भागता है, बारिश
है। और यहूद की इस बात में तसदीक् करता है लैसत-उल-नसारा अला
शेडन और नसारा की इस बात में तसदीक् करता हैं लैसत-उल-यहूद अला
झोेड़नजब इस शख्स ने ये पुर मरज् और मसकत जवाब सुना तो खड़ा हुआ।
और हजरत इमाम साहब के सर मुबारक का बोसा दिया। और कहा के मैं
कसम खा के गवाही देता हँ के आप हक पर हैं। ( जवाहर-उल-बयान फी
तर्जुमत-उल-खैरात अलहस्सान, सफा 48 )
सबक :- हमारे इमाम आजम रजी अल्लाहो अन्ह को खुदा तआला ने
दीन की ऐसी समझ अता फ्रमाई थी के बड़े बड़े मुश्किल मसायल जिनको
कोई हल नहीं कर सकता था आप पल भर में हल कर लेते थे और आपकी
इस तफक्का फिल्दीन का लोहा अगुयार भी मानते थे।
हिकायत नम्बर) जबरदस्त फरेब
हमारे इमाम हम्मा हजरत इमाम आजूम रजी अल्लाहो तआला अन्ह
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सच्ची हिकायात 424 हिस्सा दोम
के बाज हासिदों ने एक औरत को फिसला कर इस बात पर राजी कर
लिया के वो किसी तरीका से हजरत इमाम आजम पर तोहमत लगाए।
चुनाँचे वो औरत एक रात इमाम साहब के पास आई और कहने लगी है
मेरा खाबिंद सख्त बीमार है और वो आपके रूबरू कुछ वसीयत करना
चाहता है। आप मेरे साथ मेरे घर चलिए। इमाम साहब चल पड़े। आप जब
उसके घर पहुँचे तो उसने सब दरवाजे बन्द कर लिए और शौर मचाना
शुरू कर दिया के अबु हनीफा ने तनहाई में मुझे सताया है ( मआज
अल्लाह ) ये सुनकर हासिदैन इमाम फौरन वहाँ पहुँच गए। और इमाम
साहब और उस औरत को खलीफा के पास ले गए। खलीफा ने इमाम
साहब और उस औरत को जेल में बन्द कर दिया और कहा के सुबह
फैसला किया जाएगा। इमाम आजूम सारी रात जेल में नफिल पढ़ते रहे।
वो औरत ये देखकर बड़ी शर्मिंदा हुई और इमाम साहब के कदमों में
गिर गई और असल वाक्ेया अर्ज करके माफी मांगने लगी। इमाम साहब
ने फरमाया। अब तुम यूं करो के दारोगा जेल से किसी बहाने इजाजृत
लेकर बाहर निकलो और सीधी मेरे घर जाओ और उम्मे हम्माद ( जोजा
इमाम ) को सारा किस्सा सुनाओ। और अपनी जगह उसे यहाँ भेज दो।
चुनाँचे वो औरत उठी और दारोगा जेल से किसी बहाने इजाजृत लेकर
बाहर निकली और दिन चढ़ने से पहले ही हजुरत इमाम की जोजा को
जेल में भेज दिया। सुबह हुई तो इमाम साहब के जुमला हासिद अदालत
में पहुँच गए। खलीफा के हुक्म से इमाम साहब और औरत को बुलाया
गया और खलीफा ने इमाम साहब से कहा।
‘खलीफा:- ऐ अबु हनीफा! कया आपको एक अजनबीया औरत से बन्द
मकान में खलबत जायज थी?
इमाम आजम:- किस औरत के साथ?
खुलीफा:- ये जो सामने बैठी है। ।
इमाम आजूम:- उम्मे हम्माद के वालिद को बुलाया जाए ( चुनाँचे इमाम
साहब के खुस्र को बुलाया गया। )
इमाम आजूम:- ( वालिद उम्मे हम्माद की तरफ् ५0288 होकर )
जनाब जुरा इस औरत का घूंघट उठा कर पहचानिए के ये औरत कौन हैः
-. बालिद हम्मादः- ( घूंघट उठा कर देखते ही ) ऐ खलीफा ये तो के
बेटी है। जिसका निकाह अबु हनीफा से हो चुका है। फिर’ये हंगामा कंसाः
थे बात सुनते ही हासिदेन इमाम धर लिए गए और सख्त जुलील ९
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सच्ची हिकायात 425 हिस्सा दोम
और हजरत इमाम आजुम रजी अल्लाहो तआला अन्ह की इज्जत व अजमत
के नारे बुलंद हुए। ( नुजहत-उल-मजालिस, सफा 83 )
सबक :- हमारे इमाम आजम रजी अल्लाहो तआला अन्ह के हासिद
ह। आम अब भी हैं। और वो नाकाम पहले भी होते रहे और अब
भी ।
हिकायत नम्बर5७) इमाम मालिक व. इमाम आजम
का मुकालमा क्
हजूरत इमाम आजुम रजी अल्लाहो तआला अन्ह एक दिन हजरत इमाम
मालिक रजी अल्लाहो तआला अर के दर्स में तशरीफ ले गए। मगर हजरत
इमाम मालिक ने आपको पहचाना नहीं। और अपने असहाब के सामने एक
मसले पेश किया। जिसका हजरत इमाम आजूम ने बड़ी मुतानत के साथ
जवाब दे दिया। हजरत इमाम मालिक रजी अल्लाहो तआला अन्ह ने आँख
उठा कर आपकी तरफ देखा और फरमाया। ये शख्स कहाँ से आया है?
हजरत इमाम आजम ने खुद ही फ्रमाया जनाब मैं इराक से आया हूँ। इमाम
मालिक न फ्रमाया। निफाक् व शिकाक के शहर वालों में से? इमाम आजम
ने फरमाया। क्या मुझे इजाजत है के क्रआन मजीद से कुछ पढ़ें? फ्रमाया
हाँ। हाँ।। जुरूर पढ़ो। हजरत इमाम आजम ने ये आयत पढ़ी। .
.._ ब मिम्पन होलाकुम् मिनल आराबी मृनाफिक ना व बिन अहलिल
इराकी मराज़ अलात्रिफाकी हजरत इमाम आजम ने अहले अलमदीना
की जगह अहले अलइरारक् दानिसता पढ़ा और उससे आपकी गर्ज इमामे
मालिक पर इलजाम कायम करना था। इमाम मालिक ये सुन कर झर्टे बोल
उठे। के करआन में यूं तो नहीं आया। इमाम साहब ने फरमाया। फिर किस
तरह आया है? फ्रमाया। असल आयत यूं है अहलिल मदीनातिल मराज
अलातन्रिफाकी इमाम आजम ने फ्रमाया। खुदा का शुक्र है के उसने आप
पर खुद इसी बात का हुक्म फ्रमाया जिसकी निसबत मेरी-तरफ् की गई
थी। ये कहकर आप झट पट इस मजलिस से निकल आए। इमाम मालिक
को जब॑ ये मालूम हुआ के वो इमाम अबु हनीफा थे तो आपने उन्हें बुलाया
और बड़ी इज्जत व तकरीम से पेश आए। ( नुजहत-उल-मजालिस, सफा
॥9, जिल्द 2 )
सबक्:- हमारे इमाम आजूम रजी अल्लाहो अन्ह को अल्लाह तआला
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सच्ची हिकायात 426 क् हिस्सा दोम
ने हाजिर जवाबी का एक खास मल्का अता फ्रमाया था।.और बड़े बड़े
मोहद्दिस व इमाम भी आपकी इज्जत करते थे।
हिकायत नम्बर७५ दुल्हनों की तबदीली
एक शख्स ने अपने दो बेटों का निकाह दूसरे शख़्स की दो बेटियों
से किया। और दूसरे रोज दावत वलीमा में उलमा को भी मदऊ किया।
हजरत इमाम आजम रजी अल्लाहो तआला अन्ह भी तशरीफ ले गए।
उन बेटों का बाप बड़ी परेशानी के आलम में मकान से बाहर निकला
और अर्ज करने लगा। हम लोग बड़ी मुसीबत में पड़ गए। रात गृल्ती से
दुल्हनें बदल गईं। बड़े की दुल्हन छोटे के कमरे में और छोटे की बड़े
के कमरे में गृल्ती से चली गई। सुबह हुई तो इस गृल्ती का इल्म हुआ।
‘फ्रमाइये अब क्या हो? हजरत सफयान ने कहा। कोई मुजायका नहीं। ये
वती बिलशुबह है। दोनों भाईयों पर सोहबत की वजह से मेहर वाजिब
हो गया और आज दोनों बहनें अपने अपने शौहरों के पास चली जायें।
हजरत इमाम साहब खामोश थे। मसअर ने आप से कहा। आप फरमाईये।
सफंयान ने कहा। इसके सिवा और क्या कहेंगे। हजरत इमाम साहब ने
“फरमाया के मेरे पास दोनों लड़कों को लाओ। चुनाँचे दोनों लड़के लाए
गए। आपने हर एक से पूछा। के रात तुम जिस औरत के पास रहे हो तुम
को पसंद है। दोनों ने कहा हाँ। आपने फ्रमाया। तुम दोनों अपनी अपनी
बीवियों को तलाक् दो। और जिसके पास जो औरत सोई है वो उसी के
साथ शादी कर ले। चुनाँचे उसी जगह उन दोनों ने अपनी अपनी बीवियों
को तलाक दे दी और चूंके अपनी बीवी से किसी ने भी सोहबच्त ना
को थी इसलिए इचद्दत तो उन पर वाजिब ही ना थी। इसलिए वहीं उनका
निकाह भी हो गया। ( जवाहर-उल-बयान, सफा &)
सबके :- हमारे इमम हम्माम की दानाई और दूरबीनी काबिले
दादं हैं। गौर फ्रमाइये के इस मुश्किल सूरते हाल को आपने किस खुश
असलूबी से सुलझाया। आपकी यही वो फिक्ह व दानाई है जिसकी
बदौलत आपने अल्लाह व रसूल के इर्शादात के मुताबिक मसायल
शरीया को मुदव्वन फरमाया। और आज हम आपकी खुदाद समझ की
बदौलत हजारों मुश्किल मसायल का हल कुतब फिकह में पा लेते हैं
फिर किस क॒द्र अफसोस है इस शख्स पर जो बजाए ममनून होने के
हजूरत पर जुबान तान दराजु करता है। द
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सच्ची हिकायात 427
हिकायत नम्बर७७) रोशन दान
काजी इब्ने अबी यअला की अदालत में एक शख्स ने दरख्वास्त दी। के
अपनी दीवार में एक रोशनदान बनाना चाहता हूँ लेकिन मेरा पड़ोसी मुझे
रोकता है। पड़ोसी को बुलाकर काजी साहब ने जब उसकी वजह दरयाफ्त
की तो उसने कुछ ऐसी वजूहात पेश कीं। जिनकी बिना पर काजी साहब ने
३०3 बनाने की इजाजत ना दी। और फैसला मुद्दा अलिया के हक में
दिया।
हजूरत इमाम को जब ये खुबर हुईं तो आपने उस आदमी से फ्रमाया
के अब तुम अपनी दीवार गिरानी की दरख़्वास्त करो। और जिस दीवार में
रोशनदान बनाना चाहते हो। उसी को गिरा दो। उस शख्स ने यही दरख्वास्त
दी। चूंके हर शख़्स को अपनी दीवार गिराने का हक् है। इसलिए काजी साहब
ने दीवार गिराने की इजाजत दे दी। इस शख्स ने इस इजाजत के बाद दीवार
गिराने का एलान कर दिया।
इस एलान को सुनकर पड़ोसी घबराया हुआ काजी साहब के पास
आया। और कहा के जनाब अब तो वो दीवार गिरा रहा है। इसलिए उसे
रोशनदान बनाने की इजाजत दे दीजिए के मेरे लिए ये उससे ज़्यादा आसान
है। काजी साहब समझ गए और खुशी से रोशनदान बनाने की इजाजत दे दी।
(जवाहर-उल-बयान, सफा 88 )
सबक:- हमारे इमाम हम्मा मरजओ खुलायक थे और जो भी आता
था अपनी मुराद पा लेता था। और आप बेहतरीन तदबीर व हिकमत के
मालिक थे। |
हिकायत नम्बर७:0 तेंदबीर व हिकमत
हजरत इमाम आजुम रजी अल्लाहों तआला अन्ह के पड़ोस में एक
जवान रहता था। उसने हजरत इमाम साहब से एक रोज अर्ज किया। हजर
मैं जहाँ शादी करना चाहता हूँ। वो लोग मेरी मुलाकात से ज़्यादा ऐ६२ तलब
करते हैं। फरमाइये मैं क्या करूँ? आपने इसतखारा किया। और उसे वहाँ
शादी करने की इजाजत दे दी। चुनाँचे उस शख्स ने शादी कर ली। उसके
बाद लड़की वालों ने कुल मेहर अदा किए बगैर लड़की रूख़्तत करने से
इंकार कर दिया। इमाम साहब ने फ्रमाया। तुम किसी से कर्ज हासिल करो।
और मेहर अदा कर दो। चुनाँचे उसने कुछ लोगों से कर्ज लिया। मिनजुमला
9०९06 099 (थ्वा]5८शाशश’
हिस्सा दोम
सच्ची हिकायात 428 हिस्सा दोम
और कर्ज देने वालों के आप ने भी उसको कर्ज दिया। और उसने मेहर अदा
कर दिया। और उन्होंने लड़की की रूख़्सती कर दी। दूसरे रोज आपने उससे
फ्रमाया। के अब तुम अपने सुसराल वालों से अपना इरादा जाहिर करो के
मैं अपनी बीवी को लेकर एक दूरदराज् जगह जाना चाहता हू। चुनाँचे उसने
ऐसा ही किया। उसके सुसराल वालों ने ये सुना तो बहुत परेशान हुए और
हजरत इमाम साहब के पास हाजिर हुए। और उस शख्स को शिकायत की।
और उस बारे में फतवा चाहा। आपने फरमाया के शौहर को इख़्तियार है के
जहाँ चाहे अपनी बीवी को ले जाए। उन लोगों ने कहा। मगर हम से ये नहीं हो
सकता के लड़की हम से जुदा हो जाए। आपने फ्रमाया। तो तुम ने जो कुछ
उससे लिया है वो उसे वापस करके उसको राजी कर लो। वो लोग इस पर
राजी हो गए। आपने अपने पड़ोसी जवान को बुलाया। और फरमाया के ये
लोग इस बात पर राजी हैं के जो उन्होंने मेहर तुम से लिया है तुम को वापस
कर दें और तुम अपने इरादे को तर्क कर दो। वो शख्स मौके से नाजायज
फायदा उठाने के लिए बोला मैं तो उससे ज़्यादा लूंगा। इमाम साहब ने जो
सुना तो उससे फ्रमाया ये बात मंजर करते हो। या किसी कर्ज ख़्वाह का
तुम पर ये दावा। के उसने मेरा कर्ज देना है। और तुम जब तक उसका कर्ज
अदा ना कर लो बाहर जा ही ना सको। ये मंजर करते हो? उसने अर्ज किया।
खुदा के वास्ते हुजर! इस बात का जिक्र भी ना फरमाइये। वरना वो लोग सुन
पायेंगे तो मुझे कुछ भी ना देंगे। ( जवाहर-उल-बयान, सफा 9 और लतायफ
इलमिया किताब-ठल-अजूकिया, सफा ॥99 )
सबक: – हजरत इमाम आजम रजी अल्लाहो तआला अन्ह बहुत बड़े
मुदब्बिर और हकीम थे। और आपके नाखन तदबीर से कई उक्दे हल हुए। ये
भी मालूम हुआ के मेहर शौहर की ताकत से ज़्यादा मुक्र॑र ना करना चाहिए।
उससे कई किस्म की कबाहतें पैदा जो जाती हैं।
हिकायत नम्बर) गुमशुदा खज़ाना
. इमाम आजम अलेह अर्रहमत के जमाने में एक शख्स अपना कुछ माल
जमन में दफ्न करके भूल गया। और इमाम साहब की खिदमत में हाजिर
हुआ। और वाकेया अर्ज किया। हजुरत इमाम साहब ने फ्रमाया। जाओ!
आंज तुम सारी रात नमाज पढ़ते रहो। तुम्हें याद आ जाएगा के माल तुम ने
कहाँ दबाया है। चुनाँचे वो शख़्स गया। और रात को उसने नमाज पढ़ना शुर्रू
की अभी चन्द रकात ही पढ़ी थीं के उसे याद आ गया के माल कहाँ दबाया
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सच्ची हिकायात | 429 हिस्सा दोम
है। बड़ा खुश हुआ और सुबह इमाम साहब की खिदमत में हाजिर होकर
कहने लगा के हुजर! आपने ये तदबीर कैसे इर्शाद फ्रमाई? फ्रमाया। मुझे
मालूम था के शैतान तुझे रात भर नमाज ना पढ़ने देगा! और तुझे तेरा माल
याद दिला देगा। ताके तू नमाज छोड़ दे। अफसोस के तूने शुक्रिया में रात भर
नमाज क्यों ना पढ़ी? ( लतायफ इलमिया किताब-उल-अजुकिया, सफा ॥44,
जवाहर-उल-बयान, सफा % )
सबक: इंसान मुश्किल के वक्त खुदा याद भी बन जाता है। मगर
मुश्किल टल जाने के बाद फिर वही बेढंगी चाल इख़्तियार कर लेता है और
ये बात बड़ी अफसोसनाक है ऐसा नहीं होना चाहिए।
हिकायत नम्बर७४) दामाद
हजरत इमाम आजम रजी अल्लाहो तआला अन्ह के जमाने में एक
शख्स अमीर-उल-मोमिनीन हजरत उस्मान रजी अल्लो तआला अन्ह से बड़ी
दुश्मनी रखता था। हत्ता के हजरत उस्मान रजी अल्लाहो तआला अन्ह को
( मआज् अल्लाह ) यहूदी कहता था। हजरत इमाम साहब को इस बात का
इल्म हुआ तो आपने उसे बुलाया। और उससे फ्रमाया के मैंने तुम्हारी लड़की
के लिए एक मुनासिब रिश्ता तलाश किया है। लड़के में हर किस्म की खूबी
मौजूद है। सिर्फ इतनी सी बात है के वो लड़का यहूदी है। उस शख्स ने जवाब
दिया। के बड़े अफसोस की बात है के आप इतने बड़े इमाम होकर एक
मुसलमान लड़की का निकाह ये यहूदी से जायज समझते हैं। में तो हरगिज
इस निकाह को जायज नहीं समझता। हजरत इमाम ने फ्रमाया सुबहान
अल्लाह! तुम्हारे जायज ना समझने से ऐसा है। जब के खुद हुज॒रः सरवरे
आलम सल-लल्लाहों तआला अलेह व सल्लम ने अपनी दो साहबजादियों
का निकाह एक यहूदी से कर दिया था। वो शख़्स फोरन समझ गया के हजरत
इमाम किस बात की हिदायत फ्रमा रहे हैं चुनाँचे उस वक्त उसने हजरत
उस्मान रजी अल्लाहो तआला अन्ह की जाते पाक के मुतअल्लिक् खयाल
बातिल से तौबा की। और हजरत इमाम आजम की बर्कतों से माला माल हो
गया। ( तज॒करत-उल-औलिया, सफा 202
सबक :- हमारे इमाम आजुम बहुत बड़े इमाम और हादी थे और ये
भी मालूम हुआ के हजुरत उस्मान रजी अल्लाहो तआला अन्ह की शान में
कोई गुसताखी दरअसल हुजर सरवरे आलम सल-लल्लाहो तआला अलेह
व सलल्लम की शान में गुस्ताखी है। पा
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सच्ची हिकायात 430 मियाँ हिस्सा दोम
…. हिकायत नम्बर» मियां बीवी
हजरत इमाम आजम रजी अल्लाहो तआला अन्ह के जमाने में एक मियां
बीबी में किसी बात पर रंजिश पैदा हुई। तो मि्याँ ने गुस्से में कह दिया के
तुम से कलाम ना करूंगा। जब तक तू मुझ से पहले कलाम ना करे। बीबी ने
भी कसम खा ली और कहा के खुदा की कुसम मैं भी तुम से कभी
ना करूंगी जब तक तू मुझ से पहले कलाम ना करे। उसके बाद दोनों ने एक
दूसरे को बुलाना छोड़ दिया। और बड़ी मुश्किल में पड़ गए। आखिर मियां
एक दिन इमाम आजम के पास हाजिर हुआ। और सारा वाकेया सुनाया
इमाम साहब ने वाक्रेया सुनकर फ्रमाया के जाओ एक दूसरे को राजी खुशी
बुलाओ। तुम में से कोई हानिस ना होगा। इसलिए के जब तुम ने ये कहा था
के मैं तुम से कलाम ना करूंगा। जब तक तू मुझ से कलाम ना करे। तो उसके
बाद अगर औरत खामोश रहती तो बेशक तुम हानिस होते। मगर जब उसने ये
कहा के खुदा की कसम मैं भी तुम से कलाम ना करूंगी। जब तक तू मुझ से
कलाम ना करे। तो उसने तुम्हारी कुसम के बाद तो तुम से कलाम कर लिया।
लिहाजा अब तुम उसे बुला सकते हो। ( जवाहर-उल-बयान, सफा 5)
सबक्:- इमाम आजम रजी अल्लाहो तआला अन्ह का दिमाग वहाँ
पहुँचता था जहाँ बड़े बड़े मोहद्दिसों का दिमाग भी नहीं पहुँचता।
हिकायत नम्बर) चोरों का सुराग
एक शख्स के घर में चोर घुस आए। घर वाले की आँख खुल गई और
उसने चोरों को देख लिया। चोरों ने इस डर से के ये कहीं सुबह पकड़वा दे।.
उसे दबोच लिया। और उससे कहा के तुम यूं कहो के अगर मैंने किसी को
बताया के ये लोग मे मेरे चोर हैं तो मेरी बीवी.पर तीन तलाकु। घर वाला
बेचारा मजबूर था। उसने ये हलफ उठा लिया और कह दिया के अगर मैं
किसी को बताऊँ के ये लोग मेरे चोर हैं। तो मेरी बीवी पर त्तीन तलाक चोर
ये कहलवा कर उसका माल व असबाब ले गए। अब सुबह हुई तो वो-शख़्स
चोरों को देखता रहा। मगर हलफ बिलतलाक् की वजह से बोल ना सकता
था। आखिर वो हजरत इमाम आजुम रजी अल्लाहो तआला अन्ह के पास
आया। और पूरा वाक्या अर्जु करके कहने लगा के हुजर! चोरों को मैं भी
अच्छी तरह पहचानता हूँ। मगरं वो जालिम मुझ से ये कसम ले चुके हैं। के
अगर मैं किसी को बंताऊँ के ये लोग मेरे चोर हैं। तो मेरी बीवी पर तीन
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सच्ची हिकायात 43॥ हिस्सा दोम
तलाक। आपने मोहल्ले के मोअज्जिज और जी जाह लोगों को जमा किया
और उनसे फरमाया के इस बेचारे के मामले में मदद करो और शहर के जितने
बदचलन और मुतहिम लोग हैं। उनको एक हवेली में जमा करो। चुनाँचे उन
लोगों ने शहर के जिस कुद्र बदचलन लोग थे। उन सब को एक हवेली में
जमा किया। और फिर हजरत इमाम ने उस शख्स से जिसके घर चोरी हुई थी
फरमाया के तुम हमारे साथ दरवाजे पर खड़े हो जाओ। हम एक एक शख्स
को बाहर करते जायेंगे। और तुम से पूछते जायेंगे के क्या ये है तुम्हारा चोर?
अगर बो चोर ना हो तुम “नहीं” कहते. रहना। और अगर चोर हो तो चुप
हो जाना। कुछ मत बताना। क््योंके तुम्हारी कूसम ये है के अगर मैं बताऊँ के
ये लोग मेरे चोर हैं तो मेरी बीवी पर तीन तलाकु। उस शख्स ने कहा। बहुत
अच्छा। चुनाँचे हवेली में से एक एक शख्स को निकाला जाने लगा और हर
शख्स के मुतअल्लिक् उससे पूछा जाने लगा के क्या ये है तुम्हारा चोर? तो
वो सबके मुतअल्लिक् “नहीं” कहता रहा। और जब उसका चोर आ जाता
तो वो चुप कर जाता। और लोग उसे पकड़ लेते। इस तरह सारे चोर पकड़े
गए और वो शख्स तलाक् की मुश्किल से भी बच गया। ( लतायफ इलमिया
किताब-उल-अजूकिया, इमाम इब्ने जोजी, सफा 38)
सबक्:ः- हमारे इमाम हम्माम को अल्लाह ने दीन व दुनिया की
बेहतरीन समझ अता फरमाई थी। और आप मुश्किल से मुश्किल गुथ्थी पल
भर में सुलझा लेते थे।
हिकायत नम्बर७8) चाह किनारा चाह दुरवेश
खलीफा मनसूर का हाजिब रबीअ हजरत इमाम आजूम रजी अल्लाहो
तआला अन्ह का बड़ा दुश्मन था। एक रोज हजरत इमाम आजम को खलीफा
ने बुलाया और आप तशरीफ ले गए तो रबीअ ने खूलीफा से कहा के ऐ
अमीर-उल-मोमिनीन! ये. अबु हनीफा आपके दादा हजरत इब्मे अब्बास रजी
अल्लाहो तआला अन्ह की मुखालफत करते हैं। हजरत इब्मे अब्बास का ये
कौल था के किसी मामले में हलफ करने वाला अगर इस हलफ से एक या
दो दिन बाद भी इंशा अल्लाह कह दे। तो वो हलफ कायम नहीं रहता। और
इमाम आजम का ये कौल है के हलफ के साथ मुतासल्लन ही इंशाअल्लाह
कहे। तो हलफ पर असर अंदाज होगा। बाद में मोतबिर ना होगा। इमोम
आजम ने फरमाया। ऐ अमीर-उल-मोमिनीन! रबीअ ये चाहता है के आपके
लश्कर की गर्दन को आपकी बैत व इताअत से आजाद कर दे। मनसूर ने
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सच्ची हिकायात – 432 हु हिस्सा
पूछा। ये कैसे? आपने फरमाया के लोग आपके सामने तो हलफ उठा जा
के हम आपकी इताअत करेंगे। और घर जाकर इंशा अल्लाह कह देंगे
और आपकी इताअत से आजाद हो जायेंगे। मनसूर सुनकर हंसने लगा
रबीअ से कहा। ऐ रबीअ! अबु हनीफा को कभी ना छेड़ना। फिर जब
साहब बाहर आए तो रबीअ ने आपसे कहा। आज तो आप मुझे मरवाने है
लगे थे। आपने फ्रमाया इब्तिदा तो तुम ही ने की थी। ( लतायफ इलमिया
किताब-उल-अजूकिया, सफा 440, अलखैरात-उल-हस्सान, सफा ॥0)
सबक: – हमारे इमाम के बड़े बड़े दुश्मन थे। और आपके साथ दुश्मनी
के मुजाहरे करते थे। मगर हजुरत इमाम साहब अपनी खुदादाद काबलियत
से उनकी दुश्मनी का असर उन्हीं पर लौटा देते थे।
हिकायत नम्बर) तूसा का जवाब
अबु जाफर मनसूर के दरबार में हजरत इमाम को गैर मामूली एजाज
हासिल था। इस सबब से मनसूर के हाशिया नशीन हजरत इमाम साहब से
सख्त बुग्ज रखते थे। और इसी जज़्बे के मातेहत एक दिन अबु अलअब्बास
: तूसा ने दरबार में हजरत इमाम से सवाल किया। के अबु हनीफा! बताइये के
अगर अमीर-उल-मोमिनीन हम में से किसी को हुक्म दें के फलाँ आदमी की
गर्दन मार दो और उसके कसूर और जुर्म से हम लोग बिलक्कुल बे खबर हैं
तो ऐसी सूरत में गर्दन मारनी जायज होगी या नहीं?
हजरत इमाम बरजस्ता फ्रमाया के मैं तुम से पूछता हूँ के
अमीर-उल-मोमिनीन सही हुक्म देते हैं या गलत?
तूसा ने कहा। भला अमीर-उल-मामिनीन गुलत हुक्म क्यों कर दे सकते हैं।
इमाम ने फ्रमाया। फिर सही हुक्म की तामील में तरहुद कैसा? बेचारे
तूसा इस जवाब से अपना सा मुंह लेकर रह गए। ( अलखैरात-उल-हस्सान,
सफा 40)
सबक :- अल्लाह वालों के हासिद चाहते हैं के अल्लाह वालों की
इज्जृत घटे। मगर वो अल्लाह वालों का कुछ नहीं बिगाड़ सकते। इसी तरह
हमारे इमाम के हासिदैन ने बड़ी बड़ी चालें चलीं। मगर हमारे इमाम का
ना बिगाड़ सका।
. हिकायत नम्बर७७) मोर का चोर _
इमाम आजूम अलेह अर्रहमत के एक पड़ोसी का मोर किसी ने चर
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सच्ची हिकायात 433 हिस्सा दोम
लिया। वो हजरत इमाम के पास आया। और मोर की चोरी का जिक्र
किया। आपने फ्रमाया चुप रहो। फिर मस्जिद में तशरीफ लाए। जब
सब लोग नमाज के लिए जमा हुए तो आप ने फ्रमाया। कया वो शख्स
जो अपने पड़ोसी का मोर चुराता है। शर्माता नहीं। के मोर चुराता है
और फिर आकर नमाज इस हाल में पढ़ता है के उसके सर मोर के पर
का असर होता है। ये सुनते ही एक शख्स ने अपना सर छुपाया। आपने
फ्रमाया। तू ही मोर का चोर है। उसे उसका मोर दे दे। उसने उसी वक्त
मोर ला दिया। ( अलखैरात-उल-हस्सान, सफा ॥02)
सबकः:- हजरत इमाम आजम रजी अल्लाहों तआला अन्ह एक बहुत
बड़े सियासत व हिकमत के भी मालिक थे।
हिकायत नम्बर७७) आटा
हजरत अमश रहमत-उल्लाह अलेह एक बहुत बड़े मोहद्दिस थे। और
इमाम आजूम रहमत-उल्लाह अलेह के हम अस्र। हजरत अमश का एक रोज
अपनी बीवी से झगड़ा हो गया। आप बड़े तेज मिजाज थे। आपने तेज मिजाजी
में अपनी बीवी से ये कह दिया के तुम ने अगर मुझे घर में आटा खत्म हो जाने
की जुबानी खबर दी। या लिख कर बताया। या पैगाम भेजा। या दूसरे शख्स
से इस बात का जिक्र किया। ताके वो मुझ से जिक्र करे। या उसके बारे में
इशारा किया तो तुझ पर तलाक्! आपकी बीवी इस मामले में बड़ी हैरान हुई।
तो किसी ने उनसे कहा। के इमाम अबु हनीफा की खिदमत में हाजिर होकर
कोई हल दरयाफ्त कीजिए। चुनाँचे हजरत ओग्श की बीवी हजरत इमाम
आजूम रजी अल्लाहो तआला अन्ह के पास अ ई। और सारा वाक्या अर्ज
किया। इमाम साहब ने फरमाया। के जब आटे का चर्मी थेला खाली हो जाए
तो उस चर्मी थेले को उनके सोते हुए उनके कपड़ों से बाँध देना। जब बैदार
होंगे और उसे देखेंगे तो आटे का खत्म हो जाना उनको मालूम हो जाएगा।
उन्होंने ऐसा ही किया। तो हजरत अमश आटे के खत्म हो जाने को समझ
गए। और कहने लगे। खुदा की कसम ये हजरत इमाम अबु हनीफा के हीलों
में से है। आप जिंदा हैं। तो हम केसे फलाह पायेंगे। आप तो हमारी औरतों के
सामने हम को रूसवा करते हैं। के उनको हमारा आजिज होना और हमारी
समझ का जौफ दिखाते हैं। ( जवाहर-उल-बयान फी तर्जुमात-उल-खैरात
अलहस्सान, सफा 02)
सबके :- हमारे इमाम हम्मा इमाम आजुम रजी अल्लाहों तआला
ए्थ्ावाटत एज (था5टका।श’
सच्ची हिकायात 34 … हिस्सा दोम
अन्ह के इल्मी व फिक॒ही शिकवा. और दबदबे का एत्राफ बड़े बड़े
मोहद्दिसों को भी था। 5
हिकायत नम्बर७७) पियाले का पानी…
इमाम आजूम अलेह अर्र॑हमत के जूमाने में एक शख्स ने अपनी बीवी से
पानी मांगा। वो पियाले में पानी लाई। अभी वो ला हो रही थी के किसी बात
पर रंजीदा होकर खाबिंद ने कहा। के मैं ये पानी ना पियूंगा। और अगर तू इस
पानी को खुद भी पिये तो तुझ पर तलाक्। और अगर उसे किसी दूसरे को
पीने के लिए दे तो भी तुझ पर तलाक्। और अगर उसे बहा दे तो भी तुझ पर
तलाक। वो औरत बेचारी बड़ी हैरान हुई। एक शख्स हजरत इमाम साहब के
पास आया और ये सूरत बयान की। आपने फरमाया। फौरन जाओ और उस
पियाले में कोई कपड़ा डाल कर पानी को उस कपड़े में जज़्ब करके उसे धूप
में सुखा दो इस तरह तलाक ना पड़ेगी। ( अलखैरात अलहस्सान, सफा ॥04)
सबक :- परवरदिगारे आलम ने हजरत इमाम आजम रजी अल्लाहो
तआला अन्ह को अपने फज्लो करम से एक खास समझ अता फरमाई थी।
जिसकी बदौलत आप ऐसे ऐसे मसायल को जिनकी तेह तक आज कोई
बड़े से बड़ा फलसफी भी नहीं पहुँच सकता। पल भर में हल फरमा लेते थे।
फिर अगर कोई शख्स जिसे “दो दूनी चार” भी ना आता हो। हजरत इमाम
आजूम रजी अल्लाहो तआला अन्ह के इल्मो फज्ल पर एत्राज करे तो किस
कृद्र अफसोस का मुकाम है? ४…
हिकायत नम्बर मुर्गी का अंडा…
इमाम आजम अलेह अर्रहमत के जमाने में एक शख्स ने कसम खाई
के अंडा ना खाऊँगा। फिर कसम खाई के मेरे दोसत की आसतीन में जो
चीज है वो जुरूर खाऊँगा। और दोस्त ने आंसतीन से जब वो चीज निकाली
तो वो अंडा ही था। अब वो हेरान हुआ और हजरत इमाम साहब के पास
आया। इमाम साहब ने फरमाया। ये अंडा किसी मुर्गी के नीचे रख दो। जब
बच्चा हो जाए तो वो बच्चा पका कर खा लो कृसम्त ना टूटेगी। ( अलखैरात
अलहस्सान , सफा ॥5)
सबक्:ः- हजरत इमाम आजूम की हर बात सुनकर इल्मी इनबिसात
पैदा होता हैं और. अक्ले सलीम का मालिक पुकार उठता है के इमाम आजूम
बाई इमाम आजुम हैं। रजी अल्लाहो तआला अन्ह .
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सच्ची हिकायात … 435 हिस्सा दोम
हिकायत नम्बर) अंगूठी का नकश ..
एक शख्स के पास एक अंगूठी का नगीना था। जिस पर किसी दूसरे
शख्स का नाम “अता बिन अब्दुल्लाह ” नकश था। वो सारा नाम इस पर से
मिटाना सख्त मुश्किल था। उसने हजरत इमाम साहब से मशवरा लिया तो
आपने फ्रमाया। तुम “बिन” का सर गोल बना दो और “बे” के नुक्ते को
जेर बना लो। और अब्दुल्लाह का नुक्ता नीचे से ऊपर ले आओ। तो “अता
मिन इंदल्लाह ” हो जाएगा। ( अलखैरात अलहस्सान, सफा 26)
सबक :- हमारे इमाम आजम रजी अल्लाहो तआला अन्ह का इल्म व
फज्ल भी ‘अता मिन इंदल्लाह” था और आप से किसी किस्म की पर खाश
रखना खुदा की नाराजगी का मौजिब है।
हिकायत नम्बर७७ गलत परोपागंडां
एक दफा हजरत इमाम साहब रजी अल्लाहो तआला अन्ह मदीने
मुनव्वरह हाजिर हुए तो हजरत अली मुर्तजा करमल्लाहो वजह के पोते हजरत
मोहम्मद हसन रजी अल्लाहो तआला अन्ह की खिदमत में हाजिर हुए। हजरत
मोहम्मद हसन रजी अल्लाहों तआला अन्ह ने फ्रमाया। आप ही वो इमाम हैं
जिनके मुतअल्लिक मैंने सुनां है के वो मेरे जद्दे अमजद हुजर सल-लल्लाहो
तआला अलेह व सल्लम की हदीस की अपने कयास के साथ मुखालफत
करते हैं। इमाम आजम अलेह अरहमत ने फरमाया मआज अल्लाह! ये कैसे हो
सकता है। आप तशरीफ रखें। इसलिए के आपके लिए अज॒मत व तौकीर है।
जिस तरह आपके जद्दे अमजद हुज्र सल-लल्लाहो तआला अलेंह व सल्लम
के लिए अजुमत व तौकीर है। हजरत मोहम्मद बिन हसन रजी अल्लाहो
तआला अन्ह तशरीफ फ्रमा हुए। इमाम आजूम ने फ्रमाया। फ्रमाइये! मर्द
जईफ या औरत! उन्होंने फ्रमाया औरत! फ्रमाया औरत का हिंस्सा किस
क॒द्र है? उन्होंने फरमाया। मर्द के हिस्से का आधा। इमाम साहब ने फ्रमाया
अगर मैं क्यास को तरजीह देता तो उसके बरअक्स हुक्म देता। और यूं कहता
के मर्द चूंके कौमी है इसलिए उसका हिस्सा कंम हो और जो जुईफ है उसका
हिस्सा ज़्यादा हो। “5 ० शक के 0 या ये
: … फिर पूछा! नमाज अफ्जल है या रोजूा? उन्होंने फ्रमाया। नमाज!
‘फ्रमाया! नमांज! फ्रमाया और हायजा औरत जब पाक हो जाए तो वो
नमाजें क॒जा पढ़ेगी। या क॒जा रोजे रखेगी? उन्होंने फ्रमाया। रोज़ों की क॒जा
222॥0॥॥ ४ | छए (_ध्ात9८क्वा॥द
सच्ची हिकायात 436 हिस्सा दोम
करेगी। आपने फरमाया। अगर मैं कूयास से काम लेता तो हायजा औरत को
नमाज की कजा का हुक्म देता ना के रोजे का।
फिर आपने पूछा। के फ्रमाइये पैशाब ज़्यादा नजिस है या मनी? उन्होंने
फ्रमाया। पैशाब! आपने फ्रमाया। अगर मैं क्यास को मुकदम करता तो
पैशाब निकलने से गुस्ल वाजिब बताता। ना के मनी निकलने से।
हजरत इमाम मोहम्मद बिन हसन रजी अल्लाहो तआला अन्ह ने आपकी
पैशानी चूम ली और फ्रमाया मालूम हो गया के आपके मुतअल्लिक् गुलत
खयाल फैलाया गया है। ( जवाहर-उल-बयान, सफा ॥6 )
. सबक्ः- मालूम हुआ के जो लोग ये कहते हैं के इमाम आजम
रजी अल्लाहों त्तआला अन्ह हदीस के मुकाबले में राय पर चलते और
चलाते हैं और हदीस पर कयास को तरजीह देते हैं वो बिलकुल गृलत
कहते हैं। और ये मुखालफीन का महज् एक गुलत परोपागंडा है। वरना
हजरत इमाम आजूम रजी अल्लाहो तआला अन्ह का हर इशाद कुरआन
व हदीस के पेशे नजर। और आपका हर मसला क्रआन व हदीस ही से
: मुसतनबित है। द डा
हिकायत नम्बर४9 दीनारों भरी थेली
एक शख्स मरने लगा। तो उसने अपने एक दोस्त को बुलाया। और
एक थेली उसके सपुर्द की। जिसमें हजार दीनार थे। और कहा के मेरा
लड़का जब बड़ा हो जाए तो इस थेली से “जो तू पसंद करे” उसे दे
देना। ये कंह कर वो मर गया और जब उसका लड़का बड़ा हुआ तो उस
शख्स ने उसे खाली थेली दे दी और हजार दीनार खुद रख लिए। लड़का
हजरत इमाम आजम अलेह अर्रहमत के पास पहुँचा और सारा वाकेया
सुनाया। आपने उस शख्स को बुलाया। और फरमाया के हजार दीनार
इसके हवाले कर दो। इसलिए के उसके वालिद ने मरते दम तुझ से ये
कहा,था के इस थेली से “जो तू पसंद करे ” उसे दे देना। और इस थेली
से तुम ने दीनारों ही को पसंद किया है। इसी लिए तुम ने उन्हें रख लिया
है। लिहाजा दीनार जो तूने पसंद किए हैं।
, हस्बे वसीयत इसे दे दो। चुनाँचे नाचार उसे वो दीनार देने पड़े।
( जवाहर-उल-बयान, सफा ॥08 ) | ह
‘सबक्:- अमानत में खयानत ना करना चाहिए। और यतीमों का माल
दबाना बडे जुल्म की बात:है और ये भी मालूम हुआ के हमारे इमाम अलेह
9९९06 099 (थ्वा]5८शाशश’
सच्ची हिकायात हिस्सा दोम
अरहमा बड़े ही दाना और मुश्किलात को हल फ्रमा देने वाले थे।
हिकायत नम्बर0») एक आराबी और सत्तू
हजरत इमाम आजम अलेह अर्हमत एक मर्तबा कहीं तशरीफ लिए
जा रहे थे असना राह में आपको पानी की जृरूरत पड़ी। इतने में एक
आराबी नजर आया। जिसके पास पानी का एक मशकीजा था। आपने
उससे पानी तलब फ्रमाया। तो उसने इंकार किया। और कहा। पाँच दरहम
में दे दूंगा। हजरत इमाम साहब ने पाँच दरहम देकर मशकीजा उससे ले
लिया और आपके पास सत्तू थे। आपने उस आराबी से फ्रमाया के अगर
सत्तू खाना हो तो शौक् से खाओ। उस आराबी ने वो सत्तू जिन में रोगने
जैतून भी मिला हुआ था। पेट भर के खा लिए। अब उसको प्यास लगी।
तो उसने कहा के एक पियाला पानी दीजिए। आपने फ्रमाया पाँच दरहम
में मिलेगा। उससे कम नहीं होगा उस बेचारे को प्यास लगी थी। नाचार
उसने पाँच दरम देकर एक पियाला पानी पी लिया और इमाम साहब को
अपने दरहम भी वापस मिल गए और उनके पास बाकी भी रह गया।
( लतायफ इलमिया किताब-उल-अजकिया, सफा 440)
सबक्:- खुदा ने जिसे इल्मो हिकमत अता फरमाई हो वो अपनी
हकीमाना तदाबीर से मुश्किलात पर काबू पा लेता है। द
हिकायत नम्बर ७०) खारिजी को जवाब
खारिजियों को शोरिश के जमाने में हज़रत इमाम भी गिरफ्तार हुए।
जोहाक खारिजी के सामने लाए गए। जोहाक ने अपने उसूल के मुताबिक
हजरत इमाम से तौबा करने को कहा।
हजरत इमाम ने फ्रमाया “ अना तायबुन मिन कुल्ली कफारिन” यानी
मैं हर किस्म के कुफ्र से तायब हूँ। ये सुनकर हजरत को खारिजियों ने छोड़
दिया। लेकिन किसी को फिर शरारत सूझी और उसने जोहाक को बावर
कराया के अबु हनीफा के नजृदीक तुम्हारे अकायद काफ्र हैं और उन्होंने उसी
से तौबा की है। दोबारा फिर गिरंफ्तार करके लाए गए। जोहाक ने दरयाफ्त
किया के शेख! हम ने सुना है के जिस कुफ्र से तुम ने तौबा की है वो हमारे
अकायद हैं।
खारिजी सिर्फ करआन को हुक्म मानते थे और उनका अकीदा था के.
हर चीज से अलग होकर सिर्फ करआन से फैसला तलब करना चाहिए।
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सच्ची हिकायात 438 ‘. हिस्सा दोम
हजरत इमाम रजी अल्लाहो तआला अन्ह ने जब देखा के इन जाहिलों से पीछा
छूटना मुश्किल है तो क्रआन ही से उन पर एत्राज फ्रमाया और जोहाक
से पूछा के जो कुछ तुम कह रहे हो वो मेह जुन और गुमान है या हकीकत
को भी उसमें दखल है? क्
. जोहाक ने कहा। सिर्फ गुमान और जुन की बिना पर कह रहा हूँ।
हजरत इमाम ने बरजस्ता आयत तिलावत फ्रमाई के ढन्ना बाजाज़्ज़न्नी
इसमुन यानी बाज जुन ( बदगुमानी ) गुनाह होता है और तुम गुनाह के
इरतिकाब को कुफ्र समझते हो लिहाजा इस गुनाह के इरतिकाब यर तुम खुद
तौबा करो। खारिजी लीडर ने ये सुन कर कहा के तुम सच कहते हो और में
तौबा करता हूँ।” ( जवाहर-उल-बयान सफा 0 )
._ सबक;- हमारे इमाम आजूम रजी अल्लाहो तआला अन्ह इस
कद्ग इल्मो फज्ल के मालिक थे के कोई बद मजृहब और दुश्मन दीन
आपका मुकाबला ना कर सकता था और ये भी मालूम हुआ के जिस
तरह अहले हक को अहले बातिल से तकलीफें पहुँचतीं रहीं। इसी
तरह हमारे इमाम रजी अल्लाहो तआला अन्ह को भी अहले बातिल
ने बहुत सताया। ु द
हिकायत नम्बर७०») सेब का राज
हजरत इमाम आजूम रजी अल्लाहो तआला अन्ह अपने असहाब के साथ
मस्जिद में बैठे थे के एक औरत मस्जिद में दाखिल हुई और उसके हाथ में
एक सेब पकड़ा था। जिसका एक हिस्सा सुर्ख और एक हिस्सा जूर्द था। उस
औरत ने वो सेब हजरत इमाम साहब के आगे रख दिया। और मुंह से कुछ
ना बोली। हजरत इमाम साहब ने इस सेब को चीर कर उसके दो टुकड़े कर
दिए और औरत को दे दिए। औरत वो लेकर चली गई।
हाजरीन इस उक्दे को ना समझे और उन्होंने हजरत इमाम साहब से
पूछा के ये सेब का राज क्या है? आपने फ्रमाया। इस औरत ने मुझ से एक
मसला पूछा था और मैंने उसे जबाब दे दिया। हाजूरीन और भी मुताज्जिब हुए
और वो मसला दरयाफ्त किया! तो आपने फ्रमाया के उसने सेब मेरे सामने
रखकर मुझ से पूछा के उसे जो खून आता है उसका रंग कभी सेब के एक
हिस्से की तरह सुर्ख और कभी दूसरे हिस्से की तरह जार्द होता है तो कया ये
खून हैज् ही है? मैंने सेव को चीर कर उसे ये जवाब दिया के जब तक सेब
के अन्दरूनी हिस्से की तरह उसका रंग बिलकुल सफेद ना होगा। वो खून
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सच्ची हिकायात । – 439 । हिस्सा दोम
हैज ही है। ( रोज-ठउल-फायक्, सफा ॥9)
सबक :- पहले जमाने की औरतें भी बड़ी दाना थीं और मसायल
शरीआ पूछती रहती थीं एक ये जुमाना भी है के औरतों को अपने मखसूस
मसायल का इल्म ही नहीं और ना उसे जरूरी समझती हैं ।
…_ हिकायत नम्बर७७ मेदाने हष्
हजरत नवफ्फिल- बिन हयान रहमत-उल्लाहै हा फरमाते हैं के जब
हजरत इमाम आजम रजी अल्लाहो तआला अन्ह का हो गया तो मेंने
ख़्वाब देखा के मैदाने कृयामत है और सारी मखुलूक् हिसाब गाह में खड़ी है
और मैंने देखा के हुजर॒ सरवरे आलम सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम
होजे कोसर पर तशरीफ फ्रमा हैं और आप सल-लल्लाहो तआला अलेह व
सलल््लम के दायें बायें बड़े बड़े नूरानी लोग खड़े हैं और मैंने एक बूढ़े शख्स
को देखा जो बहुत बड़े साहबे जमाल थे। और उनकी दाढ़ी और सर सफेद
था और हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सलल््लम की दाईं तरफ खड़े
थे और मैंने हजरत इमाम अबु हनीफा रजी अल्लाहो तआला अन्ह को भी
देखा। जो हुजर॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह व सलल्लम के करीब ही खड़े थे।
मैंने हजरत इमाम साहब की खिदमत में सलाम अर्ज किया और अर्ज किया
मुझे पानी अता फ्रमाईये हजरत इमाम साहब ने फरमाया। जब तक रसूल
अल्लाह सल-लल्लाहो तआला अलेह व सलल्लम इजाजत ना देंगे मैं ना दूंगा।
फिर हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम ने फरमाया। उसे पानी दे
दो। हजरत इमाम साहब ने एक पियाला में मुझे पानी दिया। मैंने पानी पिया
और फिर हजरत इमाम साहब से पूछा के ये जो हुजर॒ सल-लल्लाहो तआला
अलेह व सलल््लम की दाईं तरफ पीर मर्द साहबे जमाल हैं ये कौन बुजर्ग हैं?
इमाम साहब ने फ्रमाया। ये हजरत इब्राहीम खुलील-उल्लाह हैं और बाई
तरफ हजरत अबु बक्र सिद्दिक् अकबर रजी अल्लाहो तआला अन्ह हैं। इसी
तरह मैं पूछता रहा और इमाम साहब बताते रहे। ( तज॒करत-उल-औलिया,
सफा 253 ) मुतरजिम सफा 29
सबकः- इमाम आजम रजीं अल्लाहो तआला अन्ह को हुज॒र
सल-लल्लाहो तआला अलेह व सलल््लम की कर्बत हासिल हे और
‘फिका एक ऐसा जामे हिदायत है जो हुजर॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह व
सल्लम की मर्जी के मुताबिक हदीस के सर चश्मा-ए-हिदायत से भर कर
आपने हमें अता फरमाया है।
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सच्ची हिकायात 440 हिस्सा दोम
हिकायत नम्बर७9) हजूरत इमाम शाफई (र०आ० )
का ख्वाब
हजरत इमाम शाफई रजी अल्लाहो अन्ह खुद फरमाते हैं के बचपन में
मैंने हुजर सल-लल्लहो तआला अलेह व सल्लम को ख़्वाब में देखा। हुजूर
सल-लल्लाहो तआला अलेह व सलल्लम ने मुझ से फरमाया। ऐ लड़के! तू
कौन है? मैंने अर्ज किया या रसूल अल्लाह! आपकी उम्मत में से हूँ। हुजर
सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम ने फ्रमाया के क्रीब आ मैं आपके
नजदीक गया तो आपने अपने दहन मुबारक से लुआब मुबारक मेरे मुंह में
डाल दिया। फिर फरमाया के अब जाओ खुदा तआला तुझ पर फज्ल व
बर्कत फरमाए फिर उसके बाद उसी दम हजरत अली रजी अल्लाहो तआला
अन्ह तशरीफ लाए और आपने अपनी अंगश्तरी उंगली से उतारी और मेरी
उंगली में पहना दी। ( तज॒करत-उल-औलिया, सफा 255 )
. सबकः- इमाम-उल-मुस्लिमीन हजरत इमाम शाफई रहमत-उल्लाह
अलेह की बहुत बड़ी शान है और ये हुजर॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह
व सलल्लम के लुआब दहन शरीफ और हजूरत अली अलमुर्तजा रजी
अल्लाहो तआला अन्ह की अंगश्तरी मुबारक की बरकंत है के आप इल्मो
फज्ल के आफताब बनकर चमके और इमाम-उल-मुस्लिमीन होने के
शरफ से मुशर्रफ हुए।
हिकायत नम्बर0७) जुहीन बच्चा
हजरत इमाम शाफई रजी अल्लाहो तआला अन्ह की उम्र शरीफ छः
बरस की थी के आप मदरसे जाया करते थे। आपकी वालिदा माजिदा औलाद
बनी हाशिम में से थीं और बड़ी आबिदा व जाहिदा थीं लोग अनी अमानतें
उनके पास रख जाया करते थे। एक रोज दो शख़्स आए और एक संदूक्
बतौर अमानत उनको सोंपा और चले गए। चन्द दिनों के बाद उनमें से एक
शख्स आया और कहने लगा के संदूक् दे दीजिए। उन्होंने दे दिया। फिर चन्द
रोज के बाद दूसरा आया और संदूक् मांगने लगा उन्होंने फरमाया के तुम्हारा
साथी आया था वो ले गया है। उसने कहा के क्या हम-आप से ये ना कहा था
के जब तक हम दोनों ना आएँ संदूक् ना देना। उन्होंने कहा हाँ बेशक तुम ने
कहा तो था। उसने कहा फिर आपने उसे क्यों दे दिया? हजरत इमाम शाफई
अलेह अरहमत की वालिद परेशान हो गईं और सोचने लगीं के अब क्या
9९३९6 099 (थ्वा5८शाशश’
सच्ची हिकायात लक लकी. | हिस्सा दोम
किया जाए? इतने में हजरत इमाम शाफई अलेह अर॑हमा मदरसे से तशरीफ्
ले आए। आपने वालिदा साहिबा से पूछा के आप परेशान क्यों हैं? उन्होंने
सारा किस्सा सुनाया हजरत इमाम अलेह अर्रहमा ने फ्रमाया कुछ परवा नहीं
है। मुहई कहाँ है? ताके मैं उसको जवाब दूं। मुद्ई जो वहीं मौजूद था। बोला
मैं हूँ हज॒रत इमाम शाफई ने फ्रमाय के तुम्हारा संदूकू मौजूद है। अपने साथी
को बुला लाओ ताके संदूक तुम दोनों के हवाले किया जाए। वो शख्स हैरान
हुआ और लाजवाब होकर वापस चला गया। ( तजुकरत-उल-औलिया,
सफा 255 ) है |
. सबक:- हजरत इमाम शाफई अलेह अर्रहमत बचपन हो में बड़े
दाना, और इल्मो फज्ल के मालि थे। फिर बड़े होकर क्यों ना आप
इमाम-उल-मुस्लिमीन बनते। |
हिकायत नम्बर७%) हारून रशीद के तख़्त पर
एक रात हारून रशीद और उसकी बीवी जूबैदा में कूछ बहस व
तकरात हो गई। इत्तिफाकन जबैबा के मुंह से निकल गया। ऐ दोजूखी!
हारून अलरशीद ने ये सुनकर कहा के अगर मैं दोजखी हूँ तो तुझे तलाक है
और उसी वक्त एक दूसरे से अलग हो गए। लेकिन चूंके हारून अलरशीद
को जबैदा से बड़ी मोहब्बत थी। इसलिए उसकी जुदाई से बहुत बेचैन हुआ
और जुमला उलमा व फज्ला को जमा करके इस मसले का फतवा चाहा।
मगर किसी ने इसका जवाब ना दिया और सब ने मुत्तफिक् होकर ये कहा
के इस बात का खुदा ही को इल्म है के हारून अलरशीद दोजखी है या
बहिएती। एक लड़का उन उलमा की जमात से खड़ा हुआ और कहने लगा
अगर इजाजत हो तो मैं जवाब दूं। सब लोग हैरान रह गए के जब इतने बड़े
बड़े उलमा इस मसले का जवाब में आजिजु हैं। फिर ये लड़का क्या जवाब
देगा। हारून अलरशीद ने उस लड़के को अपने रूबरू बुलाया ओर कहा
के तुम ही जवाब दो। उस लड़के ने कहा के आपको मेरी जरूरत है या मुझे
आपकी? हारून अलरशीद ने कहा के मुझे तुम्हारी जुरूरत है। ये सुनकर उस
लड़के ने कह के फिर आप तख्त से नीचे उतर आईये और मुझे तख़्त पर बैठ
कर जवाब देने दीजिए। इसलिए के उलमा का रूत्वा बुलंदतर है हारून अल
रशीद ने कहा। बहुत अच्छा और तख़्त से नीचे उतर आया और वो लड़का
तख्त पर बैठ गया और तख्त पर बैठकर हारून अलरशीद से मुखातिब हुआ
पहले आप मरे एक सवाल का जवाब दें के क्या आप कभी किसी गुनाह
9०९06 99 (थ्वा]5८शाशश’
सच्ची हिकायात 442 हिस्सा दोभ
से बावजूद उसकी क॒द्गत रखने के सिर्फ खुदा के खौफ की वजह से गुनाह
करने से बाज भी रहा हूँ, यें सुनकर लड़के ने कहा मैं फतवा देता हूँ के आप
दोजखी नहीं बलके अहले बहिश्त में से हैं। सारे उल्मा पुकार उठे के किस
दलील से? उस लड़के ने जवाब दिया के क्रआन मजीद की इस आयत से
के अल्लाह तआला फ्रमाता है: व अम्मा मन खाफर मकमा रब्बीही व
नहा अन्ननफंसा अनिल हवा फड्नन्नल जन्नाता हियल म्रावा यानी जिस
शख्स ने के गुनाह का कुसद किया और फिर खुद के खौफ से उससे बाज
रहा, पस उसकी जगह जन्नत है।” ह
. सारे उल्मा ये सुनकर वाह वाह करने लगे और कहा के जो लड़कपन में
इस क॒द्र फेहमो जका का मालिक है वो बड़ा होकर नहीं मालूम किस दर्जे का
आलिम. होगा। ये लड़का कौन था? ये हजरत इमाम शाफई रहमत-उल्लाह
अलेह थे। ( तजुकरत-उल-औलिया, सफा 25 ) क्
सबक्:- जिन्होंने बड़े होकर इल्मो फज्ल का ताजदार बनना हो।
उनका बचपन भी दूसरे से मुमताजु व अफ्जुल होता है। फिर जो लोग बढ़े
होकर भी दीन से कोई मस ना रखे और अगर इमामाने दीन की मुबारक शानों
में कोई गुस्ताखी करें तो किस क॒द्र जहालत की बात है।
हिकायत नम्बर७9) रहबानी
सुलतान रोम जो इसाई था। हर साल हारून अलरशीद को कुछ माल
भेजा करता था। उसने एक साल ये हीला किया के चन्द रहबानियों को भेज
कर ये कहला भेजा के इन इसाईयों रहबानियों से अगर आपके उल्मा बहस
करें और उन पर गालिब आ जाएँ तो माले मुक्र॑रा बराबर देता रहूंगा। वरना
नहीं। चुनाँचे जब ये रहबानी हारून अलरशीद के पास पहुँचे। तो हारून
अलरशीद ने दजले के किनारे पर उल्मा इस्लाम को जमा किया और उन
रहबानियों को भी वहाँ बुलाया। इतने में हजरत इमाम शाफई रहमत-उल्लाह
अलेह भी तशरीफ ले आए और हारून अलरशीद ने आप से इलतिजा की के
इन रहबानियों से आप बहस करें। हजरत इमाम शाफई अलेह अर्रहमत ने ये
सुनकर अपना मुसल्ला कंथे से उतार कर दरया के पानी के ऊपर बिछा दिया
और उस पर जा बैठे और फ्रमाया के जो शख्स हम से बहस करना चाहे
वो यहाँ आकर हम से बहस करे। राहिबों ने जब ये हाल देखा तो सबके सब
मुसलमान हो गए। सुलतान रोम को जब ये खूबर पहुँची के वो सारे राहिब
इमाम शाफई के हाथ पर मुसलमान हो गए हैं तो कहने लगा। शुक्र है के वो
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|
सच्ची हिकायात ५ 443 हिस्सा दोम
इमाम यहाँ नहीं आया। अगर यहाँ आ जाता तो सारा रोम मुसलमान हो जाता।
(तजुकरत-उल-औलिया, सफा 58)…
. सबक्:- अल्लाह वालों की बहुत बड़ी शान होती है। और अनासिर
अरब भी उनके मातेहत होते हैं और उनके फयूज व बर्कात की ये शान
है के उनकी. अजूमत शान को देखकर ही कई लोग मुसलमान हो जाते हैं।
._ ._ हिकायत नम्बर७७) फिरासत
हजरत इमाम शाफई अलेह अर्रहमत और: हजरत इमाम अहमद
रहमत-उल्लाह अलेह जामओ मस्जिद में बैठे थे के एक शख्स आया और
नमाज पढ़ने लगा। हजरत इमाम अहमद ने उसे देखकर फरमाया के ये
शख्स लोहार है हजरत इमाम शाफई ने फ्रमाया के नहीं ये शख्स तरखान
है। फिर जब वो शख्स नमाज पढ़ चुका तो उससे पूछा गया के तुम क्या
काम करते हो तो वो बोला के मैं पिछले साल लोहे का काम करता था
और आज कल लकड़ी का काम कंरता हूँ। नुजुहत-उल-मजालिंस, सफा
॥7, जिल्द:) .
.._ संबक:- अल्लाह वालों के मुंह से जो बात निकलती है। सच्ची
ही होती है। ‘
हिकायत नम्बर0०) विरासत अंबिया
एक बुजर्ग हजरत रबीअ ने एक रात ख़्वाब में देखा के हजरत आदम
अलेहिस्सलाम का इन्तिकाल हो गया है। और लोग आपका जनाजा मुबारक
उठा रहे हैं। हजरत रबीअ ये ख़्वाब देखकर जाग पड़े और सुबह एक ताबीर
बताने वाले से इस ख़्वाब की ताबीर पूछी तो उसने बताया के इस वक्त जो
जमाना भी में बहुत बड़ा आलिम है उसका इन्तिकाल हो जाएगा क्योंके
बवभअललमा आदामा अलअस्रमआ कल्लाहा के पमुताबिक् इल्म खासियत
हजुरत आदम अलेहिस्सलाम की है, चुनाँचे चन्द दिनों के बाद हजुए: इमाम
शाफई अलेह अर्रहमा का इन्तिकाल हो गया। ( तजुकरत-उल-औलिया
सफा 259 ) क्
सबक ः- इमामाने दीन अंबिया इक्राम अलेहिम अस्सलाम के वारिस हैं
और उनके फयूज व बर्कात अंबिया इक्राम अलेहिम अस्सलाम ही के उलूम
का सदका है। और ये भी मालूम हुआ के हजरत इमाम शाफई रहमत-उल्लाह
अलेह अपने जमाने में बड़े आलिम थे।
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सच्ची हिकायात हिस्सा दोम
हिकायत नम्बर७७ इमाम-उल-मुस्लिमीन हजरत
इमाम अहमद बिन हंबल(२०आ० )
बगृदाद में जब मोतजुलियों का गूलबा हुआ। तो उन्होंने चाहा के
हजरत इमाम अहमद बिन हंबल रहमत-उल्लाह अलेह से जबरदस्ती
कहलायें के कर॒आन मखलूक् है। चुनाँचे मुखतलिफ साजिशों के जरिये
वो आपको खलीफा के दरबारे में ले गए, दरबार के एक दरवाजे पर एक
सिपाही खड़ा था। हजरत इमाम रहमत-उल्लाह अलेह जब उस दरवाजे
से गुजरे तो उस सिपाही न कहा ऐ इमाम-उल-मुस्लिमीन करआन को
मखुलूक् हर गिज ना कहना और मर्दों की तरह रहना देखिये मैं एक दफा
चोरी के इलजाम में गिरफ्तार हुआ था और हजार बैद मुझ पर पड़े लेकिन
मैंने इक्रार ना किया था और इंकार पर ही डटा रहा था। बिलआखिर
में रिहा हो गया। और अपने दरोग व नारास्ती पर कामयाब हो गया तो
जब मैं हक पर ना था और सब्र की बदौलत कामयाब हो गया फिर आप
जब सरासर हक पर हैं। भला सब्र से कामयाब क्यों ना होंगे, हजरत
इमाम अहमद बिन हंबल रहमत-उल्लाह अलेह उसकी बात सुनकर बड़े
मुतास्सिर हुए। और आपने फ्रमाया जजाकल्लाह! मैं तुम्हारी ये बात खूब
याद रखूंगा और हर गिज हक् को ना छोड़ंगा। चुनाँचे आपको दरबार में
पेश किया गया और आपको मजबूर किया गया के क्रआन को मखलूक्
कहें मगर आपने ना कहा हत्ता के आपको शिकंजे में कसा गया और
हजार कोड़े मारे मगए। मगर आप ने हर दफा ये कहा के करआन मखलूक्
नहीं है। इसी असना में जब के आपको शिकंजे में कसा हुआ था आपका
इजारबंद खुल गया आपके दोनों हाथ बंधे हुए थे। सब ने देखा के दो
हाथ गैब से जाहिर हुए और उन्होंने आपका इजारबंद बाँध दिया। आपकी
ये करामत देखकर आपको छोड़ दिया गया। ( तजकरत-उल-औलिया,
सफा 264)
सबक:- हजरत इमाम अहमद बिन हंबल रहमत-उल्लाह अलेह
इमाम-उल-मुस्लिमीन थे। और हक् के अलमबरदार दुश्मनों ने आपको बेहद
सताया और तकलीफें दीं मगर आपने सब्नो शुक्र से काम लिया और मसलक
हक को नहीं छोड़ा और आपने करआने पाक की इज़्ज्त की खातिर अपनी
जान पर सख्तियाँ बर्दाश्त कों मालूम हुआ के इमामाने दीन के दिलों में
क्रआन व हदीस की बड़ी वकृत और ताजीम थी।
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सच्ची हिकायात हिस्सा दोम
हिकायत नम्बर७७) ताजीम और सिला
हजरत इमाम अहमद बिन हंबल रजी अल्लाहो तआला अन्ह एक बार
एक नहर के किनारे वज कर रहे थे और कोई दूसरा शख्स आप से ऊपर
की जानिब बुलंदी पर वज कर रहा था। उसने जब हजरत इमाम को वज
करते देखा। तो वहाँ से उठ कर ताजीम के लिहाज से नीचे उतर आया और
आपसे नीचे उतर कर वज करने लगा। जब वो शख्स मर गया। तो किसी
ने उसे ख़्वाब में देखा और पूछा के खुदा तआला ने तेरे साथ क्या सलूक
किया। तो उसने जवाब दिया के हक् तआला ने उस ताजीम का सिले में
जो मैंने हजरत इमाम अहमद रहमत-उल्लाह अलेह के बज करते वक्त
उनकी, की थी। मुझ पर रहमत फरमाई है और मेरी निजात फ्रमा दी है।
( तजुकरत-उल-औलिया सफा 262 )
सबक्:- अल्लाह बालों की ताजीम से अल्लाह खुश होता है। लिहाजा
उन अल्लाह वालों की बे अदबी व गुस्ताखी से हर वक्त डरते रहना चाहिए
और हमेशा उनका अदब करना चाहिए।
हिकायत नम्बर७0 खमीरी रोटी
हजरत इमाम अहमद बिन हंबल रहमत-उल्लाह अलेह के साहजादे
हजरत सालेह असफहान के काजी थे। हजरत सालेह हर रोज दिन को रोजा
रखते और रात को नफिल पढ़ा करते थे। एक रोज हजरत इमाम अहमद के
खादिम ने आपके साहबजादे के हाँ से खमीर लेकर आपके लिए खमीरी
रोटी पकाई और जब आपके सामने लाया। तो आपने पूछा के इस रोटी में
क्या मिलाया है के ऐसी फूली है। खादिम ने अर्ज किया के हुजर! आपके
साहबजादे के बावरची खाने से मैंने खमीर लेकर आटे में मिलाया था। आपने
फरमाया: वो तो असफहान का काजी है ये रोटी अब मेरे खाने के काबिल
नहीं। अब में इस रोटी को क्या करूंगा। फिर फरमाया। जब कोई सायल आए
तो उसको दे देना। और साथ ही ये भी कह देना के इसमें खमीर तो सालेह
के घर का मिला हुआ है और आटा अहमद बिन हंबल का है। अगर तुम्हारा
जी चाहे तो ले लो। ( तजकरत-उल-औलिया, सफा 263 ) क्
सबकः:- अल्लाह के नेक बन्दे बड़े मुत्तकी और परहैजगार होते
हैं के जरा भर शक व शुबह की बिना पर भी एहतियात फ्रमाते हैं फिर
किस कुद्र अफसोस का मुकाम है के हम यकोनी ना जायज चीजों के
9०९06 99 (थ्वा]5८शाशश’
सच्ची हिकायात 446 … हिस्सा दोम
भी इस्तेमाल से बाज नहीं रहते।
हिकायत नम्बर७0) इल्म व अमल
हजरत इमाम अहमद बिन हंबल रहमत-उल्लाह अलेह का एक शार्मिंद
आपके घर आया। हजरत इमाम साहब ने रात को उसके पास एंक लौटा पानी
का भर कर रख दिया। सुबह हुईं तो आपने देखा के लौटा बैसे का वैसा ही
पड़ा हुआ है और पानी खर्च नहीं किया गया।-हजूरत इमाम ने फ्रमाया के
लौटा वैसे का वैसा ही क्यों रखा हुआ है? शार्गिंद ने पूछा हजरत मैं उसको.
क्या करता। आपने फ्रमाया के वज करते और रात भर नफिल पढ़ते बरना
तूने ये इल्म क्यों सीखा? ( तजुकरत-उल-औलिया, सफा 254)
सबक:- इल्म हासिल करने के बाद जब तक अमल भी ना किया
जाए इल्म का कोई फायदा नहीं। कप
हिकायत नम्बर७७ सोने का पहाड़
हजरत इमाम अहमद बिन हंबल रहमत-उल्लाह अलेह एक बार किसी
बयाबान से गुजर रहे थे के आप रास्ता भूल गए। आपने बयाबान में एक
शख्स को देखा जो एक गोशे में बैठा हुआ था आपने सोचा के इस शख्स से
रास्ता दरयाफ्त करूं, चुनाँचे आप उसके पास गए वो शख्स हजरत इमाम को
देखकर रोने लगा। हजरत इमाम साहब ने सोचा के शायद ये भूका है आपने
इस खयाल से उसे अपने पास से कुछ रोटी देना चाही। वो शख्स बहुत खफा
हुआ और कहने लगा। ऐ अहमद बिन हंबल! तू कौन है जो मेरे और खुदा के
दरमियान दखल देता है। क्या तू खुदा के कामों पर राजी नहीं है? इसी लिए
तू रास्ता भी भूलता है। हजरत इमाम अहमद उसके कलाम से बड़े मुतास्सिर
हुए और दिल में कहने लगे। इलाही। गोशों में तेरे ऐसे ऐस बन्दे भी पौशीदा
हैं। इस शख्स ने कहा। ऐ अहमद बिन हंबल कया सोचते हो। उस खुदाऐ पाक
के ऐसे ऐसे बन्दे हैं के अगर खुदा तआला को कसम देकर चाहें तो तमाम
जमीन और पहाड़ उनके वास्ते सोने के हो जायें। हजरत इमाम अहमद बिन
हंबल ने जो नजर की। तो तमाम रूऐ जमीन और पहाड़ उन्हें सोने के नजर
आने लगे। फिर आप ने एक आवाज सुनी के ऐ अहमद! ये शख्स हमारा ऐसा
मक्बूल बन्दा है के अगर ज्ञाहे तो हम उसकी खातिर जमीन आसमान को
उलठ पलट कर दें। ( तज॒ुकरत-उल-औलिया, सफा 262) मा
सबक्:- अल्लाह के मक्बूल बन्दों की इस क॒द्र बुलंद शान होती है
9९९06 99 (थ्वा]5८शाशश’
सच्ची हिंकायात हिस्सा दोम
के वो दिल के इसरार भी जान लेते हैं और उनकी जुबान हिले तो पहाड़ भी
के बन जाते हैं और अगर वो चाहें तो अल्लाह तआला जमीनो आसमान
को भी उलट दे फिर जो उन सबके सरदार व आका हुज॒र मोहम्मद रसूल
अल्लाह सल-लल्लाहो तआला अलेह व सललम हैं उनको शान को कौन
अंदाजा कर सकता है। और उनके चाहने से क्या नहीं हो सकता है?
हिकायत नम्बर७४) इब्ने खजीमा का ख्वाब
हजरत इमाम अहमद बिन हंबल के विसाल शरीफ के बाद एक बुजर्ग
मोहम्मद इब्ले खजीमा ने ख़्वाब में देखा के इमाम अहमद बिन हंबल कहां
तशरीफ ले जा रहे हैं। पूछा के आप कहाँ जा रहे हैं? तो आपने फरमाया
के दार-उल-सलाम को जा रहा हूँ। उन्होंने पूछा के खुदा तआला ने आपसे
क्या सलूक फ्रमाया। तो आपने फ्रमाया के मुझे बख्शं दिया। और मेरे सर
पर ताज रखा और नालैन मुझे पहनाई और खुदा ने मुझ से फ्रमाया के ऐ
अहमद! ये सब इनाम तुझ पर इस सबब से है के तूने करआन को मखलूक
ना कहा। ( तजकरत-उल-औलिया, सफा 267)
सबक्:- हजरत इमाम अहमद बिन हंबल रहमत-उल्लाह अलेह ने
अपने इल्मो फज्ल और अमल की बदौलत अल्लाह की रजा हासिल कर ली
और अल्लाह की बारगाह से ताज हासिल किया पस जो कोई भी अल्लाह
का काम करने लगे खुदा और खुदाई उसकी हो जाती है।
हिकायत नम्बर७७ इमाम-उल-मुस्लिमीन हजरत
इमाम मालिक रजी अल्लाहो अचह….
हजरत मोहम्मद इब्ने अबी अलसरी असकूलानी ने ख़्वाब में
हुज॒र( स०अ्स० ) की जियारत की और हुजर से अर्ज किया या रसूल अल्लाह
कुछ इर्शाद फरमाईये ताके मैं हुज॒र॒ की जानिब से इंस इर्शाद की तबलीग
करूं। हुज॒र( स”आअ०अ० ) ने इर्शाद फ्रमाया ऐ असक्ूलानी! मैंने मालिक बिन
अनस को एक खजाना दे दिया है जिसे वो तुम सब में तक्सीम कर रहा हो।
और वो खजाना मौता है। ( रोज-उल-फायक् , सफा 448 )
. सबके :-हजरतइमाममालिकरजी अल्लाहो अन्हइमाम-उल- मुस्लिमी न
थे और हुजर( सन््अन्स” ) के मंजरे नजर और आपकी किताब मौता इमाम
मालिक एक ऐसी मुसतनिद और सही जामओ है के खुद हुजरए( स०्अन्स० )
अपना खजाना इर्शाद फरमाया है
9०३९6 99 (थ्वा]5८शाशश’
सच्ची हिकायात 448 हिस्सा दोम
हिकायत नम्बर७०) एहत्रामे इल्म
हारून अलरशीद एक मर्तबा मदीना मुनव्वरह हाजिर हुआ। तो उसे
मालूम हुआ के हजरत इमाम मालिक यहाँ मौता का दर्स देते हैं। हारून
अलरशीद ने इमाम मालिक को पैगाम भेजा के आप मौता मेरे पास लाकर
मुझे यहाँ सुना जायें। हजरत इमाम मालिक ने जवाब में फ्रमाया के हारून
अलरशीद को कह दो के इल्म किसी के पास नहीं जाता। तालिबे इल्म खुद
इल्म के पास आता है। हारून अलरशीद ये सुनकर हजरत इमाम मालिक की
खिदमत में खुद हाजिर हुआ। हजरत इमाम मालिक ने उसे अपने पास मसनद
पर बिठा लिया। हारून अलरशीद ने अर्ज की के अब आप मौता पढ़िये और
मैं सुनता हूँ। हजरत इमाम ने फरमाया के मैंने आज तक खुद पढ़कर किसी
को नहीं सुनाया लोग पढ़ते हैं और में सुनता हूँ। लिहाजा अब आप पढ़ें और
में सुनता हँ। हारून अलरशीद ने कहा तो फिर उन लोगों को बाहर निकाल
दीजिए। ताके मैं तनहाई में पढ़ें आपने फरमाया के जब ख़्वास के लिए इल्म
को अवाम से रोक लिया जाए तो ख़्वास को कुछ नफा नहीं पहुँचता चुनाँचे
हारून अलरशीद ने मौता को पढ़ना शुरू किया। पढ़ने लगा तो हजरत इमाम
मालिक ने फ्रमाया। हारून इलम के लिए तवाजो की जुरूरत है। इसलिए
इस मसनिद से उतर कर मेरे सामने मुतावाज़ो होकर पढ़ो। चुनाँचे हारून
अलरशीद मसनिद से नीचे उतर आए और सामने मुतावाजो होकर बैठा और
पढ़ने लगा। ( रोज-उल-फायक्, सफा ॥48 )
सबक्:- इल्म हासिल करने के लिए इंकिसारं और तबाजो को
इख्तियार करना चाहिए और ये भी मालूम हुआ के पहले जमाने क बादशाहों
में भी इल्म दीन की बेहद तलब थी और उनके दिलों में हदीस रसूल का
बड़ा एहनत्राम था। द
हिकायत नम्बर७७ कृमीस में बिछ
हजरत इमाम मालिक रहमत-उल्लाह अलेह एक मर्तबा हुज॒र
सल-लल्लाहो अलेह व सल्लम की हदीस बयान फरमा रहे थे के लोगों ने
देखा के आपका चेहरा किसी तकलीफ के बाइस जर्द हो रहा है। और बड़े
बेचैन हो रहे हैं बावजूद उसके आपने हदीस का दर्स तर्क ना फ्रमाया। और
बदस्तूर बयान फ्रमाते रहे और जब बयान खत्म फ्रमा चुके तो लोगों ने
वजह दरयाफ़्त की तो आपने कमीस उतार दी जिसमें से एक बिछू निकला
9९९06 99 (थ्वा]5८शाशश’
सबच्यी हिकायात 449 हिस्सा दोम
जिसने छः दफा हजरत इमाम को डसा था। हजरत इमाम ने फरमाया के हदीस
बयान करते हुए ये बिछू मुझे डस रहा था। मगर मैंने एहत्राम हदीस के पेशे
नजर हदीस का दर्स ना छोड़ा। मेरा क्या है कुछ हो मगर हदीस का अदबो
एहत्राम बेहहहाल मुकृद्म है। ( रोज-ठल-फायक् , सफा ॥49)
सबक :- इमामाने दीन के दिलों में हदीस शरीफ का बड़ा एहत्राम था।
आज हमें भी हुजुर॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम की हदीस पाक
का अदबो एहत्राम करना चाहिए।
हिकायत नम्बर७०७) विसाल
हजुरत इमाम शाफई रहमत-उल्लाह अलेह फ्रमाते हैं के मेरी फ्फी ने
मक्का मोअज्जमा में ख़्वाब देखा के कोई शख्स कह रहा के जमाना हाल का
सब से बड़ा आलिम विसाल पा गया। इमाम शाफई फरमाते हैं के हम ने उसी
दिन सुन लिया के हजरत इमाम मालिक रहमत-उल्लाह अलेह का विसाल
हो गया है। इन्ना लिल््लाही व ज््चा इलेही राजिऊन ( रोज-उल-फायक,
सफा 450 ) ह
संबक :- हजरत इमाम मालिक रजी अल्लाहो तआला अन्ह अपने
वक्त के बहुत बड़े आलिम और मरजओ खलायक् थे और उसी इल्मो फज्ल
की बदौलत वो चारों इमामों में से एक हैं। 5
हिस्सा दोम खत्म हुआ
9९९06 099 (थ्वा]5८शाशश’
|
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हा
नअी5“हन्ााआ पत्र साहब ब्र हब ८ है
प्रौलजा अबुनुर मेहमसद 7
हजरत प्रोलएना ‘ 5 78,
कक ७ 4 । 4४44 है] |; ॥.॥,
9९थ॥7९6 99 (राई टशााश
इल्तिज़ा है कि इस किताब को अपनी मोबाईल
की मैमोरी में सेव करके ना रखे वल्कि आप
से गुजारिश है कि इस किताब का मुताला की
जिये ये किताब बहुत शानदार है।
दुआ की गुजारिश
डॉ ज़ाहर रज़वी
अल अश्हर अकडमी
दुआ की ग़ुज़ारिश
मोहम्मद अहतिराम कुरैशी
तीसरा हिस्सा
आप हज़रात से गुजारिश है कि इस किताब
को आप अपना निम्ती वक़्त दे और इस किता
ब का मुताला करे और हम ना चीज़ को अपनी
अपनी दुआओं में याद रखे
जुमला हकक बहक् नाशिर महफज हैं
नाम किताब : सच्छी हिकायात मुकप्मल
तालीफ ; मौलाना अबु अलनूर बशीर
सन इशाअत ः 203
सफहात – 936
मतबअ हम नाहिद प्रेस, देहली
. हृदिया
नाशिर म अदबोी दुनिया, देहली
इस किताब में
कुतव॒ अहादीस और दीगर
मुसत्तनिद इस्लामी किताओं से दिलचस्प,
मुफीद और सबक आमोज हिकायात
जमा कर दी गई हैं और हर हिकायत के
बाद इससे जो सबक हासिल होता हैए
लिख दिया गया है और हर हिकायत को
असल किताब से देखकर दर्ज किया गया
है और किताब का नाम, सफ्हा और
‘जिल्द सब कुछ दिया गया है।
॥0॥0शौीशा
50£/»8छा 00१४5
399, ६9 99|/ | ४8 ॥9श 0,
एआ-व40006
॥076 : 23250422
धटशाशश्त 9५४ (शक्राडइ्शाश
9९९06 99 (थ्वा]5८शाशश’
कक पक 3 हिस्सा अन्वल
बिस्मिल्लाहिर॑ह्मानिरंहीम
7हमदुहू व नुफ़ली अला ख्यूलीहिलकर््रम
पहली नजर गली
इस जमाने में अपूसाने, ड्रामे, किस्से और कहानियाँ बड़े शौक से पढी
जाती हैं और ये शौक् बिलअपूम हर छोटे बड़े मर्द और औरत में पाया जाता ‘
है, आज कल हर वो तहरीर जिसमें अफ्सानवी तर्ज और हिकायती रंग मौजूद
हो, पसंदीदगी को नजर से देखी जाती है, कौम का यही रूहजान तबओे
इस अप्न का बाइस है के पुल्क के अक्सर रसायल व जरायद अपने अपने
“कहानी नम्बर ” और “अपूसाना नम्बर” शाय करते हैं और अफ़्साना पसंद
अफ्राद इन्हें हाथों हाथ लेते हैं। ह
ये अप्साने, ड्रामे और आज कल की हिकायात व कहानियाँ ज़्यादा
तर दरोगू व कजिब और गैर वाकई बिना पर मुबनी होती हैं, उनकी कोई
हकीकृत और असल नहीं होती और ऐसे अपसाना लिखने वाले उन वजुअई
हिकायात को “तबै जाद” और अपनी तखलीक् करार देकर अपने वजुओ व
कजिब को अपना एक शाहकार साबित करते हैं और अफ्साना पसंद तबीअतें
उन्हें उस कारनामे पर दादे तहसीन देती हैं और उसे तरक्की पसंद अदब के
नाम से मोसूम करने लगती हैं।
किस्से और हिकायात जरूरी नहीं के झूट ही हों, इस आलम में किस्सों
और सच्ची हिकायात का वजूद भी है, खुद कूरआने पाक और अहादीसे
शरीफा में भी हिंकायात व कूसस मौजूद हैं और वो हिकायात व कूसस ऐसे
हैं जिनमें सौ फीसदी सदाकृत है और जो अपनी सदाकृत के बाइस मख्लूक
के लिए मौजिबे रूएदो हिदायत और वजह दसे इन्नत हैं। खुदा तआला ने
अपनी सच्ची किताब मजीद पें अध्बियाइक्राम अलेहिमअस्सलाम के ईमान
अप्रोज किस्से और उमम साबिका की सबक आमोज् हिकायात बयान
फरमाई हैं और रसूले खुदा सल-लल्लाहो-तआला-अलेह व सल्लम ने भी
अपने इर्शादाते आलिया में पहली उम्मतों के इन्नत आमोज वाकेयात और
सबक आमोज हिकायात सुनाई हैं और इसी तरह बुजूर्गाने दीन के इशादात्त
और उनकी तालीफात में भी इस किस्म की सच्ची हिकायत का वजूद पाया
जाता है मगर मुश्किल ये है के ये सब पुरानी बातें हैं और इस नए दौर में
उन परानी बातों की तरफ् त़वज्जद् नहीं की जाती ऐ काश! मुसलमान आज
इट्वाारत छए (_ध्ा9८क्वा॥र
सच्ची हिकायात हिस्सा अव्वल
कल के लायानी अफसानों और वज॒अई और झूटी हिंकायात की बजाए अपने
हकीकी अफ्सानों और सच्ची हिकायात् को पढ़ते पढाते तो दिलचस्पी के
अलावा उन्हें दीनी और दुनयवी फ्वायद भी हासिल होते।
मुद्दत से मेर दिल में ये खयाल था के करआन व हदीस और दीगर
इस्लामी लिटरेचर से हकीकी किस्सों और सच्ची हिकायात को जमा करूं
और उन्हें सादा और आम फहेमो ठर्ज में कुलमबंद कर के भुसलमानों के
लिए एक ऐसी किताब लिखूं जिसका मुतअल्ला उनके लिए दिलचस्पी भी
पैदा करे और साथ साथ ही उनके लिए सबक ब इब्नत पेश करके उनके दीन
व दुनिया की इसलाह भी करे चुनाँचे इसी अपने इरादे के तहेत मैंने सच्ची
हिकायात को जमा करना शुरू कर दिया और क्रआन व हदीस के अलावा
और बहूत सी इस्लामी कुतुब का मुतअल्ला करने के बाद इस सबक आमोज
सिसिले को इन्तिदा कर दी।
भेरे जहेन में थे सिलसिला बड़ा तवील है और इरादा है के मुबारक
सिलसिला को दूर तक ले जाऊँ, मैंने इस तालीफ के लिए जो बाब तजवीज
किए हैं वो हस्बे जेल हैं: – | *-
पहला बाब तौहीदे बारी
दूसरा बाल सय्यद-उल-अम्बिया हूजर अहमद मुजतबा
मोहम्मद मुस्तफा सल-लल्लाहो-अलेह
व सल्लम
तीसरा जबाब अम्वियाऐक्राप अलेहिम-उल-सलाम
चौथा बाब खलफाए राशिदीन रिजुयान-उल्लाही
तआला अलेहिम अजमईन
पाँचया बा सहाबाइक्राम रिजुवान-उल्लाही तआला
अलेहिम अजमईन
. छठा बाब अहले बैत ओजाम रिजवान-उल्लाह
तआला अलेहिम अजमईन
सातवाँ बाज आयम्माइक्राम रहमत-उल्लाही अलेहिम,
अजमईन
आठयाँ बाब औलियाइक्राम रहमत-उल्लाही तआला
अलेहिम अजमइंन
नवाँ बाब सलातीने इस्लाम
दसवाँ यबाव मख्तलिफ हिकायात
5प्गातर्प 9५9 (शा5उटलाधा
9८०॥॥॥९0 09५9 (क्राइ८ब्वापाट-
सच्ची हिकायात 5 हिस्सा अव्वल
चूँके ये सिलसिला बहुत तबील है इसलिए इस किताब को तीन हिस्सों
पर तकसीम कर दिया है इसका ये पहला हिस्सा जो आपके हाथ में है पहले
चार अबवाब पर मुशतमिल है, इसमें पहला , दूसरा, तीसरा, और चौथा बात
है और बाकी दूसरे अबवाब इंशाअल्लाह दूसरे हिस्सों में आएँगे इस किताब
के पहले बाब में ऐसी हिकायात का इन्तिखाब है जिनका ताल्लुक “तौहीदे
बारी” से है और दूर: . बाब में उन रिवायात व हिकायात का जिक्र है जिनका
ताल्लुक् हुजर सरवरे आलम सल-लल्लाहो अलेह व सल्लम की जातेग्रामी से
है, उन सच्ची हिकायात व रिवायात से हुज्र सल-लल्लाहो अलेह व सल्लमप्र
के मरातिब व मदारिज, आपके इख़्तियारात व कमालात और आपके उलूम
का पता चलता है और ये बात साबित होती है के हमारे हुजर सल-लल्लाहो
अलेह व सल्लम मालिक व मुख्तार हैं और दानाऐ गयूब हैं और हर गिज हर
गिज हमारी मिस्ल नहीं हैं, तीसरे बाब में अम्बियाऐक्राम अलेहिम-उल सलाम
के मुतअल्लिकु हिकायात दर्ज हैं जिनसे पता चलता है के अम्बियाऐक्राम की
बहुत बड़ी शानें हैं और अल्लाह तआला ने उन्हें बड़े बड़े इख़्तियारात अता
‘फरमाए हैं, चौथे बाब में खल्फाऐँ राशिदीन यानी हजरत सिद्दिके अक्यर,
हजरते उमर फारूक आजम हंजरत उस्मान जलनोरैन और हजुरते मौला अली
रिजवानउल्लाही अलेहिम अजमईन के मुतअओल्लिक 5 हिकायात दर्ज हैं जिनसे
इन चार याराने नबी के मरातिब व मदारिज जाहिर होते हैं और पता चलता
है के ये चारों ही अल्लाह के महबूब के महबूब हैं और उनकी मोहब्बत ऐन
ईमान है और उनकी अदावत से ईमान जाता रहता है। इस हिस्से में ये चारों
बाब हैं बाको के छ: अबवाब दूसरे और तीसरे हिस्से में हैं।
जुरूरत है के आज वो मुसलमान जो किस्सों के शौकीन हैं वो झूटी
हिकायात को छोड़ कर उन सच्ची हिकायात को पढ़ें ताके उन के लिए दीनी
तरक्की का सबब हो और वो मुसलमान औरतें जो रातों में बच्चों को झूटी
कहानियाँ सुनाया करती हैं इन सच्ची हिकायात को पढ़ें, याद करें और
अपने बच्चों को ये सच्ची ‘हिकायात सुनाएँ ताके बच्चों के दिल में भी दीन
की रग्जत पैदा हो।
( अबु अलनूर मोहम्मद बशीर )
प परटक्रपाश्त 0५ (-शा5िप्शाश’
9०व॥९06 99 (थ्वा]58८शाशश’
सच्ची हिकायात 3 हिस्सा
| 399 | पियाले का पानी हजरत ठबैस करनी( २०»)
का सौदागर
में वाज
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आतिश परत्त शमऊन
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तुम्हारे पुंह से जो निकली
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निम्ननत का लिहाज
जन्नाजा तौरे बलिहारी जाके
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सच्ची हिकायात
9९९66 099 (थ्वा]58८शाशश’
१6 हिस्सा अच्चल
दृश्मन की नेकी
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दी
श्र
ताजीय बे तकरीम
अंगूर का हृदया
ख्िज्र अलेहिस्सलाम
48 8 कि बिि॥ बुशिडिशिजितिध
॥4 | 8
शी।4| 4, तर वेद हि नीति
+4॥ द ! 5 रा शव 4 बज 4
5]
सलतंनत को कीमत
शग़बी का अंजाम
कै
दसवाँ बाब
मुख़्तलिफ हिकायात
मेहनत वे मजदूरी
छुहारे का दरख्त
चोर पकड़े गए
शकवाना
की कहानी
सिबातोी दुनिया
असरार फकीर
दुनिया परस्त का अंजाम
मोहलिक दुनिया
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गधा और शाही घोड़े
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9९९06 099 (थ्वा]5८शाशश’
सच्ची हिकायात 450 सस्मिल्लो हि ह्मॉनिरिहय हिस्सा सोम
बिस्मिल्लाहिरह्मानिर्रहीम
कमदुू क एसल्ली अल रसूललीहिलकर्तम
लकद काना फी कृस्रासीहिम डबराहुन लिऑलियल अलबाब
(बेशक उनके किस्सों में इबरत है समझदारों के लिए-पारा: ४, रूकू: 6)
मुसतनिद और सबक आमोजु
सच्ची हिकायात मुकम्मल
हिस्सा सोम
नहमदुहू व नुसलल्ली अला रसूलीहिल करीम
आठवा बाब
औलिया इक्राम रहमत-उल्लाह तआला अलेहिम
अजमईन
हिकायत नम्बर७७ हजुरत उबैस करनी( र०्आ०)
हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम के विसाल शरीफ का
बक्त आया तो सहाबा इक्राम अर्ज़ किया के या रसूल अल्लाह! आपका
पीरहन मुबारक हम किस को दें? हुज॒र ने फ्रमाया। उवैस क्रनी को। चुनाँचे
हुजर के विसाल शरीफ के बाद हजरत उमर और हजूरत अली रजी अल्लाहो
अन्हुमा आपका पीरहन मुबारक लेकर, यमन में आए। और लोगों से दरवाफत
किया। के यहाँ कर्न का कोई शख्स है। लोगों ने कहा। हाँ है। हजरत उमर ने
हजूरत उवैस करनी की खबर पूछी। तो उन्होंने बताया के हम उसे नहीं जानते।
हाँ इतना जुरूर जानते हैं के इस नाम का एक शख्स आबादी से दूर बाहर
जंगल में रहता है। और लोग उसे दीवाना कहते हैं। हजरत उमर ने फ्रमार्यी
के हमें उसी के पास ले चलो। चुनाँचे हज़रत उमर और हजुरत अली रजी
अल्लाहो अन्हुमा को वहाँ ले जाया गया। ये दोनों बुजुर्ग जब वहा गए
9९९06 99 (थ्वा]5८शाशश’
सच्ची हिकायात 45 ला हिस्सा सोम
उन्होंने देखा के हजरत उबैस नमाज पढ़ रहे हैं। हजरत उमर व हजरत अली
रजी अल्लाहो अन्हुमा वहाँ बैठ गए। हजरत उबैस ने जब नमाज खत्म की तो
हजरत उमर व हजरत अली ने अस्सलाम अलेकुम कहा। और हजरत उवैस ने
व अलेकुम अस्सलाम जवाब दिया। फिर हजरत उमर ने नाम दंरयाफ्त किया
तो हजरत उवैस ने बताया मेरा नाम उबैस है। फिर हजरत उमर ने फरमाया
के अपना दाहिना हाथ दिखाओ। तो आपने अपना दाहिना हाथ आगे बढ़ा
दिया। हजरत उमर ने उस हाथ में वो निशानी देख ली। जो हुजर सल-लल्लाहो
तआला अलेह व सलल्लम ने बताई थी। हजरत उमर ने उसका हाथ का बोसा
दिया और फ्रमाया के मुबारक हो के हुज॒र सरवरे आलम सल-लल्लाहो
तआला अलेह व सल्लम ने आपको सलाम फ्रमाया है। और अपना पीरहन
मुबारक आपके बास्ते भेजा है। और वसीयत की है के मेरी उम्मत के वास्ते
दुआ कीजिए। हजरत उवैस रजी अल्लाहो अन्ह ये पैगामे रहमत सुनकर
आलमे वबज्द में आ गए और पीरहन मुबारक लेकर एक तरफ फासले पर
चले गए और सज्दे में गिर कर दुआ करने लगे। ऐ इश्क् व मोहब्बत के
बनाने वाले और ऐ अपने हबीब के चाहने वाले! तेरे मेहबूब ने अपना जामा
पाक मुझ शीफ्ता व शीदा फकीर बेसरोपा को भेजा है। अगर इजाजत हो
तो ये फकीर इसे पहन ले आवाज आई के हाँ। पहनो। अर्ज किया ऐ मौलाऐ
‘गृफूरो रहीम! मैं इस पीरहन मुबारक को इस वक्त तक ना पहनूंगा जब तक
के तू अपने मेहबूब की कुल उम्मत को ना बखझुछ दे। इर्शाद हुआ हमने चन्द
हजार को बख्श दिया। अर्ज किया। इलाही सब उम्मत को बख्श इर्शाद हुआ
जिस क्द्र इस पीरहन मुबारक के तार हैं। उसे दुगने सह गुने हिस्से को बख्श
दिया। अर्ज किया इलाही जब तक सारी उम्मत को ना बख्छोगा मैं ये पीरहन
ना पहनूंगा। निदा आईं। मैंने और भी कई हजार को बख्श दिया। अर्ज किया।
मैं तो सबको चाहता हूँ। इसी तरह राज़ो नियाज की बातें हो रही थीं के इसी
हालत में हजरत अली और हजरत उमर रजी अल्लाहो अन्हुमा वहाँ तशरीफ
ले आए। आप ने उनको देखकर फरमाया के आप क्यों आ गए। मैं ये पीरहन
हर गिज ना पहनता। जब तक के सारी उम्मत को ना बझुशवा लेता। फिर
आपने इस पीरहन मुबारक को पहना और फ्रमाया के हुज॒र संल-लल्लाहो
तआला अलेह व सलल्लम की उम्मत मेरी शफाअत और इस पीरहन की बर्कते
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सच्ची हिकांयात हिस्सा सोम
से रबीआ और मुजिर की भेड़ों के बालों के बराबर बख्श दी गई है। फिर
हजरत उबैस फर्त मुसर्रत से रोने लगे।
हजरत उवैस की थे शान और ये अंदाज देखकर हजुरत उमर और हजरत
अली भी रोने लगे। और फिर हजरत उबैस से दरयाफ्त किया के बावजूद
इस गृल्बा-ए-शौक् और वलवला इश्तियाक् के दीदारे जमाल मेहबूब से
कोन से सबब मानओ हुआ? और आपने हजर सल-लल्लाहो त्तआला अलेह
व सल्लम से मुलाकात क्यों नहीं की? हजरत उबैस ने जवाब दिया के आप
ने हुज॒र को देखा है अगर आपने इस महबूब का जमाल जहाँ आरा देखा है
तो फ्रमाईये के मेहबूबे पाक के वो अबरूऐ पाक आपस में मिले हुए थे या
कुशादा थे। इत्तिफाक देखिये के हजरत उमर व हजुरत अली रजी अल्लाहो
अन्हुमा उस वक्त उसका जवाब ना दे सके। और हजरत उबैस ने अबरूऐ
पाक की पूरी पूरी न्रानी तसवीर खींच कर बता दी और फ्रमाया मैं अगरचै
बजाहिर खिदमते अक्दस में हाजिर नहीं हुआ मगर जलवा-ए-मेहबूब किसी
वक्त मुझ से थ्यनेहाँ नहीं रहा। ( तज॒ुकरत-उल-औलिया, सफा 24)
सबक:- हजरत उवैस करनी रजी अल्लाहो अन्ह की बहुत बड़ी शान
है। आप अगरचै बजाहिर हुजर॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह व सलल्लपम् की
जियारत शरीफा से मुशर्रफ नहीं हुए लेकिन इश्क् व मोहब्बत की बदौलत
बातिनी आँखों से आप हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सलल्लम
के जमाल जहाँ आरा से मुशर्रफ हो चुके थे ये भी मालूम हुआ के हुजर
सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम इश्क व मोहब्बत और बातिनी आँख
वालों के सामने हाजिर व नाजिर हैं और हकीक॒त यही है के…..
वीदा-ए- कोर को क्या आए नज़र क्या देखे
आँख वाला तेरे जोबन का तमाशा देखे
और ये मालूम हुआ के हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल््लम के
बदन अनवर से मस शुदा पीरहन अनवर की बर्कतों और बुजगों की दुआओं
से हम गुनाहगारों की निजात हो जाती है। क्
फायदा:- जिस खुश किस्मत शख्स ने ब-नजूर ईमान हुज्र सल-लल्लाहो
तआला अलेह व सलल्लम की उन जाहिरी आँखों से जियारत की हो। या
जिस साहबे ईमान पर हुजुर सल-लल्लाहो त्आला अलेह व सल्लम की
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सच्ची हिकायात 453 हिस्सा सोम
नजर मुबारक पड़ गई हो। वो “सहाबी” है और जिसने हुजर सल-लल्लाहो
तआला अलेह व सलल्लम की तो जियारत ना की हो और उनके सहाबी को
देखा हो वो ताबई है। इस मानी में हजरत उवैस रजी अल्लाहो अन्ह ताबई
हैं और हजरत उबैस रजी अल्लाहो अन्ह को हुज॒र सल-लल्लाहो तआला
अलेह व सल्लम ने “खैर-उल-ताबईन” फरमाया है। ( मिशकात शरीफ,
सफा 574)
2- हजरत उबैस रजी अल्लाहो अन्ह हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह
व सल्लम के जमाने ही में थे। लेकिन वो हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह
व सललम की खिदमत में इसलिए हाजिर ना हो सके के आपकी वालिदा
बूढ़िया और जुईफा थीं। और उनको छोड़कर कहीं जा ना सके थे। ( हाशिया
मिशकात सफा मज॒कूर )
3 चूंके हजरत उबैस रजी अल्लाहो अन्ह हुज॒र की खिदमत में हाजिर
ना हो सके थे इसलिए इस खयाल से के हजरत उवैस इस बात का खयाल
ना फ्रमाई हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सलल्लम ने हजरत उवैस
की दिलजोई के लिए अपने सहाबा से यूं फ्रमाया के मन लकीहू मिनकुम
फलयसतग्रफिर लकुम यानी तुम में से जो शख्स उनसे मिले तो अपने
लिए उनसे मग॒फिरत की दुआ कराऐ। गोया उनकी अजुमत शान को बयान
फरमा दिया।
हिकायत नम्बर७॥0 मातियों का सौदागर
हजरत हसन बसरी अलेह अर्रहमा इक्तिदा में मोतियों और जवाहरात
के सौदागर थे। किस्म किस्म के मोती और जवाहरात की आप तिजारत
करते और बड़े बड़े बादशाहों के पास जवाहरात तोहफा में ले जाकर पेश
करते थे। एक दफा कुछ जवाहरात हरकल बादशाह रोम के पास लेकर
गए। पहले वजीर से मिले। और अपने आने का और आदशाह की खिदमत
में तोहफा लाने का हाल बयान किया। वजीर ने कहा। कल तो बादशाह को
एक निहायत जुरूरी काम है असलन फुरसत ना होगी। और काम देखने के .
‘काबिल है। हजरत हसन ने कहा के मैं जुरूर देखूंगा। वजीर ने हजरत हसन
को ले जाकर एक जगह मैदान में ठहराया। मैदान में एक खैमा जरी का
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सच्ची हिकायात 454 ‘ हिस्सा सोम
कायम था। उसके आस पास आला दर्जे की मखमल का फर्श था खैमे को
तनाबीन जरी की थीं। उसकी चौबें चाँदी की थीं। मेखें सोने की थीं। निहायत
काबिल दीद मंजूर था। वजीर ने हजुरत हसन को खैमा के अकूब में चिलमन
के पीछे खड़ा किया। के जिस जगह से हजरत हसन ने सारा तमाशा देख
लिया। लेकिन वो खैमा दरअसल शाह हरकल के अजीज फ्रजुंद की कब्र
पर खड़ा था। और आज उसकी सालाना बर्सी का दिन था। बादशाह सालाना
रसम ताजीयत अदा करने यहाँ आया था। हजरत हसन ने देखा के पहले एक
जमात मुकुददस इसाई लोगों की खैमा के अन्दर आई। और कब्र के पास खड़े
होकर कुछ पढ़ने लगे और फिर रोते हुए निकल कर चले गए। उसके बाद
एक जमात तबीबों की और बड़े बड़े जी अक्ल लोगों की आईं ये लोग भी
नंगे सर। कब्र के पास खड़े रोते रहे। और थोड़ी देर के बाद निकल कर चले
गए। उनके बाद फौज के अफसरों की जमात नंगी तलवारें लेकर खैमा के
अन्दर आई वो भी क॒ब्र की सलामी उतार कर नाकाम वापस गई। फौजी लोगों
के बाद एक झुंड नोजवान औरतों का आया। जिनके सर के बाल खुले हुए
थे। उनके हाथों में सोने की थालियाँ थीं। जिनमें मोती और जवाहरात भरे थे।
इन औरतों ने क॒ब्र का तवाफ किया और बहुत रोकर ये भी खैमे से बाहर
चली गईं। इन सबके बाद बादशाह खुद खैमे के अन्दर आया और कब्र के
पास खड़ा होकर कहने लगा। बेटा! तू मुझे बहुत प्यारा था। मगर अफसोस
के तू मर गया। अगर मुझे ये मालूम हो जाए के जिसने तेरी जान ली है वो
उन बड़े बड़े राहिबों और पाद्रियों का कहा मान कर तेरी जान वापस कर
देगा तो ये बड़े बड़े इसाई राहिब इस काम के लिए तेरे पास हाजिर हैं। मगर
मैं जानता हूँ के उनके कहने से कुछ ना होगा। अगर मुझे ये मालूम हा जाए
के अक्लमंदों और तबीबों की तदबीर करने से तेरी जान खुदा तुझे बख़श
देगा तो ये बहुत बड़ी जमात तबीबों और बड़े बड़े अक्लमंदों की तेरी कंन्न
के पास खड़ी है। और तेरी रिहाई की तदबीरें करने को मौजूद है। मगर मैं
जानता हूँ के तुझे ऐसे जुबरदस्त ने मारा है के उसके सामने किसी की तदबीर
नहीं चलती। ऐ फ्रजूंद! अगर मुझे ये मालूम हो जाए के जिसने तेरी जान
निकाली है। वो किसी बड़ी फौज से डर तुझे छोड़ देगा तो ये कसीर फौज
और फौज के अप्सर तुझे कैद से छड़ाने को तेरी कब्र के पास मौजूद हैं।
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सच्ची हिकायात हिस्सा सोम
लेकिन जिसने तुझे कैद किया है वो ऐसा जुबरदस्त खुदा है के कोई फौज
उसके सामने कोई हस्ती नहीं रखंती। ऐ फ्रजुंद अगर ये मुझे मालूम हो जाए.
के जिसने तुझे मारा है वो हसीन और खूबसूरत औरतों का तालिब है और
हसीन औरतें लेकर तुझे छोड़ देगा तो ये खूबसूरत औरतों की जमात हाजिर
है। मगर मैं जानता हूँ के ना वो हसीन औरतों का तालिब है। ना माल व जवाहर
का ख़्वास्तगार है और अब वो तुझे किसी तरह ना छोड़ेगा। इसलिए अब में
तुझ से फिर एक साल के लिए रूख्सत होता हूँ ये कहकर बादशाह खैमे
से बाहर निकल आया। और सब लोग कब्र के पास से रूख्सत हुए। हजरत
हसन ने ये वाक्केया देखा तो दिल पर ऐसा असर पड़ा के दुनिया से तबीयत
यक लख़्त हट गईं। और आपने आईंदा दुनिया के जवाहरात बैचने छोड़
कर आखिरत के जवाहरात खरीदने शुरू कर दिए और दुनिया के जुमला ‘
कारोबार से अलग होकर इस फिक्र में पड़ गए के आखिरत का जादे राह
मोहय्या करें। और बसरे में आकर कसम खाई के अब इस दुनिया में हंसूंगा
नहीं। और फिर इबादत व मुजाहेदा में कुछ इस तरह मशगल हो गए के इस
जमाने में कोई वैसा ना था। और 70 बरस तक ता दम जीसत बे बज ना रहे।
( तज॒करत-उल-औलिया, सफा 76-77) ह
सबक:- अल्लाह तआला बड़ी ताकृत और क॒द्गत का मालिक है।
उसके मुकाबले में बड़े बड़े दाना व तबीब और बड़ी बड़ी फौजें और बड़े
बड़े लश्कर कुछ भी हैसियत नहीं रखते। और उसका कूछ भी नहीं बिगाड़
सकते और ये भी मालूम हुआ के चाहे कितना बड़ा आदमी क्यों ना हो। एक
दिन उसे मरना जरूर है। और मौत के आने में अमीर व गूरीब सब बराबर
हैं। बकौल शायर
कितने मुफलिस हो गए कितने तबंगर हो गए
खाक में जब मिल गए दोनों बराबर हो गए
और ये भी मालूम हुआ के अल्लाह वाले इस दुनियाऐ फानी के वाकेयात
से इब्बरत हासिल करते और अपनी आक्बत संवारने की फिक्र में रहते हैं।
हिकायत नम्बर(॥0 जिनों में बाज
हजरत अब्दुल्लाह का बयान है के मैं एक रोज सुबह उठा ताके जमांत
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सच्ची हिकायात॑ 456 हिस्सा सोम
के साथ नमाज पढ़ें। मैं हजरत हसन बसरी रहमत-उल्लाह अलेह की मस्जिद
के दरवाजे पर आया। दरवाजा बन्द था। और हजरत हसन दुआ माँग रहे थे
और लोग आमीन कह रहे थे। मैंने अपने दिल में कहा के शायद हजरत हसन
के अहबाब यहाँ मौजूद हैं। मैं थोड़ी देर ठहरा रहा। यहाँ तक के सुबह हो
गईं मैंने दरवाजे पर हाथ रखा। दरवाजा खुल गया। मैं अन्दर गया तो हजरत
हसन को अकेला पाया। मैं हैरत में रहा और जब नमाज से फारिग हुआ तो
वो किस्सा उनसे बयान किया। और मैंने कहा के खुदा के वास्ते मुझे इस
हाल से खबरदार कीजिए के आमीन कहने वाले कौन थे। आपने फरमाया
के किसी से मत कहना। मैंने हर जुमआ की रात जिनों में बाज कहने लिए
“मुक्रर कर रखी है। वो हर जुमओ की रात को यहाँ आते हैं और मैं उनके
: सामने वाजु कहता हूँ और फिर दुआ माँगता हूँ और वो आमीन कहते हैं।
(तजकरह औलिया, सफा 56)
सबक्:ः- अल्लाह वालों की बहुत बड़ी शान है। यहाँ तक के जिन्न भी
उनके गलाम होते हैं। और ये भी मालूम हुआ के किसी नेक काम के लिए
कोई दिन या रात मुक्रर करना बिदअत नहीं बल्के जायज है।
झरें में एक हाफिज क्रआन रहते थे। जिनका नाम अबु उमरो था। ये
लोगों को पढ़ाया करते थे एक रोज एक बे दाढ़ी मूंछ का खबसूरत लड़का
उनके पास आया। और कहा मुझे भी करआन पढ़ाहिये । अबु उमरो ने उसकी
तरफ खियानत की नजर से देखा। तो उसकी पादाश में उन्हें सारा कुरआन
भूल गया। अबु उमरो बड़े घबराए और परेशानी के आलम में हजरत हसन
बसरी रहमत-उल्लाह अलेह की खिदमत में हाजिर हुए और सारा किस्सा
– अर्जु करके तालिबे दुआ हुए। हजरत हसन बसरी रहमत-उल्लाह अलेह ने
फ्रमाया के हज का जमाना क्रीब है। जाओ जाकर हज कर लो। और जब
हज कर चुको तो मस्जिदे खीफ में जाना। वहाँ तुम्हें एक बूढ़े शख्स मिलेंगे
जो मेहराब में बैठे होंगे। उनकी खिदमत में हाजिर होना और उनके वक्त
जाए ना करना जब वो अपने अवरादो वजायफ से फारिग हो जायें उस वक्त
अपनी अर्जु पेश करना और दुआ के लिए कहना। अबु उमर ने ऐसा ही किया।
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सच्ची हिकायात हिस्सा सोप
और हज करके मस्जिदे खीफ में पहुँच गए वहाँ मेहराब में वाकुई एक जी
शौकत नूरानी और पुर जलाल बूढे को बैठा हुआ पाया जिनके इर्दगिर्द बहुत
से आदमी बैठे थे। ये भी उन आदमियों में बैठ गए। थोड़ी दर गुजरी तो एक
बुजर्ग सफेद और पाकीजा लिबास पहने वहाँ आए। लोग उनके सामने गए
और सलाम किया। और आपस में बात चीत करते रहे। और जब नमाज का
बक्त आया तो वो बुजूर्ग चले गए। और लोग भी उनके हमराह चले गए।
और बूढ़े बुजर्ग तनहा रह गए। अबु उमरो आगे बढ़े। और उनको सलाम
करके अपना सारा किस्सा बयान किया। और रोते हुए अर्ज किया के मेरी
फरयाद को पहुँचिये और मेरी छीनी हुई दौलत ( हिफ्जु क्रआन ) मुझे वापस
दिलाईये। वो बूढ़े शख्स गुमनाक से हुए। और फिर कुन अखियों से आसमान
की तरफ नजर की। अभी उन्होंने नजर नीचे ना की थी के अबु उमरो पर
सारा क्रआन फिर कशफ हो गया। अबु उमरो मारे खुशी के उनके कदमों में
गिर गए। वो बूढ़े बुजर्ग पूछने लगे के तुझे मेरा पता किस ने बताया था? अबु
उमरो ने जवाब दिया के हजरत हसन बसरी ने। वो बोले। हसन बसरी ने हमें
रूसवा किया। और हमारा पर्दा फाश किया। अब हम उसको रूसवा करेंगे
और उसका पर्दा फाश करेंगे। फिर फ्रमाया के तुम ने इस बुज॒र्ग को देखा?
जो जोहर की नमाज से पहले यहाँ आए थे। जिनका सफेद और पाकीजा
लिबास था। और जो सबसे पहले चले गए थे। अबु उमरो ने कहा! हाँ देखा
था। फरमाया वो हसन बसरी ही थे। हर रोज नमाज जोहर बसरा में पढ़कर
यहाँ आते हैं। और हम से बात चीत करते हैं और दूसरी नमाज के वक्त बसरा
चले जाते हैं। फिर फरमाया के जिसका इमाम हसन बसरी जैसा हो। उसको
हमारी दुआ की क्या हाजत है। ( तजुकरह औलिया, सफा
सबक्- मुश्किल के वक्त बुजर्गों की खिदमत में हाजिर होकर फ्रयाद
करने से और बुजूर्गों की दुआ से बड़ी बड़ी मुश्किलें हल हो जाती हैं और
ये भी मालूम हुआ के बदनिगाही से बड़ी बड़ी आफतें नाजिल हो जाती हैं।
और इल्मे दीन भी सलब हो जाता है
और ये भी मालूम हुआ के अल्लाह वाले अपने कमालात को छपाते हैं।
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सच्ची हिकायात॑. … 458 हिस्सा सोम
और बावजूद उलू शान के तवाजो इख़्तियार फ्रमाते हैं। उन्हें अपनी
का खयाल तक नहीं आता। बलके वो दूसरे बुजुर्गों को ही बड़ा कह ।
और ये भी मालूम हुआ के सेंकड़ों मील की मुसाफत ये अल्लाह वाले पल
‘ भर में तय करते हैं। फिर जो लोग एक मील तक का भी सफर ना कर सकते
हों। वो उन पाक लोगों के मिस्ल कैसे हो सकते हैं।.._ पा,
हिकायत नम्बर ७७) आतिश परस्त शमऊन
हजरत हसन बसरी रहमत-उल्लाह अलेह के पड़ोस में एक आतिश परस्त
शम्ऊन नामी रहता था। वो एक बार बीमार पड़ गया। और क्रीब-उल-मर्ग
हो गया। हजरत हसन को इसकी बीमारी का पता चला तो आप उसके पास
पहुँचे। आपने देखा आग उसके पास सुलग रही है और वो आग धूएँ से काला
पड़ गया है। आपने फ्रमाया के खुदा से डर और मुसलमान हो जा। सारी उम्र
तूने आग और धूएँ की परसतिश की। अब दीने इस्लाम को आजुमा। शायद
खुदा तुझ पर रहम फरमाए। शमऊन ने कहा। के दीन इस्लाम की सदाक॒त की
कोई निशानी दिखाईये। आपने फ्रमाया। देख तूने सत्तर बरस आग की पूजा
की। और मैंनें एक रोज भी उसको नहीं पूजा। अब मैं और तुम दोनों आग में
अपना अपना हाथ डालते हैं और फिर देखते हैं के आग किस का जलाती है
और किस को छोड़ती है। चाहिए तो ये के इसका पुजारी है। इसलिए वो तुझे
ना जलाए और मैं उसका पुजारी नहीं इसलिए वो मुझे जला दे। मगर मुझे
अपने अल्लाह से उम्मीद है के आग मुझे हर गिजू ना जलाएगी अगर तुम मेरे
खुदा की कृद्रत और इस आग की कमजोरी को देखना चाहते हो तो लो देख
लो ये कह कर आपने अपना हाथ जलती आग में डाल दिया। और देर तक
उसमें डाले रखा। शमऊन ने देखा के आपका हाथ बिलकुल नहीं जला। ये
मंजर देख कर शमऊन बेक्रार हुआ। और खुदा की मोहब्बत का नूर उसकी
पैशानी से चमकने लगा और अर्ज करने लगा अब तक पूरे सत्तर बरस मैंने
इस आग की पूजा की है और अब चन्द सांस बाकी हैं तो इसमें मैं आपके
खुदा की क्या इबादत कर सकता हूँ? हजरत ने फरमाया तो उसकी फिक्र ना
कर। कलमा पढ़ ले। तो मेरा खुदा फौरन राजी हो जाएगा और पिछले सत्तर
बरस की आग की सारी परसतिश माफ फ्रमाएगा। शमऊन ने कहा आगर
आप एक इक्रार नामा लिख दें के हक तआला मुझे अजूाब ना देगा तो मैं
ईमान ले आता हूँ। हजरत हसन ने एक इक्रार नामा लिख दिया और शमऊन
को दे दिया! शमऊन ने वो इक्रार नामा लिया और कलमा पढ़कर मुसलमान
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सच्ची हिकायात 459 हिस्सा सोम
हो गया। और फिर हजर हसन को वसीयत की के जब मैं मर जाऊँ तो गस्ल
देने के बाद आप खुद मुझे कब्र में उतारें और ये इक्रार नामा मेरे हाथ में
रखना ताके कल कयामत के दिन में ये दिखा कर अजाब से बच जाऊँ। फिर
कलमा शहादत पढ़ा। और शमऊन मर गया। हजूरत ‘ने उसकी वसीयत के
मुताबिक किया और बहुत से लोगों ने उसकी नमाजे जनाजा पढ़ी। उस रात
हसन बसरी मतलक् ना सोए और सारी रात नमाज पढ़ते रहे और अपने दिल
में कहते रहे के मैंने क्या किया मैं तो खुद अपनी जायदाद पर क॒द्रत नहीं
रखता। फिर खुदा की मलिक पर मैंने कैसे मोहर कर दी और इक्रार नामा
लिख दिया। इसी खयाल में सो गए तो शमऊन को देखा के ताज सर पर रखे
‘ और नूरानी लिबास पहने बहिश्त के बागों में टहल रहा है। हजरत हसन ने
दरयाफ्त किया के ऐ शमऊन! क्या हाल है? उसने कहा आप क्या पूछते हैं।
हक् तआला ने मुझ पर बड़ा फज्ल फ्रमाया है और एक बहुत बड़े महल में
उतारा है। और अपना दीदार भी अता फ्रमाया है। और जो जो मेहरबानियाँ
मुझ पर फ्रमाई हैं के मुझ में ताकृत नहीं के बयान कर सकूं ऐ हसन! अब
आपके जिम्मे कुछ बोझ ना रहा। आपका इक्रार नामा बड़े काम आया। अब
ये लीजिए अपना इक्रार नामा। क्योंके अब इसकी जरूरत नहीं। ये कहकर
वो इक्रार नामा उसने हजुरत हसन बसरी को दे दिया। हजरत हसन बसरी
जब बैदार हुए तो वो इक्रार नामा उनके हाथ में था। (तजकरह औलिया,
सफा 39-40) -: ।
सबक:- अंललाह वाले जब किसी बदकार गुनहगार और काफिर
नाहिंजार की तरफ भी तवज्जह फर लें तो उसका बैड़ा पार हो जाता है और
वो जन्नत का हकदार बन जाता है। और ये भी मालूम हुआ के अल्लाह वाले
जब किसी बात का अहेद ब इक्रार कर लें अल्लाह तआला अपने वली के
अहेद व इक्रार सच्चा कर देता है। और जो बात उनके मुंह से निकल जाए
वो पूरी कर देता है। फिर जो उन वलियों और नबियों के भी आका व मौला
और सरदार हैं। यानी हुज॒र सय्यद-उल-अंबिया अहमद मुजतबा मोहम्मद
मुसतफा सल-लल्लाहो आला अलेह व सल््लम वो क्यों ना जन्नत के मालिक
व मुख्तार होंगे और उनकी ये शान क्यों ना होगी? के वो जिस चाहें जन्नत
में दाखिल कर दें और जिसे चाहें जन्नत से निकाल दें।
हिकायत नम्बर॥॥) दजले के किनारे
हजरत हसन बसरी रहमतं-उल्लाह अलेह एक रोज दजले के किनारे
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सच्ची हिकायात 460 हिस्सा सोम
जा रहे थे के एक हबशी को देखा जो अपने पास एक औरत को लिटाए
एक बोतल से खुद भी कुछ पी रहा था और उस औरत को भी पिला रहा था।
हजरत हसन के दिल में खयाल गुजरा के उस शख्स से अच्छा मैं ही
हूँ। जो ऐसी हरकत का मुरतकिब नहीं हूँ। ये शख्स औरत के साथ शराब
पी रहा है और शराब की बोतल आगे रखी है। इसी फिक्रो खयाल में थे के
एक कश्ती असबाब से भरी हुई दरया में आई जो चक्कर खाकर डूब गई।
उस पर दस आदमी भी सवार थे। वो दसों गौते खाने लगे इस हबशी ने जो
ये मंजर देखा तो झट उठा। और दरया में कूद कर एक एक को निकालने
लगा। हत्ता के नौ आदमी उसने निकाल लिए और फिर हजूरत हसन बसरी
को मुखातिब करके कहने लगा…..
ऐ हसन बसरी ऐ मर्द बा कमाल
मुझ से अच्छा है तो दसवाँ तू निकाल…
ऐ मुसलमानों के इमाम! बदगुमानी अच्छी नहीं। ये औरत मेरी माँ है और
इस बोतल में पानी है। हजरत हसन उसके कदमों में गिर गए और माजुरत
तलब करने लगे। ( तज॒करत-उल-औलिया, सफा 40)
सबक्ः- जब तक किसी बात का यकीन ना हो। किसी के हक में
बदगुमानी ना करना चाहिए। और ये भी मालूम हुआ के अल्लाह वालों की
नजर से दिल के खयाल भी पौशीदा नहीं रहते।
हिकायत नम्बर७॥) गीबत का बदला
हजरत हसन बसरी रहमत-उल्लाह अलेह से किसी शख्स ने आकर कहा
के फला शख्स ने आपकी गीबत की है। हजरत हसन बसरी ने उसी वक्त
ताजा छहारे मंगवाएं। और एक तबाक् में रखकर उन्हें इस शख्स के पास
बतौर तोहफा भेजा और कहला भेजा के मैं आपका शुक्रगुजार हूँ के आपने
मेरी गीबत करके अपनी नीकियों को मेरे दफ्तर आमाल में मुनतक्रिल कर
दिया है। आपके इस एहसान का बदला मैं चुका नहीं सकता। ताहम ये हकौर
सा तोहफा कबूल फ्रमाईये। वो शख्स हजरत हसन बसरी अलेह अर्हमा
के इस सलूक को देखकर बहुत शर्मिंदा हुआ और खिदमत में हाजिर होकर
माफी चाही। द
सबक्:- किसी की गीबत करने से सरासर अपना ही नुकसान है
और जिसको गीबत की जाए वो फायदे में रहता है। और वो इस तरह के
गीबत करने वाले की नेकियाँ उसको मिल जाती हैं। लिहाजा गीबत से बचना
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सच्ची हिकायात हिस्सा सोम
चाहिए। और ये भी मालूम हुआ के अल्लाह के नेक बन्दे बुराई का बदला
बुराई से नहीं देते बल्के बुराई के बदले भी नेकी ही करते हैं।
हिकायत नम्बर॥७ दहरिये से मुनाजुरा
हजरत मालिक बिन दीनार रहमत उलल्लाह अलेह का एक बार एक
दहरिये से मुनाजुरा हुआ। गुफ्तगू बढ़ गई और बात यहाँ आकर खूतम हुई के
इस दहरिये का हाथ और हजरत मालिक बिन दीनार का हाथ दोनों के हाथों
को यकजा बाँध कर आग में डाला जाए फिर देखा जाए के आग किस के
हाथ को जलाती है और किस के हाथ को छोड़ देती है जिस के हाथ को
आग छोड़ दे वो सच्चा और जिसके हाथ को जला दे वो झूटा है चुनाँचे
दोनों हाथ बाह मिलाकर बाँधे गए और आग में डाले गए। खुदा की क्द्गत
से ऐसा हुआ के दोनों में से किसी का हाथ ना जला। बल्के आग सर्द हो
गईं। और दोनों बच गए। हजुरत मालिक बिन दीनार रहमत-उल्लाह अलेह
ये वाकेया देखकर बड़े परेशान हुए। और सज्दे में गिर कर मनाजाता की। के
इलाही! ये क्या किस्सा है। गैब से आवाज आई के ऐ………. मालिक! दहरिये
का हाथ तेरे हाथ के साथ मिला हुआ बाँधा गया है और तेरे हाथ के साथ
साथ आग में डाला गया है। और जो चीज तेरे हाथ से लग जाएगी हम उसे
भी ना जलाऐंगे। दहरिये का हाथ हलने से अगर बजा है तो तुम्हारे ही हाथ
की बर्कत से तुम अपना हाथ अलग और उसका हाथ अलग आग में डालो।
फिर तमाशा देखो। चुनाँचे फिर दूसरी मर्तबा ऐसा ही किया गया+ तो हजरत
मालिक का हाथ तो मेहफ्ज रहा और दहरिये का हाथ हल गया। और उसका
झूटा होना जाहिर हो गया। ( तज॒करह औलिया, सफा 50)
सबक्:- अल्लाह वालों की सोहबत और उनके हाथ में हाथ दे देने
को बर्कत से गुनहगार निजात पा जाता है और उनसे अलेहदा होने में नुकुसान
व खसरान के सिवा कुछ हासिल नहीं होता। इसी लिए अल्लाह तआला ने
फ्रमाया है कूनूअ मआस्सादीकृन। और मौलाना रूमी अली अर्रहमा भी
फरमाते हैं के.
सोहनत . सालेह तिरा सालेह कद
हिकायत नम्बर(॥0 यहूदी का परनाला
हजरत मालिक बिन दीनार रहमत-उल्लाह अलेह ने एक मकान
किराए पर लिया। इस मकान- के पड़ोस में एक यहूदी का मकान था। और
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सच्ची हिकायात 42… हिस्सा सोम
हजरत मालिक बिन दीनार का हुजरा सफा यहूदी के मकान के दरवाज़े
से करीब था इस यहूदी ने एक परनाला बना रखा था। और हमेशा इस
परनाले की राह से निजासत हजूरत मालिक के घर में फैंका करता था।
उसने मुद्दत तक ऐसा ही किया। मगर हजूरत मालिक ने उसकी शिकायत
कभी ना फ्रमाई। आखिर एक दिन इस यहूदी ने खुद ही हजरत मालिक
से पूछा के हजरत! आपको मेरे परनाले से कोई तकलीफ नहीं होती।
आपने फरमाया होती तो है। मगर मैंने एक टोकरी और एक झाड़ू रख
छोड़ी है। जो निजासत गिरती है उससे साफ कर देता हू। उसने कहा के
आप इतनी तकलीक क्यों करते हैं? और आपको गुस्सा क्यों नहीं आता?
फरमाया के मेरे खुदा का क्रआन में इर्शाद है के जो लोग गुस्सा पी लेते
हैं और लोगों को माफ कर देते हैं वो बड़े अच्छे लोग हैं। यहूदी ने कहा
के फिर मुझे कलमा पढ़हाईये। जो दीन ऐसी अच्छी तालीम देता है वो
दीन भी बड़ा अच्छा है। ( तजुकरत-उल-औलिया, सफा 52)
सबक्:- अल्लाह के नेक बन्दों की आदत बड़ी ही नेक होती है और
वो तकलीफ पहुँचने पर भी गुस्से में नहीं आते और खुता कार की खता माफ
कर देते हैं। और ये भी मालूम हुआ के इस्लाम अल्लाह वालों के अखलाके
हसना से फैला है। बकौल शायर
“ दीन होता है बुज़्गों की नजर से पैदा
ना किताबों से ना कालिज के है दर से पैदा
हिकायत नम्बर७॥) हबीब अजमी रहमत-उल्लाह अलेह
हजरत हबीब अजमी रहमत-उल्लाह अलेह शुरू में बड़े मालदार
और अपना माल सूद पर अहले बसरा को दिया करते थे। और हर रोज
अपने लेन देन के तकाजे के लिए जाया करते थे और जब तक के जिनसे
कुछ लेना होता वसूल ना कर लेते थे ना टलते थे। और अगर देखते के
और कुछ वसूल नहीं होता तो कहते के अच्छा मेरे आने की मजदूरी दो
और इसी से अपना गुजारा करते। एक रोज अपने माल की तलब के
लिए एक घर में गए वो क्रजुदार घर में ना था। उसकी बीवी ने कहा
के मेरा खाबविंद. घर में नहीं। और मेरे पास कुछ नहीं। हाँ मैंने आज एक
भेड़ जिबह की है उसकी गर्दन मेरे पास है। वो अगर चाहें तो ले जायें।
आपने कहा अच्छा वही दे दो। चुनाँचे इस औरत ने वो गर्दन दे दी। और
आप वसे सिरी लेकर अपने घर आए और बीवी से कहा के ये सिरी सूद
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सच्ची हिकायात 463… हिस्सा सोम
में आई है। पकाओ बीवी ने कहा। रोटियाँ और लकड़ियाँ नहीं हैं। आपने
कहा। मैं अभी जाकर सूद में रोटियाँ और लकड़िया लाता हूँ। चुनाँचे गए
और इसी तरह पर रोटियाँ और लकड़ियाँ ले आए। बीवी ने हाँडी चढ़ाई
जब पक गई तो चाहा के पियाले में निकाले के एक सायल ने-दरवाजे
पर आकर सवाल किया और राहे खुदा में कुछ माँगा। हबीब कहने लगे
के वापस हो जाओ। इसलिए के तुझे जो कुछ हम देंगे उससे तू अमीर ना
हो जाएगा। मगर हम फक्रीर हो जाऐंगे। सायल लौट गया। हंजरत हबीब
की बीवी ने जो डोई हांडी में डाली तो क्या देखती है के उसमें सब खून
ही खून है। अपने ख़ाबिंद को बुलाया और दिखा कर कहने लगी। देखिये
ये आपकी बदबझुती व शोमी से क्या हो गया। हजरत हबीब ने ये हाल
देखा तो दिल पर एक ऐसा असर हुआ के आपकी हालत फीौअलफोर
बदल गईं। और कहने लगे ऐ मेरी बीवी! तू गवाह रह के मैंने आज हर
बुरे काम से तौबा कर ली। फिर आप बाहर निकले ताके कर्ज दारों को
तलाश करके अपना माल व जुर उनसे वापस लें और फिर सूद पर ना
चलायें। जुमआ का रोज था और लड़के के खेल रहे थे उन लड़कों ने
जब हजरत हबीब को देखा तो आपस में कहने लगे के देखो सूद खौर
आ रहा है। अलग हो जाओ ऐसा ना हो के उसके पाँव की गर्द हम पर
पड़ जाए। और हम भी इस तरह बदबख़त हो जाएँ। जब ये आवाज हजूरत
हबीब के कानों में पहुँची तो बड़े रंजीदा हुए और सीधे हजूरत हसन
बसरी रहमत-उल्लाह अलेह की मजलिस में गए। हजरत हसन बसरी
अलेह अर्हमा ने तौबा कराई और कुछ पंदो निसायहे बयान फरमाए
हजरत हजीब की वहाँ काया पलट गई। और आप वहाँ से अल्लाह
के महंबूब बनकर निकले वापस आते वक्त रास्ते में आपका मकरूज
आपको देखकर भागा। हजरत हबीब ने उसे आवाजु दी। और फ्रमाया।
भाई! अब तू मुझ से ना भाग। अब मुझे तुझ से भागना चाहिए। ये कहा
और घर की तरफ लौटे। रास्ते में फिर वही लड़के खेलते नजर आए
और उन्होंने जब हजरत हबीब को आते देखा तो आपस में कहने लगे
के अलग हट जाओ। हबीब तौबा करके आ रहा है। अब जो हमारी गर्द
इस पर पड़ गई तो ऐसा ना हो। के हम गुनहगार हो जायें। हजरत हबीब
ये जुमला सुनकर दिल में कहने लगे। ऐ रब्बे गुफूर! अजब तेरी रहमत
है के आज ही मैंने तौबा की। तूने उसका असर अपनी मखलूक के दिल
में पहुँचाया। और मेरी नेक नामी मश्हूर कर दी। फिर आपने आवाज दी
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सच्ची हिकायात 464… हिस्सा सोम
के जिस किसी ने हबीब का कुछ देना हो वो आए और अपनी दसताबेज
वापस ले जाए। ये आवाज सुनकर सब मकरूज जमा ह॒ुए। फिर आपने
जो माल जमा किया था। सब लोगों को बाँट दिया। यहाँ तक के आपके
पास कुछ बाकी ना रहा। ( तज॒करह औलिया, सफा 59)
सबक्:- अल्लाह की रहमत बड़ी बसी है। और गुनहगार जब सच्चे
दिल से तायब हो जाए तो उसकी रहमत फौरन उसे अपनी आगौश में
ले लेती है। और ये भी मालूम हुआ के अल्लाह तआला अपने मक्बूल से
मोहब्बत फरमाता है तो वजुआ लहुल कृबूलू फिल अर्जी के मुताबिक्
खुदाई के दिल में उसकी मोहब्बत व कूबूलियत पैदा फरमा दी जाती
है और सब उसे चाहने लगते हैं। मसलन हुज्र गौस-उल-आजूम रजी
अल्लाहो अन्ह की महबूबियत व मक्बूलियत का ये आलम है के हमने
हिन्दुओं तक को देखा। जो गौस-उल-आजूम के साथ बड़ी अकौदत
रखते थे। फिर जो शख़्स उन अल्लाह वालों से अकीदत ना रखे वो किसी
कद्र बद नसीब हे। न ह॒
हिकायत नम्बर७७) राबिया बसरी
हजरत राबिया बसरी के वालिद माजिद एक ग्रीब शख्स थे। उनकी
तीन बेटियाँ और भी थीं। और हजरत राबिया बसरी चौथी बेटी थीं और
उनको राबिया इसलिए कहते हैं के राबिया का मानी चौथी औरत के हैं।
जिस रात हजरत राबिया पैदा हुईं उसी रात उनके वालिद के घर में खर्च
करने को कुछ ना था वो उसी फिक्र में सो गए के रात को हुजूर सरबरे
आलम सल-लल्लाहो तआला अलेह व सलल््लम की ख़ुवाब में जियारत
हुईं और हुजर ने फ्रमया तुम गुमगीन मत हो ये लड़की जो तुम्हारे हा
पैदा हुई है बड़ी बरगृुजीदा और मक्बूल होगी। तुम सुबह अमीर बसरा के
पास जाओ एक कागज पर मेरी तरफ से ये लिखकर उसे पहुँचा द्दो
हर रात तुम जो मुझ हुज॒र( स“अथ्स० ) पर सौ बार दुरूद भेजते हो और
जुमओ की रात को चार सौ बार,-ये जुमओ की रात जो गुजूर गई है तुम
उसमें दरूद पढ़ना भूल गए हो। उसके अवजु् में चार सौ दीनार बतौर
कुफ्फारा इस शख्स को दे दो। हजरत राबिया के वालिद जब बैदार हुए
तो रोते हुए उठे और हस्ब-उल-इर्शाद एक अर्जी लिखी। और अमीर
बसरा के पास पहुँचे और एक दरबान के हाथ वो अर्जी अन्दर भेजी।
अमीर वो अर्जी देखकर आलमे वज्द में आ गया और हुक्म दिया के इस
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सच्ची हिकायात 465 हिस्सा सोम
शुक्राने में के हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह ब॑ सलल्लम ने मुझ को
याद फ्रमाया है। उसी वक्त दस हजार दरहम फकीरों को तकसीम किए
जायें और चार सौ दरहम इस बुजूर्ग शख़्स को दिए जायें जो ये पैगाम –
लाया है और उसको कहा जाए के वो अन्दर तशरीफ लाए ताके उसकी
जियारत करू फिर एक दम उठा और कहा मगर ये खिलाफे अदब है
के मैं उसे अन्दर बुलाऊँ। मैं खुद उसकी खिदमत में हाजिर होता हूँ और
उसकी राह को अपनी दाढ़ी से साफ करता हूँ। चुनाँचे अमीर बसरा खुद
बाहर आया और हजरत राबिया के वालिद के हाथ चूमे और बड़े ताजीम
व तकरीम से उसे मसनदे शाही पर बिठाया और अर्ज किया आईंदा जब
भी कभी कोई हाजत हो। खुदारा मुझ ही से वो खिदमत लिया कीजिए।
सबक:- हजरत राबिया बसरी रहमत-उल्लाह अलेहा ऐसी
बरगजीदा और मक्बूल हक थीं के जिनकी खुद हुज॒र सल-लल्लाहो
तआला अलेह व सलल्लम ने तारीफ फ्रमाई और ये भी मालूम हुआ के
अल्लाह के मक्बूलों के दम कृदम से घर में बर्कतों और रहमतों का नजल
होने लगता है और ये भी मालूम हुआ के हुज॒र सल-लल्लाहो तआला
अलेह व सल्लम अपनी उम्मत के हाला से आज भी बा खबर हैं और
अब भी मोहताजों की मदद फ्रमाते हैं और ये भी मालूम हुआ के दुरूद
शरीफ पढ़ना बड़ी बक्कत व रहमत का बाइस है और हुज॒र सल-लल्लाहो
तआला अलेह व सललम दुरूद पढ़ने वाले को जानते हैं चाहे वो कहीं
भी हो और ये भी जानते हैं उसने कितना दुरूद पढ़ा। गोया हमारे हजर
सल-लल्लाहो तआला अलेह ब सल्लम से कोई बात भी पौशीदा नहीं।
फिर अगर कोई शख्स हुज॒र सल-लल्लाहो त्तआला अलेह व सलल्लम के
इल्म में कलाम करे तो वो किस क॒द्र बे इल्म है।
हिकायत नम्बर७७) चोर
हजरत राबिया बसरी रहमत-उल्लाह अलेहा एक रात नमाज पढ़ते पढ़ते
थक गईं और इत्तिफाकुन उस रात आपके घर कोई चोर घुस आया और
आपके सामान की गठरी बाँध कर उठाई और चाहा के चल दे। मगर ब उसने
गठरी उठाई तो अंधा हो गया और रास्ता ना पाया घबराकर उसने गठरी रख
दी गठरी रखी तो फिर बीना हो गया। उसने फिर गठरी उठाई। उठाई तो फिर
अंधा हो गया गर्ज दो तीन बार ऐसा ही हुआ। और फिर इस। हातिफ से एक
आवाज सुनी के ऐ नादान! अगर एक दोस्त सो रहा है तो दूसरा दोस्त जाग
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सच्ची हिकायात 466 | हिस्सा सोम
रहा है। बेबकफ! राबिया ने अपने आपको जज से हमारे सपुर्द कर रखा है
इस वबंक्त से बिचारे इबलीस को ये कृद्रत हासिल नहीं के वो उसके पास
फटकें फिर चोर बिचारे की क्या ताकृत है के इस सामान के पास फटके।
पस ऐ गिरह कट! निकल यहाँ से वो चोर ये आवाज सुन कर वहाँ से भाग
गया। ( तज॒करतं-उल-औलिया, सफा 77)
हिकायत नम्बर७2/) शाहे बलख
हजरत इब्राहीम इब्ने अदहम रहमत-उल्लाह अलेह बलख के बादशाह
थे और एक जहाँ आपके जेरे फ्रमान था। जब आप सबार होते थे तो
आपके खिद्दाम चालीस ढालें सोने की और चालीस गर्ज सोने के आपके
आगे और पीछे लेकर चलते थे। एक रात आप अपने शाही बिस्तर पर सो
रहे थे। तो आधी रात के वक्त आपको छत पर आहट मालूम हुई। आपने
आवाज देकर पूछा के छत पर कौन है? तो किसी ने जवाब दिया के मेरा
ऊँट खो गया है। मैं अपना ऊँट तलाश कर रहा हूँ। आपने फ्रमाया के ऐ
नादान! ऊँट का छत पर क्या काम क्या कभी ऊँट छत पर भी मिला है?
किसी ने जवाब दिया के ऐ गाफिल! तू खुदा को अतलसी लिबास और
शाही तख्त पर ढूंडता है! क्या कोठे पर ऊँट पर ऊँट ढूंडने से ये बात
ज़्यादा ताज्जुब की नहीं के शाही ऐशो इशरत और गुफलत के बिस्तर
पर खुदा को ढूंडा जाए। हजरत इब्राहीम ये गैबी आवाज सुनकर बड़े
नुतास्सिर और हैरान हुए और सुबह जब आप तख्ते शाही पर बैठे और
दरबारे आम हो रहा था तो एक अजनबी और पुर शौकत आदमी दरबार
में दाखिल हुआ। इस पुर शौकत शख्स का कुछ ऐसा रौब व दबदबा
था के उसे अन्दर दाखिल होते हुए कोई ना रोक सका ये अजनबी जब
दरबार में दाखिल हुआ तो कहने लगा के ये सराये मुझ पसंद नहीं।
बादशाह बोला के ये सराये कब है ये तो मेरा महल है इस अजनबी ने
पूछा के ये बताओ के आपसे पहले ये महल किस के पास था? बादशाह
बोला। मेरे बाप के पास। अजनबी ने पूछा और तेरे बाय से पहले ये महल
किस के पास था। बादशाह ने जवाब दिया मेरे दादा के पास अजनबी ने
पूछा। आपके दादा से पहले किसके पास था? बादशाह ने जवाब दिया
के मेरे दादा के वालिद के पास? अजनबी ने कहा। तो गोया आपसे पहले
उसमें आपके वालिद रहते थे। और आपके वालिद से पहले आपके दादा
इसमें रहते थ्रे। और आपके दादा से पहले उनके वालिद रहते थे-तो ऐ
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सच्ची हिकायात क् 467 हिस्सा सोम
बादशाह! अब खुद ही सोच के सराये और किस को कहते हैं। सराये
भी तो वही होती है।/जिसमें एक जाए और दूसरा आए ये कहकर वो पुर
शिकूह अजनबी बाहर निकल गया और गुम हो गया हजरत इल्लाहीम तख्त
से उतरे और इस अजनबी के पीछे दौड़े यहाँ तक के उसे पा लिया और
उससे दरयाफ्त किया के आप कौन हैं तो उसने जवाब दिया के खिज्ञ
है। हजरत इब्राहीम के दिल पर इन वाकेयात का एक गहरा असर हुआ
और दुनयवी सलतनत को खैरबाद कहकर आपने नो बरस तक एक गार
में सकूनत इख्तियार करके बहुत मुजाहिदे और रियाजतें की और फिर
आप आसमानी विलायत के एक दरख़शिंदा सितारे बनकर चुके। मौलाना
रूमी अलेह अर्रहमत ने आपका यही वाकेया लिखकर फिर ये भी लिखा
( तफसील तजूकरत-उल-औलिया के सफा १27 पर मुलाहेजा करें ) है
के आप एक दिन दरया के किनारे बैठे अपने हाथ से अपना पीराहन सी
रहे थे के वहाँ एक अमीर आदमी का गुजर हुआ सफा अमीर आदमी ने
आपको जब इस हाल में देखा के आप अपने हाथ से अपना पीरहन सी
रहे हैं। तो दिल में कहने लगा के उन्होंने सलतनत छोड़ कर इस फकीरी
में क्या हासिल किया? हजरत इब्राहीम उसके इस खयाल पर मतलअ हो
गए और आपने झट अपने हाथ की वो सूई दरया में डाल दी और फिर
बआवाज बुलंद फ्रमाया के ऐ दरया की मछलियो।! मेरी सूई मुझे वापस
ला दो। अमीर ने जब ये वाकेया देखा तो मुतअज्जिब हुआ। और सोचने
लगा के इतने बड़े दरया में इतनी छोटी सी सूई गिरी हुईं भला वापस
कैसे मिल सकती है? मगर मौलाना रूमी फरमाते हैं के…. फ
सदे हज़ाराँ.. माही. उलहस््ये
सोज़न जर॒ बरलब हर गाहिय्ये
खसूबरूआवरदंद अज॒ दरयाऐ. हक
के बगीराए शेख सोजन हाय हक
: हजारों मछलियाँ अपने अपने मुंह में एक एक सोने की सोई पकड़े हुए
दरया से बाहर निकल आईं। आपने फ्रमाया मुझे ये सोइ़याँ नहीं चाहियें
मुझे तो अपनी सूई चाहिए। चुनाँचे फिर एक छोटी सी मछली अपने मुँह में
आपको सूई पकड़े हुए लाई और आपके आगे रख दी। इस अमीर आदमी ने
जब ये करामत देख ली तो…. ः
रूबस कर्दा बयगफ्तश ऐ अमीर
मुल्क हक ब या चुनीं मुल्क फकौीर
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सच्ची हिकायात 468 हिस्सा सोम
आपने इस अमीर की तरफ तवज्जह फ्रमा कर फ्रमाया के बताओ
मुझे वो हक्ूमत अच्छी थी या ये हकूमत? ( तज॒करत-उल-औलिया सफा
(04, मसनवी शरीफ )
सबक :- ऐशो इशरत और गृफ्लत की जिन्दगी इख़्तियार करके
फिर खुदा को पा लेने का खयाल खयाले खाम है और ये भी मालूम हुआ
के इस सराये फानी दुनिया में अपने पास झोंपड़ी हो या अजीम-उ३-शान
महल। ना वो हमारे पास हमेशा रहेगा। और ना हम इसमें हमेशा रहेंगे हम
मुसाफिरों की तरह इस में चन्द रोज रह कर चले जायेंगे। फिर इसमें कोई
दूसरा आ जाएगा। फिर वो भी इसमें चन्द रोज रहेगा फिर कोई तीसरा आ
जाएगा। लिहाजा दुनिया में दिल लगाना बहुत बड़ी नादानी है और ये भी
मालूम हुआ के अल्लाह वाले दिल के खयालात पर भी मतलअ हो जाते हैं।
फिर उनका हुक्म व तसरूफ दरयाओं और दर की मखलूक पर भी जारी
होता है। फिर जिसका इसकी अपनी बीवी पर भी ना चलता हो वो अगर
उन अल्लाह वालों के इख्तियार व तसरूफ पर एत्राज करे तो उसकी किस
कदर नादानी है। |
हिकायत नम्बर७०) खड़े अनार
हजरत इब्राहीम इब्ने अदहम तख्ते शाही छोड़ने के बाद कुछ असे के
लिए किसी बाग की निगहबानी व हिफाजुत के लिए मुलाजिम हो गए। बाग्
के मालिक को उसका कोई इल्म ना था के ये हजरत इब्राहीम इब्ने अदहम
हैं। एक दिन वो बागु का मालिक अपने बागू में आया और हजरत इल्नाहीम
से कहने लगा जाओ कोई मीठा अनार ले आओ। हजरत इब्राहीम गए और
एक अनार तोड़ कर ले आए। मालिक ने उसे चखा तो वो खड़ा निकला।
उसने कहा। कोई दूसरा अनार लाओ। चुनाँचे आप दूसरा ले आए। मालिक
ने चखा तो वो भी खट्ा ही निकला। आखिर मालिक ने झुंझला कर कहा
के इतने दिन गुजर गए, मगर तुम्हें इतना भी पता ना चला के अनार मीठा
कौन सा है। और खट्टा कौन सा? कोई अनार चख कर मीठा होता है। हजरत
इब्राहीम बोले, मगर बाग पेरे सपुर्द इसलिए किया है के मैं इसकी हिफाजृत
करूँ ना इसलिए के मैं उसके अनार खाऊँ और चखूं। मालिक ये जवाब
सुनकर कहने लगा। वा सुबहान अल्लाह! इतने परहैजार और मुत्तकी! कोई
जाने के आप इब्राहीम इब्ने अदहम हैं। हजुरत इब्राहीम ये बात सुनकर फौरन
बागू से निकल गए और मालिक हैरान रह गया और सोचने लगा के ये कौन
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सच्ची हिकायात 469 हिस्सा सोम
था। ( तजुकरत-उल-औलिया, सफा ॥24)
सबक्ः:- अल्लाह के नेक बन्दे बड़े मुत्तकी और अमीन होते हैं वो कभी
किसी के माल में खुयानत नहीं करते फिर अगर कोई ऐसा शंख्स जिसका
मसलक ये हो के “राम राम जपना पराया माल अपना ” उन अल्लाह वालों
पर मौतरिज् हो तो उसकी ये किस क॒द्र जियादती है।
हिकायत नम्बर७७) पराई खजूर
हजरत इब्राहीम बिन अदहम रहमत-उल्लाह अलेह एक रात
बैत-उल-मुकइस में लेटे थे और मस्जिद में आप तनहा ही थे। और कोई ना
था थोड़ा हिस्सा रात का गुजूरा तो मस्जिद का दरवाजा खुला और एक जुईफ
और नूरानी शख्स चालीस हमराहियों के साथ मस्जिद में दाखिल हुए और
मेहराब के पास आकर सब ने नफिल पढ़े। और फिर सब मेहराब की तरफ
पुश्त करके बैठ गए। एक शख्स उनमें से बोला के आज कोई ऐसा शख्स भी
इस मस्जिद में है। जो हम में से नहीं। वो जुईफ शख्स मुसकुराए और फरमाया
के हाँ है और वो इब्राहीम बिन अदहम है। चालीस दिन से इबादत में लुत्फ
नहीं पाता। हजरत इब्राहीम ने ये बात सुनी तो आप कोने से उठे और इस मर्द
जईफ की खिदमत में हाजिर होकर कहने लगे। आप ने सच फरमाया। मगर
ये तो बताईये के इसकी वजह क्या है? वो फ्रमाने लगे। फलाँ रोज तूने बसरे
में खजूरें खरीदी थीं। उनमें एक खजूर दसरे की गिर पड़ी थी। तुमने समझा
के तुम्हारी ही है तुम ने उसे भी उठा लिया। और अपनी खजूरों में मिला
लिया। बस इस पराई खजूर के तुम्हारे माल में मिल जाने से तुम्हारी इबादत
में जो मजा था जाता रहा हजरत इब्राहीम ये सुनते ही बसरे को रवाना हुए
और इस शख्स के पास जिसकी वो खजूर थी पहुँचे और उससे माफी चाही।
(तजकरत-उल-औलिया सफा ॥ ) क्
सबक्:- अल्लाह के नेक बन्दों का किरदार बड़ा ही पाकीजा होता
है। पराई और मशकूक चीज भूल कर भी उनके इस्तेमाल में नहीं आती। और
आ भी जाए तो अल्लाह तआला उन्हें इस खिलाफ शान अप्र से भी बचा
लेता है और उनकी शान पर कोई धब्बा नहीं आने देता। फिर अगर कोई
बिलेक खयानत और इसमगल करने वाला इन पाक किरदार अल्लाह के
नेक बन्दों की शाम में कोई नाजैबा अलफाजू बके तो किस क॒द्र जुल्म है।
और ये भी मालूम हुआ के पराये और हराम माल से इजतिनाब ना हो। तो
इबादत बे जान रह जाती है। . क्
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सच्ची हिकायात 470 हिस्सा सोप्र
हिकायत नम्बर७०» रूमान-उल-आबेदीन
हजुरत मोहम्मद मुबारक और हजुरत इब्राहीम बिन अदहम रहमत-उल्लाह
अलेहिमा एक रोज बैत-उल-मुक्दस की तरफ जा रहे थे के रास्ते में एक
जंगल में एक अनार का दरख़्त देखा। दोपहर का वक्त था। और ये दोनों बुज्ग
थोड़ी देर आराम करने के लिए इस दरख़्त के साये में बैठ गए। इतने में इस
दरख्त से आवाज आई के ऐ इन्नाहीम! मुझे इज्जत बख्शिये और मेरे अनार
से कुछ तनावुल फरमाइये। तीन मर्तबा इस दरख्त ने ये दरख़्वास्त की। चुनाँचे
हजरत इब्राहीम और हजरत मुबारक दोनों बुज॒र्गों ने इस दरख़्त से एक अनार
तोड़ा। और खाया और चल दिए। फिर जब वापस आए तो दरख़्त पहले की
निसबत बड़ा घना और तनावर था और उसके अनार भी बहुत मीठे थे और
इन बुजर्गों की बर्कत से फल भी वो एक साल में दो दफा देने लगा। और इसी
बजह से लोगों ने उसका नाम ही “रूमान-डउल-आबेदीन ” रख दिया यानी
“अल्लाह वालों का अनार “( तजकरत-उल-औलिया, सफा 426)
. सबक्:- उन अल्लाह वालों के जहाँ कदम आ जायें। वहाँ बक॑त ही
बर्कत पैदा हो जाती है और उनके हाथ जिस चीज से लग जायें इस चीज को
इज्जुत व अजमत मिल जाती है और ये भी मालूम हुआ के अल्लाह वालों
के हाथ में हाथ दे दने से आमाल सालेह में बर्कत पैदा हो जाती है और नेक
कामों की कसरत की तोफीक हासिल होती है। ।
हिकायत नम्बर७७) पैगामे हक
हजरत बशर हाफी रहमत-उल्लाह अलेह अपनी पहली जिन्दगी में
एक बहुत बड़े शराबी थे। आप एक मर्तबा शराब के नशे और मस्ती
के आलम में कहीं जा रहे थे के रास्ते में आपने एक कागज का टुकड़ा
देखा जिस पर बिस्मिल्लाहिरहमानिर्रहीम लिखा हुआ था। हजरत बशर
ने इस कागृज पर अल्लाह का नाम लिखा देखकर तअजीमन उसे उठा
लिया। और इत्र खरीद कर उसे मोअत्तर किया और फिर उसे एक बुलंद
जगह पर रख दिया। उसी रात एक बुजर्ग ने ख़वाब में सुना के कोई कह
रहा है जाओ बशर हाफी से कह दो के तुम ने मेरे नाम को मोअत्तर
किया। उसकी तअजीम और उसे बुलंद जगह पर रखा हम भी तुझ
पाक करेंगे और दुनिया व आखिरत में तुम्हें बुजर्गी अता फ्रमायेंगे और
बुलंद मुकाम अता फरमायेंगे इन बुजूर्ग ने दिल में सोचा के बशर ई
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सच्ची हिकायात । हिस्सा सोम
एक शराबी और फासिक् शख्स है। शायद मैंने ये ख़्बांब गुलत देखा है।
चुनाँचे उन्होंने वज॒ किया और नफिल पढ़े और फिर सो रहे। दूसरी बार
उन्होंने फिर वही ख़्वाब देखा। इसी तरह तीन मर्तबा यही नजर आया।
और यही आवाज सुनी के ये हमारा पैगाम बशर ही तरफ है। जाओ उसे
हमारा ये पैगाम पहुँचा दो। चुनाँचे सुबह हुईं तो वो बुजर्ग हजरत बशर
की तलाश में निकले। उनको पता चला के वो शराब की मजलिस में
बैठे हैं। तो वो वहीं पहुँचे और बशर को आवाज दी। लोगों ने बताया
के वो शराब के नशे में बेहोश पड़े हैं, उन्होंने कहा के तुम लोग उसे
किसी तरह ये बात सुना दो के तुम्हारे नाम एक जुरूरी पैगाम लाने वाला
बाहर खड़ा है चुनाँचे वो लोग गए और हजरत बशर से जाकर कह दिया
के उठो बाहर चलो तुम्हारे नाम कोई पैगाम आया है। हजरत बशर ने
फरमाया उनसे जाकर पूछो के वो किस का पैगाम लाए हैं। वो बुजर्ग
फरमाने लगे के मैं खुदा तआला का पैगाम लाया हूँ क्या खबर के पैगाम
अत्ताब आमेज् है या अक्काब आलूदा। फिर बाहर आए और पैगामे हक्
सुनकर सच्चे दिल से तौबा की और इस बुलंद मुकाम पर जा पहुँचे के
मुशाहिदा-ए-हक् के गुल्बे की शिह्तत से ब्रिहेना पा रहने लगे। और कभी
जूता पाँव में ना पहना। और इसी लिए आप “हाफी ” के नाम से मश्हूर
हो गए के हाफी नंगे पाँव वाले को कहते हैं लोगों ने आप से पूछा के
आप जूती क्यों नहीं पहनते। तो फ्रमाया हक् तआला फ्रमाता है के
मैंने जमीन को तुम्हारा बिछोना बनाया है पस बादशाह के बिछाए हुए
बिछोने पर जूती पहने जाना बे अदबी है। ( तजुकरत-उल-औलिया 429)
सबक:- एक ऐसे कागृज के टुकड़ की तअजीम करने से जिस
पर अल्लाह का नाम लिखा था। एक गुनहगार शख्स को इतना बुलंद
मुकाम हासिल हो गया के वो अल्लाह के बड़े बड़े मक्बूलों और वलियों
की फेहरिस्त में आ गया। तो इन नफस कंदसिया की तअजीम व तकरीम
से जिनके दिलों में खुदा का नाम कुदा है ओर जिनके दिल जिक्रे हक् से
मामूर हैं। हम गुनहगार अल्लाह के फज्लो करम से क्यों बहरावर ना होंगे?
नीज इन जुमला अल्लाह वालों, नबियों और रसूलों के भी सरदार हैं। यानी
हुज॒र सय्यद-उल-अंबिया अहमद मुजतबा मोहम्मद मुरुतफा सल-लल्लाहो
तआला अलेह व सल्लम उनकी तअजीम व तकरीम अल्लाह को किस कद्र
मेहबूब व पसंद होगी? और ये भी मालूम हुआ के किसी शान वाले के नाम
की भी तअजीम मौजिब अज़ व सवाब है। हजरत बशर हाफी ने अल्लाह
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सच्ची हिकायात 472 हिस्सा
के नाम की तअजीम की तो इज्जत पाई। तो आज हम अगर रसूल अल्लाह
सल-लल्लाहो तआला अलेह व सलल्लम के नाम की तअजीम करें जहाँ सुन
चूम कर आँखों से लगायें। तो क्यों इज्जृत ना पायेंगे? हजरत बशर हाफी ने
जहाँ अल्लाह का नाम देखा। वहाँ इत्र मला तो पाक हो गए। तो हम अगर जहाँ
जिक्र रसूल अल्लाह सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम हो। वहाँ इत्र व
गुलाब छिड़कें। तो क्यों पाक ना होंगे? और ये भी मालूम हुआ के जिस बात
की शरीयत में मुमानेअत ना हो वो बात हर गिजू बिदअत नहीं। वरना हजरत
हाफी अलेह अर्हमा का नंगे पाँव फिरना भी बिदअत ही होता।
हिकायत नम्बर७०७ चौपायों का अदब
हजरत बशर हाफी अलेह अर्रहमा हमेशा नंगे पाँव चलते थे और जब
तक आप बगदाद में जिन्दा रहे। चौपाया ने रास्ते में गोबर ना की। इस हुर्मत
व अदब के पेशे नजर के हजरत हाफी नंगे पाँव चलते हैं। एक दिन एक
चौपाया ने रास्ते में गोबर कर दी तो उसका मालिक ये बात देखकर घबराया
और समझा के आज यकीनन बशर हाफी का इन्तिकाल हो गया है। वरना
ये जानवर कभी रास्ते में गोबर ना करता चुनाँचे थोड़ी देर के बाद उसने सुन
लिया के वाकई हजरत का विसाल हो गया है। ( तज॒करत-उल-औलिया,
सफा 9)
सबक्:- अल्लाह वालों का जानवर भी लिहाज करते हैं। फिर अगर
कोई गुसताख अल्लाह के मक्बूलों पर कीचड़ उछाले तो उसके लिए क्यों
ना कहा जा के उलाईका कालअनआगी बल हुम अजुल्ला
हिकायत नम्बर७2) जलनून
हजरत जुलनून मिस्री रहमत-उल्लाह अलेह एक मर्तबा कश्ती पर सवार
कहीं जा रहे थे। कश्ती के मुसाफिरों को हजरत से तआरऊफ ना था।इस कशी
में एक सौदागर भी था। इत्तिफाकून उसका एक मोती गुम हो गया उसने गुल
फहमी से हजरत जुलनून पर ये इलजाम लगा दियां के मोती उन्होंने लिया है
हजूरत ने फ्रमाया के हाशा व कला मोती मैंने नहीं लिया। वो सौंदागर
लगा के मोती आप ही ने लिया है और गुसताखी से पेश आने लगा। हज
जुलनून ने उस बकृत आसमान की तरफ मुंह करके अर्ज किया। इलाही! ई
जानता हे मैं इससे बरी हूँ। ये कहना था के हजारों मछलियाँ दरया से ब्ड
अपने मुंह में एक एक मोती लेकर निकल आईं आपने उनमें से एक मो
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सच्ची हिकायात द हिस्सा सोम
लेकर उस सौदागर को दे दिया। कश्ती के लोगों ने हजरत की जब ये शान
और करामत देखी तो सब आपके कदमों पर गिर गए। और माफी चाहने
लगे। “नून” मछली को कहते हैं। आपकी इसी करामत की वजह से आपका
नाम जलनून से मश्हूर हो गया। ( तजकरत-उल-औलिया, सफा ॥44 )
सबक :- जो अल्लाह का हो जाए सारी खुदाई उसकी हो जाती है और
अल्लाह के मक्बूलों की या शान होती है के दरया की मछलियाँ भी उनका
खादिम व रजाकार होती हैं और उनके लिए कौमती मोती लकर हाजिर
होती हैं। फिर वो शख़्स जिसके हाथ का टुकड़ा कव्वा भी ले उड़े अगर इन
अल्लाह वालों की शान व अजुमत का इंकार करे और उन से मसावात का
दम भरे, तो गौर फरमा लीजिए के वो किस क्द्र बेखबर है।
हिकायत नम्बर७») सर्राफ
एक शख्स औलिया इक्राम का मुनकिर था। एक रोज हजरत जलनून
से उसकी इत्तिफाकून मुलाकात हो गई। हजुरत जलनून ने उसे अपनी अंगूठी
देकर फरमाया के जाओ किसी नानबाई के पास उसे गिरवी रख आओ। वो
शख्स अंगूठी लकर एक नानबाई के पास गया और उसे अंगूठी गिरवी रखने
को कहा। इस नानबाई ने अंगूठी देखी। और कहा के मैं इसे एक दरहम से
ज़्यादा पर ना रखूंगा। वो शख्स अंगूठी वापस ले आया। और हजरत जलनून
से कहने लगा के वो इसे एक दरहम से ज़्यादा पर 77रवी रखने को तेयार
नहीं। आपने फरमया। अच्छा अब इसे किसी सर्राफ के पास ले जाओ और
उससे दरयाफ्त करो के वो इसे कहाँ तक गिरवी रख लेगा। चुनाँचे वो फिर
सफा अंगूठी को लेकर एक सर्राफ के पास आया। सर्राफ ने अंगूठी को देख
कर बताया के वो उसे एक हजार दीनार पर गिरवी रख लेगा। वो शख्स
हजरत जलनून के पास आया और बताने लगा के सर्राफ उसके एक हजार
दीनार देता है। हजरत ने फरमाया मुझ यही समझाना था के तुम्हारा इल्म
औलिया इक्राम के मुतअल्लिक् स्रिर्फ इतना ही है। जितना इल्म इस नानबाई
का इस अंगूठी के मुतअल्लिकु था। तुम अगर आरिफ पहचानने वाले होते
तो औलिया इक्राम का कभी इंकार करते वो शख्स फौरन अपनी गूलती पर
नादिम हुआ। और तायब हो गया। ( तजुकरत-उल-औलिया, सफा 7%5 )
सबक :- औलिया इक्राम का इंकार दरअसल अपनी कम मायगी और
अपनी नादानी का मुजाहेरा है। “वली रावाली मै शनासद ” के मुताबिकु जिन
लोगों के अपने हाँ ना कोई वली गुजरा है ना है ना होगा। वो ये समझते हैं
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सच्ची हिकायात 474 पी ल हिस्सा सोम
के दुनिया में कोई बली है ही नहीं और जिनमें हजारों लाखों औलिया हुए है
और होंगे वो औलिया इक्राम के मौतरिफ भी हैं। खादिम भी और मुरीद भी।
हिकायत नम्बर७०9) सारंगी
एक नोजवान सारंगी बजा रहा था। इत्तिफाक़न वहाँ से हजरत
बायजीद बसतामी रहमत-उल्लाह अलेह का गुजर हुआ। आपने उसे
सारंगी बजाते हुए देखा तो फ्रमाया ला होला बला कृव्बता इल्ला
बिललाह इस नोजवान को गुस्सा आया। और उसने सारंगी हजरत
बायजीद के सर पर दे पारी वो सारंगी टूट गई और हजरत बायजीद का
सर भी फूट गया। हजरत बायजीद खामोशी से घर तशरीफ ले आए।
और फिर उसकी सारंगी की कीमत और कुछ मीठाई इस नोजवान के
पास भेजी। और कहला भेजा के भाई तुम ने अपनी सारंगी मेरे सर पर
मार कर तोड़ डाली। ये इसकी कीमत है। दूसरी खरीद लो और मीठाई
इसलिए भेज रहा हूँ ताके इसके टूटने से जो तुझे रंज पहुँचा है वो दूर हो
जाए इस नोजवान ने जब ये बातें सुनीं तो दौड़ा हुआ आया और हजरत
बायजीद के कदमों पर गिरा और तौबा की और बहुत रोया। और भी
कई जवान देखकर तायब हो गए। ( तज॒करत-उल-औलिया, सफ्ा7)
सबकः:- अल्लाह के नेक बन्दों के अखुलाक् बड़े बुलंद होते हैं और
वो बुराई का बदला भी भलाई से देते हैं और ये सब झलंक है। उस प्यारे
आका हुज॒र सरवरे आलम सल-लल्लाहो तआला अलेह व सललम की इस
प्यारी सीरत की के…
सलाम उस पर के जिसने दुश्मनों को भी कबायें दीं
सलाम उस पर के जिसने गालियाँ सुनकर दुआयें दीं
अल्लाह के मक्बूल बन्दों की मक्बूलियत व अजूमत का राज इसी
इत्तिबाऐ रसूल में मुज॒मिर है और वो अपने उन्हें पाकीजा अखलाक को
बदौलत गुमराहों के रहबर बने और हम जैसों के लिए मौजिब रूएदो हिदायत
साबित हुए। रज॒कनल्लाहू हुब्बाहुम
हिकायत नम्बर७७) इंसान और कूत्ता
हजरत बायजीद बसतामी रहमत-उल्लाह अलेह एक मर्तबा अपने
मुरीदों के साथ एक बहुत तंग गली से गुजर रहे थे के आपने दूसरी तरफ
से एक कुत्ते को आते देखा। जब कत्ता सामने आया तो हजरत बायजीदं
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सच्ची हिकायात॑ 475 हिस्सा सोम
पीछे मुड़ आए और कुत्ते के वास्ते रास्ता खाली कर दिया। आपके मुरीदों
में से एक मुरीद के दिल में ये बात गुजरी के हक् तआला ने इंसान को तो
बुजर्गी व शराफत अता फ्रमाई है और हजरत बायजीद ने बावजूद इस
मर्तत्रे के सबको इस कुत्ते के लिए पीछे मोड़ लिया है गोया इस क्त्ते को
तरजीह दे दी। हजरत बायजीद उसके इस खुदशे पर मतलअ हो गए और
उस मुरीद को मुखातिब करके फ्रमाया के इस कूत्ते ने बजबान हाल मुझ
से ये कहा है के ऐ बायजीद! ये सब खुदा की शान है के उसने रोजेअजल
में मुझे कुत्ता बना दिया। और आप को जामा-ए-इंसानी पहना दिया और
फिर आपको सुलतान-उल-आरफीनी की कूबा भी पहना दी। देखिये मैं भी
उसकी मखलूक् हूँ। कुत्ते की इस बात से मैं परेशान हो गया। और खुदा के
फज्लो करम के शुक्रिये में मैं पीछे हट गया और कुत्ते के लिए रास्ता खाली
कर दिया। ( तज॒ुकरत-उल-औलिया सफा 76 ) ।
सबक :- खुदा बंद करीम का हम इंसानों पर ये बड़ा ही फज़्ल व
अहसान है के उसने अपने फज़्लो कमर के साथ हमें किसी जुलील नोअ
में पैदा नहीं फ्रमाया बल्के अशरफ््-उल-मखूलूकात नोओ इंसान में पैदा
फ्रमाया जो चाहता बना देता। और ये किसकी मजाल थी के वो ये कहता
के: ऐ खुदा! मुझे कुत्ता या गाय घोड़ा वगैरा ना बना। मुझे इंसान ही बना।
मगर ये उसका अहसान ही है के हमें उसने इंसान बनाया और सारी मखुलूक॒
पर हमें शराफत व करामत अता फरमाई। और लकदव करमना बनी आदाया
का ताज पहनाया। मालूम हुआ के ये शराफ भी महज अल्लाह का फज्लो
करम है और हमें उसका शुक्र अदा करना चाहिए और तकब्बुर व गरूर ना
करना चाहिए बल््के तवाजो इख़्तियार करना चाहिए। और अल्लाह कौ दूसरी
मखलूक् पर शफकत व रहम से पेश आना चाहिए और ये भी मालूम हुआ
के अल्लाह वाले दूसरों के वली ख्यालात पर भी मतलअ हो जाते हैं फिर वो
जात ग्रामी जिनके सदके में इन अल्लाह वालों को ये कमाल हासिल हुआ।
यानी हुजर सरवरे आलम सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम वो क्यों
असरार अकूलूब पर भी मतलअ ना होंगे?
हिकायत नम्बर/७) बायजीद और एक कात्ता
. हजरत बायजीद बसतामी अलेह अर्॑हमा एक मर्तबा कहीं तशरीफ ले
जा रहे थे के रास्ते में एक कुत्ता आता हुआ नजर आया जब वो कुत्ता हजुरत
बायजीद के पास से गुजरने लगा। तो आपने अपने कपड़े समेट लिए कुत्ता
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सच्ची हिकायात 476 हिस्सा सोम
ठहर गया और हजरत बायजीद से कहने लगा के हजूर आप ने कपड़े क्यों
समेटे आपने फ्रमाया इसलिए के तू नजिस है कूत्ते ने जवाब दिया के
अगर मेरी वजह से आपके कपड़े पलीद हो गए। तो ये निजासत तो पानी के
साथ धोने से दूर हो जाएगी।
और अगर मुझे हक्कीर जान कर और अपने आप को बड़ा जान कर
नखुव्वत व गरूर से आपने कपड़े समेटे तो तकब्बुर व गरूर की निजासत
दिल में पैदा हो जाएगी और ये दिल की निजासत सात समुद्रों के पानी से भी
दूर ना हो सकेगी। हजरत बायजीद कूत्ते की ये बात सुनकर फ्रमाने लगे के
तो सच कहता है के वाकई तो जाहिरी निजासत रखता है। मगर मुतकब्बिर
इंसान बातिनी निजासत रखता है। फिर फरमाया के ऐ कुत्ते! तुझ से मुझे
बड़ा सबक हासिल हुआ। आओ हम तुम मिल कर रहे। कुत्ते ने जवाब दिया।
हुजर आप मेरे साथ नहीं रह सकते इसलिए के मैं मरदूद खिलाक हूँ। जो मुझे
देखता है पत्थर मारता है और आप मकक््बूल खलाक् हैं। जो आपको देखता
है अस्सलाम अलेकुम या सुलतान-उल-आरफीन कहता है और इसलिए
भी नहीं रह सकते के मैं हड़ियों को जमा करके कल के लिए नहीं रखता।
और इंसान गंदम के जखीरे जमा करके रखते हैं। हजरत बायजीद कुत्ते की
ये बात सुनकर फरमाने लगे ऐ कूत्ते तेरी बातें बड़ी ही सबक् आमोजु हैं।
(तजुकरत-उल-औलिया, सफा ॥72)
सबक्:- इंसान को कभी फख्रो गृुरूर और तकब्बुर ना करना
चाहिए। ये एक ऐसी निजासत है जिससे दिल नापाक हो जाता है और
खुदा की नजर रहमत के लायक नहीं रहता और ये भी मालूम हुआ के
अल्लाह वालों से जानवर भी बातें करते हैं और वो समझते हैं और ये
उनकी करामत है। जिसका मुसलमानों को इक्रार है और ये भी मालूम
हुआ के इंसान चाहे तो एक कत्ते से भी बड़े बड़े सबक् हासिल कर
सकता है।
हिकायत नम्बर७०) रोशनी
हजुरत बायजीद के पड़ोस में एक आतिश परस्त रहता था। उसका
एक शीरख्वार बच्चा था। बच्चा रात की तारीकी में रोता रहता इसलिए
के वो आतिश परस्त एक गरीब शख्स था और चिराग जलाने के लिए भी
उसके पास कुछ ना था। एक रात बच्चा बहुत रोया। हजुरत बायजीद उठे
और अपना चिराग उसके घर छोड़ आए। बच्चा चूप हो गया। दूसरी रात
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सच्ची हिकायात हिस्सा सोम
भी हजरत बायजीद ने ऐसा ही किया और फिर तीसरी रात भी। आपके इस
सलूक का इस आतिश परस्त के दिल पर बड़ा असर हुआ और अपनी बीवी
से कहने लगा के जब शेख बायजीद की रोशनी हमारे घर में आ पहुँची। तो
अब हमें जैबा नहीं के हम कुफ्र की तारीकी में ही भटकते फिरें। चलो उठो।
शेख की खिदमत में हाजिर हों और मुसलमान हो जायें चुनाँचे वो दोनों
हजरत की खिदमत में हाजिर हुए और कलमा पढ़कर मुसलमान हो गए।
(तज॒करत-उल-ओऔलिया, सफा 8 )
सबक: –
ना किताबों से ना कालिज के है दर से: पैदा
दीन होता है बुजुर्गों की नज़र से पैदा
हिकायत नम्बर७७) बराऐ नाम मुसलमान
एक काफिर रहता था बसताम में
आरिफ.. बसताम के अव्याम में
एक मुसमलमान से थी उसकी दोस्ती
कोड बात इस्लाम की उसमें ना थी
एक दिन काफिर से वो कहने लगा
तुझ को है ड्बलीस ने गुमराह किया
क्यों. नहीं . ईपाँ ले आता शवाब
क्या खुद को देगा जालिम तू जवाब
छोड़ दे तू घिर्का को ऐ बे तमीज़
सि्क॑ से गंदी नहीं दुनिया में चीज
बोला काफिर मेहरबाँ इस्लाम के
दो नमूने हैं मिरे अब सामने
. एक तो. इललाम शेख बा यजीद?
ग्रॉकत इस्लाम जिसने की मसजीद
ताब. ताकत उसकी मैं रखता नहीं
कौन रख यकता है उसका सा बर्की
ऐसे को इस्लाम का हूं में गलाम
पर नहीं वो हर. कंस व नाकिस का काम
दूसरा. इस्लाम जो है. आपका
ऐसे ईमाँ से तो में काफिर भला
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सच्ची डिकायात 478 हिस्सा सोम
मेल दिल गर इस तरफ लाता हूँ में
. देखकर हज़रत को रूक जाता हूँ में
( तजकरत-उल-औलिया और दरमंजू सफा 52 )
सबकः- क्
हर बशर को दावते इस्लाम है
पर॒ मुसलमान होना मुश्किल काम है
. हिकायत नम्बर७७) मुनकर नकोर को जवाब
हजुरत बायजीद अलेह अर्रहमत का जब विसाल हो गया तो एक मुरीद
बा सफा ने हजरत को ख़्वाब में देखा और पूछा के हजरत आपने मुनकर
नकोर को क्या जवाब दिया था। आपने फ्रमाया के उन्होंने जब मुझ से
सवाल किया के मन रब्बुका तुम्हारा रब कौन है? तो मैंने उससे कहा के
तुम्हारे इस सवाल से और मेरे जवाब से कुछ हासिल नहीं मैं अगर यूं कह दूं
के अल्लाह तआला मेरा रब है और अल्लाह तआला मुझे अपना बन्दा तसली
ही ना फरमाए तो मेरा अपनी जुबान से बन्दा बनना किस काम का? जाओ
ऐ फरिश्तो! पहले अल्लाह तआला से दरयाफ्त कर लो के बायजीद उसका
बन्दा है या नहीं। अगर वो मुझे अपना बन्दा फ्रमा दे तो फिर मेरा बैड़ा पार
है। ( तजुकरत-उल-औलिया सफा 277)
सबक्:- यूं कहलाने को तो हम सभी मुसलमान हैं मगर दरअसल
मुसलमान वो है जिसे अल्लाह और उसका रसूल भी मुसलमान समझे
_ और अगर कोई शख्स अपने अकायदो आमाल से अल्लाह और रसूल को
अपने आप से बेजार करके मुसलमान बनता और कहलाता है तो उसका
क्या फायदा। ये तो ऐसा ही होगा जिसे किसी जाहिल का नाम “मोहम्मद
फाजिल ” किसी बे इल्म का नाम “इल्म-उद्दीन ” या किसी नाबीना का नाम
“रोशन दीन ” रख दिया जाए।
हिकायत नम्बर७७) दौलतमंद और दुरवेश
हजरत अब्दुल्लाह बिन मुबारक रहमत-उल्लाह अलेह दुनयवी हैसियत
से भी बहुत बड़े रईस थे। एक बार हज को जा रहे थे के आपके हमराह एक
दुरवैश भी हो लिया। आपने उससे फ्रमाया के दुरवैश हम लोग तो दौलतमंद
हैं और बुलाए हुए हैं, मगर तुम हमारे साथ क्यों जा रहे हो? इस दुरवैश ने
जवाब दिया के जब मेजबान करीम होता है। तो तुफैली की मेहमान से भी
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सच्ची हिकायात 479 हिस्सा सोम
ज़्यादा खातिरदारी करता है अगर आपको उसने अपने घर बुलाया है तो मुझे
उसने अपने पास बुलाया है, हजरत अब्दुल्लाह बिन मुबारक ने फ्रमाया खुदा
तआला ने हम दौलतमंदों से कर्ज माँगा है। दुरवैश ने जवाब दिया। मगर आप
जानते हैं के खुदा ने वो कर्ज माँगा किन के लिए है? खुदा ने वो कर्ज हम
दुरवैशों के लिए माँगा है। हजरत अब्दुल्लाह बिन मुबारक ये जवाब सुनकर
बड़े मुतास्सिर हुए और उससे माजूरत चाही। ( तज़॒करत-उल-औलिया सफा
220 ) ह ह
सबक:- दुरवेशों , मिसकीनों और गरीबों को हिकारत की नजर से ना
देखना चाहिए उनके पास अगर दुनयवी जाह व मंजिलत ना भी नजर आए।
तो भी बहुत मुमकिन है के उनमें ऐसे भी हों। जिनका दिल दौलत ईमान से
मामूर और जो इश्क् हक् में मखमूर हों और ये भी मालूम हुआ के दुनयवी
दौलत का पास होना बाइसे फजीलत नहीं। असल में बजह फजीलत खुदा
तरसी व तशरओ व तदस्युन और मखलूक् नवाजी है।
हिकायत नम्बर/७७ पुर असरार बुढ़िया
हजरत अब्दुल्लाह बिन मुबारक रहमत-उल्लाह अलेह फरमाते हैं
के एक बार ऐसा इत्तिफाक् हुआ के मैं एक बयाबान में था के हज का
जूमाना आ गया मैं निहायत बेक्रार हुआ के किस तरह वहाँ पहुँचू।
आखिर कार मैंने अपने दिल में खयाल किया के मैं अब वहाँ तो नहीं
पहुंच सकता। खैर वो आमाल ही बजा लाऊंँ जो हज्जाज बजा लाते हैं
ताके इसी जगह हज का सवाब हासिल कर लूं। यानी नाखुन ना उतारूं ,
बाल ना मुंडवाऊँ वगैरा मैं इसी शशो पंज में था के क्या देखता हूँ के
नूरानी शक्ल की कुबड़ी बुढ़िया लाठी टेकती चली आती है जब मेरे
पास आई तो मुझ से कहा ऐ अब्दुल्लाह! शायद तू हज की तमन्ना रखता
है? और इसी खयाल में है? मैंने कहा हाँ निहायत आरजूमंद हूँ। बुढ़िया
ने कहा मुझे तुम्हारे ही वास्ते भेजा गया है। ऐ अब्दुल्लाह मेरे साथ चले
आओ ताके मैं तुझ को अरफात में पहुँचा दूं। हजुरत अब्दुल्लाह बिन
मुबारक ने दिल में सोचा के अब तो सिर्फ दो रोज बाकी रह गए हैं।
भला ये मुझे इतनी जल्दी अराफात तक कैसे पहुँचा सकती है इस बुढ़िया
ने कहा ऐ अब्दुल्लाह! जिसने सुबह की नमाज की सुन्नतें संजाब में पढ़ी
हों और फर्ज जीहूँ के किनारे पर और नमाज इशराक् शहर मुर्द में, तो
उसकी हमराही में क्यों अरफात ना पहुँच सकेगा? बिस्मिल्लाह पढ़ो और
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सच्ची हिकायात 480 . हिस्सा सोम
चलो। हजरत अब्दुल्लाह बिन मुबारक फरमाते हैं: मैंने बिस्मिल्लाह पढ़ी
और इस पुर असरार बुढ़िया के साथ हो लिया। चलते हुए रास्ते में जो
जो दुश्वार मंजिलें आतीं बुढ़िया के तुफैल वहाँ से बाआसानी गुजरते रहे।
राह में ऐसा ऐसा गहरा पानी जिसमें कश्ती पर भी सवार होकर गुजरना
दुश्वार होता मिला। हम उससे बाआसानी उबूर करते रहे जब पानी के
किनारे पहुँचते , तो वो बुढ़िया मुझ से कहती के आँखें बन्द कर लो जब
आँखें बन्द कर लेता तो ऐसा मालूम होता के पानी सिर्फ कमर तक है
इसी तरह इस पुर असरार बुढ़िया ने मुझे उसी दिन अरफात में पहुँचा
दिया और मैंने हज कर लिया। फिर जब हम हज कर चुके तो उस बुढ़िया
ने कहा ऐ अब्दुल्लाह! अब आओ। मेरा एक बेटा है के जिसको अर्सा हो
गया। एक गार में इबादत व रियाजत में मशगल है। उसके पास चलें और
उससे मिलें। चुनाँचे उसके सफा।थ हो लिया और हम एक गार में पहुँच
गए। मैंने देखा के गार में एक जवान जुर्दरू और जुईफ व नातवाँ और
नूरानी शक्ल का वहाँ मौजूद है। जूंही उसने अपनी माँ को देखा उसके
कदमों पर गिर पड़ा और अपना मुंह उसके तलवों पर मलने लगा के
जानता हँ के आप अपने आप नहीं आई हैं। बल्के खुदा तआला ने आपको
भेजा है ताके आप मेरी तजहीज व तकफीन करें क््योंके मेरे इन्तिकाल
का वक्त करीब है उस बुढ़िया ने फिर मुझ से कहा। ऐ अब्दुल्लाह! कुछ
वक्त यहाँ तुम भी ठहरो ताके मेरे बेटे को तुम दफ्न करो। चुनाँचे मैंने
देखा थोड़ी देर के बाद उस जवान का इन्तिकाल हो गया ओर हम ने
उसको दफ्न किया। उसके, बाद उस बुढ़िया ने कहा के मुझे अब कोई
काम नहीं। मैं अपनी बाकी उप्र अब अपने बेटे की कब्र पर बैठंगी और
ऐ अब्दुल्लाह! अब तुम जाओ और तुम दूसरे साल आओगे तो मुझे ना
पाओगे मुझे दुआऐ खैर से याद करते रहना। ( तजुकरत-उल-औलिया
सफा 22) । |
सबक्:- अल्लाह के मक्बूल बन्दों की बड़ी ही शान होती है।
उनके दिल में हर वक्त खुदा की याद रहती है। और ये भी मालूम हुआ
के अल्लाह के वलियों में ऐसी ऐसी बा कमाल औरतें भी गुजरी हैं
के जिनके हालात व कमालात पढ़कर ईमान ताजा हो जाता है। और
ये भी मालूम हुआ के अल्लाह वाले मुद्दतों का सफर पल भर में तय
कर लेते हैं ओर दिलों के इरादों और खयालात पर भी मतलअ हो
जाते हैं और ये भी मालूम हुआ के औलिया उम्मत को अपनी मौत का
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सच्ची हिष्कायात 48॥ हिस्सा सोम
भी इल्म हो जाता है। और ये सारे कमालात व उलूम उन औलिया को
हुजर सय्यद-उल-अंबिया जनाब अहमद मुजतबा मोहममद मुसतफा
सल-लल्लाहो तआला अलेह व सलल्लम के सदके में हासिल हुए हैं।
फिर हुजूर सरवरे आलम सल-लल्लांहो तआला अलेह व सल्लम के
दाना गुल और आलम माकाना व यकून होने में कोई शक कैसे हो
सकता है। ही ‘
हिकायत नम्बर७०) बीमार या तबीब
हजरत सफयान सूरी रहमत-उल्लाह अलेह एक दफा बीमार हो गए। तो
खलीफा वक्त जो आपकी बड़ी इज्जत करता था। उसने एक काबिल तबीब
को आपके पास इलाज करने के लिए भेजा। ये तबीब आतिश परस्त था।
उसने जब आपका कारोरह देखा तो कहने लगा के मालूम होता है। ये कोई
खुदा परस्त बुजर्ग हैं। इनका जिगर खुदा के खौफ से पारा पारा हो गया है
और फिर कहने लगा के जिस दीन में ऐसे कामिल लोग हैं। वो दीन हर गिज॒
बातिल नहीं हो सकता। लिहाजा मैं मुसलमान होता हूँ ये कहा और हजरत
के दस्ते हक परस्त पर तायब होकर मुसलमान हो गया। खूलीफ-ए-वक््त ने
जब ये किस्सा सुना तो खुश होकर कहने लगा के मैंने तो समझा था तबीब
को बीमार के पास भेजता हूँ। हालाँके मैंने खुद एक बीमार को तबीब के
पास भेजा था। ( तजकरते-उल-औलिया सफा 23॥ )
सबक्:ः- अल्लाह के मक्बूल बन्दों के दिलों में खुदा का खौफ
रहता है। और वो खुदा से निडर और बेबाक ।हीं होते और ये भी मालूम
हुआ के पाक लोगों का कारोरह भी गुमरः६/ के लिए मौजिबे हिदायत
बन जाता है।
हिकायत नम्बर७७) हर दिल अजीज
हजरत सफयान सूरी रहमत-उललाह अलेह एक शख्स का जनाजा
पढ़कर आए। तो आपने जिस शख्स की जूबान से भी सुना। तो यही के
ये मरने वाला बड़ा ही अच्छा था कोई भी उसके खिलाफ नहीं कह रहा
था। हजरत सफयान ने फ्रमाया अगर मुझे पहले मालूम होता के ये
शख्स ऐसा हर दिल अजीज है तो मैं उसका जनाजा हर गिज ना पढ़ता
इसलिए के ये शख्स हक् गो ना था। अगर ये हक बात कहने का आदी
होता तो कई लोग उसके मुखालिफ भी होते। मगर चूंके सभी उससे खुश
9०३९6 99 (थ्वा]5८शाशश’
सच्ची हिकायात . 482 …… हिस्सा सोम
हैं इसलिए ये मालूम हुआ के ये हर एक की हाँ में हाँ मिलाने वाला था।
( तजकरत-उल-औलिया सफा 223 )
सबक:ः- अल्लाह वालों के जहाँ कई लोग मौतकिद मद्दाह और गलाम
होते हैं, वहाँ कई उनके मुखालिफ भी होते हैं और ये इसलिए के अल्लाह
वाले सच्ची बात कहने से नहीं चूकते, और जिन लोगों को वो सच्ची बात
कड़वी लगती है वो उनके मुखालिफ हो जाते हैं।
हिकायत नम्बर ७३) हारून रशीद को नसीहत
हजरत शफीक् बलखी रहमत-उल्लाह अलेह एक मर्तबा को जाते हुए
बगृदाद शरीफ पहुँचे। तो हारून रशीद ने आपको अपने पास बुलाया। आप
जब हारून रशीद के पास तशरीफ ले गए। तो उसने पूछा के आप ही शफीक
जाहिद हैं। आपने फ्रमाया शफीक ् तो मैं हूँ मगर जाहिद में नहीं हूँ। हारून
रशीद ने कहा। आप मुझे कुछ नसीहत फ्रमाईये आपने फ्रमाया के होश
रख! हक तआला ने तुझे सिद्दीक् की जगह बैठाया है। वो तुझ से सिदक
तलब करेगा और फारूक की जगह बैठाया है। वो तुझ से हक व बातिल
के दरमियान फर्क तलब करेगा और जुलनूरैन की जगह बैठाया है। तुझ
से हया व करम चाहैगा और अली मुर्तजा की जगह बैठाया है वो तुझ से
इल्मो अदूल चाहेगा हारून रशीद ने कहा। जजाकल्लाह कुछ और फ्रमाईये।
आपने फ्रमाया के हजरत हक् सुबहाना व तआला का एक मकान है। जिसे
दोजख कहते हैं। खुदा ने तुझे उसका दरबार बनाया है। और तीन चीजें तुझे
दी हैं। माल. ताजयाना और तलवारें और फरमाया है के मखलूक को इन
तीनों चीज़ों से दोजख से अलेहदा रख जो हाजतमंद तेरे पास आए। माल
से उसकी एआनत कर। ताके वो गुमराह ना हो जाए और जो खुदा के हुक्म
के खिलाफ करे उसे कोड़े से तनबीह कर और किसी को मार डाले। उससे
तलवार के साथ कसास ले। अगर इन कामों को तू ना करेगा तो कयामत
के रोज तुझ से बाज पुर्स होगी, हारून रशीद ने कहा। जजाकल्लाह! और
कुछ फ्रमाईये। अगर किसी जंगल में तुझे प्यास लगे और तुम प्यास से
क्रीब-उल-मर्ग हो जाओ। तो उस वक़्त अगर तुम्हें पानी का एक पियाला
कहीं मिल जाए तो तुम उस पानी के पियाले को कितने में खरीदोगे। हारून
रशीद ने कहा के मैं आधी बादशाहत भी देकर खरीद लूंगा। आपने फ्रमाया
के अगर फिर इस पानी पीने के बाद तेरा पैशाब बन्द हो जाए और बिलकुल
जारी ना हो यहाँ तक के तम करीब-उल-भर्ग हो जाओ और उस वक्त कोई
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सच्ची हिकायात 483 हिस्सा सोम
शख़्स आ जाए और कहे के मैं तेरा इलाज करूंगा। मगर इस शर्त पर के
अगर तुम्हारा पैशाब जारी हो जाए तो आधी बादशाहत ले लूंगा। तो तुम क्या
करोगे? हारून रशीद ने जवाब दिया के मैं दे दूंगा। आपने फ्रमाया तो फिर
समझ लो के ये हकीकत तुम्हारे बादशाहत की है के हकु की कीमत चन््द
घूंट पानी के और चन्द क॒त्रे पैशाब के हैं। फिर ऐ हारून रशीद! इस हकीर
बादशाह पर फख्र कैसा? हारून रशीद रोने लगो और कहने लगा आप सच
फ्रमा रहे हैं। फिर आपको बड़ी इज्जत व ताजीम के साथ रूख़्सत किया।
( तजुकरत-उल-औलिया सफा 245)
सबके:- पहले बादशाहों को अल्लाह वालों से बड़ी अक्लीदत
थी वो अल्लाह वालों से पंदो नसायह सुनने और उन पर अमल करने के
आदी थे औए ये भी मालूम हुआ के मुसलमानों का अमीर खुल्फा राबिआ
रिजुवान-उल्लाही अलेहिम अजमईन का जानशीन होता है। इसलिए उन्हें
पाक लोगों के नक्शे कृदम पर चलकर खालिक् व मखलूक के हकक पूरे
अदा करने चाहिएँ। और ये भी मालूम हुआ के अल्लाह वालों की नजूर में
इस दुनया और उसकी फानी नअमतों की कुछ भी वक॒अत नहीं।
हिकायत नम्बर७७) बदशाह फकौर के घर
हजरत हारून रशीद ने एक रात अपने वजीर से कहा के आज
मुझे किसी बुजर्ग के पास ले चलो। क्योंके मेरा दिल इस कारोबार से
उक्ता गया हे। थोड़ी देर इतमीनान व राहत पाऊँ। वजीर हारून रशीद
को सफयान ऐनिया के मकान पर ले गए। और दरवाजा खटखटाया
सफयान ने कहा कौन है? वजीर ने जवाब दिया अमीर-उल-मोमिनीन
हैं। सफयान बोले के मुझे खबर क्यों ना की। ताके मैं खुद खिदमत में
हाजिर हो जाता। हारून रशीद ने ये सुनकर कहा के ये वो नहीं हैं के
जिसकी मुझे तलाश है। वजीर ने कहा तो फिर जैसा. मर्दे कामिल चाहते
हैं वो फजील अयाज है। बादशाह ने कहा तो चलो उनके मंकान पर
ले चलो। चुनाँचे हजरत फजील के मकान पर पहुँचे। उस वक्त हजरत
फजील करआन की तिलाबत कर रहे थे। और ये आयत पढ़ रहे थें
अग हरसीबललजुनज तरीहू सम्यीअती अन नजअलूहुम कल्लजीना
आमनू। यानी जिन लोगों ने बुरे काम किए हैं। क्या वो गुमान करते हैं
के हम उनको उन लोगों के साथ बराबर कर देंगे जिन्होंने नेक काम
किए “हारून रशीद ने ये आंयत सुनकर कहा के अगर कोई नसीहत
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सच्ची हिकायात , 484 ु
तलब करूं तो यही आयत काफी है।” फिर दरवाजा खटखटाया हजरत
फजील ने कहा। कौन है? बजीर ने जवाब दिया अमीर-उल-मोमिनीन है
आपने फ्रमाया अमीर-उल-मोमिनीन का मुझ से क्या काम? और
उनसे क्या काम? मुझे मशगल ना कीजिए वजीर ने कहा के हाकियों
की इताअत जूरूरी है। फ्रमायो मुझे परेशान ना करो। बजीर ने कहा।
हमें अन्दर आने की इजाजत दीजिए। वरना हम जूबरदस्ती अन्दर आ
जायेंगे। आपने फरमाया मेरी इजाजृत नहीं है। और जबरदस्ती आते हो
तो मुख्तार हो। हारून रशीद के दिल पर इन बातों का बड़ा असर हुआ।
और वजीर के साथ अन्दर दाखिल हुआ। हजरत फजील ने चिराग गुल
कर दिया ताके हारून रशीद का चेहरा नजूर ना आए इसी असतना में
हारून रशीद का हाथ फजील के हाथ पर पड़ गया। हजरत फजील ने
फरमाया ये हाथ कैसा नर्म है। अगर दोजुखू की आग से बच जाए और
ये कहकर नमाज की नीयत बाँध ली हारून रशीद रोने लगे और अर्ज
की के आखिर कोई बात तो हम से कीजिए, हजुरत फजील ने सलाम
फैरा तो फरमाया आपके बाप हुज॒र सय्यद-उल-अंबिया सल-लल्लाहो
तआला अलेह व सलल्लम के चचा थे उन्होंने आँहजरत सल-लल्लाहो
तआला -अलेह व सल्लम से दरख्वास्त की के आप मुझे किसी किस्म
का सरदार कर दीजिए। तो हज॒र ने फ्रमाया के ऐ चचा! मैंने आपको
आपके नफ्स पर सरदार किया। हारून रशीद ने अर्ज किया कुछ और
फरमाईये तो फरमाया के जब हजरत उमर बिन अब्दुल अजीज को तफत
सलतनत पर बैठाया गया तो उन्होंने अपने दोस्त से कहा के मैं बहुत बड़ी
आजमाईश में मुबतला हुआ हूँ। मुझे इस आजूमाईश में कामयाब होने को
कोई तदबीर बताए। तो एक साहब ने उनसे कहा के अगर आप चाहते हैं
कल आपको अजाब से निजात हो। तो मुसलमान बूढ़ो को मिस्ल अपने
बाप के और जवानों को मिसल अपने भाईयों के और बच्चों को बजाए
फरजूदों के और औरतों को बजाए माँ बहन के जानिए। और उनके साथ
बर्ताओ भी अच्छा कीजिए हारून रशीद ने कहा। कुछ और फ्रमाईये
फ्रमाया के बुजर्गों पर मेहरबानी करो और भलाई के साथ एहसा’
करो , और औलाद के साथ नेकी करो। फिर फ्रमाया! ऐ हारून रशीद
मैं तेरे खूबसूरत चेहरे को देखकर डरता हूँ के ऐसा ना हो के दोजख की
आग उसको जलाए। इसलिए के “कम मिन आमीरिन हुताका अर
कितने अमीर हैं जो वहाँ ( कयामत के रोज ) असीर होंगे। हारून र्शीद
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सच्ची हिकायात 485 हिस्सा सोम
ये बातें सुनकर रोने लगा और खूब रोया और पुर कहा के कुछ और
फ्रमाईये। हजरत फजील ने फ्रमाया के खुदा से उसके सामने जवाब देने
से होशयार रह! और तेयार रह के कयामत के रोज खुदा तआला तुझ से
एक एक मुसलमान के बारे में बाज पुर्स करेगा और हर एक का इंसाफ
तलब करेगा अगर किसी रात कोई बुढ़िया भी किसी घर में भूकी सोई
होगी तो कल कयामत के रोज तेरा दामन पकड़ेगी और तुझ से झगड़ेगी।
हारून रशीद रोते रोते बेहोश हो गया। वजीर ने कहा बस कीजिए के
आपने तो अमीर-उल-मोमिनीन को मार डाला। हजरत फजील फरमाने
लगे खामोश रह! उसे मैं नहीं बल्के तुझ से खुशामदी मारते हैं।
फिर हारून रशीद को होश आया तो हजरत फजील से कहा किसी
का कुछ देना है? हजरत फजील ने फ्रमाया हाँ खुदा तआला का मुझ
पर कर्ज है और वो कर्ज उसकी इताअत है। अगर वो इस बात में मुझ पर
गिरफ्त करे तो अफसोस है मुझ पर , हारून रशीद न कहा। मैं लोगों का
कर्ज पूछता हूँ। फरमाया खुदा का शुक्र है के उसने बहुत बड़ी नअमतें
अता फरमा रखी हैं और मुझे उसकी कोई शिकायत नहीं। फिर हारून
रशीद ने एक हजार दीनार की थेली उनके सामने रख दी और कहा ये
माल हलाल है और मुझे माँ के विरसे से मिला है। हजरत फजील ने
फरमाया के मेरी सारी नसीहतें बेकार हो गईं। मैं तुझे निजात और बे
ताल्लुकी की तरफ बुलाता हूँ और तुम मुझे हलाकत में डालना चाहते
हो मैं कहता हूँ के जो कुछ तुम्हारे पास है हकदारों को दे दो मगर तुम
जिसे ना देना चाहिए उसे देते हो। ये फरमा कर हारून रशीद के पास
से उठ खड़े हुए और दरवाजा बन्द कर लिया। हारून रशीद और वजीर
बाहर आए तो हारून रशीद ने कहा के वाकई ये मर्दे हक् और अल्लाह
का दोस्त है। (तजकरत-उल-औलिया सफा थवत्ा #)
सबक:- जिनको इर्फान मारफत की दौलत हासिल हो जाए, ‘वो
इस दुनयवी दौलत की पवाह तक नहीं करते। और ऐसे ही लोग दरअसल
बादशाह होते हैं और दुनिया के बड़े बड़े बादशाह भी उन रूमानी बादशाहों
के दरबारों में हाजरी देते हैं और ये भी मालूम हुआ के पहले जमाने के
मुसलमान बादशाह भी अल्लाह वालों से अकीदत रखते थे और उनके हुज॒र
हाजिर हुआ करते थे। और ननिअरमा अमरीरा अला बाबिल फकौीरी के
मुताबिक वो बड़े ही अच्छे थे। और ये भी मालूम हुआ के नफ्स पर हकूमत
बड़ी काबिल क॒द्र हकूूमत है। और…..
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सच्ची हिकायात 486 हिस्सा सोम
…. बड़े मृजी को मारा नफ़्से अम्मारा को गर मारा
के मुताबिक जो शख्स नफ्से अम्मारा पर काबू पा लेता है। वो बड़ा
ही जवाँमर्द है और ये मालूम हुआ के जिस क्द्र बड़ा ओहदा हासिल हो।
आदमी उसी क॒द्र ज़्यादा आजुमाईश में पड़ जाता है और ये भी मालूम हुआ
के अल्लाह वालों की नजूर में दुनिया और उसकी फानी शानो शौकत की
कुछ भी वक्अत नहीं।
हिकायत नम्बर(॥) हाकिम नीशापूर
अब्दुल्लाह बिन ताहिर हाकिम नीशापूर एक मर्तबा शहर नीशापूर में
वारिद हुआ तो सारा शहर उसके इसतक्बाल को निकल आया और तीन
रोज तक शहर के छोटे बड़े उसके सलाम को आते रहे। हाकिम नीशापूर –
ने दरयाफ्त किया के कोई शख्स बाकी तो नहीं रहा। जो मेरे सलाम को
ना आया हो। लोगों ने बताया के सिर्फ दो शख्स नहीं आए। एक तो हजरत
अहमद हर्ब, दूसरे हजरत असलम तूसा। उसने कहा के क्यों नहीं आए लोगों
ने कहा के ये दोनों औलियाऐ हक और उलमाऐ रब्बानी हैं और बादशाहों
के सलाम को नहीं जाते हैं। अब्दुल्लाह बिन ताहिर ने कहा के अगर वो हमारे
सलाम को नहीं आए तो हम उनके सलाम को जायेंगे। फिर उसने ये इरादा
किया के हजरत अहदम हर्ब के पास जाए। लोगों ने हजुरत को खबर दी के
हाकिम शहर आपकी खिदमत में आ रहा है। हजरत ने फ्रमाया हमें उसके
मिलने से नाचारी है अलगुर्ज अब्दुल्लाह बिन ताहिर आया। तो हजरत ने
अपना सर मुबारक झुका लिया और उसकी तरफ देखा भी नहीं फिर काफी
देर के बाद अपना सर अनवर उठाया। और हाकिम शहर की तरफ नजुर की
और फरमाया के मैंने,सुना था के तुम बहुत खूबसूरत हो अब मुझे देखने से
पता चला के वाकई तुम बहुत खूबसूरत हो। ऐ अब्दुल्लाह! देखो अपनी इस
खूबसूरती को हक तआला के अहकाम की मुखालफत और नाफरमानी के
साथ बिगाड़ मत लेना। हाकिम शहर इजाजत लेकर फिर हजरत असलम तूसा
की खिदमत में हाजिर हुआ और हजरत तूसा का दरवाजा बन्द था और आपने
उसे अन्दर आने की इजाजत ना दी। और पता चला के हजरत नमाज के वक्त
बाहर निकलेंगे। हाकिम शहर दरवाजे पर इसी तरह सवार खड़ा रहा। और
हजरत के बाहर निकलने का इन्तिजार करने लगा। नमाज का वक्त हुआ। तो
हजरत का दरवाजा खुला और आप बाहर तशरीफ् लाए! जूंही अब्चुल्लाह
बिन ताहिर हाकिम शहर की आप पर नजूर पड़ी घोड़े से उत्तर पड़ा। और
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सच्ची हिकायात 487 हिस्सा सोम
आपके पाँव को चूमने लगा और कहा। इलाही इस सबब से के मैं बुरा हूँ।
ये तेरा मक्बूल बन्दा मुझ से दुश्मनी रखता है। और इस सबब से के ये नेक
और तेरा मक्बूल बन्दा है मैं इससे दोस्ती रखता हूँ। तू इस बुरे को इस नेक के
तुफैल में नेक बना दे फिर हजरत ने भी हाकिम शहर के लिए दुआः की और
मोहब्बत के साथ उसे रूख्सत किया ( तजुकरत-उल-औलिया सफा 290)
सबके :- अल्लाह वाले रूहानी हाकिम व बादशाह होते हैं और उनकी
बारगाह में दुनिया के बड़े बड़े बादशाह भी हाजिर होते हैं। और ये हकूमत व
कबूलियत उन्हें अपने अल्लाह व रसूल की ताबेदारी से हासिल होती है। और
ये भी मालूम हुआ के नेकों के तुफैल अल्लाह तआला बुरों पर भी अपना
फज्लो करम फरमाता है…. ु
शनीदम को .दर॒ रोज उम्पीद वबीस
बदाँ राबा बरूद बा नीकाँ करीस
हिकायत नम्बर७०) आतिश परस्त बेहराम
हजुरत अहमद हर्ब रहमत-उल्लाह अलेह के पड़ोस एक आतिश परस्त
रहता था। उसका नाम बेहराम था उसने अपना माल तिजारत को भेजा था।
जो राह में डाकूओं ने लूट लिया। हजरत अहमद हर्ब को पता चला तो आपने
अपने दोस्तों से फरमाया हमारे पड़ोसी पर ये वाकेया गुजरा है आओ उसकी
लिजोई व गुमख़्वारी के लिए उसके पास चलें चुनाँचे हजरत अपने दोस्तों
समेत बेहराम के घर पहुँचे। बेहराम ने जब सुना के मुसलमानें का एक पैश्वा
मेरे हाँ तशरीफ लाया है तो बड़ा खुश हुआ। और इसतकृबाल के लिए दरवाजे
पर आया। और हजरत की आसतीन को बोसा दिया और बड़ी इज्जत के
साथ आपको बिठाया हजरत ने फ्रमाया। भई तुम्हारा माल लूटा गया है हम
इस बात का अफसोस के लिए आए हैं, बेहराम ने कहा हाँ ऐसा ही हुआ है
लेकिन मैं उसके सबब से तीन शुक्र करता हूँ। एक तो इस बात का के दूसरे
मेरा माल लूट कर ले गए हैं दूसरों का माल लूट कर नहीं लाया। दूसरे इस
बात का के वो आधा माल लूट कर ले गए हैं और आधा बाकी है। तीसरे
इस बात का के वो दुनिया को लूट कर ले गए हैं। दीन मेरे पास बाकी है।
हजरत अहमद हर्ब उसकी ये माकल बातें सुनकर दोस्तों से फरमाने
लगे के इस बात को लिख लो के बेहराम से आशनाई की बू आती है। फिर
आपने फ्रमाया के बेहराम ये तो बताओं के तुम आग की परसतिश किस
वास्ते करते हो। उसने कहा। इसलिए के कल कृयामत को मुझे ना जलाए
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सच्ची हिकायात 488 हिस्सा
और आज के रोजं इस क॒द्र लकड़ियाँ मैंने इसी वास्ते उसकी खूराक
की हैं के मेरे साथ उस रोज बेवफाई ना करे। और मुझे खुदा तक पहुंचा ३
हजरत ने ये सुनकर फ्रमाया के तुम बड़ी गलती में पड़े हो। क्योंके आग तो
एक कमजोर व नातवाँ शै है। जूता खयाल तो करो के अगर एक अगर एक
छोटा सा लड़का एक चुल्लू भर पानी इस पर डाल दे। तो वो बुझ जाती है।
पस खयाल करने की बात है के जो ऐसी नातवाँ व कमजोर हो। वो कवी
तक कैसे पहुँचा सकती है? अलावा इसके आग जाहिल भी है के मुश्क व
निज़ासत में जरा भी तमीजु नहीं करती फौरन दोनों को जला डालती है। फिर
ये भी के तुम उसके पुजारी हो मगर तुप भी अगर उसके अन्दर हाथ डालोगे
तो तुम्हारा भी लिहाज ना करेगी बेहराम के दिल पर इन बातों का गहरा
असर हुआ और कहने लगा। मेरे कुछ सवाल हैं। उनका जवाब दीजिए अगर
आपके जवाबात सही हुए तो मैं मुसलमान हो जाऊँगा। आपने फ्रमाया पूछो
क्या पूछते हो। बेहराम ने कहा के
() हक तंआला ने मखलूक को क्यों पैदा किया (2) और अगर पैदा
किया तो रिज़्क क्यों दिया? 3) और अगर रिज़्क दिया तो मारा क्यों? (॥)
और अगर मारा तो फिर जिंदा क्यों करेगा? हजरत ने जवाब दिया के (])
मखलूक् को इसलिए पैदा किया के उसकी खालकीयत को पहचानें (2) और
रिज़्कु इसलिए दिया ताके उसकी रज्जाकी को जानें (3) और मारता इसलिए
क् है ताके उसकी कृहहारी को पहचानें (4) और फिर जिंदा इसलिए करगा के
ताके उसकी कृदिरी को जानें। फिर बेहराम ने कहा। अच्छा अगर आपका
दीन सच्चा है तो लीजिए ये आग है इसमें अपना हाथ डालिये अगर आग ने
आपको ना जलाया तो मैं मुसलमान हो जाऊँगा। चुनाँचे हजुरत ने अपना हाथ
बिस्मिल्लाह पढ़कर आग में डाल दिया और देर तक डाले रहे मगर आग
ने मतलकन कोई असर ना किया। बेहराम ये देखते ही पुकार उठा। अशहद॑
अनलाइलाहा डलल्लाह व अशहदूअन्ना मोहम्मदन अब्दुहू व रसूलुहू
( तजुकरत-उल-औलिया सफा 25)
सबक:- अल्लाह वालों की ये सीरत है के वो अपने पड़ोसियों के
हकक का खयाल रखते हैं और ये भी मालूम हुआ के अल्लाह वालों
कदमों के तुफैल काफिर व मुशरिक भी फायदा हासिल कर लेते हैं और
हे व शुक्र को तारीकियों से निकल कर दीन व ईमान की रोशनी पा लेते
और ये भी मालूम हुआ के बुजुर्गाने दीन की ताजीम व इज्जत से खुदा
तआला खुश होता है। और इज्जत करने वाला काफिर भी हो। तो खुदा ञ्से
9९९06 99 (थ्वा]5८शाशश’
सच्ची हिकायात 489 . हिस्सा सोम
इस्लाम की दौलत अता फरमा कर आग से बचा लेता है। फिर अगर कोई
बराऐ नाम मुसलमान इन अल्लाह वालों की इज्जत ना करे तो वो किस कृद्र
बदनसीब है।
हिकायत नम्बर७७) कफन चोर
हजरत हातिम असिम रहमत-उल्लाह अलेह एक बार बलख शहर
में बाज फ्रमा रहे थे आप ने असना बाज में फ्रमाया के इलाही! जो इस
मजलिस में सबसे ज़्यादा गुनहगार है उस पर अपना रहम फ्रमा। और उसको
बख्श दे। एक कफन चोर भी इस मजलिस में मौजूद था। जब रात हुई तो
कफन चोर कब्रिस्तान में गया। और एक कब्र को खोदा उसने हातिफ से
एक आवाज सुनी। के ऐ कफन चोर तू तो आज दिन को हातिम असिम की
मजलिसे वाज में बख़्श दिया गया। फिर आज ही रात को दोबारा ये गुनाह
क्यों करने लगे हो? कफन चोर ने ये आवाज सुनी तो रोने लगा। और सच्चे
दिल से तायब हो. गया। ( तज॒करत-उल-औलिया, सफा 29) .
सबक :- अल्लाह वालों की मजलिस में हाजूरी से इंसान खुदा की
मगुफिरत व बख्शिश पा लेता है। और गुनाहों से पाक हो जाता है।
हिकायत नम्बर७७) एक मुलहिद का जवाब
एक आवारा मिजाज। बातूनी, और कट हुज्जतियों का आदी मुलहिद
हजूरत हातिम असिम रहमत-उल्लाह अलेह के पास पहँँचा। और आपकी
शान में नाजैबा अलफाज बकने लगा। हजरत ने उसकी कट हुज्जतियों
के ऐसे जवाब दिए के वो ला जवाब होता रहा। चुनाँचे हस्बे जैल सवाल
जवाब हुए।
मुलहिदः- तुम मुफ़्त खौर हो। और आदमियों का माल खाते हो।
हजरत हातिम असिम:- मैंने तेरे माल से कुछ खाया है।
मुलहिदः- नहीं।
हजरत हातिम असिम:- तो फिर तुम आदमी ना हुए।
मुलहिदः- तुम हज्जत करते हो।
हजरत हातिम असिम:- खुदा तआला भी कूयामत के रोज बन्दे से
हुज्जत तलब करेगा। द
: मुलहिदः- ये सब बातें ही बातें हैं।
हजूरत हातिम असिम:- खुदा ने बातें ही भेजी हैं। और तेरी माँ तेरे बाप
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सच्ची हिकायात द हिस्सा सोम
पर बात ही की वजह से हलाल हुई है। हु
मुलहिदः- तो क्या तुम्हारी रोजी आसमान पर से आती है।
हजूरत हातिम:- सब. की रोजी आसमान ही से आती है। वाफिस्समाई
रजाकाकम यानी आसमान में तुम्हारा रिज्कु है।
मुलहिदः- अच्छा तो आराम से साते रहो; ताके तुम्हारे मुंह में तुम्हारा
रिज़्कु आए।
हजरत हातिम:- दो बरस तक गहवारा में सोया। और रोजी मेरे मुंह में
आती रही।
मुलहिद:- क्या तुम ने किसी को देखा के बगैर बोए के काटे।
हजरत हातिमः- तुम्हारे सर के बाल बगैर बोए के काटे जाते हैं।
मुलहिद:- अच्छा तो हवा में उड़ो, तुम्हारा रिज़्क् वहीं पहुँचेगा।
हजूरत हातिम:- अगर मैं परिंदा होता तो मेरी रोजी हवा पर पहुँचती।
मुलहिदः- अच्छा जमीन के अन्दर घुस जाओ। वहाँ रिज़्कु मिलेगा।
हजूरत हातिम:- अगर मैं चियूंटी होता तो वहाँ रिज़्क् मिलता।
मुलहिद:ः- खामोश हो गया। और मुतास्सिर होकर तौबा करके मुसलमान
हो गया। ( तजुकरत-उल-औलिया, सफा 299)
सबक :- मुलहिदीन की तमाम बातें महज कट हुज्जतियाँ होती हैं।
और अल्लाह वाले इन कट हुज्जतियों का जवाब अहसन पैराए में दे देते हैं।
हिकायत नम्बर७७) शैतान की मायूसी
हजूरत हातिम असिम रहमत-उल्लाह अलेह ने यक रोज फरमाया के
शैतान ने एक दफा मुझे फिसलाना चाहा। मगर मैंने उसको ऐसा जवाब दिया
के वो मायूस होकर चला गया। वो मुझ से कहने लगा के तू क्या खाएगा?
मैंने कहा मौत!
उसने कहा क्या पहनेगा? मैंने कहा कफन!
उसने कहा कहाँ रहोगे? मैंने कहा कब्र में!
मेरे ये जवाब सुनकर कहने लगा। तुम बड़े सख्त मर्द हो।
( तजुकरत-उल-औलिया, सफा ॥॥ )
सबकः:- अल्लाह के बन्दों पर शैतान का काबू नहीं चलता।
हिकायत नम्बर७७) वली की बीवी
हजरत हातिम असिम रहमत-उल्लाह अलेह एक मर्तत्रा कहीं बाहर
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सच्ची हिकायात. 49] हिस्सा सोम
सफर में जाने लगे। तो अपनी बीवी से फ्रमाया। के मैं चार महीने तक बाहर
रहूंगा, तुम्हारे वास्ते किस कृद्र खर्च मोहय्या कर जाऊँ? उन्होंने जवाब दिया
के जिस क॒द्र आपको मेरी जिन्दगी मंजर है। हजरत ने फरमाया। तुम्हारी
जिन्दगी मेरे हाथ में तो नहीं, बीवी साहिबा ने जवाब दिया। तो मेरी रोजी भी
आपके हाथ में नहीं है। हजरत हातिम जब चले गए तो एक बुढ़िया ने हजरत
की बीवी से पूछा, के आपके वास्ते कितनी रोजी छोड़ गए हैं। उन्होंने जवाब
दिया के हजरत हातिम तो खुद ही रोजी खाने वाले थे जो खाने वाला था
वो चला गया। और जो देने वाला है वो यहीं है। (तजकरत-उल-औलिया,
सफा 30)
सबक्:- हुज॒र सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम की उ्मत में
ऐसी पाकबाज औरतें भी गुजरी हैं जो बड़ी खुदा रसीदा और हक तआला
पर कामिल एतमाद और भरोसा रखने वाली थीं। फिर जो मर्द होकर भी
अल्लाह तआला पर एतमाद व भरोसा ना रखे तो वो किस क॒द्र गाफिल है।
हिकायत नम्बर७४७) जादे राह
एक शख्स सफर मे जाने लगा। तो हजरत हातिम की खिदमत में हाजिर
होकर कहने लगा, के हजरत मुझे कुछ नसीहतें फ्रमाइये। आपने फ्रमाया,
अगर तू यार चाहता है तो खुदा तआला तेरा यार काफी है। और हमराही
चाहता है तो करामन कातिबीन काफी हैं। और अगर इब्नत चाहता है तो
दुनिया इब्रत के लिए काफी है। और अगर मोनिस व गमख़्वार चाहता है तो
क्रआन मजीद तेरा मोनिस व गुमख़्वार काफी है। और अगर शुग्ल दरकार
है तो इबादत काफी है। और अगर वाज चाहता है तो मौत काफी है। और
अगर ये बातें जो मैंने बयान की। तुझे पसंद नहीं तो दोजूख तेरे वास्ते काफी
. है। ( तजुकरत-उल-औलिया, सफा 2020)
सबके :- इंसान के लिए
बा ए इस मुसाफिर खाने दुनिया में जिक्रो फिक्र
सब से बड़ा मुफीद और कारआमद जादे राह है। .
हिकायत नम्बर७७) मुर्दों का माल
हजरत हातिम से किसी ने कहा के फलाँ शख्स ने बड़ा माल जमा कर
लिया है। फरमाया, क्या उसने उसके साथ जिन्दगानी भी जमा कर ली है?
फ्रमाया तो मुर्दों का माल किस काम का है। ( तजुकरत-उल-औलिया,
सफा 304) ‘
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सच्ची हिकायात | 492 .. हिस्सा सोम
सबक:- आगाही अपनी मौत से कोर्ट बशर नहीं
सामान यो बरस का हैं पल की ख़बर नहीं
हिकायत नम्बर७७) ब॒ुजर्गों की नमाज
हजरत हातिम असिम रहमत-उल्लाह अलेह से किसी ने दरयाफ्त किया
के आप नमाज किस तरह पढ़ते हैं। आपने फरमाया के जब नमाज का वक्त
आता है तो मैं जाहिर का वज करता हूँ और बातिन का वज् भी करता
हू। और मेरा वजू इस तरह होता है के जाहिरी वजू पानी से करता हूँ। और
बातिनी वज तौबा के पानी से करता हूँ। और फिर मस्जिद में दाखिल होता
हूँ और कअबा शरीफ का मुशाहेदा करता हूँ। और मुकामे इब्राहीम को दोनों
अबरो के दरमियान रखता हूँ और बहिश्त को अपनी दाहिनी तरफ और
दोजख को बायें तरफ। और पुल सिरात को अपने कदमों के नीचे रखता
हूँ। और मलक-उल-मौत को पुश्त के पीछे खयाल करता हँ और दिल को
खुदा की तरफ मुतवज्जह करता हूँ। बलके उसको सोंप देता हूँ। उस वक्त
बड़ी तअजीम के साथ तकक््बीर कहता हूँ। और बड़ी हुर्मत के साथ कयाम
करता हूँ। और बड़ी हुव्यत व शौकत के साथ क्रात करता हूँ और बड़ी
आजजी के साथ रूकू करता हूँ और निहायत आजजी के साथ सिजदा बजा
लाता हूँ और बहुत ही हिल््म व बुर्दबारी के साथ क॒ओदे में बैठता हूँ। और
निहांयत शुक्रगुजारी के साथ सलाम फैरता हूँ। मैं इस तरह नमाज पढ़ता हूँ।
(तज॒करत-उल-औलिया सफा ३2)
सबक्:- अल्लाह वालों की नमाज वाकुई नमाज होती है। और एक
हमारी नमाज है। के हजारहा खामियाँ इसमें पाई जाती हैं। फिर एक ऐसा
शख्स जिसने सारी उम्र नमाज पढ़ी ही ना हो। उन अल्लाह वालों पर मौतरिज
हो तो वो किस कुद्र नाअक्बत अंदेश है। |
हिकायत नम्बर७0 बुजर्गों का इल्म
हजरत सहल बिन अब्दुल्लाह तसतरोंँ रहमत-उल्लाह अलेह ने एक
मर्तबा अपने दोस्तों से फरमाया के मुझे खूब याद है के हजरत हक सुबहाना
तआला ने जब रोजे अजूल में अलस्स्तू बिरब्बिकुम फ्रमाया था। और मैंने
नब-ल-या कहा था। और जब मैं माँ के पेट में था उस वक्त के कुल हालात
भी मुझ को मालमू हैं और जब मैं तीन साल का था तो तमाम रात अपने मामू
मोहम्मद बिन सवार रहमत-उल्लाह अलेह के साथ नमाज पढ़ा करता था।
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सच्ची हिकायात 493 . हिस्सा सोम
( तजुकरत-उल-औलिया, सफा 208 )
सबक्:- उन अल्लाह वालों का ये इल्म है के रोजे अजल तक की
सारी बातें इल्म में हैं। शिकमे मादर में होते वक़्त की भी तमाम बातें और
बचपन को तमाम बातें इल्म से बाहर नहीं। और ये भी मालूम हुआ के वो
जात ग्रामी जिन के सदक्के में उन अल्लाह वालों को ये इल्म हासिल हुआ
यानी जात बाबर्कात हुजर अहमद मुजतबा मोहम्मद मुसतफा सल-लल्लाहो
तआला अलेह व सलल््लम। भला इस जात ग्रामी से कोई बात कैसे गायब रह
सकती है? जिनके तुफैल अल्लाह वालों को रोजे अजल तक की बातें मालूम
हों। खुद उनको पीठ पीछे का भी इल्म ना हो। ये किस कदर जहालत की बात
है। और ये भी मालूम हुआ के अल्लाह वालों का बचपन भी अल्लाह की
याद व इबादत में गुजुरता है। फिर वो जिसने बुढ़ापे तक भी कभी नमाज ना
पढ़ी हो। उन अल्लाह वालों का मिस्ल कैसे हो सकता है।
हिकायत नम्बर बुजर्गों की दुआ
एक हाकिम जिसका नाम उमरोलीस थां। बीमार पड़ गया, और ऐसा
बीमार हुआ के तबीब उसके इलाज से थक गए मगर वो अच्छा ना हो
सका। आखिर किसी ने कहा के दवा की तो इन्तिहा हो गई, अब किसी
मुसतजाब-उल-दावात से दुआ कराई जाए। चुनाँचे सब ने हजरत सहल
रहंमत-उल्लाह अलेह का नाम लिया। के वो बड़े बुजर्ग और अल्लाह के बली
हैं। उन से दुआ की दरख़्वास्त की जाए। चुनाँचे आपको बुलाया गया। और
आप मुताबिक फ्रमांने हक् वबओलिल अगरी मिनकुम तशरीफ ले गए।
जब मरीज हाकिम के पास बैठे तो उसने फ्रमाया के दुआ ऐसे शख्स के हक
में कबूल होती है जो सच्चे दिल से तौबा करे और खुदा की जानिब रूजू
करे। और ऐ उमरो! तेरे कैदखाने में बहुत से बेगुनाह केदी भी हैं। पहले उन
सब कैदियों को रिहा कर और तौबा कर। फिर मैं दुआ करता हूँ। उमरोलीस
ने ऐसा ही किया। कैदियों की रिहाई का हुक्म दिया। और तौबा की। फिर
हजरत सहल ने हाथ उठाए और कहा के…
“खुदावंदा। ऐसा के तूने अपनी नाफरमानी की जिल्लत उसको दिखाई ।
इसी तरह मेरी इताअत की इज्जत भी उसको दिखला दे। और जिस तरह
के तूमे उसके बातिन को लिबास तौबा पहनाया है। इसी तरह उसके जाहिर
को लिबास आफियत भी पहना दे।”
आप ये दुआ कर ही रहे थे के उमरोलीस बिलकुल अच्छा हो गया
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सच्ची हिकायात हिस्सा सोम
उमरोलीस आपको बहुत सामान नज़ देने लगा। मगर आपने इंकार कर दिया।
( तजकरत-उल-औलिया, सफा 32 )
सबकः:ः- जहाँ दवा की इन्तिहा हो। दुआ की वो इब्तिदा होती है। और
ये भी मालूम हुआ के
बुजर्यों की दुआ से बदल जाती है तकदीरें
और ये भी मालूम हुआ के दुआ की कूबूलियत के लिए जहाँ दुआ
माँगने वाला, मुसतजाब-उल-दावांत होना चाहिए। वहाँ वो शख्स जिसके
लिए दुआ की जाए उसे भी अपने गुनाहों से सच्चे दिल से तौबा कर लेना
चाहिए। जब दोनों तरफ से ये पाकीजुगी, और अफ्फत पाई जाएगी। तो दुआ
बहुत जल्द सुनी जाएगी।
हिकायत नम्बर७०) निराली दुआ
हजरत मअरूफ क्र्खी रहमत-उल्लाह अलेह एक रोज एक जमात के
साथ कहीं जा रहे थे। के आपने दजला के किनारे जवानों की एक जमात
देखी जो फिस्को फिजूर में मुबतला थे। आपके हमराहियों ने अर्ज की।
हुज॒र इन के लिए दुआ कीजिए। ताके खुदा तआला इन सब बदमाशों
को गृर्क कर दे और उनकी नहूसत फैलने ना पाए। हजरत मअरूफ ने
फरमाया के हाथ उठाओ। मैं दुआ करता हेँ। तुम सब आमीन कहना।
चुनाँचे सब ने हाथ उठाए और आपने दुआ की। के इलाही! जिस तरह
तूने उनको इस जहान में ऐशो इशरत में रखा है। इसी तरह उनको उस
जहान में भी ऐशो इशरत अता फ्रमा। आपकी इस दुआ पर हमराहियों
ने ताज्जुब किया। और वजह दरयाफ्त की। आपने फ्रमाया के जरा ठहरो
मेरा मकसद अभी जाहिर होता है। चुनाँचे थोड़ी देर के बाद इस जमात
की नजर जूहीं मअरूफ क्र्खी पर पड़ी तो उन्होंने अपने बाजे गाजे तोड़
फोड़ डाले और शराब फैंक दी। और जार जार रोने लगे। और सब आकर
हजरत के कदमों में गिर गए। और सच्चे दिल से तायब हो गए। हजुरत
मंअरूफ ने अपने हमराहियों से फरमाया के बंद लिया
हासिल हो गई। बगैर उसके के ये ग॒र्क हों। या इन्हें कोई
‘( तजकरतं-उल-औलियां सफा 330) न
. सबक्:- बुजूर्गों की.दुआओं से काया पलट जाती है और जो काम
तीगू व तीर से नहीं हो सकता वो कांम किसी वाले की नजर और
दुआ से फौरन हो जाता हैं इसी लिए शायर ने लिखा/है के:-
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सच्ची हिकायात 495 .._ हिस्सा सोम
ना किताबों से ना कालिज के है दर से पैदा
दीन होता है बुजुर्यों की नजर से पैदा –
हिकायत नम्बर७3 रूनी हाकिम
हजरत मअरूफ कुर्खी रहमत-उल्लाह अलेह के मार्मूं शहर के हाकिम
थे। एक रोज इस हाकिम का गुजर एक जंगल से हुआ। जहाँ हजरत मअरूफ
कुर्खी बैठे रोटी खा रहे थे और एक कुत्ता भी साथ ही बैठा था। हाकिम शहर
ने देखा के हजुरत मअरूफ एक लुकुमा अपने मुंह में डालते हैं और एक
लुक॒मा उस कात्ते के मुंह में डालते हैं। आपके मामूँ ने देखकर कहा के तुम्हें
शर्म नहीं आती के एक कूत्ते के साथ रोटी खा रहे हो। आपने फरमाया के मैं
शर्म ही के सबब से तो उसे रोटी खिला रहा हूँ। आपने सर उठाया। और एक
परिंदे को जो हवा में उड़ रहा था। आवाज दी। वो परिंदा हुक्म पाते ही नीचे
उत्तर आया। आपके हाथ पर आ बैठा। लेकिन अपने पर से अपना मुंह और
अपनी आँखें छुपा लीं। हजुरत मअरूफ ने फ्रमाया के देख लो जो शख्स
खुदा तआला से शर्म रखता है हर चीज उससे शर्म रखती है। आपके मामूँ
ने ये शान देखी तो बड़ा शर्मिंदा हुए। ( तजुकरत-उल-औलिया, सफा 33 )
सबक्:- अल्लाह वालों के अखलाक् बड़े बुलंद होते हैं। और उनके
दिल अल्लाह की मखलूक की हमदर्दी से मामूर होते हैं। और वो भूके कात्तों
का भी खयाल रखते हैं। फिर जिसके दिल में किसी भूके इंसान का भी
खयाल ना हो , तो वो किस क्द्र संग दिल और गाफिल है। और ये भी मालूम
हुआ के गूरबा व मसाकीन से नेक सलूक करना और हमदर्दी रखना दरअसल
यही शर्म व हया है। और ये भी मालूम हुआ के अल्लाह वालों की हकूमत
जानवरों पर भी जारी है। इसलिए हजरत शेख सअदी ने फ्रमाया के…
तोहम यर्दान अज़ हुक्म दावर मेच
.._- के गर्दन ना पीचदज़ हुक्म तो हैच
यानी तुम अल्लाह के हुक्म से सरताबी ना करो, तो सारी मखलूक में से
कोई तुम्हारी हुक्म की सरताबी ना करेगा। हि
हिकायत नम्बर७७) इन्तिकाल मकानी
._ हजरत फतह मूसल रहमत-उल्लाह अलेह एक रोज अपने यारों के साथ
मस्जिद में बैठे थे। के एक नोजवान जो सादा लिबास पहने हुए था, आया,
और कहने लगा के जनाब! कया मुसाफिरों का भी कोई हक् होता है या
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सच्ची हिकायात 496 हिस्सा सोम
नहीं। हजरत मूसली ने फ्रमाया के हाँ होता हैं इस नोजवान ने कहा तो फिर
मैं एक मुसाफिर हूँ, फलाँ मोहल्ले के फलाँ मकान में ठहरा हुआ हूँ। कल मैं
मर जाऊँगा। कल आप इस मोहल्ले में आइये और मेरे मकान में पहुँच कर
मेरा गस्ल आप खुद दें। और मेरे इसी पीराहन को कफन बनाएँ। और इसी
कफन में दफनायें। ये कहकर वो नोजवान चला गया।
हजरत मूसली दूसरे रोज उसी मोहल्ले में पहुँचे। और इस मकान में गए
तो बाकई वो नोजवान फौत हो चुका था। हजरत मूसली ने हस्बे वसीयत
उसको खुद निहलाया और इसी पीराहन में कफनाया। हजुरत मूसली
रहमत-उल्लाह अलेह जब कफन पहना कर फारिगृ हुए तो उस नोजवान
ने कफन से हाथ निकाला। और हजरत मूसली का दामन पकड़ कर कहा
के जजकल्लाह! ऐ फतह मूसली! अगर मैं हक् तआला के नजदीक मर्तबा
पाऊँगा तो आपकी इस खिदमत के अवजु जुरूर आपकी खिदमत का बदला
चुकाऊँगा। ( तजुकरत-उल-औलिया, सफा ३49 )
सबक्:- अल्लाह वालों को बअता इलाही ये इल्म भी होता है के वो कब
मरेंगे। फिर जो उन सब अल्लाह वालों के सय्यद व सरदार हैं और जिनके
सदके में उन सबको ये अजमतें मिलीं, उनका अपना इल्म किस कूद्र वसी
होगा। और ये भी मालूम हुआ के ये अल्लाह वाले मरते नहीं हैं बल्के उनकी
मौत महज इन्तिकाल मकानी होती है। यानी एक जगह छोड़ कर देसरी जगह
चले जाना। जैसे के एक शायर ने लिखा है…
आओऔलिया को मत समझिये मर गए
वो तो इस दुनिया से अपने घर गए
हिकायत नम्बर७७) चिरागो
हजरत अहमद खिजद्धविया रहमत-उल्लाह अलेह के घर एक दूसरे
मकबूल हक तशरीफ लाए। हजरत अहमद खिज्जविया ने अपने घर में सात
चिराग रोशन किए। मेहमान बुजर्ग ने फरमाया के ये तकलीफ क्यों किया?
हजरत अहमद खिद्धविया ने फरमया के आप उठिये। और जो चिराग मैंने
खुदा के वास्ते रोशन ना किया हो। उसे बुझा दीजिए। मेहमान बुजुर्ग उठे और
इन चिरागों को बुझाने ‘जगे। मगर इनमें किसी चिराग को भी ना बुझा सके।
हजूरत अहमद खिज्जविया दूसरे रोज अपने मेहमान बुजर्ग को साथ लेकर एक
कलीसा के दरवाजे पर पहुँचे इस कलीसा के दरवाजे पर इसाईयों का सरदार
बैठा .हुआ था। उस सरदार ने हजरत अहमद खिज़्जविया से कहा के आइये।
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सच्ची हिकायात 497 हिस्सा सोम
दसतरख़्वान बिछ रहा है। खाना खाईये। आपने फरमाया के दोस्त दुश्मनों के
साथ कोई चीज नहीं खाया करते। उसने कहा। तो आप मुझे मुसलमान कर
लीजिए। चुनाँचे आपने उसे कलमा पढ़ाकर मुसलमान कर लिया इस सरदार
के साथ उसकी कौम के सत्तर अफ्राद और भी थे। उन्होंने अपने सरदार को
मुसलमान होते देखा। तो वो सब भी मुसलमान हो गए। उस रात आपने ख़्वाब
में खुदा तआला की तरफ् से हातिफ कीं ये आवाज सुनी के
“तुम ने हमारे वास्ते सात चिराग रोशन किए, हम ने तुम्हारे
वास्ते तेरे जरिये सत्तर दिलों को नूर ईमान से रोशन कर दिया।”
(तजूकरत-उल-औलिया, सफा 260 ) क्
सबक्:- जो काम भी अल्लाह की खुशनूदी के लिए किया जाए। उसी.
तकल्लुफ या इसराफ नहीं कहा जा सकता। मालूम हुआ के ईद मीलाद-उन्नबी
सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम के मौके पर जो चिरागाँ की जाती है।
इस में बजुज् उसके खुदा के मेहबूब सल-लल्लाहो त्आला अलेह व सलल््लम
की खुशी का मुजाहेरा हो। और कोई नीयत नहीं होती। फिर इस चिरागाँ
को तकल्लुफ या बिदअत समझना क्यों ना हो। और ये भी मालूम हुआ के
जो लोग अल्लाह के मेहबूब की खुशी मनाते हुए अपने घर रोशन करते हैं।
अल्लाह तआला अपने मेहबूब के सदके में इंशा अल्लाह उनकी कंब्रों को
रोशन करेगा।
हिकायत नम्बर७0 भाई को नसीहत
. हजरत याहिया मआजू राजी रहमत-उल्लाह अलेह के एक भाई थे जो
के मक्का मोअज़्ज्मा में जाकर वहाँ के मुजाविर हो गए। एक रोज उन्होंने
हजूरत याहिया को खत लिखा के मुझे तीन चीजों की आरज थी। दो तो उन
में से मुझे हासिल हो गईं। एक बाकी है। दुआ फ्रमाइये के वो भी हासिल
हो जाए। इन तीनों आरजओं में से एक ये आरज थी के मैं अपनी आखिर
उम्र में एक बेहतरीन और मुबारक जगह में रहूं। चुनाँचे मैं अब खाना कअबा
में पहुँच गया हूँ। जो सबसे बढ़कर मुबारक जगह है। ये आरज तो पूरी हुई
दूसरी आरज ये थी के मेरा एक खादिम हो, ताके मेरी खिदमत करे। और मेरे
बज के लिए पानी तैयार करे। सो खुदा तआला ने ये आरज भी पूरी फ्रमा
दी। के मुझे एक शायस्ता गुलाम अता फ्र दिया। तीसरी आरज मेरी ये थी
के मौत से पहले आपको देखूं। तो उम्मीद है के हक् तआला ये भी आरजू
मेरी पूरी फ्रमा देगा।
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सच्ची हिकायात 49 हिस्सा सोम
हजरत याहिया रहमत-उल्लाह अलेह ने अपने भाईं को जवाब लिखा
के ये जो आपने लिखा है के मैं बेहतरीन जगह की आरज रखता हूँ। इसका
जवाब ये है के आप खुद बेहतरीन मखुलूक् बनने की कोशिश कौजिए। और
खुद बेहतरीन मखलूक् बनकर फिर जिस जगह में भी दिल चाहे रहिए। याद
रखिये के जगह मर्दों से बुजर्ग व अजीज बनती है ना के मर्द जगह से। और
जो आपने लिखा है के मुझे एक खादिम की जुरूरत थी। और वो भी पूरी
हो गईं। तो इसका जवाब ये है के अगर आप में मुरव्वत व जवाँ मर्दी होती
तो आप अल्लाह तआला के एक खादिम को अपना खादिम ना बनाते। और
हक तआला की खिदमत से उसे बाज ना रखते। और अपनी खिदमत में उसे
मंशगल ना करते। आपको तो खुद खादिम बनना चाहिए। ना के आप मखदूमी
की आरज करें। याद रखिये के मखदूमी हक् तआला की सिफात में है। और
खादिमी बन्दे की सिफात में से पस बन्दे को बन्दा ही रहना चाहिए। और
जब बन्दा हक् तआला की सिफात की आरज करे तो ऐसा जानना चाहिए
के वो फिरऔनित इख्तियार करना चाहता है। और ये आपने लिखा है के
मुझे तुम्हारे दीदार की आरज है तो उसका जवाब ये है के मालूम होता है के
आप खुदा तआला से गाफिल हैं। अगर आप खुदा तआला से बाखूबर होते
तो मैं आपको कभी याद.ना आता आपको लाजिम है के हक् तआला की
याद इस तरह रखें। के आपको भाई की याद ना आए। मेरे भाई अगर आपने
हक् तआला को पा लिया। तो फिर मेरी क्या हाजत? और अगर उसको ना
पाया तो मुझे पा लेने से क्या फायदा। ( तज॒करत-उल-औलिया, सफा 368 )
सबक :- इंसान को लाजिम है के वो हक् तआला की याद और नेक
आमाल से अपने आपको बेहतरीन व मुबारक बना ले फिर वो चाहे कहीं
भी रहे। नेक ही है। और इंसान को लाजिम है के वो जहाँ तक मुमकिन हो।
खिदमत व तवाजौ इख़्तियार करे और तकब्बुर व अनानियत और मखुदूमीयत
का शौक नजदीक ना आने दे और हमातन अल्लाह की खिदमत व इबादत
में मसरूफ रहे और अल्लाह तआला की याद में इतना महू व मुसतगरिक् रहे
के दुनयवी रास्ता उसकी मोहब्बत हक् में हायल ना हो सके।
_हिकायत नम्बर७0 ख़्वाब की ताबीर
हजरत याहिया मआज राजी रहमत-उल्लाह अलेह ने एक मर्तबा अपने
एक अजीज को खत लिखा के दुनिया मिसल ख़्वाब के है। और आखिरत
पिसल बैदारी के। और जो शख्स ख़्वाब में देखे के रो रहा है तो ताबीर इसकी
9९९6 99 (थ्वा]5८शाशश’
सच्ची हिकायात . 4099 हिस्सा सोम
उल्टी होती है। यानी बैदारी में वो हंसेगा। और शाद होगा। पस ऐ अजीज! तुम
को इस दुनिया में जो मिसल ख्ठाब॑ के है। खौफे खुदा से रोना चाहिए ताके
आखिरत की बैदारी तुम हंसी और खुशी पा सको! ( तज॒ुकरत-उल-औलिया,
सफा 38)
सबक :- इंसान को लाजिम है के वो आखिरत को संवारने के लिए
इस दुनिया में अच्छे काम करे और खुदा के हुज॒र खड़े होने का हर वक्त
खयाल रखे। और खौफे खुदा से आँसू बहाए। ताके उसकी आखिरत अच्छी
हो जाए। इसी लिए मौलाना रूमी ने फरमाया के
हर कजा आब रवाँ ग्रनचा बोद
हर कजा अप्क रवाँ रहमत शोद
यानी जहाँ पानी बहता है, वहाँ फूल उगते हैं। इसी तरह जहाँ खुदा के
खौफ से आँखों से आँसूं बहते हों वहाँ रहमत के फूल उगते हैं।
हिकायत नम्बर७७७ शमे ईमान
एक रात हजरत याहिया मआज राजी रहमत-उल्लाह अलेह के सामने
एक शमादान रोशन थी। जो हवा के एक झोंके से बुझ गईं। हजरत ने रोना
शुरू कर दिया, मुरीदों ने अर्ज किया। हुज॒र! शमा फिर रोशन कर देते हैं। आप
रोते क्यों हैं? आपने फ्रमाया। मैं इसलिए नहीं रो रहा के ये शमा क्यों बुझ
गई, मैं तो इस खयाल से रोने लगा हूँ के ईमान-की शमा और तौहीद का जो
चिराग बुतों में रोशन है। कहीं ऐसा ना हो के खुदा तआला की बेनियाजी की
हवा लगे तो ये शमा भी गुल हो जाए। ( तज॒ुकरत-उल-औलिया, सफा 270 )
सबक :- अल्लाह तआला से हर वक्त अंजाम व आक्बत की बेहतरी
माँगना चाहिए और ये दुआ करते रहना चाहिए के खुदा तआला हमारा ईमान
सलामत रखे। और हर वक्त हम इस दौलत ईमान से माला माल दुनिया से
रूख्सत हों।….
– या खुदा जिस्म में जब तक के मेरी जान रहे
तेरे सदके तेरे मेहब्ृब को कर्बान रहे .
कुछ. रहे या ना रहे पर ये दुआ हैं के अमीर
नज़अ के वक़्त सलामत मेरा ईमान रहे
हिकायत नम्बर&9 चार दुआयें
” एक शख्स जो बड़ा अमीर था, हर वक्त फिस्को फिजूर में मुबता रहता
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सच्ची हिकायात 500… हिस्सा सोम
था। और कभी भूल कर भी खुदा की याद नहीं करता था। एक रोज अपने
गुलाम को चार दरहम दिए ताके वो बाजार से मीठाई खरीद कर लाए।
चुनाँचे वो गलाम गया। रास्ते में उसने देखा के एक जगह हजरत मनसून
रहमत-उल्लाह अलेह एक मजमओ में वाज फ्रमा रहे हैं। गुलाम ने सोचा
थोड़ी देर हंजरत मनसूर का वाज ही सुन लूं। चुनाँचे वो इस मजलिस में
हाजिर हो गया। उस वक्त हजरत मनसूर एक मुसतहिक् दुरवैश की खिदमत
करने के लिए लोगों से अपील कर रहे थे और फ्रमा रहे थे के जो शख्स
इस दुरवैश को चार दरहम देगा मैं उसके लिए चार दुआएँ करूंगा। गुलाम
ने दिल में सोचा के ये चार दरहम जो मेरे पास हैं। मैं इस दुरवैश को दे दूं।
और चार दुआएँ अपनी मर्जी कें मुताबिक् करा लूं। चुनाँचे उसने वो चार
दरहम दुरवैश को दे दिए। हजरत मनसूर ने फरमाया के जजाकल्लाह अब
बताओ के मैं तुम्हारे वास्ते कौन कौन सी दुआ करूं। गुलाम ने कहा पहली
तो ये दुआ कीजिए के खुदा तआला मुझे गुलामी से आजादी दे दे। दूसरी ये
के अल्लाह तआला मेरे मालिक को तौबा कर लेने की तौफीक दे दे। तीसरे
ये के मुझे चार दरहम और मिल जाए। चौथे ये के अल्लाह तआला मुझे और
हाज्ीने मजलिस को और मेरे मालिक को सब को बख़्श दे। हजरत मनसूर ने
ये चारों दुआएँ कीं और वो गुलाम ये चारों दुआएँ कराके घर वापस आ गया।
मालिक ने उससे पूछा के तुम ने इतनी देर कहाँ लगाई। तो उसने सारा किस्सा
बयान किया और कहा के मैं वो चार दरहम हजरत मनसूर की मजलिस में
देकर आया हूँ और उनके अवज हजूरत मनसूर से चार दुआएँ करा ली हैं।
मालिक नू पूछा के वो चार दुआएँ कौन कौन सी हैं जरा मुझे भी तो सुना।
गुलाम ने कहा के एक तो ये के खुदा तआला मुझे आजादी अता फ्रमाए।
ओर दूसरे ये के इन चार दरहमों के अवज चार दरहम मिल जाएँ। तीसो ये
के खुदा तआला आपको तौबा की तौफीक् अता फ्रमाए। चौथे ये के खुदा
तआला मुझ पर आप पर हजरत मनसूर और सारे हाजरीन जलसा पर अपनी
रहमत फ्रमाए। और सबकी मगृफिरत फ्रमा दे। मालिक ने ये सुना। तो कहने
लगा। पहली दुआ तो कबूल हुई। जाओ मैंने तुझे आजाद किया। दूसरी भी
कबूल हुई लो उन दरहमों के अवज में तुझे चार सौ दरहम देता हूँ और तीसरी
भी कबूल हुई। सनो! मैं सच्चे दिल से तौबा करता हूँ आईंदा कभी खुदा की
नाफरमानी ना करूंगा। और किसी गुनाह के करीब ना फटकूंगा। अब जो
कुछ के मेरी क॒ंद्रत में था मैंने उसको पूरा कर दिया लेकिन चौथी बात मेरे
इख़्तियार में नहों। उसमें मैं मजबूर हूँ। और वो काम मैं नहीं कर सकता। उसी
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सच्ची हिकायात 50| हिस्सा सोम
वक्त हातिफ से एक आवाज आई। ऐ बन्दे! जो कुछ तेरे इख्तियार में था,
बन्दा होकर तुम ने वो काम कर दिखाया। तो जो कुछ हमारे इख़्तियार में
है। रहीम होकर हम वो काम क्यों ना करें। जाओ हम ने तुझे तुम्हारे गुलाम,
मनसूर और सारे हाज्जीने मजलिस को अपनी रहमत में ले लिया। और सबको
बख़्श दिया। ( तज॒करत-उल-औलिया, सफा 45) ु
सबक :- अल्लाह के मक्बूलों की मजलिस में शिर्कत मौजिबे रहमत
हक और बाइस निजात है। और मुसतेहकीन की मदद व एआनत से अल्लाह
तआला खुश होता है। और मदद करने वाले पर रहमत फरमाता है। और ये
भी मालूम हुआ के अल्लाह के मक्बूल बन्दों से दुआ कराने में मकसद जल्दी
हल हो जाता है। इसलिए के अल्लाह तआला अपने मक्बूल बन्दों की दुआ
मुताबिक हदीस लट्नन साअलनी लाअवीक्नाहू ( यानी मेरा मक्बूल जब मुझ
से कुछ मांगे तो मैं उसे जरूर अता फ्रमाता हूँ ) जल्दी सुनता है। और ये भी
मालूम हुआ के बुज॒र्गों की दुआओं से गुनाहगारों की काया पलट जाती है।
इसी लिए शायर ने लिखा है के… द
बुज़्यों की दुआओं से बदल जाती हैं तकदीरें
हिकायत नम्बर७७ फिरासत मोमिन
हजरत जुनेद बगृदादी रहमत-उल्लाह अलेह के जुमाने में एक मजूसी
रहता था। एक रोज उसने अपने गले में जिनार पहना। और उसके ऊपर
मुसलमानों का लिबास पहन कर हजरत जुनेद के पास आया। और कहने
लगा, हुज॒र! एक हदीस का मतलब दरयाफ्त करने आया हूँ। हदीस में आया
है के इत्तक बिफिरासतिल मोमिनी फड़न्नहू यनजखू बिनूरिल्लाही यानी
मोमिन की फिरासत से डरो। इसलिए के वो अल्लाह के नूर से देखता है। इस
हदीस का क्या मतलब हैं हजरत जुनेद मुसक्राए और फ्रमाया “इस हदीस
का मतलब ये है के तू अपना जिनार तोड़ कुफ़ छोड़। और कलमा पढ़कर
मुसलमान हो जा” मजूसी ने जब ये सुना तो फौरन पुकार उठा। अशहद
अनलाइलाहा इलल्लाह व अशहदूअन्ना मोहम्पदन अब्दुहू व रसूलुहू
(तज॒करत-उल-औलिया, सफा 43)… |
सबक :- अल्लाह के मक्बूल बन्दे जो सही मानों में साहबे ईमान होते
हैं। उनकी नजर से कोई पौशीदा बात पनेहाँ नहीं रहती। और वो मुताबिक
हदीसे पाक के नूरे हक् के साथ सब कुछ देख लेते हैं। इसी लिए मौलाना
रूमी ने फरमाया… लोह महफ्ज अस्त पैश औलिया
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सच्ची हिकायात 502 हिस्सा सोम
फिर खुद सरवरे आलम सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम से
जिनके सदके में उन अल्लाह वालों को ये वुसअत नजर अता हुई। कायनात
की कोई शै पौशीदा कैसे रह सकती है? सच फरमाया आँहजरत ने के….
दिल फर्श पर है तेरी नज़र, सरे अर्श पर है तेरी गुजर
मलकूत व ग्रुलक में कोड शै नहीं वो जो तुझ पर अया नहीं
हिकायत&) गीबत
हजरत जुनैद बगृदादी रहमत-उल्लाह अलेह ने एक शख्स को देखा,
जो सवाल कर रहा था। हजरत जुनेद के दिल में खयाल आया के ये
शख्स तनदुरूस्त होकर सवाल कर रहा है। हालाँके खुद कमा भी सकता
है। शब को सोए तो ख़्वाब में देखा के एक ख़्वान सर पोश से ढका
हुआ सामने रखा है। और लोग कहते हैं। के खाओ हजरत जुनैद ने सर
पोश उठाया। तो देखा वही सायल दुरवैश मुर्दा उसमें रखा हुआ है। जुनैद
फरमाने लगे के मैं मुर्दाखौर तो नहीं हूँ? लोगों ने जवाब दिया। तो फिर
आपने इस दुरवैश को दिन के वक्त क्यों खाया था? जुनैद फरमाते हैं में
समझ गया के शायद ये इशारा इसी मेरे दिली खयाल की तरफ हैं। पस॒
मैं मारे हैबत के जाग उठा। और वज करके दो रकात नमाज् पढ़ी। और
इस दुरवैश की तलाश में निकला। देखा के वो दरया के किनारे बैठा हुआ
है। और साग जो लोग धोकर चले गए हैं। उसके टुकड़े पानी से चुन चुन
कर खा रहा है मैं उसके करीब पहुँचा तो उसने सर उठाया और कहा। ऐ
जुनैद! मेरे हक् में जो तुम्हारे दिल में खयाल॑ आया था। उससे तौबा कर
‘ली! मैंने कहा हाँ! कहने लगा अब जाओ हुबल्लजू युक्बलूत्तोबाता
अन ड्रबाविही यानी खुदा अपने बन्दों से तौबा कबूल फ्रमाता हैं जुनेद
अब दिल की हिफाजृत करना। ( तजकरत-उल-औलिया, सफा 440 )
सबक्:- बदगुमानी व गीबत बहुत बुरी चीज है और किसी मुसलमान
भाई की गीबत करना ऐसा है जैसे अपने मुर्दा भाई का गोशत खाना। और ये
भी मालूम हुआ के अल्लाह वालों से कोई बात छुपी नहीं रहती।
हिकायत नम्बर७” मुंह की सियाही
हजरत जुनेद बगुदादी रहमत-उल्लाह अलेह का एक मुरीद था। जो
बसरा में रहता था। उसके दिल में एक रोज किसी गुनाह का खयाल पैदा हुआ
ये खयाल बद आते ही उसके मुंह पर सियाही फैल गई। उसने आईना में जो
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सच्ची हिकायात ‘ 503 हिस्सा सोम
अपना मुंह देखा तो बड़ा घबराया और शर्म के मारे घर से बाहर निकलना
छोड़ दिया। अलगर्ज तीन रोज के बाद उसके मुंह की सियाही कम होते होते
दूर हो गईं। और मुंह फिर उसी तरह रोशन हो गया। उसी रोज एक शख्स
आया। और हजूरत जुनैद बगृदादी अलेह अर्रहमा का एक खत दे गया। एक
ने खुत जो पढ़ा तो उसमें लिखा था के अपने दिल को अपने काबू में रखे
और बारगाहे बन्दगी के दरवाजे पर अदब से रहो। आज मुझे तीन रात तीन
दिन गुजर गए हैं के धोबी का काम करना पड़ा ताके तुम्हारे मुंह की सियाही
फू
दूर हो। ( तजुकरत-उल-औलिया, सफा 486)
सबक्:- पीरो मुर्शिद की बदौलत इंसान गुनाहों से बचता रहता है
और अगर कोई लगृजिश वाके हो भी जाए तो पीरो मुर्शिद की एआनत व
इम्दाद से उसका तदारूक भी हो जाता है। पस किसी मुर्शिद का दामन जुरूर
पकड़ना चाहिए। और ये भी मालूम हुआ के खुदा की याद से मुंह पर एक
खास नूरानियत का जलवा नजुर आता है। और गुनाहों के इरतिकाब से दिल
भी सियाह हो जाता है और मुंह पर भी नहूसत छा.जाती है।
हिकायत नम्बर) दो तलवारें
हजरत जुनैद बग॒दादी रहमत-उल्लाह अलेह के पास एक सय्यद साहब
तशरीफ लाए आप ने दरयाफ्त किया। सय्यद साहब! आप कहाँ से तशरीफ
लाए हैं सय्यद साहब ने जवाब दिया। गीलान से फरमाया आप किस की
औलाद हैं? सय्यद साहब ने जवाब दिया। अमीर-उल-मोमिनीन हजरत
अली रजी अन्ह की ओऔलाद से हूँ। आपने फरमाया। आपके दादा दो तलवारें
मारते थे। एक काफिरों को। दूसरी नफ़्स को। सय्यद साहब आप उनकी
औलाद से हैं। फरमाईंये आप कौन सी तलवार मारते हैं? सय्यद साहब ये
सवाल सुनकर रोने लगे और कहने लगे आप मेरी रहनुमाई करें। और पंदो
निसायह फरमाएँ। चुनाँचे आपने सय्यद साहब को बहुतं कुछ इर्शाद फ्रमाए।
(तजकरत-उल-औलिया, सफा 448)
‘सबक्:- हर मुसलमान को अपने नफ़्स से मुकाबला करना चाहिए
और मौंत् कुबला अन तमूतू के मुताबिक इस नफ्स सरकश को मार॑ डालना
चाहिए। हजरत अमीर-उल-मोमिनीन मौला अली रजी अल्लाहो अन्ह की
तरह जहाँ कुफ्फार से जिहाद करने पर आमादा रहना चाहिए। वहाँ अपने
नफ्स से भी जिहाद करना जरूरी है इसलिए के ये भी मर्दे मोमिन का बड़ा
दुश्मन है। और इसका मारना भी बहुत बड़ा जिहाद है।
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सच्ची हिकायात 504 हिस्सा सोम
नहंग व अजबहा शेर नर मारा तो क्या मारा ‘
बड़े गृजी को मारा नफ्से अम्मारा को यर मारा
हिकायत नम्बर७७) तवाजौ
हजरत उस्मान अलजीरी रहमत-उल्लाह अलेह बाजार में से गुजर रहे थे
के किसी गुसताख ने राख से भरा हुआ एक तबक् अपने कोठे से आपके सर
पर फैंक दिया। आपके मुरीद इस गुसताख पर ब्रिहम ४ए तो आपने फ्रमाया
के ये गृस्सा का मुकाम नहीं। बल्के ये तो मुकाम शुक्र है के जो शख्स इस
काबिल था के उसके सर पर आग डाली जाए। जूरा सी राख डालकर उसको
कह दिया गया के बदला हो गया सो मैं तो शुक्र कर रहा हूँ के अल्लाह ने
आग की बजाए राख पर मामला खुत्म कर दिया। ( तजुकरत-उल-औलिया,
सफा 4 ) ह द
._ सबक्:- अल्लाह के मक्बूल बन्दे बुराई का बदला बुराई से नहीं देते
और हर वक्त तवाजौ पसंद रहते हैं।
हिकायत नम्बर (५6) शैतान का जाल
हजरत अब्दुल्लाह जला रहमत-उल्लाह अलेह एक रोज एक खूबसूरत
मजूसी लड़के को देखा और उसके हुस्नो जमाल से आप इस कूद्र मुतास्सिर
हुए के उसे देखते ही रहे। थोड़ी देर के बाद हजरत जुनेद बगृदादी अलेह
अरहमा वहाँ से गुजरे। तो आपने उनसे अर्ज की। या उस्ताद! मैं इस लड़के
का हुस्नो जमाल देखकर ये सोच रहा था के ऐसी अच्छी सूरत दोजख
की आग में जलेगी। हजरत जुनैद बगृदादी ने फरमाया। ऐ अब्दुल्लाह! ये
शैतान का एक जाल और फ्रैब नफ्स है। जो तुझे यूं लुभा रहा है। और
याद रख! के ये नज़्जारा-ए-इब्रत नहीं। बल्के नज़्जारा-ए-शेहवत है। अगर
नज्जारा-ए-इब्रत होता तो अढ़ारह हजार आलम में बहुत से अजायबात हैं।
तों उनसे इब्रत हासिल करता मगर ये शैतानी जाल है के उस लड़के ही के
हुस्नो जमाल को तू नज़्जारा-ए-इब्बनत समझने लगा। अनक्रीब तुम इसको
पादाश में गिरफ्त में आओगे। चुनाँचे अबु अब्दुल्लाह जो हाफिजे कुरआन
भो थे। क्रआन को भूल गए। फिर वो बरसों रोते रहे। और अपनी लगृजिश
की मार्फो चाहते रहे। और तौबा करते रहे। तब जाकर अल्लाह तआला ने
अपना फज्ल फ्रमाया और क्रआन फिर याद हो गया। उसके बाद हजूरत
अबु अब्दुल्लाह फिर किसी चीज की तरफ इलतिफात ना फ्रमाते थे।
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सच्ची हिकायात 505 .. हिस्सा सोम
( तजुकरत-उल-औलिया, सफा 498 )
सबकः- जो लोग पराई औरतों को देखते और यूं कहते हैं के हम
खालिक हुस््नो जमाल की कृद्गरत व सनअत को देखते हैं और जो लोग सिनेमा
व तमाशा देखकर यूं कहते हैं के हम इन्नत हासिल करने के लिए सिनेमा
देखते हैं। वो दरअसल शैतान के जाल में फंस चुके होते हैं। क्योंके इब्नत
के लिए तो और भी हजारों लाखों चीजें मौजूद हैं। फिर एक “तमाश बीनी
और नजूरबाजी ” ही को मौजिबे इब्नत समझना शैतानी चाल व जाल नहीं
तो और क्या है। ‘
हिकायत नम्बर७७) गंवार
हजरत अबु अलहसन बूशिंजी रहमत-उल्लाह अलेह के शहर में एक
गंवार का गधा गुम हो गया वो गंवार सीधा हजुरत अबु अलहसन के पास
आया। और कहने लगा मेरा गधा आपने लिया है, हजरत ने फरमाया ये क्या
कह रहे हो। मैंने तुझे आज ही देखा है, मुझे तुम्हारे गधे से क्या गर्ज। जाओ
इस इलजाम व इतहाम से बाज आओ वो गंवार कहने लगा मैं तो हरगिज
ना जाऊंगा। और मैं शौर मचाऊँगा और मेरा गधा आप ही ने चुराया है।
हजरत अबु अलहसन ने हाथ उठाकर दुआ माँगी के इलाही! मुझे इस गंवार
के मखूमसे से निजात दे दुआ माँगते ही गंवार के पास एक आदमी आया
जिसने बताया के गधा मिल गया है। गंवार हजरत के कदमों में गिर गया।
और कहने लगा हजरत माफ फ्रमाईयेगा मुझे यक्रौन था के गध्या आपने
नहीं लिया मगर अपना गधा पाने की मैंने तरकीब सोची थी के हजरत अबु
अलहसन जो मकूबूले खुदा है। उसे तंग करो तो वो अल्लाह से दुआ माँगेगा।
अल्लाह कबूल फ्रमाएगा और मेरा गधा मिल जाएगा। चुनाँचे ऐसा ही हुआ।
( तजुकरत-उल-औलिया, सफा 529)
सबक:- एक गंवार तक को भी ये इल्म है के अल्लाह वालों की
दुआएँ कबूल होती हैं और उनकी बारगाह में हाजिर होने से मुश्किलात टल
जाती हैं। फिर जो पढ़ा लिखा होकर भी उन अल्लाह वालों को अपने बराबर
समझे तो वो इस गंवार से भी गया गुजरा हुआ या नहीं?
हिकायत नम्बर&) जमाना नबुव्वत से बाद
हजरत हकीम तिरमीजी रहमत-उल्लाह अलेह बड़े हसीनो जमील थे एक
बार एक मालदार औरत उनके सामने आई और उन पर फ्रीए्ता हो गई। और
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सच्ची हिकायात हिस्सा सोम
हजरत से अपनी दिली कैफियत बयान की। हजरत ने लाहोल पढ़ी और वहाँ
से भागे। फिर जब तीस बरस के बाद आप बूढ़े हो गए तो आपको एक मर्तबा
यही जवानी के आलम का वाकेया याद आया और दिल में सोचने लगे के
अगर मैं उस वक्त उस औरत का दिल ना तोड़ता और बाद में तोौबा कर लेता
तो क्या मुजायका था। ये खयाल आते ही आप चौंके और रोने लगे। और
नफ्स को मलामत करने लगे के ऐ बदजात! गुनाहों के दिलदादा! जवानी में
तो ये आरज ना हुई। अब बुढ़ापे में इस कृद्र मुजाहिदे और रियाजृत के बाद
भी गुनाह करने पर ये पशेमानी? हीहात! हीहात! और बहुत गमगीन हुए
के ये खयाल क्यों आया? तीन रोज इसी परेशानी में रहने के बाद ख़्वाब में
सल-लल्लाहो तआला अलेह व सलल्लम की जियारत हुई। हुजर ने फरमाया
ऐ तिरमिजी रंजीदा मत हो। इस खयाल के आने में तुम्हारा कूसूर नहीं। इसकी
वजह ये है के मेरे इन्तिकाल को तीस बरस और गुजर गए और तुम्हारा ये
बुढ़ापे का जुमाना मेरे जुमाने से तीस बरस और दूर गुजर गया और इस
किस्म के खयाल मेरे जमाने से दूरी और बाद की वजह से हैं। तुम मतलक
ना घबराओ और अल्लाह अल्लाह करते रहो। ( तज॒करत-उल-औलिया,
सफा 535)
सबक्ः:- अल्लाह वालों के दिल में किसी किस्म का बुरा खयाल
भी पैदा हो जाए तो इस पर रंजीदा और परेशान हो जाते हैं। फिर ऐसे लोग
बुरे कामों से क्यों ना मेहफूज होंगे? और ये भी मालूम हुआ के हमारे हुजर
सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम को अपनी उम्मत की परेशानियों और
सारी कैफियतों का बादअजु विसाल शरीफ भी इल्म है। और हुजर अपने
खास गलामों की तसलल्ली व तसकीन के लिए अब भी तशरीफ फरमा होते
हैं और ये भी मालूम हुआ के जमाना नबुव्वत बड़ा ही बाबर्कत व रहमत का
जुमाना था। और नमाज जिस कृद्र इस मुबारक जमाने से दूर होता चला जा
रहा है। इसी कृद्र मसायब व आलाम और जूनूब व मआसी बढ़ रहे हैं।
हिकायत नम्बर७&8 दो सूफी
हजूरत अब्दुल्लाह हनीफ रहमत-उल्लाह अलेह के मिलने को दो सूफी
दूरराज मुल्क से आए जब आपकी खानकाह में पहुँचे तो उन्हें मालूम हुआ
के हजरत अब्दुल्लाह बादशाह के दरबार गए हैं। उन दो सूफियों ने दिल में
सोचा के ये कैसा वली है जो बादशाहों के दरबार में जाता है। फिर वो वहाँ
से निकल कर शहर में घूमने लगे। जब वो एक दर्जी की दुकान के पास
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सच्ची हिकायात गा… हिस्सा सोम
पहुँचे तो उन्होंने सोचा के हमारा खिरका फट रहा है उसे सी लें। चुनाँचे
दर्जी की दुकान पर गए और उससे सुई तलब करके अपना खिरका सीने
लगे। इत्तिफाकुन दर्जी की कँँची खो गई। (के 8४ 2487 कक के मेरी
कैंची इन्हीं दो सूफियों ने चुराई है। चुनाँचे वो इन दोनों को पकड़ कर
बादशाह के पास ले गया। और कहने लगा के ये दोनों मेरी कैंची के चोर
हैं। हजरत अब्दुल्लाह हनीफ वहीं तशरीफ फरमा थे। आपने बादशाह से
फरमाया ये तो दो सूफी मनशन इंसान हैं इनका ये काम नहीं हो सकता। इन्हें
छोड़ दो। बादशाह ने हजुरत के कहने पर उनको छोड़ दिया। फिर आप ने
इन दोनों सूफियों से फ्रमाया। भाई तुम्हारी बदगुमानी दुरूस्त ना थी मैं ऐसे
ही कामों के लिए यहाँ आया हूँ। ये बात देखकर दोनों आपके मुरीद हो गए।
( तज॒करत-उल-औलिया, सफा 574)
सबक्:- अल्लाह वालों से जो बदगुमान होता है वो मुश्किलात में घिर
जाता है। और ये भी मालूम हुआ के अल्लाह वालों की हर अदा में कोई ना
कोई हिकमत होती है। और ये भी मालूम हुआ के अल्लाह वालों को दिली
कैफियात का भी इल्म होता है।
हिकायत नम्बर७७ सफेद बाज
हजरत अबु मोहम्मद जरीरी रहमत-उल्लाह अलेह ने एक मर्तबा फ्रमया
के चालीस साल से मैं एक सफे बाजु की तलाश में ,.। लेकिन वो आज तक
नहीं मिला। मुरीदैन ने अर्ज किया। हुजर इस राज से मतलअ फ्रभाएँ। आपने
फरमाया के आज से चालीस साल पहले मैं एक रोज नमाज अस्न से फारिग
होकर मस्जिद में बैठा था के मैंने एक नोजवान को देखा। जो नंगे पाँव और
जुर्दरू और बिखरे हुए बालों वाला और सर झुकाए हुए था। वो मस्जिद में
दाखिल हुआ और वज करके नमाज पढ़ने लगा। और नमाज पढ़ने के बाद
फिर सर झुकाए वहीं बैठा रहा। फिर नमाज मगूरिब का वक्त हुआ तो जमात
के साथ उसने भी नमाज पढ़ी। और नमाज के बाद फिर वो सर झुका कर बैठ
गया। इस रात खलीफा के हाँ सब सूफियों की दावत थी। मैंने उस नोजवान
से कहा। ऐ दुरवैश मैं खुलीफा के हाँ दावत में जा रहा हूँ। तुम भी चलोगे?
उसने कहा। मुझे खलीफा की दावत की परवाह नहीं है हाँ अगर आपका
जी चाहे तो थोड़ा सा हलवा मेरे लिए लेते आईयेगा। मैंने उसकी इस बात
पर तवज्जह ना की। और दावत पर चला गया। और जब वापस आया तो
देखा के हुज॒ः सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम तशरीफ् लाए हैं। और
9९९06 99 (थ्वा58८शाशश’
सच्ची हिकायात 508 हिस्सा सोम
हमराह हजरत इब्नाहीम हजरत मूसा कलीम अलेहिमस्सलाम भी हैं और दीगर
अंबिया इक्राम अलेहिम अस्सलाम भी हैं। मैंने सलाम अर्ज किया। तो हुजर
अनवर ने अपना रूख अनवर फैर लिया। मैंने अर्ज किया। या रसूल अल्लाह!
क्या मुझ से कोई खता वाके हो गई है? हुजर ने फ्रमाया हाँ! हमारे दोस्तों में
से एक ने तुम से हलवा माँगा। और तुम ने पहलूतही की मैं उसी वक्त ख़्वाब
से चौंक पड़ा और रोने लगा।,और दौड़ा हुआ मस्जिद में आया। क्या देखता
हूँ के वही नोजवान मस्जिद से निकल कर बाहर जा रहे हैं। मैंने जाकर अर्ज
की, के जनाब जूरा ठहर जाइये मैं अभी हलवा लाता हूँ। उन्होंने फरमाया सच
है। जब कोई दुरवेश हुज॒र सय्यद-उल-अंबिया और दीगर अंबिया.अलेहिम
अस्सलाम को सिफारशी लाए तब कहीं आप से हलवा पाए। बेशक बड़ा
मुश्किल काम था पस्॒ ये कहा और चले गए। ( तज॒करत-उल-औलिया,
सफा 574) ठ क्
सबकः- ख़ाकसाराने जहाँ राबकारत मंयर
तू चौ दानी को दरीं गर्द सवारे बाशिद
हदीस के मुताबिक बहुत से गर्द आलूद चेहरों और बिखरे हुए बालों
वाले खुदा के मक्बूल व मुक्र्िब बन्दे होते हैं। पस इन बजाहिर सादा मिजाज
बन्दों को हिकारत की नजर से ना देखना चाहिए। और ये भी मालूम हुआ के
अल्लाह के मक्बूलों का लिहाज खुद सरवरे अंबिया सल-लल्लाहो तआला
अलेह व सल्लम को भी होता है। लिहाजा उन अल्लाह वालों की दिलशिकनी
रसूल अल्लाह सल-अल्लाहो तआला अलेह व सलल्लम की नाराजगी का
मौजिब है। और ये भी मालूम हुआ के हमारे हुजर सल-लल्लाहो तआला
अलेह व सललम उम्मत के जुमला हालात से बाखबर हैं और हुजर के सदके
में जो अल्लाह वाले हैं वो भी सब कुछ जान लेते हैं। हु
हिकायत नम्बर&0 तेल और पानी
हजरत अबु इसहाक् इब्ने इब्नाहीम रहमत-उल्लाह अलेह एक रोज वाज
फरमा रहे थे मजमआ बहुत ज़्यादा था और इस मजमओ में खरासान के एक
आलिम भी थे। लोगों पर वाज का बड़ा असर हो रहा था। और सब हाज्जीन पर
एक कैफियत तारी थी। वो आलिम दिल मे सोचने लगे के में भी बड़ा आलिम
हूँ। लेकिन मेरे बअज में ये बात क्यों नहीं? और उनके वअज् में इतना असर
क्यों है? हजरत अबु इसहाक् ने वअजू फ्रमाते हुए ही कुनदील की तरफ
नजर फ्रमाई। और फ्रमाया। इस कुनदील में पानी और तेल का मुनाजरा हो
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सच्ची हिकायात ५09 ु हिस्सा सोम
रहा है। पानी तेल से कह रहा है के मैं तुम से ज़्यादा अजीज हूँ। सारी खुलकृत
की जिन्दगी मुझ से है। मगर ये क्या बात! के तू मेरे सर पर आके बैठा है। तेल
जवाब दे रहा है के मुझे ये मर्तबरा इसी वजह से हासिल हुआ है के मैंने तरह
तरह के रंज उठाए हें में बोया गया। फिर काटा गया। फिर मुझ पर चक्की
चली। फिर मैं ओरों को रोशनी देने के लिए अपने आपको जलाता हूँ। इसी
बजह से मैं तुम से बरतर हूँ। वो आलिम ये सुनकर उठे। और खिदमत में हाजिर
होकर अपने खयाल से तौबा की। ( तजरकत-उल-औलिया, सफा 68 )
सबके :- अल्लाह वाले बड़े बड़े मुजाहिदों के बाद मंजिल तक पहुँचते
हैं ओर मखलूक् के खयालात को भी जान जाते हैं।
हिकायत नम्बर७॥ दाना मुरीद
हजरत जुनैद रहमत-उल्लाह अलेह का एक मुरीद था। जिसकी तरफ
आप ज़्यादा मुतवज्जह होते थे। बअजुों को बुरा मालूम हुआ। तो हजरत
ने फ्रमाया के ये मेरा मुरीद अबद और अक्ल में तुम से बढ़ा हुआ है।
इस वजह से में उसे बहुत चाहता हूँ। लो मैं दिखाता हूँ ताके तुम्हें भी
मालूम हो जाए के इसमें क्या खसूसियत है। आपने फिर हर मुरीद को
एक एक मुर्गी दी। और एक एक छरी और फरमाया के ऐसी जगह इन
मुर्गियों को जिबह कर लाओ जहाँ कोई देखने वाला ना हो। चुनाँचे
सब गए और पौशीदा जगहों में इन मुर्गियों को जिबह करके ले आए।
मगर वो दाना मुरीद वैसे ही जिन्दा मुगी फैर लाया। हजरत ने पूछा, के
तुम ने जिबह क्यों ना कौ? तो बोला, हुजर मैं जिस जगह भी पहुँचा।
वहाँ अल्लाह तआला देखने वाला मौजूद था। इसलिए मजबूरन वापस ले
आया हूँ। हजरत ने फरमाया देख लो। ये है इसका वस्फ खास जिसकी
वजह से में उसे बहुत चाहता हूँ। ( तजुकरत-उल-औलिया, सफा 447 )
सबक :- इंसान अगर इस बात पर सही मअनों म॑ं यकीन कर ले, के
खुदा हर जगह हर फैल को देखने वाला मौजूद है तो कभा कोई गुनाह करे।
हिकायत नम्बर&0 आँसू
हजरत अबु बक्र शिबली रहमत-उल्लाह अलेह ने एक मर्तबा चूलहे में
एक लकड़ी को जलते देखा जो एक तरफ से जल रही थी और उसकी दूसरी
तरफ से पानी निकल रहा था। आप ये देखकर रो पड़े। और फरमाया। लोगा!
अगर तुम भी आतिश शौक में जलते हो और इस दावे में सच्चे हो तो तुम्हारी
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सच्ची हिकायात 50 हिस्सा सोम
आँखों से आँसू क्यों नहीं बहते। ( तज॒करत-उल-औलिया, सफा 427)
सबकः:- जिनके दिलों में आतिशे शौक् मौजूद है उनकी आँखों से
अक्सर आँसू भी बहते हें।
हिकायत नम्बर७) इसतम्दाद
एक-.काफले वाले सफर को जाते हुए पहले अबु अलहसन खरकानी
रहमत-उल्लाह अलेह की खिदमत में हाजिर हुए और अर्ज करने लगे
के हुज॒र! राह खतरनाक है। कोई दुआ सिखाईये, जिसकी बदौलत हम
महफूज व मामून रहें। हजरत अबु अलहसन ने फ्रमाया जब किसी मुश्किल
का सामना देखो। तो मुझे याद कर लेना। काफले वालों को ये बात पसंद
ना आई। और वो आपस में कहने लगे के मुश्किल के वक्त हम अल्लाह
को क्यों याद ना करें। उन्हें याद करें? चुनाँचे वो चले गए। इत्तिफाक से
रास्ते में डाकूओं ने आ घेरा। और वो उनके नरगे में घिर गए एक शख्स
ने उसी वक्त हजरत अबु अलहसन का नाम लिया। और अर्ज किया के
हजर! इम्दाद फ्रमाईये। वो शख़्स ये कहते ही गायब हो गए। डाकूओं ने
बाकी सारे काफले वालों को लूट लिया। मगर वो शख्स जिसने हजरत
अबु अलहसन को याद किया था। बच गया। डाकू अपना काम करके जब
चले गए तो वो शख्स फिर जाहिर हुआ। और लुटे हुए साथियों ने उससे
पूछा, तुम कैसे बचच गए। और कहाँ गायब हो गए थे! तो उसने सारा किस्सा
सुनाया। फिर जब ये लोग लौट कर हजरत अबु अलहसन के पास पहुँचे।
और दरयाफ्त किया। के हजरत उसकी वजह क्या है? के हम सब तो खुदा
को पुकारते रहे। मगर ना बचे। और जिसने आपको याद किया वो बच
गया। आपने फरमाया भाई। तुम लोग खुदा को पुकारते तो हो मगर महज
जुबान से दिल से नहीं और अबु अलहसन दिल से पुकारता है बल्के दिल
कें भी दिल से। पस तुम अबु अलहसन को याद करो। ताके अबु अलहसन
तुम्हारे लिए खुदा को याद ‘करे। और तुम अपने मकसद में कामयाब हो
जाओ। इसलिए के महज रसमन और आदतन हजार बार भी पुकारना गैर
मुफीद है। ( तज॒करत-उल-औलिया सफा 632 )
सबक :- असल मदद और हकीकी एआनत अल्लाह ही की तरफ से
है। और अल्लाह के मक्बूल बन्दे मजहरऊने इलाही हैं। उन अल्लाह के बन्दों
को मुश्किल के वक्त याद करना सिर्फ इसलिए होता है के वो हुज॒र कुल्ब
से अल्लाह के हुज॒र दुआ करके हमारी मुश्किल आसान करा दें।
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सच्ची हिकायात 54॥ हिस्सा सोम
हिकायत नम्बर७0 सुलतान मेहमूद दर खरकानी पर
हजरत अबु अलहसन खरकानी रहमत-उल्लाह अलेह के कशफ व
करामात का तजुकरह जब सुलतान मेहमूद गृजुनवी रहमत-उल्लाह अलेह
ने सुना। तो सुलतान को आपकी जियारत व मुलाकात का शौक् पैदा हुआ
और कई दफा आपको गृजनी आने की दावत दी लेकिन हजरत ने कुबूल
ना फ्रमाई। आखिर सुलतान मेहमूद गजनी से रवाना होकर खुरकान पहुँचा।
और शहर के बाहर शाही खैमा गाड़ दिया। और एक कासिद हजुरत की
खिदमत में रवाना करके उसके हाथ कहला भेजा। के बादशाह वक्त
आपकी जियारत के लिए गूजनी से आपके वतन खरकान आया है। आप
जुरा कदम रंजा फ्रमा कर बादशाह के खैमे तक अगर तशरीफ ले चलें तो
बड़ी मेहरबानी होगी। साथ ही कासिद को समझा दिया के अगर शेख यहाँ
आने से मअजूरी का इजुहार करें तो इन्हें ये आयत सुना देना अतीउल्लाहा
व अतीऊर्रयूलों व ओलिल अगरी मिनकुम “यानी इताअत करो अल्लाह
और उसके रसूल्व की और ओलिल अमगरी यानी बादशाहे वक्त की।”
जिस वक्त कासिद शेख की खिदमत में हाजिर हुआ और बादशाह
का फरमान सुनाया तो शेख ने बादशाह के खैमे तक जाने से मअजरी
जाहिर की। तो उस पर कासिद ने आयात मजूकूरा पढ़कर कहा के उसकी
रू से बादशाह की इताअत आप पर फर्ज है। आपने जवाब दिया के
बादशाह से कह दो के मैं अभी अतीउल्लाह के फरमान ही से सबुकदोश
नहीं हो सका हूँ। और उसके बाद अतीऊरशस्ूला के बेशुमार फ्रामीं भी
आदा करने बाकी हैं। खुदा जानो ओलिल अगरी की। इताअत की बारी
जिन्दगी में पेश आएगी या नहीं? अभी तो अतीउल्लाह से ही लम्हा भर
फरसत नहीं। कासिद ने जब सुलतान के पास हजरत की तरफ से ये
मसकत और माकल जवाब दिया तो सुलतान ने कहा के हजरत ने हमें
ला जवाब कर दिंया। अब हमें हजरत के हुजर चलना चाहिए। चुनाँचे
सुलतान मेहमूद ने हजरत के बातिनी कशफ का इप्तिहान लेने का ये
हीोला बनाया के अपने गलाम अयाज को शाही लिबास पहना कर शाही
ताज उसके सर पर रख दिया। और खुद अयाज् का गूलामाना लिबास
पहन लिया और लोंडियों को मर्दों का लिबास पहना कर अपने साथ ले
लिया और इस तरह उल्टे रूप में हजरत की ऋुटिया की तरफ रवाना
हुआ। चुनाँचे जब ये काफला हजरत की बारगाह मं हाजिर हुआ। तो
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सच्ची हिकायात … 542 हिस्सा सोम
हजरत ने अयाज् के शाहाना लिबास की तरफ मतलक् तवज्जह ना
फरमाई। बल््के सुलतान को जो उस वक्त एक गूलाम के लिबास में पीछे
खड़े झाँक रहे थे। मुखातिब होकर फ्रमाया के इन ना मेहरम औरतों
को बाहर निकाल दो। चुनाँचे उन मर्दों के लिबास में लोंडियों को बाहर
निकाला गया। बअदहू हजरत ने सुलतान से फ्रमाया के बड़ा दाम फ्रैब
उठा कर लाए हो। उस पर सुलतान ने अर्ज किया। के आप जैसे अनका
के लिए हमारा दाम ना कारा व हैच साबित हुआ। द
सुलतान ने उस वक्त हजरत से कुछ तबर्र्क तलब किया। हजरत ने
जौ की रोटी का एक सूखा टुकड़ा पेश किया। सुलतान ने बड़े एहत्राम के
साथ वो टुकड़ा लेकर अशर्फियों की चन्द थेलियों बतौर नजुराना हजरत की
खिदमत में पेश कीं और हजरत का दिया हो तबरर्क मुंह में डाल कर खाने
लगा। इत्तिफाकन बादशाह के नाजक गले में जौ का रूखा सूखा टुकड़ा
अटक गया और बादशाह खाँसने लगा। जिस पर हजरत इन अशर्फियों की
तरफ् इशारा करके फरमाने लगे। के ऐ मेहमूद! पेगुम्बरों की गिजा आपके
गले से नीचे नहीं उतरती। और ये अशर्फियाँ जो फिरोना की मीरास हैं। इस
फक्रौर के गले से क्योंकर उत्तरेंगी? चुनाँचे सुलतान के बे शुमार इसरार,
और मिन्नत व समाजत के बावजूद भी हजरत ने अशर्फियाँ लेने से इंकार कर
) दिया। और फ्रमाया मुझे उनकी जुरूरत नहीं और ना ही में उनके लेने का
हकदार हूँ। जिनका ये माल है वही उसके हकदार हैं। उस पर सुलतान मेहमूद
और भी ज़्यादा गरवीदा हो गया। और सच्चे दिल से आपका मौतकिद हो
गया। ( तज॒करत-उल-औलिया, सफा 658)
सबक्:- अल्लाह वालों को अल्लाह ने ऐसा इल्म व कशफ अता
फरमाया है। के उनकी निगाह बातिनी से कोई चीज पनेहाँ नहीं रहती। और
ये भी मालूम हुआ के पहले बादशाहों के दिलों में अल्लाह वालों की बड़ी
अकीदमत व मोहब्बत होती थी। और वो लोग उन अल्लाह वालों के पास
हाजिर होते और उनके फयूज बर्कात से मुसतफीद हुआ करते थे।
हिकायत नम्बर(59) सोमनात
सुलतान मेहमूद ग॒जनवी रहमत-उल्लाह अलेह को हजरत अबु अलहसन
खूरकानी से बड़ी अकीदत थी और वो हजरत की खिदमत में हाजिर हुआ।
तो हजरत ने उसे अपना एक पीराहन मुबारक बतौर तबर्स्दक दिया।
सुलंतान मेहमूद गजनवी ने जब सोमनात पर हमला किया तो इस अजीम
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सच्ची हिकायात 543 ु हिस्सा सोम
लड़ाई में सुलतान का लश्कर लड़ते लड़ते थक गया। बहादुरों के दिल दहल
गए। तलवारें कुंद हो गईं नेजे टूट गए। और तीर खत्म हो गए। जाहिरी
ताक॒तों और मादी सामानों ने जवाब दे दिया। उस वक्त सुलतान मेहमूद ने
लाचार और मजबूर होकर रूहानी मदद की तरफ तवज्जह की और लएकर
से अलेहदा होकर दो रकअत नमाज नफिल अल्लाह की बारगाह में अदा
किए। और हजरत अबु अलहसन का दिया हुआ पीराहन हाथ में लेकर दुआ
माँगी। के इलाही! इस पीराहन वाले तेरे मक्बूल बन्दे की आबरू का सदके
मुझ इन पर फतह अता फ्रमा। ये दुआ माँगते ही जंग का नक्शा पलट गया।
और मेहमूद गृजनवी ने जवाँ मर्दी से मुकाला किया। ये था हजरत अबु
अलहसन की दुआओं का असर। । |
सबके्:- जब मादी कोशिशें खृत्म हो जायें वहाँ रूहानी मदद काम
आती है और जो मुश्किल बड़ी बड़ी तलवारों और फौजों से हल ना हो सके।
अल्लाह वालों के एक कुर्ते के सदके में वो मुश्किल हल हो जाती है। फिर
जिन पाक लोगों के बदन से लग जाने वाले एक कपड़े का अल्लाह को
इस क॒द्र लिहाज मंजर है तो जो बन्दा उन अल्लाह वालों से ताल्लुक् पैदा
करेगा उस पर अल्लाह की क्यों रहमतें नाजिल ना होंगी। और ये भी मालूम
हुआ के अल्लाह तआला की बारगाह में उन अल्लाह वालों क्री बद्ठी इज्जत
और बड़ी आबरू है। फिर उन सब के आका व मौला हुजर सरवरे अंबिया
सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम की इज्जत व आबरू और आपकी
रफअत व अजूमंत का कोई अंदाजा ही नहीं कर सकता। बावजूद उसके
अगर यूं कहा जाने लगे के वो हमारी मिसल एक बशर है। तो ये किस कद्र
जहालत और जुल्म है।
हिकायत नम्बर७&७ सरवरे आलमए स“्अन्स० )
और गौसे आजम( र०आ० )
हुज॒र गौस आजम रजी अल्लाहो तआला अन्ह फ्रमाते हैं के मैंने एक
दिन कब्ल अज जोहर जागते हुए हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व
सललम की जियारत की। तो हुज॒र अलेहिस्सलाम ने मुझ से फ्रमाया, बेटा!
तुम बअज क्यों नहीं कहते? मैने अर्ज किया हुजर! मैं बगृदाद के बड़े बड़े
फसुहा के सामने बोल नहीं सकता। हुजर ने फ्रमाया। अच्छा अपना मुंह
खोलो, चुनाँचे मैंने अपना मुंह खोल दिया। हुजर ने मेरे मुंह में सात मर्तबा
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सच्ची हिकायात 544 हिस्सा सोम
अपना थूक मुबारक थूका। और फ्रमाया। लो अब मजमओ में बिला खौफ
वअजू कहना शुरू कर दो। चुनाँचे मैं नमाज जोहर के बाद वअजू के लिए
बैठ गया। तो लोग खुद ब खुद ही मेरा वअज सुनने के लिए जमा होने शुरू
हो गए हत्ता के एक अजृद॒हाम कसीर हो गया। इस मजमओ में हजरत मौलाना
अली रजी अल्लाह तआला अन्ह भी मेरे सामने तशरीफ फ्रमा नजर आए।
और मुझ से फ्रमाने लगे। बेटा! अब वअजु क्यों नहीं कहते। मैंने अर्ज किया
हुज॒र! इतने बड़े मजमओ में बोलने की हिम्मत नहीं पड़ती। हजरत अली ने
फ्रभाया। अच्छा अपना मुंह खोलो। चुनाँचे मैंने अपना मुंह खोला। तो हजरत
अली ने मेरे मुंह में छः मर्तबा थूका मैंने पूछा के आपने क्यों थूका? तो हजरत
अली ने फ्रमाया अदबाअन रसूल अल्लाह सल-लल्लाहो तआला अलेह
व सललम। यानी हुजुर॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम के अदब के
लिए इसलिए के हुजर ने सात मर्तबा धूका था। तो मैं भी अगर सात ही मर्तबा
थूकता। तो ये हुज॒र से बराबरी हो जाती। जो बे अदबी है। इसलिए मैंने एक
मर्तबा कम थधूका है।
हुजर गौसे आजम फ्रमाते हैं। फिर मेरे सारे हिजाब उठ गए और मैं खूब
वअज् कहने लगा। ( बहुज्जत-उल-असरार, सफा 25। नीज॒ फतावा हदीसिया
इमाम इब्मे हज़ मक्की रहमत-उल्लाह अलेह, सफा 23)
सबक:- हुजर सल-लल्लाहो तआ अलेह व सलल्लम अपने विसाल
शरीफ के बाद भो बदस्तूर जिन्दा हैं। और अपने गलामों के पास तशरीफ
भी ले जाते हैं। और अहले नजर खुश नसीब अफ्राद जागते हुए भी हुज॒र की
‘जियारत करते हैं और हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सललम अपने
गूलामों की आज भी मदद करते हैं और आपका थूक मुबारक भी मुनब्बओ
संद उलूम व असरार है। और ये भी मालूम हुआ के हुज॒र( सन्अन्स० ) के फैज
व सदके से सहाबा इक्राम अलेहिम-उर-रिज॒बान भी जिन्दा हैं। और अपने
गुलामों के पास तशरीफ ले जाते हैं। और अहले नजूर जागते हुए भी उनकी
जियारत से मुशर्रफ होते है। और उनका थूक मुबारक भी उलूम व असरार का
मखूजन व मुनब्बओ है। फिर जिनकी थूक हजारों जरासीम और बीमारियों को
लिए हुए बेहूदा लोग उन पाक हस्तियों के मुमासिल कैसे हो सकते हैं। और
ये भी मालूम हुआ के हुजर गौसे आजम रजी अल्लाहो तआला अन्ह हज॒र
सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम और हजरत अली रजी अल्लाहो
तआला अन्ह की नस्ल पाक से हैं और सस्यद हैं। और ये भी मालूम हुआ के
हुज्र गीसे आजम रजी अल्लाहो तआला अन्ह हुजर सल-लल्लाहो तआला
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सच्ची हिकायात 545 हिस्सा सोम
अलेह व सल्लम और हजरत अली रज़ी अल्लाहों अन्ह के मंजरे नजुर और
रूएदो हिदायत के लिए उन्हीं की तरफ से मामूर हैं। फिर अगर गौसे आजम
से मोहब्बत ना होगी तो हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम और
हजरत अली रजी अन्ह क्यों कर राजी हो सकते हैं।
हिकायत नम्बर(४0 बारिश
हुजर गौसे आजम रजी अल्लाहो तआला अन्ह एक मर्तबा वअज फरमा
रहे थे के बारिश होने लगी। और लोग उठने लगे। हजरत गौसे आजम
रजी अल्लाहो तआला अन्ह ने आसमान की तरफ मुंह किया और कहा
अना अजमाऊ व अनता तुफाररिक इलाही? मैं तेरे जिक्र के लिए, लोगों
को जमा कर रहा हूँ और तू उन्हें मुनतशिर कर रहा है” इतना कहना ही
था के बारिश फौरन थम गई। और जलसे गाह के बाहर बाहर तो बदस्तू
बारिश जारी रही। मगर जलसे गाह में बारिश बिलकुल बन्द हो गई।
( बहुज्जत-उल-असरार-उल-शेख अबु अलहसन अली इब्ने यूसुफ इब्ने
जवीर-उल-खमी अलशाफई ,, सफा 75)
सबक्:- अल्लाह वालों की जो मर्जी हो, वही मर्जी खुदा की भी होती
है। और हुजर गौसे आजुम रजी अल्लाहो अन्ह की इतनी बड़ी शान है। के
आपकी मर्जी के मुताबिकु अल्लाह त्आला ने जलसे गाह के बाहर बाहर
तो बारिश जारी रखी। और जलसे गाह के अन्दर बन्द करके दिखाया दिया।
के मेरे मक्बूल बन्दों की मेरे यहाँ इतनी कृद्र है। के वो जो कुछ भी चाहें मैं
बैसे ही कर देता हूँ।
फायदा:- इसी किताब के इसी सफहे पर लिखा है के बाज दीगर बुजर्गों
का भी ये तजुर्बा है के वो भी किसी वक़्त बारिश में घिर गए तो उन्होंने
हजरत गौसे आजम रजी अल्लाहो तआला अन्ह की ही करामत बयान की।
तो बारिश फौरन थम गई।
हमारे कस्बे “कोटली लोहाराँ” में एक मर्तबा रमजान शरीफ में आखिरी
जुमआ पढ़ने के लिए कस्बे के बाहर एक खुले मैदान में बहुत बड़ा इजतिमा
था। जिसमें हजरत फिकिया आजम रहमत-उल्लाह अलेह बअज फरमा रहे
थे के इतने में बारिश आ गई। और लोगों में इंतिशार फैलने लगा। हजरत
फिकिया आजम अलेह अरहमा ने हजरत गौसे आजम रजी अल्लाहो तआला
अन्ह की यही करामत बयान की तो बारिश फौरन थम गई। और जुमआ बड़े
इतमीनान से पढ़ा गया। इस वाकये के अहबाब कोटली शाहिद हैं।
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सच्ची हिकायात 56 हिस्सा सोम
हिकायत नम्बर७७) दर्जला की तुगृयानी
एक दफा दरयाऐ दजला में सैलाब आ गया। लोग घबराए हुए ह॒जर
गौसे आजम रजी अल्लाहो तआला अन्ह के पास आए व वसतग्रीसूना
बिही और आपसे इसतिगासा करने लगे। और मदद चाहने लगे। हजरत गौसे
आजम ने अपना असाऐ मुबारक लिया। और दर॒या की तरफ चल पड़े। और
किनारे दरया पर पहुँच कर आपने पानी की असल हद पर वो असा गाढ़
दिया और फरमाया इलाही हाहुना ऐ पानी बस यहीं तक! इतना फ्रमाना
था के पानी ने घटना शुरू कर दिया। और इस असाऐ मुबारक तक आ गःए!
( बहुज्जत-उल-असरार, सफा 7 )
सबक्:- अल्लाह वालों की हकूमत दरयाओं पर भी जारी रहती है
और एक हम भी हैं फे घर का परनाला भी हमारे बस में नहीं रहता।
हिकायत नम्बर७० गौसे आजुम( र०आ० ) का इल्म
एक मर्तबा हुजर गौसे आजम रजी अल्लाहो अन्ह ने फरमाया, यानी
अगर मेरी जुबान पर शरीअत की रोक ना हो, तो तुम अपने अपने घरों में जो
जो कुछ खाते, और जो जो कुछ जमा रखते हो , मैं उन सबकी तुम्हें खबर दे
दूं, तुम सब मेरे सामने उन कांच की बोतलों की मानिंद हो जिनका बाहर भी
नजर आता है। और जो कुछ इन बोतलों के अन्दर हो वो भी दिखाई देता है।
( बहुज्जत-उल-असरार , सफा 24 )
सबकः:- हुज॒र गौसे आजम रजी अल्लाहो अन्ह का इल्म इस कद्र
अपमीक और वसी था के जाहिर और बातिन की कोई शै उनसे पनेहाँ ना रही।
‘फिर अगर वो शख्स जो एक बोतल का जाहिर भी बगैर ऐनक के ना देख
सके, उन अल्लाह वालों के इल्म में कलाम करने लगे तो किस क्द्र बेखुबर
है। और ये भी मालूम हुआ के हुजर गौसे आजम रजी अल्लाहों तआला
अन्ह का ये कमाल इल्म हुज॒र सरवरे अंबिया सल-लल्लाहो तआला अलेह
व सलल्लम की मोहब्बत व मुताबेअत की बदौलत है। फिर जिस जात वाला
सिफात के एक गुलाम का इस क॒द्र बसी इल्म है, तो खुद इस जातग्रामी के
उलूम की चुसअत का क्या आलम होगा?
हिकायत नम्बर७७) डाकूओं का सरदार
हुजुर गौसे आजम रजी अल्लाहो अन्ह अभी बच्चे ही थे के आपको
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सच्ची हिकायात _. 5॥7 हिस्सा सोम
इल्म का और मक्बूलाने हक की सोहबत का शौक पैदा हुआ। आपने अपनी
वालिदा से अर्ज किया के अम्मी जान! मुझे इजाजुत दीजिए ताके ञ्ं बगृदाद
जाकर इल्मे दीन हासिल करूं। वालिदा ने फरमाया बेटा! जाओ इजाजत है।
और फिर चालीस दीनार लाकर हुज॒र गौसे आजम को दिए के लो ये अपने
खर्च के लिए साथ लेते जाओ। हुज॒र गौसे आजम ने वो दीनार ले लिए। और
एक बटदवे में सी कर कमर के साथ बाँध लिए और बगदाद जाने के लिए
तैयार हो गए, वालिदा ने रूख़्सत करते वक्त इर्शाद फरमाया के बेटा! हमेशा
सच बोलना। और झूट से हमेशा किनारा कश रहना।
हुजर गौसे आजुम वालिदा से रूख्सत पाकर एक काफले के हमराह
बगृदाद को चल दिए। ये काफला एक जंगल में पहुँचा तो साठ घोड़े सवार
डाकूओं ने इस काफले पर हमला कर दिया। और काफले को लूटना
शुरू कर दिया। एक डाकू हुजर गौसे आजूम के पास भी आया और कहा
ओ फकौीर लड़के! बता तेरे पास भी कुछ है? गौसे आजूम ने फ्रमाया!
मेरे पास चालीस दीनार हैं। डाकू ने पूछा कहाँ हैं? फ्रमाया। ये कमर में
बंधे हैं। डाकू ने इस बात का मजाक समझा और चला गया। फिर दूसरा
डाकू आया। और उसने भी आपसे यही सवाल किया। और आपने उसे भी
यही जवाब दिया और वो भी मजाक समझ कर चला गया। फिर तीसरा
डाकू आया। और उससे भी यही सवाल जवाब हुआ। उसी तरह मुतअद्दिद
डाकूओं ने आप से यही सवाल किया। तो आपने सभी से फ्रमाया के हाँ
मेरे पास चालीस दीनार हैं। डाकूओं को कुछ शक गुजरा तो वो आप को
पकड़ कर अपने सरदार के पास ले आए। डाकूओं के सरदार ने भी आप
से सवाल किया के क्यों ऐ फकोर लड़के ! तुम्हारे पास भी कुछ है? आपने
फरमाया के हाँ है! सरदार ने पूछा कया है, फ्रमाया, चालीस दीनार।
सरदार ने पूछा कहाँ हैं? फ्रमाया कमर के साथ बंधे हैं। सरदार ने आगे
बढ़कर तलाशी ली तो वाकुई चालीस दीनार निकल आए। डाक्ूूओं का
सरदार बड़ा हैरान हुआ। के इस लड़के ने अपना माल बताया क्यों? जब
के डाकूओं से माल छुपाया जाता है। चुनाँचे डाकूओं के सरदार ने बड़े
ताज्जुब के साथ हुज॒र गौसे आजम से पूछा के लड़के तुम ने ये माल हम
से छपाया क्यों नहीं) और साफ साफ बता क्यों दिया? आपने फरमाया
के मेरी वालिदा ने मुझ से सच बोलने का वादा लिया था। इसी लिए मैंने
सच ही बोला। और सच ही बोलता रहूंगा। ताके वालिदा के साथ वादा
शिकनी ना हो जाए। डाकूओं के सरदार ने ये बात सुनी तो चीख मार कर
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सच्ची हिकायात ह हिस्सा सोम
रोने लगा। और कहा के अफसोस! ये लड़का तो अपनी वालिदा के साथ
किए हुए वादे की इतनी पासदारी करे और में जो अपने रब से वादा कर
के आया हूँ। आज तक उसे निभा ना सका। ऐ लड़के! इधर ला हाथ! मैं
तेरे हाथ पर आईदा के लिए तौबा करता हूँ। ये कहकर उसने सच्चे दिल
से तौबा की। और फिर अपने मातेहत डाकूओं से कहा के जाओ भई! मेरे
साथ अब तुम्हारा कोई वास्ता नहीं। उन डाकूओं ने जवाब दिया के आप
हमारे सरदार हैं हमारे सरदार ही रहेंगे और वो इस तरह के हम भी सब इस
बुरे काम से तौबा करते हैं। और अब हम तोबा करने वालों में भी आप ही
हमारे सरदार हैं। चुनाँचे उन सब ने भी सच्छे दिल से तौबा की। और लूटा
हुआ माल वापस कर के आईंदा अच्छी और शरई जिन्दगी गुजारने लगे।
( बहुज्जत-उल-असरार, सफा 57 )
सबक्:- अल्लाह वाले कभी झूट नहीं बोलते हैं। और उनकी रास्त
बाजी व सिदक पसंदी की बदौलत हजारों गुमराह हिदायत पा जाते हैं। और
ये भी मालूम हुआ के हुजर गौसे आजम रजी अल्लाहो अन्ह बचपन ही से
गुमराहों के लिए हावी और मुरशिद थे।
हिकायत नम्बर७४) रमजान का चांद
एक मर्तबा रमजान शरीफ के चाँद के बारे कुछ इख़्तिलाफ पैदा हो
गया। बअज् कहते थे के रात को चाँद हो गया। बअज कहते नहीं हुआ।
हजर गौसे आजम रजी अल्लाहो तआला अन्ह की वालिदा ने इर्शाद फ्रमाया
के मेरा ये बच्चा ( गौसे आजम ) जब से पैदा हुआ है। रमजान शरीफ के
दिनों में सारा दिन दूध नहीं पीता। और आज भी चूंके अब्दुलकादिर ( रजी
अल्लाहो तआला अच्ह ) ने दूध नहीं पिया। इसलिए रात को वाकई चाँद हो
गया है। चुनाँचे फिर तहकीक् करने पर यही साबित हुआ के चाँद हो गया
है। ( बहुज्जत-उल-असरार, सफा 79)
सबक्:- अल्लाह वालों की सीरत बचपन ही से अच्छी होती है और
उनकी आदत इब्तिदा ही से शरई आदत होती हैं, फिर अगर एक ऐसा शख्स
जिसने उप्र भर एक रोजा ना रख हो। हुजर गौसे आजम की शान वाला में
कोई गुस्ताखी करे। तो वो किस क॒द्र गुसताख है।
हिकायत नम्बर७० गौसे आजम की फफी
‘एक मर्तबा जीलान में बारिश ना होने की वजह से बड़ी परेशानी वाके
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सच्ची हिकायात 59 हिस्सा सोम
हो गई। लोगों ने बहुत दुआएँ की। मगर बारिश ना हुईं। आखिर बहुत से
लोग जमा होकर हुजर गौसे आजम रजी अल्लाहो तआला अन्ह की फ्फी
हजरत आयशा रहमत-उल्लाह अलेहिमा की खिदमत में हाजिर हुए। और
अर्ज की के बारिश ना होने के बाइस बड़ी परेशानी हो रही है। दुआ फ्रमाइये
ताके अल्लाह तआला हमें बारिश से मुसतफीद फ्रमाए। गौसे आजम की
फूफी उठीं और झाड़ू देकर अपने घर का सहन साफ करने लगीं। और फिर
हाथ उठा कर कहने लगीं। इलाही! सहन को साफ मैंने कर दिया है। अब
छिड़काओ तू कर दे। इतना फ्रमाना ही था के अन्न आ गया। और बारिश
होने लगी। ( बहुज्जत-उल-असरार, सफा 5)
सबके :- हुजर गौसे आजम रजी अल्लाहो तआला अन्ह के वालदैन
और मुतअल्लिंकैन सभी अल्लाह के मक्बूलों में से थे। और ये भी मालूम
हुआ के अल्लाह तआला अपने मक्बूलों की दुआ जल्दी सुनता है।
हिकायत नम्बर७७ कुम बिड्जनिल्लाही
एक औरत अपने बच्चे को लेकर हुज॒र गौसे आजूम रजी अल्लाहो
तआला अन्ह के पास हाजिर हुई। और कहने लगी, इस मेरे बच्चे को हजर
से बड़ी मोहब्बत है। मैं उसको आपके पास छोड़ती हूँ। इसकी तरबीयत
फ्रमाइये और अपने फयूजु व बर्कात से इसे माला माल कीजिए। चुनाँचे वो
औरत अपने बच्चे को हजरत गौसे आजम की खिदमत में छोड़ गई। कुंछ
दिनों के बाद अपने बच्चे को देखने के लिए आई तो देखा के उसका बच्चा ।
कमजोर नातवाँ हो गया है और जो की खुश्क रोटी खा रहा है। फिर हजर
गौसे आजम की खिदमत में गई तो देखा के आपके आगे पकी हुई मुर्गी रखी
है जिसे आप तनावुल फ्रमा रहे हैं। उस औरत ने अर्ज किया। हुज॒र! आप
खुद तो मुर्गी खा रहे हैं। और मेरा बेटा जौ की खुश्क रोटी खा रहा है। हुजर
गौसे आजुम रजी अल्लाहो अन्ह ने इस खाई हुई मुर्गी की हड़ियों पर अपना
हाथ रखा और फरमाया करोंगी बिड्ज़निल्लाह इतना फ्रमाना ही था के
वो मुर्गी जिन्दा होकर बोलने लगी। हुजर गौसे आजम ने फ्रमाया देख जब
तुम्हारा बेटा भी इस दर्जे तक पहुँच जाएगा तो जो चाहेगा खाया करेगा।
( बहज्जत-उल-असरार, सफा 6) ।
सबक्:- हुजूर गौसे आजम रजी अल्लाहो तआला अन्ह को अल्लाह
तआला ने ये शान अता फरमाई थी के मुर्दों को कूम बिडडजूनिल्लाह फ्रमाते
तो वो ज़िज्शा हो जाते थे।
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सच्ची हिकायात 520 । हिस्सा सोम
हिकायत मम्बर७0) चील का सर .
एक मर्तबा हुजर गौसे आजम रजी अल्लाहो तआला अन्ह वअज फरमा
रहे थे के ऊपर हंवा मे एक चील चीखने लगी। और बार बार एक ही जगह
चक्कर लगाने लगी हुज॒र गौसे आजम ने ऊपर देखा। और फ्रमाया या रीहू
खूज़ी रासा हाजीहिल हुदाती ऐ हवा, इस चील का सर पकड़ ले ” इतना
फरमाना ही था के वो चील तड़पती हुई नीचे आ गिरी। और सर उसका
अलग जा गिरा। फिर जब आप वअज फरमा चुके तो उस मुर्दा चील के
पास तशरीफ लाए। और उसका सर और धड़ पकड़ कर इकड़ा किया। और
फ्रमाया। बिस्मिल्लाहिरहमानिररहीम। इतना फ्रमाना ही था के चील जिन्दा
हो गई। और हवा में उड़ गई और इस अप्र का सारे मजमओ में मुशाहेदा किया।
( बहुज्जत-उल-असरार, सफा 6 ) द
सबकः:- हुजर गौसे आजूम रजी अल्लाहो तआला अन्ह को अल्लाह
ने ये शान बझुशी थी के अल्लाह के अज़्न व अता से जिन्दों को मुर्दा और
मुर्दों को जिन्दा फ्रमा लेते थे।
हिकायत नम्बर७७) बायजीद बसतामी और
सम्आन का बुत खाना
हजरत बायजीद अलेह अर्रहमत फ्रमाते हैं के मैं एक दिन अपनी
खुलवत में खुश, अपने फिक्र में मुसतगरिक् और जिक्र में मानूस था के
‘नागहाँ मुझे गैब् से आवाज आई। के ऐ बायजीद सम्आन के बुत खाने में
आओ । और उनकी ईद में लिबास रिहबान पहन कर हाजिर होकर शामिल
हो जाओ। मैंने ये बात सुनकर कहा के मैं खुदा की पनाह माँगता हे इस
खयाल से। फिर जब रात हुई तो हातिफ ने मेरे ख्वाब में इसी बात का फिर
शयादा किया। तब मैं इस जवाब के हातिफ से मरऊब होकर ख़्वाब से फौरन
खौफजुदा होकर चौंक पड़ा। उसके बाद फिर मुझे जाहिरी तौर पर आवाज
आई के ( ऐ बायजीद ) तुझ पर इसमें कोई गुनाह नहीं। तो इससे मत डर। तू
मैरे नजदीक औलिया और अखयार में से है। तो रिहबान का लिबास पहन ले
और गले में जिनार डाल ले और तुझ पर कोई गुनाह नहीं उससे इंकार मत
कर। बायजीद रजी अल्लाहो अन्ह फ्रमाते हैं के तब मैं जल्दी से उठा और
हुक्म की तामील की और रिहबान का लिबास पहना। और समआन के बुत
खाने में जाकर उनमें शामिल हो गया। फिर जिस वक्त उनका बड़ा रिहबान
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सच्ची हिकायात 524 हिस्सा सोम
हाजिर हुआ और वो सब जमा हुए तो उसकी बात सुनने के लिए: चुप हो
गए। मगर ये बड़ा रिहब्वान बोल नहीं सकता था गोया मुंह में लगाम दे दी
गई है। तब दूसरे रिहबानों ने कहा। के ऐ रिहबान ये क्या बात है के तुम कुछ
गुफ्तगू नहीं करते। ताके तुम्हारी बात से हिंदायत पाकर तेरे इल्म की पैरवी
करें। रिहबान ने कहा के मुझे किसी शख्स ने गुफ़्तगू करने से नहीं रोका। के
मैं बात ना करूं। लेकिन बात ये है के कोई शख्स मोहम्मदी तुम्हारे में बैठा
हुआ है और वो तुम्हारे दीन के इम्तिहान लेने को आया है। उन लोगों ने कहा
हमें दिखलाइये। वो कोन है, त्ताके हम उसको इसी वक्त कत्ल कर डालें।
रिहबान ने कहा के नहीं उसे कृत्ल मत करो। लेकिन दलील और हुज्जत से
उसे मारो। उन्होंने कहा। के जेसा आप चाहें वैसा करें।
हजरत बायजीद फ्रमाते है। के उनका बड़ा रिहबान खड़ा हुआ। और
आवाजु दी ऐ शख्स मोहम्मदी तुम को हजरत मोहम्मद (सल-लल्लाहो
तआला अले व सल्लम ) की कसम है के तुम उठ के खड़े हो जाओ। ताके
हम देखें। तब बायजीद उठकर खड़े हो गए और जूबान से तसबीह ओर
तक्दीस और तमहीदे इलाही जारी थी। तब रिहबान ने कहा के ऐ मोहम्मदी!
मैं आपसे कुछ मसायल पूछना चाहता हूँ। अगर उनके जवाब आपने दे दिए
तो हम तेरे ताबओ हो जाऐंगे। अगर तुम जवाब देने से आजिज हो गए तो हम
तुझे कत्ल कर डालेंगे। हजरत ने फरमाया मंजर है। म :कल व मनकल से जो
चाहो पूछ लो। मैं जवाब दूंगा। चुनाँचे रिहबान ने सवालात शुरू किए और
पूछने लगा। बताओ के:- |
वो एक चीज क्या है जिस जैसी दूसरी कोई चीज नहीं।
वो दो क्या हैं, जिनका तीसरा नहीं।
वो तीन क्या हैं, जिनके साथ चौथा नहीं।
वो चार क्या हैं, जिनके साथ पाँचवा कोई नहीं।
वो पाँच क्या हैं, जिनके साथ छठा नहीं।
वो छः: क्या हैं, जिनके साथ सातवाँ नहीं।
वो सात क्या हैं, जिनके साथ आठवाँ नहीं।
वो आठ क्या हैं, जिनके साथ नवाँ नहीं।
वो नो क्या हैं, जिनके साथ दसवाँ नहीं
वो दस क्या हैं जो कामिल हैं।
और ग्यारह कया हैं। बारह क्या हैं। तेरह क्या हैं और चौदह क्या हैं जो
अल्लाह से बातें करती हैं। और बतलाओ! के एक कौम ने झूट बोला। और
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सच्ची हिकायात 522 हिस्सा सोम
वो जन्नत में दाखिल हो गई और एक कौम ने सच बोला और वो दोजख में
डाली गईं। और जारियाते ज़रवन क्या हैं और हामिलाते बकुरन क्या है।
और जारियाते युसरन क्या है और मुकृस्सिमाती अमरन क्या है?
और बताओ। के वो क्या चीज है के बगैर रूह के दम लेती है। और वो
कब्र कौनसी है जो साहब कृत्र को लिए फिरती है। और वो पानी कौन सा
है जो ना आसमान से आया और ना जुमीन से निकला।
और बताओ! वो चार चीजें क्या हैं जो ना जिन्न है ना आदमी ना
फरिश्ता। और ना वो बाप की पुशत से हैं और ना माँ के शिकम से।
और बताओ! के सबसे अव्वल जमीन में किस ने खून किया, और वो
क्या चीज है जिसको खुदा ने पैदा किया और उसको अजीम फ्रमाया। और
सबसे अफ्ज्ल औरत कौन सी है। और सब से अफ्जुल दरथा कौन सा और
सब से अफ्जल पहाड़ कौन सा है और सबसे अफ्जल चारपाया कौन सा है।
और सबसे अफ्जल महीना कौन सा है और सबसे अफ्जुल कौन सी रात है
और अलतामिया क्या है। और वो कौन सा दरख्त है जिसकी बारह टहनियाँ
हैं। और हर टहनी में तीस पत्ते हैं और हर पत्ते में पाँच शगूफे हैं। और दो इन
में धूप के अन्दर हैं और तीन साये में। और वो क्या चीज है जो बैत-उल-हराम
का हज करती है। मगर उसमें रूह नहीं और ना उस पर हज फर्ज है।
और बताओ! के कितने अल्लाह तआला ने पैदा किए। और कितने
मुरसिल हैं और कितने गैर मुरसिल हैं। और वो चार चीजें क्या हैं। जिनका
मजा और रंग मुतलिफ है। लेकिन उनकी असल क्या है।
और बताओ! के फकीर और फतील और कतमीर क्या हैं और सब्द
और लब्द और तम और रम क्या हैं।
और बताओ! जब क्त्ता भोकता है तो क्या कहता है और गधा हींकता
है तो क्या कहता है और बैल बोलता है। तो क्या कहता है। और घोड़ा जब
हिनहिनाता है तो क्या कहता है। और ऊँट जब बोलता है तो क्या कहता है
और मोर जब बोलता है तो क्या कहता है और तीतर अपनी आवाज में क्या
कहता है और बुलबुल अपनी आवाज में कया कहती है। और मेंढक अपनी
“न तसबीह में क्या कहता है और संख जब बजता है तो वो क्या कहता
।
और बताओ! के वो कौन सी कौम है जिस पर अल्लाह ने वही की ना
वो जिनों में है ना आदमियों में से। और ना फरिए्तों में।
और बताओ! रात कहाँ जाती है, जब दिन निकलता है और जब रात
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सच्ची हिकायात । 523 हंग हिस्सा सोम
हो जाती है, दिन कहाँ चला जाता है। द
जब रिहबान ये सवालात कर चुका तो हजरत बायजीद ने पूछा. के
कोई और सवाल भी बाकी है। रिहबान ने जवाब दिया नहीं! तब हजरत
ने फ्रमया के अगर मैं ने जवाबात इन सवालों के-दे दिए तो तुम अल्लाह
तआला और उसके रसूल मोहम्मद सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल््लम
पर ईमान लाओगे? तब सबने इक्रार करके कहा के हम ईमान ले आएंगे।
पस हजूरत बायजीद ने फ्रमाया के ऐ अल्लाह तू गवाह है इस बात का जो
कुछ ये लोग कहते हैं।
लो सुनो अपने सवालों के जवाब! जो सवाल किया तुम ने, के वो
एक क्या है जिस जैसा दूसरा नहीं, पस वो अल्लाह तआला अज्जोजल
है। और जो दो हैं तीसरा उनके साथ नहीं वो रात और दिन हैं। बमौजिब
कौल अल्लाह तआला के व जअलनलल लैली’ बन्नहारी आयातीन। और
जो तीन हैं चौथा उनके सानहीं वो अर्श है। कुर्सी और कलम हैं। और चार
हैं पाँचवाँ उनके साथ नहीं। वो चार किताबें हैं, तोरेत और जुबूर और
इंजील और करआन हैं। और जो पाँच हैं छटा उनके साथ नहीं। वो पाँच
फर्ज हैं नमाज पंज वक्ता जो तमाम मुंसलमान मर्दों और औरतों पर फर्ज
हैं। और जो छः: हैं सातवाँ उनके साथ नहीं। वो छ: दिन हैं जिनकी बाबत
अल्लाह त्आला फ्रमाता है वलक॒द खुलकनस समावाती वलअर्जा कया
बैनाहुमा फी सित्ताती अय्यामिन। और जो सात हैं आठवाँ उनके साथ नहीं।
वो सात आसमान हैं। जैसे अल्लाह तआला फ्रमाता खू-ल-क समावातिन
तिबाकु/और जो आठ हैं नवाँ उनके साथ नहीं। वो अर्शे अजीम के उठाने
बाले आठ फरिश्ते हैं। जैसे अल्लाह तआला फरमाता है व यहायिल अर्श़ा
रब्बिका फोकाहम योमाईज़िन समानिय्यत/ और जो नो हैं दसवाँ उनके
साथ नहीं। वो नो आदमियों का गिरोह है। जिन्होंने जमीन पर फसाद किया
था। जैसे अल्लाह तआला ने खूबर दी है बकाना फिल मदीनती तिसअतू
रहूतिन युफ्सिदूना फिल अर्जी वला वुसलीहून/और जो दस कामिला का
सवाल है वो दस फरायज हैं, जो मकके में हाजियों पर वाजिब हैं। जब
के वो हरम में हों। जेसे अल्लाह तआला फ्रमाता है फासियाम् सलासती
“अवग्यामिन फिल हज्जी व सबअतू डइज़ा रजअओेतुम तिलका अशरतुन
मिलातुन/ और जो ग्यारह हैं, वो हजरत यूसुफ अलेहिस्सलाम के ग्यारह
भाई हैं और जो बारह हैं महीने साल के हैं और जो तेरह है। वो यूसुफ
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सच्ची हिकायात …. 524 हिस्सा सोम
अलेहिस्सलाम के ख़्वाब हैं जैसे अल्लाह तआला फ्रमाता है ड्रन्नी रायतू
अहदा अघशरा कोकबवाँ वश्शग्सा वबलकुमरा। और जो तुम्हारा सवाल है के
वो कौम कौन है जिसने झूट बोल और बहिए्त में दाखिल हुईं वो हजरत
यूसुफ अलेहिस्सलाम के भाई हैं जैसे अल्लाह तआला ने फ्रमाया: व
जाअऊ अला कमीसिही बिदामिन कज़िब/और वो कौम जिसने सच बोला
और दोजख में डाली गई वो यहूद और नसारा हैं। जैसे अल्लाह तआला ने
फ्रमाया: वकालातिल यहूदो लेसातिन्न नसारा अला शेड़न व कालातित्र
नसारा लेसातिल यहूदा अला ग्रेड़न फहुम सदाक व उदखिलून्रार/ और
जारियाती जरवन चार हवायें हैं। और हामिलावाी बक़रन। बादल हैं। और
जारियाती युसरन वो दरया में चलने वाली कशतियाँ हैं मुकास्सिमाती
अमरनवो फरिश्ते हैं जो निस्फ शब शअबान को लोगों पर रिज़्कु तकसीम
करते हैं। और जो चौदह चीजें खुदा के साथ कलाम करती हैं। वो सात
आसमान और सात जुमीनें हैं जैसे अल्लाह तआला ने फकाला लहा व
लिलअआर्ज़ी ईतिना तोौअन ओ कराहन कालिता अतीना वार्डओन। और वो
कब्र जो अपने कब्र वाले को लिए फिरती थी। वो यूनुस अलेहिस्सलाम की
मछली है। और ये सवाल के अल्लाह ने कितने नबी पैदा किए। और कितने
मुरसिल और कितने गैर मुरंसिल। सो अल्लाह तआला ने एक लाख कई
हजार नबी पैदा किए। इनमें से तीन सौ तेरह मुरसिल हैं, और वो चीज जो
बगैर रूह के सांस लेती है। वो सुबह है। और वो पानी जो ना आसमान से
है और ना जमीन से निकला है। चो शीशा है जिस में बिलकिस ने हजरत
सुलैमान अलेहिस्सलाम के पास घोड़े का पसीना भेजा था। वो चार चीजें
जो ना जिन्न हैं ना आदमी ना फरिए्ता ना बाप की पुश्त से और ना माँ की
शिकम से। वो चार ये हैं। एक उनमें दुंबा हजरत इसमाईल अलेहिस्सलाम
का, दूसरी ऊंटनी सालेह अलेहिस्सलाम की तीसरी आदम अलेहिस्सलाम।
चौथी माई हव्वा हैं। और ये सवाल के वो क्या चीज है, और ये सवाल
के वो क्या चीज है, जिसको अल्लाह तआला ने पैदां किया! और फिर
उससे कराहत की। वो गथे की आवाज है जैसे फरमाया अल्लाह तआला
ने। उन्नल अनकरल असवती लसोतुल हमीर और ये सवाल के सबसे पहले
कत्ल या खून जमीन पर किस ने किया। वो खून है जो काबील ने अपने
भाई हाबील को कत्ल किया। और ये के वो कौन सी चीज है जिसको
अल्लाह तआला ने पैदा किया। और उसको अजीम फरमाया। वो औरतों का
मक्र है। जेसे अल्लाह तआला ने फरमाया छ्ञन्ना केदाकृन्ना अजीम। और ये
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सच्ची हिकायात (कम ; 525 हिस्सा सोम
सवाल के औरतों में अफ्जूल कौन है। सो वो ये हैं जो उम्मुल बशर हजरत
खदीजा, हजूरत आयशा, हजरत आसिया, हजरत मरयम बिन्ते इमरान रजी
अल्लाहो अनहन। और दरयाओं में अफ्जूल सीहून, जीहून, फिरात, नील,
मिस्र। और पहाड़ों में अफूजुल तूर है। और चार पायों में अफ्जल घोड़ा
है। और महीनों में अफूजल रमजान है। और अत्तामत् कुयामत का दिन है।
और ये सवाल के वो कोन सा दरझ़्त है जिसकी बारह टहनियाँ हैं और
हर टहनी के तीस पत्ते और हर पत्ते में पाँच शगूफे हैं और दो उन में धूप
में हैं और तीन साये में। सो वो एक साल है, टहनियाँ उसकी बारह माह
हैं, और पत्ते उसके हर माह में तीस दिन हैं और पाँच शगूफे पाँच नमाजें
हैं, दो दिन के वक्त और तीन रात को। और ये सवाल के वो क्या चीज
है जिसने मक्का मोअज्ज्मा का हज किया और तवाफ किया मगर उसमें
रूह नहीं। और ना उस पर हज फर्ज है। सो वो नूह अलेहिस्सलाम की
कश्ती है। और ये के वो चार चीजें क्या हैं, जिनका रंग और मजा